विज्ञान कथा : ट्रेडमिल // अजय ओझा

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ट्रेडमिल अजय ओझा विज्ञान-कथा बा ल्कनी से आ रहे प्रकाश ने आज सेथोन को खुशी के बदले झटका दिया । दिमाग की बत्ती जली, तुरन्त ही बायीं हथेली पर द...

ट्रेडमिल

अजय ओझा

विज्ञान-कथा

बा ल्कनी से आ रहे प्रकाश ने आज सेथोन को खुशी के बदले झटका दिया । दिमाग की बत्ती जली, तुरन्त ही बायीं हथेली पर दायें हाथ की ऊंगली आवश्यकता से कुछ अधिक पुश करके सामने एक वर्च्युअल स्क्रीन को खोला, स्क्रीन पर ”सेथोन कोलींग जेसी...“ देर तक ब्लीन्कींग होता रहा पर सामने से कोई रिस्पोन्स न मिलने पर वर्च्युअल स्क्रीन बंद कर, सेथोन सीधा बाल्कनी की ओर गया !

अंदर के कमरे में ट्रेडमील पर वर्क करते हुए दादाजी ने उसे पुकारा । किन्तु सेथोन ने उनकी आवाज को सुना-अनसुना कर दिया । दादाजी ने ट्रेडमील को रोक दिया । फिर वह अपने टेब्लेट की एक डिजिटल डायरी को खोलकर उसमें लिखने लगे, ”आज तेइसवीं सदी का आखिरी दिन ! वह भी बीत गया ।

जाति-धर्म के भेद भूलने के बाद भी इन्सान चाहे कितनी भी तरक्की कर लें, फिर भी एक जनरेशन की आवाज दूसरी जनरेशन तक पहुँचने में टाईम तो लगता है !“ फिर टेब्लेट बंद कर के वे मन ही मन हँस पड़े।

बाल्कनी में रखी हुई अपनी एयरबाईक को चालू करने के लिए सेथोन ने पासवर्ड डाला, लेकिन ”डम्प“ आवाज के साथ एरर मेसेज आया । वह समझ गया और बड़े इत्मीनान से दादाजी से कहने लगा, ”दादु, आपने फिर मेरा पासवर्ड हॅक कर दिया क्या ? बट नेवर माइन्ड दादु, मैंने अपनी एयरबाइक में ए ओप्शनल बायोमेट्रिक्स डिवाइस लगा रखी है, अब देखना, मेरे एक फिंगर टच से ही यह चालू हो जायेगी।“

हँसते हुए दादाजी बाहर आये, इसे कहते हैं मुर्गे से ज्यादा अंडा होशियार! चल सेथोन, मुझे भी अपने इस ऊड़नखटोले पर बिठाकर थोड़ी सेर करा दे! मेरे दोनों फेफड़े ट्रान्सप्लान्ट करने के बाद डॉक्टर ने बाहर खुली हवा में घूमने की हिदायत दी है!

”ओह.. दादु, नेक्स्ट इयर आपके दोनों पैर ट्रान्सप्लान्ट करवाने हैं तब भी क्या आप मुझे अपने साथ वॉकींग में चलने को तो नहीं कहेंगे न ! टू बी फ्रेन्क दादू.. इटस सो बोरींग. .हां, एनी वे, चलिए फुर्ति से बैठ जाइए मेरे उड़नखटोले पर“ कुछ बिगड़ा-सा मुँह करते हुए सेथोन बोला ।

दोनों ने एयर बाईक पर बैठ गए। तुरन्त ही बाल्कनी से ही टेक ऑफ कर के एयर बाईक हवा में उडने लगी ।

आसपास हरियाली को देखते हुए दादाजी मन ही मन खुश हो रहे थे । ऊँची ऊँची ईमारतों में, बाल्कनीओं में, छतों पर, चारों ओर पेड़, पौधे और बाग-बगीचे अति आकर्षक लग रहे थे ।

तेईंसवीं सदी में रह रहें लोगों को ईको-फ्रेन्डली जीवन शैली की आदत पड़ चुकी थी । पूरा विश्व नीट एन्ड क्लीन दिखाई दे रहा था।

दादाजी ने अपने टेब्लेट की डायरी में तत्काल ही अपने विचार नोट कर लिये, ”जब तक जान पे ना बन आये तब तक पर्यावरण के प्रति बेपरवाह ही रहता है ईन्सान। जब अपने ही जीवन पर खतरा मंडराता है तब लोग बड़े ही ज्ञानी होकर पर्यावरण का जी-जान से खयाल करने लगते हैं! सब उपरवाले का कमाल है। इन्सान चाहे तो क्या नहीं कर सकता?“

”बाय ध वे, सेथु, सुबह सुबह तू इतनी जल्दी में कहाँ जा रहा है भाई?“ ब्रान्ड न्यू फेफड़ों में तरोताजा हवा समेटते हुए दादाजी ने कहा।

”मैं? अम्म्म... वह जैसी है न... उसका आज बर्थ डे है। मैं विश करना ही भूल गया। मेरी वर्च्युअल स्क्रीन पर बात करने का अनुरोध टाल दिया, शायद बहुत नाराज है मुझसे। अतः मैंने सोचा उसके रूबरू ही हो आऊँ। बट दादू. . नो मोर क्वेश्चन, ओके? वरना नेक्स्ट टाईम आपको बाहर सैर कराने के बदले घर में ही ताजी हवाओं के पेकेटस ला दूँगा।“ सेथोन कुछ अपसेट दिख रहा था। उसके चेहरे पर जेसी को मनाने की परेशानी अपना रंग दिखा रही थी। ये देखकर दादाजी हौले से मुसकाये पर कुछ बोले नहीं, हाँ केवल अपनी डिजीटल डायरी में लिखा, ”तेईंसवीं सदी में भी औरतों का डर और रुतबा उतना ही है जितना कि ईक्कीसवीं सदी में हुआ करता था।“

बीप... बीप... बाईक से आवाज आई तो सेथोन की परेशानी और बढ़ी, ”दादू, बॅटरी लोॉ हुई, अब तो इसे नीचे रास्ते पर ही चलाना होगा जिससे कि पहिये के घर्षण से बॅटरी रिचार्ज भी हो सके।“

”ओके बेटा।“ दादाजी ने कहा और एयर बाईक नीचे रस्ते पे आकर चार्जिंग मोड में दौड़ने लगी। कुछ देर बाद दादाजी ने पूछा, ”वैसे जेसी ने आज कितने साल पूरे किये होंगे? आज उसकी कौन-सी सालगिरह है?“

”अरे! हा दादू, यह तो मैं उसे पूछ ही नहीं पाया हूँ।

काफी साथ रहा है हमारा, बहुत साथ घूमे-फिरे हैं, किन्तु उसकी उम्र के विषय में पूछे भी तो कैसे ? समझ में ही न आया कभी मुझे! मुझे शायद पूछने का सही तरीका नहीं मिला“ सेथोन असमंजस में बोला।

”उसमें क्या था? कौन-सी बड़ी बात थी? अब देख, पिछले महीने तुमने और तुम्हारे दोस्तों ने मेरा तीन सौ अस्सीवाँ जन्मदिन मनाया था कि नहीं?“

”हां, लेकिन आपको देख के किसी को आपकी उम्र का अंदाजा ही नहीं आता। उस जनरेशन के एक मात्र आप ही बड़े भाग्यशाली बुजुर्ग होंगे कि जिनको इस सदी की क्रांतिकारी ”लाईफवेक्सिन“ का लाभ मिला हो। इसी वेक्सिन के कारण आज के बडे बुजुर्ग इतने बूढ़े दिखते भी नहीं हैं, फिर भी पाँच सौ-सात सौ साल तो आराम से जी लेंगे। इस वेक्सिन से सदियों तक जीना अब तो ही तय हुआ समझो।“

”अरे भाई, तुम लोगों के इस पांच सौ-सात सौ साल से तो अच्छे ही थे वह हमारे सौ साल!“ दादाजी न सिर्फ बोले बल्कि उन्होंने यह वाक्य अपनी डायरी में भी नोट कर लिया।

”काफी घिसा पिटा-सा हो चुका है ये आपका डायलोग दादू, अगर ऐसा ही था तो फिर वेक्सिन लेने सब से पहले क्यों पहुँच गये थे? और लास्ट इयर किस लिए स्टमक में लीवर और कीडनी का ट्रान्सप्लान्टेशन करवा लिया? वह तो भला हो इस ट्रान्सप्लान्टेशन की नई टॅकनोलोजी का, जिससे कि लोगों को नये-नये अंग मिलना संभव हुआ है। वस्त्रों और जूतों की तरह प्रतिदिन नये नये अंग बदले जा सकते हैं अब तो!“

सेथोन ने मजाकिया स्वर में टिप्पणी की।

”हां, लेकिन वेक्सिन के परीक्षण के लिए किसी न किसीको तो तैयार होना ही था न? जब कोई तैयार नहीं था, तब ये मत भूलो कि इस लाईफवेक्सिन के प्रयोग के लिए मैंने ही तो अपना जीवन दाव पे लगाया था!“ दादाजी बडे गर्व के साथ बोले।

”यस्स.... बिलकुल। उसी बात पे तो सारी दुनिया को आप पर प्राउड है दादू।“ कहते हुए सेथोन ने बाईक रोक दी, ”जेसी का घर आ गया। आप यही पर मेरा वेट कीजिए दादू, आई एम जस्ट कमींग बेक।“

”ओके, नोॉप्रोब्लेम“ कहते दादाजी ने सेथोन की ओर अपना थम्स अप किया, और सेथोन एक ईमारत में प्रवेश कर गया।

सेथोन को लौटने में अनुमान से भी कम समय लगा।

कुछ ही देर में जल्दी से वह लौट आया। उसका चेहरा उतरा हुआ था। दादाजी को बड़ा आश्चर्य हुआ।

फुल्ली चार्ज्ड एयरबाईक को अब सेथोन ने फिर से हवा में गति दे दी ।

”क्या हुआ ?“ दादाजी से रहा न गया ।

”कुछ नहीं. ईट्स वेरी शॉकींग दादू, वह अपना बर्थ डे निराकारवादी लोगों के साथ मना रही थी !“ सेथोन काफी गुस्से में था।

”मतलब?“ दादाजी चिंतित होकर बोले।

”जेसी के साथ रिलेशन्स बढ़ाये नहीं जा सकते दादू, आपके जमाने की भाषा में कहूँ तो वह चुस्त विधर्मी निकली, सर से पैर तक!“ सेथोन बोला।

”विधर्मी? कैसे? तू तो कहता था कि तुम लोग कफी समय तक साथ साथ घूमे हो?“

”हाँ, लेकिन वह तो सारी वर्च्युअल राईड्स के जरिए किये हुए वर्च्युअल ट्रावेलींग ही थे, ईनफेक्ट सच कहूँ तो आज ही मैंने उसे आमने-सामने देखा और ये सच्चाई सामने आई।“

दादाजी कुछ गिन्नाये, ”लो बोलो, देख लिये तुम्हारे ये वर्च्युअल अफेर्स! बिलकुल ऐसे टाँय टाँय फिस्स्स? भला तुझे उसके धर्म से क्या लेना-देना?“

”वह आपकी समझ से बाहर है दादू, मैं साकारपंथ में विश्वास रखता हूँ और वह निराकार में। दोनों धारणाएँ अलग, दोनों की सोच अलग। उसकी रसम अलग मेरे रिवाज अलग। मैं जमीन की पूजा करता हूँ, वह आसमान की। वह हवा को पवित्र समझती है, और मैं पानी को। आपके समय में ऐसा कुछ नहीं था, इस लिए ये सारी बातें आपकी समझ से बाहर की है, दादू“ सेथोन ने पूरी बात को हो सके उतने सही ढंग से स्पष्ट करते हुए दादाजी से कहा।

”समझ से बाहर ? मेरी समझ से बाहर है ये सब?“

दादाजी आगबबूला हो ऊठे, ”अरे! इसी ना-समझी के कडुवे परिणाम हम लोग भुगत चुके हैं, सेथोन। कई पीढ़ियों के कई साल बरबाद हो गये इस धर्म को समझने में। दूसरों के धर्म को हलका समझना ही सब से बड़ा अधर्म है इस बात को समझने में कितनी जनरेशन डूब गईं, पता भी है तुम्हें? आखिर सारे जाति-धर्मो के भेद को मिटाकर सब एक हुए, तभी तुम लोगों ने अब यह कौन-सा जीन जगाया? इतने सालों की मेहनत से जिस आतंक से पिछा छुड़ाया है उसी आतंक के साँप को आप लोगों ने फिर से दूध पिलाना शुरु कर दिया क्या? ढेरों शहादतों के पश्चात मिली स्वच्छ समाज को तुम इस तरह ”साकार-निराकार“ की विकृत ज्वाला में स्वाहा करने जा रहे हो.. सेथोन?“

”दादू..दादू, आप समझ रहे उतनी सरल यह बात नहीं है। जैसे एक जीव दूसरे जीव की खुराक होती है, वैसे ही एक समुदाय दूसरे समुदाय को खतम करने पर तुला होता है“ सेथोन ने कहा।

उसी समय सेथोन की बाईक पर लगी एक स्क्रीन पर ओडियो मेसेज आता है, ”उन लोगों ने हमारे समुदाय की एक स्टेमसेल बैंक और एक जहाज को बीच समंदर ही उड़ा दिया है। हमारे चार सौ से ज्यादा लोग मारे गये हैं।“

ये सुनकर ही सेथोन गुस्से में दहाड़ता है, ”कि दोज ब्लास्टर्ड्ज, लेट देय नो, कि हमारे साथ दुश्मनी कितनी महँगी होती है।“

”सेथोन... सेथोन...? ये तू क्या कह रहा है ?“

दादाजी परेशान हुए। वे उसे रोकने की कोशिश करने लगे।

”अब आप तो चुप ही रहिए दादू, हमारे लोग मर रहे हो तब हम हाथ पे हाथ धरे कैसे बैठे रह सकते हैं? हम लोगों ने भी तय कर लिया है कि आकाश के उत्सव में जा रहे उन लोगों के हवाई जहाज को आकाश में ही ऊड़ा देंगे।“

”ऐसा तूने कहाँ से सीखा? ये बातें तेरे दिमाग में किसने भर दी?“ दादाजी को दिमागी सदमे का एहसास होने लगा। उन्होंने टेब्लेट हाथ में लिया, पर कुछ लिख ही न पाये।

सेथोन ने जवाब नहीं दिया तो दादाजी फिर से बोले, ”तेरी समझ में बहुत बड़ी खोट है, सेथोन। शायद तेरे डी.एन.ए. में किसी ने वायरस का भूसा भर दिया है? या फिर किसी ने ट्रान्सप्लान्टेशन की मदद से तेरे डी.एन.ए. ही बदल दिये हैं?

जो कुछ भी हो, इसमें जेसी का क्या दोष? मैं तुम्हें इस तरह जेसी को अन्याय करने नहीं दे सकता।“

घर आते ही एयरबाईक बाल्कनी में ठहरी। दादाजी नीचे उतरे, सेथोन बोला, ”इस मामले में आप कुछ भी नहीं जानते दादू, आप नहीं समझ सकते। अगर जेसी की ही बात है तो उसके लिये फिर कभी जरुर सोचेंगे।“ फिर रुककर जरा अलग अंदाज में बोला, ”आफ्टर ओल, इस लाईफवेक्सिन ने तो जनरेशन गॅप और बड़ा कर दिया है न!“

दादाजी सकपकाये, ”जनरेशन गैप नहीं सेथु, पर इसे कहते हैं कि इतिहास को विस्मृत करने वाले के लिए इतिहास अपने आपको फिर से दोहराता है। अब भी अगर नहीं समझे तो हालात बिगड़ना निश्चित है। फिर, इस उन्नति और प्रगति के जिस मुकाम पर हम पहुँचे हैं, उसका कोई मतलब नहीं रहेगा । और तब तो हमारे बीच फैले सदियों के इस जनरेशन गैप का भी कोई मतलब नहीं रहता!“

”मैं ये सब आपको नहीं समझा सकता दादू। मेरा यह ग्रुप इस वक्त ऐसी ही किसी लड़ाई में शामिल होने जा रहा है।

मेरा धर्म खतरे में हो तो मैं शान्ति से कैसे बैठ सकता हूँ? मैं भी अपने समुदाय के संघर्ष में शामिल होने जाता हूँ“ कहकर दादाजी की बात को सुना-अनसुना करते हुए सेथोन ने अपनी बाईक को दूसरी ओर घुमाकर हवा में गति दे दी। और वह दूर निकल गया।

दादाजी की आँखों के सामने अँधेरा छा गया। घर में आकर न्युज देखने के लिए उन्होंने वर्च्युअल स्क्रीन ऑन कर दी। स्क्रीन पर अलग अलग समुदाय और धर्म के लोगों के बीच चल रहे युद्ध के समाचार प्रसारित हो रहे थे। लोगों के स्टेमसेल्स को संजोकर रखने वाले बैंकों का भी सर्वनाश हो रहा था। एक प्रकार के डी.एन.ए. वाले दल दूसरे अलग प्रकार के डी.एन.ए. वाले दल से भीषण संघर्ष में उतरा था। धरतीमैया के पूजक लोगों की आकाश देव के समर्थकों के सामने भारी जंग छिड़ गई थी। जल देवता का पूजक समुदाय हवापंथी समुदाय के लोगो को मार रहे थे। निराकारवादी समर्थक साकारवादी समर्थको से भिड़ रहे थे। चारों ओर भीषण कत्ले-आम चल रहा था।

..एक संप्रदाय दूसरे संप्रदाय के विरुद्ध कब, कैसे और क्यों आतंकवाद पर उतर आया है.. किसी को पता ही नहीं था। परेशान होकर उन्होंने स्क्रीन ऑफ कर दी ।

ट्रेडमील पर जा के दादाजी ने अपने टेब्लेट की डिजीटल डायरी में लिखना शुरु किया, ”जगत में लाईफवेक्सिन की खोज हो सकती है लेकिन उसकी वजह से लंबे हो रहे जीवन के सुधार के लिए कोई खोज नहीं होती, वेक्सिन केवल जनरेशन गॅप को ही बढ़ा सकती है! समय बीतता है, जमाना आगे बढ़ता है, डेवलपमेन्ट दिखता है, सब कुछ ट्रान्सप्लान्ट हो सकता है, लेकिन इतनी प्रगति के पश्चात भी ईन्सान की मूल प्रकृति में कोई परिवर्तन नहीं आता। शायद हजारों साल बाद भी लोग इसी तरह किसी न किसी बहाने अपना अपना समुदाय बनाकर एकदूसरे को मात देने में ही व्यस्त दिखें तो इस बात से भी मुझे कतई आश्चर्य नहीं होगा!

..क्योंकि वक्त भी इस ट्रेडमील की तरह ही तो होता है... यह बीत रहा होता है अवश्य, लेकिन दूरी कभी कम नहीं करता और ना ही कभी मंजिल पर पहुँच पाता है!“

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ई मेल : ajayoza103@gmail.com

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रचनाकार: विज्ञान कथा : ट्रेडमिल // अजय ओझा
विज्ञान कथा : ट्रेडमिल // अजय ओझा
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