मानव की आँख के बदले अगर काँच की लगाएंगे; तो वो आँख होगी, पर देख नहीं पाएंगे. - डॉ. सदानंद पॉल की कविताएँ..

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डॉ. सदानंद पॉल की 10 कविताएँ.. ======================== 1. 2020 बनाम सत्य के साथ मेरे प्रयोग ______________________________ सिर्फ़ फंतास...

डॉ. सदानंद पॉल की 10 कविताएँ..
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1.

2020 बनाम सत्य के साथ मेरे प्रयोग
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सिर्फ़ फंतासी सोच-सोच कर ही गुजर गए थे साल
अपनी बारह बोगियों में 365 कम्पार्टमेंटों को समेटकर
गोलियों की गति से सभी नक्षत्र, राशि, पूर्णिमा, अमावस्या भी
मेरे प्रियजनों के जन्मदिन और दादा-दादी की स्मृतियाँ भी !
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जनवरी में नहीं कह सकता था कि कैसा होगा यह साल
अब तो पूछो ही नहीं ! जिंदगी हुई बेहाल, जीवन-ढर्रे बदहाल
जिसे छूकर गुदगुदाते, उन सब चीजों पर अब ताले पड़ गए
खाने को भी कम पड़ गए, तो दूर का ढोल सुहावन हो गए !
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हम मिथ पर जीनेवालों में नहीं, परखकर निबाहनेवालों में हैं
गलत कुछ भी नहीं कहा था- कभी शेषन, कभी खेरनार ने
विचारों को खूँटी पर क्यों टाँगते हो, भाई ? ये तो अपने-अपने हैं
जब हमारे मुँह पर हमारे बोल ना हो, तो हम आजाद ही क्यों हुए ?
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सिर्फ स्नेह लिए शब्द नहीं चाहिए, क्योंकि इससे पेट नहीं भरते
आजतक, अलजजीरा, रवीशों को कैसे सुनूँ, सिरफ रेडियो पास है
पेट और रेडियो ने मिल रामायण, महाभारत को हमसे दूर कर दिए
अखबारों ने दगा दिए, तो नागार्जुन जैसों ने अकाल बाद रच दिए !
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अब तो हमारे पास देने को सचमुच में कुछ नहीं बचे हैं
लेने को मन करता है, पर स्वाभिमान धमका रहे हमें पल-पल
सरकार सिरफ कामातुर स्त्री की भाँति है, जो फँसाना जानती है
तो एक स्लेट-खड़िया दे दो कि स्वयं भाग्य लिखूँ औ' मिटाते जाऊँ!
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2.

21वीं सदी की झलक
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राष्ट्र धृतराष्ट्र है, धनराज दुर्योधन है,
शासन दुःशासन है, न्यायविद शकुनी है,
न एकलव्य, न अर्जुन बनना, सीधे मेडल खरीदना चाहते हैं,
कि सभापति भीष्म के आगे भी विवश; नाच रही द्रोपदी है,
हाँ भई हाँ-हाँ ! यह द्वापर नहीं, इक्कीसवीं सदी है !
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युवतियों को अशोक वाटिका नहीं, रावण की विलासिता भायी,
युवकों को भी विलासी सूर्पनखा और उनकी अदा चाहिए,
और न हो वन-वन भटकना, न बनूँ लक्ष्मण-भरत जैसे भाई,
अभिनेत्रियों के आगे बेबस उर्वशी, रंभा, मेनकाओं के दिन लदी है,
हाँ भई हाँ-हाँ ! यह त्रेता नहीं, इक्कीसवीं सदी है !
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न लड्डू, न दूध; सीधे 'कोल्डड्रिंक' चाहिए,
नशे से नाश हो जाये सही; पर नहीं टी-कॉफ़ी चाहिए,
वाटरलू क्यों जाना, यहीं रहकर इलू-इलू कहना है,
बेटी रोज आईब्रोज बनाती है, बेटा का खूब सिक्सपैक बडी है,
हाँ भई हाँ-हाँ ! यह कलियुग नहीं, इक्कीसवीं सदी है !
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स्पेक्ट्रम पर रार ठनी, आदमी भी चारा खाये, क़फ़न चुराये,
क्या खूब लाल भी कृष्ण भी, मधु भी कोड़े भी, मुलायम भी अकड़े भी,
छोड़ हसीन सपनों को मुंगेरीलाल अब तो मटुकनाथ भए,
दिल भी दिल में न रहकर बिल बन गए, पर मोनिका नहीं अंधी है,
हाँ भई हाँ-हाँ ! यह भटयुग नहीं, इक्कीसवीं सदी है !
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ये अहंकार शब्द और अहंकारी लोग सनकी औ' ज़िद्दी क्यों होते हैं,
शून्य के आविष्कार के बाद अबतक खोज शून्य ही क्यों हैं,
त्रेता में खर-दूषण तब थे, पर अब तो यहाँ सिर्फ व सिर्फ प्रदूषण है,
हवा-पानी भी फ्री में नहीं और बह रही यहाँ प्लास्टिक की नदी है,
हाँ भई हाँ-हाँ ! यह करप्टयुग है, तेरे-मेरे सपने का 21वीं सदी नहीं !
तेरे-मेरे सपने का 21वीं सदी नहीं !!
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"कैसे बताऊँ मैं तुम्हें कि तुम मेरे लिए कौन नहीं, मिस कौना हो !
तुम तो मेरे लिए वीणा हो, मीना हो और इसी का नाम जीना हो !
क्या फरक पड़ता है, तुम्हें कटरीना कहूँ, रवीना कहूँ या करीना !
तुम तो मेरी जान हो, जौना हो, खुशी हो, क्रोध हो, रोना हो !
तुम अरमान मेरी, गुरुज्ञान मेरी, तुम अर्चना हो, स्वर्णा हो !
कैसे बताऊँ मैं तुम्हें कि तुम मेरे लिए कौन नहीं, मिस कौना हो !
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3.

कोरोना कोरस
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तुम आराधना, प्रार्थना मेरी; तुम अलौकिक, पारलौकिक हो;
तू पूजा है, तुम्हीं बंदगी, जिंदगी तू; हाँ-हाँ मैं ही गंदगी हूँ !
डॉक्टर तुम, मेरे हिस्से की हरवाकस तुम, हस्पताल तेरी !
तुम मेरी आत्मा हो, परमात्मा भी; रात सोना हो, सुबह खोना हो !
कैसे बताऊँ मैं तुम्हें कि तुम मेरे लिए कौन नहीं, मिस कौना हो !
••••••
तुमसे कोई कहानी छिपी नहीं; यहाँ मेरी प्रतिभा बिकी नहीं !
तुम हो तो मैं आश हूँ, निराश-हताश भी, गले की खराश भी!
फ़्लू भी, छींक भी, जुकाम भी, मलेरिया और लवेरिया भी !
मानता हूँ, तुम शाकाहार हो, मैं निरा लम्पट, कमीना हूँ !
कैसे बताऊँ मैं तुम्हें कि तुम मेरे लिए कौन नहीं, मिस कौना हो !
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तू सर्द कम्पन रूखे-सुखे; मैं गर्म तवा की ताव पर भी हार हूँ !
तुम उषा हो, मैं पसीना भर; प्रात हो, रात भी, बात-बेबात भी !
तुम सफर हो, दुनिया देखी भी; मैं तो अंध औ' अनदेखी भी !
तुम हो तो सिम्पलीसिटी है, तुम न हो तो मॉल-हॉल खिलौना हो !
कैसे बताऊँ मैं तुम्हें कि तुम मेरे लिए कौन नहीं, मिस कौना हो !
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मैं ऋण हूँ, पर तुम रीना हो, मैं सफेद झूठ, तू चना-चबेना हो !
किस, हग, टच से गुस्से में हो, इसलिए दुनिया के हर हिस्से में हो !
तो हैंडशेक ना, हाथ-मुँह प्रक्षालन हाँ; तुमसे प्यार है कहो-ना !
तू 19 उमरिया प्यार मेरी, मैं ही कमीना, तू तो कोविड-कोरोना हो !
कैसे बताऊँ तुम्हें कि तुम मेरे लिए मिस कौना नहीं, मिसेज कोरोना हो!
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5.

धर्म की मानवीय-परिभाषा
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वो दो गरीब परिवार में जन्म लेकर;
एक हिन्दू, एक इस्लाम बनकर.
एक राम कहलाकर, दूजे रहीम कहाकर.
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एक पूस की रात, दाँत कटकटाती बात.
सप्ताह के दिन सात, कि सूखे पात से कैसे ठंढक काट.
फिर भी नहीं आग जली, तो शरीर गलनी थी, गली.
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पर आठवें दिन बनकर आई आखिरी दिन, कि साँसे गिन-गिन.
रामू चल बसे जीवनभर की गर्मी पाने, श्मशान की जनसंख्या बढ़ाने.
कि चिता जो जली, वही अलाव भली.
जेठ की दुपहरी, ताज संगमरमरी.
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लग रही लू की मरीचिका, कृष्ण की राधिका.
बाँस के पंखे की नहीं मिली झाप, नाली की पानी से उड़ रही थी भाप.
कि तोड़ दिया दम, इधर रहीमन भी छोड़ गम.
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बढ़ रहे हैं भीड़ पीछे-पीछे, ठंढा पाने दफ़न को भींचे-भींचे.
रहीम भी कब्रगाह में जमीन के अंदर, लिपटी श्वेत समंदर.
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दोनों अलग-अलग गए, दोनों ही ठंढ लगने से गए.
हमारी धन-बल से जब अपने-परायों की रक्षा ना हो,
धन-संचय से अच्छा तब करे भिक्षाटन लिए झुनझुना हो.
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मानव की आँख के बदले अगर काँच की लगाएंगे;
तो वो आँख होगी, पर देख नहीं पाएंगे.
कि आदमी के कलेजे के बदले वहाँ,
किसी भी धर्म के पूजास्थलों के प्रतीक लगाएंगे;
तो आदमी क्या जिंदा रह पाएंगे ?
••••••
जिसतरह सूर्य का धर्म है- ताप देना, भाप देना.
चंद्रमा का धर्म है- शीतलता देना, ऊष्मा से राहत देना.
धरती का धर्म- अन्न देना, शांत मन देना.
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काश ! मानव भी समझते कि मानव का धर्म है-
दुःखी मानवों की सेवा ही करना, कर्मयोगियों की मेवा नहीं छीनना.
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6.

हिंदुस्तान : कल और आज
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दो पैर; दो सिर.
साथ दो जोड़ आठ; यानी दस हाथ.
शेष प्रांत हैं परिधान; दोनों आँचल लक्षदीप-अंडमान.
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धोती ढील; चेहरा पिलपिल.
गंजे सिर पर चढ़ाकर बोझ पाल; उगे हिमलताओं से झाड़-बाल.
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रहते उसपर गिद्धदृष्टिलीन; अपाक पाक-चीन.
पकाते दाल; बनाते कंगाल.
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बह रहा बेवक़्त, हिन्द महासागरीय आँसू; तो अरबसागरीय खूं.
पत्रिपर्ण अवर्ण; पाकर भी स्वर्ण;
बन रहा भीखमंगा; बहाकर भी मैली गंगा.
मुम्बई, दिल्ली का दंगा; बन मदारी नाच नचा रहा नंगा.
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लेप चेरी पॉलिस का कर; चेहरे पर.
रंगीन कपड़े में नील देकर; फटे कपड़े पर साट स्टीकर.
ईसा पर कील ठोंककर; झपटी आज बुलबुल ज्यों चील पर.
ठोंक रहा वह फटे ढोल पर ही ताल; बनकर कमीना, भड़ुआ, दलाल.
न तो संतरी; न मंत्री.
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नीचे पदत्रावन; क्या पंडित थे रावण.
नहीं कोई शर्म; शतप्रतिशत है घपलेबाजी का बाज़ार गर्म.
पी रहे चाय रह-रहकर; मजदूर बनकर.
हम बुद्धम शरणम साँची; वो युद्धम गमनम लाहौर-कराची.
क्यों खाते छीनकर; जूठे में चुस्की लेकर.
वह सौ सफेद पिंजड़े; टंग रहे उनमें अस्सी बेईमान लँगड़े.
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कश ले रहे पी-पी; पड़े-पड़े वो LGBTQ
वो मुच्छड़े मच्छरसाले; तेरे आदमी की भूख निराले.
वह पड़ोस की आँटी बेल रही हैं पापड़; सुंदरता के घर.
मिस वर्ल्ड में पर; खा चुके हैं झापड़.
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गगनचुम्बी अवस्थित मनीप्लान्ट-सी लड़की; दिल ज्यों धड़की.
चर्चिल की चाची; मनु की झाँसी.
लिंकन की परिभाषा; एक और आशा.
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कुतुबमीनार-सी नाक; गोलमिर्च-सी आँख.
उम्र में बड़े; ताजमहल से चेहरे.
सत्तू, प्याज औ' नाइफ; कटे बाकी लाइफ.
••••••
एक थे गुजराती-घाँची; औ' डाकिया की मुहर खाकर भी.
कर जीवन भर संधि; वह मेरे बापू अमर गाँधी.
लेनिन का शव, न्यूटन का सेब.
••••••
निषेध हो धुएँ-धुएँ; कूदते-फाँदते टूटे बोतल पर चूहे.
बंजर खेत पर; उगे बीजरहित जूट-अरहर.
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रेस के घोड़े की चाबुक बनेगी; या फिर किसी शम्बूक पर पड़ेगी.
लक्षद्वीप-अंडमान में प्रकृति अच्छे; पर बिलबिलाते वहाँ बच्चे.
सार्थक शब्द के सच्चे; निरर्थक उड़ते उनके परखच्चे.
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दो सूखे बज्र स्तन लिए बेसुध; चूँभर न दूध.
निर्जीव पत्थर व ठूँठ; ठोंकी सबकी खूँट.
••••••
विज्ञ बिहार अरु मरु राजस्थान; दोनों महान.
बस, यही है मेरी आन-बान- शान; मेरा प्यारा हिंदुस्तान.
••••••

7.

तीसमार खाँ
___________

वे कर्म के क्षेत्र में
'वर्ल्ड रिकॉर्ड' कायम कर लिए,
एक ही बार, एक ही समय, एक ही पंजे से
तीस मक्खियाँ मारकर !
'लॉकडाउन बुक ऑफ रिकॉर्ड्स' में उनके उपनाम
"तीसमार खाँ"
स्वर्णाक्षरों में अंकित हो गए !
••••••

8.

मूकदर्शक
_________

'रामायण' दर्शकों की सात करोड़ी भीड़ में से
एक दर्शक से दो प्रश्न किया-
मंथरा महान थी या कैकेयी ?
उसने कहा- ये नहीं, तो रामायण नहीं !
दूसरा प्रश्न किया- मंथरा कूटनी थी, तो कूटना कौन थे ?
'नारद' कहकर वह अपेक्षा से देखने लगा,
तब एक और प्रतिप्रश्न-
करोड़ों रुपये खर्च कर और मेहनत जाया कर
रामानंद सागर जी 'नारद' ही क्यों बने ?
यह सुन वह दर्शक
'मूकदर्शक' बन वहाँ खिसक गए !
••••••

9.

कुत्ते से प्रेरणा
____________

एक मनुष्य ने
एक कुत्ता से प्रश्न किया-
कुत्ते की पूँछ पैदाइश ही टेढ़ी क्यों होती है ?
उस कुत्ता ने जवाब दिया-
वो अपना पिछवाड़ा मनुष्य को दिखा सके,
जिससे कि मनुष्य को कपड़े पहनने का स्मरण रहे,
ताकि बीच चौराहे होनेवाली कुत्ते की अदा को मनुष्य भूले नहीं !
••••••

10.

भारतवासी वीर बनो
_________________

भारतवासी    वीर   बनो ,  ऋषियों   की  है यह  वाणी ,
नेक,  बहादुर,  धीर   बनो ,  तुम   पक्के    हिन्दुस्तानी ।
••••••
सीता,  राधा,  सती,  सावित्री  की,   धरती  यह  न्यारी ,
गंगा,  यमुना,  सरस्वती  -  सी , नदियाँ  पूज्या   प्यारी ।
••••••
रामकृष्ण  -  सम   परमज्ञानी    का ,  देश    हमारा  है ,
विविध   धर्म    का   मर्म  -   एक   सिद्धांत  हमारा  है।
••••••
ईसाई  -  सिख  -  मुसलमान  -  हिन्दू,   सब   हैं   भाई,
नील  -  पंचनद  -  अरबसागर  -  सिंधु,  कब  से  खाई।
••••••
अपने    आदर्शों    पर   है  ,   कुर्बान    जहाँ    जवानी ,
नेक,  बहादुर , धीर   बनो  ,  तुम    पक्के   हिन्दुस्तानी ।
••••••
वेद, कुरआन, गुरुग्रंथ, बाइबिल का, अद्भुत संगम अपना,
मानव - मानव  एक  बने ,  बस -  यही   हमारा  सपना ।
••••••
रावण , कंश , हिरण्यक   के, गौरव   को    ढहते   देखा ,
आदर्शों  की    प्रतिमाएँ   आयी, पढ़ी  है  सबने   लेखा ।
••••••
जन्मे  द्रोण,  बुद्ध,  गांधी  और   विदुर - से  सच्चे  ज्ञानी,
नेक,  बहादुर,  धीर   बनो ,  तुम    पक्के    हिन्दुस्तानी ।  
••••••
[नोट :- प्रस्तुत कविता सर्वप्रथम 'भागीरथी' के अगस्त 1989 अंक में प्रकाशित हुई थी, जिनके लिए जनवरी 1991 में मा. प्रधानमंत्री श्री चन्द्रशेखर ने शुभकामना-पत्र भेजे थे। इस कविता को 1994-95 के लिए नेशनल अवार्ड के रूप में 'राष्ट्रीय कविता अवार्ड' भी प्राप्त हुई थी और 'अभी भी कुछ शेष है' नामक कविता-संकलन में यह 1995 में पुनः प्रकाशित हुई थी, जिनके संपादक डॉ. शेरजंग गर्ग रहे। 'नंदन' के संपादक श्री जयप्रकाश भारती ने इस कविता की प्रशंसा करते हुए 'नंदन' के तब के अंकों में प्रकाशित किए थे। यह कविता महा. राष्ट्रपति डॉ. शंकर दयाल शर्मा संबोधित राष्ट्रीय युवा महोत्सव, भोपाल के लिए भी स्वीकृत हुई थी। महा. राष्ट्रपति सरदार ज्ञानी जैल सिंह द्वारा स्थापित राष्ट्रभाषा हिन्दी से संबंधित संस्था द्वारा इस कविता को राष्ट्रभाषा और देशभक्ति प्रसार के लिए स्वीकृत हुई थी।]
◆◆◆

●लेखक :- डॉ. सदानंद पॉल

●लेखकीय परिचय :-

तीन विषयों में एम.ए., नेट उत्तीर्ण, जे.आर.एफ. (MoC), मानद डॉक्टरेट. 'वर्ल्ड रिकॉर्ड्स' लिए गिनीज़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स होल्डर, लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स होल्डर, इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स, RHR-UK, तेलुगु बुक ऑफ रिकार्ड्स, बिहार बुक ऑफ रिकार्ड्स होल्डर सहित सर्वाधिक 300+ रिकॉर्ड्स हेतु नाम दर्ज. राष्ट्रपति के प्रसंगश: 'नेशनल अवार्ड' प्राप्तकर्त्ता. पुस्तक- गणित डायरी, पूर्वांचल की लोकगाथा गोपीचंद, लव इन डार्विन सहित 10,000 से अधिक रचनाएँ और पत्र प्रकाशित. सबसे युवा समाचार पत्र संपादक. 500+ सरकारी स्तर की परीक्षाओं में qualify. पद्म अवार्ड के लिए सर्वाधिक बार नामांकित. कई जनजागरूकता मुहिम में भागीदारी.

●संपर्क :-  s.paul.rtiactivist75@gmail.com

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 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. 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श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया 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जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi 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रचनाकार: मानव की आँख के बदले अगर काँच की लगाएंगे; तो वो आँख होगी, पर देख नहीं पाएंगे. - डॉ. सदानंद पॉल की कविताएँ..
मानव की आँख के बदले अगर काँच की लगाएंगे; तो वो आँख होगी, पर देख नहीं पाएंगे. - डॉ. सदानंद पॉल की कविताएँ..
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