कहानी // एक बेईमान ईमानदारी // अजय अमिताभ सुमन

SHARE:

विजय मित्तल दिल्ली में बहुत बड़े व्यापारी थे। उनका कपड़ों के इंपोर्ट और एक्सपोर्ट का बहुत बड़ा कारोबार था। अक्सर वो देश के बाहर के व्यापारियों...

image

विजय मित्तल दिल्ली में बहुत बड़े व्यापारी थे। उनका कपड़ों के इंपोर्ट और एक्सपोर्ट का बहुत बड़ा कारोबार था। अक्सर वो देश के बाहर के व्यापारियों से संपर्क करके उनसे कपड़ों के एक्सपोर्ट का आर्डर लेते, फिर अपनी फैक्ट्री में कपड़ों को बनवा कर चीन भेज देते। इस काम में मित्तल साहब को बहुत मुनाफा होता था। उनकी इंपोर्ट और एक्सपोर्ट डिपार्टमेंट में बहुत बड़ी पहुंच थी। मित्तल साहब इस बात का बराबर ख्याल रखते कि दिवाली या नए वर्ष के समय एक्सपोर्ट डिपार्टमेंट के सरकारी कर्मचारियों के पास बख्शीश समय पर पहुंच जाए। ये मित्तल साहब की दिलदारी का ही प्रभाव था कि उनके एक कॉल के आते ही सरकारी कर्मचारी उनकी फाइल को आगे बढ़ा देते थे। इस कारण से मित्तल साहब अपने बिजनेस में काफी आगे निकल गए। उनके आगे बढ़ने में कुछ विश्वस्त कर्मचारियों का भी बहुत बड़ा योगदान था। उनका मैनेजर नीरज और क्लर्क प्रकाश उनके प्रति बहुत ही वफादार थे। मित्तल साहब भी अपने मैनेजर धीरज और अपने क्लर्क प्रकाश पर बहुत विश्वास करते थे।

यह बात जगजाहिर है कि जब भी कोई व्यापारी अपने व्यापार में आगे बढ़ना चाहता है कुछ गैर कानूनी तरीकों का इस्तेमाल करना पड़ता है। मित्तल साहब की प्रगति से यह बात तो बिल्कुल साफ थी कि मित्तल साहब भी कुछ गैर कानूनी तौर तरीकों का इस्तेमाल करते थे। इंपोर्ट एक्सपोर्ट डिपार्टमेंट में इस बात का बराबर ध्यान रखा जाता था कि किसी एक व्यापारी की धाक न चले। सरकार की तरफ से इस बात का दिशा निर्देश दिया जाता था कि सारे व्यापारियों को बराबर का मौका मिले। इधर मित्तल साहब अपनी पहुंच का इस्तेमाल अपनी सारी फाइलों को आगे बढ़ाने में बराबर कर रहे थे। जब भी उनकी एक फाइल आगे बढ़ जाती तो अपनी बाकी और फाइलों को अपनी आगे बढ़ी हुई फाइल के साथ लगवा देते। इस तरीके से एक ही बार में बहुत सारा काम करवा लेते।

अपनी इस तरह की क्रिया-पद्धति का इस्तेमाल करते हुए और मित्तल साहब ने अपने बिजनेस को बहुत ज्यादा फैला लिया। इसका नतीजा यह हुआ कि कपड़ों के व्यवसाय में उनके जितने भी प्रतिस्पर्धी थे उनको मित्तल साहब से जलन होने लगी। मित्तल साहब के प्रतिस्पर्धीयों ने एक्सपोर्ट इम्पोर्ट डिपार्टमेंट में कंप्लेंट कर दिया। मित्तल साहब के प्रतिस्पर्धीयों ने यह तर्क दिया कि एक बार में 10-12 फाइलें इकट्ठे आगे कराकर मित्तल साहब गैरकानूनी काम कर रहे हैं। साहब के लिए मुश्किल की घड़ी आ गई। किसी ने मित्तल साहब को बताया कि कोई एक सरकारी नोटिफिकेशन है जिसके हिसाब से यदि कोई संबंधित फाइलें हैं तो उन सारी संबंधित फाइलों को इकट्ठे लगाया जा सकता है। लेकिन मुश्किल बात यह थी कि वह नोटिफिकेशन लगभग 15 साल पहले आई थी।वो कब आई थी इसका पता लगाना मुश्किल था। मित्तल साहब के लिए उस नोटिफिकेशन का मिलना बहुत जरूरी था, लेकिन ये काम था बहुत कठिन। खैर इस काम को किसी भी हाल में होना ही था। मित्तल साहब को धीरज और प्रकाश पर बहुत भरोसा था। उन्होंने अपने इस काम के लिए अपने मैनेजर धीरज और अपने क्लर्क प्रकाश को लगाया। मित्तल साहब ने उन दोनों को काफी हिदायत दी यह बात किसी को भी मालूम नहीं चलनी चाहिए।

ये धीरज और प्रकाश के लिए भी परीक्षा की घड़ी थी। सवाल ये था कि काम की शुरुआत कैसे की जाए? वह नोटिफिकेशन जो कि लगभग 15 साल पहले आया था, उसके बारे में तहकीकात कैसे की जाए? उन दोनों ने दिमाग लगाया। सबसे पहले रिकॉर्ड रूम जाकर जितनी फाइलें सरकारी डिपार्टमेंट में थी , उसकी तहकीकात शुरू करनी चाहिए। धीरज में जाकर रिकॉर्ड रूम के इंचार्ज से उस नोटिफिकेशन के बारे में पूछा। रिकॉर्ड रूम के इंचार्ज ने कहा कि तकरीबन 7 साल पहले की सारी फाइलें और नोटिफिकेशन यहां से हटा दी जाती हैं। रिकॉर्ड रूम के इंचार्ज अहमद ने कहा कि आप जाकर फाइलिंग डिपार्टमेंट में पता कीजिए वहां पर हो सकता है कि आप तो कोई जानकारी मिल सके।

धीरज के पास कोई और उपाय नहीं था। वह फाइलिंग डिपार्टमेंट में गया। वहां जाने पर पता चला कि फाइलिंग डिपार्टमेंट का इंचार्ज अभी तक आया नहीं है। तकरीबन दिन के 11:30 बज गए थे और उस समय भी फाइलिंग डिपार्टमेंट का इंचार्ज नहीं आया था। प्रकाश ने कहा; साहब इस डिपार्टमेंट का हाल भी हमारे ऑफिस के महेश जैसा है। धीरज भी हंसने लगा। उसके ऑफिस में महेश कभी भी 11:00 बजे से पहले नहीं आता था। धीरज ने खिसियाती हुई हंसी में कहा ; भाई महेश जैसे आदमी केवल हमारे ऑफिस में ही नहीं बल्कि हर जगह है। कामचोर लोगों की कोई कमी नहीं है। खैर अब काम आगे कैसे किया जाए?

प्रकाश ने धीरज को सलाह दी कि फाइलिंग डिपार्टमेंट के किसी और क्लर्क से बातचीत की जाए। उन दोनों के पास कोई और उपाय नहीं था। वह दोनों फाइलिंग डिपार्टमेंट में दूसरे क्लर्क के पास गए और अपनी समस्या के बारे में बताया। उस क्लर्क ने कहा कि आप जो भी समस्या लेकर आए हैं उसका समाधान तो फाइलिंग डिपार्टमेंट में नहीं है। आपको लिस्टिंग डिपार्टमेंट में जाना चाहिए।

धीरज और प्रकाश के सामने आशा की किरणें क्षीण होती जा रही थी। वह दोनों लिस्टिंग डिपार्टमेंट में गए। वहां पर जाकर तकरीबन 15 साल पहले आए नोटिफिकेशन के बारे में पूछताछ की। वहां पर उन लोगों को यह ज्ञात हुआ कि रिकॉर्ड डिपार्टमेंट में ही आदिल नाम का बहुत पुराना मुलाजिम रहता है। वह आदिल ही उनकी सहायता कर सकता है।

दोनों वापस फिर रिकॉर्ड रूम में गए। उस रिकॉर्ड रूम में फाइलों के ढेर के पीछे आदिल मिला। आदिल से उन लोगों ने तकरीबन 15 साल पहले नोटिफिकेशन के बारे में पूछा। आदिल ने कहा कि वह यहां पर लगभग 12 साल से है। इस कारण से वह उन फाइलों के बारे में तो नहीं बता सकता है। हाँ इतना तो जरूर बता सकता है कि वह फाइलें लिस्टिंग ब्रांच में ही हो सकती है। आदिल ने बताया कि लिस्टिंग ब्रांच में ही इंटरनेट का नया ब्रांच खुला है। इंटरनेट ब्रांच में जितनी भी बंद हो चुकी फ़ाइलें हैं ,उनका साइबर रिकॉर्ड मौजूद है।

दोनों के सामने आशा की किरणें दिखाई पड़ने लगी। दोनों जाकर लिस्टिंग ब्रांच के साइबर सेल के बारे में तहकीकात करने लगे। साइबर सेल का ब्रांच दूसरी बिल्डिंग में था। प्रकाश को रास्ता पता था। प्रकाश के पीछे पीछे धीरज चलने लगा। वहां पर जाकर गेटकीपर ने बताया कि साइबर सेल तीसरी मंजिल पर है। धीरज जाकर तीसरी मंजिल पर साइबर सेल के बारे में पता किया, वहां पर ज्ञात हुआ कि वह दूसरी मंजिल पर है। धीरज और प्रकाश काफी चिढ़ गए थे। खैर जब दोनों दूसरी मंजिल पर गए और साइबर सेल के बारे में तहकीकात की तो वहां पर एक महिला कर्मचारी मिली। उस महिला ने दुपट्टे नहीं डाल रखे थे। उसके कपड़ों के नीचे से उसका सारा बदन दिख रहा था।उस महिला कर्मचारी ने धीरज और प्रकाश को बताया कि तीसरी मंजिल पर ही पिछले साइड में छोटा सा साइबर सेल खुला है आप वहां जाकर तहकीकात कर सकते हैं। धीरज और प्रकाश को ऐसा लगने लगा था कि शायद उन्हें वह नोटिफिकेशन मिल नहीं पाएगा। उस पर से उस महिला कर्मचारी की निर्लज्जता ने दोनों को और परेशान कर दिया। पता नहीं क्यों इन सरकारी डिपार्टमेंट में कोड ऑफ ड्रेस नहीं हैं। इस तरह तो मर्दों के ध्यान काम पर क्या खाक लगेगा? वो तो इन मैडम लोगों को निहारने में हीं लगे रहेंगे। प्रकाश भी खिन्न हो चुका था। उसने खीजते हुए कहा, हम इतनी कोशिश कर रहें हैं फिर भी कुछ पता नहीं चल पा रहा है। किस तरह का डिपार्टमेंट है ये?किसी को ठीक से पता हीं नहीं है नोटिफिकेशन के बारे में? सारे के सारे लोगों का ध्यान तो बदन दिखाने और बदन निहारने में हीं लगा हुआ है। काम पे ध्यान क्या खाक लगेगा। पता नहीं किसी को नोटिफिकेशन के बारे जानकारी है भी या नहीं ? हताश हुए प्रकाश को ढांढस बढ़ाते हुए धीरज ने कहा, कोई बात नहीं, हमारे हाथ में तो कर्म ही हैं। हम अपनी तरफ से पूरी कोशिश ही कर सकते हैं। इतनी कोशिश कर ली, तो चल के बाहर ऊपर भी देख लेते हैं।

जब धीरज और प्रकाश तीसरी मंजिल की पिछली साइड में गए तो वहाँ दरवाजे बंद मिले। निराशा के बादल दोनों के सामने छाने लगे। दोनों लौट हीं रहे थे कि प्रकाश के जान पहचान का कोई दूसरा क्लर्क मिला ।उसने बताया कि अभी 3 दिन पहले यह डिपार्टमेंट यहां से हटकर छठी मंजिल पर चला गया है। आप दोनों को वहां जाना पड़ेगा।

धीरज और प्रकाश काफी थक गए थे। दोनों ने नीचे आकर गर्म गरम चाय पी फिर छठी मंजिल पर गए। छथि मंजिल पे एक छोटा सा कमरा था और उस कमरे में एक पुरुष और 2 महिला कर्मचारी मिले। धीरज ने उनसे नोटिफिकेशन के बारे में पूछा तो उन लोगों ने बताया आप बिल्कुल ठीक जगह आए हैं ।लेकिन यहाँ पे सारे के सारे रिकॉर्ड हैं कहां? सारी फाइलों को लाइब्रेरी भेज दिया है।

इतनी ज्यादा दौड़ धूप से धीरज और प्रकाश परेशान हो चुके थे। उन्होंने नीचे आकर फिर गरमा गरम चाय पी, समोसा खाया, और पहुंच गए लाइब्रेरी में ।वहाँ पे दोनों नोटिफिकेशन के बारे में पता कर पता करने लगे। जब लाइब्रेरियन से नोटिफिकेशन के बारे में पूछा तो वहां बताया गया कि जितने भी पुराने नोटिफिकेशन है उसका प्रिंट आउट अब यहां से हटा दिया गया है और वो सारे के सारे प्रिंट आउट नई ब्रांच के कंप्यूटर सेल में मिलेंगे।

धीरज और प्रकाश दोनो को गुस्सा आने लगा। पता नहीं ये किसने मित्तल साहब को नोटिफिकेशन के बारे में बता दिया। नोटिफिकेशन तो जैसे सुरसा का मुँह हो गया था। खत्म होने का नाम हीं नहीं ले रहा था। इधर इतनी दौड़ धूप से परेशान प्रकाश ने कहा, अब रहने देते है, कल कोशिश करेंगे। धीरज ने झिड़क कर कहा, नहीं चलो अभी। प्रकाश आराम करने लगा।धीरज ने कहा, इतने दिनों से तुम यहाँ आते जाते हो, कोई जान पहचान भी नहीं है क्या? तिस पर प्रकाश ने कहा रोज का आना जाना तो आपका भी यहाँ लगा रहता है। आप हीं जान पहचान निकाल लो ना।उसपर से आपकी तरह मुझे सैलरी भी तो समय पर नहीं मिलती।दिया तो उतना हीं जलेगा जितना की उसमे तेल पड़ा हो।

आपसी नोक झोंक और ऊपर नीचे करते हुए दोनी काफी थक चुके थे। धीरे-धीरे चलते हुए लाइब्रेरी के सेकंड फ्लोर पर पहुंचे और वहां पर जाकर उन लोगों ने उस नोटिफिकेशन के बारे में पूछताछ की। वहां पर उन्हें बताया गया कि यहां पर तकरीबन 40 साल से पहले की सारी नोटिफिकेशन की डिजिटल कॉपी मौजूद है। उसने धीरज को वहां पर एक कंप्यूटर के सामने बैठा दिया और कहा कि वह इन नोटिफिकेशन की छानबीन कर सकता है।

धीरज के साथ वहां पर प्रकाश भी बैठ गया। पर कंप्यूटर सेल के इंचार्ज ने प्रकाश को वहां पर बैठने से मना कर दिया। उसने कहा कि यहां पर केवल धीरज बैठ सकता है यहां पर क्लर्क नहीं बैठ सकते। धीरज के सामने बहुत बड़ी समस्या थी। उन 40 साल के सारी फाइलों, नोटिफिकेशन में से एक नोटिफिकेशन को निकालना। यानी कि लगभग 600-700 फाइलों में से किसी एक फाइल में पड़े एक नोटिफिकेशन को पढ़ना। यह कैसे हो?

धीरज ने हिम्मत नहीं हारी और उसने अपना दिमाग लगाया। उसे यह बताया गया था कि तकरीबन 15 साल पहले की फाइलों में इस तरह की नोटिफिकेशन आई थी। धीरज 10 साल पहले की फाइलों को पढ़ना शुरू किया। और तकरीबन 3 साल पीछे जाते हीं उसको वह नोटिफिकेशन मिल गया। मेहनत तो काफी करनी पड़ी पर इस बात से दोनों को बहुत खुशी हुई कि उनकी मेहनत सफल हुई।

धीरज ने तुरंत हीं उस नोटिफिकेशन की कॉपी ली और अपने मोबाइल से उसका फोटो खींच लिया। जैसे ही धीरज उस नोटिफिकेशन को अपने व्हाट्सएप से मित्तल साहब के मोबाइल पर भेजना चाहा, प्रकाश ने उसे ऐसा करने से रोक लिया। प्रकाश ने कहा कि यह बात काफी गुप्त है। यदि व्हाट्सएप पर किसी और ने देख लिया तो समस्या खड़ी हो सकती है। धीरज ने प्रकाश की बात मान ली।

प्रकाश ने मित्तल साहब के मोबाइल पर फोन किया तो उस फोन को मित्तल साहब के सेक्रेटरी दीपक ने रिसीव किया। प्रकाश ने दीपक से कहा कि एक बहुत ही जरूरी मैसेज है ,अरोडा साहब को बताना है। दीपक ने पूछा क्या है मैसेज? प्रकाश ने मैसेज बताने से मना कर दिया। प्रकाश को इस समय अपने आप पर काफी अभिमान आ रहा था। दरअसल दीपक साहब का सेक्रेटरी था और इस बात का उसे हमेशा घमंड रहता था कि जितनी भी गुप्त बातें थीं वो उन सारी बातों को वह जानता था। कितनी हीं बार उसने प्रकाश को झिड़क दिया था।। लेकिन इस बार पाशा प्रकाश के हाथ में था। दीपक बार-बार पूछ रहा था प्रकाश से , लेकिन प्रकाश ने कहा जाकर साहब से कहो कि वह नोटिफिकेशन मिल गया है। दीपक को ये बात समझ में नहीं आ रही थी कि आखिर में वह कौन सा नोटिफिकेशन है जिसके बारे में प्रकाश को पता है और उसे पता नहीं है? सेक्रेटरी और क्लर्क के बीच जंग चल रहा था। जंग में हमेशा जीतने का आदि रहा सेक्रेटरी इस अनपेक्षित हार से परेशान और दुखी हो चला। इधर हमेशा पराजित होने वाला क्लर्क जीत के इस मौके को अपने हाथ से जाने नहीं देना चाहता था। अंत में जीत प्रकाश की हुई। दीपक ने प्रकाश की बात को और मित्तल साहब तक पहुंचा दिया।

अब पाशा प्रकाश के हाथों में थी। उसने धीरज से कहा कि आप यह मत बताइएगा कि कंप्यूटर से नोटिफिकेशन को निकाला है । प्रकाश ने धीरज से कहा कि आप यह बता दीजिएगा कि उस नोटिफिकेशन को प्रकाश ने बहुत सारी फाइलों को छानबीन करके पैसा खिला कर निकाला है। दरअसल इस मौके का इस्तेमाल प्रकाश कुछ पैसे कमाने के लिए करना चाह रहा था। धीरज बहुत ही ईमानदार आदमी था। उसने ऐसा करने से मना कर दिया।धीरज ने कहा कि यदि मित्तल साहब पूछेंगे कि फाइलें उसने कैसे निकाली है तो वह इस बात को बता देगा कि कंप्यूटर से निकाली है। यदि यह नहीं पूछा कि किस तरह से नोटिफिकेशन निकाला गया है तो वह अपनी तरफ से बताएगा नहीं।

धीरज ने शक की निगाहों से प्रकाश की तरफ देखा।प्रकाश को धीरज का उड़की शक की निगाहों देखना गवारा न लगा। प्रकाश ने कहा कि मित्तल साहब भी तो उसे हर महीने की सैलरी बराबर समय पर नहीं देते। वह अपनी काम को पूरी ईमानदारी से करता है। ऐसा कोई काम नहीं करता है जिससे मित्तल साहब को नुकसान पहुंचे। फिर भी यदि वह बीमार पड़ता है तो मित्तल साहब उसके पैसे काट लेते हैं। हॉस्पिटल में जाने पर यदि ऑफिस नहीं आता है तो उस दिन की पगार उसे काट ली जाती है। यहां तक कि उसके जितने भी ओवरटाइम के पैसे हैं ,जितने भी बोनस के पैसे हैं उन पैसों को मांगने पर भी एक बार में वह पैसे नहीं मिलते। धीरज बाबू आपको तो पैसे समय पर मिल जाते हैं। आपका तो पैसा छुट्टी लेने पर नहीं कटता। यदि उसकी ईमानदारी के साथ भी बेईमानी की जा रही है तो वह भी वैसी बेईमानी क्यों न करें। वैसे भी उसकी बेईमानी से मित्तल साहब को तो कोई नुकसान नहीं पहुँचता, अलबत्ता उसे फायदा जरूर हो जाता है। धीरज चाह कर भी प्रकाश को यह नहीं बता पाया कि उसके भी बोनस के पैसे समय पर नहीं मिलते।

धीरज ने कहा कि यदि कोई लोमड़ी की तरह व्यवहार कर रहा है तो इसका मतलब यह तो नहीं कि तुम भी लोमड़ी की तरह ही व्यवहार करने लगो। धीरज ने प्रकाश से पूछा, क्या तुमने साधु और बिच्छू की कहानी नहीं सुनी है? धीरज बोलता गया। उसने प्रकाश को कहानी याद दिलाई। एक साधु था। वह तालाब में सुबह सुबह स्नान करने गया हुआ था। वहां पर उसने एक बिच्छू को देखा। उस तालाब में वह बिच्छू डूब कर मरने वाला था। साधु बार बार अपने हथेली में बिच्छू को लाकर किनारे पर डालने की कोशिश करता, और बिच्छू बार बार साधु को डंक मारता।साधु का स्वभाव था बिच्छू को बचाना और बिच्छू का स्वभाव था साधु को काटना।

गिद्ध सड़े गले मांस को खाकर जिंदा रहता है। पर गिद्ध के सड़े गले मांस के खाने के हंस का स्वभाव तो नहीं बदलता। कौए को लाख मिठाई खिला दो, पर वो काँव काँव हीं करेगा। कौए को देखकर तोता तो राम नाम जपना तो नहीं छोड़ता। माना कि मित्तल साहब तुम्हारे साथ बेईमानी करते हैं, न्याय नहीं करते पर इसका मतलब ये तो नहीं कि तुम भी उनके साथ बेईमानी करने लगो। मित्तल साहब के स्वभाव में हीं बेईमानी है। वो व्यवसायी है, व्यापार केवल ईमानदारी के भरोसे चलता भी नहीं। तुम तो अपने स्वभाव में रहो।

राम और रावण दोनों को दुनिया याद रखती है। राम अपने स्वभाव के कारण जाने जाते हैं और रावण अपने कर्मों के कारण। दुर्योधन के रास्ते को युद्धिष्ठिर ने कभी नहीं अपनाया। इसी तरीके से तुम भी अपने रास्ते से मत चूको। माना कि मित्तल साहब समय पर पैसे नहीं देते, पर पूरे पैसे दे तो देते हैं। यदि छुट्टी के पैसे काटते हैं तो उनसे बात करो। इन सारी बातों को मन मे क्यों रखते हो?

प्रकाश ने कहा कि मुझे यह सारी बातें समझ में नहीं आती है। पढ़ा लिखा आदमी नहीं हूं। मैं तो सिर्फ इतना जानता हूं कि मेरी ईमानदारी के साथ बेईमानी की जाती है। तो फिर मैं मित्तल साहब साथ में थोड़ी सी बेईमानी क्यों न करूं? प्रभु श्रीराम समुद्र के किनारे 3 दिन तक याचना करते रहे, आखिर में जब उन्होंने धनुष ताना तभी समुद्र उनके आगे झुका।

याद कीजिए पांडवों ने भीष्म पितामह, गुरु द्रोणाचार्य, कर्ण, दुर्योधन आदि का वध कैसे किया?यहाँ तक कि राम ने भी बाली का शिकार छिप कर हीं किया था।सियार के सामने कोई हनुमान चालीसा का पाठ करता है क्या? भैंस के आगे बीन बजाने से क्या फायदा? यदि कोई जंगल के कानून से चलता है तो उसको जंगल के कानून हीं समझ आते है। कोई अच्छा है इसका मतलब ये नहीं कि वो कमजोर है।

धीरज ने कहा कि सच्चाई के रास्ते पर चलने के लिए असीम ताकत चाहिए होती है।यदि तुम किसी की बेईमानी से प्रभावित होते हो इसका कुल मतलब इतना हीं है कि तुम कमजोर हो। होना ये चाहिए कि तुम्हारी अच्छाई का असर बेईमानों पे हो।तुमने गौतम बुद्ध और अंगुलिमाल की कहानी नहीं सुनी क्या?गौतम बुद्ध के प्रभाव में आकर अंगुलिमाल कैसे बौद्ध भिक्षु बन गया?नारद मुनि के कारण डाकू रत्नाकर महाकवि वाल्मीकि बन गया।यदि तुममे पहाड़ की ऊंचाई पर चढ़ने का सामर्थ्य नहीं है तो इसमें पहाड़ की चोटी क्या दोष? कोई ना कोई तो पहाड़ की चोटी पर चढ़ता हीं है। यदि स्वयं में सामर्थ्य नहीं है तो कम से कम रास्ते की महत्ता का अपमान तो मत करो।

खैर तुम तो मानोगे नहीं।तुमको जो करना है करो। मेरी तो स्वभाव में बेईमानी है ही नहीं।भाई मैं तो सुबह सुबह उठकर रोज ध्यान करता हूं। ध्यान में ईश्वर से यह प्रार्थना करता हूं कि जिन सिद्धांतों का पालन मेरे पिता ने किया है , उन सिद्धांतों और आदर्शों पर मैं टिका रहूं। और एक बात और है, मैं चाह कर भी बेईमानी नहीं कर सकता। धीरज ने वह नोटिफिकेशन प्रकाश के हाथ में पकड़ा दिया और वहां से चल दिया।मित्तल साहब अपनी करनी का फल भुगतेंगे और तुम अपनी करनी का। मैं तो अपने रास्ते इसलिए चलता हूँ कि मुझे सुकून मिलता है और इससे मेरा दिल हल्का रहता है।

प्रकाश ने कहा , आपकी बात सही है, लेकिन आदर्शों से दुनिया नहीं चलती। मेरे बाबूजी गांव से आये थे। उन्हें हॉस्पिटल दिखाने के लिए चार दिन की छुट्टी ली थी। मित्तल साहब ने पैसे काट लिए।बोनस के पैसे भी नहीं दे रहे हैं। हालांकि पैसे पूरे दे देते हैं, पर समय पर नहीं मिलने पर क्या फायदा। इन आदर्शों के भरोसे दवाई कहाँ से लाऊं? मैं तो ठहरा गँवार आदमी। आपकी तरह पढा लिखा नहीं। मुझे तो बस इतना पता है कि जिस मरीज को जैसी बीमारी हो, उसे वैसी हीं दवा दिया जाना चाहिए। जंगल के कानून से जीने वाले व्यक्ति भक्ति के पाठ से कभी नहीं सुधरते। ईमानदारी कभी भी बेइमानी का इलाज नहीं हो सकती। बेईमानी तो बेईमानी से हीं पछाड़ खा सकती है।

धीरज ने प्रकाश की फिर समझाने की कोशिश की। उसने कहा कि बेईमानी को ठीक करने का ठेका उसने अपने सर पर क्यों उठा रखा है। बेईमानों को सजा देने का काम तो ईश्वर का है। तुमको दिखाई नहीं पड़ता, मित्तल साहब को बी.पी. है, मधुमेह है, थाइरॉयड की बीमारी है? मसाला खा नहीं सकते, मीठा खा नहीं सकते, तितापन, खट्टापन ,धूल धक्कड़ से एलर्जी है उनको। दूध , दही से परहेज करना पड़ता है।ये सारी बेईमानियां उनके शरीर से निकल रही है। तुम्हें दिखाई नहीं पड़ती क्या?

प्रकाश ने कहा कि चलिए मान लिया कि मित्तल साहब को अपनी करनी का फल मिल रहा है, पर इससे उसको क्या फायदा हुआ? मित्तल साहब के बी.पी., मधुमेह या थाइरॉयड , एलर्जी होने से उसके पिता का इलाज तो संभव नहीं हो पा रहा है ना? और यदि बेईमानी की सजा उसे मिलती है तो उसे कोई अफसोस नहीं होगा। कम से कम उसके पिता का इलाज तो संभव हो पायेगा। धीरज को समझ आ गया कि भैंस के आगे बीन बजाने से कोई फायदा होने वाला नहीं।

तकरीबन आधे घंटे बाद मित्तल साहब वहां पर आए। प्रकाश और धीरज दोनों की प्रसंशा खुले दिल से करने लगे। जब धीरज ने मित्तल साहब को उस नोटिफिकेशन को दिखाना चाहा , साहब ने कहा कि नोटिफिकेशन प्रकाश ने व्हाट्सएप से पहले ही भेज दिया है। मित्तल साहब ने प्रकाश को बुलाकर कहा, जितने पैसे खर्च हुए हैं, जाकर दीपक से ले लेना। धीरज चुप चाप देखता रहा।प्रकाश ने 5000/- रुपये नोटिफिकेशन के खर्चे के नाम पर ले लिए। उन रुपयों से उसने अपने बीमार पिता के लिए दवाईयाँ खरीदी और गाँव भेज दिया। धीरज ने अपनी ईमानदारी में बेईमानी की कोई कसर नहीं रख छोड़ी।

अजय अमिताभ सुमन:सर्वाधिकार सुरक्षित

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: कहानी // एक बेईमान ईमानदारी // अजय अमिताभ सुमन
कहानी // एक बेईमान ईमानदारी // अजय अमिताभ सुमन
https://lh3.googleusercontent.com/-vnkRUJCALKA/W_-uUUVS9kI/AAAAAAABFbM/D13EI4j2wyIUIDBvnIdpS0W5_47ZX-VCQCHMYCw/image_thumb?imgmax=800
https://lh3.googleusercontent.com/-vnkRUJCALKA/W_-uUUVS9kI/AAAAAAABFbM/D13EI4j2wyIUIDBvnIdpS0W5_47ZX-VCQCHMYCw/s72-c/image_thumb?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2018/11/blog-post_32.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2018/11/blog-post_32.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content