दीपावली दीपोत्सव के साथ आमोद प्रमोद का जश्न है। इस पर्व पर प्रेम व् खुशियों के दीप प्रज्वलित कर प्रत्येक मनुष्य के जीवन में प्रसन्नता लाने क...
दीपावली दीपोत्सव के साथ आमोद प्रमोद का जश्न है। इस पर्व पर प्रेम व् खुशियों के दीप प्रज्वलित कर प्रत्येक मनुष्य के जीवन में प्रसन्नता लाने की कामना करें। दीपावली पर प्राय: हम भारतीय परम्परा व् संस्कृति को भूलकर कृत्रिमता के कुचक्र में फँसते हुए गड़बड़झाला में मशगूल होकर वातावरण को प्रदूषित करते जा रहे हैं । त्योहारों में घरों के सौन्दर्यीकरण की हमारी असीमित लालसा वातावरण में जहर घोलती नजर आती दिखती है । जिससे पर्यावरण पर संकट अत्यधिक भयावह होता जा रहा है। पर्यावरण की रक्षा मानव जीवन के लिए ही नहीं वरन संपूर्ण जगत के लिए जरूरी है । वैसे भी समस्त ब्रह्माण्ड में जलवायु परिवर्तन से समस्या विकराल होती जा रही है। मौसम में असामयिक बदलाव व् स्वरूप में अनिश्चितता प्राकृतिक आपदाओं और विकराल त्रासदी का रूप धारण कर रही हैं ऐसे में पूरी दुनिया के सामाजिक चिंतक व पर्यावरण प्रेमियों को चिंता सता रही है। वे पर्यावरण की रक्षायुक्ति खोज रहे है। पर्यावरण की सुरक्षा प्रत्येक व्यक्ति की जिम्मेदारी है। हमें भी अपनी जिम्मेदारी समझ कर पर्यावरण की रक्षा के लिए आगे आना होगा । जरूरत भी है कि हम सब इसे समझें और सुरक्षित व प्रदूषणमुक्त दीपावली मनाने के लिए जन जागरूकता अभियान चलाएं। जिससे लोगों के बीच इको फ्रेंडली दीपावली मनाने का संदेश पहुंचे और जन जन को ज्ञान हो की अधिक आतिशबाजी व केरोसिन के जलाने से वातावरण में जहरीली गैस फैलती है। जिसका पर्यावरण व मानव जीवन पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
दीपावली अर्थात दीप + आवली। दीपों की माला से तात्पर्य प्रकाशोत्सव है। शरद ऋतु में प्रत्येक वर्ष मनाया जाने वाला यह एक प्राचीन भारतीय त्यौहार हैं। यह पर्व आध्यात्मिक रूप से अंधकार रूपी बुराई पर अच्छाई रूपी प्रकाश के विजय को दर्शाता है। माना जाता है कि दीपावली के दिन अयोध्या के राजा मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम ने चौदह वर्ष वनवास के समय अंधकार रूपी बृहत बुराई पर विजय के पश्चात अयोध्या वापस लौटने के उपलक्ष्य में अयोध्या वासियों के द्वारा घी के दीपक जलाने की रूप में दीपावली मनाया जाता है । जैन धर्म के लोग इसे महावीर के मोक्ष दिवस के रूप में एवं सिख समुदाय बंदी छोड़ दिवस के रूप में हर्षोल्लास के साथ दीपावली त्यौहार मनाते है। दीपावली ज्योति से ज्योति प्रज्वलित करने का पर्व है।
दीपक की ज्योति ज्ञान एवं विवेक और ईश्वरीय गुणों को प्रकट करती है। दीप पात्रता लगन स्नेह और प्रकाश समन्वय है। दीपक का पात्र, पात्रता का प्रतीक है पात्रता प्रामाणिकता की द्योतक है। घृत अर्थात घी - तेल जिसे स्नेह के रूप में अंगीकृत करते हैं । पात्र में इसे भरने का अर्थ है , प्रामाणिक व्यक्ति अपने अंदर संपूर्ण मानवता के प्रति स्नेह धारण वर्तिका अर्थात दीप की बत्ती का अर्थ है - लगन। इसका अर्थ है बिना लगन कर्मठता के ईश्वरीय अनुराग संभव नहीं। पात्र स्नेह और लगन को धारण करने के उपरांत ही दीपक ज्योति को धारण करता है अर्थात पात्रता स्नेह और कर्मठता के गुणों को धारण करने वाले व्यक्ति के अंतर्मन में ईश्वरीय प्रभा आलोकित होती है। इस कारण दीप प्रज्वलन होता जाता है।
दीपावली के इस पर्व का प्रत्येक भारतीय उल्लास और उमंग से स्वागत करता है यह पर्व हमारी सभ्यता एवं संस्कृति की गौरव गाथा है। यही नहीं इतिहासकार कहते हैं कि जिस दिन ज्ञान की ज्योति लेकर नचिकेता यमलोक से मृत्यु लोक में अवतरित हुए वह दिन भी दीपावली का दिन था। यद्यपि दीपावली लोकमानस में एक सांस्कृतिक पर्व के रूप में अपनी व्यापकता सिद्ध कर चुका है। फिर भी यह तो मानना ही होगा कि जिस ऐतिहासिक महापुरुषों के घटना प्रसंगों से इस पर्व का महत्व जुड़ा है , वे अध्यात्म जगत के शिखर पुरुष थे। इस दृष्टि से दीपावली पर्व लौकिकता के साथ आध्यात्मिकता का अनूठा संगम है।
लेकिन आज आधुनिकता के दौर में दीपावली मनाने का ढंग कुछ इस तरह परिवर्तित हो गया है जिसके चलते पर्यावरण जहाँ एक ओर प्रदूषित हो रहा है वही दूसरी तरफ मिट्टी के बने दीपों की महक का अस्तित्व खतरे में दिख रहा है। हमारे पूर्वजों के द्वारा मिट्टी के दीपक जलाकर घरों में दीपावली मनाने की परम्परा थी परन्तु आज के समय में चाइना के दीपक ने भारतीय मिट्टी से निर्मित दीपक के सुगंध को खराब कर दी है और उसे लुप्त करने की भरपूर कोशिश करती दिख रही है। जिससे प्राचीन काल से मिट्टी को सोना रुप में गढ़ने वाले कुंभकारों का अपने उद्योग के प्रति आकर्षण कम होता जा रहा है।
जिस तरह से मौजूदा दौर में दीपावली मनाने का चलन चल रहा है इससे यह महसूस हो रहा है कि हम विदेशों को अप्रत्यक्ष रूप से मालामाल करते जा रहे है और हम स्वयं विपन्न होते जा रहे है क्योंकि मिट्टी के दीपों के स्थान पर चाइना झालरें रोशनी करने लगी है जो कि भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए शुभ संकेत नहीं है। मानव विकास की बुनियाद में पहिए की भूमिका महत्वपूर्ण रही है निःसन्देह बखूबी तरीके से कुंभकारों ने अपने अद्वितीय कौशल से अनेक जीवन उपयोगी वस्तुएं बनाकर भारत का मान विश्व क्षितिज पर बढ़ाया है लेकिन आज दैनिक जीवन को तो छोड़िए दीपावली में ही दीपों का लोप होता रहा है जो कि भारत के लिए चिंता का विषय है। आइये हम और आप इस दीवाली यह संकल्प ले कि अपने घरों को हम मिट्टी के दीपों से जगमगाएंगे और पर्यावरण स्नेही दीपावली मनाएंगे।
आलेख
लेखक - परिचय
नाम - चंद्रशेखर प्रजापति
ग्राम - सरौरा खुर्द
पोस्ट - सरौरा कलां
थाना कमलापुर
तहसील - सिधौली
जिला सीतापुर उत्तर प्रदेश
पिन कोड 261302
सार्थक लेख
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