सितारों की पनाहों में अगर, कोई शाम मिल जाए - संजय कुमार श्रीवास्तव

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मेरे पूजनीय माता पिता एक बहुत ही गरीब परिवार से हैं। जिनका अपना सारा जीवन बड़ी ही कठिनाइयों के साथ बीता पर उन्होंने अपना धैर्य नहीं खोया । औ...

मेरे पूजनीय माता पिता एक बहुत ही गरीब परिवार से हैं। जिनका अपना सारा जीवन बड़ी ही कठिनाइयों के साथ बीता पर उन्होंने अपना धैर्य नहीं खोया । और वह आगे बढ़ते गए मेरे पिता गुदरिया गांव के निवासी थे । पर वहां उनको किसी कारण बस गांव छोड़कर अपनी ससुराल मंगरौली में रहना पड़ा । और वही मेरा जन्म सन 1997 ईस्वी में होलिका दहन के दिन हुआ था । हम दो भाई चार बहन थे जिसमें से मेरे बड़े भाई राजेश कुमार श्रीवास्तव जी को मां सरयू ने अपनी पावन पुनीत गोद में 17 जनवरी 2013 को हम सब से सदा सदा के लिए छीन लिया था । मेरे माता-पिता व हम सब को बहुत बड़ा दुख झेलना पड़ा माता पिता की वह हालत हो गई कि जिस प्रकार प्रभु श्री राम के वनवास जाने  के बाद मां कौशल्या औऱ पिता राजा दशरथ को दुख हुआ था । मेरे माता पिता ने पुत्र तो खो दिया पर अपना धैर्य नहीं खोया और मैं ही उनका एकमात्र सहारा रह गया मैं अपने माता पिता को शत-शत नमन करता हूं । कि जिनके पास ना तो कोई बिजनेस और ना ही जमीन फिर भी दिन रात मेहनत करके हमें भविष्य के लिए तैयार किया । और इंटर करने के बाद मेरा एडमिशन बीए में लखीमपुर के पास अमघट  के रामबख्श सिंह स्मारक महाविद्यालय में करवाया और मुझे वहीं अमघट के पास बेहजम में रुकना पड़ा ।  जहाँ हमें माता पिता के समान अनजान व्यक्तियों से प्यार मिलता गया  मैं माता पिता से दूर तो था पर माता पिता का प्यार कभी कमजोर नहीं पड़ा और उनके आशीर्वाद से मैं बीए की कक्षा में कॉलेज के टॉपर लिस्टो में तीनों साल मेरा नाम आता गया और मेरा हौसला बढ़ता गया यही देख मेरे माता-पिता ने मेरी आगे की पढ़ाई के लिए पैसों का इंतजाम कर बीएड में प्रवेश दिलाया हमने सोच लिया कि माता-पिता की सेवा और उनका नाम रोशन करना ही मेरा धर्म  है । तभी से हमने मां सरस्वती के व माता पिता के आशीर्वाद से एक नया मोड़ लिया और अपनी काव्य लेखनी को लिखता गया  जिसे रचनाकार नामक पत्रिका में सम्मिलित कर लिया गया यह उस गरीब  माता-पिता की ही देन है  जो में अपनी लेखनी में सफल हुआ ।

ईश्वर का रूप कैसा है ।

हर माता-पिता की अपनी एक  इच्छा होती है ।
कि अपने पुत्र को अपने से अच्छा बुद्धिमान बनाए

माता-पिता की छाया में ही जीवन होता है
माता पिता जो निस्वार्थ भावना की मूर्ति है ।
वे  संतान, को ममता, त्याग, परोपकार , स्नेह जीवन जीने की कला सिखाते हैं
माता-पिता ही भारतीय संस्कृत के दो स्तंभ हैं
जो हमें मजबूती प्रदान करते हैं माता-पिता ही भारतीय संस्कृत के दो ध्रुव हैं
मां शब्द ही इस जगत का  सबसे सुंदर शब्द है इसमें क्या नहीं  वात्सल्य ,माया ,अपनापन, स्नेह आकाश के समान विशाल मन सागर के समान अंतःकरण इन सब का संगम ही "मां "है
ना जाने कितने कवियों और साहित्यकारों ने मां के लिए न जाने कितना लिखा होगा लेकिन मां के मन की विशालता अन्तःकरण की  करुणा मापना आसान नहीं है परमेश्वर की निश्छल  भक्ति का अर्थ ही मां है ।
ईश्वर का रूप कैसा है
यह मां का रूप देकर जाना जा सकता है
ईश्वर के असंख्य रूप  मां की आंखों में झलकते है संतान अगर मां की आंखों के तारे होते हैं तो मां भी उनकी प्रेरणादायनी होती है ।
कुपुत्र अनेक जन्मते है पर कुमाता मिलना मुश्किल है
इसीलिए सर्वप्रथम
माता-पिता को नमन  करना चाहिए सारे जग की सर्वसम्पन्न सर्वमांगल्य सारी सुचिता फीकी  पड़ जाती है मां की महत्व के सामने

माँ यानी ईस्वर  द्वारा मानव को दिया गया अनमोल उपहार है पिता भी अपने पुत्र को जीवन जीने के योग्य दिशा दिखलाने  वाला परमात्मा होता है
माँ तो अपनी कमजोरी व्यक्त कर देती है लेकिन पिता कभी भी अपनी कमजोरी व्यक्त नहीं कर पाता है मन ही मन में हंसमुख होकर पारिवारिक संकटों से जूझता रहता है पिता का प्यार व माता का दुलार आज भी जगत प्रसिद्ध है
मैं उन माता-पिता को नमन करता हूं जिन्होंने मुझे जन्म दिया है और उस निराकार भगवान से वंदना करता हूं कि
जिस प्रकार राजा दशरथ ने भगवान प्रभु श्रीराम से वरदान मांगा था कि है पुत्र मुझे जब भी मानव योनि में  जन्म मिले तो मैं तुम्हें  पुत्र रूप में ही पाऊं  उसी प्रकार मैं भी उस निराकार देव से वंदना करता हूं कि हे प्रभु मुझे मानव योनि में  जब जब जन्म मिले मुझे यही माता और पिता मिले

हर दुख हर दर्द को वो
हंसकर झेल जाता है
बच्चों पर मुसीबत आती है तो
पिता मौत से भी खेल जाता है

बेमतलब सी इस दुनिया में
वही हमारी शान है
किसी शख्स के वजूद की
पिता ही पहली पहचान है

भुला के नींद अपनी सुलाया हमको
गिरा के आंसू अपने हंसाया हमको
दर्द कभी ना देना उन हस्तियों को
खुदा ने मां-बाप बनाया जिनको

---

कवि संजय कुमार श्रीवास्तव

              के

            मुक्तक

1 . सितारों की पनाहों में
      अगर, कोई शाम मिल जाए
      गुमराह सी इस दुनिया में
       कोई पहचान मिल जाए
      मेरे यारों की यारी को ,हमेशा यार मिल जाए
      दीवानों को दीवानी का, तुरत दीदार हो जाए

2 . बरसना है तो बरसो तेज
      अन्यथा तुम चले जाओ
      यूं ही तुम फुहारों से हमें ना याद दिलवाओ
      जो बीते कल का सपना था ,
      जो बीता कल भी अपना था
     देखते रह गए नैना ,सुना कुछ भी नहीं पाए ,
      सुना में भी नहीं पाया ,नहीं पाया

3. प्रेम की आग इंसां को
     जला अंदर ही देती है
     नदी में लाख कूदो पर
     बुझा वो भी न पाती है
     जिन्होंने आग दी तुमको , उसी से शांत होती है
     मिले जब दिल से दिल यारों ,तभी वो आग बुझती


4. गुमसुद जो बैठा रहता है
    उसकी ये पहचान है
    या फिर उसे सब कुछ आता है
     या फिर ओ अनजान है
    लोग समझते है उसको ,इसे नहीं कुछ आता
    तुम क्या जानो उसके मन की ,तुम से बड़ा हो सकता


 

     शायरी

अब वो बदले बदले से लगते हैं


फोन करो तो टाइम नहीं कहते हैं
पता नहीं क्या हो गया उनको
जो सरे आम बदनाम किया करते थे

मुझे तेरी हर अदा पसंद आती है
तू बात न करे तो दिन में शाम हो जाती है
ये महबूब तू इस कदर न तड़फह मुझे
बस दो साल की ही तो बात है फिर तो चले जाना है


किसी के साथ जो की थीं वफ़ाएं याद करती हैं,हमारी धूप को ठंडी हवाएं याद करती हैं.कभी होंठों से हमने उनकी बूंदों को नहीं छूआ,हमारी प्यास को अब वो घटाएं याद करती हैं.

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मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi 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रचनाकार: सितारों की पनाहों में अगर, कोई शाम मिल जाए - संजय कुमार श्रीवास्तव
सितारों की पनाहों में अगर, कोई शाम मिल जाए - संजय कुमार श्रीवास्तव
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