(संत अमर दास साहब ) हमारे देश भारतवर्ष में संतों का विशेष स्थान रहा है। उन्होंने अपनी साधना द्वारा अपना स्वयं का कल्याण तो किय...
(संत अमर दास साहब )
हमारे देश भारतवर्ष में संतों का विशेष स्थान रहा है। उन्होंने अपनी साधना द्वारा अपना स्वयं का कल्याण तो किया ही है साथ ही साथ समाज व राष्ट्र को भी कल्याणकारी मार्ग दिखाया है। गौतम बुद्ध, कबीर, नानक, रैदास, दादू, पलटू, मलूक दास, तुकाराम, सूर, तुलसी, मीरा, नामदेव, विवेकानन्द व भदंत आनंद कौशल्यायन जैसे संतों ने यहाँ जन्म लिया है। इन संतों ने अपनी साधना से अमरत्व प्राप्त किया है। विश्व पटल पर हम देखें तो ईसा मसीह, यूहन्ना, मत्ती, मरकुस, लूका, मोहम्मद साहब, अरस्तू, प्लेटो, सुकरात, फाहियान व ह्वेनसांग आदि संत ही हैं जिन्होंने विश्व को मानवता का पाठ पढ़ाया और अमरत्व प्राप्त किया। ऐसे ही सच्चे साधक संत हैं उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जनपद में निवास कर रहे संत अमर दास साहब।
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संत अमर दास साहब सहजता, सरलता व सादगी की प्रतिमूर्ति, ज्ञान के अथाह भंडार, अहंकार से रहित, त्यागी, तपस्वी व साधक संत हैं। आपका जन्म एटा जनपद के गही (गहाई) नामक गाँव में हुआ था। आपके माता-पिता ने आपको अमर सिंह नाम दिया था। आप बचपन से ही सद्गुरु साहब कबीर के दर्शन से प्रभावित रहे और कबीरपंथी संत हो गये। संत होने के उपरान्त आपका नाम अमर दास साहब हो गया। महात्मा कबीर जैसा आभामंडल अमर दास साहब के चेहरे पर झलकता प्रतीत होता है। अनेक संत महात्माओं ने अपनी वाणी को अमरत्व प्रदान करने हेतु लेखनी का सहारा लिया है। संत अमर दास साहब भी ऐसे ही एक संत हैं जो आध्यात्मिक साधक होने के साथ-साथ वाणी के भी साधक हैं। आपने लेखन की गद्य व पद्य दोनों ही विधाओं में अपनी लेखनी चलाई है। आपकी गद्य व पद्य विधाओं में अब तक चौदह पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं जिनके नाम क्रमशः आत्म जागृति शतक, सद्गुरु कबीर चालीसा, सद्ज्ञान कुण्डलियां, मानवता पारख पद भजनावली, जागृति के क्षण, मुक्ति की ओर, कबीर परिचय, मन की आँखें, सहज ध्यान योग, सहज ध्यान की झलक, आया है जायेगा, तेरा साईं तुझ में, शांति सागर, व्यवहारिक ध्यान है।
संत अमर दास साहब रज्जोदेवी कबीर आश्रम मैनपुरी के महंत हैं तथा वृद्ध संत सेवा आश्रम कबीर कुटी गही (गहाई) जिला एटा से भी सम्बद्ध हैं। वरिष्ठ कवि डॉ0 दीन मोहम्मद 'दीन' ने महंत अमर दास साहब के बारे में लिखा है ''परम संत अमर साहब अपने कबीर आश्रम में प्रत्येक रविवार को सत्संग का आयोजन करते चले आ रहे हैं। इसमें मैनपुरी ही नहीं अन्य जनपदों यदा एटा, इटावा, फर्रूखाबाद, कन्नौज आदि जनपदों के भक्त गण सम्मिलित होते रहते हैं। अमर दास साहब एक त्यागी-तपी, साधक संत हैं उनकी सहजता, सरलता तथा सादगी, एक महान संत का स्वयं प्रमाण देती है। व्यक्ति नहीं व्यक्ति का आचरण स्वयं बोलता है और वह सद्भावना एवं सदाचरण अमर दास साहब में निहित है। उनके प्रेम-कृपा और स्नेहिल भाव वर्षा से मेरा तन-मन अभिसिंचित एवं अभिभूत हुआ है।''
संत अमर दास साहब की वाणी मानव मात्र के लिए कल्याणी है। वे संसार को दुखालय बताते हुए दुख में से सुख खोजने का मार्ग बताते हैं। उन्होंने लिखा है- ''जिस प्रकार संसार का दूसरा नाम दुखालय है उसी प्रकार ये शरीर भी सूक्ष्म संसार है और ये दुख, बीमारी, जन्म-मरण का घर है। अगर इस दुख में से सुख बनाना है तो इस शरीर-मन को हम भक्ति, आत्मा-परमात्मा, सत्य, मुक्ति, कल्याण जोड़ दें तो ये दुख, शरीर बंधन से मुक्त कल्याण के सुख को बनाना समझेंगे। असत्य संसार की तरफ लगाने से दुःख बंधन बनेगा और सत्य आत्मा-परमात्मा में लगाने से मुक्ति बनेगी।'' (शांति सागर पृष्ठ 14)
सत्य क्या है? सच्ची भक्ति क्या है? तथा मानवता धर्म क्या है? यह सब बताते हुए संत अमर साहब ने लिखा है ''सत्य के साथ सच्चा मानव, सच्चा संत ही रह सकता है क्योंकि सत्य में ढ़ाई अक्षर हैं, इसलिए असत्य, अधर्म का बहुमत है, सत्य का एक मत है। शरीर असत्य है। इसमें पाँच तत्व, पच्चीस प्रकृति, दस इंद्री, एक सौ आठ हड्डियाँ, बहत्तर हजार नाड़ियाँ, हजारों छोटे-छोटे अवयव ये सब बहुमत की चीजें हैं लेकिन एक आत्मा के निकल जाने पर ये बहुमत बेकार हो जाता है। सत्य के प्रति प्रेम ही सच्ची भक्ति, मानवता धर्म एवं मानव जीवन का कर्तव्य है। (शांति सागर पृष्ठ 12)
अंतःकरण की शांति हेतु हमें क्या करना चाहिए यह बताते हुए संत अमर दास साहब ने लिखा है '' अंधकार को दूर करने के लिए प्रकाश की आवश्यकता है, रात्रि को दूर करने के लिए सूर्य की आवश्यकता है। ऐसे ही अपने अंतःकरण की आग शांत करने के लिए जो शांत पुरूष कामना रहित हो जिनका मन मस्तिष्क शांत हो, वाणी मधुर हो, शांत पथ के पथिक हों, ऐसे परम दयालु, शांत अंतःकरण शीतल जल के समान ही सारी कामनाओं की आग को शांत कर देंगे।'' (शांति सागर पृष्ठ 24)
मानवता धर्म क्या है तथा सच्चा संत कौन है यह बताते हुए संत अमर दास साहब ने लिखा है ''मनुष्य में यदि मनुष्यता आ जाये तो वास्तव में वही मनुष्य है। मानवता रूपी आभूषण को धारण करने के लिए सद्गुणयुक्त जीवन बनाना होगा तभी उसके मनुष्य जीवन पाने की सार्थकता हो सकती है। जीवन में सद्गुणों का उद्घाटन दुर्गुणों का पतन होना ही मानवता की असली पराकाष्ठा है। मानवतायुक्त व्यक्ति ही सच्चा संत है, सद्गुरू है। जिसके जीवन में तप, सेवा, सुमिरन की त्रिवेणी धारा बहती है उसका जीवन धन्य हो जाता है। तप से हमारे कर्मों की शुद्धि होकर शांति प्राप्त होती है।'' (शांति सागर पृष्ठ 25)
सच्चा ध्यान और सच्ची समाधि क्या है? यह बताते हुए संत अमर दास साहब ने लिखा है ''जिस क्षण हमारा मन वासनाओं से रिक्त (खाली) होता है ऐसे समय में हमारा मन सुमन बन जाता है तथा हमारे मन का अहंकार किसी प्रतिकूलता से हार जाता है तो ऐसे हार और सुमन को लेकर जब हम अपने इष्ट सद्गुरू के पास समर्पण भाव से पहुँचते हैं तो वहीं हमारा मन नमन हो जाता है। नमन से सच्चा ध्यान, सच्ची समाधि है। जहाँ पर शाश्वत धर्म, शाश्वत पूजा, शाश्वत ध्यान साधना प्रकट हो जाती है हमारा हृदय प्रेम से आप्लावित हो जाता है फिर हर प्राणी में ईश्वर, खुदा, परमात्मा का दर्शन होने लगता है।'' (व्यवहारिक ध्यान पृष्ठ 2)
भजन क्या है? यह बताते हुए संत अमर दास साहब ने लिखा है '' हमारे शरीर को शिशु अवस्था, किशोर, जवानी, अधेड़ एवं बुढ़ापा ये क्रमशः सब छूट जाते हैं क्योंकि ये सब बाहर से मिले और सब छूटे। अंदर का न छूटने वाला अमृत स्वरूप, सत्य स्वरूप जो तीन काल में कभी नहीं छूटता उसी का स्मरण भजन है और उसी की स्थिति में रहना ध्यान है।'' (व्यवहारिक ध्यान पृष्ठ 17)
भय, अशांति और दुःख का कारण बताते हुए संत अमर दास साहब ने लिखा है ''हम अविनाशी चेतन हैं, हमारा कभी नाश नहीं होता है। हमने जितनी शरीर की आसक्ति बना ली है यह हमारे भय, अशांति और दुःख का कारण है। देह की आसक्ति छोड़ते रहें, बस सुखी, शांत होते चले जाएँगे।'' (व्यवहारिक ध्यान पृष्ठ 15)
सहज ध्यान योग के बारे में संत अमर दास साहब लिखते हैं '' सहज ध्यान के द्वारा सहज जीवन आ सकता है या यों कहें सहज जीवन के द्वारा सहज ध्यान होता है। ध्यान में होते हैं, ध्यान किया नहीं जा सकता है जैसे दुख में होना, धन में होना, पद में होना, हानि में लाभ में होना, अनुकूलता-प्रतिकूलता में होना। जब क्रोध में होते हैं, काम में होते है तब भूल जाते है स्व को। पर में इतने तल्लीन होते हैं कि अपनी स्व की स्थिति, अनुपस्थिति जैसी लगती है। ध्याता जब तक कर्ता भाव के राग में है तब तक (पर) संसार में फँसा रहेगा। ध्याता न की स्थिति में आते ही ध्यान में आ जावेगा।'' (सहज ध्यान योग पृष्ठ 18)
चित्त की निर्मलता को समझाते हुए संत अमर दास साहब लिखते हैं ''हम अपने लक्ष्य को चित्त की निर्मलता की तरफ लायें तब अनुभव होगा कि हमारे मन में कितना तनाव, खिंचाव, बेचैनी, अशांति है। हमारे पास भौतिक सभी साधन उपलब्ध हों, प्रचुर मात्रा में धन हो, पद हो तब भी हम दुखी, अशांत रहते है। इनका अभाव हो तब भी दुख है। मन का ये संताप तीन काल में छूट नहीं सकता जब तक हम इनके कारण को न समझ लें। इस त्रय ताप भव रोग का कारण मनोविकार ही है। जितने अंश में मन निर्मल रहता है, जीवन में निर्मलता की गंगा बहती है उतना ही चित्त राग द्वेष से विमुक्त हो प्रेम, करुणा, समता, संतोष से आप्लावित होकर चिर स्थाई शांति में प्रवेश हो जाता है और हम सुख-दुख से परे परम पद पर आसीन हो जाते हैं।'' (सहज ध्यान योग पृष्ठ 18-19)
हमारा मन अशांत क्यों है उसमें बेचैनी क्यों है? इस सम्बन्ध में प्रकाश डालते हुए संत अमर दास साहब ने लिखा है, '' बिना कारण कोई कार्य नहीं होता। जितनी ही अशांति, बेचैनी है उसके पीछे कारण है मन का विकारी होना। हमारा मन जितना निर्मल, निर्विकारी, स्वच्छ और सुमन होगा उतनी ही शांति, चैन, करूणा, समता का साम्राज्य हमारे जीवन में होगा। करुणा, समता, शांति को व्यवहारिक जीवन में अन्तरदृष्टि सहज ध्यान भी कहते हैं। (सहज ध्यान योग पृष्ठ 27)
ध्यान की अवस्था क्या है? यह बताते हुए संत अमर दास साहब ने लिखा है, ''जो इंद्रियाँ मन के निर्देशन से चलतीं हैं वे सब बहिर्मुख बनाती हैं जो अंग स्वचालित हैं। वहीं अंतर्मुखता में कार्य करते हुए अक्रिया जैसे रहते हैं कोई संस्कार निर्मित नहीं करते जैसे हृदय, फेफड़े। बहिर्मुख इंद्रियाँ अगर अंग-भंग होती हैं तो जीवन चल भी जाता है, अंतर्मुख हृदय, फेफड़े खराब होने से जीवन कठिन हो जाता है। अतः फेफड़ों की श्वास-प्रश्वास, हृदय की संवेदनाएँ इन पर मन टिकाना, केंद्रित होना ध्यान की प्रथम अवस्था है।'' (सहज ध्यान योग पृष्ठ 28)
संत अमर दास साहब लेखक ही नहीं अपितु एक साधक कवि भी हैं। उनके हृदय से जो काव्यधारा फूटी है वह भक्तिकाल की ज्ञानाश्रयी शाखा के प्रवर्तक कवि सद्गुरु कबीर साहब की भाँति ही है। सत्यता को खोजने के भटकाव में उन्होंने कितना सुंदर भजन लिखा है-
जीवन अपना मोड़कर, किधर लगाऊँ मैं।
सत्य शाश्वत कौन है, कैसे पाऊँ मैं।
1. धर्म शरण की सोची जबसे, लाखों पथ अपनाये।
ना जानू मैं सत्य कौन है, बड़े लोग भरमाये।
पथ प्रदर्शक कौन है, अब किसे बनाऊँ मैं।।
2. मेरे पथ के रोड़े अब तो, मजहब ही लख पड़ते ।
मेरा पथ मुक्ति का दाता, कह कर के सब लड़ते।
मर्म शाश्वत धर्म का, कैसे पाऊँ मैं।।
3. इधर-उधर तीर्थों में जाकर कितने भटका खाये।
सभी ओर से थक कर बैठे, तब तक मुझे जगाये।
प्यार से बोले कौन हो, अब क्या बताऊँ मैं।।
4. मैंने ऊपर को जब देखा, निर्मल संत को पाये।
पारख ध्वजा हाथ में जिनके, प्यार सिंधु लहराये।
समता उनकी कौन है, ना विसराऊँ मैं।।
5. विवेक ज्ञान के दाता गुरुवर, स्वदर्शन करवाये।
पारख बूटी हृदय में रख, आत्म स्थिति पाये।
'अमर' पारखी सद्गुरु की, जय-जय गाऊँ मैं।।
(मानवता पारख पद भजनावली पृष्ठ 49-50)
संत अमर दास साहब कर्म को भगवान मानते हैं। उनके एक भजन में कर्म की महिमा दृष्टव्य है-
आओ शक्ति तुम्हें दिखायें कर्म देव भगवान की।
सत्य शाश्वत धर्म मिलेगा, शरण सद्गुरू ज्ञान की।
1. मेरा पथ तो कर्म पंथ है, जिस पर हम सब खड़े हुए।
भूली डगर अनादि राह पर, राही बनकर अड़े हुए।
सबल कर्म की महिमा बुद्धि, क्या जाने नादान की।।
2. पाप कर्म पापी के पीछे, दुख दारुण बन खड़े हुए।
ईश भरोसे क्यों अब बैठे सुगति कर्म जब बन किए।
कर्म सबल और ईश निबल है, शाश्वत सत्य विधान की।।
(मानवता पारख परख पद भजनावली पृष्ठ 53)
संत अमर दास साहब ने मानव मात्र को अंध विश्वास से दूर रहने को कहा है। उनके एक भजन में यह भाव देखें-
पाखंडों के मिथ्या जाल में, मत भटक दीवाने बन्दे।।
1. वैदिक युग में जल, थल पावक और पवन को देव बताया।
जड़ तत्वों को खुश करने में, पशुओं को काट चढ़ाया।
बध करके मूक प्राणियों का और मोक्ष मानते बन्दे।।
2. खानी, पीनी, बीड़ी, सिगरेट और सुरापान करते हैं।
पेट को कब्रिस्तान बना, मुर्दों का सेवन करते हैं।
मानव में छुति लगा कर के और सबसे श्रेष्ठ बनेंगे।
(मानवता पारख परख पद भजनावली पृष्ठ 40)
अंत में निष्कर्षतः हम कह सकते हैं कि संत अमर दास साहब एक सच्चे साधक संत हैं जिनसे समाज व राष्ट्र को निरंतर प्रेरणा मिल रही है। उनकी अमृतमयी वाणी युगों-युगों तक जन-मानस का कल्याण करती रहेगी ऐसा मेरा विश्वास है। श्री दिनेश सक्सेना ने संत अमर दास साहब के बारे में सच ही लिखा है '' संत श्री अमर दास साहेब पूज्य संत हैं जिनके दर्शन मात्र से शान्ति मिलती है। उनका सादा व तपस्वी जीवन रहा है। जाति-पाँति मजहब सम्प्रदाय आदि से अलग हटकर जीव को मानव बनाने की दिशा में सतत प्रयत्नशील हैं।'' संत अमर दास साहब के चरण चिह्नों पर चलकर निश्चय ही भक्तजनों को कल्याणकारी मार्ग मिलेगा और उसका लोक परलोक सुधरेगा।
- डॉ0 हरिश्चन्द्र शाक्य, 'डी0लिट्0
शाक्य प्रकाशन, घंटाघर चैक
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