कब्र सजाया है यह दहशत किस लिए करता है कुछ नहीं हासिल होनेवाला है । यह नफरत किस लिए करता है प्यार से सब अपने होनेवाले हैं ॥ यह चमन अमन क...
कब्र सजाया है
यह दहशत किस लिए करता है
कुछ नहीं हासिल होनेवाला है ।
यह नफरत किस लिए करता है
प्यार से सब अपने होनेवाले हैं ॥
यह चमन अमन का मोहताज है
घट घट में परमात्मा बसता है ।
खाली हाथ आये खाली जायेंगे
तो क्यों मन में नाग डसता है ॥
छोड हिंसा जीओ और जीने दो
सोच हिंसक बनके क्या पायेगा ।
यहीं रहने के लिए नहीं आया तू
वहाँ कौन सा मुँह लिए जायेगा ॥
हो सके दुनिया का दर्द बाँट लो
किसी का खून मत बाँटा कर ।
फरिश्ता बनकर रिश्ता जोडना है
उजाड न दे जिंदगी शैतान बनकर ॥
बेखौफ होकर जिंदगी जिया करे
क्या रखा है मजहब के नाम में ।
अरे कुछ अच्छा करते चलते जा
लोग तुझे याद करेंगे तेरे काम में ॥
अरे इंसान हैं कोई जानवर नहीं
कुछ तो लाज रख ऊपरवाले की ।
अब कसम खा उस मालिक की
इंसानियत के लिए मर मिटने की ॥
मुस्कुराकर जिंदगी कुर्बान की है
उन्हीं ने चमन खूबसूरत बनाया है ।
छोड हिंसा जी ले चार दिन यहाँ
खबर लें किसी ने कब्र सजाया है ॥
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याद किया करो
यारों आपकी दुआओं में हमें याद किया करो ।
नियती सुख में भूल, गमों में याद किया करो ॥
अक्सर जब गम-ए-लम्हें नागीन बनके डंसते हैं।
कुछ न सोचो, न डरो, जरा मदिरा पिया करो ॥
यार छूटे, प्यार टूटे, दिल के टुकडे हो जाए ।
डरना न कभी, काम हिम्मत से लिया करो ॥
जीना ही दुश्वार बन जाए गैरों के बीच में ।
हार न मानते सब सहते, सब्र से जिया करो ॥
शायद उनकी नजरों में हम गुनेहगार ठहरे ।
फिर भी वक्त से बेगुनाह साबित किया करो ॥
प्रायः कभी कभी अपनों में दूरियाँ पैदा हो ।
अपनों के रास्ते जिगर निकाल रखा करो ॥
ऐ नादान तुम्हारी कोई फिक्र करे या ना करे।
चलते चार दिन तू सब रिश्ते निभाया करो ॥
बेवक्त कभी गम-ए-लम्हें पहाड सी बुनते जाए ।
जब असंभव लगे, ऊपरवाले का नाम लिया करो ॥
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जिंदगी का खेल
आज इस कदर बहक उठी है जिन्दगी
अब मरने को सिसक उठी है जिन्दगी ॥
वाह क्या क्या बयान करूँ बीच रास्ते
देखो बेवक्त ही थिरक उठी है जिन्दगी ॥
अमीर गरीबों का फासला नित निरंतर
अब जु्र्म देख खिसक उठी है जिन्दगी ॥
यारों का हमदर्द कभी बन न पाया ये
नाच नचाती बेझिझक उठी है जिन्दगी ॥
मेहरबानी उसकी हम सब पर देखकर
आशा निराशा में चमक उठी है जिन्दगी ॥
माँ का प्यार पाकर सिर झुकाता हूँ ये
माँ की ममता से खिल उठी है जिन्दगी ॥
चारों ओर सुख सादगी संसार देखकर
गुनगुनाती ये महक उठी है जिन्दगी ॥
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बचपना दे
जिन्दगी का लेखा जोखा है
लगता बहुत ज्यादा खोया है ।
मन में आरजू थे कुछ और
आज कुछ और ही पाया है ॥
ओ बचपन याद आती है
पल-पल हरपल सताती है ।
यादों में आँख भर आती है
रातों में नींद से जगाती है ॥
याद है पंछियों सा गाना
मोरनी सा नाचना कहाँ है ।
सुनेरा पल बीत गया अब
सिर्फ चार दिवारे ही जहां है ॥
ओ हँसना ओ धूम मचाना
रह गया शायद सब पीछे ।
फंस गया जंझीर में अब
दब गया दलदल के नीचे ॥
क्या हल्ला था मोहले में
आज सन्नाटा छाया हुआ है ।
गर हो सके तो वही बचपना
वापिस कर दो यही दुआ है ॥
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समझौता
आज दिल में एक खयाल आया है ।
दिल के समंदर में उबाल आया है ॥
जाने क्या उलझना क्या सुलझना ।
मानों जीवन बनके सवाल आया है ॥
न जाने अब ये कहाँ पटक फ़ेगा ।
देखो लहरों में कैसा उछाल आया है ॥
हे परमात्मा अब क्या ठीक करूँ ।
मेरी नेकी पर ही सवाल आया है ॥
आशा निराशा में कोई फर्क नहीं ।
समझौते के साथ बवाल आया है ॥
अब हार जीत स्वीकार कर लिया है ।
आत्मविश्वास बनके ढाल आया है ॥
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किसान
किसान लगता मिट्टी का बेटा
श्रम से खून का पसीना करता ।
अपनी बाहुओं पर है भरोसा
कोई आये जाये ये नहीं डरता ॥
सुखी प्रजा हेतु राज नहीं करता
धूप बारिश में फसल उगाता ।
साथी कदम बढाते दो बैल
वो बिना फिक्र उनको सजाता ॥
रात दिन एक सम मानता
निस्वार्थ मन मिट्टी की सेवा ।
वो हाथ पर हाथ रख बैठता
देश को कौन खिलायेगा मेवा ॥
भगवान की पूजा न हो पर
उससे होती मातृभूमि की पूजा ।
हरदम रहता मिट्टी में खोया
सबकी सेवा कर कोई न दूजा ॥
किसान को याद कौन करता
क्या होता देश को भूल जाता ।
कोई करता चिंता किसान की
सच्चे अर्थ में वो सम्मान पाता ॥
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दीप
दीप सा जलना
क्या बहुत कठिन है भैया
दीप सा उजियार फैलाना
क्या बहुत कठिन है भैया ॥
दीप हो राजा के महल
दीप हो रंक के घर
दोनों को देता उजियार
एकसम आपहु मरकर ॥
कुछ लोग करते उपयोग
कुछ लोग करते संग्रह
दीप का धर्म है जलना
प्रकाश फैलाने दो है आग्रह ॥
दीप का न कोई दुश्मन
दीप का न कोई परिजन
दीप जलता रहेगा परहित
हम सा नहीं बडा है वो मन ॥
जीवन को उत्त्म बनाना है
परहित में जलना होगा ।
जीवन को अत्युत्तम बनाना है
परहित समर्पित करना है ॥
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मिलावट - गिरावट
क्या खाये क्या न खाये,
सभी में मिलावट है ।
किस पे भरोसा करे न करे,
सभी में मिलावट है ॥
धर्म संस्कृति खायी में
नैतिकता में गिरावट है ।
धर्मगुरुओं का खिलवाड है
नैतिकता में गिरावट है ॥
देश की प्रगति शून्य है
सब नाटकीय सजावट है ।
देश में शांति अमन है
सब नाटकीय सजावट है ॥
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जय जय भारत माता
जय जय भारत माता, जय जय भारत माता ।
दिलों जान से तेरे गुण गाता, तेरे गुण गाता ॥
वो हिमालय है तेरा भाल
हर बच्चा है तेरा लाल
हर बच्चा है तेरा योध्दा
जीतकर उडाता है गुलाल ।
जय जय भारत माता, जय जय भारत माता ।
दिलों जान से तेरे गुण गाता, तेरे गुण गाता ॥
ज्ञान की गुरुमाता है तू
प्रेम भरी ममता है तू
संस्कृति की धरोहर है तू
विश्व की पहचान है तू ।
जय जय भारत माता, जय जय भारत माता ।
दिलों जान से तेरे गुण गाता, तेरे गुण गाता ॥
नैतिकता का रुप है तू
धर्म का धाम है तू
शौर्य का संग्राम है तू
वीरों की बलिदानी है तू ।
जय जय भारत माता, जय जय भारत माता ।
दिलों जान से तेरे गुण गाता, तेरे गुण गाता ॥
विद्वानों की खान है तू
हम सबकी शान है तू
शूर-वीरों की आन है तू
विश्व गुरु का मान है तू ।
जय जय भारत माता, जय जय भारत माता ।
दिलों जान से तेरे गुण गाता, तेरे गुण गाता ॥
तेरे ये पूत सभी विद्वान
तेरे उर में बुध्द अरु राम
उठता गर्व से सिर ये मेरा
बस दिल में है तेरा नाम ।
जय जय भारत माता, जय जय भारत माता ।
दिलों जान से तेरे गुण गाता, तेरे गुण गाता ॥
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मजदूर या मजबूर
देखो वहाँ कोई
मेहनत कर रहा है
नहीं असल में
खून का पसीना कर रहा है
क्या उसे ऐसी कौन सी जरुरत है
जरुरत नहीं मुसिबत है
पेट नाम से जो शरीर में
आखिर क्यों रखा है उसने
मजदूर, मजदूर नहीं
असल में वो तो मजबूर है ।
मजबूरी पेट की है
मजबूरी घर की है
मजबूरी पत्नी की है
मजबूरी बच्चों की है
आखिर क्यों उलझा दिया
क्यों उसे अपरिहार्य बना दिया
उसे मजदूर नहीं मजबूर बना दिया ।
मजदूर फसल उगाता है
मजदूर भूखा रहता है
मजदूर भवन बनाता है
मजदूर खुले धरती पर सोता है
मजदूर किसी के सपने साकार करता है
मजदूर के सपने चूर चूर होते है
मजदूर मेहनत करता है
पूरे पैसे कोई और गिनता है
मजदूर को उपेक्षा उपहास मिलता है ।
क्या कभी तो मिलेगा
मजदूर को उसका हक्क
नहीं…..
क्योंकि,
मजदूर, मजदूर नहीं
मजदूर, मजबूर है ॥
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सूरज की किरणें
सूरज की किरणें कमाल की किरणें
देखे चहुओर क्या प्रकाश फैलाती हैं ।
सूरज की नजर में नहीं कोई दूजा
किरणें रात के बाद प्रकाश फैलाती हैं ॥
किरणें बज बजकर कहती रहती हैं
तू है राजा उठ देख तू ही है राजा ।
नित निरंतर चलता चल जलता जल
तू बनेगा प्रकाशमान तू जग का राजा ॥
कभी न हारना कभी न सिर झुकाना
मेहनत से घर का नाम उजागर करना ।
किरणें हर दिशा दिशा में रंग भरती हैं
अब पग पग आगे बढ कभी न डरना ॥
महल हो या कुटिर प्रज्वलित करती हैं
राजा हो या भिखारी हो राह दिखाती हैं ।
धीरज रखना रात के बाद दिन आयेगा
देखो ये किरणें डटकर रहना सिखाती हैं ॥
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जीवन - चक्र
मृत्यु निश्चित है सब जानते हैं
पर कोई मरना नहीं चाहता ।
यम आयेगा ये सब जानते हैं
कोई सामना करना नहीं चाहता ॥
भरपूर खाना तो सब चाहते हैं
किसान बनना कोई नहीं चाहता ।
वो पक्वान्न हर कोई चाहता है
मिट्टी में रहना कोई नहीं चाहता ॥
पानी पीना हर कोई चाहता है
पेड लगाना कोई नहीं चाहता ।
बारिश भरपूर हो सब चाहते हैं
जंगल बचाना कोई नहीं चाहता ॥
जीवन में माँ पत्नी बहन चाहते हैं
घर में बेटी कोई नहीं चाहता ।
बिना जीवन चक्र कैसे चलेगा
सब अनायास हो हर कोई चाहता ॥
हरपल जीना हर कोई चाहता है
जीवन अनुशासन कोई न चाहता ।
निरोगी रहना ये सब चाहते हैं
सभी ओर स्वच्छता कोई नहीं चाहता ॥
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दुश्मन
अब दुश्मन किस को कहना
दुश्मन तो वो हैं
दहशत फैलाते हैं
नादान जनता को मारते हैं
सांप को छोडते हैं
निष्पाप को मारते हैं
उनके आने से
फैलता है सन्नाटा
लोगों के मन में खौफ
तो ठिक है …
मान लिया वही आतंकवादी हैं ।
मान लिया वही दुश्मन हैं ।
जरा बताओ भाई
ये कौन हैं …?
क्या ये दुश्मन से कम है ?
एक अफसर से
कोई निडर होकर मिल पाता
एक नेता से
विश्वास से हाथ मिला पाता
इनसे है सन्नाटा
इनसे है खौफ ॥
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उसका अनुग्रह
यारों ये मौसम कैसा छाया है
ये घना कोहरा अंधेरा छाया है ।
कोई मेरा पीछा करता दिखा है
पता चला है मेरा ही साया है ।
पास क्या है हिसाब नहीं कोई
मैं न जानूँ मैंने क्या पाया है ।
इन झंझीरों से मुक्ति की चाह है
जाने कहाँ फंस गया सब माया है ।
चाहकर भी कोई निकल न पाया
जाने अंजाने मायाजाल में खोया है ।
भरोसा उसपर भरपूर है यारों
सँभालेगा उसी ने भेज दिया है ।
मैं उस परमपिता का आभारी हूँ
हरपल उसका अनुग्रह मैंने पाया है ।
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किसने नहीं दिया
छोटी सी जिंदगी ने कुछ सीखने नहीं दिया
माटी की गुडिया ने कुछ खेलने नहीं दिया ।
एक हाथ न ताली बजी न कुछ हासिल हुआ
जमाने ने किसी को साथ चलने नहीं दिया ।
हम भी किसी से कम न थे उस कसौटी में
खिलवाड ने बाजू-ए-दम दिखाने नहीं दिया ।
हार न मानकर हम सदा लडने को तत्पर थे
अपना ही वो मैदान में डटे रहने नहीं दिया ।
माँ, माँ का प्यार पाने को तरसता रहा दिल
हाँ अपनों ने ही माँ का प्यार पाने नहीं दिया ।
काश हार गया हूँ इस पल पर निराश नहीं हूँ
संभलकर कभी मन को उदास होने नहीं दिया ।
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बहुत कठिन है
अपनों का साथ मानों स्वर्गसुख है
पर अपनों सा रहना बहुत कठिन है ।
देखा है रंगीन जग मनमोहक होता है
पर सूर्य सा प्रकाश फैलाना बहुत कठिन है ।
धरती माँ वसुंधरा बन खिल उठती है
पर धरती सा सहना बहुत कठिन है ।
कल कल बहकर सब में प्राण भरती है
पर नदी सा बहना बहुत कठिन है ।
पंछियों का मधुर नाद गूँज उठता है
पर पंछी सा गाना बहुत कठिन है ।
सभी बातें सुनने देखने में जन्नत है
बातों पर अमल करना बहुत कठिन है ।
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सबकुछ ठीक हो
पंछी कैसी उडती है
ऊपर ऊपर उडती है
उसमें न घमंड है
न अहंकार से उडती है ।
गुलाब को देखते है
इर्दगिर्द काँटें देखते हैं
मनुज को देखते नहीं
उसके ऐबों को देखते हैं ।
औरों को कोसते बैठे है
कोई शुध्द नहीं लगता
आपहु मन अशुध्द भरा
आपहु मन कब जगता ।
दुख में न हो सांत्वना
हो सके मदद करनी है
सबकुछ ठीक हो अब
यही प्रार्थना करनी है ।
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धर्म कर्म से पाना
मानों कोई धर्म से बडा नहीं होता
वो अपने कर्म से बडा होता है ।
कोई ऐसे से ही कुछ नहीं पाता
सच अपने मेहनत से सब पाता है ॥
स्वजन संग कष्ट में नहीं होता
सुख में दुश्मन भी पास होता है ।
कोई ऐसे ही अपना नहीं बनता
किसी समझौते से अपना बनता है ॥
लाख कोशिशों से सुकुन नहीं मिलता
कभी कभी नसीब से सब मिलता है ।
जंजीरों से कोई मुक्त नहीं होता
ईश्वर की कृपा से मुक्ति पाता है ॥
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हिन्दी दिवस के अवसर पर
हिन्दी हमारी जान है
हिन्दी हमारी जान है
हिन्दी हमारी शान है
हिन्दी सदा साथ रहे
हिन्दी हमारा मान है ॥
हिन्दी हमारी मातृभाषा है
हिन्दी हमारी राजभाषा है
हिन्दी को शत शत प्रणाम
हिन्दी हमारी राष्ट्रभाषा है ॥
हिन्दी हमारे सिर चडी है
हिन्दी हमारे कण-कण में है
हिन्दी में सदा जीते मरते हैं
हिन्दी बहती तन-मन में है ॥
हिन्दी सरल सुंदर भाषा है
हिन्दी सदा सबसे न्यारी है
हिन्दी दिलों जान में बसती है
हिन्दी सदा सबसे प्यारी है ॥
हिन्दी ने पाला पोसा है सब
हिन्दी ने मान प्राण दिया है।
हिन्दी नस नस में बसी है
हिन्दी हेतु न्योछावर किया है ॥
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चाहत
अब हमारी चाहत है
आज जो पुरुषोत्तम राम है
वह सीता मैया से मिले
आज जो भगवान श्रीकृष्ण है
वह राधा से मिले ।
आज जो सच्चा संत है
वह ईश्वर बन जाये।
आज जो भ्रष्ट है
वह नेता क्यों
आज जो योगी है
वह भोगी क्यों।
अब हमारी चाहत है
जो भ्रष्ट नेता है
जो योगी भोगी है
ओ पहले माटी में मिल जाये।
जो पाप है
उसका विनाश हो जाये।
अब हमारी चाहत है
कलीयुग का अंत हो
चाहे हामारा भी अंत हो
पर
फिर से द्वापरयुग हो
फिर से त्रेतायुग हो॥
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* अलगाव *
दूर अलगाव की ओर
अब निकला हूँ कब का।
ना जाने अब कोई वहाँ
आखिर पहुँचना है कब का॥
सच तरसा था कल भी
पर सहुंगा सब आज भी।
ना कोई शिकवा है यहाँ
निकल पडा हूँ आज भी॥
दूर अलगाव की आस में
चलता फिरता भटकता हूँ।
उम्मीद है दिल में सूरज की
किरणों पे भी चमकता हुँ॥
राह में रुकावट हो ना
चाह मेरे और किसी के भी।
वफा की इंतजार में ना
गिला लाख कोशिशों के भी॥
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यार मिल गये
आज यादें फूल फूल बन गये
आज आप जैसे यार मिल गये ।
दिल महफिल सा बन गया
संग गुनगुनाने आप मिल गये ।
अनोखा बन गया ये संगम
सुकून सारे अतीत मिल गये ।
ऐ खुदा तेरे दरपे क्या माँगू
खुदा जैसे यार यार मिल गये ।
ओ जन्नत कदमों तले आया
यार से दिल से दिल मिल गये ।
डॉ. सुनील परीट
बेलगावी, कर्नाटक
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