फिल्मों में कॅमरा का महत्त्व - डॉ. विजय शिंदे

SHARE:

ल फिल्म के निर्माण की अनेक महत्त्वपूर्ण कड़ियों में से दो अहं कड़ियां हैं - कॅमरा और संवाद। यह दोनों कड़िया अलग-अलग है, अतः यहां पर इनका स्वतंत...


फिल्म के निर्माण की अनेक महत्त्वपूर्ण कड़ियों में से दो अहं कड़ियां हैं - कॅमरा और संवाद। यह दोनों कड़िया अलग-अलग है, अतः यहां पर इनका स्वतंत्र विवेचन भी जरूरी है। कॅमरा तकनीकी कला है और संवाद सृजन प्रक्रिया के साथ जुड़नेवाली कला है। संवादों के माध्यम से कहानी को कथात्मक रूप से संवादात्मक और नाटकीय रूप प्राप्त होता है, जिसका उपयोग अभिनय के दौरान होता है। कॅमरा एक यंत्र है, परंतु उसकी सहायता से कॅमरामन ऐसी तस्वीरों को खिंचता है जो जीवंत होकर परदे पर धूम मचाती है। संवादों के साथ प्रत्येक हलचल को अपने भीतर समेटता कॅमरा दर्शकों की तीसरी आंख बनकर उभरता है। फिल्मों की व्यावसायिक और कलात्मक सफलता भी तस्वीरों की सूक्ष्मताओं और संवाद के आकर्षक होने पर निर्भर होती है।

फिल्म में कॅमरा का काम शूट किए जा रहे प्रत्येक दृश्य को दृश्यांकित करना होता है। इसे चलाने के लिए निपुण और कुशल कॅमरामन की जरूरत होती है। कॅमरा का आधुनिक तकनीक से लदे होना, विशिष्ट एंगल के तहत चलना और कॅमरामन का कार्य निर्देशक की सूचनाओं का पालन करते हुए उनके मन में उठती तस्वीर को साकार रूप देना है। पिछले पाठ में लिखा है कि दुनिया में बहुत अच्छे निर्देशकों ने फिल्मी दुनिया में अपनी आरंभिक शुरुआत कॅमरामन से की है। उसका कारण यह है कि कॅमरामन आधा दर्शक और आधा निर्देशक बनकर अपनी सोच को आगे बढ़ाता है और तस्वीरों को विविध कोणों से खिंचने की कोशिश करता है। दुनिया में कॅमरा (सिनेमॅटोग्राफी) इस मशिन ने ही फिल्म निर्माण की प्रेरणा दी है। यहीं वह यंत्र है जो लेखक या पटकथा लेखक की कहानी को, छोटे-छोटे दृश्य, घटनाओं और प्रसंगों को पुरजों मे इकठ्ठा करता है। आगे चलकर वहीं पुरजें संपादकों के टेबल पर विविध प्रक्रियाओं के तहत संपादित होते हैं, जुड़ते हैं, विविध जगहों से कट होते हैं और ढाई-तीन घंटे की एक फिल्मी कहानी में उतरते हैं। आजकल बाजार में विविध प्रकार के बहुत अच्छे और कम कीमत में कॅमरे मिल जाते हैं जो दृश्यों को शूट करने का काम कर सकते हैं। लोगों के पास मोबाईल है और मोबाईल में भी अच्छे पिक्सल के कॅमरे बिठाए जाते हैं, जो फोटो तो खिंचते ही है साथ ही ऐसे कई दृश्यों को शूट कर सकते हैं जो एक फिल्म का रूप देने में सक्षम होते हैं। हां उसकी स्तरीयता और पिक्चर कॉलिटी कमजोर हो सकती है परंतु यह ध्यान रहे कि आरंभिक दौर में केवल हिलती-डूलती तस्वीरों को देखने के लिए लोगों की भीड़ उमड़ पड़ती थी।

1. कॅमरा और कॅमरामन का महत्त्व

फिल्मों में जो स्थान कहानी और लेखक, पटकथा और पटकथा लेखक, निर्देशन और निर्देशक का होता है वही स्थान कॅमरा और कॅमरामन का होता है। श्याम-श्वेत (ब्लॅक-व्हाईट) सिनेमा का दौर खत्म हुआ है, अब रंगीन फिल्में लोगों के सपनों को और रंगीन कर रही है। फिल्मी दुनिया में जो सबसे अधिक चौकानेवाले परिवर्तन हुए हैं उसमें सबसे पहले फिल्में बनना यानी दृश्यों का हिलती-डुलती फिल्म बनना, दूसरा अवाक से सवाक होना यानी मूक फिल्मों से बोलती फिल्मों में रूपांतरित होना और तीसरा श्याम-श्वेत से रंगीन बनना है। इन तीन परिवर्तनों में से दो परिवर्तन कॅमरा के साथ जुड़ते हैं। अर्थात् फिल्मों में कॅमरा का महत्त्व बहुत अधिक हैं। विनोद भारद्वाज लिखते हैं कि "पिछले कुछ सालों में मुंबईया सिनेमा में कॅमरामन का महत्त्व बढ़ा है। निर्देशक, अभिनेता-अभिनेत्री, संगीतकार, गीतकार आदि को शुरू से ही प्रचार मिलता रहा है पर अब कॅमरामन, नृत्य निर्देशक और एक्शन निर्देशक का भी केंद्रीय महत्त्व हो गया है। खास तौर से कॅमरामन की भूमिका को लंबे समय बाद उसका समुचित सम्मान मिल पा रहा है। अनेक अच्छे कॅमरामन अब निर्देशन की दुनिया में भी पर्याप्त सफलता पा रहे हैं। दरअसल किसी भी अच्छी फिल्म में निर्देशक और कॅमरामन में तालमेल की बहुत जरूरत होती है। मिसाल के लिए स्वीड़न के महान फिल्मकार बर्गमॅन और उनके कॅमरामन स्वेन निकविस्ट की जोड़ी ने सिनेमाई भाषा को एक नई प्रतिष्ठा दिलाई थी। निकविस्ट ने बर्गमॅन की फिल्मों के मनोवैज्ञानिक मूड़ को अच्छी तरह समझकर लाइटिंग, कंपोजीशन, कॅमरा मूवमेंट आदि को उस मूड़ के अनुकूल बनाया था। रूसी फिल्मकार तारकोवस्की (जिन्हें ‘फिल्म निर्देशकों का निर्देशक’ कहा जाता है) की अंतीम फिल्म ‘द सॅक्रीफाइस’ के कॅमरामन भी निकविस्ट ही थे। निकविस्ट की कला का बड़ा रहस्य यही है कि वह तकनीकी चमत्कारों को कम-से-कम महत्त्व देकर अभिव्यक्ति और मनोवैज्ञानिक मूड़ को केंद्रीय स्थान देते रहे हैं।" (सिनेमा : कल, आज, कल, पृ. 372) कुलमिलाकर कहा जा सकता है की पटकथा के भीतर उतरते भावों का अभिनेताओं के चेहरे पर अभिनय में व्यक्त होना और उसे कॅमरा की सहायता से पकड़ में लाना कॅमरामन का कार्य है। इस कार्य की पूर्ति करने के लिए उसकी एहमीयत भी बहुत अधिक है।

आज-कल हमारे सामने जिस खूबसूरती के साथ फिल्में पेश हो रही हैं वह कॅमरामन का ही कमाल माना जा सकता है। क्लासिकल और आर्ट फिल्मों में पात्रों के भावों को उजागर करने का कार्य कॅमरामन ही करता है। सत्यजीत राय ने ‘पथेर पांचाली’ और ‘चारुलता’ जैसी फिल्मों में सुव्रत मित्र के कॅमरा कमाल का इस्तेमाल किया है। दक्षिण की फिल्मों में शाजी एस. करुण और रवि वर्मा इन दो कॅमरामनों का नाम बड़े आदर के साथ लिया जाता है। आर. के. फिल्म के निर्देशक राजकपूर ने राधू करमारकर के कॅमरामन के नाते प्राप्त खूबियों का लाभ उठाते हए दर्शकों के दिलों पर राज किया है। ‘आवारा’, ‘श्री 420’, ‘जागते रहो’, ‘जिस देश में गंगा बहती है’, ‘संगम’, ‘मेरा नाम जोकर’, ‘बॉबी’, ‘प्रेम रोग’, ‘सत्यम् शिवम सुंदरम्’, ‘राम तेरी गंगा मैली’, ‘हिना’ आदि फिल्में आर. के. फिल्म प्रोड़क्शन के तहत राजकपूर ने बनाई और इसके मुख्य कॅमरामन की जिम्मेदारी राधू करमारकर की रही है। कम साधनों और कम तकनीकों के चलते विविध प्रयोग करता यह अद्भुत प्रतिभासंपन्न कॅमरामन राजकपूर के लिए बहुत अधिक प्रिय इसलिए था कि वह उनके मन के चित्रों को परदे पर लेकर आने में सक्षम था। "श्याम बेनेगल ने गोविंद निहालानी का शुरू में कॅमरामन के रूप में अच्छा इस्तेमाल किया था। ‘भूमिका’ में गोविंद निहालानी कॅमरामन थे। बाद में ‘आक्रोश’ से वह एक निदेर्शक के रूप में प्रतिष्ठित हो गए।" (सिनेमा : कल, आज, कल, पृ. 373)

2. कॅमरा एंगल

जब फिल्म कॅमरा या विड़ियो कॅमरा से एक शॉट या फोटोग्राफ लेने के लिए कॅमरा को किसी विशिष्ट स्थान पर रखा जाता है तब उसे कॅमरा एंगल कहते हैं। एक शॉट, एक साथ, एक समय पर कई एंगल्स से लिया जा सकता है। इससे अलग अनुभवों या कभी-कभी अलग भावनाएं दिखाई जा सकती हैं। हर कॅमरा एंगल से दर्शकों पर एक अलग प्रभाव पैदा किया जा सकता है। इसके अलावा भी कुछ और रस्ते होते हैं जिनसे कॅमरा संचालक ऐसे प्रभाव पैदा कर सकता है।

3. एंगल्स और उसका प्रभाव

पटकथा, कहानी और फिल्म के विषयवस्तु तथा शॉट के विषय को ध्यान में रखते हुए कॅमरा कहां रखा हुआ है इस बात से भी दर्शकों के विषय को देखने के नज़रिए पर असर पड़ता है। कॅमरा एंगल कई प्रकार के होते हैं, जैसे: हाई-एंगल शॉट, लो-एंगल शॉट, बर्ड्स-आय व्यू और वर्म-आय व्यू। एक स्पष्ट दूरी और एंगल जिससे कॅमरा में दिखाई देता है अथवा रिकॉर्ड किया जाता है उसे व्यू पॉइंट कहते हैं। आय-लेवल शॉट और पॉइंट ऑफ़ व्यू शॉट भी कुछ कॅमरा एंगल्स के प्रकार हैं।

अ. हाई-एंगल शॉट - हाई-एंगल शॉट वो होता है जिसमे कॅमरा विषयवस्तु से ऊपर रखा हुआ हो और उसे निचे झुक के देख रहा हो। हाई-एंगल शॉट विषयवस्तु को छोटा, कमज़ोर और भेद्य देखता है।

आ. लो-एंगल शॉट - लो-एंगल शॉट विषयवस्तु को नीचे से ऊपर की ओर देखता है, जहा कॅमरा विषयवस्तु के नीचे रखा होता है जिससे विषयवस्तु शक्तिशाली या धमकानेवाली दिखाई देती है।

इ. बर्ड्स आय शॉट – बर्ड्स आय शॉट या बर्ड्स आय व्यू शॉट्स दृश्य के ऊपर से लिए जाते हैं ताकि परिदृश्य को स्थापित किया जा सके।

ई. वर्म आय व्यू शॉट - जब दर्शकों को यह महसूस कराना हो कि वे पात्र को काफी नीचे से देख रहे हैं तब उसे वर्म आय व्यू कहा जाता है, ये अक्सर छोटे बच्चे या किसी पालतू जानवर के व्यू को दिखने के लिए उपयोग किया जाता है।

कॅमरा के एंगल को चुनते वक़्त यह ध्यान में रखना चाहिए की हर एंगल का एक अलग प्रभाव होता है, इसलिए इनका उपयोग सीन अथवा फिल्म के संदर्भ को ध्यान में रखकर करना चाहिए। (ई-संदर्भ) अर्थात् कॅमरामन का कौशल होता है कि कॅमरा के एंगल कैसे बनाए जाए और कौनसे दृश्यों को विषय के अनुरूप कहां से शूट करना चाहिए।

4. शॉटस् के प्रकार

शॉट्स के विभिन प्रकार होते हैं जो इन एंगल्स के इस्तेमाल से काम में लाए जा सकते हैं। शॉट्स का सीधा अर्थ एक दृश्य को कॅमरा रोल करते हुए लगातार पूर्ण रूप से शूट करना है। शूट करने की प्रक्रिया और दृश्यांकन के विविध आयामों के तहत शॉट्स के कई प्रकार बनते हैं।

अ. एक्सट्रीम लॉंग शॉट - एक्सट्रीम लॉंग शॉट जो विषयवस्तु के बहुत दूर से रिकॉर्ड किया जाता है और कभी कभी तो इसमें विषय दिखाई भी नहीं देता है। एक्सट्रीम लॉंग शॉट ज़्यादातर हाई एंगल से लिया जाता है, ताकि दर्शकों को नीचे के सीन की सारी स्थिति दिख सकें। एक्सट्रीम लॉंग शॉट ज़्यादातर किसी भी सीन के शुरुआत में उपयोग किया जाता है खास कर उसे स्थापित करने के लिए या फिर वर्णनात्मक रूप से सीन की व्यवस्था दर्शकों को दिखने के लिए उपयोग किया जाता है।

आ. आय-लेवल या पॉइंट ऑफ़ व्यू शॉट - ज़्यादातर शॉट्स आमतौर पर आय-लेवल या पॉइंट ऑफ़ व्यू शॉट होते हैं, हालांकि किसी भी शॉट को किसी भी एंगल से लेना संभव है। लॉंग शॉट में विषयवस्तु को दिखाया जाता है, किंतु शॉट की सेटिंग ऐसी होती है कि पिक्चर फ्रेम विषयवस्तु पर हावी होती है।

इ. मीड़ियम-शॉट - मीड़ियम-शॉट में विषयवस्तु और सेटिंग्स का बराबर महत्त्व होता है और दोनों ही फ्रेम में समान महत्त्व रखते हैं। इससे अलग जब मीड़ियम-शॉट में केवल पात्र पर ध्यान या जोर देना होता है तब पात्र को कमर से ऊपर तक दिखाता है, तब वह मिड़-शॉट होता है।

ई. मीड़ियम क्लोजअप शॉट - मीड़ियम क्लोजअप शॉट वो होता है जिसमें पात्र को छाती से ऊपर तक दिखाया गया हो। क्लोजअप में किसी खास विशेषता या विषय के हिस्से से पूरा फ्रेम भर जाता है, जैसे कि अगर एक फ्रेम में केवल पात्र का चेहरा ही दिखाया गया हो।

उ. एक्सट्रीम क्लोजअप शॉट - आखिर में एक्सट्रीम क्लोजअप शॉट आता है, इसमें केवल पात्र के किसी एक शारीरिक हिस्से ने पूरा फ्रेम भरा हुआ होता है, जैसे कि आंखें, हाथ या कोई और हिस्सा। ये सभी शॉट किन्हीं भी पूर्वकथित कॅमरा एंगल्स के साथ उपयोग किए जा सकते हैं। (ई-संदर्भ) इन शॉट के अलावा समय और परिस्थिति के अनुरूप अन्य भिन्न एंगल से भी दृश्यांकन होता है, परंतु फिल्मों में मूलभूत शॉटस् के इन्हीं प्रकारों का प्रयोग होता है।

5. सिनेमॅटोग्राफी विज्ञान है या कला?

सिनेमॅटोग्राफी विज्ञान है या कला? इस प्रश्न का सीधा उत्तर यह है कि सिनेमॅटोग्राफी करना कला है और इस तंत्र के वैज्ञानिक ज्ञान की सूक्ष्मताओं को हासिल करना, कॅमरा तकनीक सीखना विज्ञान है। यहां राधू करमाकर जी की किताब ‘कॅमरा मेरी तीसरी आंख’ के अंशों को जैसे के वैसे दे रहे हैं जिसमें सिनेमॅटोग्राफी विज्ञान है या कला पर प्रकाश डाला है।

"कॅमरामन एक मंहगे आधुनिकतम यंत्र ‘मुवी कॅमरा’ का इस्तेमाल करता है और फिर प्रकाश सहायता से तीसरी आंख अथवा कॅमरा के जरिए प्रकाश चित्रकारी करता है। इसे वह किस तरह अंजाम देता है और निर्दिष्ट सांसारिक कर्म से ऊपर उठाकर उसे किस तरह एक सौंदर्य कृति में तब्दील कर देता है, इसका रहस्य कला की दुनिया में है। निर्देशक के विजन को सिनेमॅटोग्राफर सेलूलाइड़ पर उतारते हैं। कॅमरा के कोणों का विवेकपूर्ण उपयोग करके वे अभिनेता और अभिनेत्रियों को ग्लॅमरस बना देते हैं। ये वे लोग होते हैं जो कला निर्देशकों की कलाकारियों, मेकअपमॅनों के हुनरो, कॉस्ट्यूम डिजाइनरों की सृजनात्मकता को आंदोलित करते हैं और फिर अंत में संगीत निर्देशकों की धुनों, नृत्य निर्देशकों के नृत्य दृश्यबंधों और फाइट कंपोजर के मारामारी के हैरतअंगेजी कारनामों को सेलूलाइड़ पर साकार करते हैं। कॅमरा, फिल्म टेक्नॉलॉजी तथा फिल्म से जुड़े दूसरे क्षेत्र में हुई बेहिसाब तरक्की के हिसाब से सिनेमॅटोग्राफर को नए-नए प्रयोगों से परिचित रहना पड़ता है" (कॅमरा : मेरी तीसरी आंख, पृ. 115) "श्याम और श्वेत फोटोग्राफी में प्रकाश और अंधेरे की छायाएं होती है। लेकिन रंगीन फिल्मों के आने से विभिन्न रंग आभाओं रंगतों का इस्तेमाल सुरुचि और कल्पनाशीलता से करने की जरूरत है। रंगों और प्रकाश के प्रयोग करने की संवेदनशीलता एक अच्छे कॅमरामन में होनी चाहिए जिससे उसके काम को एक टैक्सचर मिले जिसे अनुभूति के स्तर पर महसूस किया जा सके। उसके काम में ऐसा पेशेवराना स्पर्श हो जिससे दृश्य के पीछे छीपे विचार को समझने में दर्शकों को सहायता मिले।

महान रुसी निर्देशक सेरजई आइंजेस्टाइन का कहना है कि कलर स्क्रीन ऐसा होना चाहिए जिसमें बिंब और कथ्य, नाटक और एक्शन तथा संगीत का रंगों के साथ स्वाभाविक संबंध दिखाई दें। ऐसे स्क्रीन को बनाने के लिए हर सिनेमॅटोग्राफर को सौंदर्यशास्त्र का अध्ययन अवश्य करना चाहिए ताकि प्रकाश और रंगों की बारीक छटाओं का वे कुशलतापूर्वक प्रयोग कर सकें। सौंदर्यशास्त्र एक ऐसा ज्ञान है जो ऐतिहासिक रूप से निर्धारित मानवीय मूल्यों के सारे तत्त्वों को, उनके सृजन, बोध, रसास्वादन और समावेशकता से जुड़ा है। समाज की सौंदर्य दृष्टि को बदलने की यह एक ऐसी प्रणाली है जिसका प्रभाव मनुष्य की संपूर्ण भौतिक और सांस्कृतिक क्रियाकलापों पर पड़ता है।

जन्मजात प्रतिभा, स्वनिर्मित उच्च मानदंड़, अध्यवसाय, कड़ी मेहनत और हुनर के बिना कला संभव नहीं है। ये सभी आवश्यक और अपरिहार्य गुण निरर्थक है, अगर दुनिया के बारे में कलाकार के पास अपनी कोई कलात्मक सोच नहीं है, उसके बारे में निजी दृष्टिकोण नहीं है और सौंदर्य के सिद्धांतों को बिंबों में बदलने की उसके पास सुसंगत प्रणाली नहीं है। एक कलाकार की विश्वदृष्टि उधार ली गई सच्चाइयों का कुल जोड़ नहीं होती बल्कि जिंदगी, प्रकृति और समाज को देखने, मानवीय संस्कृति को आत्मसात करने और संसार के प्रति संचित दृष्टिकोणों पर आधारित जिंदगी से पैदा होती है। विश्वदृष्टि केवल प्रतिभा और हुनर को ही रास्ता नहीं दिखाती बल्कि यह स्वयं भी सृजन की गत्यात्मक प्रक्रिया से प्रभावित होकर अपना ग्रहण करती है।

सृजन कार्य और इसके समझने के नियम साथ-साथ चलते हैं। शेक्सपियर, माइकेल एंजेलो, टॉलस्टाय, द विंची केवल महान कलाकार ही नहीं थें, वे महान प्रयोगधर्मी और अन्वेषक भी थे। कला के प्रति अभिरुचि विकसित करने के लिए सौंदर्यशास्त्र आवश्यक है। महान कलाकार वह है जो सृजन की स्थापित सीमाएं लांघता है जबकि एक कलाकार सभी नियमों का, खासतौर पर मूल नियमों तक को तोड़ नहीं पाता है। कला में सृजनात्मकता ही जिंदगी पैदा करती है, अन्यथा यह निष्प्राण और नीरस हो जाए। कॅमरा एक ऐसा यंत्र है जो कॅमरे की कला को ही उद्घाटित नहीं करता बल्कि प्रकाश, रंग और जिंदगी की बारीक अर्थछटाओं को भी आंकता जाता है। आधुनिक टेक्नॉलॉजी सुंदरता के प्रति मनुष्य की धारणा को बदलती है।" (कॅमरा : मेरी तीसरी आंख, पृ. 116-117) अर्थात् विज्ञान, तकनीक, प्रकाश और रंग के सहारे इस्तेमाल में आनेवाली कला के नाते सिनेमॅटोग्राफी को देखा जा सकता है।

6. चित्रकारिता और रंगोत्सव

कॅमरा से फिल्मों का दृश्यांकन करना एक प्रकार की चित्रकारिता है। जब फिल्में ब्लॅक-व्हाईट थी तब दो रंगों की सहायता से ही पात्रों की मनोदशा का अंकन किया जाता था। परंतु फिल्में जैसे ही रंगीन हो गई तो भावों के प्रकटीकरण के लिए अनेक रंगों के पर्याय उपलब्ध हो गए और मानो फिल्में एक प्रकार से रंगों का उत्सव ही मानी जाने लगी। इन रंगों के आकर्षण के कारण विश्व के कोने-कोने से लोग फिल्मों के साथ जुड़ते गए। इसी के चलते ‘रंगीन दुनिया का आकर्षण’, ‘रंगीली दुनिया’ जैसी कहावतें भी इसके साथ जुड़ती गई। राधू करमाकर लिखते हैं कि "सिनेमॅटोग्राफी के क्षेत्र में हाल में हुई अभूतपूर्व प्रगति के कारण रंगीन फोटोग्राफी भी प्रकाश से चित्रकारी कर सकती है। श्याम और श्वेत फोटोग्राफी में प्रभावी ढंग से विपरीत प्रभाव पैदा करने का अतिरिक्त गुण है। श्याम रंग बुराई का प्रतिनिधित्व करता है जबकि सफेद अच्छाई का सूचक है। धूसर रंग इन दोनों के दरम्यान रहस्य की विराट दुनिया रचता है जिसमें कुछ तलाशना हर एक को हमेशा दिलचस्प लगता है। रंगीन फोटोग्राफी जिंदगी को सुंदर, प्रसन्न और चटखिले रंग में प्रस्तुत करती है। मनुष्य में जिंदादिली और विशुद्ध आनंद को बरकरार रखती है। आदमी जिंदगी की भयानक हकीकत से भागना चाहता है और सिनेमा उसे यह करने का मौका देता है।" (कॅमरा : मेरी तीसरी आंख, पृ. 118) यहां पर राधू करमाकर जी का कॅमर और प्रकाश योजना के माध्यम से फिल्मों में इस्तेमाल किए रंगों को लेकर मानसिक प्रभाव और उससे निकलते प्रतीकात्मक अर्थ की ओर संकेत है। हो सकता है आम जीवन, देशकाल और परिस्थिति के भीतर रंगों के अर्थ बदलते हो। आगे वे लिखते हैं, "पीला रंग प्रफुल्लित करता है जबकि हरा रंग शांत करता है। पश्चिमी दुनिया में नीला रंग अशांतपूर्ण माना जाता है विशेषकर जब कोई खराब मनोदशा में हो। लेकिन एशिया में नीला एक प्रसन्न रंग है। काला मृत्यु और अशुभ का प्रतीक है, जबकि निर्मलता और अच्छाई का प्रतिनिधित्व सफेद करता है। सभी व्यक्तियों पर रंगों का मनोवैज्ञानिक असर पड़ता है। दृश्य की कल्पना करते समय निर्देशक को इन सब बातों का ध्यान रखना पड़ता है।" (कॅमरा : मेरी तीसरी आंख, पृ. 119) निर्देशक अगर भूल भी जाए तो कॅमरामन को इन सारी बातों का खयाल रखना ही पड़ता है। कॅमरामन हर पल सजग रहकर चित्रों को संजोने की कोशिश करता है।

सारांश

कॅमरा फिल्मों को आरंभ करनेवाला चमत्कार है। कॅमरे की निर्मिति के बाद लगातार यह कोशिश हो गई थी कि इसके माध्यम से लोगों की हिलती हुई तस्वीरों को अंजाम दिया जाए और जब पहली बार यह सफलता मिली तो फिल्में बनने का रास्ता खुल गया। और विश्व सिनेमा ने 28 दिसंबर, 1895 लिमिएर बंधुओं की फिल्म ‘द अरायव्हल ऑफ अ ट्रेन’ से अपना सफर शुरू किया। भारतीय फिल्मी दुनिया का सफर दादासाहब फालके जी की फिल्म ‘राजा हरिश्चंद्र’ के प्रदर्शन से 21 अपैल, 1913 में हुआ। कॅमरा की निर्मिति से मानो इंसान की कल्पना को पर लग गए और वह सपनों की दुनिया में स्वच्छंद विहार करने लगा। इतने दिनों से किताबों में बंद कहानियां पर्दों पर जीवंत होने लगी और दर्शक इन्हें पसंद करने लगे। केवल पसंद ही नहीं तो सर-आंखों पर लेने लगे। दिनों-दिन कॅमरा में नवनवीन तकनीकें जुड़ना शुरू हो गई और पहले से ज्यादा प्रभावशाली फिल्मों का निर्माण होता गया। आज-कल तो कॅमरा और वीड़ियो-कॅमरा बहुत सस्ती वस्तु बन गया है। मोबाईल में उपलब्ध कॅमरे से भी अच्छा चित्रण हो सकता है। यह भी सच है कि फिल्मों में तकनीकी तथा कॅमरा-तकनीकों में भी इतना परिवर्तन आ चुका है कि पर्दे पर उतरनेवाले चित्र बड़ी सूक्ष्मताओं के साथ दर्शाए जा सकते हैं। एकाध बार इंसान की आंखों से कोई दृश्य छूट सकता है पर कॅमरा की आंखों से नहीं। ब्लॅक-व्हाईट फिल्में जब रंगीन बनी तब और एक बार धमाकेदार परिवर्तन फिल्मी दुनिया में हो गया।

संदर्भ ग्रंथ सूची

1. कॅमरा मेरी तीसरी आंख – राधू करमाकर (अनु. विनोद दास), राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली, प्रथम 2010.

2. मानक विशाल हिंदी शब्दकोश (हिंदी-हिंदी) – (सं.) डॉ. शिवप्रसाद भारद्वाज शास्त्री, अशोक प्रकाशन, दिल्ली, परिवर्द्धित संस्करण, 2001.

3. सिनेमा : कल, आज, कल – विनोद भारद्वाज, वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली, 2006.

4. हिंदी साहित्य कोश भाग 1, पारिभाषिक शब्दावली – (प्र. सं.) धीरेंद्र वर्मा, ज्ञानमंड़ल लि. वाराणसी, तृतीय संस्करण, 1985.

डॉ. विजय शिंदे

देवगिरी महाविद्यालय, औरंगाबाद - 431005 (महाराष्ट्र).

ब्लॉग - साहित्य और समीक्षा डॉ. विजय शिंदे   http://drvtshinde.blogspot.com/

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: फिल्मों में कॅमरा का महत्त्व - डॉ. विजय शिंदे
फिल्मों में कॅमरा का महत्त्व - डॉ. विजय शिंदे
http://lh4.ggpht.com/-wU3gktJxUs0/VLTt0sZlBRI/AAAAAAAAc8I/evgQA8L0QnY/image_thumb%25255B1%25255D.png?imgmax=200
http://lh4.ggpht.com/-wU3gktJxUs0/VLTt0sZlBRI/AAAAAAAAc8I/evgQA8L0QnY/s72-c/image_thumb%25255B1%25255D.png?imgmax=200
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2018/12/blog-post_42.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2018/12/blog-post_42.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content