हास्य नाटक - दबिस्तान-ए-सियासत -2 // राक़िब दिनेश चन्द्र पुरोहित

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क्या चुग्गा खां बन गए, दफ़्तरेनिग़ार..? मंज़र – २ राक़िब दिनेश चन्द्र पुरोहित नए किरदार -: चरवाहा – भेड़ों को चराने वाला। मेमूना – मरियल सा नौजवा...

क्या चुग्गा खां बन गए, दफ़्तरेनिग़ार..?

मंज़र – २ राक़िब दिनेश चन्द्र पुरोहित

नए किरदार -: चरवाहा – भेड़ों को चराने वाला।

मेमूना – मरियल सा नौजवान, जिसका तबादला इस स्कूल में हुआ है। अब वह, स्कूल में ड्यूटी जॉइन करने आया है। इसने बिना क्रीज़ की हुई, सफ़ेद वर्दी पहन रखी है। और इसने, अपने चेहरे पर कैदियों के समान रीश [दाढ़ी] बढ़ा रखी है।

चुग्गा खां – सेकेंडरी पास जैलदार। क्रीज़ किया हुआ सफ़ेद सफ़ारी सूट पहन रखा है। ये शख्स बहुत सलीकेदार है, इनको पहली नज़र में लोग देखकर इन्हें दफ़्तरेनिग़ार समझने की ग़लती कर बैठते हैं।

ग़ज़ल बी – हिंदी विषय की सीनियर टीचर है। यह सभ्य महिला है, मगर किसी की आलोचना करने में, अपना फ़ायदा ज़रूर देखती है। स्कूल में, सियासती चाले चलने में माहिर। यानि मंजी हुई कलाकार। बोलने में, वाक्-पटुता काम लाती है। स्कूल की लोकल एग्जामिनेशन की निजाम।

[मंच पर, रोशनी फैलती है। बड़ी का कमरे का मंज़र सामने आता है। रशीदा बेग़म के आस-पास रखी कुर्सियों पर स्कूल की मेडमें बैठी है। रशीदा बी हेड मिस्ट्रेस की कुर्सी पर बैठी, इन मेडमों से गुफ़्तगू कर रही है। तभी चाय के प्यालों की तश्तरी उठाये शमशाद बेग़म कमरे में दाख़िल होती है। सभी मेडमों को चाय भरे प्याले थमाकर, अब वह रशीदा बेग़म को चाय का प्याला थमाकर कहती है।]

शमशाद बेग़म – हुज़ूर। हमने सुना है, आप नूरिया बन्ना से खफ़ा हैं ?

रशीदा बेग़म – देखो, ख़ालाजान। मैं ऐसे कोदन इंसानों को बर्दाश्त नहीं कर सकती, जो दफ़्तर में काम करने के अदब से अनजान हो। यह नूर मोहम्मद इसी तरह का, कोदन इंसान हैं।

शमशाद बेग़म – हुज़ूर, जानती हूँ मैं। इस तरह के कोदन इंसानों को हर घड़ी अपने सामने देखना आपको गवारा नहीं। इसको ड्यूटी पर रखना अपने लिए मुसीबत लाने से कोई कम नहीं है। मगर हुज़ूर...

रशीदा बेग़म – [आखों की त्यौंरिया चढ़ाती हुई, कहती है] – मगर क्या ? आप कहना क्या चाहती हैं ख़ाला ?

शमशाद बेग़म – [हाथ जोड़कर, कहती है] – हुज़ूर, यह भोला है। दफ़्तर के तौर-तरीके जानता नहीं। मगर, है दिल का भोला। रफ्तः-रफ्तः सब सीख जाएगा।

रशीदा बेग़म – [चिढ़ती हुई, कहती है] – क्या सीख जाएगा ? निरा उल्लू ठहरा, यह कोदन लंगड़ी बहू की तरह काम करता रहेगा। दस-दस आदमी चाहिए इसे संभालने के लिए, जो हर वक़्त हाज़िर रहे स्कूल में। एक आदमी इसका हाथ पकड़ेगा तो दूसरा पकड़ेगा इसकी टांग और तीसरा...माफ़ करो ख़ाला, मुझे अपना सर-दर्द नहीं बढ़ाना इस कोदन को ड्यूटी पर लेकर।

शमशाद बेग़म – हुज़ूर। मकबूले आम बात यही है, मुहब्बत से इंसान क्या ? पत्थर भी मोम बन जाता है। फिर यह तो हुज़ूर, यह इंसान है। आप नहीं जानते, मेरे शौहर को, ज़नाब न जाने कैसी-कैसी वाहियात हरक़तें करते हैं ? इतमीनान से झेलना पड़ता है, न मालुम कितनी अफ़सोसनाक ज़हालत से मुझे गुज़रना पड़ता है ?

रशीदा बेग़म – क्या कहना चाहती हो, ख़ाला ?

शमशाद बेग़म – हुज़ूर, आख़िर वे मेरे शौहर हैं। उनसे अमीक रब्त है, मुझे। दिल की तमन्ना है, कभी तो सुधरेंगे आख़िर। उनको इस हालत में कैसे छोड़ सकती हूँ, हुज़ूर ? आख़िर, अल्लाहताआला को क़यामत के दिन ज़वाब जो देना हैं। इसलिए, हुज़ूर...

रशीदा बेग़म – इसलिए, क्या ? आगे कहो, ख़ाला।

शमशाद बेग़म – यह कह रही थी, हुज़ूर। आपका भला होगा, आप इस पगले की नौकरी को सलामत रहने दें। इसके बीबी-बच्चे आपको दुआ देंगे, हुज़ूर। आप जानते ही हैं, हमारे एजुकेशन महकमें में, कई विकलांग, बेवा, तलाकशुदा वगैरा लाचार लोगों को नौकरी देकर यह सरकार सवाब का काम करती रही है। फिर, आप जैसी रहमदिल..

[शमशाद बेग़म की बात सुनकर, रशीदा बेग़म को रहम आ जाता है उस कोदन मुलाज़िम पर। झट उसकी दरख्वास्त पर, जॉइन करने के मंजूरी हुक्म लिखकर दस्तख़त करती है। फिर उस दरख्वास्त को, शमशाद बेग़म को थमा देती है। फिर, उससे कहती है।]

रशीदा बेग़म – अब जाओ, इस दरख्वास्त को आक़िल मियां को दे देना। और कहना, इस नूरिये के हाज़री रजिस्टर में दस्तख़त हो गए हों तो इस दरख्वास्त को जोइनिंग फ़ाइल में नत्थी कर दें। फिर, दो मिनट के लिए मेरे पास आयें, मुझे किसी ख़ास मुद्दे पर उनसे बात करनी है।

शमशाद बेग़म – जैसी आपकी मर्ज़ी। अभी कहती हूँ, उनसे।

[सभी चाय पीकर ख़ाली प्याले मेज़ पर रख देते हैं। शमशाद बेग़म उन जूठे प्यालों को वापस तश्तरी पर रखकर, तश्तरी को उठाती है और चल देती है। वह सारे काम लिए गए बर्तनों को नल के नीचे रखकर, आक़िल मियां के कमरे की तरफ़ क़दम बढ़ती है। उधर शमशाद बेग़म के बड़ी बी के कमरे से जाने के बाद, एक मरियल सा नौजवान, जिसकी रीश बढ़ी हुई है..कमरे में दाख़िल होता है। यह नौजवान इतना मरियल सा लगता है, मानों कोई टी.बी. का मरीज़ सरकारी टी.बी. अस्पताल से भागकर यहाँ आया है ? उसकी बढ़ी हुई रीश को देखकर ऐसा लगता है, मानों कोई कैदी तिहाड़ जेल से छूटकर सीधा यहाँ आया है ? अन्दर दाख़िल होता है, फिर तहज़ीब से झुकता हुआ बड़ी बी को सलाम करता है।]

मरियल सा नौजवान – [झुककर, सलाम करता है] – हुज़ूर, सलाम।

रशीदा बेग़म – [उसे सर से पाँव तक, घूरती हुई, कहती है] – कौन हो, भाई ? जानते नहीं, तुम ? यह सरकारी अस्पताल नहीं, यह सरकारी दफ़्तर है। [होंठों में ही, कहती है] आज़कल ये टी.बी. के मरीज़ खुले-आम अवारागर्दी पर उतर आये हैं, अभी थोड़ी देर पहले मेंटल अस्पताल का मरीज़ आ गया ड्यूटी जॉइन करने..और, अब आ गया यह टी.बी. का मरीज़ ?

[दोनों हाथ ऊपर करती हुई, ख़ुदा से दुआ मांगती हुई अपने दिल में कहती है।]

रशीदा बेग़म – [दोनों हाथ ऊपर ले जाती हुई, होंठों में ही कहती है] – ख़ुदा रहम। इस स्कूल पर रहम बख्स, मेरे मालिक। न जाने किस खबीस की बुरी नज़र इस पर लग गयी है ? सदका उतारूं...हाय अल्लाह, बुरे दिन आ गए इस स्कूल के। कोई ख़ता मुझसे हो गयी है, तो माफ़ कर रहमदिल परवरदीगार। [बड़बड़ाती है] अस्पताल के चक्कर...

मरियल सा नौजवान – हुज़ूर, वज़ा फ़रमाया आपने। अस्पताल के चक्कर काटता-काटता थक गया हूँ, हुज़ूर। आप मेरे लिए अल्लाह मियां से दुआ मांगिये, हुज़ूर। आख़िर, पैसे का काम पैसे से ही सलटता है हुज़ूर। बस, आप तनख्वाह दिलवा दीजिये हुज़ूर। आपकी मेहरबानी होगी, अल्लाह पाक आपको सलामत रखेगा।

रशीदा बेग़म – [होंठों में ही, कहती है] – हाय अल्लाह। यह तो वही ख़बीस निकला, जो अपनी अबसेंटी तो भिजवा देता है, मेरे पास। मगर कमबख्त यहाँ आकर ड्यूटी जॉइन करता नहीं। [उस मरियल नौजवान से, कहती है] अबे ए बोतल में पड़ी पुरानी शराब, जहां काम करता है वहीं जाकर अपनी तनख्वाह मांग।

मरियल सा नौजवान – [अदब से, अर्ज़ करता है] – हुज़ूर, यही अर्ज़ कर रहा हूँ आपसे। वहां से रिलीव होकर आपकी इस स्कूल में आ गया हूँ, ड्यूटी जॉइन करने। ड्यूटी पर ले लीजिये, हुज़ूर। फिर बाद में, बकाया तनख्वाह दिलाने के हुक्म इज़रा करें।

[बड़ी बी के पहलू में बैठी ग़ज़ल बी, रहम खाती हुई बीच में बोल पड़ती है।]

ग़ज़ल बी – बड़ी बी। इस बेचारे पर रहम कीजिएगा, तनख्वाह नहीं मिलने के कारण इसका दिमाग़ ठिकाने आ गया है। अब यह ऐसी ग़लती नहीं करेगा, यह नामाकूल समझ गया है कि जिस स्कूल से तनख्वाह उठायी जाती है, वहां ड्यूटी पर रहकर काम भी करना पड़ता है। हमारी स्कूल में वेतन प्रतियोजनार्थ तनख्वाह उठाने के आदेश नहीं चलते हैं। आख़िर, आ गया नामाकूल ड्यूटी जॉइन करने।

रशीदा बेग़म – [अपनी फ़तेह पर खुश होती हुई, कहती है] – क्या तुम सच्च कह रहे हो, वास्तव में आ गए तुम ड्यूटी जॉइन करने ?

मरियल सा नौजवान – [मरी हुई आवाज़ में, कहता है] – हुज़ूर यही अर्ज़ कर रहा था, आपसे। दफ़्तर से रिलीव होकर आ गया हूँ आपके पास, अब आप ड्यूटी जॉइन करने का हुक्म इज़रा करें। जॉइन करके, मैं आपकी ख़िदमत में रहूँगा हुज़ूर। आप बेफिक्र हो जायें, ज़नाब।

[इतना कहकर उस मरियल नौजवान अपनी जेब से ज्वाइन करने की अर्ज़ी निकालता है, फिर अर्ज़ी बड़ी बी को थमा देता है। बड़ी बी उस अर्ज़ी पर हुक्म इज़रा करके उस पर दस्तख़त करती है, फिर उस अर्ज़ी को उसे थमा देती है। फिर, कहती है।]

रशीदा बेग़म – [अर्ज़ी थमाते हुए, कहती है] – बाबू साहेब के पास जाकर, इसे फ़ाइल में नत्थी करवा देना।

[जैसे ही वह मरियल सा नौजवान बाहर आता है, वहां उसे बरामदे में खड़े जैलदार चुग्गा खां के दीदार हो जाते हैं। जो क्रीज़ की हुई सफ़ेद सफ़ारी पहने हुए हैं, उनकी पर्सनल्टी एक सभ्य सलीकेदार दफ़्तरेनिग़ार के समान नज़र आती है। यह मरियल नौजवान, उनको दफ़्तरेनिग़ार समझ लेता हैं। फिर, क्या ? झट झुककर, उनको सलाम ठोक देता हैं।]

मरियल सा नौजवान – [झुककर सलाम करता हैं, फिर आगे कहता हैं] – सलाम, साहेब। बड़ी बी ने भेजा है, आपके पास। कहा है, जोइनिंग की दरख्वास्त आपको संभला दूं। [दरख्वास्त थमाता है, फिर कहता है] हुज़ूर लीजिये, दरख्वास्त। हुज़ूर के इस बन्दे को मोहम्मद अली कहते हैं, और प्यार से सभी हमें मेमूना भाई कहते हैं।

[मेमूना की बात सुनकर, चुग्गा खां दफ़्तरेनिग़ार की तरह अकड़कर खड़े हो जाते हैं। फिर चुग्गा खां मेमूना भाई को सर से लेकर पाँव तक घूरकर देखते हैं। फिर, ज़नाब कहते हैं।]

चुग्गा खां – [मेमूना भाई को सर से लेकर पाँव तक देखकर, फिर कहते हैं] – हुम...ठीक है। अब, जी लगाकर काम करना।

मेमूना भाई – [खुश होकर] – हुज़ूर। आपको कभी भी मेरी शिकायत का मौक़ा नहीं मिलेगा।

[अब चुग्गा खां दरख्वास्त को अच्छी तरह से थाम लेते हैं, फिर बाद में वे वे कुछ सोचते हुए नज़र आते हैं।]

चुग्गा खां – [होंठों में ही, कहते हैं] – जब तक तू नहीं जानता कि, मैं कौन हूँ ? तब-तक बेटा मेमूना, मैं तेरे जैसे बेवकूफ से खूब सेवा लेता रहूँगा। कबतूरों को छोड़िये, ज़नाब। मैं वह परवाना हूँ, जो इंसानों को भी चुग्गा डाल सकता है।

[फिर चेहरे पर मुस्कान लाकर, चुग्गा खां कह देते हैं।]

चुग्गा खां – [मुस्कराते हुए, कहते हैं] – जोइनिंग की एप्लीकेशन मैं अपने पास रख लेता हूँ, मेमूना भाई। रजिस्टर में आपके दस्तख़त बाद में करवा दूंगा। अभी म्यां जाओ, वहां। [उंगली के इशारे से, झाडू रखने की ठौड़ दिखलाते हुए कहते हैं] वहां रखा है झाडू, उसे उठाइये और जाकर कमरा नंबर १ से ६ तक सफ़ाई करके आ जाओ वापस। फिर वापस आकर, नल के नीचे रखे चाय के प्याले धो डालना।

[बरामदे में स्टूल पर बैठी शमशाद बेग़म, आराम से चाय नोश फ़रमा रही है। अब मेमूना भाई को देखकर, वह उनसे कहती है।]

शमशाद बेग़म – [ज़ोर से, कहती है] – अरे मियां, चाय के प्याले तो धुलते रहेंगे। पहले तुम बाहर जाओ, और बाहर दुकान से दूध लेते आओ। यह मेज़ पर रखी बरनी उठा लेना, इसमें ही रखे हैं दूध के पैसे। वापस झट आकर, कमरों की सफ़ाई कर लेना।

[मेमूना भाई दूध लाने की बरनी और पैसे उठा लेते हैं। फिर, रुख्सत हो जाते हैं। तभी नूरिया आता है, चुग्गा खां उसे रोककर उसे स्टूल पर बैठाते हैं। फिर, नूरिये को हिदायत देते हुए कहते हैं।]

चुग्गा खां – देख नूरिया, तूझे अगर इस स्कूल में रहना है तो सबकी आँखों का तारों बनकर रहना होगा।

नूरिया – [पागलों की तरह, साइकल की चाबी को घुमाता हुआ कहता है] – हाँ जी, दिल का तारा बनेगा..डिस्को डांस करेगा, ज़नाब आप मेरा डिस्को डांस देखना चाहेंगे ? चलिए, आपको डिस्को डांस करके दिखलाता हूँ। [डांस करता हुआ गाने लगता है] आई एम ए डिस्को डांसर..हू हू। आई एम ए डिस्को डांसर। [डांस रोककर कहता है] अजी साहेब, हमारी डांस पार्टनर छमक-छल्लो ऐश्वर्या को तो बुला दीजियेगा।

शमशाद बेग़म – तुम्हारी ऐश्वर्या को अब कहाँ से ढूँढ़कर लायें ? कर ले, किसी दूसरी को एडजस्ट।

नूरिया – वाह ख़ाला। क्या बात कही, आपने ? चलिए, आपका हुक्म मान लेते हैं। ऐश्वर्या न सही तो, क्या हुआ ? [चुग्गा खां की बांह थामता हुआ, कहता है] चलिए ख़ाला, हम इस हेमा मालिनी से काम चला लेंगे। आप भी अपने राजेश खन्ना को लेकर, आ जाइयेगा। खूब नाचती हैं आप, हेलन की तरह।

[फिर क्या ? यह नूरिया तो जबरा ठहरा, कमबख्त चुग्गा खां का हाथ पकड़कर उनको नचाने लगा। बेचारे चुग्गा खां की हालत बहुत बुरी हो जाती है, प्रोबलम हो गयी कि अब इस पागल से अपनी जान कैसे छुड़ायें ? क़िस्मत अच्छी है उनकी, तभी आक़िल मियां वहां तशरीफ़ लाते हैं। आक़िल मियां को देखते ही, नूरिया डरकर चुग्गा खां का हाथ छोड़ देता है। हंसी को दबाकर, आक़िल मियां चुग्गा खां से कहते हैं।]

आक़िल मियां – [चुग्गा खां से, कहते हैं] – चुग्गा खां। इस नूरिया बन्ना को पाठ पढ़ाते रहना, यह बड़ी काम की चीज़ है। परसों हाफ इयरली के एक्ज़ाम शुरू होंगे, इसे आप नाईट ड्यूटी में अपने साथ ले लेना। आपकी दी हुई ट्रेनिंग से यह कोदन कुछ सीख लेगा। बड़ी बी ने मुझे अभी बुलाया है, मैं चलता हूँ।

[आक़िल मियां जाते हैं, उनके जाने की पदचाप सुनायी देती है। अब बड़ी बी के कमरे में, आक़िल मियां दाख़िल होते हैं। रशीदा बेग़म एक रजिस्टर लिए बैठी है। उनके बगल में, ग़ज़ल बी कुर्सी पर बैठी है।]

आक़िल मियां – [दाख़िल होकर, कहते हैं] – फ़रमाइये, हुज़ूर।

रशीदा बेग़म – एक बात कह देती हूँ, सरकारी नौकरी में ना रिश्तेदारी चलती है और न जान-पहचान। मुझे मालूम है, आपने...

आक़िल मियां – क्या जानती हैं, आप ?

रशीदा बेग़म – आपने थोड़ी सी जान-पहचान के कारण नूरिये का केस अपने हाथ में ले लिया। अब मैं चाहती हूँ, आप उसे किसी तरह की सहूलियत नहीं देंगे। हमारे लिए सभी मुलाज़िम बराबर हैं, समझ गए आप ? [ग़ज़ल बी की तरफ़ मुंह फेरती हुई, कहती है] देखो ग़ज़ल बी, एग्जामिनेशन के रोज़ आप इसको डोरा लाने का कहेगी और यह कोदन ले आयेगा रस्सी।

ग़ज़ल बी – [हंसती हुई, कहती है] – वज़ा फरमाया, आपने। कुछ नहीं मेडम, अगर यह कोदन रस्सी लाएगा तो मैं उस रस्सी से उसको ही बाँध दूगी।

रशीदा बेग़म – रस्सी से बांधकर उसे बन्दर की तरह नचाते रहना। फिर कोई आपको मदारी कहे, तो आप मुझे दोष मत देना।

ग़ज़ल बी – बन्दर बनाकर नचायें या इससे स्कूल की चौकीदारी करवाएं ? यह काम ठहरा, आक़िल मियां का। आख़िर, वे ठहरे इनके निजाम। जहां आक़िल मियां जैसे निजाम, और आप जैसी तुजुर्बेदार ऑफ़िसर। वहां हम लोगों को, मदारी बनने की कहाँ ज़रूरत ?

[हास्य के पुट में, ग़ज़ल बी ने क्या कह दिया ? इसका मफ़हूम न समझकर रशीदा बेग़म कहती है।]

रशीदा बेग़म – क्यों झूठी तारीफ़ करती है, आप ? हम कहाँ है, इतने तुजुर्बेदार ?

ग़ज़ल बी – भूल गयी, मेडम ? पहले वाली स्कूल में आपने स्कूल के दफ़्तरेनिग़ार को छठी का दूध पिला दिया..बेचारे को सस्पेंड करवा दिया, कोर्ट से हुक्म इज़रा करवाकर। अब कमबख्त भूल गया होगा, सरकारी नौकरी के साथ प्राइवेट धंधा करना। [धीरे से, कहती है] कहाँ ज़रूरत थी, उसे सस्पेंड करवाने की ? ‘मारी बेचारी मेंढ़की, और बन गयी सूरमा ?’

[गजल बी क्या कह रही है, धीमे-धीमे..? रशीदा बेग़म सुनती नहीं, वह तो उसके कहे जुमले को अपनी तारीफ़ समझकर कह देती है।]

रशीदा बेग़म – वक़्त-वक़्त की बात है, ग़ज़ल बी। दिनमान का असर है, देख लीजिये आप। ये छोटे-बड़े टटपूंजिये चढ़ आते हैं स्कूल में, फ़रमाते हैं “डवलपमेंट कमेटी के खर्चों का हिसाब, उनको बताया जाय ?” अरे ज़नाब, यहाँ हम ख़ुद हैं चेयरमैन इस डवलपमेंट कमेटी के। और वे है, कौन ? जो हमारी ओर, उंगली करने की जुर्रत करे ?

[ग़ज़ल बी आश्चर्य से, रशीदा बेग़म का अभिमान भरा चेहरा देखती रह जाती है। तभी, मंच पर अँधेरा छा जाता है।]

(अगले अंक में क्रमशः जारी ….)

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पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi 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रचनाकार: हास्य नाटक - दबिस्तान-ए-सियासत -2 // राक़िब दिनेश चन्द्र पुरोहित
हास्य नाटक - दबिस्तान-ए-सियासत -2 // राक़िब दिनेश चन्द्र पुरोहित
रचनाकार
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