मैं लिख सकती हूँ - रेगिस्तान की तपती रेत पर, फागुन के पतझड़ पर ... - संजना पटेल की कविताएँ

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_पहचान ___ मन में कुछ कर गुजरने का जज्बा , दिल में कुछ अरमान हमें भी बनानी हैं दुनिया में अपनी पहचान गिरना,गिर कर सम्भलना ठोकर लगे तो च...

_पहचान ___

मन में कुछ कर गुजरने का जज्बा ,
दिल में कुछ अरमान
हमें भी बनानी हैं दुनिया में अपनी पहचान
गिरना,गिर कर सम्भलना
ठोकर लगे तो चलना चल कर सँवरना ,
दूसरों के पद चिन्हों पर चलकर
कुछ मिट गये ,कुछ डूब गये
अपने पैरों में ताकत लाकर, अपनी भी बनानी है निशान
हमें भी बनानी है दुनिया में अपनी पहचान
रास्ते में आयेंगी कई अड़चनें, मन हर बहकाव में बहकेगा
पर मुश्किल से पीछे नहीं हटना,
क्योंकि मुश्किलों से जूझ कर ही तो मिलता है मान
हमें भी बनानी है दुनिया में अपनी पहचान |

--

यादें

आती हैं जब कभी स्मृति पटल पर,
वो धुँधली काली यादें
मन हो जाता आहत, नीरस
व्योम पर जैसे छा जाते बादल
क्यों अपने हमसे होते दूर 
क्यों हमें बेसहारा कर जाते
ये सोच मन उन्हें कोसता है
फिर मन ही समझा जाता
क्यों कोस रहें जो चले गये
जो निःस्वार्थ प्रेम करते थे
तुम अपने स्वार्थ के लिए क्यों उन पर ताने कसते हो |
ये जीवन की रीत निराली है, सुख दुःख है इनके साथी
वो यादें ऐसे चुभते हैं, जैसे उजड़ गये हो खग के नीड़

--

_आज फिर मैं अपनों से हारी थी __


पनाह तो मेरे अपने घर में भी है इस समाज की रुढ़ियों का
सह दिया है मेरे अपने लोगों ने कुछ ढकोसलों को बेटियों के प्रति
"ये भूल कर कि उनकी भी बेटी है, उसके भी सपने है"
बेटियों के प्रति पल रहे  इसी हीन भावना को,
इन सब के मन से मिटानी थी
आज फिर मैं अपनों से हारी थी |

पर शायद गलत थी मैं !
पल चुकी थी इनके मन में की बेटियाँ गुरुर नहीं बन सकती
पर क्या! दिया है कभी किसी ने बेटियों को खुला आसमान बंदिशों के अलावा?
अरे! धिक्कारता है मन उसे, जिसने सबसे पहले ये आग सुलगाई थी
आज फिर मैं अपनों से हारी थी |

अगर तोड़ समाज की रुढ़ियों परम्पराओं को
उभारना चाहा अपने बेटियों को इस समाज की कैद से
बैठाना चाहा उसे उसके सपनों के शिखर पर
तो उनकी बेटियाँ समाज पर भारी थी
आज फिर मैं अपनों से हारी थी |

ये पुरुष प्रधान समाज, इनके नियम
कुछ चन्द व्यक्तियों के चोंचले
"अरे बेटी है कितना पढ़ाओगे,आखिर चली जाएगी एक दिन दूसरे के घर "
ऐसे ही ना जाने कितने आवाज मेरे हुनर पर भारी थी
आज फिर मैं अपनों से हारी थी |

माँ -पापा शायद इन्हें भी, अपने बेटी के सपनों से पहले समाज को देखना है
और सोच...
हाँ बेटी ही तो है, कौन सा हमें इसे सरताज बनाना है ,
इन्हीं सब बातों से छलनी दिल को ये स्याह रात कितनी घुटनकारी थी
आज फिर मैं अपनों से हारी थी |

घर से निकलो तो माँ का सलाह -
"देखना बेटा संभल के जाना, कोई कुछ कहे तो जबाव ना देना, बेटी हो तुम इज्जत तुम्हारे हाथ में है |"
अरे! समाज, समाज और बस समाज
माता -पिता की उनकी बेटियों के प्रति भी तो कुछ जिम्मेदारी थी
आज फिर मैं अपनों से हारी थी |

हमेशा दबाया जाता है बेटियों को
आज भी कुछ समाज के ठेकेदार है जिन्हें
बेटियों की शिक्षा, उनकी नौकरी उनका सेल्फ डिपेन्डेट होना
उनकी परेशानी थी
आज फिर मैं अपनों से हारी थी |

शायद यही डर उन समाज के ठेकेदारों को सताती है ,
अगर निकलें बेटियाँ घर से तो वो भी आगे बढ़ जायेंगी ,
कर सकती है वो भी पुरुषों की बराबरी
शायद खत्म हो जाए पुरुषों की सत्ता हर वक्त औरतों की उनकी औकात दिखाने की
आज फिर मैं अपनों से हारी थी |

---
_ मैं लिख सकती हुँ _

अक्सर मैं सोचती थी!क्या लिखूँ ?
किसे अपनी लेखनी का माध्यम बनाऊँ?
जब प्रकृति को देखा मन में ख्याल आया -

मैं लिख सकती हूँ -
उदय होते सूर्य पर
ढलते शाम पर
चाँद की ज्योत्सना पर
शीतल बयार पर |

मैं लिख सकती हूँ -
झरनों की कल -कल पर पक्षियों की कलरव पर
भ्रमर की गुंजार पर|

मैं लिख सकती हूँ -
माँ की ममता पर
पिता की दूलार पर
बहन के स्नेह पर
नारी के समर्पण पर |

मैं लिख सकती हूँ -
मंदिर की शंखनाद पर
प्रज्वलित दीपशिखा पर
शिव के शक्ति पर
भक्तों की भक्ति पर |

मैं लिख सकती हूँ -
किसी के संघर्ष पर
किसी के विजय पर
किसी की भावनाओं पर
किसी के इश्क़ पर |

मैं लिख सकती हूँ -
रेगिस्तान की तपती रेत पर
फागुन के पतझड़ पर
चैत के बसंत पर
सावन की फुहार पर |

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  _नवल प्रभात _

खग के कलरव के साथ
लिए स्फूर्ति और उल्लास
कर क्षीण तम को दे मात
जागा नभ में नवल प्रभात |

पुष्प की कलियाँ तरूणाई
कुहूक मन लुभाते बसन्त दूत
शर्वरी पर विजयी निशान्त, लिए कुसुम सुगंध शीतल वात
जागा नभ में नवल प्रभात |

दुःख की रजनी को भूल
खग उड़ चले अपनी मंजिल
तज आलस और संताप
जागा नभ में नवल प्रभात |

नये शौर्य -शक्ति के साथ
मन में भरने नया उमंग
करने जग का उत्थान
जागा नभ में नवल प्रभात |
---

_प्रेम के वादे _

सुनो...
याद हैं क्या तुम्हें
किये थे तुमने जो वादें
वो छत पर चाँदनी रात में
आलिंगन कर प्रेम से माथा चूम कर
हर जन्म साथ बिताने की..

वो मेरे इतने करीब आ
चितवनों की छांह दे कर
ख्वाबों का नया आशियां बनाने की ...

वो मेरे उलझे केशों को संवारते हुए
मेरे हर गम को अपनाकर
सुख दुःख में साथ निभाने की...

अगर रुठ जाऊँ जो कभी तुमसे
तुम्हारा प्यार से प्रयत्न  मुझे मनाने की..

वो बांहों के आगोश में भरकर
किया था तुमने जो वादा
मुझे ना छोड़ कर जाने की

याद भी क्यों होगा भला तुम्हें
मुकरना जो था तुम्हें अपने वादों से
छोड़ गये इन स्याह गलियों में अकेले

मैं इंतजार करुँगी अब भी तुम्हारा
झूठा ही सही एक और वादा करोगे क्या ?
बात कह दो बस एक बार..
दुबारा लौट आने की.....
   
---

_किताबों से दोस्ती _

अकेली नहीं मैं...
किताबों से है मेरी दोस्ती
बातें करती है ये मुझसे
जब भी मैं चाहूँ
किरदारों के माध्यम ये कुछ कहती
उन किरदारों के भावनाओं में बह
मैं बहुत कुछ इनसे सीखती
मौन ही ये तमाम वार्तालाप करती
गहराइयाँ होती हैं
अथाह सागर सी इनमें
इन गहराईयों में
लहरों संग मैं बहती
सारी खूबियाँ है इनमें एक अच्छे दोस्त की
दिन हो या रात, धूप हो या बरसात
साथ देती ये हर वक्त
रहूं जो कभी उदास अकेले
इनके फड़फड़ाते पन्ने
मेरे अकेलेपन को भरती
अकेली नहीं मैं
किताबों से है मेरी दोस्ती |
     
              __ संजना पटेल

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आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
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रचनाकार: मैं लिख सकती हूँ - रेगिस्तान की तपती रेत पर, फागुन के पतझड़ पर ... - संजना पटेल की कविताएँ
मैं लिख सकती हूँ - रेगिस्तान की तपती रेत पर, फागुन के पतझड़ पर ... - संजना पटेल की कविताएँ
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रचनाकार
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