प्रेमचंद के लेखन के विविध आयाम - डॉ. रानू मुखर्जी

SHARE:

प्रेमचंद के लेखन के विविध आयाम - डॉ . रानू मुखर्जी हिन्दी के कथाक्षेत्र में प्रेमचंद का आगमन उस समय हुआ जब वह शैशवावस्था में था। उन्ह...

प्रेमचंद के लेखन के विविध आयाम - डॉ. रानू मुखर्जी

हिन्दी के कथाक्षेत्र में प्रेमचंद का आगमन उस समय हुआ जब वह शैशवावस्था में था। उन्होंने अपनी प्रतिभा, व्यापक अनुभव, पैनी दृष्टि एवं सरल स्वाभाविक शैली के द्वारा कथा – साहित्य को अत्यन्त उच्च कोटी तक पहुंचाया कि वह अपने समय के सर्वश्रेष्ठ कथाकार स्वीकृत हुए। ३१ जुलाई के १८८० में उनका जन्म एक साधारण परिवार में हुआ।

कम उम्र में ही परिवार का भरण पोषण का भार उनको उठाना पड़ा। अध्यापक की नौकरी के सिलसिले में उनको बनारस, गोरखपुर, बस्ती, कानपुर जैसे स्थानों पर रहते हुए भारतीय ग्रामों की दुर्दशा एवं कृषकों के दीन-हीन असहाय दशा से परिचित होने का अवसर मिला जिसका प्रत्यक्ष प्रभाव हमें गोदान जैसे महान उपन्यास में और अनेक कथाओं में मिलता है। उनका वास्तविक नाम धनपत राय था, नवाब राय नाम से उर्दू में लिखते थे और हिन्दी में प्रेमचंद के नाम से लिखने लगे, जो उनका स्थायी नाम हो गया।

प्रेमचंद का साहित्यिक जीवन १९०१ से आरंभ होता है और मृत्युपर्यंत चलता रहा। रोग शय्या में पडे पड़े भी वो लिखते रहते थे। मना करने पर कहते थे “ मैं मजदूर हूँ और मजदूर को काम किए बिना खाना खाने का अधिकार नहीं है। उन्होंने तीन सौ से अधिक कहानियां और एक दर्जन से अधिक उपन्यास , उनकी सभी कहानियां “मानसरोवर” में संग्रहित है।

उनकी कहानियां सामाजिक, राजनीतिक, ऐतिहासिक और व्यक्तिगत स्तरों की है। उनकी कहानियां अधिकतर वस्तु प्रधान या घटना प्रधान होती है, जिनमें विकास के कई मोड दिखाए गए हैं। जिससे उनकी कहानियां काफी लंबी हो गई है। उदाहरण के लिए ‘ममता’, ‘पंच परमेश्वर’, ‘बड़े घर की बेटी, ‘ रानी सारंजा’, “मर्यादा की बेदी” जैसी कहानियों में लंबी घटनाएं देखी जा सकती हैं तो आखिरी दिनों में रचित “माता का हृदय”, “शतरंज के खिलाडी”, “बूढी काकी”, “बलिदान”, “मुक्ति का मार्ग” जैसी कहानियों में कथानक अपेक्षाकृत छोटे हैं। अपनी आरंभिक कहानियों में प्रेमचंद आदर्शवादी है, परंतु आगे चलकर आदर्शोन्मुख यथार्थवादी से दिखते हैं।

सामाजिक – पारिवारिक समस्याओं ने उनको लिखने की प्रेरणा दी। सामाजिक कुरीतियों, अंधविश्वासों, रुढियों, परंपराओं को उठाकर उनको सुधारने की तीव्र इच्छा भी प्रकट की गई। समस्याओं को उठाने पर भी वे सामान्य जीवनधारा से जुड़े रहे, यही उनकी लोकप्रियता का कारण है। वे दलितों, पीड़ितों, अभावग्रस्तों के जबरदस्त वकील थे। किसान मजदूरों के प्रति उनकी हार्दिक सहानुभूति थी। अतः उन्होंने दीन-दुखी, दुःखी मानवता के अधिकारों के लिए आवाज उठाई, दांपत्य जीवन, जाति, धर्म-संप्रदाय संयुक्त परिवार का मध्यम वर्ग और निम्नवर्ग के परिवारों में दिखाई देनेवाला तनाव, पति-पत्नी में पारस्परिक संदेह, विलासिता, झूठी प्रतिष्ठा का मोह इत्यादि उनकी कहानियों में प्रतिबिंबित हो उठे हैं।

सामाजिक बहिष्कार, के शिकार निम्नजाति की पीड़ित जनता को आधार बनाकर उन्होंने “ठाकुर का कुँआ” कहानी लिखी है। प्रेमचंद का अनुभव इतना विस्तृत है कि कोई उनकी नजरों से बच नहीं सकता। उनके कई स्त्री-पुरुष पात्र ऐसे हैं जो सज्जनता सहृदयता, सच्चरित्रता के आदर्शों से ओत-प्रोत है। “मुक्तिधन” कहानी के दाऊदयाल “ममता” कहानी के गिरधारी, “नमक का दारोगा” के मुंशी बंशीधर आदि पात्र सज्जनता, न्याय प्रियता के प्रतीक है। भयानक जाड़े से बचाने हेतु अपने कुत्ते को अपने अंक में लेकर सोता हल्कू, अपने बंदर के लिए प्राणों को उत्सर्ग करनेवाला मदारी जीवनदास, अपने बैल को पुत्रवत पालनेवाला मोहन ग्राम्य-जीवन के सहृदयता के प्रतीक है। “सौंत की रजिया”, “क्रिकेट मैच की हेलन”, “बड़े घर की बेटी, “रानी सारंधा” की सारंधा और “मर्यादा की बेदी” की प्रभा आदर्श नारियां हैं।

प्रेमचंद की यह मान्यता है कि मनुष्य को छोटी से छोटी परिस्थितियां सुधार सकती हैं। “बूढ़ी काकी” में बूढ़ी विधवा अपनी सारी संपत्ति भतीजे बुद्धिराम को लिख देती है। पर बदले में उसे भतीजों और उसकी पत्नी रुपा की प्रताड़ना मिलती है। धर में सुखराम के तिलक पर दावत होती है, पर बूढ़ी काकी को कोई खाना नहीं देता है। पर छोटी बच्ची लाड़ली से रहा नहीं जाता। वह पुरी लाकर देती है। उससे बूढ़ी काकी को तृप्ति नहीं मिलती है तो वह झूठे पत्तल चाटने लगती है। रुपा से रहा नहीं जाता है। उसके आदर्श खुलकर सामने आता है। वह उदार एवं सहृदय बनकर बूढ़ी काकी को तृप्ति भर खाना खिलाती है।

ग्राम्य वातावरण में आत्मीयता एवं सुख शांति की महक “होली की छुट्टी” में है, तो “पंच परमेश्वर” में भारतीय न्याय व्यवस्था पर अटूट विश्वास दर्शाया गया है। “मंदिर और मस्जिद” में साम्प्रदायिक सदभावों को उजागर किया गया है।

प्रेमचंद ने राजपूत-जाति पर कलंक के रुप में भीरु राजेन्द्रसिंह के चरित्र को उभारा है “स्वांग” कहानी में जिसमें डाकुओं के द्वारा पत्नी के अपहरण पर राजेन्द्रसिंह आंख बंद कर सोने का बहाना करता है। मुगल कालीन भोग-विलास एवं शान-शौकत से उत्पन्न पतन को दर्शाते हुए समाज को सावधान भी किया है। इसका उत्कृष्ट उदाहरण है “शतरंज के खिलाडी” मध्यम वर्ग एवं निम्नमध्यमवर्ग के परिवारों को कहानी का आधार बनाकर प्रेमचंद ने संयुक्त परिवार के खोखलेपन को उजागर किया है और दिखाया है संयुक्त परिवार मात्र मर्यादा के नाम पर टिके हुए है। वहां प्रेम-सौहार्द का अभाव है।

“कफन” कहानी के माध्यम से प्रेमचंद ने यह प्रस्तुत किया है कि मानव अर्थ – पिशाच है, अर्थ के अभाव में भूखा प्यासा मानव पशु – तुल्य आचरण करने लगता है। भूख प्यास और अभाव उसे मानव से राक्षस बना डालता है। “कफन” के पात्र धीसू और बंटा माधव इस प्रतीक्षा में है कि प्रसव-पीड़ा से कराहती बुधिया मर जाए तो आराम जो सोए। सबेरे उठकर देखते हैं तो बुधिया मरी पड़ी है अब उन्हें कफन और लकड़ी की चिंता सताने लगी। दोनों जमीनदार के पास जाकर दुखड़ा रोकर रुपये प्राप्त करते हैं। गांव के बनिए आदि से जमा करके पांच रुपये हो गए। दोनों कफन लेने बाजार में गए। दोनों आपस में बात करते हैं – “कैसा बुरा रिवाज है कि जिसे जीते जी तन ढंकने को चिथड़ा भी न मिले, मरने पर कफन चाहिए। कफन लाश के साथ जल ही तो जाता है।” दोनों शराब खाने में घूस जाते हैं। शराब पीने लगते है। न जवाबदेही का खौफ था न बदनामी की फिक्र । इन भावनाओं को उन्होंने बहुत पहले ही जीत लिया था। दोनों मस्ती में गाने लगे लोगों की दृष्टि उन दोनों पर थी। ‘कफन’ यथार्थवादी कहानी है और मानव – मनोविज्ञान पर सटीक बैठती है।

प्रेमचंद की कहानियों में भारत की आत्मा बोलती है। वे भारत के नंगे – भूखे, बेबस एवं उत्पीड़ित ग्रामीणों को स्वर प्रदान करते रहे और उनकी समस्याओं को उजागर करते रहे।

प्रेमचंद की कहानी की सफलता की महत्ता इस बात में है कि उनमें आम जनता की भाषा उनकी समस्यायें उनका जीवन आम जनता की भाषा में ही अभिव्यक्त हुई है। उन्होंने बोल-चाल की हिन्दी में अपनी रचनाएं प्रस्तुत की , जिससे उनके पाठकवर्ग का पर्याप्त विस्तार हुआ।

भारतेन्दु हरिशचन्द्र के बाद हिन्दी में प्रेमचंद एक ऐसे साहित्यकार हैं, जिन्होंने राजनीति से साहित्य को संबंध ही स्थापित नहीं किया, राजनीति को जीवन का हिस्सा बनाया। १९०८ में “सोजेवतन” उर्दू कहानी संग्रह के प्रकाशन पर उनकी भूमिका उन्होंने लिखा कि नई पीढ़ी के जिगर पर देशप्रेम की असमत का नशा जमना आवश्यक है। इस पर अंग्रेज – कलेक्टर ने उनको बुलाकर “राजद्रोहात्मक” कहानियों के कारण धमकाया और सारी पुस्तकें नष्ट कर दी। ‘हंस’ और ‘जागरण’ पत्रिकाओं को अनेकबार बंद करने का आदेश दिया गया।

प्रेमचंद ने साहित्य और राजनीति के संबंधों को एक नया मोड़ दिया। उन्होंने कहा, “जब तक साहित्य की तरक्की नहीं होगी, समाज और राजनीति भी ज्यों के त्यों पडे रहेंगे। साहित्य, समाज और राजनीति के संबंध अटूट है और तीनों इनसान के कल्याण के लिए हैं। प्रेमचंद ने यद्यपि अपने साहित्य में समाज, धर्म, अर्थ, संस्कृति, इतिहास, शहर और गांव आदि अनेक विषयों पर अपनी कलम चलाई है पर सभी का मूल है विदेशी दास्तां से मुक्ति और स्वराज की स्थापना।

प्रेमचंद का स्पष्ट कथन है कि आनेवाला जमाना “किसानों और मजदूरों” का है और उनकी स्वतंत्रता के बिना स्वाधीनता का कोई मतलब नहीं है। प्रेमचंद मानते है कि यह युग स्वराज्य का युग है, जनता एकाधिपत्य को नहीं सहन कर सकती, चाहे वह स्वदेशी ही क्यों न हो। वे अंग्रेजों की भेद नीति से क्षुब्ध हैं, क्योंकि वे हिन्दू-मुसलमान, छूत-अछूत, को लडाकर और सिख-इसाईयों को भी अलग-अलग करके देश की एकता तथा स्वराज्य आन्दोलन को तोड़ना चाहते हैं। प्रेमचंद जनता की राजनैतिक जागृति को अनिवार्य मानते हैं।

प्रेमचंद के उपन्यासों और कहानियों में उनका यह राजनीति-दर्शन इसी विपुलता और प्रबलता से अभिव्यक्त हुआ है। देशप्रेम की कहानियों के संग्रह “सोजेवतन” पर अंग्रेजों के सेंसरशिप के कारण उन्होंने अपना नाम बदलकर प्रेमचंद रखा और कुछ समय तक देशप्रेम की कहानियों के स्थान पर सामाजिक जीवन की समस्याओं पर कहानियां- उपन्यास लिखे। उनके लिए सामाजिक जागृति भी स्वराज प्राप्ति का ही एक अंग थी। उनके विशिष्ट सामाजिक कहानियों में “बडे घर की बेटी” (१९९०), “नमक का दारोगा”(१९१३), “खून सफेद” (१९१४), “अनाथ लड़की” (१९१४), “पंच परमेश्वर” (१९१६), “सेवा मार्ग”(१९१९), “बूढी काकी”(१९२१) आदि। इस काल में कुछ ऐतिहासिक कहानियां भी लिखीं। जिनके द्वारा उन्होने इतिहास के उन अध्यायों को चित्रित किया जो पाठकों के मन में पुरातन के प्रति गौरव तथा वर्तमान के लिए कुछ करने की प्रेरणा दे सकें। इन कहानियों में “रानी सारंधा” , “विक्रमादित्य का घोड़ा”, “राजा हरपाल”, “राजहठ”, “मर्यादा की बेदी”, “पाप का अग्निकुंड” उल्लेखनीय है।

“लाल-फीता” (१९२१) तथा “प्रेमाश्रम”(१९२२) उपन्यास से उनके राजनीति के दर्शन का एक नया युग शुरु होता है। “प्रेमाश्रम” से “रंगभूमि” उपन्यास तक प्रेमचंद ने “स्वत्व रक्षा” (१९२२), “शतरंज के खिलाडी” (१९२४) आदि कहानियों के द्वारा अंग्रेजी शासन में अपने अधिकार, अस्मिता और प्रतिशोध की क्षमता को बनाए रखने के लिए प्रेरित करते हैं। उनका प्रसिद्ध महाकाव्यात्मक उपन्यास “रंगभूमि” अपने युग की राजनीति का विशद आख्यान है। प्रेमचंद इसे राजनीतिक उपन्यास माना है।

“रंगभूमी” (१९२५) से “कर्मभूमी” (१९३२) तक का समय तीव्र राजनीतिक गतिविधियों का काल है। अतः प्रेमचंद की कहानियों, उपन्यासो में भी इसका गहरा प्रभाव देखा जा सकता है। कहानियों में “हिंसा परमो धर्म”(१९२६), “मंदिर – २”(१९२७), “शुद्धि”(१९२८), “इस्तीफा”(१९२८), “जुलूस”(१९३०) आदि विशिष्ट हैं। उपन्यासों में भी देश की राजनीतिक परिस्थितियों का बड़ा ही वास्तविक चित्रण हुआ है। “कायाकल्प” में उन्होने सांप्रदायिक दंगों तथा उनके कारणों का सच्चा वर्णन किया है और गांधीजी के तरीके से समझौता कराते हैं। “गबन” उपन्यास में प्रेमचंद अँग्रेज़ी सभ्यता के गुलाम युवक की मानसिकता और चारित्रिक दुर्बलता से युगीन राजनीतिक गतिविधियों का वर्णन करते हैं।

“कर्मभूमि” पूर्णतः राजनीतिक उपन्यास है और प्रेमचंद ने इसे अपने युग की राजनीतिक परिस्थितियों, युग के नेताओं, तथा राजनीतिक घटनाओं, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस कलकत्ता में गांधीजी द्वारा प्रस्तुत दस सूत्री कार्यक्रमों के आधार पर उपन्यास की रचना की है। “कर्मभूमि” अपनी प्रबल राजनीतिक चेतना से समाज में जागृति उत्पन्न करके महात्मा गांधी राजनीतिक दर्शन को राष्ट्रीय धरातल पर स्थापित करते है। भारत और स्वाधीनता आन्दोलन को व्यापकता से चिन्हित करनेवाला यह एक महत्वपूर्ण उपन्यास बन जाता है।

प्रेमचंद अपने युग की राजनीति को साहित्य में अवतरित करते हैं। इसे जीवन के अनुभवों से जोड़ते हैं उसे जीवंत और प्रामाणिक बनाते हैं। प्रेमचंद की रचनाओं के अन्तर्गत नैतिक मूल्य संघर्ष में किसी “वाद” के प्रति आग्रह या प्रतिबद्धता दिखाई नहीं देती, बल्कि राष्ट्रीय चरित्र की गहरी समझ, अद्भुत ग्रहणशीलता और गतिशीलता का स्पंदन महसूस होता है। लेखक और विचारक के रुप में प्रेमचंद सही अर्थ में “भारत रत्न” है।

--

परिचय – पत्र

नाम - डॉ. रानू मुखर्जी

जन्म - कलकता

मातृभाषा - बंगला

शिक्षा - एम.ए. (हिंदी), पी.एच.डी.(महाराजा सयाजी राव युनिवर्सिटी,वडोदरा), बी.एड. (भारतीय

शिक्षा परिषद, यु.पी.)

लेखन - हिंदी, बंगला, गुजराती, ओडीया, अँग्रेजी भाषाओं के ज्ञान के कारण आनुवाद कार्य में

संलग्न। स्वरचित कहानी, आलोचना, कविता, लेख आदि हंस (दिल्ली), वागर्थ (कलकता), समकालीन भारतीय साहित्य (दिल्ली), कथाक्रम (दिल्ली), नव भारत (भोपाल), शैली (बिहार), संदर्भ माजरा (जयपुर), शिवानंद वाणी (बनारस), दैनिक जागरण (कानपुर), दक्षिण समाचार (हैदराबाद), नारी अस्मिता (बडौदा), पहचान (दिल्ली), भाषासेतु (अहमदाबाद) आदि प्रतिष्ठित पत्र – पत्रिकाओं में प्रकशित। “गुजरात में हिन्दी साहित्य का इतिहास” के लेखन में सहायक।

प्रकाशन - “मध्यकालीन हिंदी गुजराती साखी साहित्य” (शोध ग्रंथ-1998), “किसे पुकारुँ?”(कहानी

संग्रह – 2000), “मोड पर” (कहानी संग्रह – 2001), “नारी चेतना” (आलोचना – 2001), “अबके बिछ्डे ना मिलै” (कहानी संग्रह – 2004), “किसे पुकारुँ?” (गुजराती भाषा में आनुवाद -2008), “बाहर वाला चेहरा” (कहानी संग्रह-2013), “सुरभी” बांग्ला कहानियों का हिन्दी अनुवाद – प्रकाशित, “स्वप्न दुःस्वप्न” तथा “मेमरी लेन” (चिनु मोदी के गुजराती नाटकों का अनुवाद 2017), “गुजराती लेखिकाओं नी प्रतिनिधि वार्ताओं” का हिन्दी में अनुवाद (शीघ्र प्रकाश्य), “बांग्ला नाटय साहित्य तथा रंगमंच का संक्षिप्त इति.” (शिघ्र प्रकाश्य)।

उपलब्धियाँ - हिंदी साहित्य अकादमी गुजरात द्वारा वर्ष 2000 में शोध ग्रंथ “साखी साहित्य” प्रथम

पुरस्कृत, गुजरात साहित्य परिषद द्वारा 2000 में स्वरचित कहानी “मुखौटा” द्वितीय पुरस्कृत, हिंदी साहित्य अकादमी गुजरात द्वारा वर्ष 2002 में स्वरचित कहानी संग्रह “किसे पुकारुँ?” को कहानी विधा के अंतर्गत प्रथम पुरस्कृत, केन्द्रिय हिंदी निदेशालय द्वारा कहानी संग्रह “किसे पुकारुँ?” को अहिंदी भाषी लेखकों को पुरस्कृत करने की योजना के अंतर्गत माननीय प्रधान मंत्री श्री अटल बिहारी बाजपेयीजी के हाथों प्रधान मंत्री निवास में प्र्शस्ति पत्र, शाल, मोमेंटो तथा पचास हजार रु. प्रदान कर 30-04-2003 को सम्मानित किया। वर्ष 2003 में साहित्य अकादमि गुजरात द्वारा पुस्तक “मोड पर” को कहानी विधा के अंतर्गत द्वितीय पुरस्कृत।

अन्य उपलब्धियाँ - आकशवाणी (अहमदाबाद-वडोदरा) को वार्ताकार। टी.वी. पर साहित्यिक पुस्तकों क परिचय कराना।


संपर्क - डॉ. रानू मुखर्जी

17, जे.एम.के. अपार्ट्मेन्ट,

एच. टी. रोड, सुभानपुरा, वडोदरा – 390023.


Email – ranumukharji@yahoo.co.in.

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: प्रेमचंद के लेखन के विविध आयाम - डॉ. रानू मुखर्जी
प्रेमचंद के लेखन के विविध आयाम - डॉ. रानू मुखर्जी
https://lh3.googleusercontent.com/-hbl-Cx71TIc/Wgqe0b92HfI/AAAAAAAA8m0/DDd3tjYxZLUsQFYSTGexmKzDwdRJ1Q4aQCHMYCw/1%2B004_thumb%255B1%255D?imgmax=200
https://lh3.googleusercontent.com/-hbl-Cx71TIc/Wgqe0b92HfI/AAAAAAAA8m0/DDd3tjYxZLUsQFYSTGexmKzDwdRJ1Q4aQCHMYCw/s72-c/1%2B004_thumb%255B1%255D?imgmax=200
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2018/08/blog-post_4.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2018/08/blog-post_4.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content