पान-बताशे से प्रसन्न होने वाले विवाहों के देवता-हरदौल लाला : आत्माराम यादव पीव

SHARE:

पान-बताशे से प्रसन्न होने वाले विवाहों के देवता-हरदौल लाला आत्माराम यादव पीव लोक कथाओं में नियतिप्रधान, व्यक्तिप्रधान, समाजप्रधान एवं जातिप्...

पान-बताशे से प्रसन्न होने वाले विवाहों के देवता-हरदौल लाला

आत्माराम यादव पीव

लोक कथाओं में नियतिप्रधान, व्यक्तिप्रधान, समाजप्रधान एवं जातिप्रदान विशेषणों का आधिक्य देखने को मिलता है। कुछ रचनायें व्यक्तिविशेष के माध्यम से उत्पन्न होती है तो कुछेक रचनाओं को जनसमुदाय द्वारा यथावत प्रस्तुत करने का चलन रहा है। व्यक्तिप्रधान रचनाओं का जन्म किसी कवि,लेखक की कृतियों-रचनाओं को आधार माना गया है। लोककथायें किसी समाज-जाति विशेष के व्यक्तित्व के प्रेरणादायी जीवनवृतांत के सृजन का नेतृत्व भी करती दिखाई देती है। प्रायः ये लोककथायें पौराणिक, ऐतिहासिक, सीमान्त क्षैत्रीयता सहित वनप्रदेशों के रहवासियों के कथानक को अपने में आबद्ध किये हुये होती है। लोक देवी देवताओं के सम्बन्ध में कुछ विशेष जाति, प्रादेशिक क्षेत्र की प्रचलित बोलियों के मध्य अनेक क्विदंतियां , घटनाओं का समावेश लिये होती है पर उसकी सच्चाई या कल्पना कितनी प्रासंगिक है उसका साक्ष्य तो तत्कालीन समय के समाज को पता होता है जो उनके चमत्कार या रहस्यमय जीवनचरित्र को जानता हो। जिस लोक देवी-देवता का इतिहास संजोया नहीं गया है उनके जीवन चरित्र की सच्चाई किसी वृक्ष में फैली अमरवेल की तरह ही है जिसका कोई सिरा-कोना ढूंढे नहीं मिलता है। ऐसे ही अनेक स्थानों पर अधिकांश समाजों की तरह यादव समाज की ग्वाल परम्परा में हरदौललाला को लोक देवता मानकर कोई उन्हें हरदौल बाबा तो कोई हरदौल लाला के नाम से पूजा करता है।

सोलहवी शताब्दी में पैदा हुये हरदौललाला हमारे ही बीच के एक इंसान थे। जिनके विषय में कुछ कवियों और विद्धानों के बीच मतभेद भी देखने को मिला है और कोई हरदौल का असली नाम हरिसिंह देव तो कोई हरदेवसिंह के नाम से बुन्देलखण्ड का प्रसिद्ध देव होने के प्रमाण अपनी रचनाओं के माध्यम से प्रस्तुत करता है। होशंगाबाद के ग्वालटोली में 2 शताब्दियों से हरदौल का चबूतरा है जहां 40 वर्षों पूर्व उनका मंदिर बनाकर उन्हें सफ़ेद घोड़े पर सुसज्जित सवार के रूप में बनी प्रतिमा को प्राणप्रतिष्ठित कर पूजने का क्रम चला आ रहा है। 40 वर्षों से में तत्समय के शतायु के करीब कुछ प्रबुद्ध समाजजन से उनके विषय में जानना चाहता था किन्तु कोई भी मेरी शंका का समाधान नहीं कर सका। अलबत्ता यही बताया गया की ये हमारे पूर्वजों के पूज्य है इसलिए हम भी पूजते आ रहे है। मेरे मन में यह जिज्ञासा तभी से ही रहीं है कि हमारे बीच पैदा हुआ एक इंसान क्यों और कैसे हमारे लिये पूज्य होकर लोकदेवता के आसान पर विराजमान हो गया। इन लोक देवताओं के जीवन चरित्र का कौन सा रहस्य या चमत्कार है जो हमें उनसे जोड़े रखता है किन्तु उनके जीवनचरित्र का अनुकरण समाज में दूर तक नहीं दिखता है। ग्वाल समाज पीढ़ीदर पीढ़ी इन्हें निश्चित माह की तिथि को पूजने से नहीं चूकता है और नवरात्रि, जवारे आदि में जस के समय कुछेक पढ़िहार के शीष में हरदौल की छाया का आगमन होता है जो उपस्थित समाजजनों की समस्याओं व पारिवारिक दुखों को दूर करने के लिये आर्शीवाद देने व दाने देखकर भभूत देकर समस्याओं-दुखों के दूर करने को आश्वस्त करते हैं। जबकि देखा जाये तो मैं पाता हॅू कि समाज के उन उपस्थित भक्तों में या हरदौल बाबा या अन्य बाबा की सवारी के सामने भयातुर लोगों की लोभवश फरियादें ज्यादा होती है और देवता का आर्शीवाद पाकर भक्त के मन में भयमिश्रित फुरफुरी का आभास ओर संतुष्ट होना उन्हें अहंकार से भरा दिखता है। बचपन से ही मन में यह जिज्ञासा मुझे अन्वेषण के लिये बाध्य करती रही है कि आखिर क्या कारण है? और क्यों ? हम अपनी आत्माओं में इन लोक देवी-देवताओं को हावी होने देते हैं। यह अनसुलझे प्रश्न इसलिये भी उठते हैं कि जहाँ से हरदौललाला या अन्य वे सभी इंसान, जो देव बनकर पूजनीय हो गये, क्या कारण है कि महर्षि बाल्मिकि, तुलसीदास, सूरदास, मीराबाई, रसखान, कबीर रहीम जैसे उच्च-विराट व्यक्तित्वशाली लोग देवता नहीं हो सके ? और समाज इन्हें पूजने से रहा। वहीं हरदौललाला जैसे अन्य व्यक्तित्व के लोग देवत्व के पायदान पर क्यों और कैसे विराजमान हुये इसे समझने एवं परखने की आवश्यकता है जिसके प्रमाणिक निष्कर्ष पर पहुचने से पूर्व ऐसे साक्ष्यों और ठोस आधारों पर वैचारिक चिंतन एवं जनुश्रुतियों व क्विदंतियों का विचारण, अन्वेषण व उसकी विशद सांगोपांग ऐतिहासिक उपलब्धियां के अनावरण की आवश्यकता है।

इतिहासकारों ने बुन्देलखण्ड के इतिहास में हरदौल को ओरछा नरेश जुझारसिंह का छोटाभाई बताया है। उनके जन्म को लेकर अलग-अलग जानकारी मिलती है जो विवादग्रस्त कहीं गयी है। रामराजा मंदिर के फूलबाग चौक ओरछा में लगे शिलालेख में हरदौल का जन्म संवत 1664 दर्ज है वहीं ओरछा के दस्तावेज में संवत 1664 माघवदी 2, शनिवार रात्रि 9 बजे माना है किन्तु केशवरचित “”वीरसिंहदेव चरित”” की रचनातिथि में संवत 1664 बसंत शुक्ल पक्ष की अष्टमी,दिन बुधवार मानी गयी है। ओरछा नरेश जुझारसिंह के छोटे भाई हरदौल एक न्यायप्रिय,सत्यवादी, पराक्रमी योद्धा, के रूप में अपनी पहचान बनाकर ओरछा राजा जो मुगल शासक के अधीन थे ,उस मुगलसेना के सेनापतिे थे। हरदौल की मौत का प्रमुख कारण यह माना जाता है कि मुगल शासक के प्रतिनिधि सरदार हिदायत खान के बेटे ने राजघराने की बेटी के साथ बलात्कार करने का प्रयास किया। हिदायत खान फूलबाग में हरदौल की बैठक के बगल में रहता था, हरदौल को जैसे ही इस बात का पता चला तो हरदौल ने हिदायत खान के बेटे का मार डाला और उसके पिता हिदायत खान को तत्काल फूलबाग खाली करने को कहा। हिदायत खान ने बेटे के मारे जाने के बाद नाराज होकर हरदौल से बदले की भावना से उनकी शिकायत बादशाह से कर दी ओर अनवर खान पठान के नेतृत्व में सेना की एक टुकड़ी लेकर ओरछा को घेर लिया तब हरदौल ने अपने पराक्रम से अनवर खान को लड़ाई में मारने के बाद पूरी सेना को परास्त कर दिया। इस पर मुगल शासक शाहजहाँ ने राजा जुझारसिंह को गददी से हटाने की धमकी दी तब राजा जुझारसिंह ने ओरछा आकर अपने छोटे भाई हरदौल को जो बतौर सेनापति पद पर रहते हुये ओरछा का राजकाज देख रहे थे को बेदखल करने की युक्ति पर विचार करने लगे तब हरदौल के विरोधियों ने हाथ आया अवसर को भुनाते हुये जुझारसिंह के कान भर दिये कि तुम्हारी पत्नी से उसे विष दिलवा दे, वे बेटे की तरह मानती है अगर रानी मना करे तो उनपर अवैध सम्बन्ध का आरोप लगाना, वे पतिव्रता है और इस आरोप को सहन नहीं कर सकेंगी और हरदौल को जहर दे देंगी। राजा ने ठीक इसी बात का पालन किया और रानी ने अपने धर्मपरायणता की रक्षा के लिये अपने देवर को जहर देकर मार दिया। कहा जाता है कि जिस समय उनका प्राणान्त हुआ उस समय उनकी उम्र 29 से 32 वर्ष के लगभग रही थी।

हरदौल की मौत को लेकर दूसरी जनश्रुति यहां प्रचलित है जिसके अनुसार हरदौल की लोकप्रियता चरम पर थी जो उनके दरवारियों और मुगलों को तकलीफ देने लगी जिससे सभी लोक हरदौल के प्रति गहरी ईर्ष्या रखने लगे और उनके भाई राजा जुझारसिंह के कान भर दिये कि तुम्हारी पत्नी रानी चम्पावती के साथ उनके अवैध सम्बन्ध है। राजा को अपने पुत्रसमान भाई पर शक हो गया और कच्चे कान के राजा जुझारसिंह ने अपनी पत्नी के पतिव्रत धर्म की परीक्षा लेने के लिये उसे अपने देवर को विष मिश्रित भोजन कराने की शर्त रखी। रानी ने राजा के कहने पर अपने देवर हरदौल को भोजन के लिये आमंत्रित किया तथा भोजन परोसने के बाद रानी की आँखों से अश्रुधार बहने लगी तब हरदौल के कारण पूछने पर रानी ने सच बता दिया कि तुम्हारे भाई के कहने पर यह भोजन देने को विवश हॅू। हरदौल ने भाभी माँ के सच्चे प्रेम पर खरा उतरने के लिये वह विषमिश्रित भोजन आदर के साथ ग्रहण किया और कुछ समय बाद उनका प्राणान्त होगया। इसके अतिरिक्त एक अन्य कारण यह भी बुन्देलखण्ड में चर्चित है कि ओरछा के राजा जुझारसिंह की अनुपस्थिति में हरदौल राजकाज देखा करते थे और उनके राजकाज से जनता सुखी थी तथा उनकी न्यायप्रियता एवं प्रभाव के कारण हरदौल लोगों के दिलों में राज करने लगे थे तथा राजा जुझारसिंह का वर्चस्व कम होने लगा था तब राजा को भय हुआ कि कहीं ऐसा न हो कि उनका छोटा भाई हरदौल उनकी गददी पर आसीन हो जाये इसी ईर्षा के कारण राजा ने हरदौल को विष देने का षड़यंत्र रचा और उसमें पूर्व के प्रसंग को भी यथावत रखकर सत्य से भ्रमित किया । चॅूंकि यह कारण ज्यादा प्रासंगिक नहीं माना गया है।

हरदौल की इस प्रकार मृत्यु से कुछ जनुश्रुतियां भी जुड़ी है जिसमें कहा गया है कि सेनापति हरदौल की विषाक्त भोजन से मृत्यु के बाद हरदौल लाला से जुड़े 7 सौ लोगों ने अपने प्राण त्याग कर हरदौल की मौत का विरोध कर राजा के प्रति मौन नाराजी व्यक्त की। हरदौल के समर्थन में सामूहिक 7 सौ लोगों के बलिदान ने तत्कालीन समाज को झकझोरकर रख दिया था और राजा जुझारसिंह के प्रति प्रजा का असंतोष सामने आया। दूसरी एक किवदंती यह भी मिलती है कि हरदौल की इस प्रकार की मृत्यु पर उनके पालतू कुत्ते एवं उनके कक्ष की साफ-सफाई में लगे मेहतर ने विषाक्त अवशिष्ट खाकर अपने प्राण त्याग दिये, जो आज भी हरदौल के चबूतरे के बाजू में उनके स्मृतिचिन्ह प्रमाणस्वरूप में देखे जा सकते हैं। इन घटनाओं के कारण ही हरदौल के प्रति लोगों की श्रद्धा जागृत हो गयी और उच्च एवं निम्न वर्ग के लोगों के लिये वे पूजनीय हो गये। एक सेनापति और राजा का भाई किसी देवत्व को प्राप्त करें तो इसके अंतरंग पहलु पर चिंतन भी आवश्यक है न कि उनके बाद उनके लिये त्याग-बलिदान करने वालों को उसका मापक माना जाये। हरदौल के जीवन की घटनाओं में जो भी तथ्य देखने को मिले उसमें सबसे महत्वपूर्ण देवर-भाभी का प्रेम और विष देने का प्रसंग है। देवर भाभी का यह प्रेम कोई दैहिक प्रेम नहीं बल्कि लौकिक प्रेम है जहाँ माँ और पुत्र के प्रेम की पावनता के दर्शन देवरभाभी के रूप में देखने को मिलता है। हरदौल ने सहज ही विषाक्त भोजन करना इसलिये स्वीकार किया था कि उनकी भाभी के पतिव्रत प्रेम और देवर के प्रति पुत्रवत वात्सल्य प्रेम की चर्मोत्कृष्टता धर्म के रूप में कायम रह सके इसलिये प्रेम की पवित्रता पर खरा उतरने के लिये हरदौल ने अपने जीवन का त्याग और बलिदान किया ताकि नाते-रिश्ते की मर्यादा तथा धर्म ओर संस्कृति अक्षुण्ण बनी रहे।

ओरछा राज्य सहित बुन्देलखण्ड के तत्कालीन घटनाक्रम में हरदौल लाला के देवत्व पद की ओर अग्रसर होने की शुरूआत तब शुरू हुई जब उनकी मृत्यु के बाद अनेक प्रसंगों में हरदौल की जीवित उपस्थिति देखी गयी जिससे लोगों को अचंभित किया कि आखिर वे भूत-प्रेत बनकर क्यों भटक रहे है? उनके मृत्युउपरांत सशरीर उपस्थितियों को समाज ने एक चमत्कार माना है। चमत्कारिक घटनाओं में प्रमाण मिलते हैं कि हरदौल ने प्रेत बनकर मुगलशासक के प्रतिनिधि हिदायत खान को इतना सताया कि आखिर वह ओरछा छोड़कर दिल्ली चला गया। एक आततायी मुगल प्रतिनिधि के प्रति हरदौल की बदले की भावना को बुन्देलखण्ड का समाज राष्ट्रहित से जोड़कर देखता है कि प्रेतरूप में हरदौल का यह कार्य देशप्रेम को दर्शित करता है तथा यह भी दर्शाता है कि मुगल बादशाह शाहजहाँ को हरदौल ने प्रेत बनकर कई बार पलंग से नीचे पटका तब वह भयभीत हो गया और हरदौल के विषय में जानकारी होने पर अपने राज्य के कई ग्रामों में हरदौल के चबूतरे बनवाये जिससे हरदौल का क्रोध शांत हुआ। जबकि कुछेक तर्क मिलते हैं प्रेत की शक्ति ओर प्रभाव के द्वारा बादशाह शाहजहाँ द्वारा हरदौल के चबूतरे बनवाने की बात मिथ्या है। वास्तविक रूप से हरदौल के चबूतरे बनवाने का श्रेय उन भक्तों को जाता है जो हरदौल में पूर्ण श्रद्धा और विश्वास रखते हुये उनके आदर्शों से प्रभावित होकर उन्हें देवता का स्थान देकर उन्हें पूजने लगे।

बुन्देलखण्ड में मामा का रिश्ता बड़ा पावन माना गया है जिसे हरदौल ने मृत्यु के पश्चात चमत्कृत रूप से बहिन के घर भात देकर और पावनता प्रदान की है। यह अलग बात है कि ब्रज के इतिहास में कंस माहिल और शकुनि मामाओं ने इसे कलंकित कर दिया, परन्तु आज भी भारत के अनेक प्रान्तों में मामा का स्थान माँ से बढ़कर है और उनके लिये भान्जे-भान्जियां संतान से बढ़कर है। शादी-विवाह में मामा के बिना वैवाहिक आयोजन अधूरा माना गया है इसलिये मामा महत्वपूर्ण हो गया है। राजा जुझारसिंह की बहिन कुंजकुंवरि अपनी बेटी के विवाह का निमंत्रण देने और भात मांगने ओरछा आई किन्तु उसने राजा जुझारसिंह को भाई हरदौल का हत्यारा मानकर निमंत्रण नहीं दिया। बहिन का हृदय अपने भाई लाला हरदौल के प्रति द्रवित हो उठा और उसने उस स्थान पर जहाँ हरदौल का दाहसंस्कार किया था वहाँ शादी का निमंत्रण देकर लौट आयी। दतिया में बहिन के घर शादी के दिन निश्चित समय पर सोने-चान्दी के आभूषणों एवं कीमती उपहारों व नवीन वस्त्रादि से लदी गाड़िया पहुंची जहां हरदौल अपनी बहिन की ससुराल पहुंचे और भांजी को यथोचित उपहार के साथ बहिन को भात व ससुराल को चीकट देकर तथा मेहमानों को भोजन परोसकर सबको अचंभित कर दिया। प्रेतावस्था में विवाह आयोजन में शामिल हुये हरदौल किसी को दिखाई नहीं दिये किन्तु उनकी आवाज सुनाई देती है और उनके द्वारा चीकट देते समय वस्त्र उठता-अर्पण करते दिखता है, भोजन परोसते समय परोसना दिखाई देता है किन्तु किसी मनुष्य के दर्शन नहीं होते हैं तब बहिन कुंजा द्वारा हरदौल से दर्शन देने की विनती पर हरदौल ने सभी को दर्शन देकर चमत्कृत किया।

एक सामान्य व्यक्ति के देवता बनने के पीछे देवर-भाभी के प्रेम की चर्मोत्कृष्टता है जहाँ इस प्रेम को अमरता प्रदान करने के लिये हरदौल अपना प्राणोत्सर्ग करते हैं तथा दूसरा वह चमत्कार है जहाँ हरदौल मृत्यु के बाद अपनी भान्जी की शादी में उपस्थित होते हैं, यही चमत्कार समाज के समक्ष देवता होने की आवश्यक शर्त को पूरी करते हैं। वैवाहिक आयोजन में इसी प्रेमपूर्ण निमंत्रण पर आने और चीकट देने तथा बहिन कुंजा द्वारा भाई हरदौल का हर विवाह आयोजन में ऐसे ही सहयोग देने का वचन देने व पूरा करने के कारण वैवाहिक आयोजनों में हरदौल की पूजा का प्रचलन शुरू हुआ और लोग अपने घरों में होने वाले वैवाहिक आयोजनों में विवाह का देवता के रूप में हरदौल लाला को पूर्ण श्रद्धा और भक्ति से निमंत्रित कर पूजने लगे तथा दूल्हा या दुल्हन माता पूजन के समय या बारात निकासी एवं आने के समय हर बार हरदौल को पान-बताशे की भेंट देने लगे और माना जाने लगा कि अगर लोकदेव हरदौल को पान का वीडा के साथ बतासे का भोग लगाये तो हरदोल लाला भोग लगाने वाले जोड़े का वैवाहिक आयोजन सफलता के साथ निर्विघ्न पूरा करते हैं। इस युग के मनुष्यों में हरदौल ऐसे देवता है जो पुराणों में नहीं है,शास्त्रों में नहीं, ऋषिमुनियों के वेदों में नहीं है, इनके द्वारा न कोई तपस्या की गई, न कोई यज्ञ किया गया, न कोई धर्म अपनाया ओर न ही अपना कोई धर्म चलाया गया है, न ही इन्होंने किसी दैत्य या राक्षस का वध किया है, न ही चेले चपाटी या सम्प्रदाय खड़ा किये हैं, बल्कि सही मायने में हरदौल देवत्व प्राप्त करने की ओर नहीं चले , वे न कुछ होना चाहते थे, एक राज्य के सेनापति रहते अपने कर्तव्यमार्ग पर अपनाया गया लोकाचरण उन्हें देवत्व प्राप्त होने की ओर ले गया वे तो देवत्व के पीछे चले थे परन्तु देवत्व उनके आगे चलकर प्रतिष्ठित हो गया। हरदौल का देवत्व पवित्र प्रेम से उत्पन्न हुआ है तभी गाँव-गाँव में इनके चबूतरे हैं। घर-घर में उनके गीत गूंजते हैं। आज हरदौल को गये चार सो साल से ज्यादा हो गये हैं विवाहों के गीतों में करूणा का प्रसंग लिये अनेक गीत एवं मांगलिक गीतों में हरदोल लाला की अनॅगूज इस लोक देवता को स्मरण रखती है और वैवाहिक आयोजनों की पूर्णता इस विवाह के देवता के बिना अधूरी ही है यही कारण है कि बुन्देलखण्ड के इस लोक देवता हरदौल लाला की गाथायें समाज के लिये अनुकरणीय और आदर्श चरित्र के रूप में प्रचलित है जिसे समाज द्वारा स्वीकार्य किया जाकर वैवाहिक आयोजनों में हरदौल को आमंत्रित करने और पान-बताशे की भेंट देकर अपने कार्यों की सिद्धि के रूप में फलीभूत देखा जाकर उन्हें विवाहों का देवता के रूप में प्रतिष्ठित किए हुये हैं।

--

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: पान-बताशे से प्रसन्न होने वाले विवाहों के देवता-हरदौल लाला : आत्माराम यादव पीव
पान-बताशे से प्रसन्न होने वाले विवाहों के देवता-हरदौल लाला : आत्माराम यादव पीव
https://1.bp.blogspot.com/-J14_qvVV3kA/XhyDctLQs6I/AAAAAAABQoA/Nr5qF9gdx54eellntOFzXeJMie1q-qFJQCK4BGAYYCw/s320/IMG_20191029_133317-760365.jpg
https://1.bp.blogspot.com/-J14_qvVV3kA/XhyDctLQs6I/AAAAAAABQoA/Nr5qF9gdx54eellntOFzXeJMie1q-qFJQCK4BGAYYCw/s72-c/IMG_20191029_133317-760365.jpg
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2020/05/blog-post_78.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2020/05/blog-post_78.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content