"कोरोना काल में गांधीवादी सिद्धांतों की प्रासंगिकता" -डॉ दीपक कोहली-

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"कोरोना काल में गांधीवादी सिद्धांतों की प्रासंगिकता"

-डॉ दीपक कोहली-

आज आधुनिकता की अंधाधुंध दौड़ में दौड़ रहे विश्व के सभी देशों की गति पर कोरोना वायरस ने ब्रेक लगा दिया है। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि कोरोना वायरस का तेज़ी से प्रसार इसी दौड़ का परिणाम है। कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के लिये लॉकडाउन की व्यवस्था अपनाई गई है। इस व्यवस्था को प्रभावी बनाने के लिये गांधीवादी दृष्टिकोण पर आधारित स्वदेशी, स्वच्छता और सर्वोदय की अवधारणा का महत्त्वपूर्ण स्थान है। सामान्यतः महात्मा गांधी को औपनिवेशिक सत्ता के विरुद्ध के विरुद्ध संघर्ष करने वाले योद्धा के रूप में देखा जाता है, किंतु यदि गहराई से देखें तो गांधी ने न केवल स्वतंत्रता की लड़ाई बल्कि उन्होंने हर समय भारतीय सभ्यता को श्रेष्ठता दिलाने का प्रयास भी किया और विश्व व्यवस्था के समक्ष भारतीय सभ्यता का प्रतिनिधित्व किया।पश्चिमी सभ्यता के वर्चस्व वाले उस युग में गांधी ने भारतीय सभ्यता को श्रेष्ठ बताते हुए उसे संपूर्ण विश्व के लिये एक विकल्प के रूप में प्रस्तुत किया।

गांधीवादी दृष्टिकोण महात्मा गांधी द्वारा अपनाई और विकसित की गई उन धार्मिक-सामाजिक विचारों का समूह जो उन्होंने पहली बार वर्ष 1893 से 1914 तक दक्षिण अफ्रीका में तथा उसके बाद फिर भारत में अपनाए गए थे।

गांधीवादी दर्शन न केवल राजनीतिक, नैतिक और धार्मिक है, बल्कि पारंपरिक और आधुनिक तथा सरल एवं जटिल भी है। यह कई पश्चिमी प्रभावों का प्रतीक है, जिनको गांधीजी ने उजागर किया था, लेकिन यह प्राचीन भारतीय संस्कृति में निहित है तथा सार्वभौमिक नैतिक और धार्मिक सिद्धांतों का पालन करता है।

गांधीवादी दृष्टिकोण आदर्शवाद पर नहीं, बल्कि व्यावहारिक आदर्शवाद पर ज़ोर देती है। गांधीजी का दृष्टिकोण विभिन्न प्रेरणादायक स्रोतों व नायकों जैसे- भगवद्गीता, जैन धर्म, बौद्ध धर्म, बाइबिल, गोपाल कृष्ण गोखले, टॉलस्टॉय, जॉन रस्किन आदि से प्रभावित था।गांधीजी पहले ऐसे भारतीय थे जिन्होंने वर्ष 1909 में अपनी पुस्तक ‘हिंद स्वराज’ में मशीनीकरण के भयावह रूप को रेखांकित करते हुए ‘स्वदेशी’ की महत्ता को बताया। गांधीजी ने रस्किन की पुस्तक 'अंटू दिस लास्ट' से 'सर्वोदय' के सिद्धांत को ग्रहण किया और उसे जीवन में उतारा। गांधीजी के लिये ‘स्वच्छता’ एक बहुत ही महत्वपूर्ण सामाजिक मुद्दा था। वर्ष 1895 में जब ब्रिटिश सरकार ने दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों और एशियाई व्यापारियों से उनके स्थानों को गंदा रखने के आधार पर भेदभाव किया था, तब से लेकर जीवनभर गांधीजी लगातार स्वच्छता पर जोर देते रहे।

स्वदेशी शब्द संस्कृत से लिया गया है और यह संस्कृत के दो शब्दों का एक संयोजन है। 'स्व' का अर्थ है स्वयं और 'देश' का अर्थ है देश। स्वदेशी का अर्थ अपने देश से है, लेकिन व्यवहारिक संदर्भों में इसका अर्थ आत्मनिर्भरता के रूप में लिया जा सकता है।गांधी जी का मानना ​​था कि इससे स्वतंत्रता (स्वराज) को बढ़ावा मिलेगा, क्योंकि भारत का ब्रिटिश नियंत्रण उनके स्वदेशी उद्योगों के नियंत्रण में निहित था। स्वदेशी भारत की स्वतंत्रता की कुंजी थी और महात्मा गांधी के रचनात्मक कार्यक्रमों में चरखे द्वारा इसका प्रतिनिधित्व किया गया था।

आधुनिक हिंदी साहित्य के जनक माने जाने वाले भारतेंदु हरिश्चंद्र ने अपने लेखन से स्वदेशी की अलख जगाई। वर्ष 1905 का बंग-भंग विरोधी आंदोलन भी स्वदेशी की भावना से ओत-प्रोत था जब बंगाल में विदेशी वस्तुओं की होली जलाई गई और उनके बहिष्कार पर बल दिया गया। इस स्वदेशी भाव को राष्ट्रीय स्तर पर बहुआयामी स्वरूप प्रदान करने का कार्य वर्ष 1920 में महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन प्रारंभ करके किया। उन्होंने इसे न केवल विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार तथा उनके अग्निदाह तक सीमित रखा, बल्कि उद्योग-शिल्प, भाषा, शिक्षा, वेश-भूषा आदि को स्वदेशी के रंग में रंग दिया। परंतु स्वतंत्रता के बाद गांधी जी की मृत्यु के साथ ही उनके स्वदेशी की अवधारणा भी लुप्त होने लगी और आधुनिक भारत के मंदिरों के नाम पर ‘स्वदेशी धरती’ पर विदेशी मशीनों को लाकर बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियां स्थापित की जाने लगीं। नतीजतन, देश के तमाम हस्त उद्योग, कुटीर उद्योग लुप्त होते चले गए, घर-घर से चरखा गायब होता चला और शहरों से लेकर गाँवों तक देशी-विदेशी फैक्ट्रियों के उत्पादित माल बाज़ार में छा गए। हस्त उद्योग, कुटीर उद्योग के लुप्त होने से भारत ने अपने विनिर्माण क्षेत्र को खो दिया।

भारत में गांधी जी ने गांव की स्वच्छता के संदर्भ में सार्वजनिक रूप से पहला भाषण 14 फरवरी 1916 में मिशनरी सम्मेलन के दौरान दिया था। इस सम्मेलन में गांधी जी ने कहा था ‘गाँव की स्वच्छता के सवाल को बहुत पहले हल कर लिया जाना चाहिये था।’गांधी जी ने स्कूली और उच्च शिक्षा के पाठ्यक्रमों में स्वच्छता को तुरंत शामिल करने की आवश्यकता पर जोर दिया था।गांधीजी ने रेलवे के तीसरे श्रेणी के डिब्बे में बैठकर देशभर में व्यापक दौरे किए थे। वह भारतीय रेलवे के तीसरे श्रेणी के डिब्बे की गंदगी से स्तब्ध और भयभीत थे। उन्होंने समाचार पत्रों को लिखे पत्र के माध्यम से इस ओर सबका ध्यान आकृष्ट किया था। 25 सितंबर 1917 को लिखे अपने पत्र में उन्होंने लिखा, ‘इस तरह की संकट की स्थिति में तो यात्री परिवहन को बंद कर देना चाहिये। जिस तरह की गंदगी और स्थिति इन डिब्बों में है उसे जारी नहीं रहने दिया जा सकता क्योंकि वह हमारे स्वास्थ्य और नैतिकता को प्रभावित करती है।’

वर्ष 1920 में गांधीजी ने गुजरात विद्यापीठ की स्थापना की। यह विद्यापीठ आश्रम की जीवन पद्धति पर आधारित था, इसलिये वहाँ शिक्षकों, छात्रों और अन्य स्वयं सेवकों और कार्यकर्ताओं को प्रारंभ से ही स्वच्छता के कार्य में लगाया जाता था। गांधीजी ने इस बात पर जोर दिया कि ग्रामीणों को अपने आसपास और गाँव को साफ रखते हुए स्वच्छता का माहौल विकसित करने की तुरंत जरूरत के बारे में शिक्षित किया जाना चाहिये। सर्वोदय शब्द का अर्थ है 'सार्वभौमिक उत्थान' या 'सभी की प्रगति'। गांधी जी का यह सिद्धांत राजनीतिक अर्थव्यवस्था पर जॉन रस्किन की पुस्तक ‘अंटू दिस लास्ट’ से प्रेरित था। सर्वोदय ऐसे वर्गविहीन, जातिविहीन और शोषणमुक्त समाज की स्थापना करना चाहता है, जिसमें प्रत्येक व्यक्ति और समूह को अपने सर्वांगीण विकास का साधन और अवसर मिले। सर्वोदय ऐसी समाज की रचना चाहता है जिसमें वर्ण, वर्ग, धर्म, जाति, भाषा आदि के आधार पर किसी समुदाय का न तो संहार हो और न ही बहिष्कार हो।सर्वोदयी समाज की रचना ऐसी होगी, जो सर्व के निर्माण और सर्व की शक्ति से सर्व के हित में चले, जिसमें कम या अधिक शारीरिक सामर्थ्य के लोगों को समाज का संरक्षण समान रूप से प्राप्त हो और सभी तुल्य पारिश्रमिक के हकदार माने जाएँ। सर्वोदय शब्द गांधी द्वारा प्रतिपादित एक ऐसा विचार है जिसमें ‘सर्वभूतहिते रताः’ की भारतीय कल्पना, सुकरात की ‘सत्य-साधना’ और रस्किन की ‘अंत्योदय की अवधारणा’ सब कुछ सम्मिलित है। गांधीजी ने कहा था ” मैं अपने पीछे कोई पंथ या संप्रदाय नहीं छोड़ना चाहता हूँ।” यही कारण है कि सर्वोदय आज एक समर्थ जीवन, समग्र जीवन, तथा संपूर्ण जीवन का पर्याय बन चुका है।

20वीं सदी का आरंभ दुनियाभर में पर्यावरण को लेकर जागरुकता से हुई थी। प्रत्येक आंदोलन के अलग राजनीतिक विचार और सक्रियता थी, तथापि इन सभी आंदोलनों को आपस में जोड़ने वाली कड़ी अहिंसा और सत्याग्रह का गांधीवादी दृष्टिकोण ही था। पर्यावरण सुरक्षा गांधीवादी कार्यक्रमों का प्रत्यक्ष एजेंडा नहीं था। लेकिन उनके अधिकांश विचारों को सीधे तौर पर पर्यावरण संरक्षण से जोड़ा जा सकता है। हरित क्रांति, गहन पर्यावरण आंदोलन आदि ने गांधीवादी विचारधारा के प्रति कृतज्ञता स्वीकार की। आश्रम संकल्प (जिन्हें गांधी जी के ग्यारह संकल्पों के रूप में जाना जाता है) ही वे सिद्धांत हैं जिन्होंने गांधी की पर्यावरण संबंधी विचारधारा की नींव रखी थी।

गांधी का स्वदेशी विचार भी प्रकृति के खिलाफ आक्रामक हुए बिना, स्थानीय रूप से उपलब्ध संसाधनों के उपयोग का सुझाव देता है। उन्होंने आधुनिक सभ्यता, औद्योगिकीकरण और शहरीकरण की निंदा की। गांधी ने कृषि और कुटीर उद्योगों पर आधारित एक ग्रामीण सामाजिक व्यवस्था का आह्वान किया। भारत के लिये गांधी की दृष्टि प्राकृतिक संसाधनों के समझदारी भरे उपयोग पर आधारित है, न कि प्रकृति, जंगलों, नदियों की सुंदरता के विनाश पर। उनका प्रसिद्ध कथन “पृथ्वी के पास सभी की जरूरतों को पूरा करने के लिये पर्याप्त संसाधन हैं, लेकिन हर किसी के लालच को नहीं” दुनिया भर के पर्यावरणीय आंदोलनों के लिये एक उपयोगी नारा है।

महात्मा गांधी की शिक्षाएँ आज और अधिक प्रासंगिक हो गई हैं जब कि लोग अत्याधिक लालच, व्यापक स्तर पर हिंसा और भागदौड़ भरी जीवन शैली का समाधान खोजने की कोशिश कर रहे हैं। प्रकृति को गांधीवादी नज़रिये से देखने पर वैश्विक तापन जैसी समस्याएँ कम हो सकती हैं, क्योंकि इस समस्या की जड़ उपभोक्तावाद ही है। गांधीवादी दर्शन में ज़रुरत के मुताबिक ही उपभोग की बात की है। लोक कल्याणकारी के रूप में राज्य की भूमिका गांधी जी के सर्वोदय सिद्धांत से प्रभावित है।सांप्रदायिक कट्टरता और आतंकवाद के इस वर्तमान दौर में गांधी तथा उनकी विचारधारा की प्रासंगिकता और बढ़ गई है, क्योंकि उनके सिद्धांतों के अनुसार सांप्रदायिक सद्भावना कायम करने के लिये सभी धर्मों-विचारधारों को साथ लेकर चलना ज़रूरी है। आज के दौर में उनके सिद्धांत बेहद ज़रूरी हैं।

ध्यातव्य है कि इस समय पूरा विश्व कोरोना वायरस जैसी महामारी से लड़ रहा है। इस महामारी को पर्यावरण क्षरण, स्वच्छता में कमी तथा उपभोक्तावादी जीवनशैली जैसे कारकों का परिणाम माना जा सकता है। गांधीवादी दृष्टिकोण ने सर्वथा पर्यावरण संरक्षण, स्वच्छता, ज़रुरत के अनुसार ही उपभोग, आत्मनिर्भरता तथा ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर ज़ोर दिया। इस संकट काल में गांधी के विचारों की महत्ता एक बार फिर स्थापित होती है। इस महामारी ने एक अवसर प्रदान किया है कि हमें अपनी खाद्य श्रृंखला में बदलाव करते हुए गांधीवादी सिद्धांतों को अपनाने की आवश्यकता है।

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लेखक परिचय

*नाम - डॉ दीपक कोहली

*जन्मतिथि - 17 जून, 1969

*जन्म स्थान- पिथौरागढ़ ( उत्तरांचल )

*प्रारंभिक जीवन तथा शिक्षा - हाई स्कूल एवं इंटरमीडिएट की शिक्षा जी.आई.सी. ,पिथौरागढ़ में हुई।

*स्नातक - राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, पिथौरागढ़, कुमायूं विश्वविद्यालय, नैनीताल ।

*स्नातकोत्तर ( एम.एससी. वनस्पति विज्ञान)- गोल्ड मेडलिस्ट, बरेली कॉलेज, बरेली, रुहेलखंड विश्वविद्यालय ( उत्तर प्रदेश )

*पीएच.डी. - वनस्पति विज्ञान ( बीरबल साहनी पुरावनस्पति विज्ञान संस्थान, लखनऊ, उत्तर प्रदेश)

*संप्रति - उत्तर प्रदेश सचिवालय, लखनऊ में उप सचिव के पद पर कार्यरत।

*लेखन - विभिन्न प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में लगभग 1000 से अधिक वैज्ञानिक लेख /शोध पत्र प्रकाशित हो चुके हैं।

*विज्ञान वार्ताएं- आकाशवाणी, लखनऊ से प्रसारित विभिन्न कार्यक्रमों में 50 से अधिक विज्ञान वार्ताएं प्रसारित हो चुकी हैं।

*पुरस्कार-

1.केंद्रीय सचिवालय हिंदी परिषद नई दिल्ली द्वारा आयोजित 15वें अखिल भारतीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी लेखन प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार, 1994

2. विज्ञान परिषद प्रयाग, इलाहाबाद द्वारा उत्कृष्ट विज्ञान लेख का "डॉ .गोरखनाथ विज्ञान पुरस्कार" क्रमशः वर्ष 1997 एवं 2005

3. राज्य कर्मचारी साहित्य संस्थान ,उत्तर प्रदेश, लखनऊ द्वारा आयोजित "हिंदी निबंध लेख प्रतियोगिता पुरस्कार", क्रमशः वर्ष 2013, 2014 एवं 2015

4. पर्यावरण भारती, मुरादाबाद द्वारा एनवायरमेंटल जर्नलिज्म अवॉर्ड्, 2014

5. सचिवालय सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजन समिति, उत्तर प्रदेश ,लखनऊ द्वारा "सचिवालय दर्पण निष्ठा सम्मान", 2015

6. राज्य कर्मचारी साहित्य संस्थान, उत्तर प्रदेश, लखनऊ द्वारा "साहित्य गौरव पुरस्कार", 2016

7.राज्य कर्मचारी साहित्य संस्थान ,उत्तर प्रदेश, लखनऊ द्वारा "तुलसी साहित्य सम्मान", 2016

8. पर्यावरण भारती, मुरादाबाद द्वारा "सोशल एनवायरमेंट अवॉर्ड", 2017

9. पर्यावरण भारती ,मुरादाबाद द्वारा "पर्यावरण रत्न सम्मान", 2018

10. अखिल भारती काव्य कथा एवं कला परिषद, इंदौर ,मध्य प्रदेश द्वारा "विज्ञान साहित्य रत्न पुरस्कार",2018

11. पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग, उत्तर प्रदेश, लखनऊ द्वारा वृक्षारोपण महाकुंभ में सराहनीय योगदान हेतु प्रशस्ति पत्र / पुरस्कार, 2019

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डॉ दीपक कोहली, पर्यावरण , वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग उत्तर प्रदेश शासन,5/104, विपुल खंड, गोमती नगर लखनऊ - 226010 (उत्तर प्रदेश )

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रचनाकार: "कोरोना काल में गांधीवादी सिद्धांतों की प्रासंगिकता" -डॉ दीपक कोहली-
"कोरोना काल में गांधीवादी सिद्धांतों की प्रासंगिकता" -डॉ दीपक कोहली-
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