सर्द घोंसलों से चिटकती चिनगारियां - पंकज प्रसून

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सर्द घोंसलों से चिटकती चिनगारियां पंकज प्रसून कविता के लिये अंग्रेजी में शब्द है पोएट्री , जिसकी उत्पत्ति ग्रीक शब्द पोइसिस से हुई है...

सर्द घोंसलों से चिटकती चिनगारियां

पंकज प्रसून

कविता के लिये अंग्रेजी में शब्द है पोएट्री, जिसकी उत्पत्ति ग्रीक शब्द पोइसिस से हुई है जिसका अर्थ है सृजन. तो कविता सृजन है..ईश्वर भी सृजन करता है.यानी जब इन्सान कविता लिखता है तो वह ईश्वर बन जाता है.

ईश्वर और कवि में एक और समानता है.कि दोनों अपने सृजन से संतुष्ट नहीं होते..लगता है दोनों किसी पूर्णता की खोज में हैं.तभी तो विषाणुओं और जीवाणुओं से शुरू करके मनुष्य का सृजन करके भी ईश्वर संतुष्ट नहीं,जबकि उसका हर सृजन अपने में पूर्ण है

कविता मन्त्र है ,जादू -टोने का सम्मोहन है ,आवाहन है.यह हमारे दिमाग के खिड़की -दरवाजे खोल देती है, हमारे सामने आसमान को खोल कर रख देती है और धरती मां के पास वापस ला देती है ,जिसे हम अक्सर हर रोज़ देखते हैं पर हम बिलकुल ही देख नहीं पाते- वह सच ,जो हम सभी “को वर्तमान औद्योगिक और सामाजिक व्यवस्था की बुराइयों से बांध कर रखता है .प्राचीन ग्रीक कवि सिमोनिदिस ने लिखा था , “साहित्य बोलती हुई पेंटिंग है “

फ्रांस की कवयित्री मदाम द स्ताई के अनुसार कविता “स्थापत्य हिमीकृत संगीत है .” कवि हमारी आँखों को निर्मल करते हैं और कानों को तेज़ . कविता सभ्यता -संस्कृति की सेवा करती है और एक प्रसन्न दुनिया को लाने में मदद करती है . जो कम कोई दूसरी इंसानी क्रिया नहीं कर पाती .क्योंकि कविता का सत है संवेदना .

इसलिये कवितायें इंसान के लिये जरूरी हैं .हम उनके बिना नहीं रह सकते .मुख्य रूप से कवितायें दो तरह की होती हैं - नशीली और उद्दीपक .

कविता भी बदलती रही है . महाकाव्य,लम्बी कवितायें और छोटी कवितायें हमेशा से लिखी जाती रहीं हैं .अपने लम्बे इतिहास में कविता नये -नये नियमों क आविष्कार करती रही है ताकि भावनाओं की सही तरह से अभिव्यक्ति की जा सके .कविता के सामने मजबूरी यह है कि उसे शब्दों पर निर्भर रहना पड़ता है और शब्द अभी तक अपूर्ण हैं.यहीं पर भाषा और अनुभव की सीमा पता लग जाती है .कविता मानवीय अनुभवों के अव्यक्त पक्ष को ही बताने की कोशिश करती हैं.

उन्नीसवीं शताब्दी के फ़्रांसीसी कवि स्ताफा मारयमा ने लिखा था ,”कविता कबीले की भाषा का शुद्धिकरण है.” बीसवीं सदी के अमेरिकी कवि विलियम कार्लोस.  विलियम्स तो चाहते थे कि कविता इतनी सहज और प्राकृतिक भाषा में लिखी जाये कि”कुत्ते और बिल्ली भी उसे समझ लें .”रोमानिया में जन्मे कवि पाऊल चेलान को द्वितीय विश्व युद्ध में अपार कष्ट झेलना पड़ा था .यातना शिविर में उनके माता -पिता मारे गये .उन्हें खुद मज़दूर-शिविर में रखा गया .पर उन्होंने अपने दुखद अनुभवों को जर्मन भाषा में ही लिखा ,जो उनके दुश्मन नात्सीओं की भाषा थी.टुकड़े ,नये शब्द और उलझन भरे वक्तव्यों का इस्तेमाल करके उन्होंने अपने तनाव को शाब्दिक अभिव्यक्ति दी.

कविता क्या है ?

सामुएल टेलर कोलेरिज के अनुसार “गद्य =सर्वश्रेष्ठ तरीके से रखे गये शब्द ; पद्य =सर्वश्रेष्ठ तरीके से रखे गये सर्वश्रेष्ठ शब्द.”

कविता संसार के सबसे पुराने पेशों में से एक है ,जिसका जन्म लिखित इतिहास से पहले का है यह .जादू ,चमत्कार और धर्म से निकली है.दूसरे स्तनपायी पशुओं से मनुष्य इसलिये अलग है कि वह हर चीज़ का अर्थ ढूँढता है और वह अपने बारे में आश्वस्त नहीं रहता जैसे कि बिल्ली..हम जन्म लेते हैं ,निश्चित्य की पक्की खोज करने के लिये. इसी वजह से अंधविश्वासों और तरह-तरह के ‘वादों ‘के चक्कर में पड़ जाते हैं .संगीत और गीत द्वारा सृजित स्वप्न -लोक के सम्मोहन प्रभाव में आ जाते हैं ..लेकिन अन्ततोगत्वा तर्क और विश्लेषण की शक्ति हमें दूसरे पशुओं से बिलकुल अलग कर देती है .

शेक्सपियर ने लिखा है ,”मेरा दिमाग बिच्छुओं से भरा है .’ यानी इन्सान का दिमाग चाबुक मारते बिच्छुओं से भरा बक्सा है .यही बिम्ब कविता का ईन्धन है .महान कवि हमेशा से हर नये विषय के बारे में पूछते रहे हैं,“यह किस तरह का है ?” ‘या “यह कैसा महसूस होता है? “इसे ही सादृश्य कहते हैं .

फिर किसी गणितज्ञ की तरह इसी भिन्नीय ज्ञान का इस्तेमाल करके ये एक दूसरे से अलग वस्तुओं को जोड़ते हैं .परिणाम होता है जबर्दस्त संपीडन .

इस तरह कवि साहित्य का गणितज्ञ होता है .वह नये शब्द या मुहावरे गढ़ता है , नये अर्थ पैदा करता है और वह सर्जक बन जाता है .उसकी इन तमाम कोशिशों का मकसद होता है हमारी ज़िंदगी का अर्थ समझना .

मध्य -युग में कवि को खोजी कहा जाता था ,सर्जक नहीं .क्योंकि वह अपने चारों ओर बिखरी वास्तविकताओं से सौन्दर्य और सच को ढूंढ निकालता था . कवि किसी साधु की तरह अपने दिमाग के वर्कशॉप में ईश्वर के सृजन का अनुवाद करता है.

कवि बनने की पहली शर्त है ऐसा आदमी बनना जिसमें लोगों से बातें करने की क्षमता हो ..क्योंकि पाठक के सामने वह शारीरिक रूप से मौजूद नहीं रहता -- सिर्फ उसकी कृति रहती है . यानी कवि ,पूरी मानवता की छवि बनाने-वाला व्यक्ति जो अपने विशेष अनुभव को सामान्य लोगों के स्तर तक ले आता है. इसलिये कविता चाहे जिस भाषा में हो ,अपनी सम्पूर्णता में सार्वभौमिक होती है ..

इन्सान दो संसारों में जीता है -विचार-जगत और अनुभव जगत .अनुभव जगत हर किसी के लिए समान है .पर विचार जगत बिलकुल अलग होता है .अनुभव -जगत से विचार -जगत में प्रवेश करना सबके लिए कठिन है .बिरले लोग ही होते हैं जो अपने अनुभव को विचार में तब्दील कर पाते हैं.यह अनुभव का आध्यात्मिक-करण होता है..

कवि यही करता है..वह अनुभव -जगत को विचार-जगत में बदल देता है और हमें अपने निजी अनुभव से संबद्ध कर देता है.हमें ऐसा लगता है ,हमने भी ऐसा ही महसूस किया था. जब हम दुःख या सुख में होते हैं तो उस अनुभव के साथ जी रहे होते हैं .इसलिये विचार हमें आते नहीं .पर कवि की सहायता से हम अनुभव को विचार में लाकर चैतन्य हो जाते हैं और हमारे अवचेतन के अनुभव को चेतन व्याख्या मिल जाती है .

फिर भी शताब्दियों से कविता की परिभाषा ढूंढी जा रही है .यह विवाद भी चलता रहा है कि कविता क्या है और क्या नहीं है ? अगर उसका कोई ढांचा नहीं है तो क्या वह कविता है ? अगर वह तुकांत नहीं है ओ क्या वह कविता है ? अगर वह मुक्त शैली में है तो क्या वह कविता है ? क्या गीत कविता है ?

इन सभी सवालों का एक ही जवाब है : हाँ !

अंग्रेजी के पांच प्रख्यात रोमांटिक कवियों की पीढ़ी के एक स्तंभ थे पर्सी बीसी शेली.उनके घनिष्ठ मित्र और सैद्धांतिक रूप से धुर विरोधी थे व्यंग्यकार टॉमस लव पीकौक. एक साहित्यिक पत्रिका में पीकौक ने एक शोध पूर्ण लेख प्रकाशित किया, जिसका शीर्षक था "द फोर एजेज औफ पोयट्री."शेली ने उसके जवाब में एक लंबा लेख लिखा-"इन डिफेंस औफ पोयट्री."हालांकि शेली इसे तीन खंडों में प्रकाशित करना चाहते थे किन्तु उनकी असामयिक मृत्यु के कारण शेष दो खंड प्रकाशित नहीं हो सके।इन दोनों लेखों के आधार पर कविता के अंतरराष्ट्रीय सफ़र का किस्सा सामने आ जाता है.

दुनिया की तरह ही कविता के भी चार युग हैं लेकिन दूसरे तरीके से . पहले युग को लौह, दूसरे को स्वर्ण , तीसरे को रजत और चौथे को कांस्य युग कहा जाता है .

लौह युग में रूखे कबीले सरदारों की विजय -गाथा का यशोगान रहता था.उस ज़माने में हर कोई योद्धा होता था . तीन व्यापार उन्नति पर थे-पुजारी, चोर और भिखारी ..किसी अनजाने व्यक्ति को देखते ही उससे पूछा जाता था -”तुम भिखारी हो या चोर ?”भिखारी वह होता था जिस पर राजा की कोप दृष्टि पड़ती थी और चोर होता था संभावित राजा.

तब हर इंसान की इच्छा होती थी किसी भी तरह से अधिक ताकत और सम्पत्ति हासिल करना और अधिक से अधिक लोगों तक अपने विजेता होने की बात को बताना . सफल योद्धा कबीले का सरदार और अंत में राजा बन जाता था.इसके बाद अपनी विजय -गाथा को फ़ैलाने के लिये भाट या चारण की ज़रूरत होती थी .यानी कविता प्रशस्ति -गान से शुरू हुई . राजा या कबीले का सरदार खुद को जिस देवता का वंशज मानता था उसकी वंशावली तैयार करके चारण अपनी कृति तैयार करते थे .इस क्रम में देवी -देवता जलपरियाँ , दैत्य ,नदी - नाले , जंगल सभी उस मिथकीय इतिहास के पात्र बन जाते थे .

फिर आया स्वर्ण युग ..तब तक सामाजिक व्यवस्था स्थापित हो गयी थी .अपने पूर्वजों का पराक्रम.तब तक सामाजिक व्यवस्था स्थापित हो गयी थी .अपने पूर्वजों के पराक्रमों के बारे में जानने में लोगों की उत्सुकता बढ़ रही थी .वह होमर का युग था .पीन्दर की ग़ीत-कवितायें तथा एस्क्लुस और सोफोक्लेस की दुखान्तिकाओं का युग था. हेरोदोतुस ने जो इतिहास लिखा उसका आधा हिस्सा कविता में है . कविता का क्षेत्र कलादेवियों यानी म्यूज का हो गया. नैतिक मूल्यों , अच्छाई और बुराई के बारे में लिखा जाने लगा .

इसके बाद आया रजत युग, जिसमे दो तरह की कवितायें लिखी जाने लगीं -नकल और असल .नकल में स्वर्ण युग की कविता शैली को चमका दिया गया . वर्जिल इसके अग्रणी कवि थे .असल में हास्य -व्यंग की छौंक लगाई गयी . मेनांदर,एरिस्त्फनीस,होरुस और जुवेनल इस युग के मशहूर कवि हुए . जुवेनल ने तत्कालीन रोमन साम्राज्य के सुविधाभोगी वर्ग में व्याप्त भ्रष्टाचार और फ़िज़ूलखर्ची का मज़ाक उड़ाती रचनाएँ की .

लेकिन उस युग में कविता बंधनों में जकड़ गयी. ढेर सारे नियम बनाये गये ,जिनके कारण कविताओं में एकरसता आ गयी .कल्पना और भावना पर तर्क और कृत्रिमता हावी हो गयी.

अंत में आया कांस्य युग, जिसमे कविता एक बार फिर स्वर्ण युग की ओर लौट पड़ी.विस्तृत विवरण ,सरल और ढीली -ढाली शैली आ गयी. नोंनुस इस युग के सर्वश्रेष्ठ कवि थे .परमानंद के देवता डायोनिसस की भारत विजय की दास्तान पर आधारित दिओन्य्सिअक उनकी मशहूर रचना है.

आधुनिक कविता के भी लौह ,स्वर्ण , रजत और कांस्य युग हैं लेकिन थोड़े फर्क के साथ .क्योंकि प्राचीन कविता के कांस्य युग के बाद अंध युग का लम्बा दौर चला ,जिसमे सारे यूरोप में गोस्पेल का प्रकाश फैलने लगा .सारी दुनिया में कई किताबें कई स्थानों पर उपलब्ध थीं .पर बर्बरता भी उतनी ही फ़ैली हुई थी .किताबें जलायीं गयीं .जो उन्हें बचा कर रखे हुए थे वे रहस्यमय ख़ौफ़ में जी रहे थे .औरतों को देवी बनाया जाने लगा जबकि वह ज़माना था बहादुरी का.इसलिये नयी कहानियाँ और रोमांस प्रकट होने लगे .सामन्तवादी सरदारों के ताकत और सुविधाएँ भी बढीं .मठवासिओं और मठवासिनों के पवित्र रहस्यों के क़िस्से मशहूर हुए .हालत ऐसी हो गयी कि कोई दो लोग मिलते तो बिना लड़ाई किये नहीं रहते.

वह आधुनिक कविता का लौह युग था ,जिसमे कविता के लिये दो जरूरी चीज़ें -प्यार और युद्ध मौजूद थीं .ट्रूबडॉर और मिन्स्त्रेल कवितायें लिखी गयीं. अब कवि हो गये चारण और भाट .

वे दूर-दराज के इलाकों में गीत गाते हुए घूमते रहते थे. ग्यारहवीं शताब्दी में वे काफ़ी लोकप्रिय थे। उनकी कविताओं के मुख्य विषय बहादुरी और इंसानी प्रेम होते थे. कई कुलीन व्यक्ति भी चारण थे. पुर्तगाल के राजा दीनीस ने भी कोई १३७ कांतीगा यानी गीत लिखे थे.

सातवीं शताब्दी में इंग्लैंड में यह माहौल था कि वहां अंग्रेजी को गंवारों की भाषा माना जाता था. एक दिन शाम को जब अन्य महंत नाच-गा रहे थे,कैडमन नामक पशुपालक पशु-शाला में सोने चले गये क्योंकि वे गाना नहीं जानते थे.सपने में लगा कि कोई उनसे कह रहा है कि सृजन के प्रारंभ का गीत गाओ.सपने में ही वे गाते गये,. जागने पर उन्हें सब याद था.उन्होंने उसे लिख डाला.इस प्रकार अंग्रेजी की पहली लिखित कविता का जन्म हुआ.

धीरे -धीरे ज्ञान प्राप्ति की उत्कंठा जागने लगी और आ गया स्वर्ण युग .कविता पर ग्रीक और रोमन साहित्य छा गये .इस तरह सारे युग और देश मिल कर एक हो गये तथा कवियों को अपनी कल्पना को फ़ैलाने का अनंत लाइसेंस मिल गया .इस युग की सबसे महान प्रतिभा थे शेक्सपियर ,जिन्होंने इतिहास और देशों का इस्तेमाल इसलिये किया कि विविधता ,पात्रों की वेशभूषा और चरित्र के साथ न्याय कर सकें .उन्होंने इंग्लैंड की प्राचीन नाटक कला को नवजीवन दिया .

स्वर्ण और रजत युगों के दोआबे पर थे मिल्टन ,अंग्रेज़ी के महान कवियों में सबसे महान.रजत युग शुरू हुआ ड्राईदेन से , परिमार्जित हुआ एलेग्जेंडर पोप से और अंत हुआ गोल्डस्मिथ ,कॉलिंस और ग्रे से . अब कविता में चिन्तन तत्व प्रभावी होने लगा , निरर्थक तुकबन्दी की कृत्रिमता खत्म होने लगी

रजत युग में अधिकार का शासन था और वह चरमराने . लगा था..इस युग में ग्रे , कोपर ,ह्युम और गिबन ने अपना कमाल दिखाया .पेड़ों और पहाड़ों पर पूर्ववर्ती कवियों ने भी खूब लिखा था पर टॉमसन और कोपर ने पहली बार पाठको को अहसास कराया कि वे भी उन्हें सचमुच देख रहे हैं.उन्हीं दिनों लेक पोएट्स भी उभरे जो मूलतः गीतकार थे .

और आ गया कांस्य युग . कविता में नया सुर आया .फंतासी ,रहस्यवाद और प्रकृति की ओर वापसी होने लगी वर्ड्सवर्थ उस युग के महान कवि थे .

उस .युग में पेंटिंग भी भी कविता के साथ जुड़ने लगी थी .कविता में चल रहे प्रयोग नये सिद्धांतों ,नयी दृष्टि को जन्म दे रहे थे.चट्टान और नदियाँ भी नये सन्दर्भ पा गये.

तेरहवीं सदी में चतुर्दश पदी या सोंनेट कवितायें इतालवी कैनज़ोन से विकसित हुईं ..शुरू में पहले बंद में आठ और दूसरे बंद में छह पंक्तियाँ होती थीं .बाद में चार -चार पंक्तियों के दो और तीन -तीन पंक्तियों के दो बंद लिखे जाने लगे .यह परंपरा दान्ते अलिगेरी और तदुपरांत पेत्रार्क ने शुरू की.

ब्रिटेन में सन १५२० के आसपास थॉमस व्याट और हेनरी होवाड ने इसे अंग्रेज़ी में प्रारम्भ किया . शेक्सपियर ने इसमें और भी परिवर्तन किया .उन्होंने नयी संरचना दी जिसमे पहले चार बंद चार -चार पंक्तियों के और अंतिम बंद दो पंक्तियों के थे .

इतालवी सोंनेट के विषय थे सौंदर्य ,पाप ,पुण्य ,आत्मा और शरीर .शेक्सपियर ने इसमें नये विषयों का शुमार किया ,जैसे मौत ,बुढ़ापा ,प्रेमिका आदि.उन्होंने अपने सोंनेट नंबर १३० में पेत्रार्क के सौंदर्य बिम्ब का मज़ाक भी उड़ाया :

मेरी प्रेमिका की ऑंखें सूरज जैसी नहीं

मूंगा उसके लाल होंठो से है काफी ज्यादा लाल

जो बर्फ होती है सफेद ,उसकी छातियाँ हैं धूसर

जो बाल हों तार ,काले तार उसके सिर पर हैं उगे

लेकिन मिल्टन ने पेत्रार्क की शैली को पसंद किया .अगली दो सदियों तक ऐसा ही चला .जब तक कि कीट्स ने सन १८०० की शुरुआत में शेक्सपियर के सोंनेट को पुनर्जीवित कर दिया . क्रिस्टीना रोस्सेत्ति ,एलिज़ाबेथ बर्रेट ब्राउनिंग ने सोंनेट लिखना पसंद किया .पर विक्टोरिया युग के सर्वाधिक प्रयोगवादी कवि थे गेरार्ड मानली होपकिंस , जिन्होंने स्प्रिंग रिद्म का आविष्कार किया,जिसमे तेज़ बीट,टूटते वाक्य और गहन ध्वनि के पैटर्न का इस्तेमाल किया -

,मैं नहीं ,लेता रहूँगा ,सुख -सुविधा

बीसवीं सदी में भी सोंनेट जिंदा रहा .एडविन रोबिनसन ,एड्ना मिले , ई ई कमिंग्स ,रोबर्ट लोवेल सरीखे कवियों ने इसमें तरह -तरह के प्रयोग किये .

बीसवीं सदी के प्रारम्भ में हेनरी फोर्ड ने कार का आविष्कार किया तो उसके बाद विचारों को धरातल पर लाने की होड़ मच गयी .डाइनेमो आया , रेडियो और टेलीविज़न आये .उन्हीं दिनों कविता के आधुनिकीकरण में कार्ल सैंडबर्ग, एमी लोवेल जैसे महान कवि लग गये .

बीसवीं सदी की सबसे बड़ी देन रही आम आदमी को खास बनाना .उसका उत्सव मनाना .बिम्बवाद आन्दोलन चला ,जिसके अग्रणी कवि थे एजरा पोंड ,एच दी , एमी लोवेल और विलियम कार्लोस विलियम्स. इन लोगों ने विचारों की बजाय वस्तुओं पर ध्यान केन्द्रित किया और नितांत अवैयक्तिक शैली में कवितायें लिखीं .यह चीनी और जापानी कविताओं का असर था

जब आइन्स्टाइन ने सापेक्षता का सिद्धांत दिया और इन्सान अन्तरिक्ष -विजय को निकल पड़ा तो कुछ विद्रोही कवियों ने बीट कविता को जन्म दिया .कला-विरोधी दादावाद आया ,जिसका अर्थ है हाँ हाँ .उससेअतियथार्थवाद का जन्म हुआ.इन दिनों मिथक सर्जक कविता का जमाना चल रहा है.

उधर चीले में पाब्लो नेरुदा ने भी ऐसी ही मुहिम छेड़ी.उन्होंने टमाटर ,सेलरी घास और यहाँ तक की घड़ी की प्रशंसा में कवितायें लिखीं .सन १९६० के दशक में अमरीकी कवि चार्ल्स सिमिक ने वस्तु परक कविताओं का समाँ बांध दिया-छुरी ,चम्मच और कांटे की रहस्यमय ज़िन्दगी पर कवितायें लिखीं .

सन १९५० के दशक में अमरीका के रोबर्ट लोवेल ,सिल्विया प्लाट और ऐनी सेक्सटन जैसे स्वीकारात्मक कवियों ने खुलेआम मानसिक रोगों तलाक़ और पारिवारिक विवादों पर लिखना शुरू किया.कनाडा के डब्लू .ई .ई . रोस और ए.जे .एम् .स्मिथ ने बिम्बवादी तकनीकों के सहारे अरण्य रोदन को पहली बार कविता के रूप में उतारा.

अमरीकी कवि चार्ल्स ओल्सन ने “खुले रूप “ की अवधारणा दी .उन्होंने कायदे से चमचमाती कविताओं की बजाय हिचकिचाहट ,परिवर्तन और टुकड़ों का इस्तेमाल करके कवितायें लिखीं :

जिस चीज़ के पीछे तुम हो

वह मोड के गिर्द पड़ी है

घोंसले के (दूसरी बार ,समय की हत्या , चिड़िया , चिड़िया ).

और वहां (मजबूत )धक्का,मस्तूल ! उड़ान

चिडिया की ...

अमरीका और कनाडा के कुछ कवियों ने एक अद्भुत प्रयोग किया ..इसे शुरू किया लैंग्वेज नामक पत्रिका ने .इन कवियों ने शब्दों को वाक्यों से आजाद करने की कोशिश की .इन्हें लैंग्वेज कवि कहा गया .सन १९६० से १९७० के दशकों में जरट्रूड स्टाइन, लुइस ज़ुकोफ्स्की और जॉन केज ने इस परम्परा का श्री गणेश किया था . इस आन्दोलन के पूर्वज थे न्यूयॉर्क शैली, ब्लैक माउंटेन शैली, बीट कवि और सान फ्रांसिस्को पुनर्जागरण.लैंग्वेज कवियों ने कविता के पीछे वक्ता होने को चुनौती दी .

तो कविता का लक्ष्य क्या है ?भावनात्मक तनाव से मुक्ति या भावशान्ति ही इसका लक्ष्य नहीं .बल्कि भावनात्मक तनाव का सर्जन करना इसका मकसद है .हालाँकि वर्ड्सवर्थ दुखांत या सुखांत कविता शैलियों के पचड़े में नहीं पड़े जैसा कि अरस्तू ने किया. वर्ड्सवर्थ का दावा था कि वे अपनी सरल कविताओं के जरिये पाठकों की भावनाओं को बढ़ा देते हैं .इसमें शब्दों का खेल होता है .अरस्तू और वर्ड्सवर्थ, दोनों ने कहा कि अच्छा कवि विशेष विधियों के द्वारा पाठकों को सार्वभौम सत्य का ज्ञान और उसकी खोज के लिये प्रेरित करता है .

वर्तमान विवरणात्मक कविता की पृष्ठभूमि में प्रकृति की ओर वापसी का ही परिष्कार है .कविता के उद्भव और परिमार्जन में ज़िन्दगी के साथ जुड़े सन्दर्भ सामग्री बनते हैं .असभ्य तरीके और अलौकिक हस्तक्षेप कविता के जरूरी अवयव हैं .

फ्रेंच भाषा में नीग्रोवादी आन्दोलन को फ्रांसीसी पश्चिम अफ्रीका के संगोर ने फ्रेंच भाषा में नीग्रोवादी आन्दोलन को फ्रांसीसी पश्चिम अफ्रीका के संगोर ने शुरू किया .बाद में वे नये देश सेनेगल के राष्ट्रपति बने .दक्षिण अफ्रीका के ऍसकीआ म्फाहलीली ,डेनिस ब्रूटस और ब्रेटेनबाख,निकारागुआ की क्लारेबेल आलेग्रिआ,चीले के विकतोर हारा और कूबा के एवेर्तो पादीआ ने तानाशाही और मानवाधिकार हनन के खिलाफ आवाज़ उठायी..पोलैंड में ज़्बिग्निएव हर्बर्ट और विस्लावा शिम्बोर्सका ने नैतिक आज़ादी की गुहार लगायी . पूर्व सोवियत संघ में जोसफ ब्रोड्स्की और इरीना रातुशिन्स्काया अपनी कविताओं के लिये जेल गये .कैनाडा के डोरोथी लिवसे और एर्ल बर्न ,अमरीका के लंग्स्त्न हूग और अमीरी बराक ने नागरिक अधिकारों के लिये संघर्ष किया. वियतनाम युद्ध के खिलाफ अमेरिकी कवि रॉबर्ट ब्ली ने १९६५ में एक संस्था की स्थापना की , जिसका नाम था अमेरिकन ऑथर्स अगेंस्ट द वियतनाम वार और खुलेआम अपनी कविताओं में विरोध का स्वर मुखर किया . उस संस्था के साथ तत्कालीन मशहूर अमेरिकी कवि, जैसे गैलवे किनेल, डब्लू एस मरवीन,ऐलन गिंसबर्ग, एड्रियन रिच, ग्रेस पेली, राबर्ट लोवेल आदि जुड़े.

अठारहवीं सदी से अफ्रीकी-अमरीकी कविता का पदार्पण हुआ .इसका श्री गणेश किया लूसी टेरी ने.उन्होंने सन १७४६ में बार्स फाइट लिखा जो अत्यंत लोकप्रिय हुई .उन्होंने पहली बार अफ्रीका से गुलाम बना कर लाये गये लोगों के मुक्ति संग्राम को आवाज़ और शब्द दिये .जुपिटर हैमन और फिलिस वीट्ली ने इस क्रम को आगे बढ़ाया .लेकिन गुलामी को ही अपनी कविता का विषय बनाया जॉर्ज मोसेस होरटों ने अपने कविता संग्रह द होप ऑफ़ लिबर्टी से .

सन १८९३ में पॉल लॉरेंस डनबर ने अफ्रीकी-अमरीकी साहित्य परम्परा में एक नया युग शुरू किया.सन १९२० के दशक में नवनीग्रो पुनर्जागरण नामक आन्दोलन प्रारम्भ हुआ. जीन टूमर ,

आदि इसके अग्रणी कवि थे ,बीसवीं सदी के प्रारम्भ में हार्लेम पुनर्जागरण के दौरान अफ्रीकी-अमरीकी कविता खिलने लगी .जेम्स वेल्डन जॉनसन तथा लैंग्सटन ह्यूज ने इसे चरम उत्कर्ष पर पहुंचाया .

मल्कोम एक्स की हत्या के बाद अश्वेत कला आन्दोलन तेज़ी से फैला .हालाँकि सन १९५५ में रोसा पार्क्स और मार्टिन लूथर किंग ने अश्वेत नेतृत्व को सम्भाला .उन्हीं दिनों मिस्सीसिपी में एक गोरी औरत पर सीटी बजाने के अपराध में एक १४ वर्षीय अश्वेत किशोर को मार डालने की अमानवीय घटना पर ग्वेंडोलिन ब्रुक्स ने दो कवितायें लिखीं .

अब एफ्रो -अमरीकी कविता क्रुद्ध फूल बन चुकी थी. अमीरी बरका ,लार्री नील और अस्किया मुहम्मद तूरे ने इसे धारदार बनाया

अश्वेत संगीत और श्वेत आवाज़ की अपनी पहचान बनती चली गयी.अमरीका की राष्ट्रीय कवि रीटा डव ने सन १९९३-९५ में अश्वेत कला आन्दोलन के प्रति अपना आभार व्यक्त किया .

इन्सानों में सिर्फ कवि ही हैं ,जिन्होंने अतीत से लेकर वर्तमान तक अपनी हर तरह की सीमाओं और कमजोरी के बावजूद हमेशा अपनी कलम के बल पर महान कृतियों को जन्म दिया है .शक्तिशाली तानाशाहों और बादशाहों को चुनौती दी है और जान भी दे दी है .अगर कवि नहीं होता तो इंसान पशु ही रहता .कवि और कविता ने इंसान को इंसान बनाया है . आज भी कवि ईमानदार हैं .सारी दुनिया के कवि बगावत कर रहे हैं.कितनों ने तो जान भी गंवा दी है .इंसान की चेतना मरी नहीं है और यह भी तल्ख सच्चाई है कि इंसान की आदिम बर्बरता ,लोभ ,मद भी इस तेज़ी से बढ़ता तकनीकी युग में जीवित हैं.

जॉन डन ने लिखा था,"कोई इंसान टापू नहीं."यानी हम सब एक दूसरे से जुड़े हैं.पर यह भी कड़वा सच है कि हम सब टापू ही हैं एक दूसरे से अलग चेतना को दखल किये.हम कितनी बार समझ पाते हैं कि दूसरा क्या सोच या महसूस कर रहा है?या जो हम सोच रहे हैं वह दूसरों से अलग है?

और यह कविता का क्षेत्र है,जो हमारे दिमाग की गहराइयों में उतर कर उसे उजागर करने के लिये प्रतिबद्ध है.दूसरे इंसान के दिलो-दिमाग के अंदर क्या चल रहा है, उसे बताने और जताने का माध्यम.

कविता हमसे बातें करती है.अगर वह ऐसा नहीं करती तो उसे पढ़ने की बजाय दूसरे कई काम हैं, जिन्हें किया जा सकता है.

कविता हर जगह मिलती है- त थ्यों में, हमारे द्वारा लायी गयी घटनाओं में. तथ्यों की कविता पहले हाशिये पर थी, अब हमारे दैनिक जीवन के केंद्र में है.

कविता हमेशा ही कहीं न कहीं मौजूद रहीं है.पनपती रही है. बल पूर्वक दबायी गयी है.फिर भी पुनर्जन्म ली है.उसने दंगाइयों को संगीत दिया है.विद्रोह की सूचना दी है और महान क्रांतियों को आवाज दी है.नयी कविता हथियार बन गयी है.कवि आज भी पस्त हिम्मत इंसानों में हिम्मत दिला रहे हैं और जोश भर रहे हैं. सर्द घ़ोसल़ों से चिंगारियां चिटक रही हैं.

संदर्भ

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५. द कैम्ब्रिज हिस्ट्री ऑफ इंगलिश एंड अमेरिकन लिटरेचर

६.द कोलंबिया इनसाइक्लोपीडिया,छठा संस्करण,२००३

७.उली फायर, जेराल्ड मूर, एलिस्टेयर एन.आर.निवेन: अफ़्रीकन लिटरेचर, इंसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका,२००५

८. थॉमस लव पीकॉक: द फोर एजेज औफ इंगलिश पोयट्री

९.शिहाब एम.गानम-पोयट्री इन द यूएई

९. क्लारिबेल आलेगरिआ-रोके दावतों:पोयट ऐंड रेवलूशनरी

१०.द अमेरिकन हेरिटेज डिक्शनरी,चौथा संस्करण,२०००,हाउटन मिफ्लिन कंपनी

११.लूसिआ ट्रेंट तथा राल्फ चेनी:ऐन एंथोलोजी औफ रेवलूशनरी पोयट्री, संपादक मार्कस ग्राहम, ऐक्टिव प्रेस , न्यू यॉर्क,१९२९

१२.राउल वेनाइजम:द रेवलूशन ऑफ एवरीडे लाइफ: इंपासिबल रिअलाइजेशन ऑर पॉवर ऐज़ द हम ऑफ सिडकशन

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श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक 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मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ 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रचनाकार: सर्द घोंसलों से चिटकती चिनगारियां - पंकज प्रसून
सर्द घोंसलों से चिटकती चिनगारियां - पंकज प्रसून
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