मेरे पूजनीय माता पिता एक बहुत ही गरीब परिवार से हैं। जिनका अपना सारा जीवन बड़ी ही कठिनाइयों के साथ बीता पर उन्होंने अपना धैर्य नहीं खोया । औ...
मेरे पूजनीय माता पिता एक बहुत ही गरीब परिवार से हैं। जिनका अपना सारा जीवन बड़ी ही कठिनाइयों के साथ बीता पर उन्होंने अपना धैर्य नहीं खोया । और वह आगे बढ़ते गए मेरे पिता गुदरिया गांव के निवासी थे । पर वहां उनको किसी कारण बस गांव छोड़कर अपनी ससुराल मंगरौली में रहना पड़ा । और वही मेरा जन्म सन 1997 ईस्वी में होलिका दहन के दिन हुआ था । हम दो भाई चार बहन थे जिसमें से मेरे बड़े भाई राजेश कुमार श्रीवास्तव जी को मां सरयू ने अपनी पावन पुनीत गोद में 17 जनवरी 2013 को हम सब से सदा सदा के लिए छीन लिया था । मेरे माता-पिता व हम सब को बहुत बड़ा दुख झेलना पड़ा माता पिता की वह हालत हो गई कि जिस प्रकार प्रभु श्री राम के वनवास जाने के बाद मां कौशल्या औऱ पिता राजा दशरथ को दुख हुआ था । मेरे माता पिता ने पुत्र तो खो दिया पर अपना धैर्य नहीं खोया और मैं ही उनका एकमात्र सहारा रह गया मैं अपने माता पिता को शत-शत नमन करता हूं । कि जिनके पास ना तो कोई बिजनेस और ना ही जमीन फिर भी दिन रात मेहनत करके हमें भविष्य के लिए तैयार किया । और इंटर करने के बाद मेरा एडमिशन बीए में लखीमपुर के पास अमघट के रामबख्श सिंह स्मारक महाविद्यालय में करवाया और मुझे वहीं अमघट के पास बेहजम में रुकना पड़ा । जहाँ हमें माता पिता के समान अनजान व्यक्तियों से प्यार मिलता गया मैं माता पिता से दूर तो था पर माता पिता का प्यार कभी कमजोर नहीं पड़ा और उनके आशीर्वाद से मैं बीए की कक्षा में कॉलेज के टॉपर लिस्टो में तीनों साल मेरा नाम आता गया और मेरा हौसला बढ़ता गया यही देख मेरे माता-पिता ने मेरी आगे की पढ़ाई के लिए पैसों का इंतजाम कर बीएड में प्रवेश दिलाया हमने सोच लिया कि माता-पिता की सेवा और उनका नाम रोशन करना ही मेरा धर्म है । तभी से हमने मां सरस्वती के व माता पिता के आशीर्वाद से एक नया मोड़ लिया और अपनी काव्य लेखनी को लिखता गया जिसे रचनाकार नामक पत्रिका में सम्मिलित कर लिया गया यह उस गरीब माता-पिता की ही देन है जो में अपनी लेखनी में सफल हुआ ।
ईश्वर का रूप कैसा है ।
हर माता-पिता की अपनी एक इच्छा होती है ।
कि अपने पुत्र को अपने से अच्छा बुद्धिमान बनाए
माता-पिता की छाया में ही जीवन होता है
माता पिता जो निस्वार्थ भावना की मूर्ति है ।
वे संतान, को ममता, त्याग, परोपकार , स्नेह जीवन जीने की कला सिखाते हैं
माता-पिता ही भारतीय संस्कृत के दो स्तंभ हैं
जो हमें मजबूती प्रदान करते हैं माता-पिता ही भारतीय संस्कृत के दो ध्रुव हैं
मां शब्द ही इस जगत का सबसे सुंदर शब्द है इसमें क्या नहीं वात्सल्य ,माया ,अपनापन, स्नेह आकाश के समान विशाल मन सागर के समान अंतःकरण इन सब का संगम ही "मां "है
ना जाने कितने कवियों और साहित्यकारों ने मां के लिए न जाने कितना लिखा होगा लेकिन मां के मन की विशालता अन्तःकरण की करुणा मापना आसान नहीं है परमेश्वर की निश्छल भक्ति का अर्थ ही मां है ।
ईश्वर का रूप कैसा है
यह मां का रूप देकर जाना जा सकता है
ईश्वर के असंख्य रूप मां की आंखों में झलकते है संतान अगर मां की आंखों के तारे होते हैं तो मां भी उनकी प्रेरणादायनी होती है ।
कुपुत्र अनेक जन्मते है पर कुमाता मिलना मुश्किल है
इसीलिए सर्वप्रथम
माता-पिता को नमन करना चाहिए सारे जग की सर्वसम्पन्न सर्वमांगल्य सारी सुचिता फीकी पड़ जाती है मां की महत्व के सामने
माँ यानी ईस्वर द्वारा मानव को दिया गया अनमोल उपहार है पिता भी अपने पुत्र को जीवन जीने के योग्य दिशा दिखलाने वाला परमात्मा होता है
माँ तो अपनी कमजोरी व्यक्त कर देती है लेकिन पिता कभी भी अपनी कमजोरी व्यक्त नहीं कर पाता है मन ही मन में हंसमुख होकर पारिवारिक संकटों से जूझता रहता है पिता का प्यार व माता का दुलार आज भी जगत प्रसिद्ध है
मैं उन माता-पिता को नमन करता हूं जिन्होंने मुझे जन्म दिया है और उस निराकार भगवान से वंदना करता हूं कि
जिस प्रकार राजा दशरथ ने भगवान प्रभु श्रीराम से वरदान मांगा था कि है पुत्र मुझे जब भी मानव योनि में जन्म मिले तो मैं तुम्हें पुत्र रूप में ही पाऊं उसी प्रकार मैं भी उस निराकार देव से वंदना करता हूं कि हे प्रभु मुझे मानव योनि में जब जब जन्म मिले मुझे यही माता और पिता मिले
हर दुख हर दर्द को वो
हंसकर झेल जाता है
बच्चों पर मुसीबत आती है तो
पिता मौत से भी खेल जाता है
बेमतलब सी इस दुनिया में
वही हमारी शान है
किसी शख्स के वजूद की
पिता ही पहली पहचान है
भुला के नींद अपनी सुलाया हमको
गिरा के आंसू अपने हंसाया हमको
दर्द कभी ना देना उन हस्तियों को
खुदा ने मां-बाप बनाया जिनको
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कवि संजय कुमार श्रीवास्तव
के
मुक्तक
1 . सितारों की पनाहों में
अगर, कोई शाम मिल जाए
गुमराह सी इस दुनिया में
कोई पहचान मिल जाए
मेरे यारों की यारी को ,हमेशा यार मिल जाए
दीवानों को दीवानी का, तुरत दीदार हो जाए
2 . बरसना है तो बरसो तेज
अन्यथा तुम चले जाओ
यूं ही तुम फुहारों से हमें ना याद दिलवाओ
जो बीते कल का सपना था ,
जो बीता कल भी अपना था
देखते रह गए नैना ,सुना कुछ भी नहीं पाए ,
सुना में भी नहीं पाया ,नहीं पाया
3. प्रेम की आग इंसां को
जला अंदर ही देती है
नदी में लाख कूदो पर
बुझा वो भी न पाती है
जिन्होंने आग दी तुमको , उसी से शांत होती है
मिले जब दिल से दिल यारों ,तभी वो आग बुझती
4. गुमसुद जो बैठा रहता है
उसकी ये पहचान है
या फिर उसे सब कुछ आता है
या फिर ओ अनजान है
लोग समझते है उसको ,इसे नहीं कुछ आता
तुम क्या जानो उसके मन की ,तुम से बड़ा हो सकता
शायरी
अब वो बदले बदले से लगते हैं
फोन करो तो टाइम नहीं कहते हैं
पता नहीं क्या हो गया उनको
जो सरे आम बदनाम किया करते थे
मुझे तेरी हर अदा पसंद आती है
तू बात न करे तो दिन में शाम हो जाती है
ये महबूब तू इस कदर न तड़फह मुझे
बस दो साल की ही तो बात है फिर तो चले जाना है
किसी के साथ जो की थीं वफ़ाएं याद करती हैं,हमारी धूप को ठंडी हवाएं याद करती हैं.कभी होंठों से हमने उनकी बूंदों को नहीं छूआ,हमारी प्यास को अब वो घटाएं याद करती हैं.
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