रामायण में काण्ड का नाम सुन्दर काण्ड क्यों ? आत्माराम यादव पीव महर्षि वाल्मीक रचित रामायण हो या गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित रामचरित्र म...
रामायण में काण्ड का नाम सुन्दर काण्ड क्यों?
आत्माराम यादव पीव
महर्षि वाल्मीक रचित रामायण हो या गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित रामचरित्र मानस, दोनों में बालकाण्ड,अयोध्याकाण्ड, अरण्यकाण्ड, किष्किंधाकाण्ड, उत्तरकाण्ड नामकरण कर रामकथा के प्रसंगों को इन काण्डों में समाहित किया है जिसमें सुंदरकाण्ड नामकरण किए जाने की विशेषताओं का रहस्य विरले ही समझ पाते है विशेषकर वे लोग जो नित्य प्रतिदिन सुंदरकाण्ड का पाठ करते है वे इससे भलीभाँति भिज्ञ है। “ रामायण जनमनोहरमादिकाव्यम”” रामायण जन जन को प्रिय है यह आदिकाव्य है जिसके सभी पात्र ओर उनकी कथायेँ सुंदर है इसलिए काण्ड का नाम सुंदरकाण्ड रखा गया। रामायण सबके मन में बसी होने से मनोहर है ओर सुंदरकाण्ड अत्यंत मनोहर ओर सर्वश्रेष्ठ है। सर्वश्रेष्ठ बतलाते हुये कहा है – “”सुंदरे सुंदरों राम: सुंदरे सुंदरी कथा। सुंदरे सुंदरी सीता सुंदरे किन्न सुंदरम। “” सुंदरकाण्ड में राम सुंदर है, सुंदर की कथाएँ सुंदर हैं, सुंदर में सीता सुंदरी है , सुंदर में क्या सुंदर नहीं है? सुंदर में राम की कथा नहीं है, भक्त हनुमान की कथा ओर सीता की व्यथा हृदय को द्रवित कर देती है, यही सुंदरतम है, प्रश्न उठता है फिर सुंदरे सुंदरों राम: क्यो कहा गया है? सुंदर काण्ड के दो प्रमुख ओर प्रधान चरित्र है सीता ओर हनुमान। हनुमान तो भक्त है ओर सीता शक्ति है ओर राम शक्तिमान। श्रीराम सीता अभिन्न है उन्हे प्रथक करके नही देखा गया है, क्योंकि सीता के हृदय में राम बसे हैं ओर ऐसा कोई पल नहीं आया जब सीता ने राम को विस्मृत किया हो तथा हनुमान ने भी जो भी पराक्रम दिखाये, कही आभास नही होने दिया की वे उनके द्वारा किए गए है, अहंकाररहित हनुमान ने जो भी दुर्गम, दुर्जेय वीरोचित कार्य किए उस सभी कार्य का श्रेय उन्होंने अपने प्रभु श्रीराम को दिया है, यही सुंदर कथा है, जो सुंदरकाण्ड की शोभा बढ़ाती है।
रामायण के प्रत्येक काण्डों का नामकरण करते समय व्यक्तित्व, चरित्र, जीवन ओर स्थान विशेष प्रासंगिक रखे गए है जहां हरेक व्यक्तित्व के चरित्र व गुणों के प्रगट होते ही उनके गुणों की सर्वोत्तमता शिखर पर देखने को मिलती है। बालकाण्ड में राम के बचपन के बाल स्वरूप से ताड़का-सुबाहु वध, अहिल्या उद्धार, धनुष भंग कर सीता स्वंवर का चित्रण है तो उत्तरकाण्ड में रावण वध का चरित्र के पश्चात को विस्तार रूप दिया गया है। अयोध्या काण्ड, अरण्यकाण्ड ओर किष्किंधा काण्ड में अयोध्या का उल्लेख, वन प्रदेशों का उल्लेख के आलवा किष्किंधा का उल्लेख है। राम ओर रावण के युद्ध को लंका काण्ड नाम दिया गया जबकि सुंदरकाण्ड इन सारे पहलुओ से प्रथक है ओर यह नाम सर्वथा उच्चासन पर होने से अन्य किसी कथा या प्रसंग सुंदरकाण्ड के आसन पर आसीन नही हो सका है। सुंदरकाण्ड में सभी के चरित्र है विशेषकर इसमें सीता ओर हनुमान की कथा सुंदर है। सीता शक्ति है ओर राम शक्तिमान है। शक्ति ओर शक्तिमान के अनन्य भक्त हनुमान है। शक्तिस्वरूप सीता का हृदय श्रीराम को नहीं छोड़ सकता है। राम के सौंदर्य को लेकर सीता त्रेलोक्य सुंदरी है अतएव राम ही सीता बनकर सुंदर हो रहे है। रामतापनीय उपनिषद में कहा गया है – “यो वै श्रीरामचन्द्र:स भगवान, या जानकी भुभूर्व:। स्वस्तस्ये वै नमो नम:।“ श्रीराम साक्षात भगवान है ओर देवी जानकी रमा है। राम ही जानकी है, इसीलिए राम के सौंदर्य में ही राम मानस- सरो-भरालिका सौंदर्य है। सुदरकाण्ड में जिस कुंतलाकुल कपोलसुंदरी सीता के रूप गुण का विकास है, वह क्या जाग्रत क्या स्वप्न, सर्वदा श्रीराम के चरण कमलों में सब कुछ समर्पित है इसलिए कहा गया है – “”सुंदरे सुंदरों राम:।“” वाल्मीक जी रचित सुंदरकाण्ड में उन्होने हनुमान के चरित्र को प्रधानता देते हुये उच्च शिखर पर रखा ओर हनुमान के समक्ष रावण की तुलना करते हुये हनुमान के सामने रावण को अति तुक्ष्य मानकर कहा है – “”न मे समा रावणकोटयोधमा: रामस्य दासोंहमपारविक्रम:। “” रावण जैसे करोड़ों अधम मेरी समता नहीं कर सकते। मैं श्रीराम का दास हूँ। अत: मेरे पराक्रम का कोई थाह नहीं पा सकता है। राम का दास होने के कारण मुझमे अपार विक्रम है।“ दास होने से जहां इतना शौर्य –वीर्य प्रस्फुटित हो उठता है ,वहाँ भक्त का सौंदर्य भगवान का ही है। इसी से “सुंदरे सुंदरों राम:” कहा गया है। “”सुंदरे सुंदरों राम:”” का अर्थ तो यहा प्रगट हो गया किन्तु सुंदर में सभी सुंदर है इसका अभिप्राय समझने के लिए कथा के मूल में हनुमान ओर सीता के समस्त गुण विकास को समझना होगा तभी सुंदरकाण्ड के सुंदर होने का रस्वास्वादन प्राप्त हो सकेगा।
गोस्वामी तुलसीदास ने सुंदर काण्ड की पहली ही चौपाई की शुरुआत सुंदर वचनों से की है कि - “”जामवंत के वचन सुहाए, सुनि हुनुमंत हृदय अति भाए।“” वे हनुमान को अपने विस्मृत हो चुके पराक्रम की याद कराने के बाद उन्हे अपने बल का बखान करते हैं जो एक ऋषि के श्राप से वे भूल चुके थे। हनुमान जी को स्मरण आता है तो उसकी परीक्षा के लिए वहाँ एक पर्वत का प्रसंग गोस्वामी जी रखते है कि - “” सिंधु तीर एक भूधर सुंदर “” में सुंदर शब्द का पहली बार उल्लेख किया ओर हनुमान जी जैसे ही उस पर्वत पर पाँव रखकर कूदते है तो वह पर्वत पाताल में धस जाता है। सुंदरकाण्ड में सुदर क्या है हनुमान का स्वरूप जो भीमाकर कर लिया है जो अगाध गगनाकार सागर को लांघने के लिए है। शत योजन सागर को पार करते समय देवताओं ने उनकी परीक्षा लेने सुरसा को विघ्न बनाकर प्रस्तुत किया जो उन्होने अपने बुद्धिबल से सुरसा की परीक्षा पास करने के लिए सुरसा के शरीर के आकार से दुगुना चौगुना रूप धरने के बाद उनके मुख से वापिस आकार विदा मांगी। मैनाक पर्वत समुद्र से आ जाना ओर हनुमान से कहना की थक गए होंगे विश्राम कर ले ओर कुछ भोजन ग्रहण कर ले तब हनुमान द्वारा कहना की “राम काज किन्हे बिना मोहि कहा विश्राम।“” मैं राम के काम से जा रहा हूँ इस समय मुझे भोजन ओर विश्राम के लिए समय नहीं है मुझे शीघ्र जाना है, हनुमान की बात सुनकर मैनाक पर्वत सागर में लौट जाता है। हनुमान सागर लांघते आगे बढ़ते है तभी एक निशाचर जो आकाश में उड़ने वाले पक्षियों जीव जन्तुओ की परछाई सागर के जल में पड़ते ही उनकी परछाई पकड़ उन्हे खा जाती है वह राक्षसी हनुमान की परछाई पकड़ लेती है हनुमान जी तुरंत उसे मारकर समुद्र पार कर लंका पहुचते हैं। जिसपर तुलसीदास जी सुंदर शब्द का दूसरी बार प्रयोग कर लिखते है कि – “”कनककोट विचित्रा मनि कृत सुन्दरायतना घना”” अर्थात लंका का वह सोने का परकोटा रंग विरंगी मणियों से जड़ा है जिसके अतिसुंदर घर है। लंका पहुचकर हनुमान जी द्वारा दक्षिण किनारे से त्रिकुट शिखर पर चढ़कर लंकापूरी को देखना, संध्याकाल मसक/मच्छर के समान सूक्ष्म शरीर धारण कर लंका में प्रवेश करते समय राक्षसीवेश धारण करने वाली लंकिनी को घूंसा मारकर रक्तरंजित करनातथा लंकिनी द्वारा हनुमान को लंका के विनाश के प्रसंग सुनकर शुभ संकेत देना सुंदर ही तो है जिसका विस्तार से पढ़ने के बाद सुंदरकाण्ड के अन्य प्रसंगो का सुंदरतम वर्णन से सभी आभिभूत होते हैं ओर हनुमान के द्वारा उनके मार्ग में बाधक बनी तीन स्त्रियों के साथ अपनाए गए व्यवहार उनकी बुद्धि का प्रमाण है जहां वे पहली स्त्री सुरसा के सामने विनय करते है, दूसरी स्त्री सिहिंका को यमलोक पहुंचाते हैं ओर लंका को एक मुसठिका मारकर ठीक करते हैं।
सुंदरकाण्ड के कथा वर्णनों में माता सीता की खोज में हनुमान लंका के हर महल ओर घरों का अन्वेषण करते हैं। गोस्वामी जी लिखते हैं “ मंदिर मंदिर प्रति करि सोधा, देखे जंह तंह अगनित जोधा। गयउ दसानन मंदिर माहीं, अति विचित्र कहि जात सो नाही। “” हनुमान ने हर घर जिन्हें मंदिर कहा गया है में सीता की तलाश की परंतु उन्हें असंख्य योद्धा दिखे । रावण के महल में भी देखा जो विचित्र बना हुआ था जहा भी सीता नही दिखी। तब हनुमान को एक सुंदर घर दिखा जिसमें रामनाम अंकित था तुलसी की पुजा होती थी तब उन्होंने सोचा यहा निश्चरों के बीच कौन सज्जन पुरुष है “” लंका निसिचर निकर निवासा, इहाँ कहाँ सज्जन कर बासा। मन महु तरक करें कपि लागा, तेही समय विभिसनु जागा। “” हनुमानजी ने ब्रम्हण का वेश धर कर विभीषण से मिले जहा से उन्हे सीता माता के अशोक वाटिका में होने कि जानकारी मिली ओर वे सीतामाता से मिलने के लिए अशोकवाटिका कि ओर चल दिये। “एकवेन्णी कृशां दीनां मलिनाम्बरधारिणिम । भूमौ शयानां शौचंती रामरामेति भाषिनिम॥ “ हनुमान जी ने अशोकवाटिका में अशोक वृक्ष के नीचे पृथ्वी पर माता जानकी को देखा,मानो कोई देवांगना एक वेणी धारणकिए हुये है ओर उसका शरीर अत्यंत दुर्बल हो, आकृति दीन थी, वस्त्र मलिन थे ओर चिंतन कि मुद्रा में राम राम कि रट लगाए हुये थी। हनुमान जी ने जनकनंदिनी के दर्शन रात में किए तब बीस भुजा वाले नीलांजन राशि के समान रावण का सीता के पास आना ओर सीता के दर्शन कर अपनी कठोर ओर कटु वाणी बोलना ओर सीता का उत्तर प्रतिउत्तर सुनकर जानकी के वध के लिए रावण का खड़ग उठाना ओर मन्दोदरी द्वारा उसे रोका जाना, रावण का सीता को दो माह का समय देना तथा राक्षसीगण को सीता को भयभीत करने के आदेश के उपक्रम में सीता को उत्पीड़न करना ओर धमकी देना कि “”मास दिवस महूँ कहा न माना तो मैं मारिब काढ़ि कृपाना।“” त्रिज़टा का स्वप्नवृतांत सुनाकर राक्षसीवृंद को भयभीत ओर निंदित करना , सीता का रुदन करना ओर प्राणत्याग कि चेष्टा का भाव लाने पर हनुमान द्वारा अवसर जानकार सीता को रामवृतांत सुनाना ओर फिर राम द्वारा दी गई मुद्रिका/अंगूठी सीता को प्रदान कर उनका विश्वास अर्जित करने के लिए अंगूठी सीता जी से सामने डाल दी। “तब देखि मुद्रिका मनोहर, राम नाम अंकित अति सुंदर। “ सीताजी अंगूठी पहचान कर हर्ष ओर दुख के साथ व्याकुल हो गई तब हनुमान से वानरराज सुग्रीव से मित्रता कि बात बताकर वानरों के बल बुद्धि का बखान कर कर उनकी ताकत का भरोसा दिलाया जिसपर पर संतुष्ट होकर सीता ने उन्हें आशीर्वाद दिया – “आशीष दीन्ही रामप्रिय जाना होहु तात बल सील निधाना । अजर अमर गुन निधि सुत होहु। करहु बहुत रघुनायक छोहु।“ सीता जी से अजय अमर होने का आशीर्वाद प्राप्त कर हनुमान जी ने उनसे कहा माँ मुझे भूख लगी है अगर आप कहे तो मैं अशोकवाटिका से कुछ पल खा लूँ –“लागि देखि सुंदर फल रूखा।“ इसके बाद आज्ञा पाकर अशोकवाटिका में सुंदर फलों का आहार कर वाटिका उजाड़ना, रावण के सेना ओर उसके बेटे अक्षयकुमार को मारना फिर मेघनाथ द्वारा हारने कि स्थिति में हनुमान पर ब्रम्हपाश छोडना ओर हनुमान का उसमे बंधाना, रावण की सभा में जाना, रावण को उपदेश देना, रावण का क्रोधित होना, पूंछ में आग लगाना ओर उस आग से हनुमान द्वारा पूरी लंका का दहन करना,सागर में पूंछ बुझाकर वापिस सीता के पास अशोकवाटिका में आना उनसे चुड़ामणि लेकर सागर के पार आना, वानर साथियों के साथ मिलना। मधुबन के फल खाना ओर उसे उजाड़ना, राम जी के पास सीता का संदेश सुनाना, राम द्वारा हनुमान को गले लगाना सुदरकाण्ड की ये सारी कथाएँ बड़ी ही सुंदरतम है।
हनुमानजी का सबसे बड़ा गुण ओर उनकी शक्ति अनेक स्थानों पर वर्णन गई है। वे दुरदर्शी थे कि सन्यासी का रूप रखकर निशाचर लोग छलते है,रावण के द्वारा सन्यासी के रूप में सीता का हरण जगजाहिर हो गया था । कालनेमि ने भी सन्यासी का रूप रखकर हनुमान को संजीवनी लाने से रोका था। दुरदर्शी हनुमान ने संभवतया ब्राम्हण रूप को उपयुक्त माना जो सत्य संभाषण ओर वेद पुराण ओर धर्म के आचार्य भी रहे इसलिए उन्होने ब्राम्हण का रूप रखा जिसका पहला प्रयोग हनुमानजी जी ने तब किया जब सुग्रीव को भय हुआ कि कोई मुनिकुमार उसके भाई बालि के भेजे उसे नुकसान पहुंचा सकते हैं तब हनुमान ब्राम्हण वेष बनाकर रामलक्ष्मण के पास जाते हैं और सुग्रीव राम की मित्राता कराके दोनों का हित साधते हैं । विभीषण के पास भी वे रात्रि के अंत में ब्राम्हण बनकर जाते हैं और उनसे सीता अशोक वाटिका में बन्दिनी है, यह जानकारी प्राप्त करते है। आकार वे विचार करते हैं कि कैसे मैं जनकनंदिनी से बातें करूं कि सीता जी का विश्वास अर्जित कर लूं। यदि संस्कृत में वार्तालाप करूंगा तो कहीं वैदेही मुझे रावण समझ बैठे। अतः मैं जनभाषा में बातें करूंगा, यह विचार करने के बाद वे माता सीता के सामने अपने असली रूप वानर के रूप में परिचय देते हैं। या कहे जगजननी के सामने भक्त जैसा है वैसे ही समर्पित होता है उनके सामने भक्त की माया का क्या मूल्य, वास्तविक रूप को माता स्वीकारती भी है। जब लक्ष्मण को शक्ति लगी तब वे संजीविनी बूटी लेने गये तो वे हक्काबक्का हो गये। वैद्यराज सुषेण ने बताया था कि संजीवनी का वृक्ष प्रकाशित रहता है। रात्रि में हनुमानजी ने पचासों पेड़ों को प्रकाशमय पाया। कोई दूसरा होता तो सोचता मैं क्या करूं चलो बता दूंगा वहां संजीवनी वृक्ष नहीं था, सारे वृक्ष प्रकाशमय थे, मैं किसे लाता? बुद्धि सागर हनुमान जी ने यह पर्वत खंड ही उखाड़ लिया जिस पर वे समस्त वृक्ष खड़े थे और प्रकाश दे रहे थे।
‘सुंदरे सुंदरी सीता “” के विषय में सुंदरकाण्ड, सीता के प्रधान चरित्र को प्रगट करता है यह अलग बात है कि हम अब तक हम भक्त हनुमान ओर अन्य प्रसंगो के चिंतन में खोये रहे। सम्पूर्ण नारी जगत को गौरवान्वित करने वाली सीता अपने नाम, रूप, गुण ओर चरित्र में सती के सतीत्व का तेज लिए हुये सर्वव्यपिनी चैतन्यस्वरूप त्याग की मूर्ति है। श्रीराम के निकट रहने के कारण वे जगदानन्दकारिणी है जो कुछ देहविशिष्ट है सबकी उत्पत्ति,स्थिति ओर संहारणी सीतादेवी ही कही गई है इसलिए कहा गया है कि सीता ही प्रणय होने के कारण प्रकृति है। अध्यात्म रामायण में उल्लेख किया गया है कि “एको विभासि त्वं माया बहुरुपया। तथा- योगमायापि सीतेति।“” लोकविमोहिनी हरिनेत्रकृतालया श्रीसीताजी ने श्रीरामचन्द्र जी के अभिप्रायानुसार श्रीसीता जी राम के एक सर्वश्रेष्ठ भक्त को ज्ञान का पात्र जानकार एक वार तत्वज्ञान प्रदान किया था। श्रीसीता जी कहती है कि रामको परब्रम्ह सच्चिदानंद ही जानना चाहिए। एकमात्र सत्यवस्तु श्रीराम ही बहुरूपिणी माया को स्वीकार कर विश्वरूप में भासित हो रहे है ओर सीता ही योगमाया है। “” मूलप्रकृतिस्वरूप होने से सीता सत्वरजस्तमोगुणात्मिका प्रकृति है जिन्हे त्रिवर्णात्मा साक्षात माया कहा है जो प्रपंच बीज, मायामयी कही गई है तथा वे अविद्यास्वरूपणी भी है ओर विघास्वरूपणी भी है। रामायण में जो कुछ होता है सीता उसकी कर्ता है,विश्व का सारा कार्य शक्तिरूप ही करती है। सीता हरण, रावण मरण सारे कर्म के मूल में कर्ता सीता कही गई है, वास्तव में निर्विकार एवं अखिल विश्व कि आत्मा सीता ही है। राम कुछ नहीं करते,जो कुछ होता है माया के गुणों के अनुग्रह से होता है।
“”सकलकुशलदात्री,भक्तिमुक्तिप्रदात्री। त्रिभुवनजनयित्री दुष्टधीनाशयित्रिम॥
जनकधरणीपुत्री दर्पिदर्पप्रहत्री। हरिहरविधिकत्री नौमि सदभक्तभत्रिम ॥
भगवती सीता जी कि अपार महिमा है। वेद शास्त्र पुराण इतिहास तथा धर्म ग्रंथो में इनकी अनंत लीलाओ का शुभ वर्णन किया गया है। ये भगवान श्रीराम कि प्राणप्रिया आघ्याशक्ति है। इन्ही के भृकुटी विलास मात्र से उत्पत्ति -स्थिति –संहारादि कार्य हुआ करते है। श्रुति का वाक्य है –उत्पत्तिस्थितिसंहारकारिणी सर्वदेहिनाम। सा सीता भगवती ज्ञेया मूलप्रकृतिसंज्ञिता ॥ (श्रीरामतापनीय-उत्तराध्र्द) समस्त देह धारियों की उत्पत्ति,पालन तथा संहार करने वाली आघ्याशक्ति मूल प्रकृति संगयक श्री सीता जी ही है। अत: सुंदरकाण्ड में हनुमान ओर सीता का प्रसंग सुंदर है इसलिए ‘सुंदरे सुंदरी सीता “” जैसे मांगलिक भाव का रसास्वादन लेने के लिए ही रामायण में काण्ड का नाम सुंदरकाण्ड रखा गया है जो उत्तम है।
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