कहानी - अंतिम पेज - आकांक्षा सक्सेना

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अंतिम पेज ............................. सुलोचना.......... सुलोचना ......... पिता जी कितनी बार कहूँ मुझे इतने बड़े नाम से मत पुकारा करो बल्कि...

अंतिम पेज

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सुलोचना.......... सुलोचना .........

पिता जी कितनी बार कहूँ मुझे इतने बड़े नाम से मत पुकारा करो बल्कि माँ ने जो मेरा नाम श्रमी रखा है इसी नाम से मुझे पुकारा करो।

पिताजी ने हँसते हुये कहा जाओ एक गिलास पानी ले आओ। श्रमी ने अपने पिता जी को एक गिलास पानी देते हुये कहा ये लीजिए पानी। पिता जी ने मुस्कुराते हुये कहा चलो अब बैठ कर धीरे - धीरे पूरा पानी पी जाओ। श्रमी ने कहा पिताजी आप न किसी न किसी बहाने दिनभर मुझे पानी पिलाते रहते हैं। यह सुनकर श्रमी के पिताजी ने कहा बेटा पानी तो खूब पीना ही चाहिये। पिता पुत्री के वार्तालाप को बीच में ही टोकते हुये श्रमी की माँ ने कहा सुना है आज साहब का बच्चा विदेश से आ रहा है। जल्दी चलो वरना मालकिन को बुरा लगेगा जल्दी चलो। श्रमी तू भी चल उनके घर में आज बहुत काम है मेरा हाथ बटा देना। श्रमी ने कहा माँ मैं नहीं जाऊँगी जब भी आप दोनों उन बड़े लोगों के बड़े से घर में नौकर की तरह काम करते देखती हूँ तो मुझे बहुत बुरा लगता है। पीछे से पिताजी कुछ बोल पाते कि माँ ने कड़वी सच्चाई उगलते हुये कहा कि बेटा हम नौकर ही हैं। ज्यादा बड़े ख्वाब मत देखा करो हम लोग छोटे लोग हैं बेटा। चल बच्ची जल्दी से तैयार हो जा। कुछ देर की आनाकानी करने के बाद श्रमी माँ के साथ काम पर चली गयी।

श्रमी ने देखा कि मालिक मालकिन का पूरा घर फूलों से सजा है। इतनी हरियाली देख श्रमी सब कुछ भूल दोनों हाथ फैलाकर नाच उठी। कुछ देर बाद गाड़ी की आवाज़ से मानो सब कुछ थम सा गया। श्रमी ने बाहर दौड़ कर जाकर देखा तो वहां एक बहुत बड़ी कार देख चौंक गयी और मन ही मन बोली इतनी बड़ी कार में इनका बच्चा आया! उसने देखा कि सब लोग उस बच्चे की आवभगत में लगे हैं कोई उसे माला पहना रहा कोई उसे चूम रहा और कोई उसकी नज़र उतार रहा। इतनी भीड़ इतना प्यार इतना सत्कार देख वह हैरान थी। वह चुपचाप वहां से हटकर माँ से बोली माँ यह सब क्या, क्यों हो रहा? माँ ने कहा बेटा यह मालकिन का बेटा विदेश में पढ़ता है दो - चार दिन के लिये आया है वह भी पूरे तीन साल बाद। इसलिये उसके माँ बाप उसको इतना प्यार कर रहे हैं । तू वहां जाकर गिरे हुये फूल उठाकर एक तरफ कर दो जिससे वह किसी के पांव से न कुचलें। श्रमी चुपचाप वहां से जाकर रास्ते में पड़े फूलों को एक तरफ खिसका रही थी कि मालकिन का लड़का जो काफी देर से उसे फूल बीनता देख रहा था। वह दौड़ कर एकाएक उसके पास आकर कहा कि इतनी धूप में बाहर कब तक फूल हटाओगी पड़े रहने दो। श्रमी कहती है जिन फूलों से आपका स्वागत हुआ आप उन्हें कुचला हुआ देख सकेंगे। यह सुनकर वह लड़का कुछ बोल पाता कि श्रमी की माँ ने आकर उसे डांट दिया कि कभी चुप भी रह जाया कर। वह लड़का बोला चाची माँ यह बिल्कुल सही कह रही है बस इतना कहकर वह भी रास्ते में पड़े फूलों को हटाने लगा। दूर से जब मालिक ने यह सब देखा तो बोले स्वच्छता बहुत अच्छा काम है करने दो दोनों को मिलकर। बच्चे बच्चों के साथ नहीं खेलेंगे तो कहां खेलेंगे। यह सुन श्रमी की माँ ने कहा साहब अंदर नाश्ता लग चुका है। तो मालकिन ने कहा अरे! काशी दीदी कभी थोड़ा आराम भी कर लिया करो। थोड़ी देर में कर लिया जायेगा नाश्ता। वहां देखो बच्चे कैसे स्वच्छता अभियान में लगे हैं। यह देख श्रमी की माँ काशी हँस पड़ी।

कुछ देर बाद श्रमी ने मालकिन के बेटे से पूछा तुम्हारा नाम क्या है? मालकिन के लड़के ने कहा मेरा नाम "जॉन" है और तुम्हारा तो वह बोली "श्रमी"। दोनों एक साथ बोले कि पढ़ते किस क्लास में फिर दोनों एक साथ बोले कक्षा सात में। यह सुन दोनों एक साथ हँस पड़े। श्रमी ने कहा चलो जॉन मैं तुमको अपने घर की हरियाली दिखाती हूं चलोगे। वह बोला चलो। वह और श्रमी घर पहुंचे तो श्रमी ने दिखाया कि यह देखो जॉन हमारे घर के छप्पर पर तौरई लौकी की बेल, यह देखो पत्तियाँ? जॉन बोला यह पत्तियों पर सांप चल कर गया क्या? वह जोर से हँसी और बोली अरे बुद्धू सांप नहीं बरसाती कीड़े होते हैं जो पत्तियों पर रेंगते हैं और जिनके रेंगने से यह निशान बन जाते हैं। जॉन ने कहा अच्छा। तभी उसे शरारत सूझी वह जोर से चिल्लाया श्रमी चूहा। यह सुन श्रमी जोर से चिल्लायी कहां है चूहा। जॉन हँस पड़ा और बोला डरपोक। श्रमी अंदर गयी और अपने हाथ में दो मोटे धागों में बंधी चुहिया हिलाते हुये लायी और जॉन पर उछाल दी। यह देखकर जॉन चीख उठा। वह बोली क्यों क्या हुआ मेरा नाम श्रमी है मैं चूहे क्या शेर से भी नहीं डरती। वह बोला मुझे भी सिखाओ चूहे की पूँछ में धागा बांधना। बस फिर क्या था श्रमी ने उसे चूहे पकड़ना उनकी पूँछ में धागा बांधना, पेड़ों पर चढ़ना सह सिखा डाला दोपहर होते-होते दोनों बुरी तरह थक गये। तब जॉन ने कहा श्रमी मुझे बहुत भूख लगी है। वह बोली ऊपर देखो वह अमरूद.. चलो पत्थर मार कर अमरूद गिराओ और भूख मिटाओ। वह बोला और कोई चारा नहीं क्या? वह बोली यहां तो चारा ही चारा है जिसे हमारे मवेशी खाते हैं तुम्हारे लिये तो एक आइडिया है चलो खेत। दोनों भागते-भागते खेत आये जहां कुछ लोग गर्मागर्म चोखा बॉटी बना रहे थे जिसकी खुशबू से जॉन को बिन खाये रहा न गया और उसने वहां बैठकर पेट भर दाल बाटी चोखा का स्वाद लिया और वही हरी - हरी घास पर लेट गया।

जब बच्चे काफी देर तक घर न लौटे तो मालिक मालकिन उन्हें ढूँढ़ते हुये खेतों पर जा पहुंचे जहां बच्चों को हरियाली में खेलते देख बोले बेटा घर चलो खाना ठंडा हो रहा है। यह सुनकर जॉन ने कहा माँ आप भी घर पर इसी तरह चूल्हे पर मुझे दाल बाटी चोखा खिलाया करो। कितना अच्छा स्वाद है। माँ ने कहा बेटा जो स्वाद खेतों में बैठकर पका के खाने में है वह घर पर कभी नहीं आ सकता। तू जब तक गांव में है यहां ही ब्रेकफास्ट और यहां ही लंच करना ठीक। तो वह बोला और डिनर यहां क्यों नहीं? तो वहीं खड़े ग्रामीण बोले बेटा अंधेरे में यहां कीड़े मकौड़े उड़ते हैं यहां कैसे खाओगे। जाओ बेटा घर जाओ। वापस कल खेल लेना आकर। शाम होने को थी सब घर लौट आये और सभी खाना खाकर आराम कर रहे थे पर श्रमी और जॉन गांव के बच्चों के साथ खेलने में मशगूल थे।

दो तीन दिन कब बीत गये जॉन को पता ही न चला।

आज जॉन विदेश लौट रहा था। जिसे जाते देख श्रमी अपने आँसू रोक नहीं पा रही थी। पूरा माहौल गमनाक था और जॉन गाड़ी में बैठ कर शहर होता हुआ विदेश लौट गया।

यह रात कुछ ज्यादा ही बड़ी थी जो काटे नहीं कट रही थी। इधर श्रमी को ऐसा लग रहा था मानो वह बिस्तर पर नहीं सापों के ऊपर लैटी हो उसे एक पल के लिये चैन नहीं आ रहा था। इधर जॉन भी सीट पर बैठा बैठा आँसू बहाता हुआ चले चला जा रहा था।

समय कब पंख लगा कर उड़ा कि पता ही नहीं चला। आज श्रमी इंटर की 11वीं की परीक्षा उत्तीर्ण कर चुकी थी।

आज काफी समय बाद जॉन फिर गांव लौटा और घर पहुंचते ही उसने अपनी माँ से पहला सवाल किया माँ अपने घर जो चाची माँ काम करने आती थीं वह कहां है? माँ ने कहा बेटा अब वह नहीं आतीं। जब जरूरत हो मुझे तब ही आती हैं। वह बोला अब वह नहीं आतीं मतलब? मां ने कहा बेटा उनकी आर्थिक स्थिति अब ठीक हो गयी है इसलिये अब उन्हें किसी के घर में जाकर काम करने की कोई आवश्यकता नहीं। यह सब सुन कर वह चुप हो गया। पिता जी ने कहा चल नाश्ता कर वरना बचपन की तरह खेतों में निकल गया तो हो गयी शाम तक की छुट्टी। इतना सुनते ही वह बचपन की यादों में खो गया फिर किसी तरह जल्दी जल्दी नाश्ता कर घर के बाहर रखी साइकिल पर बैठ कर गांव की ओर निकल गया।

यह देख घर का नौकर हरषू भी जॉन की तरफ साइकिल से निकला। तभी हरषू की माँ ने उसे रोकते हुये कहा बेटा मेरे राशन कार्ड व आधार कार्ड की फोटोकॉपी करवाते आना। वह बोला ठीक है माँ।

हरषू फोटोकॉपी की दुकान पर पहुंचा तो देखा कि सामने गर्ल्स इंटर कॉलेज की तरफ जॉन चारों तरफ़ किसी को खोजते हुए टहल रहा है। हरषू ने पास जाकर कहा भैया आप यहां किसी को जानते हैं क्या?

जॉन ने कहा हाँ जानता हूँ तभी तो खड़ा हूं।

हरषू चारों तरफ देखकर बोला यहां?

जॉन ने कहा यह बताओ इस कॉलेज की छुट्टी कब होगी ?

हरषू ने कहा छुट्टी ही तो है।

जॉन ने कहा क्या मतलब

हरषू ने कहा भैया आज रविवार है।

यह सुनकर दोनों हँस पड़े।

हरषू ने कहा भैया बात तो बताओ?

जॉन ने कहा मैं काशी चाची माँ की लड़की सुलोचना उर्फ श्रमी को ढूँढ रहा हूँ।

हरषू ने कहा अच्छा वह पास गांव वालीं तभी जॉन कुछ और पूछता कि हरषू ने कहा भैया में फोटोकॉपी करवा लूं यह फोटोकॉपी वाला दूर गांव का लड़का है दुकान जल्दी बढ़ा जायेगा वरना जंगल का रास्ता बहुत कठिन होता है रात में। जॉन चुपचाप वहां खड़ा रहा फिर लोगों से पूछते - पूछते काशी चाची के घर तक पहुंच गया। जहां उसने देखा कि लौकी तौरई की बेल वही है पर पता नहीं क्या कमी थी जो उसे वह हरियाली भी रास नहीं आ रही थी। वह अंदर पहुंचा जहां टूटा चूल्हा रखा था पास ही डोरी पर एक पुराना पीले रंग का दुपट्टा टंगा था। वह उस दुपट्टे को हाथ में लेकर रो पड़ा। पूरा घर टूटा पड़ा था घर में मानों वर्षों से किसी ने दिया बत्ती न की हो । वह बाहर निकला तो कुछ ग्रामीणों ने कहा हमने तो पहले ही कहा था कि घर यही है पर रहता कोई नहीं।

वह बोला उनका पुराना घर तो इसके बगल वाला था। यह वो नहीं जहां में बचपन में आया था। तो ग्रामीणों ने बताया कि उनकी बेटी बहुत बीमार थी जिस कारण उनका घर बिक गया और वह यहां छप्पर डाल कर रहने लगे थे। उनकी चार भैंस भी थीं पर बीमारी जो न कराये बाबू कम है? जॉन ने पीछे से उन ग्रामीणों को रोक कर पूछा उनकी बेटी बच तो गयी। ग्रामीण बोले हाँ बच गयी और उसकी तो पास ही के गांव में ससुराल भी है। जॉन ने कहा किस गांव में? ग्रामीणों ने कहा वह तो....

तभी किसी ने जॉन को हिला हिलाकर जगा दिया उठ हॉस्टल है तेरा घर नहीं जो सो रहा है। रिकॉर्ड तोड़ सुलाई है हद है। वह आँख मलते हुये बोला मैं तो सपने में सपना देख रहा था शायद। क्या बदनसीबी है कि सपनों तक में वह नहीं दिखती पता नहीं कब गांव जाने का मौका मिलेगा।

दोपहर हॉस्टल में खाने के बाद उसे पता चला कि उसके माता-पिता उसे मिलने आये हैं। वह दौड़ कर प्रिंसिपल ऑफिस में पहुंचा वहां बैठी माँ के गले से लग गया। माँ ने कहा कैसे हो बेटा। तो बोला ठीक हूं माँ। माँ ने कहा चिंता तेरे माथे पर साफ दिख रही है। बोल क्या बात है? जॉन ने कहा माँ वो काशी चाचीमाँ की बेटी ठीक तो है न। माँ ने कहा बिलकुल ठीक है अभी कुछ महीने पहले ही उसकी शादी हो चुकी । उसने कहा क्या? माँ ने कहा हाँ बेटा। यह सुनकर वह गुस्से से बोला कि किस शहर में है वो? माँ ने कहा कि उसकी शादी किसी हरि भक्त से हुई है वह लोग भगवान के भजन करते शहर दर शहर घूमते हैं। बहता पानी रमता जोगी। पता नहीं कहां होंगे दोनों और कहां हरि भजन कर रहे होगें। तुम्हारी काशीचाची और चाचा भी तीर्थों में निकल गये वहीं रम गये किसी का कुछ पता नहीं बेटा। जॉन ने कहा माँ तुम इतनी निष्ठुर कैसे हो सकती हो? वह लड़की बहुत होशियार थी अच्छी शिक्षा मिलती तो आज बाल बैज्ञानिक होती। आपने कुछ कहा क्यों नहीं। पास में बैठे जॉन के पिता बोले बेटा तू नहीं समझेगा जिसे भगवान नाम की लगन लग जाती है वह लोग दुनिया की नहीं सुनते बेटा। वह बच्ची भी अचानक घंटो ध्यान में खोयी रहती थी। बाद में उसे अपने जैसा ही ध्यानी मिल गया तो दोनों दूर निकल गये। यह सब सुनकर वह चुप हो गया पर इन ज्ञान ध्यान की बातों पर वह पूरी तरह भरोसा न कर सका। बाद में माँ ने उससे कहा देख जॉन मैंने तुम्हारे लिए बहुत अच्छी लड़की ढूँढ़ ली है। अगले महीने घर आ रहे हो न देख लेना अगर जॉब के बाद करने का मन हो तो बता दो। वह बोला माँ मुझे वैज्ञानिक बनना है। मुझे शादी नहीं करनी। मुझे अपनी रिसर्च पर वर्क करना है। दो साल का समय दो माँ प्लीज। माँ ने कहा ठीक है जैसा तुम चाहो।

दो साल बीत जाने के बाद खगोलीय घटना रिसर्च केन्द्र में वह बतौर सीनियर वैज्ञानिक वर्क कर रहा था। वह दिन-रात अंतरिक्ष के तारों और ब्लैक मैटर पर अपनी रिसर्च पूरी करने में लगा था कि एक दिन उसे घर से फोन आया कि माँ कि तबियत बहुत खराब है तुरंत घर आओ। जॉन ने अपने सीनियर से बात की और दूसरे दिन घर पहुंचा।

घर पहुंचने पर देखा कि माँ बुखार में तप रही है। डॉक्टर पास ही में बैठें हैं। वह बोला तुरंत हॉस्पिटल ले चलो। उसकी माँ धीरे से बोली यह जो मेरे बगल में लड़की बैठी है। यही थी जिसके कारण आज मैं जिंदा हूं। वह बोला क्या मतलब? जॉन की माँ ने कहा बेटा मुझे ब्लड कैंसर है। डॉक्टर मुझे सालभर पहले ही जवाब दे चुके थे पर एक दिन मेरी रिपोर्ट इस लड़की के हाथ लग गयी तब से यह मुझे योगा करवाती है ध्यान कराती है। यह शहर छोड़कर यहीं गांव में योग शिविर लगाकर सबका तन मन निर्मल कर रही है। वह बोला माँ मेरे साथ चलो मैं आपका सही इलाज कराऊंगा यह सब फालतू बातें हैं और कौन हैं यह? माँ ने कहा तुम्हारे धीरज अंकल की लड़की जेनेलिया है जो आस्ट्रेलिया में पली बढ़ी यहां आकर योग से जुड़ गयी। वह बोला माँ आप आराम करो फिर डॉक्टर को बाहर ले जाकर उनसे बात करने लगा। माँ ने पीछे से कहा बेटा पास आकर तो बैठ शायद मेरा बुखार जल्दी उतर जाये। यह सुनकर जॉन माँ का सिर सहलाने लगा और बोला माँ मैं साईंटिस्ट हूं समझा करो यह सब आपकी धार्मिक बातें मेरे समझ से परे हैं। जॉन की माँ अपने बेटे का स्पर्श पाकर उसकी तरफ देखते - देखते कब सो गयीं उन्हें पता ही न चला। यह देखकर पास में बैठी जेनेलिया ने कहा आप थोड़ा हटिये मैं माँ के गर्दन से तकिया नीचे कर दूं वरना ब्लड सर्कुलेशन नीचे की तरफ बढ़ जायेगा और सिर में ब्लड रहना जरूरी है। तभी शीर्षासन अमृततुल्य कहा गया है। यह सुनकर जॉन ने कहा ठीक है आप भी आराम कर लो आँखें बता रहीं हैं कि आप रातभर की जगी हो। वह बोली जी ठीक है पहले आपको और पिताजी को खाना परोस दूं। जॉन ने कहा मेरा खाना खाने का बिल्कुल मन नहीं है। वह बोली चुपचाप खाना खा लो वरना आपके कारण पिताजी व माँ भी भूखे रहेगें। जॉन ने कुछ सोचा फिर कहा ठीक है चलो मिलकर खाना परोस लाते हैं माँ को भी जगा कर थोड़ा खिला देगें। थोड़ी ही देर में दोनों रसोईघर में पहुंचे जहां खीर की खुशबू सूँघ वह बोला जेनेलिया यह खीर माँ ने मेरे लिए बनायी। वह बोली हाँ जॉन माँ ने ही बनायी स्पेशल आपके लिए वो भी चढ़े बुखार में पर आप ठहरे साईंटिस्ट माँ की भावनायें आपके रडार में कहां दिखेगीं। जॉन ने कहा साईंटिस्ट आडम्बर अंधविश्वास के खिलाफ़ होते हैं बस। हाँ जब तक मुझे कुछ महसूस नहीं होता मैं नहीं मानता योग ध्यान यह सब। जेनेलिया ने कुछ जवाब देेना चाहा तो वह बोला चलो खाना लेकर डाईनिंग टेबल पर चलते हैं बाहर सब मिलकर खायेगें। वह बोली ठीक है। दोनों खाना लेकर चले कि तभी जॉन को बचपन की दाल बाटी की याद कौंधी वह बोल पड़ा जेनेलिया तुमको दाल बाटी बनाना आता है क्या? वह बोली क्या? तो वह बोला कुछ नहीं चलो मेज पर चलकर खाना लगाते हैं। फिर वह माँ का सिर सहलाने लगा कि माँ की आँख खुल गयी वह बोला माँ खाना खा लो वरना दवा कैसे दूं आपको। जेनेलिया ने कहा हाँ माँ खाना खा लीजिएगा। जॉन अपने हाथ से खिलायेगें आपको है न जॉन। जॉन ने जेनेलिया की तरफ देखा और कहा बिल्कुल माँ। आज मेरे हाथ सेे खाओ बचपन में आप मुझे खिलातीं थीं। आज मेरे हाथ से खाओ। माँ उठीं और हाथ पांव धोकर वापस आयीं। जॉन माँ को अपने हाथ से खाना खिलाने लगा तो माँ भी जॉन को अपने हाथ से खाना खिलाने लगीं। दोनों को प्यार से एक दूसरे को खाना खिलाते देख जेनेलिया और जॉन के पिताजी दोनों बहुत खुश हुये। खाना खाने के बाद जॉन ने कहा जेनेेलिया अंकल आंटी को भी बुलाओ किसी दिन बहुत दिनों से नहीं देेखा। इतना सुनते ही जेनेलिया के चेहरे का मानो रंग ही उड़ गया। जॉन आगें कुछ पूछता कि वह कुर्सी से उठी और वहां से चली गयी। जॉन उसके पीछे - पीछे गया तो देखा कि वह हेलमेट पहनकर अपनी स्कूटी स्टार्ट करके वहां से तेजी से निकल गयी। जॉन तेज कदमों से अंदर आया तो पिताजी ने कहा बेटा हैरान न हो बात यह है कि उसके माँ बाप का दो साल से झगड़ा चल रहा था अभी कु़छ हप्ते पहले यह झगड़ा इतना बढ़ा कि दोनों ने इस उम्र में न सिर्फ़ एक दूसरे से तलाक ले लिए बल्कि अलग - अलग धर्मों के लोगों से दोनों ने पुनर्विवाह भी कर लिया। जॉन ने कहा तो इसमें गलत क्या है जब दो व्यक्तियों को एक दूसरे से ज़ेहन न मिल रहा हो और विश्वास की डोर कमजोर हो चुकी हो तो जबरन रिश्तों के बोझ को ढ़ोने से बेहतर है पुनर्विवाह कर लेना।चलिये खुश तो है दोनों। यह सुनकर माँ ने कहा नहीं जेल में हैं दोनों। जॉन चौंकते हुये बोला क्या जेल में पर क्यों? माँ ने कहा कि जिन दो लोगों से जेनेलिया के माता-पिता ने शादी की असल में वह दोनों ही ठग थे। इन दोनों की जिंदगी में दोस्त बनकर दाखिल हुए और उनका चैन सुकून धन सम्पदा सबकुछ लूट कर घर की नौकरानी के मर्डर में इन दोनों को फँसाकर रफूचक्कर हो गये। जॉन ने कहा अंकल आंटी क्या अपनी नौकरानी का खून भी कर सकते हैं? यह सुनकर पिताजी बोले बिल्कुल क्योंकि जब कोई व्यक्ति किसी के अंधे प्रेम जाल का वशीभूत हो जाये और ऊपर से परिवारी तनाव हो तो वह ऐसी परिस्थिति में कुछ भी कर सकता है बेटा वासना की आग सबसे जालिम आग है जो किसी को भस्म करनेे के बाद अवशेष भी शेष नहीं छोड़ती। बस यही कारण है जेनेलिया अपने माता-पिता से बहुत नफरत करती है कि उसके माता-पिता इस उम्र में अपने जीवनसाथी को छोड़कर कम उम्र के लोगों से प्रेमजाल में फंसकर इज्ज़त दौलत शौहरत सब कुछ गंवा गये और पीछे छोड़ गये एक बदनाम कहानी जिसे झेलकर जेनेलिया ने अपनी पढ़ाई पूरी कि और सब कुछ छोड़ उसे इंडिया आकर नयी जिंदगी शुरू करनी पड़ी। यह सब सुनकर जॉन सन्नाटे में आ गया वह सोचने लगा कि यह कैसा प्रेम कि अपनी बेटी का भविष्य भी याद न रहा। माँ ने जॉन को हिलाते हुए कहा क्या सोच रहा है बेटा? वह बोला कुछ नहीं माँ। माँ ने कहा बेटा मुझे यह बच्ची बहुत पसंद है बस तू हाँ कर दे तो जल्द सगाई कर दूं। जॉन ने कहा क्या माँ मैं जेनेलिया का नेचर नहीं जानता अचानक कैसे शादी कर लूं। पिताजी बोले तू नहीं जानता पर हम तो जानते हैं कि वह अकेली लड़की खुद से लड़ रही है और उफ्फ तक नहीं करती। वह बहुत संस्कारी बच्ची है। तुझे पता है वह माता पिता की बात सुनकर चुपचाप यहां से उठकर क्यों चली गयी? क्योंकि वह अपने माता-पिता की बुराई नहीं करना चाहती थी। यह होते हैं संस्कार। बेटा तुम ठंडे दिमाग से सोचो। कल आराम से बताना। जॉन कुछ देर चुप रहा फिर माता-पिता की नम आँखों को देखकर बोला ठीक है आप जैसा उचित समझें। हाँ जेनेलिया ने बहुत कुछ सहा है। अब हम सब उसका परिवार हैं। यह सुनकर माँ ने उठकर जॉन को गले से लगा लिया।

जॉन खाने के सभी बर्तन उठाकर रसोईघर में रख देता है फिर सोचता है कि सुबह तक यह बर्तन सूख जायेंगे चलो मैं ही धो कर रख देता हूँ। माँ पीछे से आवाज लगाती है बेटा जॉन तू बर्तन मत धो। सुबह मैं धो दूंगी और बर्तनवाली भी सुबह आयेगी न। यह सुनकर जॉन के पिताजी उठे और बोले बर्तन धोने वाली क्या इंसान नहीं है। इतनी ठंड में उसके हाथ नहीं ठिठुरेंगे क्या? सुबह आते ही बर्तन...। यह कहते हुये जॉन के पिताजी रसोईघर में आये और बोले तू स्पीड से धो दे और मैं स्पीड से यहां लगा देता हूं। सुन! यह काम करते हुए हम बाप बेटे यहां खड़े-खड़े दो बातें ज्यादा कर लेंगे समझा कर। यह सुनकर जॉन हँस पड़ा और बोला अच्छा ठीक है। दोनों को रसोईघर में हँसते देख बाहर बैठी जॉन की माँ के चेहरे पर भी मुस्कुराहट नाच उठी और सुकूनभरी मुस्कुराहट लिये वह कब नींद की आगोश में चली गयीं उन्हें पता ही न चला। बाद में जॉन ने उन्हें जगाकर दवा खिलाने की बहुत कोशिश की पर वह गहरी नींद में थीं वह नहीं जागीं। जॉन को उनकी तबीयत की चिंता सताने लगी तो पिताजी ने कहा सो जा तू भी आज तेरी माँ बहुत खुश है। उसको इन दवाओं की नहीं तेरी जरूरत थी। तुझे हँसता मुस्कुराता देख सुबह तक एकदम भली चंगी हो जायेगीं देख लेना। जॉन ने कहा आप लोग और आपके विश्वास के आगे मेरी सारी पढ़ाई हार जाती है। अब चलो चलकर सोते हैं।

जॉन और जॉन के पिताजी दोनों हँसते हुये अपने कमरों की तरफ बढ़े ही थे कि जॉन ने कहा क्या मैं आपके साथ सो जाऊँ। वह बोले अहोभाग्य हमारे। यह सुनकर जॉन हँस पड़ा और बोला पर ज्ञान वैराग्य की बात करके मुझे पकाना मत समझ लो। आज मैं आपको अपनी रिसर्च की बारें में बताऊंगा। कभी मुझे भी सुन लिया करें आप। पिताजी हँसते हुये बोले चल अच्छा आज सिर्फ़ तुझे ही सुनूंगा। तू अंगवारी से अपनी चादर निकाल ले और उठा ला अपना लैपटाप भी। वह बोला ओके अभी आता हूँ सो मत जाना। कुछ देर बाद जॉन लैपटाप के जरिये अपने पिताजी को अपनी स्पेस में होने वालीं रिसर्च की जानकारी देने के बाद बोला पिताजी जब मुझे कुछ समझ नहीं आता तो मुझे मेरे सपनों में मेरी प्रोब्लम का हर सोल्यूशन मिल जाता है। मैंने बहुत सी चीजें सपनों में सुलझायी है। अनेकों जवाब मैंने अपने सपनों में पाये। यह सुनकर पिताजी ने कहा बेटा यही तो मैं भी कहता हूँ कि सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड हमारे भीतर है वह भी ब्रह्माण्ड की ध्वनि और अनंत उर्जा के साथ। जब व्यक्ति अपने कान बंद करके आँखों की पुतली को ऊपर चढ़ाकर ध्यान से स्वयं को सुनने का प्रयत्न करता है तो वह उस दिव्य ध्वनि को सुन सकता है। वही जो सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में गूंज रही है। जॉन पिताजी को बीच में टोकता हुआ बोला कि पुतली ऊपर क्यों? पिता जी ने कहा क्योंकि जब पुतली सामने होती है तो विचार आते हैं जब पुतली नीचे होती है तो नींद आती है और जब ऊपर होती है तो एकाग्रता आती यानी ध्यान सँधता है। जॉन ने के कहा अच्छा। पिताजी ने उसके गाल पर हाथ थपथपाते हुये कहा जब तू अपने सवाल अपने सपनों में सुलझा सकता है तो सोच कि अपने शरीर का हर रोग भी ठीक कर सकता है। बस बात है स्वयं के भीतर विश्वास और एकाग्रता की। यह सुनकर जॉन ने कहा हाँ यह तो सच है कि जब व्यक्ति दिल से खुश होता है तो उस समय वह किसी भी भयंकर रोग के दर्द को कम होता हुआ देख सकता है पर पूरी तरह नहीं पिताजी। पिताजी ने कहा तुम जबर्दस्ती मेरी बात पर भरोसा मत करना बेटा जब तक तुम स्वयं महसूस न करो। हाँ पर कुछ समय खुद को महसूस करने के लिये जरूर निकालो कि आखिर! क्या ऊर्जा है वह जो शरीर को गतिमान किये है। क्या ऊर्जा है वह जो हमारी समस्यायें सपनों में आकर हल कर देती है। क्या ऊर्जा है वह जो अचानक निकल जाये तो यह शरीर मिट्टी हो जाता है। यह सुनकर जॉन बहुत देर शांत रहा और बोला हाँ यह बात ठीक कही आपने। कि हम सभी को यह बात गम्भीरता से सोचनी चाहिये। पिताजी उठे और जॉन के पीठ पर हाथ रखते हुये बोले बेटा तू जो अपने सपने में सपने देखता हुआ समस्याओं को सुलझा लेता है तो यही वह दिव्य शक्ति है जिसे तेरी भाषा में गॉड गिफ्ट कहते हैं। तू इस शक्ति को पहचान। मेरा विश्वास है जरूर किसी नेक मकसद के लिये ही दी गयी है तुझे। उस कुदरत को तुझसे कुछ अपना काम करवाना है या तेरा कोई बड़ा काम इस शक्ति द्वारा सफल होने वास्ते तुझे यह पॉवर दी गयी है। तू इसे पहचान। तू इस पर ध्यान लगा बेटा। लोग अंतरिक्ष में तारे, ग्रह व परग्रही पूर्वजों को ढूंढ़ते हैं तू खुद में खुद को ढूंढ़ । तू वह जीवनदायिनी शक्ति ढूंढ़ जिसे कोई नहीं ढूंढ पाया। तू ढूंढ की सपनों की यह गुफा और कितनी गहरी है और कितनी रहस्यमयी। यह सुनते ही जॉन के दोनों हाथ के रोयें खड़े हो गये और बोला पिताजी आप यहीं मेरे पास ही सो जाइये कहां जा रहे। पिताजी बोले बेटा घड़ी देख चार बजने वाले हैं और यह मेरा ध्यान का समय है। तू यहां ध्यान कर मैं वहां ध्यान करता हूँ। जीवन खाने और सोने का नाम नहीं जीवन जीवन की खोज का नाम है बेटा। यह सुनकर जॉन उठा और पिताजी के सीने से लग गया और बोला मुझे माफ कर दो पिताजी मैंने आपकी बातों को पकाऊ कहकर अपमान किया। वह बोले कोई बात नहीं तेरा दिल साफ है जो दिल में आया कह दिया। तू आराम कर ले जिस दिन अंदर से दिल करे तभी ध्यान लगाना।

जॉन अपने पिताजी के बिस्तर पर उनके चादर को अपने सिर के नीचे दबाकर सो गया और सपनों की दुनिया में दाखिल हो गया जहां वह चारों तरफ़ हरियाली ही हरियाली देखता है कि चारों तरफ़ फूलों से सुगंधित पौधों और फलों से लदे बागों को देखता हैं। वह देखता है कि फूलों और फलों का आकार एक सीमा से ज्यादा बड़ा है। तभी उसने देखा कि एक बड़ा सा फल पेड़ से टूट कर नीचे जमीन की हरी - हरी घास पर गिरा तो जमीन की हरी घास से खून बहने लगा और वह कराह उठी। वह तेजी से दौड़ कर उस खून से सनी घास तक जाने को भाग रहा पर करीब होते हुये भी वह वहां पहुंच नहीं पा रहा कि तभी मानों सपनों की कोई चुम्बकीय रहस्यमयी शक्ति उसे दूसरी ओर खींच ले गयी कि वह बचपन की यादों में श्रमी के साथ चूहों को पकड़ने लगा और फिर पेंसिल की छीलन को दूध में डाल कर दोनों बोले सुबह तक रबर बन जायेगी तब हम लोग रबर - रबर खेलेंगे। फिर दोनों उस दूध को छोटे पिल्ले को पिलाते हुये कहते हैं चलो हमने इरादा बदल लिया रबर नहीं बनायेंगे लो पेंसिल की छीलन हटा दी चल तू भूखा है तू ही पी ले। तभी उस पिल्ले की माँ जॉन और श्रमी के पीछे भागी और दोनों उससे बचकर तेज भागते हुये एक पेड़ पर चढ़ गये यह देख श्रमी ने कहा तूने पेड़ पर चढ़ना कब सीख लिया। जॉन ने कहा अभी-अभी। मेरा मतलब जब जान पर बन आती है तो इंसान पेड़ क्या कहीं भी चढ़ जाये। यह सुनकर श्रमी जोर से हँस पड़ी और अचानक गायब हो गयी। उसे वहां से गायब होते देख जॉन जमीन पर गिर पड़ा जिसे कुछ कुत्तों ने घेरा हुआ है। खुद को इस तरह खूँखार कुत्तों में घिरा देख जॉन के चीख पड़ा और वहां से सब कुत्ते भी गायब हो गये। उसने चारों तरफ़ देखा कि उसके सामने एक बहुत विशालकाय हाथी खड़ा है जिसके सामने वह खरगोश जैसा लग रहा कि तभी उसने स्वयं को उस हाथी पर बैठा देखा और वह चौंका कि मैं तो यहां खड़ा हूँ फिर हाथी पर मुझ जैसा कौन है तभी उसने खुद को देखा कि वह तो बिस्तर पर सोया पड़ा है तो फिर हम दो यानी बिस्तर पर सोये। खुद को जोड़ कर हम तीन कौन हैं? तभी उसने देखा कि दूर खड़ी श्रमी बोली तुम तो मेरे साथ दाल बाटी खा रहे हो पर तुम वहां कौन हो? तभी उसने देखा कि हिमालय की कंदरा में एक साधू तपस्या कर रहा है वह धीरे - धीरे उस तक पहुंचा और जब उसका चेहरा देखा तो उसकी आंखों से आग निकल रही थी वह चौंका कि अरे यह तो मैं हूँ। वह चारों तरफ खुद को देख कर बुरी तरह डर गया और अपने दोनों कान बंद करके चीखने लगा पर उसकी आवाज़ मुंह से बाहर नहीं निकल रही थी कि माँ ने आकर उसके ऊपर ठंडा पानी डाल कर हिलाया कि उसकी आँख खुल गयी और वह उठ कर बैठ गया।

माँ ने कहा तू क्या बड़बड़ा रहा था। और इस जनवरी की इस कड़ाके की सर्दी में तू पसीने से भीगा क्यों पड़ा है? तू आज ही जाकर डॉक्टर को दिखा। जॉन उठा और अपना चश्मा लगाया फिर अपने बदन पर हाथ रखा वह आश्चर्य से बोला हाँ माँ इस मौसम में इतना पसीना पर मुझे तो बुखार भी नहीं। माँ ने कहा बेटा क्या कोई डरावना सपना देखा? वह बोला हाँ माँ आज मैंने तीन चार सपने लगातार देखे आप मुझे न जगातीं तो शायद मैं कभी उस दुनिया से इस दुनिया में न लौट पाता। मेरा सिर चकरा रहा है। बहुत दिल घबरा रहा। वह अपना सपना माँ को बताने ही वाला था कि जॉन के पिताजी ने आकर उसके माथे पर पूजा का चंदन लगा दिया और कहा चल देख तेरी माँ और तेरे इस पिता ने मिलकर कितना सुन्दर मंदिर सजाया है चल फटाफट नहा धोकर तैयार हो जा आज मकर संक्रांति का पावन पर्व है हम लोग आज दान धर्म करेंगे। जॉन ने कहा मैं नहा कर आता हूँ। थोड़ी देर बाद सभी ने मिलकर पूजा-पाठ की और दान आदि करके जब वह सभी खिचड़ी खाने बैठे तो जॉन बोला माँ तू ठीक है कल तूने दवा भी नहीं खायी थी। माँ ने मुस्कुराते हुये कहा कि हाँ मैं बिल्कुल ठीक हूँ और तेरा मन घबरा रहा था ठीक हुआ? तो जॉन ने कहा हाँ माँ बिल्कुल नॉर्मल हूं। पिताजी ने कहा जब व्यक्ति भगवान की पूजा-पाठ दान धर्म सत्कर्म करता है तो उसका मन बिल्कुल शांत हो जाता है। जॉन ने कहा पिताजी आपके बिस्तर पर क्या सोया कि मैं मर ही गया होता आज। पिताजी हँसते हुये बोले बेटा कुदरत सपने के बहाने तुझे कुछ इशारा कर रही है। तू उसके इशारे को समझने की कोशिश कर उसकी आवाज़ को सुनने की कोशिश कर। सपने किसी की जान नहीं लेते बल्कि संदेश देने की कोशिश जरूर करते हैं। यह मानव का शरीर इतना रहस्यमयी है कि जिसे समझना बहुत कठिन। आज मानव ने बाहर की यात्रा और खोजों से बहुत ऊँचाई हासिल की है पर अंदर की यात्रा का मार्ग ही अवरूद्ध कर बैठा। मुझे डर है कि आने वाले मॉर्डन युग में कहीं मनुष्य बिल्कुल अकेला न रहा जाये और जानवरों की श्रेणी तक न गिर जाये। यह सब सुनकर जॉन ने कहा आप की बातें मेरे अंदर बहुत कुछ हिला देती हैं। पिताजी यकीन रखो एक दिन मैं खगोलीय रहस्यों और अपने सपनों के रहस्यों की पहेली भी जरूर सुलझा लूंगा। आज से मैं भी योगा और ध्यान करूंगा आध्यात्म से जुड़ते हुये काम करूंगा। यह सुनकर पिताजी ने कहा बिल्कुल अगर विज्ञान और आध्यात्म दोनों मिल जायें और नयी सोच के साथ आगें बढ़े तो ज्ञान की क्रांति निश्चित है। हम जरूर प्रकृति के रहस्यों तक पहुंच सकेंगे। वह दोनों बात ही कर रहे थे कि जेनेलिया ने आकर कहा माँ जी नमस्ते अब तबीयत कैसी है? माँ ने कहा जिसकी तुझ जैसी बहू हो उसे क्या हो सकता है। मैं एकदम भली चंगी हूँ। जेनेलिया ने कहा बहू? माँ ने कहा हमारे साइंटिस्ट साहब ने तुमसे शादी के लिये हाँ कर दी है। जेनेलिया ने कहा क्या? यह सुनकर जॉन ने कहा हाँ जेनेलिया माँ बिल्कुल ठीक कह रही हैं बाकी तुम्हारी मर्जी। जेनेलिया ने कहा मैंने प्रसाद की खिचड़ी बनायी है जो बाहर सभी को दोने पत्तल में बांटनी है चलो जॉन आप बाहर आकर मदद करो माँ पापा आप शुरूआत कीजिए आकर, कहकर तेजी से बाहर चली गयी। माँ ने कहा देखा जॉन हमारी पसंद, है न बहुत खास। जॉन ने कहा हाँ माँ। सभी बाहर निकले और पूरे गांव में खिचड़ी का प्रसाद बांटा गया।

कुछ महीनों बाद जॉन को पता चला कि माँ ने कैंसर को भी मात दे दी है। उनकी सभी रिपोर्ट नॉर्मल है और वह गरीबों की मदद पूजा ध्यान में बहुत खुशी से भजन कीर्तन में मगन है। इस घटना ने जॉन को सोचने पर विवश कर दिया किया कि ध्यान और आध्यात्म से इतनी गम्भीर बीमारी भी ठीक हो सकती है। यह सचमुच मजबूत मनोबल और उनके अच्छे विचारों व उनके विश्वास की जीत है। तो क्या मैं भी अपने सपनों की गहराई नाप सकता हूं। मैं भी खुद को जान सकता हूं। यही सब सोच ही रहा था कि माँ की कॉल आ गयी जिसमें उन्होंने बताया कि अगले हप्ते घर आ जा शादी की डेट फाईनल हो गयी है।

आज शादी का दिन भी आ गया और जॉन के कहनेनुसार बिल्कुल साधारण तरीके से शादी सम्पन्न हुई जहां दोने पत्तल व मिट्टी के कुल्हड़ प्रयोग में लिये गये। पूरे प्राकृतिक माहौल में जॉन व जेनेलिया की शादी सम्पन्न हुई। सब लोग खुश थे पर जॉन के मन में श्रमी को दोबारा न देख पाने की इच्छा मानो किसी तेज लौ के साथ फिर जल उठी थी। उसका मन बहुत बैचेन हो उठा कि वह कहां होगी कैसी होगी। काश! उसे एक बार खुश देख पाता। आजकल ढ़ोंगी बाबा भी कम नहीं है पता नहीं उसे कौन बाबा ले गया। कहीं उसके साथ कुछ गलत न हो गया हो। यह सब सोचकर वह तड़प उठा और उसने निश्चय किया कि मैं श्रमी को ढ़ूंढ़ कर ही रहूंगा। चाहे जो हो मैं उसे खोजूंगा। वह गहरी सोच में डूबा रहा। काफी देर बाद जेनेलिया ने उसे हिलाते हुये कहा जॉन। जॉन चौंका हाँ जी। जेनेलिया ने कहा आज हमारी गोल्डन नाईट थी घड़ी देखो तीन बज चुके हैं सो जाओ। कल बात करेगें। जॉन ने कहा जेनेलिया मेरी बात सुनो पहले तो सॉरी। दूसरी यह कि बचपन में मैं इसी गांव की एक श्रमी नाम की लड़की के साथ बहुत खेला कूदा पर आज तक दोबारा कभी उससे नहीं मिल सका। मेरा मन उसे दोबारा देखने को इतना बेचैन है कि मुझे कहीं चैन नहीं आता है। उसकी गरीबी ने उसके साथ कुछ बहुत गलत तो नहीं कर दिया। तुम मेरी बीवी हो मैं तुमसे कुछ नहीं छिपा सकता जेनेलिया। हो सके तो मुझे मोरल सपोर्ट दो ताकि उस तक पहुंचने का रास्ता खोज सकूं। जेनेलिया यह सुनकर अंदर तक टूट गयी कि जिस दिन इसे इसकी श्रमी मिल गयी यह मुझे निश्चय ही छोड़ देगा जैसे मेरे माँ बाप ने एक दूसरे को छोड़ दिया था। चलो ऐसा करतीं हूं कि जब जॉन को श्रमी ही पसंद है तो मैं इसकी श्रमी का हक नहीं मारूंगीं अब। अब मैं जॉन से दूर रहने की कोशिश करूंगी और वह मन ही मन अपने सारे आँसू पी गयी। जॉन ने कहा जेनेलिया क्या हुआ तुम इतनी चुप क्यों? जेनेलिया वहां से उठ कर खिड़की पर जाकर खड़ी हो गयी और अपने आँसू पोछ कर मुड कर मुस्कुराते हुये बोली जॉन हम पहले अच्छे दोस्त साबित होंगे। उसके बाद पति पत्नी का रिश्ता कायम करेंगे। जॉन कुछ बोलता कि जेनेलिया ने कहा आपको मेरी कसम। जॉन ने कहा जेनेलिया तुम क्या कह रही हो। वह बोली जब तक हम दोनों मिलकर श्रमी को ढढ़ नहीं लेते तब तक हम चुप नहीं बैठेगें। जॉन ने कहा जेनेलिया तुम दुनिया की सबसे अच्छी इंसान हो जिसके अंदर इतनी इंसानियत है।

एक साल की कड़ी मेहनत दौड़भाग पुलिस पड़ताल के बाद भी जब श्रमी का कहीं पता न चला तो एक दिन जॉन घर में स्थापित भगवान के मंदिर बाहर बैठ कर फूटफूट कर रो पड़ा। जेनेलिया ने जब जॉन को इस तरह रोते देखा तो वह सबकुछ भूल जॉन को गले से लगाते हुये बोली आप क्यों चिंता करते हो। जहां दर्द है दवा भी वहीं आसपास ही होती है। फिर कुछ सोचते हुये जेनेलिया ने कहा जॉन यह श्रमी का दर्द आपके मन के किसी कोने में है उसी मन के किसी कोने से आपको अजीबोगरीब सपने आते हैं।आप जरा सपनों पर फोकस करो क्या पता सपने ही किसी रास्ते की खबर दें। कभी-कभी खुली आँखों से हम उतनी दूर नहीं देख पाते जितनी बंद आँखों से। जेनेलिया कि बातें सुन उसे पिताजी की बातें याद आयीं कि तुम्हें जो सपनों की दुनिया में जाकर प्रोब्लम सोल्व करने का गॉड गिफ्ट मिला है वह भी किसी खास मकसद के लिये उसे सोचो। जॉन ने कहा जेनेलिया जिस रूम में पिताजी और माँ ध्यान करते हैं मैं वहां जाकर ध्यान करूं क्या? जेनेलिया ने कहा उधार की दिव्यता कब तक? आप इसी रूम में ध्यान करो और खुद के अंदर गूंज रही उस रहस्यमयी आवाज़ को सुनने की कोशिश करो जो सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में गूंज रही है। बाकी मैं आपके साथ हूँ चिंता न करो।

जॉन ध्यान में ऐसा खोया कि कई दिनों तक उसने देश दुनिया की खबर ही नहीं ली। एक महीना बीत गया पर उसे कोई संकेत नहीं मिला। एक दिन जॉन की माँ ने जॉन के सिर पर हाथ रखा और कहा बेटा मुझे आज सपना आया है कि तुम दोनों नैनीताल घूम रहे हो। पास में बैठे पिताजी ने कहा घूम ही आओ बहुत अच्छी जगह है। जॉन चौंका और बोला माँ आज मैंने भी यही सपना देखा कि हम नैनीताल में बोटिंग कर रहे हैं। तभी जेनेलिया ने कहा कि आज मैंने किसी देवी की चमकती आँखें देखीं और मेरी आँख खुल गयी। जॉन मुस्कुराया कि मिल गया संकेत मैं जरूर नैनीताल जाऊंगा। पिताजी ने उसकी मुस्कुराहट पढ़ ली और बोले जेनेलिया बेटा जाओ पैकिंग करो आज शाम की गाड़ी से निकल जाओ दोनों। जेनेलिया लजाते हुए रसोईघर की तरफ़ बढ़ गयी और माँ ने कहा आप भी न। सब हँस पड़े। इधर कुछ देर बाद जेनेलिया और जॉन अपने रूम में आये तो जॉन ने कहा हो न हो श्रमी नैनीताल में ही हो वह भी पावन तीर्थ स्थल है जहां बाबा वैरागियों का डेरा रहता है।वहीं श्रमी हो पर मैं उसे पहचानूंगा कैसे? जेनेलिया ने कहा कुदरत बहुत महान है जरूर पहचानने में आपकी मदद करेगी। आप सच के रास्ते पर हो किसी गरीब की मदद के रास्ते पर हो यह पूरी नेचर आपकी हेल्प करेगी। चलो अब जल्दी - जल्दी सामान पैक कर लेते हैं ठीक है। शाम हुई और दोनों माता-पिता के पांव छू कर घर से निकल गये।

दोनों ट्रैन में बैठकर साईंस की नवीन खोजों और आध्यात्मिक बातें करते रहे। सुबह उनकी गाड़ी ने उन्हें उत्तराखंड हल्द्वानी पहुंचा दिया। वहां पर उन्होंने नैनीताल के लिए बस की जहां से उन्हें ऊँचे-ऊंचे वर्फ से ढ़के पहाड़ों के शिखर दिखाई देने लगे। बस कंडक्टर ने सभी को हिदायत दी कि वह खिड़की से नीचे बिल्कुल न झांके नीचे बहुत गहरी खाई है। यह बस सैकड़ों मीटर की ऊंचाई पर है। जॉन ने धीरे से नीचे देखा तो उसका दिमाग घूमने लगा और वह चुपचाप सीट पर आँखें बंद किये बैठा रहा। पीछे से कंडक्टर ने जॉन से कहा नैनीताल में कहां जाना है आपको? जॉन ने कहा श्मशानघाट जहां लोगों का अंतिम संस्कार होता है। यह सुन कंडक्टर उसके चेहरे को देखता रह गया। करीब दो घंटे बाद कंडक्टर ने कहा उतरो बाबू और श्मशानघाट के लिये वह बस और वह रिक्शा ले लो। जॉन और जेनेलिया दोनों ऑटोरिक्शा से एक बहुत वीरान जगह पहुंचे जहां दूर-दूर तक कोई इंसान और न ही कोई इंसानी बस्ती ही थी। वह पैसे देने के लिये जैसे ही मुड़ा कि ऑटोरिक्शा भी बिना पैसे लिए वापस जा चुका था। जेनेलिया ने कहा आगें चलो चलकर देखते हैं। दोनों घूमते-घूमते एक सूखे पेड़ के नीचे बैठ गये कि जॉन वहीं आँख बंद करके लेट गया तो उसे श्रमी की आवाज़ सुनाई दी कि जॉन तुम और यहां? तुम्हें नहीं पता कि आज मैं कितनी खुश हूं। जॉन ने कहा श्रमी तुम प्लीज़ मुझे दिखो तुम्हें देखने के लिए यह आंखें वर्षों से तरस गयीं हैं। श्रमी कहती है ऐसा कोई पल नहीं गया जब मैंने तुम्हें न सोचा हो जब तक जिंदा थी और अब मरने के बाद भी। जॉन चौंक कर बोला क्या कहा तुमने कि तुम मर गयी पर कैसे? तुम्हें किसने मारा? वह बोली हाँ दो साल पहले मुझे मार दिया गया। जॉन ने कहा पर तुम्हें मारा किसने? श्रमी ने कहा मुझे भीड़ तंत्र ने मारा और बाद में इसी नैनी तालाब में मुझे फैंक दिया गया। जॉन ने कहा पूरी बात बताओ प्लीज़। श्रमी की आवाज़ आयी कि मैं और मेरे पति तीर्थयात्रा को निकले थे जब हम हल्द्वानी पहुंचे तो दो राजनीति गुट के कुछ लोग विपक्षी पार्टी के किसी नेता को पीट रहे थे जिसमें यूनिवर्सिटी के कुुछ गरीब लड़के भी शामिल थे। मेरे पति ने उन लड़कों में से अपने गांव के लड़़कों को पहचान कर उन्हें उस भीड़ से खींच कर पूछा कि क्यों दंगाई बन रहे हो। वह बोले तीन हजार रुपये मिले हैं हाथ गरम करने के लिए फीस भरने के काम आयेगें जॉब तो वैसे भी नहीं मिल रही तो यही काम सही। यह सुनकर मेरे पति ने गुस्से से एक चांटा उसे मार कर कहा अरे! पागल पुलिस पकड़ ले जायेगी और इन तीन हजार में तुम्हारी जमानत तक न होगी। कोई नेता तुम्हें जेल से बाहर नहीं निकालेगा। तुम्हारे मां बाप जीते जी मर जायेंगे। जरा सोचो यह नेता अपने बच्चों को रूपये देकर क्यों नहीं किसी को पिटवाते। हमेशा गरीब ही क्यों पीसा जाता है। तभी वह भीड़ चिल्लाते हुई आयी और मेरे पति से बोली तू विपक्षी की तरफ से है तेरी इतनी हिम्मत की तूने मेरे लड़कों पर हाथ उठाया और आक्रोशित भीड़ बिना सोचे समझे मेरे पति पर टूट पड़ी जब मैंने बीच बचाव करना चाहा तो मुझे भी बहुत पीटा गया और उस उन्मादी भीड़ की हॉकी की चोट से हम दोनों की हत्या कर दी गयी। उन्हीं में से दो लोग हमें अस्पताल ले जाने के बहाने एक गुप्त जगह ले गये और वहीं हमें बोरों में भरकर नैनी तालाब में फिंकवा दिया गया।

यह हृदयविदारक घटना सुनकर जॉन की आँखों में आँसू आ गये। वह गुस्से से चिल्लाया कि मैं उसे छोड़ूगा नहीं। श्रमी ने कहा जॉन तुम परेशान न हो जिसने मुझे बोरे में भरा और जिस नेता ने उन बच्चों को किसी को मारने के लिए पैसे दिये थे। पिछले महीने ही वह सब लोग की बस और कार इसी खाई में गिरी जिसमें दस लोग बचे बाकी सब मारे गये। जॉन ने कहा वह दस लोग जो बचे? श्रमी ने कहा वह दस लोग निर्द्रोष थे या जिनकी मौत अभी आयी नहीं थी। श्रमी ने कहा केवल उन नेताओं के मरने से कुछ सुधरने वाला नहीं सब कुछ सिस्टम और सियासत की जुगलबंदी का दोष है। जॉन ने कहा श्रमी तुम तो धार्मिक लड़की थी कभी किसी का बुरा नहीं किया तो तुम्हारे भगवान ने तुम्हें क्यों नहीं बचाया? तुम्हें अभी तक पुनर्जन्म क्यों नहीं मिला? श्रमी जोर से हँसी और बोली मेरी तुमसे बात हो रही क्या यह ईश्वर की लीला नहीं और रही बात पुनर्जन्म की तो तुम मुझे जिस शिद्दत से याद कर रहे थे मुझे शांति नहीं मिल रही थी। तुम्हारी याद की पुकार मुझे हमेशा संसार में बांधें रही। जॉन ने कहा जब तुम मरी तो तुम्हारे साथ क्या हुआ कुछ बताओ। वह बोली यह सब कुछ बताना तो सम्भव नहीं हाँ एक बात तुम्हें जरूर बता दूं कि भगवान बहुत दयालु है जिस तरह हम लोग जाने अनजाने हजारों पाप करते रहते हैं वह चाहे तो गुस्से से तुरंत भस्म कर दे पर वह माफ करने के मामले में बहुत ही कृपालु व दयालु है। जॉन ने कहा कमाल हो भटकी आत्मा होकर भी भगवान के गुन गा रही हो। वह हँसी और बोली भगवान ने मुझसे पूछा था कि तुम्हें किस योनी में जाना है या तुम जब तक चाहो यहीं देवतागणों के साथ रह सकती हो और प्रकृति के कार्यों में मदद कर सकती हो। हमने कहा प्रभु मुझे आपकी इतनी विराट दिव्य ज्ञान से भरी प्रकृति को समझने में बहुत समय लगेगा तब मैं प्रकृति के कार्यों में आपके गणों की मदद कर पाऊंगी। मेरी विनती है कि आप मुझे इंसान न बनाकर प्रेम की हरियाली का पुनर्जन्म दें। आप मुझे धरती पर हरियाली रूप में हरी-हरी घास बनाकर भेज दें। जिस पर बच्चें खेलें जिस पर साधु संतों पीर फकीरों के पांव पड़े जिसपर दो प्रेम करने वाले बैठ कर प्रेम की बातों एहसासों की ठंडी फुहारें छोड़े। जिस पर बैठ पक्षी गुनगुनायें। जिस पर बैठ कवि अपनी कविताएँ लिखें। चित्रकार सुन्दर चित्र बनायें। गीतकार मधुर धुन तलाशें। जिस पर बैठ लोग पूजा-पाठ इबादत और प्रार्थनाएं करें और जिस पर बैठ हर कोई सुकून पाये। भगवान ने कहा अति उत्तम तथास्तु बेटी। तुम्हारे इस सुन्दर निर्णय से प्रसन्न होकर हम तुम्हें यह वरदान देते हैं कि तुम किसी एक व्यक्ति के सपने में जाकर एक बार बात कर सकोगी। अपनी आपबीती कह सकोगी। जॉन ने कहा कि श्रमी तुमसे बात हो गई यह बहुत बड़ी बात है वरना मैं मर ही जाता। एक अंतिम बात यह बताओ कि तुमने अपने पति से बात करने को वरदान क्यों नहीं चुना। श्रमी ने कहा मेरे पति के पुण्य बहुत हैं उन्हें मनुष्य योनि मिली है। वह साधु भिझुक पीर फकीर किसी न किसी रूप में यहीं आयेगें। मैं हर जगह अपने इस हरियाली रूप में उनका साथ महसूस कर सकती हूँ। जिसकी जैसी सोच होती है उसकी वही नियति बन जाती है । भाई मेरा तुमसे बात करना ज्यादा जरूरी था। जॉन ने कहा श्रमी तुम्हें पता है तुम मेरी वो प्यारी बहन हो कि बचपन में जो तुमने मुझे किसी फूल की बेल को तोड़ कर जो मुझे राखी बांधी थी। वह बंधन मुझे हमेशा तुम्हारी याद दिलाता था। सोचता था मैं तुम्हारी रक्षा न कर सका। मैंने तुमको हमेशा के लिये खो दिया। यह कह कर जॉन रो पड़ा और उसका आँसू जमीन पर सूखी घास पर गिरा और वह घास करेंट की रफ्तार से हरी होती चली गयी। देखते ही देखते वह पूरा स्थान हरियाली से ढ़क गया।

जॉन चारों तरफ़ हरियाली देख दोनों हाथ फैलाए नाच उठा और बहुत देर तक नाचता रहा कि तभी उसे सुन्दर बांसुरी की आवाज़ सुनाई दी और तेज प्रकाश दिखाई दिया मानों हजारों सूर्य एक साथ चमक उठे हों। वह कुछ समझ पाता कि उसकी आँख खुल गयी। उसने देखा कि आँख खुलने के बाद भी उसे वही प्रकाश दिख रहा था और खुले कानों से उसे दिव्य बांसुरी की आवाज़ सुनाई दे रही थी। सामने चारों तरफ़ भीड़ लगी थी जेनेलिया जोर - जोर से रो रही थी। वह बोला क्या हुआ जेनेलिया? जेनेलिया ने कहा आपको याद है जब बस कंडक्टर ने कहा था कि नीचे मत देखना नीचे खाई है तो आपने जानबूझ कर नीचे देखा फिर सो गये। आपको पता है तब से आज दूसरा दिन है यह नैनीताल होटल का कमरा न. 11 है और आप पूरे 24घंटे बाद जागे हैं। डॉक्टर तो कह रहे थे कि आप कोमा में जा चुके हैं। पता है मैं कितनी परेशान थी। आपकी बचपन की दोस्त को बाद में ढूंढना पहले चलो किसी मनोवैज्ञानिक को दिखाते हैं कि यह सपने ही हैं या कोई बीमारी । जॉन धीरे से मुस्कुराया और अपने हाथ से जेनेलिया के आँसू पोंछते हुये उसे अपने सीने से लगा लिया और कहा सुनो! जेनेलिया, श्रमी मेरी छोटी बहन है उसने बचपन में मुझे फूलों की बेल की राखी बांधी थी। मैं उसकी रक्षा न कर सका इसलिये हरपल बैचेन रहता था। जेनेलिया ने जब बहन शब्द सुना तो वह जॉन की आँखों को देखते हुये बोली मुझे माफ कर दो। मैं कुछ और ही समझ रही थी पर कोई भाई अपनी बहन के लिए भी इतना फिक्रमंद हो सकता है यह मैंने आज जाना। जॉन ने कहा कोई बात नहीं। जेनेलिया ने महसूस किया कि जॉन का मन प्रेम और करूणा से भर गया है। वह फिर से जॉन के गले लग गयी और बोली कि क्या मैं जान सकती हूँ कि आप इतने शांत और निश्चिंत कैसे लग रहे हैं। वह बोला चलो मेरे साथ। दोनों बस स्टैंड पहुंचे और किसी तरह पूछते बताते उसी श्मशानघाट पर पहुंचे जहां वह सूखा पेड़ जॉन ने सपने में देखा था। जॉन को सपने वाली जगह पहचानते देर न लगी। उसने उस सूखे पेड़ के करीब जाकर देखा कि पेड़ तो सूखा है पर यह क्या उसक तो सारे पत्ते हरे थे और चारों तरफ हरियाली ही हरियाली थी। जॉन ने कहा यह जो हरियाली देख रही हो यही मेरी बहन श्रमी है यानी उसका पुनर्जन्म । जेनेलिया यह सब देख हैरान थी कि साईंटिस्ट जॉन को यह क्या हुआ।यह क्या बोले जा रहे हैं? पर वह झूठे भी नहीं हो सकते।आज उनके चेहरे और नेचर में गज़ब का बदलाव देख रही हूँ। तभी वहां कुछ लोग घूमते हुये आये और बोले अरे! यहां तो इतना उजाड़ पड़ा था अचानक इतनी हरियाली! सभी लोग वहां सैल्फी लेने लगे और वही लेट गये कुछ बच्चे वहां खेलने लगे। जेनेलिया ने कहा यह श्मशानघाट है न। वह लोग बोले हाँ यहां से एक किलोमीटर दूर है। यह जगह भी श्मशानघाट के लिए नामित हो चुकी थी पर अब हम लोग यहां श्मशानघाट नहीं बनने देगें यहां कि हरियाली इतनी खूबसूरत है कि यह जगह पार्क बनने योग्य है।

जॉन उस पेड़ के नीचे बहुत देर बैठा रहा और सोचने लगा सचमुच सपने सच की ओर इशारा करते हैं। मैंने बहुत समय पहले पिताजी के बिस्तर पर सोते समय यह सपना ठीक ही देखा था कि हरियाली, में बड़ा फल गिरा और घास से खून बहने लगा। यानी श्रमी का कत्ल होना और उसका प्रेम की हरियाली यानी घास रूप में पुनर्जन्म होना। वह अपने सभी सपनों की गणना करने लगा और उन सभी सपनों की गणना में उसने पाया कि प्रकृति सचमुच बहुत महान है। हमें हमारी खोजों की दिशा का रूख अब अपने अंदर की ओर मोड़ना होगा तभी हम प्रकृति के करीब जाकर प्रकृति के रहस्यों को समझ और सुलझा पायेगें।

जेनेलिया ने कहा जॉन चलो मातारानी नैनादेवी के दर्शन करने चलते हैं। जॉन ने कहा ठीक है चलिये। दोनों वहां से निकल कर माँ नैनादेवी मंदिर पहुंचें जहां बेहद खूबसूरत मोमबत्तियां बिक रही थी। वहां कुछ पुरूष बहुत बड़ी - बड़ी सलाइयों से बहुत स्पीड में स्वेटर बुन रहे थे और हाथ से बुने हुये स्वेटर बेंच रहे थे। वहां लकड़ी की खूबसूरत चम्मच व चूड़ी स्टेंड बिक रहे थे व पत्थरों की बेहतरीन ज्वैलरी से दुकाने सजी थीं। तभी जेनेलिया ने कहा जॉन वह देखो रेड कलर की खूबसूरत सॉल लौटते वक्त माँ के लिये ले चलेगें। जॉन ने कहा यह सॉल तुम पर बहुत अच्छी लगेगी माँ के लिये उनके फेवरेट क्रीम कलर की सॉल ले चलेगें उन्हें लाईट कलर पसंद है। जॉन ने आगें बढ़कर एक पिंक कलर की सॉल खरीद ली और कहा यह नैनादेवी माँ के लिये चलो पूजन सामग्री भी ले लेते हैं। दोनों ने खुशी-खुशी नैनादेवी की पूजा की और लौटते वक्त कुछ खूबसूरत कैंडल सॉल व लकड़ी के चूडी स्टेंड सहित कई खूबसूरत गिफ्ट लेकर दोनों दूसरे दिन घर लौटे।

घर आकर जॉन और जेनेलिया सहित पूरा परिवार बहुत खुश था पर जॉन के कानों में दिव्य ध्वनि अनवरत गूंज रही थी और खुली आँखों से वह प्रकाश की गर्मी भी महसूस कर रहा था। यह कुछ ऐसे अनुभव थे जिसे वह किसी को बता व समझा नहीं सकता था। दो दिन बाद जॉन ने अपना बैग पैक किया और बोला जेनेलिया मुझे काम पर जाना होगा मेरी छुट्टियां समाप्त हो चुकी हैं मुझे मेरे रिसर्च पर फोकस करना है। जेनेलिया तुरंत जॉन के गले से लग गयी और बोली आप जैसा अच्छा लाईफ पार्टनर भगवान हर लड़की को दे। मुझे पता है आप वहां जाकर बहुत बिजी हो जाओगे पर जब भी समय मिले मुझे और माँ से कॉल कर लिया करना प्लीज़। जॉन ने जेनेलिया के माथे को चूम कर कहा ओके डियर और भगवान आप जैसी बीवी भी दुनिया के हर लड़के को दें। तुम्हारे रहते मुझे माँ पापा कि बिल्कुल चिंता नहीं। वह दोनों बातें करते हुये बाहर आये और जॉन माँ पिताजी के पांव छूकर शहर निकल गया।

शहर पहुंच कर वह अपने शोध संस्थान पहुंचा जहां पहुंचकर वह अपनी खगोलीय घटनाओं व परग्रही पूर्वजों पर अपनी रिसर्च कम्पलीट करने में लग गया। कुछ ही दिन बीते की ऑफिस में रखी स्क्रीन पर जब सब वैज्ञानिक सैटेलाइट से आयी कुछ ग्रहों की सतह की तस्वीरों का अध्ययन कर रहे थे तो जॉन को उन तस्वीरों में कुछ अजीब प्राणी दिखे। वह सभी से बोला कि इस जगह कुछ अजीब है पर वहां बैठे किसी भी वैज्ञानिक को कुछ नज़र नहीं आया। जॉन बहुत परेशान था कि जो उसे दिख रहा वह और किसी को नजर क्यों नहीं आ रहा। वह सोचते हुये ऑफिस से बाहर निकल कर टहलने लगा तो उसने कई अजीब प्राणियों को आसमान में उड़ते लोगों के बीच से गुजरते देखा। वह सोचने लगा कि यह सब है क्या?, क्या हम ऐसी कोई मशीन बना सकते हैं जो इनकी गतिविधियों को कैप्चर कर सके। हाँ मैं बनाऊंगा वह मशीन जरूर बनाऊंगा यह सोचते - सोचते वह सड़क पार करने लगा कि तभी तेज गति से अपने पास आते ट्रक को वह सुन नहीं सका क्योंकि उनके कान में वह दिव्य आवाज़ 24घंटे गूँजती रहती थी। उन्होंने देखा कि एक प्राणी प्रकाश से भी ज्यादा तेज गति से आया और उसने जॉन को उठा कर सड़क के दूसरी ओर एक सब्जी के ठेले पर बिठा दिया। जॉन यह सब देख दंग रह गया कि आज जिस स्पीड से यह ट्रक मेरी तरफ आया और जिस स्पीड से बीच सड़क से इस विचित्र प्राणी ने मुझे उठाकर सड़क की दूसरी तरफ इस सब्जी के ठेले पर रख दिया। उस विचित्र प्राणी की स्पीड तो प्रकाश की स्पीड से भी कहीं ज्यादा तेज थी। यानी इन लोग की साईंस और टेक्नोलॉजी हमारे ग्रह से बहुत उन्नत है। यह सोचते हुए जॉन जल्दी से उस ठैले से उतरा तो पास में खड़ा सब्जी वाला यह घटना देख बेहोश हो गया। जॉन ने चारों तरफ़ देखा पर वह प्राणी उसे कहीं नहीं दिखा। वह डरा सहमा सा अपने रूम पर पहुंचा और उस प्राणी का स्केच बनाने लगा तो कान में सुनाई पड़ने वाली वह आवाज़ इतनी तेज हो गयी कि उसके हाथ से पेंसिल छूट कर जमीन पर गिर गयी। उसने महसूस किया कि शायद अभी समय नहीं आया है कि दुनिया इन्हें जाने। जॉन ने अपनी रिसर्च में लिखा कि हाँ परग्रही पूर्वज हैं और यह भी सच है कि वह हमारी पृथ्वी पर भी आते-जाते रहते हैं।

यह भी कहना गलत नहीं होगा कि वह आने वाले समय से समययात्री भी हो सकते हैं। इस दुनिया में बहुत कुछ ऐसा है जिसे लिखा नहीं जा सकता पर हाँ हम उन अजीबोगरीब चीजों को महसूस जरूर कर सकते हैं पर जब हम ध्यान और अध्यात्म को जाने और अपने जीवन में ईमानदारी से उतारें।जॉन ने अपनी इस रिसर्च को नाम दिया ''हम और वह''।

जॉन अपनी रिसर्च पूरी करने के बाद कई लैंसों की मदद से व अपने सपनों में देखे फार्मूले की मदद से एक ऐसे उपकरण बनाने में लग गया। उसने सोचा जिस तरह मैं इन प्राणियों को देख पा रहा हूँ उसी तरह सब लोग उन्हें देख पायें और उनसे दोस्ती कर पायें। वह पूरे दो साल की कड़ी मेहनत के बाद एक उपकरण बनाने में सफल हो गया जिसे ''सुपरइंडिया ग्रीन11'' नाम दिया और जिसकी बैटरी को ''प्रेम की हरियाली'' नाम दिया। जब उसने वह बैटरी लगाकर उस मशीन को स्टार्ट किया और उसका मुंह आसमान की तरफ़ किया तो उसे वह प्राणी साफ दिखने लगे। वह खुशी से उछल पड़ा कि अब वह अपनी रिसर्च विदप्रूफ दुनिया के सामने रखूंगा। तभी उसे अजीब सी बदबू आयी कि उसने पलट कर देखा कि वह प्राणी उसकी मशीन की बैटरी जिसका नाम प्रेम की हरियाली था को साथ लेकर खिड़की से तेज गति से उड़ गया। वह कुछ समझ पाता कि उसकी मशीन धूँ धूँ करके जल उठी और वह अपनी रिसर्च की फाइल को लेकर वाशरूम में जाकर बैठ गया और अपने टीम के लोगों को फौरन उसके घर आने को कहा। कुछ ही मिनट में टीम के लोग वहां आ पहुंचे और जॉन ने अपनी रिसर्च फाइल उन्हें सौंपते हुए जैसे ही पूरा सच बताने की कोशिश की तभी उसे रूम से आते धुएं से उसे जोर - जोर से खांसी आनी शुरू हो गयी। बाहर लोग आग बुझाने में लगे थे और जॉन की खांसी बन्द नहीं हो रही थी। उसके साथियों ने पूछा सर यह मशीन के बारें में कुछ तो बतायें तभी देखते-देखते पूरा रूम आग के गोले में बदल गये। जॉन ने सभी को किसी तरह वहां से बाहर निकाला पर इस बीच वह खुद 50%जल चुका था। कुछ ही देर में सभी को अस्पताल पहुंचा दिया गया। जहां सभी ग्यारह साईटिंस्टों की रहस्यमयी बेहोशी को वहां के डॉक्टरों ने कोमा नाम दे दिया और मीडिया के सवाल बचेगें या नहीं इस सवाल पर उन्होंने कुछ भी कहने से साफ इंकार कर दिया।यह खबर सुनते ही जॉन के माता-पिता व जेनेलिया समेत सभी ग्यारह साईटिंस्टों के परिवारी जनों का रो-रो कर बुरा हाल था। जब सभी ने अपने कलेजे के टुकड़ों को यूं बेहोश देखा तो सभी फूट-फूट कर रो पड़े। जब उन सभी साईटिंस्टों के परिवारीजन अस्पताल के बाहर निकले तो वहां मौजूद भारी भीड़ में कुछ लोग आपस में यही बातें कर रहे थे कि देश के मशहूर खगोलशास्त्री डा. जॉन ने एक रहस्यमयी मशीन बनायी थी और जिसने भी उस जलती मशीन को देखा वह सब कोमा में चले गए। काफी दिन के बाद साईटिंस्टों के परिजनों व मीडिया के दवाब में आकर जॉन के सीनियर ने जॉन के फाइल का अंतिम पेज मीडिया को सौंप दिया जिस पर लिखा था कि ''अलगाव कभी बदलाव नहीं ला सकता। हमें जुड़ना होगा खुद के साथ प्रकृति के साथ और सुननी होगी हर वह आवाज़ जो हमसे कुछ कहना चाह रही है।''

जेनेलिया समेत सभी ने बहुत कोशिश की पर जॉन के सीनियर ने यही कहा कि हमारे पास जॉन की रिसर्च का यही अंतिम पेज है बाकी कुछ नहीं। जेनेलिया व पूरे देश को यह समझते देर न लगी कि देश की सबसे बड़ा रिसर्च संस्थान हम सब से कुछ न कुछ जरूर छिपा रहा है पर क्या? यह एक रहस्य बन कर रह गया।जेनेलिया ने " अंतिम पेज'' नाम से देश के हर छोटे बड़े न्यूजपेपर में सिस्टम के खिलाफ व साईटिंस्टों के हक में अपनी आवाज़ उठाना शुरू किया पर जिन्हें सच पता था वह रहस्यमयी नींद के आगोश में जा चुके थे। जेनेलिया ने अपने कॉलम ''अंतिम पेज'' में लिखा कि वह सब गहरे नींद व सपनों में है जिस दिन उनकी नींद टूटेगी उस दिन बहुत बड़ा रहस्य उजागर होगा।जब तक मेरे पति नहीं जागते मैं यह ''अंतिम पेज'' नाम का कॉलम लिखती रहूंगी।

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परिचय

ब्लॉगर आकांक्षा सक्सेना

11 जनवरी 1988

जन्म- मथुरा उत्तर प्रदेश

शिक्षा:  बी.एस.सी,एम.एड, पत्रकारिता,

लेखन - कहानियाँ, पटकथा,कविताएँ, गीत,भजन, लेख,श्लोगन, संस्मरण।

फिल्म - रक्तदान पर आधारित रक्तप्रदाता और खाने की बर्बादी के रोकने पर आधारित फिल्म

ए सोयल दैट बीट्स में बतौर एसोसिएट डॉयरेक्टर कार्य।

सोसलवर्क - अखिल भारतीय कायस्थ महासभा की युवा सचिव बनी तथा कायस्थवाहिनी अंतर्राष्ट्रीय सामााजिक संगठन में सचिव(युवा महिला प्रकोष्ठ) बनकर कायस्थ समाज के लिये वर्क किया। इसके अतिरिक्त सर्व समाजहित के लिये कई मुहिम चलाई काम किये जैसै- एक लिफाफा मदद वाला, पॉलीथिन हटाओ कागज उढ़ाओ, अखबार ढाकें, कीटाणु भागें, सेवा व परोपकार भरी मुहिम घर से निकलो खुशियां बाटों व घुमन्तु जाति के गरीब बच्चियों के परिवार को समझाकर उनका स्कूल में दाखिला कराना जैसे सेवा कर्तव्य शामिल हैं।

प्रकाशित: लेख,कविता,शोधपत्र एवं कहानियां भारत के कई नामचीन समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं में प्रकाशित।

पुरस्कार सम्मान -आर्ट एण्ड क्राफ्ट, पिडिलाईट कलाकृति कॉन्टेस्ट की विनर, गायत्री महायज्ञ हरिद्वार की संस्कार परीक्षा प्रमाणपत्र,गोलिया आयुर्वेदिक प्राकृतिक चिकित्सा प्रमाणपत्र,दिल्ली योग प्राणायाम अणुव्रत जैनमुनि केन्द्र से योग सिविर अटेण्ड, प्रेरणा एनजीओ झारखण्ड़, अखिल नागरिक हक परिषद मुम्बई एनजीओ सपोर्ट प्रमाणपत्र, साहित्य परिषद द्वारा काव्य श्री सम्मान, अर्णव कलश साहित्य परिषद हरियाणा द्वारा बाबू बाल मुकुंद गुप्त साहित्य सेवा सम्मान-2017 तथा साहित्य के चमकते दीप साहित्य सम्मान। बाबा मस्तनाथ अस्थल बोहर अर्णव कलश एसोसिएशन अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में शोध प्रमाण पत्र।

संप्रति- स्वतंत्र ऑनलाइन ब्लॉगर,

ब्लॉग समाज और हम

मेम्बर ऑफ स्क्रिप्ट राईटर ऐसोसिएसन मुम्बई

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पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi 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रचनाकार: कहानी - अंतिम पेज - आकांक्षा सक्सेना
कहानी - अंतिम पेज - आकांक्षा सक्सेना
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