भारत में कुपोषण -डॉ दीपक कोहली- बीते कुछ वर्षों में भारत में कुपोषण को लेकर नए सिरे से चर्चा शुरू हुई है। अक्तूबर 2019 में जारी वैश्विक भुखम...
भारत में कुपोषण
-डॉ दीपक कोहली-
बीते कुछ वर्षों में भारत में कुपोषण को लेकर नए सिरे से चर्चा शुरू हुई है। अक्तूबर 2019 में जारी वैश्विक भुखमरी सूचकांक में भारत 117 देशों में से 102वें स्थान पर रहा था, जबकि वर्ष 2018 में भारत 103वें स्थान पर था। देश में कुपोषण की समस्या को संबोधित करने की तात्कालिकता हाल ही में वित्त मंत्री के बजट भाषण में भी देखने को मिली थी। वर्ष 2017 में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 जारी की गई थी, जिसमें नागरिकों की उत्पादकता पर कुपोषण के नकारात्मक प्रभाव और देश में मृत्यु दर में इसके योगदान पर प्रकाश डाला गया था। हालाँकि सरकार द्वारा इस संदर्भ में काफी प्रयास किये गए हैं और विभिन्न प्रकार की योजनाएँ चलाई जा रही हैं, किंतु इन योजनाओं और प्रयासों के बावजूद हम देश में कुपोषण की चुनौती से पूर्णतः निपटने में असमर्थ रहे हैं। इससे न केवल भारत के आर्थिक विकास में बाधा उत्पन्न हो रही है, बल्कि वैश्विक स्तर पर भारत की छवि भी नकारात्मक रूप से प्रभावित हो रही है।
विभिन्न राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय अध्ययनों में कुपोषण के विभिन्न संकेतकों पर भारत का प्रदर्शन असंतोषजनक रहा है। यूनिसेफ (UNICEF) के अनुसार, वर्ष 2017 में सबसे कम वजन वाले बच्चों की संख्या वाले देशों में भारत 10वें स्थान पर था। इसके अलावा वर्ष 2019 में ‘द लैंसेट’ नामक पत्रिका द्वारा जारी रिपोर्ट में यह बात सामने आई थी कि भारत में पाँच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की 1.04 मिलियन मौंतों में से तकरीबन दो-तिहाई की मृत्यु का कारण कुपोषण है। देश में फैले कुपोषण को लेकर उक्त आँकड़े काफी चिंताजनक हैं। अपनी एक हालिया रिपोर्ट में विश्व बैंक ने कहा था कि वर्ष 1990 से वर्ष 2018 के बीच भारत ने गरीबी से लड़ने के लिये अतुलनीय कार्य किया है और इससे देश में गरीबी दर में काफी गिरावट दर्ज की गई है। इस अवधि में भारत की गरीबी दर तकरीबन आधी रह गई है। यद्यपि देश में गरीबी दर में गिरावट आ रही है, किंतु कुपोषण और भूख की समस्या आज भी देश में बरकरार है। हाल ही में जारी 'द स्टेट ऑफ द वर्ल्ड्स चिल्ड्रन- 2019’ रिपोर्ट के अनुसार, विश्व में 5 वर्ष तक की उम्र के प्रत्येक 3 बच्चों में से एक बच्चा कुपोषण अथवा अल्पवज़न की समस्या से ग्रस्त है। पूरे विश्व में लगभग 200 मिलियन तथा भारत में प्रत्येक दूसरा बच्चा कुपोषण के किसी-न-किसी रूप से ग्रस्त है। रिपोर्ट से यह भी ज्ञात हुआ कि वर्ष 2018 में भारत में कुपोषण के कारण 5 वर्ष से कम उम्र के लगभग 8.8 लाख बच्चों की मृत्यु हुई जो कि नाइजीरिया (8.6 लाख), पाकिस्तान (4.09 लाख) और कांगो गणराज्य (2.96 लाख ) से भी अधिक है। आँकड़े बताते हैं कि भारत में 6 से 23 महीने के कुल बच्चों में से मात्र 9.6 प्रतिशत को ही न्यूनतम स्वीकार्य आहार प्राप्त हो पाता है। हालाँकि ऐसा नहीं है कि देश में कुपोषण की समस्या केवल बच्चों के मध्य ही है, वर्ष 2017 के आँकड़ों पर गौर करें तो वयस्कों में देश की 23 प्रतिशत महिलाएँ और 20 प्रतिशत पुरुष कुपोषण का सामना कर रहे हैं। कुपोषण से संबंधित ये तथ्य देश में कुपोषण की चुनौती से निपटने के लिये 1990 के दशक में शुरू हुई योजनाओं को लेकर चिंता को स्पष्ट करते हैं। अर्थशास्त्र में नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन का कहना है कि देश में कुपोषण और भूख से पीड़ित बच्चों की स्थिति काफी खतरनाक है और इससे निपटने के लिये जल्द-से-जल्द नए विकल्पों को खोजा जाना चाहिये। जन्म के बाद बच्चों को जिन पोषक तत्त्वों की आवश्यकता होती है, उन्हें वह नहीं पाता है। भारत में तो स्थिति यह है कि बच्चों का न तो सही ढंग से टीकाकरण हो पाता है और न ही उन्हें इलाज की उचित व्यवस्था मिल पाती है, ऐसी स्थिति में कुपोषण जैसी समस्याएँ और अधिक गंभीर हो जाती हैं।
कुपोषण (Malnutrition) वह अवस्था है जिसमें पौष्टिक पदार्थ और भोजन, अव्यवस्थित रूप से ग्रहण करने के कारण शरीर को पूरा पोषण नहीं मिल पाता है। चूँकि हम स्वस्थ रहने के लिये भोजन के ज़रिये ऊर्जा और पोषक तत्त्व प्राप्त करते हैं, लेकिन यदि भोजन में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, वसा, विटामिन तथा खनिजों सहित पर्याप्त पोषक तत्त्व नहीं मिलते हैं तो हम कुपोषण के शिकार हो सकते हैं। कुपोषण तब भी होता है जब किसी व्यक्ति के आहार में पोषक तत्त्वों की सही मात्रा उपलब्ध नहीं होती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन और यूनिसेफ के अनुसार कुपोषण के तीन प्रमुख लक्षण हैं:
नाटापन (Stunting) - यदि किसी बच्चे का कद उसकी आयु के अनुपात में कम रह जाता है तो उसे नाटापन कहते हैं।
निर्बलता (Wasting) - यदि किसी बच्चे का वज़न उसके कद के अनुपात में कम होता है तो उसे निर्बलता कहा जाता है।
कम वज़न (Underweight) - आयु के अनुपात में कम वजन वाले बच्चों को ‘अंडरवेट’ कहा जाता है।
भारतीय संविधान और कुपोषण
यद्यपि संविधान के अनुच्छेद-21 और अनुच्छेद-47 भारत सरकार को सभी नागरिकों के लिये पर्याप्त भोजन के साथ एक सम्मानित जीवन सुनिश्चित करने हेतु उचित उपाय करने के लिये बाध्य करते हैं। किंतु भारतीय संविधान में भोजन के अधिकार को ‘मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता नहीं प्रदान की गई है।
अनुच्छेद 21 के मुताबिक, किसी भी व्यक्ति को उसके जीवन अथवा निजी स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जा सकता। वहीं संविधान के अनुच्छेद 47 के अनुसार, राज्य अपने लोगों के पोषाहार स्तर और जीवन स्तर को ऊँचा करने तथा लोक स्वास्थ्य में सुधार को अपने प्राथमिक कर्त्तव्यों के रूप में शामिल करेंगे। इस प्रकार संविधान के मूल अधिकारों से संबंधित प्रावधानों में अप्रत्यक्ष जबकि राज्य के नीति निर्देशक तत्त्वों से संबंधित प्रावधानों में प्रत्यक्ष रूप से कुपोषण को खत्म करने की बात की गई है।
कुपोषण का प्रभाव
शरीर को लंबे समय तक संतुलित आहार न मिलने से व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जिसके कारण वह आसानी से किसी भी बीमारी का शिकार हो सकता है। कुपोषण बच्चों को सबसे अधिक प्रभावित करता है। आँकड़े बताते हैं कि छोटी उम्र के बच्चों की मौत का सबसे बड़ा कारण कुपोषण ही होता है। स्त्रियों में रक्ताल्पता या घेंघा रोग अथवा बच्चों में सूखा रोग या रतौंधी और यहाँ तक कि अंधत्व भी कुपोषण का ही दुष्परिणाम है।
कुपोषण का सबसे गंभीर प्रभाव मानव उत्पादकता पर देखने को मिलता है और इसके प्रभाव से मानव उत्पादकता लगभग 10-15 प्रतिशत तक कम हो जाती है, जो कि अंततः देश के आर्थिक विकास में बाधा उत्पन्न करती है।
कुपोषण के कारण
हालिया आँकड़े बताते हैं कि देश के ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाली कुल जनसंख्या का लगभग 25.7 प्रतिशत हिस्सा अभी भी गरीबी रेखा के नीचे जीवन व्यतीत कर रहा है, जबकि शहरी क्षेत्रों में यह संख्या 13.7 प्रतिशत के करीब है। यद्यपि गरीबी अकेले कुपोषण को जन्म नहीं देती, किंतु यह आम लोगों के लिये पौष्टिक भोजन की उपलब्धता को प्रभावित कर सकती है।
अधिकांश भोजन और पोषण संबंधी संकट भोजन की कमी के कारण उत्पन्न नहीं होते हैं, बल्कि इसलिये उत्पन्न होते हैं क्योंकि लोग पर्याप्त भोजन प्राप्त करने में समर्थ नहीं हैं।
जल जीवन का पर्याय है। पीने योग्य पानी की कमी, खराब स्वच्छता और खतरनाक स्वच्छता प्रथाओं के कारण आम लोग जल जनित बीमारियों की चपेट में आ जाते हैं, जो कि कुपोषण के प्रत्यक्ष कारणों में से एक है।
देश में पौष्टिक और गुणवत्तापूर्ण आहार के संबंध में जागरूकता की कमी स्पष्ट दिखाई देती है जिसके कारण तकरीबन पूरा परिवार कुपोषण का शिकार हो जाता है।
आँकड़ों के अनुसार, भारत के 1.3 बिलियन लोगों के लिये देश में सिर्फ 10 लाख पंजीकृत डॉक्टर हैं। इस हिसाब से भारत में प्रत्येक 13000 नागरिकों पर मात्र 1 डॉक्टर मौजूद है। उल्लेखनीय है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस संदर्भ में 1:1000 अनुपात की सिफारिश की है, यानी देश में प्रत्येक 1000 नागरिकों पर 1 डॉक्टर होना अनिवार्य है। इस प्रकार देश में स्वास्थ्य सेवाओं की अनुपलब्धता भी कुपोषण में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती है।
बीते कुछ दशकों में जलवायु परिवर्तन से संबंधित प्राकृतिक आपदाओं जैसे- सूखा, चक्रवात, बाढ़, आदि की संख्या में काफी वृद्धि देखने को मिली है। संयुक्त राष्ट्र द्वारा किये गए अध्ययन के अनुसार विश्व के 40 से अधिक विकासशील देशों में जलवायु परिवर्तन के कारण प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कृषि उत्पादन में हो रही गिरावट आने वाले वर्षों में भूख से पीड़ित लोगों की संख्या में नाटकीय रूप से वृद्धि कर सकती है।
सरकार द्वारा किये गए प्रयास
राष्ट्रीय पोषण नीति को सरकार द्वारा वर्ष 1993 में अंगीकार किया गया था। इसके अंतर्गत कुपोषण मिटाने और सबके लिये इष्टतम पोषण का लक्ष्य प्राप्त करने के लिये बहु-सेक्टर संबंधी योजना की वकालत की गई। यह योजना देश भर में पोषण के स्तर की निगरानी करने तथा अच्छे पोषण की आवश्यकता व कुपोषण रोकने की ज़रूरत के संबंध में सरकारी मशीनरी को सुग्राही बनाने पर ज़ोर देती है।
मिड-डे मील कार्यक्रम की शुरुआत वर्ष 1995 में केंद्र प्रायोजित योजना के रूप में की गई थी। इसके पश्चात् वर्ष 2004 में कार्यक्रम में व्यापक परिवर्तन करते हुए मेनू आधारित पका हुआ गर्म भोजन देने की व्यवस्था प्रारंभ की गई। इस योजना के तहत न्यूनतम 200 दिनों हेतु निम्न प्राथमिक स्तर के लिये प्रतिदिन न्यूनतम 300 कैलोरी ऊर्जा एवं 8-12 ग्राम प्रोटीन तथा उच्च प्राथमिक स्तर के लिये न्यूनतम 700 ग्राम कैलोरी ऊर्जा एवं 20 ग्राम प्रोटीन देने का प्रावधान है। यह कार्यक्रम मानव संसाधन विकास मंत्रालय के स्कूल शिक्षा एवं साक्षरता विभाग के अंतर्गत आता है।
महिला और बाल विकास मंत्रालय ने वर्ष 2019 में भारतीय पोषण कृषि कोष (BPKK) की स्थापना की थी। इसका उद्देश्य कुपोषण को दूर करने के लिये बहुक्षेत्रीय ढाँचा विकसित करना है जिसके तहत बेहतर पोषक उत्पादों हेतु 128 कृषि जलवायु क्षेत्रों में विविध फसलों के उत्पादन के उत्पादन पर ज़ोर दिया जाएगा।
वर्ष 2017 में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने देश भर में कुपोषण की समस्या को संबोधित करने के लिये पोषण अभियान की शुरुआत की थी। इस अभियान का मुख्य उद्देश्य परिणामोन्मुखी दृष्टिकोण के माध्यम से देश भर के छोटे बच्चों, किशोरियों और महिलाओं में कुपोषण तथा एनीमिया को चरणबद्ध तरीके से कम करना है। इस उद्देश्य की प्राप्ति हेतु अभियान के तहत राज्य एवं केंद्रशासित प्रदेशों के सभी ज़िलों को शामिल किया गया है।
बजट 2020 ने इस बात पर प्रकाश डाला है कि कई पोषण आधारित योजनाओं के तहत किया गया व्यय उनके अधीन आवंटित की गई राशि की तुलना में काफी कम है।
किसी भी योजना के लिये आवंटित वित्त संसाधनों के अल्प-उपयोग से आगामी वर्षों के लिये होने वाला आवंटन भी प्रभावित होता है, जिससे बजट को बढ़ाने और पोषण योजनाओं पर ध्यान केंद्रित करने की संभावना भी सीमित हो जाती है।
कई विशेषज्ञ कृषि को कुपोषण से संबंधित समस्याओं को संबोधित करने का अच्छा तरीका मानते हैं। किंतु देश की पोषण आधारित अधिकांश योजनाओं में इस और ध्यान ही नहीं दिया गया है। पोषण आधारित योजनाओं और कृषि के मध्य संबंध स्थापित करना आवश्यक है, क्योंकि देश की अधिकांश ग्रामीण जनसंख्या आज भी कृषि क्षेत्र पर निर्भर है और सर्वाधिक कुपोषण ग्रामीण क्षेत्रों में ही देखने को मिलता है। आँकड़े दर्शाते हैं कि पोषण अभियान, जो कि कुपोषण को संबोधित करने की एक बड़ी पहल है, के लिये आवंटित कुल राशि का 72 प्रतिशत हिस्सा सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी पर खर्च किया जा रहा है, जिसके कारण अभियान के मूल उद्देश्य पीछे छूट रहे हैं।
निष्कर्ष
इसमें कोई संदेह नहीं है कि भोजन में पोषक तत्त्वों की कमी कुपोषण का सबसे प्रमुख कारण है किंतु समाज के एक बड़े हिस्से में इस संबंध में जागरूकता की कमी स्पष्ट तौर पर दिखाई देती है। आवश्यक है कि कुपोषण संबंधी समस्याओं को संबोधित करने के लिये जल्द-से-जल्द आवश्यक कदम उठाए जाएँ, ताकि देश के आर्थिक विकास में कुपोषण के कारण उत्पन्न बाधा को समाप्त किया जा सके।
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लेखक परिचय
*नाम - डॉ दीपक कोहली
*जन्मतिथि - 17 जून, 1969
*जन्म स्थान- पिथौरागढ़ ( उत्तरांचल )
*प्रारंभिक जीवन तथा शिक्षा - हाई स्कूल एवं इंटरमीडिएट की शिक्षा जी.आई.सी. ,पिथौरागढ़ में हुई।
*स्नातक - राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, पिथौरागढ़, कुमायूं विश्वविद्यालय, नैनीताल ।
*स्नातकोत्तर ( एम.एससी. वनस्पति विज्ञान)- गोल्ड मेडलिस्ट, बरेली कॉलेज, बरेली, रुहेलखंड विश्वविद्यालय ( उत्तर प्रदेश )
*पीएच.डी. - वनस्पति विज्ञान ( बीरबल साहनी पुरावनस्पति विज्ञान संस्थान, लखनऊ, उत्तर प्रदेश)
*संप्रति - उत्तर प्रदेश सचिवालय, लखनऊ में उप सचिव के पद पर कार्यरत।
*लेखन - विभिन्न प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में लगभग 1000 से अधिक वैज्ञानिक लेख /शोध पत्र प्रकाशित हो चुके हैं।
*विज्ञान वार्ताएं- आकाशवाणी, लखनऊ से प्रसारित विभिन्न कार्यक्रमों में 50 से अधिक विज्ञान वार्ताएं प्रसारित हो चुकी हैं।
*पुरस्कार-
1.केंद्रीय सचिवालय हिंदी परिषद नई दिल्ली द्वारा आयोजित 15वें अखिल भारतीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी लेखन प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार, 1994
2. विज्ञान परिषद प्रयाग, इलाहाबाद द्वारा उत्कृष्ट विज्ञान लेख का "डॉ .गोरखनाथ विज्ञान पुरस्कार" क्रमशः वर्ष 1997 एवं 2005
3. राज्य कर्मचारी साहित्य संस्थान ,उत्तर प्रदेश, लखनऊ द्वारा आयोजित "हिंदी निबंध लेख प्रतियोगिता पुरस्कार", क्रमशः वर्ष 2013, 2014 एवं 2015
4. पर्यावरण भारती, मुरादाबाद द्वारा एनवायरमेंटल जर्नलिज्म अवॉर्ड्, 2014
5. सचिवालय सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजन समिति, उत्तर प्रदेश ,लखनऊ द्वारा "सचिवालय दर्पण निष्ठा सम्मान", 2015
6. राज्य कर्मचारी साहित्य संस्थान, उत्तर प्रदेश, लखनऊ द्वारा "साहित्य गौरव पुरस्कार", 2016
7.राज्य कर्मचारी साहित्य संस्थान ,उत्तर प्रदेश, लखनऊ द्वारा "तुलसी साहित्य सम्मान", 2016
8. पर्यावरण भारती, मुरादाबाद द्वारा "सोशल एनवायरमेंट अवॉर्ड", 2017
9. पर्यावरण भारती ,मुरादाबाद द्वारा "पर्यावरण रत्न सम्मान", 2018
10. अखिल भारती काव्य कथा एवं कला परिषद, इंदौर ,मध्य प्रदेश द्वारा "विज्ञान साहित्य रत्न पुरस्कार",2018
11. पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग, उत्तर प्रदेश, लखनऊ द्वारा वृक्षारोपण महाकुंभ में सराहनीय योगदान हेतु प्रशस्ति पत्र / पुरस्कार, 2019
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डॉ दीपक कोहली, पर्यावरण , वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग उत्तर प्रदेश शासन,5/104, विपुल खंड, गोमती नगर लखनऊ - 226010 (उत्तर प्रदेश )
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