काव्य संग्रह - सरयू तट से - सुखमंगल सिंह

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अनुक्रमणिका १- साधु संत का धाम अयोध्या २-अयोध्या-राम'टैम्पल' ३- ज़िंदगी झमेला ४-रावण ५-कश्मीर ६- मुक्तक ७- मर्यादा ८-शौर्यगाथ...

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अनुक्रमणिका
१- साधु संत का धाम अयोध्या
२-अयोध्या-राम'टैम्पल'

३- ज़िंदगी झमेला
४-रावण
५-कश्मीर
६- मुक्तक
७- मर्यादा
८-शौर्यगाथा
९-स्वामी विवेकानंद

१०-राष्ट्र के लिए !

११- वीर
१२- चुनरी सिल रहा
13-  चुनरी सिल रहा
14- बंद कमरे
15-बादल उस ओर गये
16-तिरंगा पहरेदार
17- चाहत शांति की

18-कमाल कर दिया

19- खटिया –खलिहान

20-जय भारत-जय भारती

21- हरियाली

22-शान्ति का सन्देश

23-नारी को सन्देश

24-वाणी में नम्र भाव

25-गगन में दीप जले

26- व्यायाम

27-नवजवान

28-यही कबीर का गाँव

29-पानी को तरसोगे

30-राम कथा  

31-मिट्टी का वर्तन

32-पिता

33-प्रदुषण सियासत में?

34-अनमोल वचन

35-मंगलगीत

36-किरनावली मचलने लगी

37-बताना होगा

38-वृक्ष हमें दो वरदान

39-धाम- महान दुर्वासा

40-हाथ में मटका,आँख में पानी

41-गंगा (व्यंग रचना)

42-द्वारे आई बारात

43-पत्नी – पति

44-मौसम को बुलाने की सोच

45-प्रिये जब ली अंगड़ाई

46-झगडे- फसाद

47-आजादी ?

48-कदम बढ़े-कदम बढ़ें

49-कांति हेराइल?

50-गरीब

51-बोली – भाषा

52-खुशियां बाँट रहा मौसम

53-कारगिल विजय दिवस

54- सपने

55-प्यार के गीत

56-माटी का मोल

57-रिश्ता

58-सम्मान होता है

59-लक्षकर चल

60-कंदरा के लोग

62- आलोचना

63-पपीता

64-काशी बड़ी महान

65-मोदी को फिर लाना

66-तरबूज

67-गाउँ मल्हार

68-प्यार को आने दो

69-साथी पास मेरे

70-साजन मोरा परदेश

71-सहपाठी मिले

72-"जागरूकता"

73-आने वाला वसंत
74-मातृ दिवस

सुखमंगल सिंह की रचनाएं-

 साधु संत का धाम अयोध्या

अयोध्या प्रभु का धाम

जा ले लो मानव ज्ञान
कर लो सरयू में स्नान
बनेंगे जीवन के काम |

साधु संत का वह धाम
मंगल का उन्हें प्रणाम |
यह भारत की है शान
नगरों में बड़ा महान |

यही दसरथ का धाम
कर्म भूमि लखन- राम
लिख! बाल्मीक बने
रामायण से गुनवान |

तुलसी के प्रभु का धाम
गावत सकल जहान |
अयोध्या प्रभु का धाम
जा ले लो मानव ज्ञान||

     ***

"अयोध्या-राम"टैम्पल"

मित्र देश का साथी,

था वह  बोल रहा ?

है हमें  बनाने को ,

निर्णय मन से लिया |

शिव मंदिर यहाँ पर,

टैंपल राम अयोध्या ||

 

अजब दीवाना जीवन,

लौटकर आए न आए,

सागर सा यह हृदय,

फूल मरुस्थल खिलाए,

स्वप्न टीसते रहते,

टैंपल राम अयोध्या || 


अच्छे दिन तो आएं !

नई फसल धरतीपर,

फूल जंगल- खिलाएं,

सबकुछ उसकी कृपा,

सृजन संघर्ष ऐसा करें,

टैंपल राम अयोध्या||


एक सी हो साधना,

कभी थके न आराधना,

काल इतिहास मेरा ,

उजाले अँधेरे में लाये,

ज्ञान की भाषा बने,

टैंपल राम अयोध्या||


मुस्कलों से जूझती,

राजनीतिक गंध लिए,

न्याय के दरवाजे पर, 

बड़े बड़े ताले  हैं पड़े !

संविधान लगते मूक,

टैंपल राम अयोध्या||


रोटी के टुकड़े छोड़,

सोने- चांदी खाने को,

बाग़ - बगीचे  लुटेरे,

बौर आम में उलझे,

यादों के फूल महके,

टैंपल राम अयोध्या||


मौन साधना अचर्चित,

दर्द थिरकती लय  लेकर,

हर बादल पानी बर्षाये,

सागर का संयम लेकर,

लिख रहे तूफान 'मंगल,

टैंपल राम अयोध्या||

     ***



* ज़िंदगी झमेला


नाम से जिसके चलता रेला ,

उसी नाम से ठेलम ठेला!

बच्चे करते नहीं झमेला ,

लगता बस बच्चों का मेला |

मार समय की सबने झेला,

कौन समझ पाया यह खेला |

बाजारू बन रहा अकेला,

अपने गैर का है रेला |

शिखर को भी खाईं में ढलेला,

सिंहासन पर बैठ अकेला |

मार समाज की जिसने झेला ,

उसका साथ  , नहीं अकेला |

      *** 


* रावण


धरा -गगन औ राहू केतू ,शनि जिसके रहा अधीन |

इन्द्र जाल व तंत्र -मंत्र ,सम्मोहन भी पराधीन ||

अस्त्र - शस्त्र वा विमान माया उसके अधीन|

फिर भी शाप से शापित ,वह जबकी रहा कुलीन ||

             ***

* कश्मीर


कबतक चलेगा कारवां यह बताइये,

कश्मीर उबाल न जाये चलकर बताइये |

जिसमें जितना दम हो उसी को  लगाये,

भारत वासी कह के उसको दिखाइये||

(नवजीवन की अपनी कहानी में)

           ***

* मुक्तक


लिखना -पढ़ना नौकरी -

करना   अलग जीवन क बात |

संस्कार -संस्कारिक होना ,

'मंगल' लाख टके की बात |


                 ***

·     

    मर्यादा

·          

·         जीवन काल का मरम – सत्य

·         सुबह – सुबह हमें बताती |

·         गौरव गाथा हमें पढ़ाने

·         मर्यादा ही पहले आती |

·         मन से वचन और कर्म से

·         बेदी पाठ हमें पढ़ाती |

·         ऊषाकाल के महत्व को

·         भोर मेन ही हमें जनाती |

·         अरमानों भरा यह जीवन

·         मर्यादा ही हमें सिखाती||

                         ***    

शौर्यगाथा      

       जागो भारत जागो,जागो

       पग- पग है संग्राम प्रबल

       अपने प्राण को त्यागो !

       जागो भारत जागो,जागो|

              ***


  स्वामी विवेकानंद

    अट्ठारहसौ तिरसठ वह वर्ष दिन रहा महान,

     बारह जनवरी विवेकानंद स्वामी जनमानि

     मातु भुवनेश्वरी धर ध्यान, नरेंद्र रक्खा नाम

     लाडले पुत्र का बचपन का रक्खा था नाम

     पिता क हाईकोर्ट कचहरी का रहा काम

     विश्वनाथ दत्त वकील प्रसिद्ध उनका नाम

     बड़ा होकर नरेंद्र भारत का बढ़ाया मान

     गूंजा विश्व विवेकानंद भारतीय महान |

                           ***

    

  राष्ट्र के लिए !

साहित्य का कोना–कोना छानूँ

साहित्यकारों के मान के लिये

सदा से छ्ंटता रहा अंधेरा

प्रकाश और तापमान के लिए |

खेतों को एनआईटी कोड रहा हूँ

अन्न के उचित दाम के लिये

मैं भी जहर को पी सकता हूँ

अपने प्यारे जहां के लिये|

शहरे आतंक ढहा सकता हूँ

विश्व शान्ति-सम्मान के लिये

हमने सबको गले से लगाया है

जनगण मन गान के लिए |

अमन, खुशहाली–कायम रखता

खुदा और जहान के लिए ||

             ***

वीर


भारत देश वीर जवानों का,दुनिया को बतलादो |
सीमा के वीर जवानों,परचम अब लहरा दों ||
समय न देना गद्दारों को,करतब तुम दिखला दो |
सद्भाव प्रेम का अपना देश,तू दुनिया को सुना दो ||
हम वीरों में वीर सूरमा,भारत माँ के लाल हैं |
दुनिया मेरी लोहा माने,आगे बढ़कर बतला दो ||

               ***


    

चुनरी सिल रहा 


धन्यवाद कहने आये हैं ,
सरपट बाँधी समा दिखाए हैं |
लोगों को लुभाए हैं ,
गहराई में गोता लगाए हैं ||-
वे फ्रेम में पड़े हैं ,
राष्ट्र गीत नहीं गाते हैं |
मंचासीन होने को अड़े हैं ,
अपने मन से खड़े हैं ||
आईने सामने रख बैठते हैं,
देर तक दम हिलाते हैं |
बाह बार-बार सरकाते हैं ,
झट चोंच मार जाते हैं ||
मेहनत की रेखाएं हैं ,
संप्रभुता की दुआएं है |
कुशलता की कलाएं हैं ,
अपने मन से टिकाये है ||
राखियाँ हाथ में हैं ,
बैसाखियाँ साथ में हैं |

व में बेड़ियाँ है ,
जीभ लपलपाये हैं ||
सिलाई मशीन लाये हैं ,
चादर फैलाए हैं |
लड़की बड़ी हो रही-
चुनरी सिलने आये हैं ||

    ***

बंद कमरे

 
  बंद कमरे में
बैठ हर शक्स को ,
बोल दो ,
बाहर की हवा लेता रहे ?
रहना हो गर कैद ,
घर में तो ,
वेद-कुरआन ,
सदा पढता रहे |
जो सबका मालिक एक हौ ,
हमें पूजते रहना चाहिए !
यह 'मंगल' नहीं ,
इस्लाम कहता !
बेटी अच्छे घर जाय ,
जन्नत मिलती है |
गैर महिलाओं से नजर ,
बचाके चलो !
गर मिल जाय तो ,
शिर झुका के चलो |
सभी के लिए,
खुदाने बनाए आहार!
उसी को केवल ,
तुम खाते चलो||

    ***

     बादल उस ओर गये


बूँद बूँद को तरस रहे हम
बादल उस ओर गये|
आम के पेड़ वहीं फिर
भी बादल उस ओर गये|
सपनों के खरगोश हैं भूखे
बादल उस ओर गये|
घास डालता कौन इन्हें जब
बादल उस ओर गये|
सूखे दिनों की आशंका ले
बादल उस ओर गये|
मेघों की घनघोर छ्टा पर
बादल उस ओर गये||
    ***

     तिरंगा पहरेदार"


यह तुलसी मीरा औ
ये रसखान का शहर है |
गांधी ,आजाद बिस्मिल
बलिदानियों का नगर है |
सिख -इसाई -मुस्लिम
और हिन्दुओं का घर है |
मानवता की राह में
हर लोग हम सफर हैं |
मीरा -कबीर -तुलसी औ
पत्थर भी वफादार हैं |
गणतंत्र दिवस -आजादी
का तिरंगा पहरेदार है||
      ***
 

चाहत शांति की

शान्ति चाहते हो यदि

प्रेम ईश्वर से करिये

कर लीजिये 

तमाशबीन है

जहां सारा

दिल से खुद

अपने पूछिए

  ***

कमाल कर दिया

  कमाल कर दिया 
एक गुजराती आया
और कमाल कर दिया
नदी -नाले तालाब ने
धमाल कर दिया |
विश्वविद्यालय औ सड़क
सबके दिन बहुरे
गंगा की सीढियां बनीं
वरुणा में जल ठहरे |
जैसे कि धोती फाड़ के
कमाल कर दिया
एक गुजराती आया
और कमाल कर दिया |
अपना अपना सबका सपना
सोया भाग जगा
होने लगे सच सब सपने
ऐसा सबको लगा
जन -जन का सुखी
होने लगा हिया
एक गुजराती आया
और कमाल कर दिया |
पाक के अंकी-मंकी-डंकी
नापाकी है सब आतंकी
उन्हें खोज सब सेना मारे
काम यही है ढंग की |
पाक चुभाये काँटा
भारत भाल कर दिया
एक गुजराती आया
और कमाल कर दिया ||


    ***

खटिया –खलिहान

परवानों क परवान चढ़े,
दीवानें हलकान दिखे,
जब समाज क डंडा चढ़ता ?
खटिया औ खलिहान लड़े |



लोगों को याद आये तो अकड गये
राह में पडे रोडे भी देखा खिसक गये
जब जाब की बात, आम हुई सरकार

भी तो देखो कागज में सिकुड गयी||

              ***



   जय भारत-जय भारती


तपो भूमि है धरा विमल
वहीँ बहे अमृत धारा |


किंचित कुछ कलुषित मन
चलते नये किनारे |


पतित पावनि धरा हमारी
ऋषि मुनि अगनित सारे |

 
सुकर्म से मुक्ति दिलाती
बुद्धि   सुबुद्धि सहारा |


विश्व विदित विद धवल
ललित ललाम से लथपथ |


तपो भूमि है धरा विमल
वहीँ बहे अमृत धारा ||

   *** 

हरियाली 

हरियाली घर आंगन आये

दिल से आओ प्यार करें

गगन के पक्षी डाल डाल से

कलरव में गुणगान करें |

कोयल की माधुरी वाणी हो

कागा बैठा ध्यान करे

लेकर अभिलाषा मन दिल में

कोना - कोना ज्ञान भरें |

लछिमन चिड़िया 'मंगल ' गाए

गादी बैठे झाँक लगाए

लाल - गुलाबी नीली -पीली

धानी  मानी वसन बनाये |

मूल भूत पाषाण शिलायें

उठकर खुद नाम लिखाएं

विविध यतन के दाना डालें

उँघे धरातल जाल विछाएँ |

नहीं कहीं कोलाहल हो

हरियाली का जाल बिछायें |

हरियाली घर आंगन आये

दिल से आओ प्यार करें|

      ***

शान्ति का सन्देश

सद्भाव  औ प्रेम परोसते चल दिया

शान्ति का सन्देश देते चल दिया

देश संस्कृति- संस्कारों में पला

विश्वबंधुत्व कामना लेकर चल दिया |


जिससे हो न दुःख ना चिंता

निश्चिन्त मन, भय से दूर चल दिया

सुख - शान्ति की धारणा ले चलें 

अर्थ - गर्भित शब्द औ समभाव मिले |


ना कहीं युद्ध न कोलाहल हो

मनसरोवर के गीत गाता  चल दिया

खोजते फिरते लोग और स्थान में !

धर्मों  के मंथन में मिली शान्ति है


नष्ट करते चल दिए मन के कलुष को

वाणी में नव पुष्प खिलाते चल दिये

आसुओं में मुस्कराहट देते निकले

भावना के प्रकाश फैलाते चल दिया |


लोगों में आपसी लड़ाई ना छिड़े

त्याग की तलवार से काटते चल दिया

श्रेष्ठ नागरिकता की भावना प्रबल करते

व्यापक लोक हित सोचते चल दिया |


सुनना - सुनाना ' मंगल ' का मान

गृह- वाटिका में पुष्प खिलाके चल दिया||

      ***

नारी को सन्देश


 
नारी के इतिहास में

कविता है जान ।

सच से लड़ने की

सहर्ष स्फूर्ति प्रदान ।

सहना नहीं अब

लड़ना ही मान ।

बदलते परिवेश में

मुकावला ठान ॥

   ***

वाणी में नम्र भाव  

         
विद्या- दौलत मेहनती को मिल जाती है |

स्वास्थ्य नियमन हो तो लौट न पाती है ||


यदि वाणी में हो नम्र भाव का अर्पण !

सुन्दरता खुद से ही लेकर आये दर्पण ||


ज़रा सी भूल से तस्वीर बदल जाती है |

गुजरे हुए समय में रौनक नहीं आती है ||


अच्छे पल में पल रहे प्रभु का प्रेमी प्यार

मथुरा- वृन्दावन पावन मोहन  उपहार ||

        ***

गगन में दीप जले  

आसमान को छूता मनुआ ,धरती करे पुकार |

अपना अधिकार धरा पे,जन- जन का सत्कार ||


धरती करे पुकार अपनों से जमी पे चलना यार |

खबर खबरिया लेने वाले करते हा हा कार पुकार ||


पड़ोसी की चिंता करना,सदियों का था अधिकार|

बतकही बढ़ते - बढ़ते लोग,करना भूले सत्कार||


मंगल कहता महाबीर अब, तू केवल खेवनहार |

रामचन्द्र वन-वन खोजत,रावण क्यों करता संहार||


भोले नाथ को नमन मंगल,कहीं भूलें नहीं विचार|

सुरक्षा परिसद में नाम , मनुआ अपना अधिकार||

         ***

व्यायाम

नार्वे से आया फरमान
बचा लो पंचों अपनी जान !
याद करो वह अपना धाम
शारीरिक श्रम बनाये काम |
बचाता डिप्रेशन व्यायाम ,
शरीर क्षमता हो बलवान |
शोध करता पहुचे मुकाम ,
मानसिक बीमारी सुरधाम !
वयस्कों पर आया अध्ययन,
डिप्रेशन से न हों अनजान |
उल्लेखनीय कमी का अनुमान ,
व्यायाम सुगम बनाया काम |
'मंगल' क कर करे प्रणाम,
दवा से मुक्ति दे व्यायाम ||

    ***

नवजवान

जनता बड़ी महान ,
संयम से लेना काम |
भारत का होगा नाम ,
चीन ने गाया है |
मेरे लड़ाकू जवान ,
सुन्दर होगा कार्य |
झटक! उसका समान ,
चीन ने गाया है |
देदो शान्ति पैगाम ,
एकता अपना धाम |
दिखाओ अपना काम ,
चीन ने गाया है ||

   ***

यही कबीर का गाँव 

मेरा देश महान मनुमा अपने ठान देश का तू शान ,हिन्दुस्तान दोस्तों |३२+१०=४२ म
होता गीत गान कृष्ण जहां विद्वान मानवता का मान ,है भारत महान ||हिन्दुस्तान ...

शारीरिक शक्तिमान परिवार स्नेह ठान लाए देश जान ,हिन्दुस्तान दोस्तों |
भगत आजाद वान अपना देश महान यह अयोध्या धाम ,हिन्दुस्तान दोस्तों ||

राणा शिवा ललकार गांधीवादी विचार शान्ति तलवार ,हिन्दुस्तान दोस्तों |
वन्देमातरम दमदार राष्ट्रध्वनिधार त्याग पर अधिकार ,हिन्दुस्तान दोस्तों ||

ईशु का प्रेम विज्ञान गुरुनानक का ज्ञान खुदा का सम्मान ,हिन्दुस्तान दोस्तों |
है धर्म ही विज्ञान जहां बुद्ध का मान जी सीता सम्मान ,हिन्दुस्तान दोस्तों ||

वसते वहा भगवान श्रद्धा ही दान - सुनाते वेद पुराण ,हिन्दुस्तान दोस्तों |
पड़े मान्धाता पाँव नारद मुनि क ठाँव यही कबीर गाँव ,हिन्दुस्तान दोस्तों ||हिन्दुस्त..

                      ***

     "पानी को तरसोगे"

नापाक इरादा बंद करो, वरना पानी को तरसोगे |
मेरे बलपर पलकर तुम, हिजबुल जैसा कहते हो ||
तेरी करतूतों पर सारी, दुनिया थू -थू करती है |
गतिविधियों पर तेरे भारत पैनी नजर रखता है |

          ***

राम कथा  

-       

"रामकथा कलिकाल कुठारी""
सुन्दर नगर सबहि नर नारी "
उमा -प्रश्न उत्तर त्रिपुरारी ,
गंगा धीर सुनहु महतारी |
सुन्दर नगर सबहि नर नारी,
शोभा बरनि न जाय पुरारी |
विश्व मोहनी नारी हितकारी ,
सुता जनकहि वाला दुलारी |
राम कथा सुन्दर हितकारी,
मंगल भवन अमंगल हारी |
नाम अनंत कुशल त्रिपुरारी,
रामकथा कलिकाल कुठारी|
दिखि रघुवीर गिरिराजकुमारी,
पूछत कुशल शंभू त्रिपुरारी|
दसरथ सुत मिलिकरत विचारी,
मंगल भवन अमंगल हारी||



 

मिट्टी का बर्तन


जब हम रहे बारकुवार,
तब हम सहनी मार तुहार |


तुहरा के समझब हम जब,
जब ब्याह के मारा तब ||

   ***


पिता


पितु सत्ता प्रेरक बनकर ,जीवन में अमृत भर देती |
संकल्प भागीरथ की देती, उच्च हिमालय - बल देती ||


धर्म का उद्घोष कराती ,विश्व शान्ति उद्देश्य बताती |
फैला देती उजियारा , आत्म दीप बन हमें सिखाती ||


दिव्य ज्योति के संवाहक होकर ,लक्ष्य मार्ग दिखाती |
सूर्योदय का देश हमारा ,सद्भाव - प्रेम का दीप जलाती ||

            ***

प्रदूषण सियासत में ?

गर सियासत में प्रदूषण आ गया ,
धरा समझ लो जहर छा गया |
जो मछलियाँ समुद्र में तैरती रहीं ,
किनारे सांस लेने आ गयीं |
धरती की रानी कहलाने आ गयीं ,
दीपक सूरज s दिखाने आ गयी |
घडियाली आंसू बहाने आ गये,
खेल तकदीर का दिखाने आ गये|
सूरत से सीरत s अंदाज जनाने आगये,
ढाई चावल की खिचडी पकाने आ गये|
बात का बतंगड़ बनाने आ गये,
बिल्ली के सिरहाने दूध जमाने आ गये ||

           ***

अनमोल वचन 

आत्मा  संयमित रखता

प्रेम- वास्तविक जीवन

बांधता नहीं भवजाल से

ईश तोड़ता सारे बंधन |


जीवन खुशनुमा बनाये

धर्म ख़ुशी के लिए है होता

सबके लिए आनन्द श्रोत

स्वच्छ कर देता है मन|


परहित सरिस धर्म है

तप - योग से ऊपर

झूठ और दंभ को भी

बाहर करता है सत्संग |


धोखा न दो विश्वासी को

मदद करो बढ़ चढ़ कर

पूर्ण सफलता उसी में

कभी नहीं जो बनाता मंगन|


विचार हमारे हमें बनाते

परवाह उसी की करें 

दूरतक यात्रा वही कराता

और मिटाता सारे लांछन |


महान कार्य कीजिये

प्रयास लंबा रीझिये

चरित्र  बनाये रखिये 

ठोकरों से मिले कंचन ||

   ***


 

मंगलगीत 

जालिम सर चढ़ बोल रहा है बंदूकों के साये में
वन्देमातरम में कब तक हम  कौम को जगायेंगे |
नरमुण्ड माला वाली माँ, कितना उसे  समझाँएँगी
खून के प्यासे कातिल, भरमाते आएंगे भरमाएंगे ||

तीर -त्रिशूल पे कहाँ तक विषधर का थूक लगाएंगे
जवान खड़ा भारत मेरा, कब हम जय हिंद गाएंगे |
माना युद्ध भूमि पर शहादत देने से, स्वर्ग पाना है
  वीर शहीदों के शान में, वन्देमातरम गाये जाएंगे ||

केशरिया बाना वीरों के, रणभेरी रण  में  बजायेंगे
शहीदों को गीत समर्पित हिन्द से  लिखते  आये | 
देशपे  मरने वालों को श्रद्धासुमन अर्पित करते आये
वन्देमातरम में कब तक हम  कौम को जगायेंगे ||

हिन्दू- मुस्लिम सिक्ख- ईसाई माना भाई –भाई

त्राहि -त्राहि मची विश्व में हरहद पार बढ़ी कठिनाई

काली का आवाहन माँ'मंगळ  मंगल होगा सुखदाई

दुश्मन को वन्देमातरम से दुःख हो तो हो दुखदाई ||


  बढ़ता  जुल्म देख नौकरशाही का  प्रजा घबराई

हैं सन्नाटे में गूँज देख देख रही अब तो माई-ताई |

बड़ी - खड़ी - कढ़ी मूछें रखते आये हैं मेरे दादा-भाई

  कौम को वन्देमातरम में कब तक हम जगायेंगे ||


थी  फुलवा - सोनवा की टाठी में सबने जेवना खाई

मुछमुंडों के हाथों में जब से राष्ट्र  की सत्ता  आई |
उनने वन्देमातरम गीत पर  निरंकुश अंकुश लगाईं
वन्देमातरम से दुश्मन को दुःख हो तो हो दुखदाई ||

वीर तुम बढे चलो धीर तुम बढे चलो सिंह दहाड़ लायें

अपनी  जननी के गौरव की अविरल गाथा मिल गायें
संसद की दहलीज जगाने तिरंगा - मंगल  गीत गवाई 

वन्देमातरम गीत को गाने जच्चा बच्चा उमड़ते  आई ||

         ***

किरनावली मचलने लगी 


दीप किरनावली मचलने लगी |

दीप जलने लगे रात– दिन बन सुमन ,

दीवाली में दीपिका थिरकने लगी |

जगर मगर ज्योति जले किरण कनक ,

अंग अंग जन जन मन मचलने लगे |

कहानी लिखी जब शहीदों की ,

दीप किरनावली मचलने लगी | |

छवि देख भूलि गये दुःख -मिलन ,

झपकि -झपकि मन के दीप जलने लगे |

ज्योति किरण कीर्ति कसि ललित लोल ,

द्रोण- ढोल लोगन मा बजने लगे |

कहानी लिखी जब शहीदों की ,

दीप किरनावली मचलने लगी ||

तन की सुबास बास उमगे अनंत

जंत्र कंत सुख समृद्धि संत सजने लगे |

अगर मगर --------------

रोदन लोगन लगन लगने लगे |

कहानी लिखी जब शहीदों की ,

दीप किरनावली मचलने लगी | |

सम्पति सुमेर की कुबेर की मातु संग ,

गणपति गणेश महेश महकने लगे |

फरकि फरकि उछरि उछरि लुटावत किरन ,

चपला को चांद ठहकने लगे |

कहानी लिखी जब शहीदों की ,

दीप किरनावली मचलने लगी |

    ***

बताना होगा

भारत सद्भाव भरा राष्ट्र जहां को बताना होगा |
अतिहन्त -अपाचे चारो दिशा में लगाना होगा ||

विश्व बंधुत्व बदहाल सभी को सिखाना होगा |
सदियों क सुन्दर सुखद रूप दिखाना होगा ||

सबके लहू का एक जैसा रंग उन्हें बताना होगा |
इक्कीसवीं का देश हमारा हमें समझाना होगा ||

अनुप्रमाणित धरा पर फिर से श्री राम को आना होगा |
घर -घर ,जन जन , मन में बसे रावण को भगाना होगा ||

सरयू की उलटी धारा दसरथ वंश में बही थी, बताना होगा |
साहित्य-कथा की दिशा-दशा को संस्कार में ढालना होगा ||

कौशल - कोशलाधीश कौन लोगों को समझाना होगा |
नर्वदेश्वर की महिमा गरिमा सोमेश्वर को  गाना होगा ||

बलिदानियों के बलिदान की गाथा को हमें नहीं भुलाना होगा |
गोकुल गोखुर गाँव का गाना पवित्र -पवित्रता से सुनाना होगा ||

            ***

वृक्ष हमें दो वरदान

वृक्ष दो! हमें वरदान, समझें तुझे संत समान।
मथुरा करती गुणगान,आदिकालसे हो महान।।
कान्हा करता पीपल बास,बढे साधु में उल्लास।
घर तुलसी पीपल साथ, आक्सीजन पूर्ण हार्ट।।
औषधि कहते शास्त्र, कहर वरपाते हैं आप।
पुरखों के रखवाले पेड,मानव औ वृक्ष साथ।।
रक्षा करता जीवन का,न्यारे दिखते तुम खास ।
रिषि मुनि तुझे मानें, देवर्षि कहकर बखानेः।।
प्रकृतिप्यार से अडे हो,फिर भी मौन खडे हो।
लेते भोजन सूरज से,देते उसको सबको हो।।
मनुज तरस ना खाता, कटारी ले दौडाता ।
मंगल' मंगलमय महान'गीता गाये गुणगान।।
वृक्ष हमें दो -----

          ***

धाम- महान दुर्वासा


मनोहर धाम है दुर्वासा, धाम लगा महान दुर्वासा |
धरनी पर ब्रह्म निर्देशित ,सुतीर्थ स्थान है दुर्वासा ||
कहते मध्य पुण्य स्थल,अवध और काशी का |
समानांतर जहां से रहतीं .बहतीं सरयू और गंगा ||
मंजूषा-तमसा गले मिलतीं ,यहीं से मिल चली संगा |
महामुनि अत्रि ने यहीं पर ,तप कर सिद्धि पायी थी ||
जनक के आदेश पर ही तप किया सूत ने यहां आकर |
साधना का धाम दुर्वासा जिसे जग भी पुकारा पाकर ||
हरण करते आधिव्याधि सदा समाधि निवास मुनि हैं |
धरातल पर इसी मंगल शुभ क्षेत्र सुरपुर ने उतारा है ||

          ***

हाथ में मटका,आँख में पानी

बूंद बूंद को तरसे ,
अब बुंदेलखण्ड औ बांदा !
सभी अधर हैं सूखे -सूखे ,
चाहे न हो या हो मादा |
नदियां बनी जा रहीं नाला ,
जल होता जा रहा काला |
हाथ में मटका,आँख मे पानी ||
बादल नेताओं के जैसे ,
देकर जाते झूठा वादा !
सभी अधर हैं सूखे सूखे ,
चाहे नर हो या हो मादा ||

      ***

गंगा (व्यंग्य रचना)


मंगल की ललकार
सरयू करे पुकार
गंगा गंगा गंगा
तू पाताले जा ?
जब तू पाताले जायेगी
जहां हाहाकार मचाएगा |
गंगा -सरयू तेरी बहना
विष्णु आँसू उसका गहना |
बहुत हो चुका उलाहना
बड़े काम का तेरा अंगना |
गंगा तेरी महिमा - कृपा
से सरयू का और नाम बढेगा |
गंगा गंगा, गंगा तू पाताते जा ?

कमण्डल -पगनख की
जहा रीति नही चलती !
तुझने हजम करने की
नीति जहाँ चलती |
यह कलयुग है यहाँ
प्रीति  नही चलती ?
तेरी छटा पर का
उड़द दडा जाएगा ?
तेरे कण से, महल गढ़ा जाएगा !
गंगा गंगा तू पाताले जा !!

     ***

द्वारे आई बारात

“द्वारे पे आई बारात,

नखरे में समधी जी आज !

समधी – बहन भौ है तना,

बैंड बाजे से निकले आवाज !

छोटे – मोटे समधी हमार ,

द्वारे पे आई बारात ||
सूट -बूट पहन बन्ना बना

बग्गी पे चढ़ कैसा तना,

मूछ मुडवा के लड़का बना,

समधी जी का रूख तना |

छोटे – मोटे समधी हमार,

द्वारे पे आई बारात ||
गीत गाँव गोतिहारिन गावें

समधी -समधिन रिझजावें,

दोनों के  मिलन में सुमार,

समधिन की सजावट अपार |

छोटे – मोटे समधी हमार,

द्वारे पे आई बारात ||
मोहिं आई सखियाँ

हल्की लाज पधारे

द्वारे समाधि आज ,

दा बुलावा नाऊँ तुहार है काज,

आएंगे समधी द्वारे मेरे आज |

छोटे – मोटे समधी हमार ,

द्वारे पे आई बारात ||
पंडित बोलावा कलश बैठावा,

दूध-अच्छ्त ,दही-हल्दी सजावा,

लीप पोत द्वारे चादनी बिछावा,

ऊपर तोशक औ गद्दा लगावा,

मखमली  चादर तापर नावा |

छोटे – मोटे समधी हमार,

द्वारे पे आई बारात ||

     ***

पत्नी – पति

पत्नी – पति में भी होती लड़ाई है,

कभी ख़ुशी कभी गम में बिताते  हैं |
दोनों की घर में  होती लड़ाई है,

दुःख होता है जब होती जुदाई है |
जिंदगी में बड़ी कठिनाई है,

एक दूजे से कटती बुराई है |
पति बिना पत्नी बवंडर है ,

पत्नी को  पति अम्बर है |
पति आकाश  और पत्नी धरा है,

यह रिश्ता बेहद खरा – खरा है |  
रिश्ते में प्यार जब कभी भी बुलाता है,

चेहरा मुस्कराहट से खिल जाता है |
आपस में समस्या जब भी आती है,

तो समाधान सुखद  निकल जाता है |
पति – पत्नी में ख़ुशी – गम की लड़ाई है’

और खुशियों की बजती शहनाई है ||

              ***

मौसम को बुलाने की सोच


मौसम को बुलाने की सोचिये

मौसम को इशारों से बुलाने की सोचिये,

रूठा हो गर तो उसे मनाने की सोचिये |

जमाने में कोई दीवाना नहीं होता ,

मचलते दिल को भी मनाने की सोचिये |

खत लिख दो अभी उसे एक प्यार का ‘मंगळ ‘

इस तन्हाई को रंगीन बनाने की सोचिये |

जाग रहे तुम तो मुझे अच्छा नहीं लगता ,

अँधेरे की वही नींद चुराने की सोचिये |

मौसमी मिजाज बढ़ चढ़ सुनाने की सोचिये ,

दिल के उजड़े ख्वाब को खिलाने की सोचिये ||

           ***

प्रिये जब ली अंगड़ाई

खिली खिली बसंती धूप ,और फिजा ने ली अंगड़ाई

हवा मेन फैली सुगंध ,प्रिये तुम जब मुस्कायी |
रूप बदल नित नवीन ,क्षृंगारिक रौनक लाई ,

मुस्कान विखरा अधरों पे प्रिये तुम जब ली अंगड़ाई |
मन हर्षित हुआ तभी ,जब तुम सम्मुख मेरे आयी,  

धूप बसन्ती खिली नई ,प्रिये मन मुख मुस्कायी |
हृदय अगुंजित स्वर बेला ,मंगल बुद्धि – ठकुराई,

प्यासा पौरुष प्रेमी पागल ,प्रिये तुम पास जब आई |
हम संग हुए सभी दीवाने,जादू तूने ऐसा चलाई ,

धूप बसंती खिली नई ,प्रिये जब भी तुम मुस्कायी ||

             ***

झगडे- फसाद

नैया भवर में हमरी
काहें डूबीं हमहीं !
तू हूँ आवा ,तू हूँ आवा ?
सबके लेकर डूबीं |
पास पडोसी कहलावे के
दुनिया के संमझावे के ,
आपन काम बनावे के
तू हूँ आवा ,तू हूँ आवा ?
हमरी नैया भला भवर में
सबके ले के जूझीं |
नैया भवर में हमरी
काहें डूबीं हमहीं !!

     ***

आजादी ?


हिन्दुस्तानी राज गढे

आवाम के ख्वाब बढ़े|

 
राजनेता सर ताज चढ़े/
गधे गन्ने चूस खड़े |


भगत फांसी पर चढ़े
बतकही सिरहाने चढ़ी |

घमंड सर चढा /
मतिमंद अड़ा खड़ा |
जनता खाप खड़ा /
मुल्लाओं का चाप चढा |
बिकसित समाज गढ़ें /
हिंदी के साथ बढ़ें ||

    ***

कदम बढ़े-कदम बढ़ें


निज बढ़ रहा देश समाज आगे-आगे।
आ रहा पटरी पर राज भागे-भागे॥
माथा पकड़ बैठें ना बनकर अभागे।
शासन कैसे चलता है देखे सुभागे॥
परचम रहा तिरंगा धर्म ही झंडा साजे।
नीति सुनीति दिखे देव देश दिखे जागें॥
'मंगल'भाषी ना हो अभिलाषी धनराषि।
शीश ना कटने देंगे स्वदेश मेरा त्यागी॥
भारत राज साज पક્ષાघात लाज बचाएंगे।
मुस्तैदी मुट्ठी भरकर हम गगन दिखाएंगे॥

          ***

कांति हेराइल?


कैसो मन कठुआय संग नाहीं सजना।
उघारो पल्लू निहारो आपन अंगना॥
तनवां घुलत होय मनवां आशंका वान।
कामिनी कलह कैसो दिखे तोरे अंगना॥
कैसो मन कठुआय संग नाहीं सजना।
उघारो पल्लू निहारो आपन अंगना॥
गोल लोल गात अलोप दीठि दिखे!अंजना।
उघारो पल्लू निहारो आपन अंगना॥
सजीवता सजीव सुख मूक दिखे कंगना।
कैसो मन कठुआय संग नाहीं सजना॥
टीपटाप! टापू जीवन बिहीन कैसा लोचना।
उघारो पल्लू निहारो आपन अंगना॥

      ***

गरीब

गरीबों के नाम पर

रोटियाँ सेंकते रहे !

महलों में बसेरा लेकर

ए सी में लेटते रहे |

ढाहे चारों ओर कयामत

बोलबों से चलते रहे !

गरीबों के नाम पर

रोटियाँ सेंकते रहे !!
हल्ला बोल – बोलकर

सत्ता से चिपके रहे जाती -पांति

नारा देकर फँसाते और फँसते रहे

वे ऐश की दुनियाँ में

और तुझे डसते रहे गरीबों के नाम

पर रोटियाँ सेंकते रहे !!
सोच ! तुझे ही ना

लुटेदेश को लूटते रहे !

गरीबों के नाम पर

रोटियाँ सेंकते रहे !!

     ***

बोली – भाषा

चिंतन करती वह गुंथन करती ,

गिरती उठती और मचलती |

हृदय भाव औ विम्ब तरंगें,

बैचारिक मन मंथन करती |

अविरल इसकी धारा बहती ,

पहले बोली पीछे भाषा |

सीमा पार उजागर करती ,

ध्वनिमय लेकर अभिलाषा |

भाषा ध्वनि लेकर अर्थभाव,

सरल सुगम रखती परिभाषा |

अनुशासन औ  शब्दानुशासन ,

तत्सम से तदभव  भाषन |

क्रमबद्ध साधना नहीं मगर ,

वह सहज साधना  सजती |

श्रुति - स्मृति के अमिट धरातल -

पर जीवित हिंदी है रहती |

चंचलमन गति श्रीजित करती,

पहले 'मंगल '  कठिन लगती |

         ***

खुशियां बाँट रहा मौसम


पूर्व दृष्टि - दोष मारने
भारत भाल  कश्मीर संवारने
किसी बात का नहीं है गम
अब आगे बढ चले कदम
            *
सपने को करने साकार
छोटा नहीं बड़ा आकार
धरती छूने चली गगन
आज है पूरा देश मगन
            *
नया कुछ करने की अभिलाषा
भारत बोले प्रेम की भाषा
लहरा,तिरंगे का परचम
देश के दुश्मन गए सहम
            *
मोदी - अमित शाह के आगे
चूहों जैसे शत्रु सब भागे
कांग्रेस हो गई बेदम
सोनियां - राहुल की आखें नम
            *
कांटे को कांटे से निकाला
देश द्रोहियों का मुँह काला
सावन में हुआ 'बम - बम '
खुशियां बाँट रहा मौसम ||

         ***

कारगिल विजय दिवस 

उस शहर नगर को नमन जिसमे जनमें लाल

'मंगल'सदा करता सौ - सौ बार राम -राम |


बीच हमारे नहीं आज तुम स शरीर हो

अमर तुम्हारी गुण गाथा का होता गान |


परम पूज्य माता - पिता जिसने महान

राष्ट्र का बच्चा - बच्चा करता तुझको सलाम|

विजय दिलाने में शहीद सैनिकों का मान

भारत - भारत की माती भी करती प्रणाम ||

                 ***

सपने

सपने भीतर जन्म लेते हैं ,
प्यार के रिश्ते निखार देते हैं |

जब प्यार की बात चलती है ,
उसमें मिठास बानी रहती है |


प्यार के गीत

लड़कपने सा प्यार

हमनी के ना दिखावा !

आना हो तो आवा

होली खुलकर मनावा ||


कुसुम कली की गंध

भौरे पाकर मडराते !

जब तक खुले ना पट

बैठ उसपे नहीं जाते ||


छुपकर करते हो प्यार

मगर बढ़ चढ़ कांचा !

प्यारा  कोई इसी से

मिलता नहीं साचा ||


दिल में जो बयान कर

चढ़ शान आसमान पटक!

तू रोज कहाँ आती !

बस बोली मुझे है सुनाती ||


गर भूल करोगे कोई ,सतायेगी रात भर

याद आयेगी वही ,गुदगुदाएगी रात भर !

शाम ढलते वह, ख्वाब दिखायेगी रात भर

खुशी का खजाना हूँ ,गुंगुनायेगी रात भर ||

                  ***

माटी का मोल


देश बना नामधारी  जन -जन को जगा रहा ,

गांधी - सुभाष का राष्ट्र विश्व को समझा रहा |

समय - समय पर क्रान्ति- विगुल बजता रहा ,

दूसरा विश्व युद्ध नेहरू के शिरमौर छा गया |

दुनिया  पीछे नहीं इजराइल डंका बजा गया,

देश बना नामधारी  जन -जन को जगा रहा||


गांधी ईश्वर दूत जिसने शान्ति पाठ पढ़ा दिया ,

रघुपति राघौ राजा राम कह दिल पर छा गया |

भारत का  लाल दुनिया में परचम लहतरा दिया ,

धोती चश्मा छड़ी  बलपर राष्ट्र मान बढ़ा दिया |

कुरवानी देकर राष्ट्र दुश्मन को है ललकार रहा,

देश बना नामधारी  जन -जन को जगा रहा ||


कथित बहसियों सिक्खों का कत्ले आम किया,

इंदिरा की कुरवानी ने देश को हलकान किया |

सन चौरासी को दुहराकर गीरवान पर वार किया

पद चिन्हों पर चल गांधी के मोदी नाम बढ़ाया|

परेज शिमाने मित्रदेश  तीसरी  क्रान्ति को लाया 

भारत का महान पी. एम  ।शांति पाठ पढ़ाया ||

               ***

रिश्ता

सपने भीतर जन्म लेते हैं ,

प्यार के रिश्ते निखार देते हैं |


जब प्यार की बात चलती है ,

उसमें मिठास बानी रहती है |


समय के साथ रिश्ता  मजबूत होता है

मजबूत रिश्ता लम्बे समय तक चलता है |


जब कभी उत्साह में कमी दिखे ,

नीरसता की और रिश्ते बढ़ते हैं |


ऐसे में छोटी -छोटी बातें याद में लाएं ,

अपने रिश्ते को  जिंदादिली बनाएं |


जिंदादिली बनाये रखने के लिये ,

सुन्दर सम्बाद बनाये रखिये |


सम्बाद में जरूरत का ख्याल रखिये ,

एक -दूजे का भी ध्यान रखिये |


खुद में भी ख़ुशी लाईये ,

रिश्ते को भी ख़ुशी दे पाईये |


एक दूजे की आपस में तारीफ करें  ,

काम की दोउ सराहना भी कीजिये |


भूली हुई बातें याद दिलाएं ,

पुराने दिन की याद में जाएँ |


रिश्ते में नयापन लाएं

नीव रिश्ते की मजबूत बनाएं ||

         ***

सम्मान होता है

अपने देश के लिए जो जीता है ,

देश का सच्चा मीत होता है |

उसी का देश मेँ मान होता है ,

देश का  से सम्मान होता है |

जो देश का मान रखता है ,

उसी का देश गुणगान करता है ||

          ***

लक्षकर चल


लोगों से कुछ हटकर चल।
सत पथ पर डटकर चल।।
लीक पुरानी बदलते चल।
लोगों में बदल कर चल।।
होते लोग बहुत आयामी।
उद्देश्य को लक्ष कर चल।।
लक्ष अनेकों दुनिया में ।
तू अर्जुन सा लक्षकर चल।।
मेहनत की परवाह न कर।
निज लक्ष पर निसाना कर||

        ***


कंदरा के लोग


  बह आक्रमणकारी दौर था ,

आक्रमण का बड़ा खौफ था |

दौलत लूटते रहे थे लोग ,

आज भी लूट रहे कैसा संयोग ?

दौलत ले जाने को आने लगे थे ,

सभी राजा घबराने लगे थे ,

खिलजी दिल्ली में बैठ सिंहासन ,

षड्यंत्र रच मुस्कराने लगा था |

राजाओं में एकता की कमी से हुए गुलाम ,

आज अपनों से ही हो रहे कितना बदनाम !

वीरांगनाएं जब उठ कड़ी होंगी तभी

व्यभिचारी जाएंगे कंदरा में !!

        ***

आलोचना

आलोचना से रचनाकार में निखार आता है ,


आलोचक से  कथन का विचार आता है |


डायरी में लिख जाता है इतिहास बनकर ,


आलोचक की आलोचना  का सार आता है |


लेखन में जब भी  विकार आता है ,


स्वस्थ आलोचना से ही सुधार आता है |


घृणा - द्वेष वाले जो फुलझड़ी छोड़ें !


ऐसों  को  कहाँ आलोचना से  प्यार आता है |


आलोचक झूमता - खेलता है लिख जाता है ,


रचना में उतारकर खुद को रमता रमाता है ||

            ***

 

पपीता

पास बीमारी ना फटके ,

डॉक्टर यही बताते हैं |

निरोगी में रोग न पनपे ,

अनुभवी ही समझाते हैं ||


जीवन लम्बा सदा बने

पपीता को भी खाना है |

ऊर्जावान शरीर रहती ,

अनुभवी लोग बताते हैं ||


कब्ज से परेशान हों तो

नियमित पपीता खाना है |

अपच जलन में चूरण फाकें

यही अनुभवी सिखाता है ||

      ***

काशी बड़ी महान


जहां होता शिव का गान,

वह काशी बड़ी महान |

ढोल नगाड़ों संग कियो,

मिल जुल स्वागत गान ||


काशी में केसरिया का,

रहा बढ़ा चढ़ा सम्मान |

बता दी काशी की जनता,

मेरा नेता बड़ा महान ||


सियासी रणभेरी सजी

बजी बांसुरी और गिटार,

थे बोल में नमों - नमों,

टिवटर चढ़ा परवान ||


आतिथ्य परम्परा लिए ,

संस्कृति की थी छाप |

मालवीय की बगिया ,

खिली ख़ुशी से आप ||


दुनिया आँख पसारे खड़ी,

इंटरनेट उनके आधार !

भारत भी पीछे कहाँ ,

चौकीदार बार -बार ||

     ***

मोदी को फिर लाना

घर - घर जाके हमें -आपको
सबको यह समझाना है
मोदी को फिर से लाना है
भारत भूमि की माटी का
हमको कर्ज चुकाना है
मोदी को फिर से लाना है |

भारत अपना ,पांच साल में
पाहुचा उच्च शिखर पर
चीन - पाक जैसे दुश्मन
दुबक गये दरबे में डर कर
हमारे जवानों का दम- खम
पूरे विश्व ने जाना है
मोदी को फिर से लाना है |

चारों ओर रखवाली हो
घर-घर में खुशहाली हो
बेरोजगारी दूर जा भागे
खेतों में हरियाली हो
वैज्ञानिकों ने भी अपना सीना ताना है
मोदी को फिर से लाना है |

चोर कौन है, भेद यह खोले
कवियों की अब कविता बोले
सच का पहले साथी होले
चोर के संग न डोले
सामी नहीं अब गवाना है
मोदी को फिर से लाना है ||

      ***

तरबूज

तरबूजा पानी की कमी

पूरी गामी मे करता |

पानी पीने की गलती

तरबूजा खाकर ना करना |

बड़े फाड़े इसके हैं

वैज्ञानिकों ने बताये हैं |

फाइबर की कमी दूर करता

वजन नियंत्रित रखता ||

कैंसर की रोक थाम करता

चेहरे को चमकाता |

कान्ति मुख पर लाता

पेट को ठंढा रख़ता |

डकार जब कभी खट्टी आये

काली मिर्च - नामक छिड्क खाएँ|

मांसपेशियों के दर्द दूर भगाये

वाल सुंदर वजन नियंत्रित रखता ||

        ***

गाउँ मल्हार


खुशबू है पेड़ में

,

सारे उधर दिखे!


होता पतझड़ देख


सारे निकल पड़े |



मौसम तो आवारा


न हमार न तोहार !

हम तो बने कोहार,


तू धरा लोहार !



जिन कहा हमार


न कहब तुहार


काहें करेला गुहार


ले ला हमसे उधार!



न यहाँ कोई तोहार


कोई न हमार!


माटी धुने कोहार


तलवार गढ़े लोहार


शहर देखा हजार


मंगल गाओ मल्हार|

    ***

प्यार को आने दो


लहलहायी धूप खिली गर्मी को ढल जाने दो

गीत सुमधुर गाने दो मेरे प्यार को आने दो !
मुझको उसका इंतज़ार श्याम घटा छाने दो

कारे कारे बादल घुमड़े उनको बरस जाने दो

राहों में फूल बिछा लूँ मेरे प्यार को आने दो!

बिजली की आँख मिचौली उसे ज़रा झिलमिलाने दो

ठंढी – ठंढी हवा बह रही दिल को ज़रा बहलाने दो

तनिक नजर चुराने को मेरे प्यार को आने दो !
बंद हो रही पलकें,फिर भी मुस्कराहट होठों पे आने दो

अपने प्यार को खातिर मुझको ख्वाबों का महल सँजोने दो

बहूत सुहाना मौसम है  मेरे प्यार को आने दो ||

           ***


"साथी पास मेरे"

मेरा साथी मेरे  पास

हेर रहा मन वर्षों ख़ाक

पर्वत -खाड़ी और ताल

ढूंढा, बनी  न बात |


ढूंढ रहा दिल मन बंजारा

प्रकृति का केवल ले सहारा

मौसम कितना आवारा

साथी न है  बेचारा |


मन पागल दिल ढूंढ रहा

गली -मुहल्ला छूट रहा

तूफान उठा याद पड़ा

साथी मेरे पास खड़ा ?


बदनाम मुझे दुनिया करती

अश्कों में यह दुनिया पलती

बेरुख पवन से कहता

साथी मेरे पास अड़ा ||

      ***

“साजन मोरा परदेश “

साजन बसा परदेश

सूनी - सूनी लगे

नाचे गायें घर चौबारे

नगरी नगरी द्वारे द्वारे

जहर लागे हंसी ठिठोली

सून सून लागे होली !


चारो और रंग बरसे है

मेरा सूखा मन तरसे है

खाली अबीर गुलाल झोली

सूनी सूनी लागे होली |


आँखे सबकी ,खुशियां वांचे

पीली पीली सरसो नाचे

रंगीले परिधान में टोली

सूनी सूनी लागे होली |


होड़ मची कमचोर बली में

हुड़दंगी है गली गली में

अपनी तो है रवानी होली

सूनी सूनी लागे होली ||

       ***

"सहपाठी मिले"


फिर वही संगी हमारा फिर वही साथी मिले


हो जनम  यदि पुनः तो, मुझे फिर वही सहपाठी मिले |


लड़ता ही रहता है वह हर समय हर मोड़ पर


संघर्ष में संग रहता सदर ,जाता न मुझको छोड़ कर |


हिम्मत -हौसले में है ,उसका तो शानी नहीं


एक सच्चा मित्र है वह ,चलता सबको जोड़कर |


उसका संग वैसे ही जैसे ,बृद्ध बृद्ध को लाठी मिले


हो जनम यदि पुनः ,तो मुझे फिर वही सहपाठी मिले ||


एक रिस्ता है जुड़ा वर्षों पुरानी दोस्ती का,


जिंदगी का एक रिस्ता होता जैसे जिंदगी का,


मीठी -मीठी बात जब तक मित्र से होती नहीं।


खाली खाली खुशियों का लगता है कोना जिंदगी,


प्यार में व्यवहार में फिर वही कद काठी मिले ,


हो जनम यदि पुनः ,तो मुझे फिर वही सहपाठी मिले || 


भोला भाला बन कर  मुझको राह दिखलाता चले

 

जिंदगी है ,चलने वाला ,मीत  यह भाता चले


समझ को भी लगे कि समझ समझाता चले


नदी को खुद में समेटे जैसे कोई घाटी चले


मित्रता की 'मंगळ सदा चलती परिपाटी चले


हो जनम यदि पुनः ,

तो मिले फिर वही सहपाठी मिले ||

        ***

"जागरूकता"


  लोकतंत्र की मर्यादा का पाठ पढ़ाइये
सर्वजन योजना में भागीदार बनाइये !
विकास की बगिया को और सजाइये
अधिकारों के प्रति जगरूकता लाइये !
त्वरित न्याय, न्यायपालिकासे दिलाइये
राजनीतिक धन्धेवाजों को समझाइये !
नारियों का सम्मान बढायेंगे  बताइये
एकता में बल है,सबको मिल समझाइये ||

            ***

आने वाला वसंत

आला मतवाला आने वाला वसंत |
कामदेव की पूजा करने वाला वसंत |
पीताम्बर ओढ़े सरसों का खेत, वसंत |
नरगिस की प्यारी न्यारी चुनरी वसंत ||

चपल ध्वनि औ कल – कल तरंग |
सर्दी – गर्मी दोनों चलते एक संग |
खेतों में किसलय लिए पचरंगा रंग |
चेहरों को निखारता आया वसंत ||

पात गिरे धरा पे पेड़ कोपलों के संग |
नव फूलों की बगिया में महक उठा मन |
तितलियाँ मडराती हैं कलियों के संग |
रवि उत्तरायण हो चला आया वसंत ||

काया की सिकुडन मिटाता है वसंत |
तुलसी से सुहाग को – मंगाये वसंत |
औ आलिंगन दे उभार देने वाला मन |
सरस्वती क पूजन कराने आया वसंत ||

रंग भरने का रस्म निभाता यह वसंत |
तेरे मेरे मिलन का मनभावन वसंत |
आनंद और उमंग में रहे संग – संग
आला मतवाला आने वाला वसंत ||

        ***

"मातृ दिवस"


  ! माँ है माँ  होती 
माँ ममता की मूरत
धरा पर माँ एक सूरज |
खुद ही है माँ पलती
बच्चा भी है पालती
बच्चे को वह सुधारती |
गर्भ में धारण करती
बच्चा संवार कर रखती
निज रक्त मज्जा -पालती |
स्तन क दूध पिलाती
हल्राती -दुलराती
है प्यार उसे दिखाती |
वह साथ में सुलाती
रात भर जाग बिताती
विस्तार गीले रह जाती |
खुद भूखे रहकर भी
बच्चे को दूध पिलाती
सूखे विस्तार - लिटाती |
माँ माँ ही कहलाती
मजदूरी भले कर लाती
नन्हकी नन्हका खिलाती |
देती मति - मतिमान
मगण -मगज पिरोती
मगन मन ही मन होती |
मखतूली पहनाती
'मंगल' भावना भारती
बच्चे को भाति दुलराती |
माँ! माँ है माँ होती
ममता की माँ सूरत
धरा पर माँ एक सूरज || 


शब्दार्थ:-     मति-बुद्धि - मतिमान- बुद्धिमान | मगण - चालाकी |

मगज- दिमाग |मखतूली-काले रेशम का धागा |

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-सुखमंगल सिंह ,अवध निवासी
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  1. रचनाकार मे मेरी स्वरचित रचना प्रकाशित हुई | मैं रचनाकार प्रबंधन का आभार प्रकट करता हूँ! "सरयू तट से " संकलन समाज को अच्छे संदेश दे सके यही रचना की सफलता होती है |रचना सर्वग्राही हो ,लोकमंगल की कामना से प्रेरित हो,पाठक को उद्वेलित करती हो,उस उद्वेल्न से आनंदानुभूति हो | जनमानस मेन प्रेम का जागरण कर सके | कविता का उद्देश्य अंश है अभिव्यक्ति और स्व आनंद के साथ राष्ट्रीय भावना की कामना कविता मे हो ऐसी कामना का ध्यान दिया गया |
    आशा है और पूर्ण विश्वास है की कृति पठनीय एवं संग्रहणीय होगी |शुभकामनायें सहित

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  2. मानस - मन के कवि सुखमंगल सिंह ,आज के कविता की प्रयोगशाला हैं              ---------------------------------------------------कविलेखक सुखमंगल सिंह को पढ़ना और समझना टेढ़ी खीर है | नागती प्रचारिणी सभा, काशी  ने इन्हें बड़ा फलक दिया | आज यत्र-तत्र सर्वत्र इन्हें गूगल  के जरिये देखा-जाना जा सकता है | मैं दृष्टि रखते हुए भी समीक्षा के क्षेत्र में उतरना नहीं चाहता क्योंकि रामविलास शर्मा जैसी स्पष्टता ,निष्पक्षता कम क्या नहीं के बराबर हैं | आज के तथाकथित समीक्षक गोलबाजी  पहले करते हैं बाद में की जाने वाली उनकी समीक्षा गोलमगोल होके रह जाती है | वैसे भी यह माना गया  है कि एक असफल कवि ही आज के तथाकथित समीक्षकों की कतार में अपने को रखता है | मैं उस करार के बाहर का जनकवि हूँ | यह और बात है कि साहित्य अकादमी अथवा हिंदी संस्थान मेरी विशुद्ध पांच दशक की काव्य -साहित्य संघर्ष को जानबूझ कर नजर अंदाज करता रहा है | सुखमंगल सिंह  साथ ऐसा न हो मेरी यही चाह है क्योंकि मैं कवि सुखमंगल सिंह को मानस - मन के साथ ही आज के कविता की प्रयोगशाला के रूप में पाटा हूँ | उन दिनों जबकि कश्मीर का नाम लेने मात्र से लोग दहल जाया करते थे , इन्होंने अपने दोपहिया स्कूटर से कश्मीर यात्रा की और कश्मीर समस्या -समाधान का जो सुझाव रखा शत -प्रतिशत वह हुआ | संघर्ष के साथ मौसम से जुड़ा इनका मौजी मन दृष्टव्य है -आला मतवाला आने  वाला बसन्त पीताम्बर ओढ़े सरसों -खेत वाला वसन्त मां पर केंद्रित ये पक्तियां -'मां ममता की मूरत मां  धरती पर एक सूरत 'अवध निवासी सुखमंगल सिंह का यह 'सरयू तात से ' यूनिकोडित ई -पत्रिका रचनाकार ने प्रकाशित किया है |  सुखमंगल की एक रचना 'बोली-भाषा '-संतान करती ,गुंथन करती ह्रदय भाव अउ बिम्ब तरंगित वैचारिक मन मंथन करती अवध की धरती के प्रति गहरा लगाव उनकी इन पंक्तियों से जाना जा सकता है -लाल गुलाबी नीली पीली धानी मानी बसन बनाये मूलभूत पाषाण शिलायें उठ -उठाकर खुद नाम लिखायें सुखमंगल जी गोलवादी समीक्षकों से किनारा करते भये निरंतर रचनारत रहे  हैं | रचनाकार सुखमंगल सिंह को बहुत -बहुत बधाई | 
    मौनी अमावस्या ,२४जनवारी २०२०            -डा अजीत श्रीवास्तव शिव कृपा ; सी ४/२०४-१ कालीमहाल वाराणसी 

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रचनाकार: काव्य संग्रह - सरयू तट से - सुखमंगल सिंह
काव्य संग्रह - सरयू तट से - सुखमंगल सिंह
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