दृष्टिकोण - समलैंगिकता : एक नई सोच - हिमांशु जोनवाल

SHARE:

''समलैंगिकता को अपराध न मानते हुए प्राकृतिक माना जाए'' हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने भी इससे सहमति जताई है। सुप्रीम कोर्ट ने म...

111

''समलैंगिकता को अपराध न मानते हुए प्राकृतिक माना जाए'' हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने भी इससे सहमति जताई है। सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि समलैंगिक सम्बन्ध अपनाना कोई अपराध नहीं है, बल्कि यह प्राकृतिक रचना है। प्रकृति द्वारा रची गयी एक मानवीय रचना है जिसका बहिष्कार हम नहीं कर सकते हैं। हम अपने तर्क वितर्क से इसको अपने अनुकूल बनाना चाहते हैं लेकिन मानवीय व्यवहार सभी से समानता का हकदार है। समलैंगिकता वाले मनुष्यों की संख्या अपेक्षाकृत कम है। इनको भी अपने हिसाब से, अपने तरीके से जीने का अधिकार मिलना चाहिए और सामान्य नागरिक के अधिकार प्राप्त होने चाहिए। जब संविधान ने 18 उम्र को बालिग मानकर अपने मुताबिक लाइफ पार्टनर चुनने का अधिकार दिया है तो इनको समान सेक्स के प्रति इतनी बाधाएं क्यों ? ये मानवीय संरचना किसी इंसान के बस की बात नहीं है बल्कि संसार के नियमों के मुताबिक चलता आ रहा चलन है। लेकिन इन्हें आपसी सहमति से बन्धनों में न बन्धने देना या उस पर रोक या पाबन्दी लगा देना उचित नहीं है।

जिस प्रकार सामान्य पुरूष या महिला अपनी कामनाओं पर नियन्त्रण नहीं रख सकते, तो फिर इनको क्यों अपनी पसंद के अनुसार या मनवांछित चुनने का अधिकार नहीं है? लेकिन इसके उलट कई अपवाद देखने को मिल जाएंगे। यदि समलैंगिक सम्बन्ध आपसी सहमति के आधार पर न हो तो समाज को गलत दृष्टिकोण देते हैं, गलत सन्देश देते हैं।

समलैंगिकता दो लोगों के मध्य प्यार और उसके प्रति अपनत्व की भावना व्यक्त करने का एक तरीका है। जिस प्रकार सामान्य मनुष्यों में प्रवृत्ति होती है उसी तरह यह उन्हें भी प्रकृति की ओर से दिया गया लक्षण है। क़ुदरत ने उनकी प्रकृति ही ऐसी बनाई है तो हम कौन है जो उनकी इस प्रवृत्ति को छीन लें।

वर्तमान में हम देख रहे हैं कि जिसको सही परवरिश ना मिली हो, वे गलत रास्तों पर ज्यादा जाते देखे जाते हैं। परवरिश सही भी हो तो भी मार्ग के कई मोड़ उनको नकारात्मकता की तरफ ज्यादा आकर्षित करते है। आप खुद ही देख लीजिए, गलत कामों में ही हमें सुकून मिलता है फिर चाहे उसमें कितना ही समय और पैसा बर्बाद क्यों ना होता रहे।

समाज चाहे भी तो समलैंगिकता वाले स्त्री पुरूषों की प्रवृत्ति को नहीं बदल सकता। अधिकांश में ये प्रवृत्ति जन्मजात है, लेकिन कई बार यह प्रवृत्ति मनुष्य में जन्मजात न होकर परिस्थितियों पर निर्भर होती है। उसे आमतौर पर ये लगने लगता है कि उसे अपने विपरीत लिंगी इंसान से खतरा है जिसे वो भांपकर या डरकर उससे होने वाली समस्या से निजात पाने के लिए कई बार इस मार्ग में अपने आप को सुरक्षित महसूस करती/करता है उदाहरणतः जिस प्रकार एक लड़की ने स्वयं को समाज की आलोचना झेलते हुए कई औरतों को देखा है या फिर उन पर होने वाले अत्याचारों को भी समझकर वे ये फैसला लेती है या उनमें स्वयं ही उस इंसान के प्रति धारणा बन जाती है कि ये उसके लिए सुरक्षित नहीं है। यही प्रवृत्ति कई बार पुरूष जन में भी आम होती है वे अपनी पौरूष क्षमता पर हावी नहीं होना चाहते या बचपन से ही उन्हें किसी महिला या लड़की का व्यवहार अपेक्षाकृत व्याकुल करने वाला लगा हो जिससे उन्हें और परिवार जन को उस व्याकुलता का सामना करना पड़ा हो, जिससे समलैंगिकता उनमें प्रत्यक्ष ही देखने को मिल जाएगी।

जिन्हें सेक्स और उससे मिलने वाली उत्तेजनाओं से वंचित रहना पड़ा हो उनके अन्दर ये प्रवृत्ति प्राकृतिक हो सकती है। जो उम्र के साथ नजर आने लगने लगती है। इसकी ना कोई दवा होती है और ना कोई उपचार। इसका बदलाव स्वयं भी हो सकता है अथवा प्रयास करने से भी, यह मनोवृत्ति पर निर्भर है।

समाज का एक वर्ग समलैंगिकता से परिचित है समलैंगिकता का पहलू उस दर्पण के समान है जो सामने है मगर उस सच्चाई को जानते हुए भी उसे अब तक आसानी से कानून के ड़र से स्वीकार नहीं किया जाता था।

समलिंगियों में सामान्य लोगों से कोई शारीरिक भिन्नता नहीं होती, तथा प्रकृति से वे लोग हम ही में से कुछ एक होते हैं। जो उन्हें इस बात से बार-बार अवगत कराते रहते हैं कि उनमें कोई दोष है। मानवीय प्रकृति ना किसी गुणसूत्र से आती है ना ही किसी के स्पर्श करने से, ये जन्मजात होती है जो उम्र के बढ़ने के साथ-साथ नजर आती है। समाज संस्कृति को आधार बनाकर सच्चाई से पीछे भागता है जबकि जिस आधार से ये बातें पनपती है उसको निराधार कराने में हमारी अहम भूमिका होती है।

लोग समाज के भय से उनको तिरछी नजरों से देखते है या घर से बाहर या दूर भेज देते है लेकिन अब संविधान उन्हें एकता सूत्र में बांध दिया है तो हम कौन होते है उसे तोड़ने वाले।

सकारात्मक पहलूः

समलैंगिकता सेक्स से सबसे बडा सकारात्मक पहलू तो जनंसख्या नियन्त्रण होगा।

अपने अधिकारों की निजता में रहते हुए समलिंगी स्त्री और पुरूष किसी और विपरीत सेक्स के साथ जोरी नहीं करेंगे, देखा जाता है कि परिवार वाले उन्हें ऐसा करने के लिए विवश करते हैं।

अपनी कामुक भावनाओं की पूर्ति अपने समलिंगी स्त्री या पुरूष के साथ कर सकते हैं। इससे किसी तरह का जबरन प्रयास या किसी के प्रति मानहानि की दशा उत्पन्न नहीं होगी।

कई स्त्री और पुरूषों में ये बात अमूमन होती हैं कि वे समलैंगिक के प्रति समान भाव रखते हैं। वे उनकी हर जरूरत को पूरी करते हुए उन्हें समानता का अवसर भी देते हैं। प्रागैतिहासिक समय से ही समलैंगिकता को केवल मान्यता ही नहीं दी गयी बल्कि खजुराहों जैसे मन्दिरों में समलैंगिक संबंधों को कलात्मक रूप उतारा भी गया है। यह समाज की कुरीतियों पर नियंत्रण में सहायक भी है।

लेस्बियन, गे, या समलिंगी सेक्स को प्राथमिकता देने से उनकी सोच को नया आयाम मिलेगा। दोनों का एक दूसरे के प्रति आकर्षण उनके जीवन को नयी ऊर्जा दे सकता है। उन्हें किसी बाध्यता से मुक्त रखा जा सकता है।

अगर कोई स्त्री बच्चा न चाहकर यौन कामना चाहती है तो उसकी इस कामना में उसकी समलिंगी सहयोगी हो सकती है। पुरूष भी इन्हीं तरीके से अपने घर.-परिवार या अपनी सहयोगी से दूर होकर समलिंगी सेक्स कर सकता है। लेकिन वर्तमान समय में कंडोम तथा अन्य गर्भ निरोधक साधनों से अनचाहे गर्भाधान से पूरी तरह सुरक्षा पा ली गयी है। फिर पुरूष या स्त्री किसी भी अपने पार्टनर के साथ सम्बन्ध बना सकते है बिना किसी सहायता के।

विषमलिंगी द्वारा भी अपने साथी की अनुपस्थिति में समलिंगी से यौन करना, विश्वसनीयता को बनाये रखता है। इसके साथ ही अपनी साथी की अनुपस्थिति में रोमांस के लिए भी समलैंगिकता को अपना सकते हैं।

इसके अलावा जो लोग ऐसे संबंध पसंद करते है वे अनाथ बच्चों को गोद लेकर जनंसख्या नियंत्रण में अहम भूमिका निभा सकते हैं। अनाथ बच्चों को गोद लेकर समाज में मानवता का परिचय और युवा पीढ़ी को नयी दिशा दे सकते हैं।

कई बार एलजीबीटी समुदाय को अपने विरूद्ध समस्याओं और यातनाओं का सामना करना पड़ता हैं जिससे उनकी इच्छाएं पूरी तरह शान्त नहीं हो पाती, और वे जबरन यौनाचार का प्रयास कर सकते है, तो इससे अच्छा है कि उनको होमो सेक्सुअल ही रहने दें अपने पथ पर सक्रिय रहने दें, उनके हाथ इस प्रवृत्ति की यातना देकर बांधने से उनकी भविष्य की उन्नति रूक सकती है।

हर व्यक्ति अपने सेक्सुअल पार्टनर को देखकर खुद उसे चुनता है तो समलिंगी को भी इसका अधिकार मिलना उचित है। वो विपरीत लिंग वालों से सन्तुष्ट ना होकर समलिंगी से सन्तुष्ट होते हैं तो इसमें उनकी पूरी सहमति होगी और किसी तरह की जबरदस्ती नहीं होगी।

कुदरत ने इनकी प्रकृति को सामान्य से अलग तो बनाया, लेकिन इनको अकेला नहीं होने दिया, कुछ लोग इनकी प्रवृत्ति से मेल खाते हुए इनको स्वीकार करने वाले भी हैं। ये प्रवृत्ति कुछ जानवरों में भी पायी जाती है जिससे उन्हें अपने साथ या अपनी प्रवृत्ति को तलाशने का मौका मिलता है, तो ये तो मनुष्य ही है इनको भी अपने व्यक्तित्व साबित करने का मौका मिलना ही चाहिए। सिर्फ इसलिए नहीं कि ये समलैंगिक है बल्कि ये उस परिस्थिति में भी सामान्य है, जिससे उनकी मनोकामना शान्त होती हैं ।

शरीर भी उन यौन क्रियाओं को शान्त करता है। कई पुरूष भी आवेश में आकर या अपनी दुश्मनी का बदला किसी रेप या मर्डर में निकालते हैं।

लेकिन वे अपनी उत्तेजना सहमति से किसी समलैंगिक साथी से शान्त करके जबरन रेप जैसे समस्या से निजात पा सकते हैं।

इस सकारात्मक पहलू को देखते हुए उन्हें न्यायालय के इस फैसले से नया जोश मिलेगा और उनको किसी खुले आसमान में सांस लेने का मौका मिलेगा।

उनमें लोगों की कड़ी नजरों से बचने का हक सरकार ने दिया है। जो लोग इसके पक्ष में है वे इस बात का पूरा समर्थन करेंगे कि इनको पूरा हक मिले। साथ ही जो लोग इसके पक्ष में नहीं हैं वे भी इसका विरोध नहीं कर सकेंगे।

न्यायालय ने इस बात पर ध्यान दिया कि इनसे परिचित होने के बाद आम जनता का रवैया इनके प्रति अपमानजनक वाला होता है कोई अपने किसी बच्चे को या स्वयं माता-पिता भी उनके समक्ष उपस्थित नहीं होते। समाज उनको इस प्रवृत्ति के साथ स्वीकार नहीं करता उनको नीची और अनुचित प्रवृत्ति वाले मनुष्य की संज्ञा दे दी जाती है, इसीलिए कोर्ट ने उनके प्रति नरम रूख अपनाते हुए उन्हें अधिकार दिलाया।

यहां तक कि कई शिक्षा के मंदिरों को भी इससे फर्क पड़ता था और वे इससे पल्ला झाड़ लेते थे उनका कहना था कि इनके रहन सहन से असल में कई लोग प्रभावित हो सकते हैं, जो अपने किसी खास को इस संगत से दूर रखना चाहते है।

लेकिन अब यह सिद्ध हो गया है कि ये कोई वायरस नहीं जो फैलता है यह तो मानवीय प्रवृत्ति है या प्रकृति प्रदत्त है जो जन्म से ही होती है अथवा परिस्थिति जन्य होती है।

समलैंगिकता अपनाने से बहुत से धार्मिक संगठन भी इस पर आपत्ति जताते थे। अब कोई समाज इनको अपराध भरी निगाहों से नहीं देखेगा।

एलजीबीटी समुदायों में शादी होने पर चाहते हुए भी वो वंश वृद्धि नहीं कर सकते इसके लिए उनको अनाथ बच्चों को गोद लेना होगा।

एलजीबीटी समुदायों को पहले तिरछी नजरों से देखा जाता था लेकिन उनको भी सुप्रीम कोर्ट ने अधिकार देकर समान नागरिकता की श्रेणी में रखा है।

समाज में इस फैसले की कद्र होगी सरकार ने 377 हटाते हुए कई सीमाएं आज भी बांधे रखी हैं जिसमें जबरन यौन शोषण आज भी अवैध माना जाता है तो इसका बहिष्कार भी खुले आम कर सकते हैं। क्यों कि अन्ततः सम्मान तो सहमति का ही किया गया है।

भारत देश आज भी कई सामाजिक टुकडों में बंटा है जो सरकार के नियमों का उल्लंघन करते हुए अपना सामाजिक वर्चस्व कायम रखना चाहते हैं लेकिन एलजीबीटी समुदाय भी अपने कानूनी अधिकारों का उपयोग करते हुए अपना पक्ष रख सकता है।

नकारात्मक पहलूः

इस फैसले के निश्चित ही कुछ नकारात्मक परिणाम भी हो सकते हैं यदि इसे उचित परिप्रेक्ष्य में न समझा जाए।

समाज में वर्षों तक स्त्री-पुरूष के यौन संबंधों को ही सही माना जाता रहा है और लोग इन्हीं से भली भांति रूबरू है, और उन्हें लगता है कि ऐसे संबंधों से ही अपने समाज को एक अच्छी संतान युक्त उज्ज्वल भविष्य दिया जा सकता है।

न्यायालय के फैसले के बावजूद समाज के कुछ वर्ग इसे अब भी अपराध ही मानते हैं और इसे आज भी गिरी नजर से देखते हैं।

कुछ लोगों की धारणा हैं कि समलैंगिकता में अक्सर वायरस जनित रोगों का खतरा रहता है या फिर इसमें सेक्स खिलौनों के प्रयोग से यौन बीमारियों का खतरे की संभावना बनी रहती है। समलैंगिकता में अधिक सन्तुष्टि के लिए अनाल सेक्स या गुदा मैथुन का सहारा ज्यादा लिया जाता है।

अन्त में यह कहा जा सकता है कि कोर्ट का यह फैसला समाज के हित में ही है और इससे हाशिये के समाज को भी मुख्य धारा में आने का अवसर प्राप्त होगा।

प्रत्येक व्यक्ति का रहन-सहन अलग-अलग होता हैं लेकिन वो दिखने में एक-से हैं। तो हम उनके बारे में धारणा नहीं बना सकते कि वह किस हद का हैं किस जात का हैं या किस समुदाय से है, क्यों कि आधुनिक समाज में यौन संबंध अपनी निजता को बनाये रखकर ही निभाने का संकेत माननीय न्यायालय ने दिया है।

एलजीबीटी के बारे में भी कई लोगों की मानसिकता इस प्रकार की है कि उनकी प्रवृत्ति के कारण उनको समाज से परे किया जाए, लेकिन सच ये है कि वे भी हवा और पानी पर ही निर्भर हैं जैसे हम हैं उनकी कुदरती बनावट हमसे मेल खाती है। वे हमसे दूर नहीं हैं बल्कि हमारी रूग्ण मानसिकता हमें ऐसा करने पर मजबूर करती है।

सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिकों को सामान्य समझकर आत्मविश्वास से सिर उठाकर जीना सिखा दिया जहां कहीं उनमें इस बात को लेकर संकोच होता था कि उनका ये संबंध अनुचित है वहीं अब सहमति से किया गया समलैंगिक संबंध उनमें नयापन तथा उनके रिश्तों में आत्मीयता ला सकेगा।

- हिमांशु जोनवाल

785, बरकत नगर टोंक फाटक,

जयपुर (राज.) 302015

COMMENTS

BLOGGER: 1
रचनाओं पर आपकी बेबाक समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद.

स्पैम टिप्पणियों (वायरस डाउनलोडर युक्त कड़ियों वाले) की रोकथाम हेतु टिप्पणियों का मॉडरेशन लागू है. अतः आपकी टिप्पणियों को यहाँ प्रकट होने में कुछ समय लग सकता है.

नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: दृष्टिकोण - समलैंगिकता : एक नई सोच - हिमांशु जोनवाल
दृष्टिकोण - समलैंगिकता : एक नई सोच - हिमांशु जोनवाल
https://lh3.googleusercontent.com/-jJhYeMl3YDc/W7SvVaHhMcI/AAAAAAABEfs/HpnxuyNzZlwKp-1CAH7_E0Vrq-Bv-KHiQCHMYCw/111_thumb?imgmax=800
https://lh3.googleusercontent.com/-jJhYeMl3YDc/W7SvVaHhMcI/AAAAAAABEfs/HpnxuyNzZlwKp-1CAH7_E0Vrq-Bv-KHiQCHMYCw/s72-c/111_thumb?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2018/10/blog-post_67.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2018/10/blog-post_67.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content