डा. अम्बेडकर की पत्रकारिता : दलित पत्रकारिता का आधार स्तम्भ - तेजपाल सिंह ‘तेज’

SHARE:

डा. अम्बेडकर की पत्रकारिता : दलित पत्रकारिता का आधार स्तम्भ -तेजपाल सिंह ‘तेज’ - विदित हो कि बाबा साहेब डा. भीमराव अम्बेडकर ने दलित समाज मे...

डा. अम्बेडकर की पत्रकारिता : दलित पत्रकारिता का आधार स्तम्भ

-तेजपाल सिंह ‘तेज’ -

विदित हो कि बाबा साहेब डा. भीमराव अम्बेडकर ने दलित समाज में जागृति लाने के लिए कई पत्र एवं पत्रिकाओं का प्रकाशन एवं सम्पादन किया. इन पत्र-पत्रिकाओं ने उनके दलित आंदोलन को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया. अगर देखा जाय तो डा. अम्बेडकर ही दलित पत्रकारिता के आधार स्तम्भ हैं. वे दलित पत्रिकारिता के प्रथम संपादक, संस्थापक एवं प्रकाशक हैं. उनके द्वारा संपादित पत्र आज की पत्रकारिता के लिए एक मानदण्ड हैं. डा. अम्बेडकर द्वारा निकाले गये पत्र-पत्रिकाओं की संक्षेप में जानकारी निम्नानुसार है-

(1) मूक नायक:

बाबा साहेब ने इस मराठी पाक्षिक पत्र का प्रकाशन 31 जनवरी, 1920 को किया. इसके संपादक पाण्डुराम नन्दराम भटकर थे जो कि महार जाति से संबंध रखते थे. अम्बेडकर इस पत्र के अधिकृत संपादक नहीं थे, लेकिन वे ही इस पत्र की जान थे. एक प्रकार से यह पत्र उन्हीं की आवाज का दूसरा लिखित रूप था. ‘मूक नायक’ सभी प्रकार से मूक-दलितों की ही आवाज थी जिसमें उनकी पीड़ाएं बोलती थीं इस पत्र ने दलितों में एक नयी चेतना का संचार किया गया तथा उन्हें अपने अधिकारों के लिए आंदोलित होने को उकसाया. यह पत्र आर्थिक अभावों के चलते बहुत दिन तक तो नहीं चल सका लेकिन एक चेतना की लहर दौड़ाने के अपने उद्देश्य में कामयाब रहा.

(2) बहिष्कृत भारत:

अल्प समय में ही ‘मूक-नायक’ के बन्द हो जाने के बाद डा. अम्बेडकर ने 3 अप्रैल 1927 को अपना दूसरा मराठी पाक्षिक अखबार ‘बहिष्कृत भारत’ निकाला. यह पत्र बाम्बे से प्रकाशित होता था. इसका संपादन डा. अम्बेडकर खुद ही करते थे. इसके माध्यम से वे अस्पृश्य समाज की समस्याओं और शिकायतों को सामने लाने का कार्य करते थे तथा साथ ही साथ अपने आलोचकों को जवाब भी देने का कार्य करते थे. इस पत्र के एक सम्पादकीय में उन्होंने लिखा कि यदि तिलक अछूतों के बीच पैदा होते तो यह नारा नहीं लगाते कि ‘‘स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है’’ बल्कि वह यह कहते कि ‘‘छुआछूत का उन्मूलन मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है.’’ इस पत्र ने भी दलित जागृति का महत्वपूर्ण कार्य किया.

(3) समता:

इस पत्र का प्रकाशन 29 जून, 1928 को आरम्भ हुआ. यह पत्र डा. अम्बेडकर द्वारा समाज सुधार हेतु स्थापित संस्था ‘समता संघ’ का मुख पत्र था. इसके संपादक के तौर पर डा. अम्बेडकर ने देवराव विष्णु नाइक की नियुक्ति की थी. यह पत्र भी अल्प समय में बन्द हो गया और फिर ‘जनता’ नामक पत्र के प्रकाशन का उपक्रम किया गया.

(4) जनता:

‘समता’ पत्र बन्द होने के बाद डा. अम्बेडकर ने इसका पुनर्प्रकाशन ‘जनता’ के नाम से किया. इसका प्रवेशांक 24 नवम्बर, 1930 को आया. यह फरवरी 1956 तक कुल 26 साल तक चलता रहा. इस पत्र के माध्यम से डा. अम्बेडकर ने दलित समस्याओं को उठाने और दलित – शोषित आबादियों को जाग्रत करने का बखूबी कार्य किया.

(5) प्रबुद्ध भारत:

14 अक्टूबर, 1956 को बाबा साहेब डा. अम्बेडकर ने लाखों लोगों के साथ बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया था. इस घटनाक्रम के चलते ही बाबा साहेब अम्बेडकर ने ‘जनता’ पत्र का नाम बदलकर ‘प्रबुद्ध भारत’ कर दिया था. इस पत्र के मुखशीर्ष पर ‘अखिल भारतीय दलित फेडरेशन का मुखपत्र’ छपता था.

बाबा साहेब डा. अम्बेडकर के सभी पत्र मराठी भाषा में ही प्रकाशित हुए क्योंकि मराठी ही उस समय आम जनता की भाषा थी. यह भी कि उस समय बाबा साहेब का कार्य क्षेत्र महाराष्ट्र ही था और मराठी वहां की जन भाषा रही है. जैसा कि विदित है कि बाबा साहेब अंग्रेजी भाषा के भी प्रकाण्ड विद्वान थे, लेकिन उन्होंने अपने पत्र मराठी भाषा में इसलिए प्रकाशित किये कि उस समय महाराष्ट्र की दलित जनता को मराठी भाषा के अलावा किसी और भाषा का ज्यादा ज्ञान नहीं था, वह केवल मराठी ही समझ पाती थी. जबकि उसी समय महात्मा गांधी अपने आप को दलितों का हित चिन्तक दिखाने के लिए अपना एक पत्र ‘हरिजन’ अंग्रेजी भाषा में निकाल रहे थे जबकि उस समय दलित जनता आमतौर पर अंग्रेजी जानती ही नहीं थी. इसलिए गान्धीजी का यह प्रयास बेकार गया और उनकी यह कोशिश दलितों के साथ कोरी धोखेबाजी ही सिद्ध हुई.

ज्ञात हो कि डॉ. आंबेडकर ने 31 जनवरी, 1920 को “मूकनायक” नामक पत्रिका को शुरू किया. इस पत्रिका के अग्रलेखों में आंबेडकर ने दलितों के तत्कालीन आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक समस्याओं को बड़ी निर्भीकता से उजागर किया. यह पत्रिका उन मूक-दलित, दबे-कुचले लोगों की आवाज बनकर उभरी जो सदियों से सवर्णों का अन्याय और शोषण चुपचाप सहन कर रहे थे. हालांकि इस पत्रिका के प्रकाशन में “शाहूजी महाराज” ने भी सहयोग किया था, यह पत्रिका महाराज के राज्य कोल्हापुर में ही प्रकाशित होती थी. चूंकि महाराज आंबेडकर की विद्वता से परिचित थे जिस वजह से वो उनसे विशेष स्नेह भी रखते थे.

एक बार तो शाहूजी महाराज ने नागपुर में “अखिल भारतीय बहिष्कृत समाज परिषद” की सभा संबोधित करते हुऐ भी कह दिया था कि– “दलितों को अब चिंता करने की जरूरत नहीं है, उन्हें आंबेडकर के रूप में ओजस्वी विद्वान नेता प्राप्त हो गया है.” इसी सभा में आंबेडकर ने निर्भीकतापूर्वक दलितों को संबोधित करते हुए कहा था कि- “ऐसे कोई भी सवर्ण संगठन दलितों के अधिकारों की वकालत करने के पात्र नहीं हैं जो दलितों द्वारा संचालित न हो. उन्होंने स्पष्टतः कहा था कि दलित ही दलितों के संगठन चलाने के हकदार हैं और वे ही दलितों की भलाई की बात सोच सकते हैं.” जबकि इस सम्मेलन में गंगाधर चिटनवीस, शंकरराव चिटनवीस, बीके बोस, मिस्टर पंडित, डॉ. पराजंपे, कोठारी, श्रीपतराव शिंदे इत्यादि तथाकथित सवर्ण समाज-सुधारक भी मौजूद थे.

1920 में हुए इस त्रिदिवसीय सम्मेलन की कार्यवाही, भाषण, प्रस्तावों आदि का वृतांत भी 5 जून, 1920 को “मूकनायक” पत्रिका के दसवें अंक में प्रकाशित हुआ था. इसके बाद सितम्बर, 1920 में डॉ. आंबेडकर अपनी अर्थशास्त्र और बैरिस्टरी की अधूरी पढ़ाई पूरी करने के लिये पुनः लंदन गए. तब उनके पास साढ़े आठ हजार रुपये थे. जिसमें 1500 रुपये शाहूजी महाराज ने उन्हें आर्थिक सहायता दी थी जबकि 7000 रुपये उन्होंने स्वंय एकत्रित किये थे.

विदेश से अपनी शिक्षा पूर्ण करके जब वो वापस भारत आये तो उन्होंने फिर से शोषित-वंचितों के अधिकारों की लड़ाई लड़नी शुरु कर दी. 1927 में उन्होंने ‘बहिष्कृत भारत’ नामक एक अन्य पत्रिका भी निकालनी शुरू कर दी. इसमें उन्होंने अपने लेखों के जरिये सवर्णों द्वारा किये जाने वाले अमानवीय व्यवहार का कड़ा प्रतिकारकिया और लोगों को अन्याय का विरोध करने के लिए प्रेरित किया.

डॉ. आंबेडकर के सम्पूर्ण जीवन पर दृष्टि डाली जाये तो उनका सारा जीवन ही शोषित-वंचित के लिए समर्पित रहा है. शोषित-वंचितों के अधिकारों के लिऐ उनके संघर्ष ने पूरे भारत में नवजागरण का उद्घोष किया और वो मानवता की मिसाल बन गये. इस हेतु उन्होंने पत्रकारिता का साथ लिया अथवा जन सभाओं का.

आज पूरे देश में मीडिया को ‘गोदी मीडिया’ के रूप में वर्णित किया जाता है. खासकर मोदी सरकार के आने के बाद. इन आशंकाओं, दुश्चिंताओं के बीच यह सवाल उठना जरूरी है कि जिसे हम स्वतन्त्र और निष्पक्ष मीडिया कहते हैं, क्या उसका अस्तित्व वास्तव में कभी स्वतन्त्र और निष्पक्ष रहा है? क्या सचमुच पत्रकारिता अपने मौलिक रूप में कभी निष्पक्ष रही है? क्या व्यापारिक घरानों के प्रभाव और पूँजी के नियंत्रण से परे रहकर भारत में कोई जनपक्षधर पत्रकारिता कभी हुई है? कदापि नहीं....

जब हम डॉ आंबेडकर को पढ़ते हैं तो यह पाते हैं कि आदर्शवादी पत्रकारिता जैसी कोई चीज भारत ने कभी नहीं रही. औपनिवेशिक भारत और आज के आज़ाद भारत की पत्रकारिता के बुनियादी चरित्र नहीं बदला है. हमेशा ही पूँजी के नियंत्रण में रहते हुए पत्रकारिता ने नायक पूजा को बढ़ावा दिया है इसके जरिये हमेशा से मूल मुद्दों पर से ध्यान हटाया गया है. सरकार के पैरोकार बन गया है मीडिया, इसमें किसी को शक करने की गुंजाइश रह ही नहीं गई है.

पिछले कुछ सालों से भारत में मीडिया की निष्पक्षता और कॉर्पोरेटपरस्ती को लेकर बहस अब तेज़ हो चुकी है. उत्तर प्रदेश में बीजेपी के प्रचण्ड बहुमत मिलने और योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद मीडिया द्वारा ‘नायक पूजा’ की जो होड़ प्रारम्भ उससे आम लोग भी सशंकित हैं.पहले मोदी फिर योगी को जिस तरह से ब्रांडिंग की गई और मीडिया ने जिस तरह सरकार के ढिंढोरची की भूमिका निभाई है उसपर सवाल उठने लगे हैं. सरकार और सत्ताधारी पार्टी द्वारा किसी व्यापारिक घराने के जरिये मीडिया की स्वतंत्रता का अपहरण कर लिया जाना हमारे दौर की त्रासदियों में से एक है.लंबे अरसे के बाद संसद में विपक्ष के नेताओं ने प्रेस की स्वतंत्रता को लेकर चिंता जाहिर की है.

‘रामायण राम’ जो ललितपुर के एक कॉलेज में शिक्षक हैं, के हवाले से/ भारत की पत्रकारिता के बारे में डॉ अम्बेडकर के विचारों को जानने के लिए उनका लेख ‘रानाडे, गांधी और जिन्ना’ पढ़ना चाहिए. इसमें उन्होंने रानाडे की तुलना गांधी और जिन्ना से करते हुए इन दोनों नेताओं के अहम और अहंकार की बात की है और यह दिखाने का प्रयास किया है कि किस तरह इन दोनों ने भारतीय राजनीति को ‘व्यक्तिगत मल्लयुद्ध का अखाड़ा’ बना दिया था. दोनों खुद को हमेशा सही और अचूक मानते थे. उनके अहम की चर्चा करते हुए आंबेडकर ने जो कहा है वह बहुत ही रोचक और प्रासंगिक है- ‘धर्मपरायण नौंवे पोप के पवित्र शासन काल में जब अचूकत्व का अहम् उफन रहा था तब उन्होंने कहा था-“पोप बनने से पूर्व मैं पोपीय अचूकत्व में विश्वास रखता था ,अब मैं उसे अनुभव करता हूँ. ठीक यही रवैया इन दोनों नेताओं का है.’

आंबेडकर लिखते हैं उन दोनों नेताओं की इस चेतना को पत्रकारिता के ज़रिये गढ़ा गया है. समाचार पत्रों ने इसे हवा दी है. उनका मानना था कि पत्रकारिता ने ‘नायक पूजा’ को बढ़ावा दिया है. तब की स्थितियाँ हू-ब-हू आज की स्थितियों से मिलती हैं, जहाँ मीडिया के जरिये निशंक नायकत्व का मायाजाल बुना जा रहा है. यहां अम्बेडकर के विचार देखें- “समाचार पत्रों की वाह वाही का कवच धारण करके इन दोनों महानुभावों की प्रभुत्व जमाने की भावना ने तो सभी मर्यादाओं को तोड़ डाला है. अपने प्रभुत्व से उन्होंने न केवल अनुयायियों को,बल्कि भारतीय राजनीति को भी भ्रष्ट किया है. अपने प्रभुत्व से उन्होंने अपने आधे अनुयायियों को मूर्ख तथा शेष आधे अनुयायियों को को पाखंडी बना दिया है. अपनी सर्वउच्चता के दुर्ग को सुदृढ़ करने के लिए उन्होंने ‘बड़े व्यापारिक घरानों’ तथा धन-कुबेरों की सहायता ली है. हमारे देश में पहली बार पैसा संगठित शक्ति के रूप में मैदान में उतरा है. जो प्रश्न प्रेजिडेंट रूजवेल्ट ने अमरीकी जनता के सामने रखे थे, वे यहां भी उठेंगे,यदि वे पहले नहीं उठे हैं: शासन कौन करेगा,पैसा या मानव? कौन नेतृत्व करेगा- पैसा या प्रतिभा ? सार्वजनिक पदों पर कौन आसीन होगा- शिक्षित, स्वतन्त्र, देशभक्त अथवा पूंजीवादी गुटों के सामंती दास.!”

पत्रकारिता की चेतना उस समाज की राजनैतिक चेतना से अलग नहीं होती. पत्रकारिता का रवैया ही लोकतंत्र की रवैये को निर्धारित करता है. इस संदर्भ से डॉ अम्बेडकर की तल्खी को समझा जा सकता है. कम से कम आज के समय में हम पत्रकारिता के चारणयुग में रहते हुए इसे समझ ही सकते हैं. गांधी और जिन्ना का जो मूल्यांकन अम्बेडकर ने किया उस पर सहमत असहमत हुआ जा सकता है लेकिन भारतीय राजनीति में नायक पूजा की प्रवृत्ति को शुरू करने और आगे बढ़ाने में पत्रकारिता ने जो भूमिका निभाई है. इस पर आंबेडकर के विचारों को पढ़ते हुए लगता है जैसे वो आज की बात कर रहे हों.” डॉ आंबेडकर लिखते हैं-“ कभी भारत में पत्रकारिता एक आदर्शव्यवसाय था, अब वह व्यापार बन गया है. उसमें कोई नैतिक दायित्व नहीं है. वह स्वयं को जनता का जिम्मेदार सलाहकार नहीं मानता. भारत की पत्रकारिता इस बात को अपना सर्वप्रथम तथा सर्वोपरि कर्तव्य नहीं मानती की वह तटस्थ भाव से निष्पक्ष समाचार दे, वह सार्वजनिक नीति के उस पक्ष को प्रस्तुत करे जिसे वह समाज के लिए हितकारी समझे. चाहे कोई कितने भी उच्च पद पर हो, उसकी परवाह किये बिना, बिना किसी भी के उन सभी को सीधा करे और लताड़े जिन्होंने गलत अथवा उजाड़ पथ का अनुसरण किया है. उसका तो प्रमुख कर्तव्य यह हो गया है कि नायकत्व को स्वीकार करे और उसकी पूजा करे. उसकी छत्र छाया में समाचार पत्रों का स्थान सनसनी ने, विवेक सम्मत मत का विवेकहीन भावावेश ने, उत्तरदायी लोगों के मानस के लिए अपील ने, दायित्वहीनों की भावनाओं के लिए अपील ने ले लिया है. लार्ड सेलिसबरी ने नार्थक्लिफ़ पत्रकारिता के बारे में कहा है कि वह तो कार्यालय कर्मचारियों के लिए कार्यालय कर्मचारियों का लेखन है. भारतीय पत्रकारिता उससे भी दी कदम आगे है. वह तो ऐसा लेखन है ,जैसे ढिंढोरचियों ने अपने नायकों का ढिंढोरा पीटा हो. नायक पूजा के प्रचार-प्रसार के लिए कभी भी इतनी नासमझी से देशहित की बलि नहीं चढ़ाई गई है. नायकों के प्रति ऐसी अंधभक्ति तो कभी देखने में नहीं आयी, जैसी आज चल रही है. मुझे प्रसन्नता है कि आदर योग्य कुछ अपवाद भी हैं. लेकिन वे ऊँट के मुँह में जीरे के समान हैं और उनकी बातों को सदा ही अनसुना कर दिया जाता है.”

डॉ अम्बेडकर के इस विश्लेषण में हम आज के मीडिया की तस्वीर देख सकते हैं और आश्वस्त हो सकते हैं कि यह परिघटना नयी नहीं है. और हमेशा ही इस परिदृश्य में कुछ अलग और नया करने की संभावना बनी रहती है. डॉ आंबेडकर ने भी अपवादों की बात कही है और हम यह जानते हैं कि ढिंढोरची पत्रकारों के बीच से हमेशा ही कुछ स्वतंत्र विचारधारा के पत्रकार भी सामने आते रहे हैं जिन्होंने नाउम्मीद नहीं होने दिया है. आज भी ऐसे कई पत्रकार है जो मीडिया की स्वतंत्रता और निष्पक्षता की लड़ाई लड़ रहे हैं। वास्तविक लोकतंत्र को प्राप्त करने की लड़ाई का जोखिम उठा रहे है. जो जनवाद की लड़ाई के साथ ही लड़ी जा सकती है. इसके लिए डा. अम्बेडकर के विचारों की आज बहुत ही प्रासंगिकता है.

अंत में यदि ये कहा जाए कि डा. अम्बेडकर की पत्रकारिता ही आज के अम्बेडकरवादी पत्रकारिता की आधार स्तम्भ है, तो अतिशयोक्ति न होगी. कारण यह है कि आज का दलित साहित्यकार यथार्थ से परे की बात नहीं करता, यह बात अलग है कि उसकी बातों में वो तल्खी होती है, जो सच्चाई को धारण किए हुए होती है. और यह स्वाभाविक ही है क्योंकि दलित-प्रत्रकारिता व्यापारिक होने के दायरे से कोसों दूर है. ये माना कि आज का गोदी मीडिया उनको जगह नहीं दे पा रहा है किंतु सोशल मीडिया पर आज दलित पत्रकारों का खासा दबदबा है। <><><>

तेजपाल सिंह तेज’(जन्म 1949) की गजल, कविता, और विचार-विमर्श की लगभग दो दर्जन किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं - दृष्टिकोण, ट्रैफिक जाम है, गुजरा हूँ जिधर से, हादसों के शहर में, तूंफ़ाँ की ज़द में ( गजल संग्रह), बेताल दृष्टि, पुश्तैनी पीड़ा आदि (कविता संग्रह), रुन - झुन, खेल - खेल में, धमाचौकड़ी आदि ( बालगीत), कहाँ गई वो दिल्ली वाली ( शब्द चित्र), पांच निबन्ध संग्रह और अन्य। तेजपाल सिंह साप्ताहिक पत्र ग्रीन सत्ता का साहित्य संपादक, चर्चित पत्रिका अपेक्षा का उपसंपादक, आजीवक विजन का प्रधान संपादक तथा अधिकार दर्पण नामक त्रैमासिक का संपादक भी रहे हैं। स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त होकर मैं इन दिनों स्वतंत्र लेखन के रत हैं। हिन्दी अकादमी (दिल्ली) द्वारा बाल साहित्य पुरस्कार ( 1995-96) तथा साहित्यकार सम्मान (2006-2007) से सम्मानित किए जा चुके हैं।.....और भी अनेक नागरिक सम्मान।

COMMENTS

BLOGGER: 1
  1. बेनामी12:01 am

    बेहतरिन विश्लेषण किया आपने, धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
रचनाओं पर आपकी बेबाक समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद.

स्पैम टिप्पणियों (वायरस डाउनलोडर युक्त कड़ियों वाले) की रोकथाम हेतु टिप्पणियों का मॉडरेशन लागू है. अतः आपकी टिप्पणियों को यहाँ प्रकट होने में कुछ समय लग सकता है.

नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: डा. अम्बेडकर की पत्रकारिता : दलित पत्रकारिता का आधार स्तम्भ - तेजपाल सिंह ‘तेज’
डा. अम्बेडकर की पत्रकारिता : दलित पत्रकारिता का आधार स्तम्भ - तेजपाल सिंह ‘तेज’
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi1-IlgXCq9yFdq7i3hTtPNzrc5N04kPLKwpQ-nCeSoPceT901m9uG-X-aHM5Q7Kg5KNUS8CXht9OGR1c-5M-Qefs3n6z1IFA99l9CJkyPwvrb67guD-E66T48ek1T_U61Tx6SZ/s320/tej-789765.png
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi1-IlgXCq9yFdq7i3hTtPNzrc5N04kPLKwpQ-nCeSoPceT901m9uG-X-aHM5Q7Kg5KNUS8CXht9OGR1c-5M-Qefs3n6z1IFA99l9CJkyPwvrb67guD-E66T48ek1T_U61Tx6SZ/s72-c/tej-789765.png
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2019/06/blog-post_2.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2019/06/blog-post_2.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content