मृत्यु निश्चित है सब जानते हैं, पर कोई मरना नहीं चाहता । - डॉ. सुनील परीट

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कब्र सजाया है यह दहशत किस लिए करता है कुछ नहीं हासिल होनेवाला है । यह नफरत किस लिए करता है प्यार से सब अपने होनेवाले हैं ॥ यह चमन अमन क...

कब्र सजाया है

यह दहशत किस लिए करता है
कुछ नहीं हासिल होनेवाला है ।
यह नफरत किस लिए करता है
प्यार से सब अपने होनेवाले हैं ॥

यह चमन अमन का मोहताज है
घट घट में परमात्मा बसता है ।
खाली हाथ आये खाली जायेंगे
तो क्यों मन में नाग डसता है ॥

छोड हिंसा जीओ और जीने दो
सोच हिंसक बनके क्या पायेगा ।
यहीं रहने के लिए नहीं आया तू
वहाँ कौन सा मुँह लिए जायेगा ॥

हो सके दुनिया का दर्द बाँट लो
किसी का खून मत बाँटा कर ।
फरिश्ता बनकर रिश्ता जोडना है
उजाड न दे जिंदगी शैतान बनकर ॥

बेखौफ होकर जिंदगी जिया करे
क्या रखा है मजहब के नाम में ।
अरे कुछ अच्छा करते चलते जा
लोग तुझे याद करेंगे तेरे काम में ॥

अरे इंसान हैं कोई जानवर नहीं
कुछ तो लाज रख ऊपरवाले की ।
अब कसम खा उस मालिक की
इंसानियत के लिए मर मिटने की ॥

मुस्कुराकर जिंदगी कुर्बान की है
उन्हीं ने चमन खूबसूरत बनाया है ।
छोड हिंसा जी ले चार दिन यहाँ
खबर लें किसी ने कब्र सजाया है ॥

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याद किया करो

यारों आपकी दुआओं में हमें याद किया करो ।
नियती सुख में भूल, गमों में याद किया करो ॥

अक्सर जब गम-ए-लम्हें नागीन बनके डंसते हैं।
कुछ न सोचो, न डरो, जरा मदिरा पिया करो ॥

यार छूटे, प्यार टूटे, दिल के टुकडे हो जाए ।
डरना न कभी, काम हिम्मत से लिया करो ॥

जीना ही दुश्वार बन जाए गैरों के बीच में ।
हार न मानते सब सहते, सब्र से जिया करो ॥

शायद उनकी नजरों में हम गुनेहगार ठहरे ।
फिर भी वक्त से बेगुनाह साबित किया करो ॥

प्रायः कभी कभी अपनों में दूरियाँ पैदा हो ।
अपनों के रास्ते जिगर निकाल रखा करो ॥

ऐ नादान तुम्हारी कोई फिक्र करे या ना करे।
चलते चार दिन तू सब रिश्ते निभाया करो ॥

बेवक्त कभी गम-ए-लम्हें पहाड सी बुनते जाए ।
जब असंभव लगे, ऊपरवाले का नाम लिया करो ॥ 

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जिंदगी का खेल

आज इस कदर बहक उठी है जिन्दगी
अब मरने को सिसक उठी है जिन्दगी ॥

वाह क्या क्या बयान करूँ  बीच रास्ते
देखो बेवक्त ही थिरक उठी है जिन्दगी ॥

अमीर गरीबों का फासला नित निरंतर
अब जु्र्म देख खिसक उठी है जिन्दगी ॥

यारों का हमदर्द कभी बन न पाया ये
नाच नचाती बेझिझक उठी है जिन्दगी ॥

मेहरबानी उसकी हम सब  पर देखकर
आशा निराशा में चमक उठी है जिन्दगी ॥

माँ का प्यार पाकर सिर झुकाता हूँ ये
माँ की ममता से खिल उठी है जिन्दगी ॥

चारों ओर सुख सादगी संसार देखकर
गुनगुनाती ये महक  उठी है जिन्दगी ॥

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बचपना दे

जिन्दगी का लेखा जोखा है
लगता बहुत ज्यादा खोया है ।
मन में आरजू थे कुछ और
आज कुछ और ही पाया है ॥

ओ बचपन याद आती है
पल-पल हरपल सताती है ।
यादों में आँख भर आती है
रातों में नींद से जगाती है ॥

याद है पंछियों सा गाना
मोरनी सा नाचना कहाँ है ।
सुनेरा पल बीत गया अब
सिर्फ चार दिवारे ही जहां है ॥

ओ हँसना ओ धूम मचाना
रह गया शायद सब पीछे ।
फंस गया जंझीर में अब
दब गया दलदल के नीचे ॥

क्या हल्ला था मोहले में
आज सन्नाटा छाया हुआ है ।
गर हो सके तो वही बचपना
वापिस कर दो यही दुआ है ॥

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समझौता

आज दिल में एक खयाल आया है ।
दिल के समंदर में उबाल आया है ॥

जाने क्या उलझना क्या सुलझना ।
मानों जीवन बनके सवाल आया है ॥

न जाने अब ये कहाँ  पटक फ़ेगा ।
देखो लहरों में कैसा उछाल आया है ॥

हे परमात्मा अब क्या ठीक करूँ ।
मेरी नेकी पर ही सवाल आया है ॥

आशा निराशा में कोई फर्क नहीं ।
समझौते के साथ बवाल आया है ॥

अब हार जीत स्वीकार कर लिया है ।
आत्मविश्वास बनके ढाल आया है ॥

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किसान

किसान लगता मिट्टी का बेटा
श्रम से खून का पसीना करता ।
अपनी बाहुओं पर है भरोसा
कोई आये जाये ये नहीं डरता ॥

सुखी प्रजा हेतु राज नहीं करता
धूप बारिश में फसल उगाता ।
साथी कदम बढाते दो बैल
वो बिना फिक्र उनको सजाता ॥

रात दिन एक सम मानता
निस्वार्थ मन मिट्टी की सेवा ।
वो हाथ पर हाथ रख बैठता
देश को कौन खिलायेगा मेवा ॥

भगवान की पूजा न हो पर
उससे होती मातृभूमि की पूजा ।
हरदम रहता मिट्टी में खोया
सबकी सेवा कर कोई न दूजा ॥

किसान को याद कौन करता
क्या होता देश को भूल जाता ।
कोई करता चिंता किसान की
सच्चे अर्थ में वो सम्मान पाता ॥

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दीप

दीप सा जलना
क्या बहुत कठिन है भैया
दीप सा उजियार फैलाना
क्या बहुत कठिन है भैया ॥

दीप हो राजा के महल
दीप हो रंक के घर
दोनों को देता उजियार
एकसम आपहु मरकर ॥

कुछ लोग करते उपयोग
कुछ लोग करते संग्रह
दीप का धर्म है जलना
प्रकाश फैलाने दो है आग्रह ॥

दीप का न कोई दुश्मन
दीप का न कोई परिजन
दीप जलता रहेगा परहित
हम सा नहीं बडा है वो मन ॥

जीवन को उत्त्म बनाना है
परहित में जलना होगा ।
जीवन को अत्युत्तम बनाना है
परहित समर्पित करना है ॥

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मिलावट - गिरावट

क्या खाये क्या न खाये,
सभी में मिलावट है ।
किस पे भरोसा करे न करे,
सभी में मिलावट है ॥

धर्म संस्कृति खायी में
नैतिकता में गिरावट है ।
धर्मगुरुओं का खिलवाड है
नैतिकता में गिरावट है ॥

देश की प्रगति शून्य है
सब नाटकीय सजावट है ।
देश में शांति अमन है
सब नाटकीय सजावट है ॥

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जय जय भारत माता

जय जय भारत माता, जय जय भारत माता ।
दिलों जान से तेरे गुण गाता, तेरे गुण गाता ॥

वो हिमालय है तेरा भाल
हर बच्चा है तेरा लाल
हर बच्चा है तेरा योध्दा
जीतकर उडाता है गुलाल ।

जय जय भारत माता, जय जय भारत माता ।
दिलों जान से तेरे गुण गाता, तेरे गुण गाता ॥

ज्ञान की गुरुमाता है तू
प्रेम  भरी ममता है तू
संस्कृति की धरोहर है तू
विश्व  की पहचान है तू ।

जय जय भारत माता, जय जय भारत माता ।
दिलों जान से तेरे गुण गाता, तेरे गुण गाता ॥

नैतिकता का रुप है तू
धर्म का  धाम  है तू
शौर्य का संग्राम  है तू
वीरों की बलिदानी है तू ।

जय जय भारत माता, जय जय भारत माता ।
दिलों जान से तेरे गुण गाता, तेरे गुण गाता ॥

विद्वानों की खान है तू
हम  सबकी शान है तू
शूर-वीरों की आन है तू
विश्व गुरु का मान है तू ।

जय जय भारत माता, जय जय भारत माता ।
दिलों जान से तेरे गुण गाता, तेरे गुण गाता ॥

तेरे ये पूत सभी विद्वान
तेरे उर में बुध्द अरु राम
उठता गर्व से सिर ये मेरा
बस दिल में है तेरा नाम ।

जय जय भारत माता, जय जय भारत माता ।
दिलों जान से तेरे गुण गाता, तेरे गुण गाता ॥


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  मजदूर या मजबूर

देखो वहाँ कोई
मेहनत कर रहा है
नहीं असल में
खून का पसीना कर रहा है
क्या उसे ऐसी कौन सी जरुरत है
जरुरत नहीं मुसिबत है
पेट नाम से जो शरीर में
आखिर क्यों रखा है उसने
मजदूर, मजदूर नहीं
असल में वो तो मजबूर है ।

मजबूरी पेट की है
मजबूरी घर की है
मजबूरी पत्नी की है
मजबूरी बच्चों की है
आखिर क्यों उलझा दिया
क्यों उसे अपरिहार्य बना दिया
उसे मजदूर नहीं मजबूर बना दिया ।

मजदूर फसल उगाता है
मजदूर भूखा रहता है
मजदूर भवन बनाता है
मजदूर खुले धरती पर सोता है
मजदूर किसी के सपने साकार करता है
मजदूर के सपने चूर चूर होते है
मजदूर मेहनत करता है
पूरे पैसे कोई और गिनता है
मजदूर को उपेक्षा उपहास मिलता है ।

क्या कभी तो मिलेगा
मजदूर को उसका हक्क
नहीं…..
क्योंकि,
मजदूर, मजदूर नहीं
मजदूर, मजबूर है ॥

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सूरज की किरणें

सूरज की किरणें कमाल की किरणें
देखे चहुओर क्या प्रकाश फैलाती हैं ।
सूरज की  नजर में नहीं कोई दूजा
किरणें रात के बाद प्रकाश फैलाती हैं ॥

किरणें  बज बजकर कहती रहती हैं
तू है राजा उठ  देख तू ही है राजा ।
नित निरंतर चलता चल जलता जल
तू बनेगा प्रकाशमान तू जग का राजा ॥

कभी न हारना कभी न सिर झुकाना
मेहनत से घर का नाम उजागर करना ।
किरणें हर दिशा दिशा में रंग भरती हैं
अब पग पग  आगे बढ कभी न डरना ॥

महल हो या कुटिर प्रज्वलित करती हैं
राजा हो या भिखारी हो राह दिखाती हैं ।
धीरज रखना रात के बाद दिन आयेगा
देखो ये किरणें डटकर रहना सिखाती हैं ॥

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जीवन - चक्र

मृत्यु निश्चित है सब जानते हैं
पर कोई मरना नहीं चाहता ।
यम आयेगा ये सब जानते हैं
कोई सामना करना नहीं चाहता ॥

भरपूर खाना तो सब चाहते हैं
किसान बनना कोई नहीं चाहता ।
वो पक्वान्न हर कोई चाहता है
मिट्टी में रहना कोई नहीं चाहता ॥

पानी पीना हर कोई चाहता है
पेड लगाना कोई नहीं चाहता ।
बारिश भरपूर हो सब चाहते हैं
जंगल बचाना कोई नहीं चाहता ॥

जीवन में माँ पत्नी बहन चाहते हैं
घर में बेटी कोई नहीं चाहता ।
बिना जीवन चक्र कैसे चलेगा
सब अनायास हो हर कोई चाहता ॥

हरपल जीना हर कोई चाहता है
जीवन अनुशासन कोई न चाहता ।
निरोगी रहना ये सब चाहते हैं
सभी ओर स्वच्छता कोई नहीं चाहता ॥

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  दुश्मन

अब दुश्मन किस को कहना
दुश्मन तो वो हैं
दहशत फैलाते हैं
नादान जनता को मारते हैं
सांप को छोडते हैं
निष्पाप को मारते हैं
उनके आने से
फैलता है सन्नाटा
लोगों के मन में खौफ
तो ठिक है …
मान लिया वही आतंकवादी हैं ।
मान लिया वही दुश्मन हैं ।

जरा बताओ भाई
ये कौन हैं …?
क्या ये दुश्मन से कम है ?
एक अफसर से
कोई निडर होकर मिल पाता
एक नेता से
विश्वास से हाथ मिला पाता
इनसे है सन्नाटा
इनसे है खौफ ॥

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उसका अनुग्रह

यारों ये मौसम कैसा छाया है
ये घना कोहरा अंधेरा छाया है ।

कोई मेरा पीछा करता दिखा है
पता चला है मेरा ही साया है ।

पास क्या है हिसाब नहीं कोई
मैं न जानूँ मैंने क्या पाया है ।

इन झंझीरों से मुक्ति की चाह है
जाने कहाँ फंस गया सब माया है ।

चाहकर भी कोई निकल न पाया
जाने अंजाने मायाजाल में खोया है ।

भरोसा उसपर भरपूर है यारों
सँभालेगा उसी ने भेज दिया है ।

मैं उस परमपिता का आभारी हूँ
हरपल उसका अनुग्रह मैंने पाया है ।

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किसने नहीं दिया

छोटी सी जिंदगी ने कुछ सीखने नहीं दिया
माटी की गुडिया ने कुछ  खेलने नहीं दिया ।

एक हाथ न ताली बजी न कुछ हासिल हुआ
जमाने ने किसी को साथ  चलने नहीं दिया ।

हम भी किसी से कम न थे उस कसौटी में
खिलवाड ने बाजू-ए-दम दिखाने  नहीं दिया ।

हार न मानकर हम सदा लडने को तत्पर थे
अपना ही वो मैदान  में डटे रहने नहीं दिया ।

माँ, माँ का प्यार पाने को तरसता रहा दिल
हाँ अपनों ने ही माँ का प्यार पाने नहीं दिया ।

काश हार गया हूँ इस पल पर निराश नहीं हूँ
संभलकर कभी मन को उदास होने नहीं दिया ।

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बहुत कठिन है

अपनों का साथ मानों स्वर्गसुख है
पर अपनों सा रहना बहुत कठिन है ।

देखा है रंगीन जग मनमोहक होता है
पर सूर्य सा प्रकाश फैलाना बहुत कठिन है ।

धरती माँ वसुंधरा बन खिल उठती है
पर धरती सा सहना बहुत कठिन है ।

कल कल बहकर सब में प्राण भरती है
पर नदी सा बहना बहुत कठिन है ।

पंछियों का मधुर नाद गूँज उठता है
पर पंछी सा गाना बहुत कठिन है ।

सभी बातें सुनने देखने में जन्नत है
बातों पर अमल करना बहुत कठिन है ।

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  सबकुछ ठीक हो

पंछी कैसी उडती है
ऊपर ऊपर उडती है
उसमें  न घमंड  है
न अहंकार से उडती है ।

गुलाब को  देखते है
इर्दगिर्द काँटें देखते हैं
मनुज  को देखते नहीं
उसके ऐबों को देखते हैं ।

औरों को कोसते बैठे है
कोई शुध्द  नहीं लगता
आपहु मन अशुध्द भरा
आपहु मन  कब जगता ।

दुख में न  हो सांत्वना
हो  सके मदद करनी है
सबकुछ  ठीक हो अब
यही  प्रार्थना करनी है ।

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धर्म कर्म से पाना

मानों कोई धर्म से बडा नहीं होता
वो अपने  कर्म से बडा  होता है ।
कोई  ऐसे से ही  कुछ नहीं पाता
सच अपने मेहनत से सब पाता है ॥

स्वजन संग  कष्ट में नहीं होता
सुख में  दुश्मन भी पास होता है ।
कोई ऐसे ही अपना  नहीं बनता
किसी समझौते से अपना बनता है ॥

लाख कोशिशों से सुकुन नहीं मिलता
कभी कभी नसीब से सब मिलता है ।
जंजीरों से  कोई मुक्त  नहीं होता
ईश्वर  की कृपा से  मुक्ति पाता है ॥

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हिन्दी दिवस के अवसर पर
हिन्दी हमारी जान है

हिन्दी हमारी जान है
हिन्दी हमारी शान है
हिन्दी सदा साथ रहे
हिन्दी हमारा मान है ॥

हिन्दी हमारी मातृभाषा है
हिन्दी हमारी राजभाषा है
हिन्दी को शत शत प्रणाम
हिन्दी हमारी राष्ट्रभाषा है ॥

हिन्दी हमारे सिर चडी है
हिन्दी हमारे कण-कण में है
हिन्दी में सदा जीते मरते हैं
हिन्दी बहती तन-मन में है ॥

हिन्दी सरल सुंदर भाषा है
हिन्दी सदा सबसे न्यारी है
हिन्दी दिलों जान में बसती है
हिन्दी सदा सबसे प्यारी है ॥

हिन्दी ने पाला पोसा है सब
हिन्दी ने मान प्राण दिया है।
हिन्दी नस नस में बसी है
हिन्दी हेतु न्योछावर किया है ॥
 


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चाहत
अब हमारी चाहत है
आज जो पुरुषोत्तम राम है
वह सीता मैया से मिले
आज जो भगवान श्रीकृष्ण है
वह राधा से मिले ।
आज जो सच्चा संत है
वह ईश्वर बन जाये।
आज जो भ्रष्ट है
वह नेता क्यों
आज जो योगी है
वह भोगी क्यों।
अब हमारी चाहत है
जो भ्रष्ट नेता है
जो योगी भोगी है
ओ पहले माटी में मिल जाये।
जो पाप है
उसका विनाश हो जाये।
अब हमारी चाहत है
कलीयुग का अंत हो
चाहे हामारा भी अंत हो
पर
फिर से द्वापरयुग हो
फिर से त्रेतायुग हो॥

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* अलगाव *

दूर अलगाव की ओर
अब निकला हूँ कब का।
ना जाने अब कोई वहाँ
आखिर पहुँचना है कब का॥

सच तरसा था कल भी
पर सहुंगा सब आज भी।
ना कोई शिकवा है यहाँ
निकल पडा हूँ आज भी॥

दूर अलगाव की आस में
चलता फिरता भटकता हूँ।
उम्मीद है दिल में सूरज की
किरणों पे भी चमकता हुँ॥

राह में रुकावट हो ना
चाह मेरे और किसी के भी।
वफा की इंतजार में ना
गिला लाख कोशिशों के भी॥

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यार मिल गये

आज यादें  फूल फूल बन गये
आज आप जैसे यार मिल गये ।

दिल महफिल  सा बन  गया
संग गुनगुनाने आप मिल गये ।

अनोखा  बन गया  ये संगम
सुकून सारे  अतीत मिल गये ।

ऐ खुदा  तेरे दरपे क्या माँगू
खुदा जैसे यार यार मिल गये ।

ओ जन्नत कदमों  तले आया
यार से दिल से दिल मिल गये ।


  डॉ. सुनील परीट
बेलगावी, कर्नाटक

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 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. 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श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड 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पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi 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रचनाकार: मृत्यु निश्चित है सब जानते हैं, पर कोई मरना नहीं चाहता । - डॉ. सुनील परीट
मृत्यु निश्चित है सब जानते हैं, पर कोई मरना नहीं चाहता । - डॉ. सुनील परीट
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