बाल उपन्यास - "मनीष और नर भक्षी" - भाग 3 : लेखिका - आभा यादव

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बाल उपन्यास "मनीष और नर भक्षी" लेखिका - आभा यादव प्रकाशक - विश्वविजय प्रकाशन, देहली. (लेखिका की अनुमति व सहयोग से प्रकाशित) -- पू...

बाल उपन्यास

"मनीष और नर भक्षी"

लेखिका - आभा यादव

प्रकाशक - विश्वविजय प्रकाशन, देहली.

(लेखिका की अनुमति व सहयोग से प्रकाशित)

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पूर्व के भाग -

भाग 1 / भाग 2 /

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पिछले अंक से जारी ...

भाग 3

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4

मनीष की आँख खुली तो उसे चिड़ियों के चहचहाना की आवाज सुनाई देने लगी. उसने अनुमान लगा लिया कि दिन निकल आया है . जिस झोपड़ी में वह बंद था उसमें काफी अंधेरा था. उसे चाय की याद आने लगी . अपने घर में उसे प्रातः ही चाय मिल जाती थी. चाय के साथ ही उसे अपनी मां की याद भी आने लगी. मां की याद आते ही उसकी आँखों में आँसू भर आये. उसकी इच्छा हो रही थी कि अभी भागकर अपने घर पहुंच जाए.

भागने की सोचते ही उसे नरभक्षी याद आ गए. एक झुरझुरी सी उठ गई उसके शरीर में. उसने सोचा नरभक्षियों से अच्छे तो यह जंगली हैं. कम से कम जान का खतरा तो नहीं है. लेकिन इन लोगों के साथ भी कब तक रहा जा सकता है. वह घर पहुँचने का उपाय सोचने लगा. एक बार उसने सोचा कि इन जंगली लोगों से ही घर पहुंचाने के लिए कहा जाए. लेकिन फिर उसने यह विचार त्याग दिया. उसे जंगलियों के व्यवहार की कोई जानकारी नहीं थी. उसे यह भी पता नहीं था कि यह जंगली उसे नरभक्षियों से क्यों छुड़ा लाये. ?अब उसका क्या करेंगे?उसे यह भी डर था कि उसके जाने की बात जानकार यह क्रुद्ध न हो जाए.

मनीष को कोई ऐसा रास्ता नहीं दिखाई दे रहा था जिसके सहारे वह घर पहुंच जाए. उसे लगने लगा कि शायद जिदंगी भर इन्हीं लोगों के साथ रहना पड़ेगा. इस विचार के आते ही उसकी आँखों में फिर आँसू भर आये.

अभी मनीष सोच विचार में डूबा ही था कि दरवाजे पर आहट सुनाई दी. वह चौंक गया. उसने जल्दी से आँखें साफ की.

दरवाजा खुलते ही एक जंगली ने अंदर प्रवेश किया. उसकी उम्र पैंतीस-छत्तीस साल के लगभग थी. आँखें एकदम लाल उनसे पानी वह रहा था. चेहरे से उदासी और परेशानी साफ झलक रही थी. देखने में वह बीमार मालूम दे रहा था. मनीष के पास आते ही उसे तेज खासी उठी. वह वहीं सिर थामकर बैठ गया. मनीष से रहा न गया. उसने जंगली के कंधे पर हाथ रख दिया. उसका बदन तप रहा था. कंधे पर हाथ का स्पर्श होते ही उसने अपना सिर ऊपर उठा लिया. अब वह प्रश्नसूचक दृष्टि से मनीष को देख रहा था.

"तबीयत ठीक नहीं है?"जंगली को अपनी ओर देखते पाकर मनीष ने स्नेह से पूछा.

"हां, सिर में दर्द है. बदन टूट रहा है. "


जंगली की आवाज सुनकर मनीष आश्चर्य में डूब गया. रात उसने जंगलियों की आवाज नहीं सुनी थी. वह समझ रहा था कि यह गूंगे हैं. लेकिन जंगली से उसने इस बारे में कुछ नहीं कहा. वह जंगली की सहायता करना चाहता था. उसकी इच्छा जंगली का विश्वास प्राप्त करने की भी थी. लेकिन उसे समझ नहीं आ रहा था कि उसकी सहायता कैसे करे?तभी उसे जेब में पड़ी विक्स की शीशी और पैरासिटामोल की याद आ गई जो मजाक में राबर्ट चाचाजी ने उसकी जेब में यह कहकर डाल दी थी-"पहली बार शिकार पर जा रहे हो. डर के मारे बुखार आये या सिर दर्द हो तो उपयोग कर सकते हो. "

उसने जंगली से कहा "लेट जाओ. मैं तुम्हें ठीक कर दूंगा. "

जंगली जहां बैठा था वहीं लेट गया.

"आँखें बंद करो. "जंगली के लेटते ही मनीष ने कहा.

जंगली ने तुरंत आँखें मूंद लीं.

मनीष ने जेब से विक्स की शीशी निकाली. उसमें से विक्स लेकर मनीष ने जंगली के माथे, गले और नाक के आस पास मालिश कर दी. अब उसने जेब से एक पैरासिटामोल की गोली निकाली और उसके छोटे छोटे टुकड़े कर हथेली पर रख ली.

"अब मुँह खोलो. "मनीष ने हथेली जंगली के होठों से सटाते हुए कहा.

जंगली ने मुँह खोल दिया.

मनीष ने पैरासिटामोल की पिसी हुई गोली उसके मुँह म़ें डाल दी. साथ ही लोटे से थोड़ा पानी उसके मुँह में डाल दिया. अब वह एक ओर बैठकर जंगली के उठने का इंतजार करने लगा.

पन्द्रह-बीस मिनट बाद जंगली उठा. उसने आश्चर्य से मनीष की ओर देखा. वह प्रसन्नचित्त भी लग रहा था. उसने स्नेह से मनीष के हाथ चूम लिए"प्यारे बच्चे 'तुम्हारे हाथ में जादू है. "

हालांकि जंगली के हाथ काफी गंदे और खुरदरे थे. फिर भी उसका स्नेह मनीष को अच्छा लगा.

उसने मुस्कुराते हुए पूछा, "अच्छे हो?"


"हां, अब मैं ठीक हूँ. तुमने क्या जादू किया. ?"जंगली ने उत्सुकता से पूछा.

यकायक मनीष के दिमाग में एक विचार कौंधा. यह जंगली अनपढ़ और असभ्य हैं. इनका विश्वास पाने के लिए थोड़ी होशियारी से काम लेना चाहिए.

उसने बताया"मेरे पास दुखदर्द दूर करने का मंत्र है. "

"सच!"जंगली ने आश्चर्य से कहा.

"हां, सही कह रहा हूँ. "

"क्या यह मंत्र बता सकते हो?"

"मेरे देवता की आन है यदि मैं किसी को बता दूंगा तो उसका असर खत्म हो जायेगा. "मनीष ने अपने शब्दों में विश्वास पैदा करते हुए कहा.

"तुमने जो मुझे खिलाया वह क्या था?"

"देवता का प्रसाद था. "

"थोड़ा सा हमें भी दे दो. "

"दूसरे के हाथ में पहुंच कर उसका असर खत्म हो जायेगा. "मनीष ने समझाया.

"तब रहने दो. तुम्हारे पास रहने से किसी और की तकलीफ भी दूर हो जायेगी. "जंगली ने बात समझते हुए कहा.

"तुम्हारा नाम क्या है?"मनीष ने परिचय बढ़ाने के उद्देश्य से पूछा.

"तांन्या. "

"बहुत अच्छा नाम है. "मनीष ने जंगली को खुश करने के उद्देश्य से कहा.


"तुम्हें पंसद आया?"तान्या ने खुश होकर कहा.

"हां, बहुत अधिक. "तान्या को खुश देखकर मनीष ने कहा.

वह तान्या को खुश करके उससे दोस्ती करना चाहता था.

"तुमने अपना नाम नहीं बताया. "तान्या ने कहा. उसे मनीष की बातें अच्छी लगने लगी थीं.

"मनीष, "मनीष ने अपना नाम बता दिया.

"म. . . नीष "तान्या ने कठिनाई से दोहराया.

"तुम्हें मेरा नाम पसंद नहीं आया?"

"अच्छा है. "

"मैं कैसा हूँ. ?"मनीष ने यूं ही पूछ लिया.

"तुम बहुत अच्छे हो. "

"फिर मेरा एक काम करोगे?मनीष ने तान्या के चेहरे पर नजर गड़ाते हुए कहा.

"क्या काम ?"तान्या ने उत्सुकता से पूछा.

"मुझे इस झोपड़ी से बाहर ले चलो. मेरा मन ऊब रहा है. "

"ओह, मुझे बातों में याद ही न रहा. मैं तुम्हें लेने ही आया था.

"मुझे लेने आए थे?किसने लेने भेजा था. "मनीष ने उत्सुकता से पूछा.


"सरदार ने. "तान्या ने संक्षिप्त सा उत्तर दिया.

"तुम मुझे कहां ले चलोगे?"मनीष अभी भी उत्सुक था.

"स्नान के लिए. "

मनीष ने संतोष की सांस ली. फिर बोला"चलो. "

झोपड़ी के बाहर आकर तान्या ने झोपड़ी का दरवाजा बंद कर दिया.

"नीचे चलें?"झोपड़ी का दरवाजा बंद हो जाने पर मनीष ने पूछा.

"हां"कहकर तान्या सीढ़ियां उतरने लगा.

मनीष तान्या के पीछे सीढ़ियां उतर रहा था. नीचे आकर उसने मनीष का हाथ पकड़ा और बांयी ओर चल दिया. मनीष ने कोई आपत्ति नहीं की. वह चुपचाप उसके साथ चलता रहा.

तान्या बस्ती के बाहर की ओर जा रहा था. मनीष आश्चर्य चकित सा बस्ती को देख रहा था. बस्ती का चप्पा-चप्पा शान्ति में डूबा हुआ था. सूरज की किरणें धरती को गुलाबी कर रही थीं. पक्षी भी भोजन की तलाश में चहचहाते हुए उड़ने लगे थे. लेकिन बस्ती में कहीं कोई दिखाई नहीं दे रहा था. जबकि रात मनीष ने यहां जंगलियों के ढ़ेरों परिवार देखे थे. मनीष ने सोचा, शायद यह अभी सोये हुए हैं. काफी देर तक तो मनीष अपनी उत्सुकता दबाये रहा. लेकिन जब न रहा गया तो उसने पूछ ही लिया, "बाकी सब लोग सो रहे हैं क्या?"

"नहीं, "तान्या ने बिना मुड़े जवाब दिया.

"फिर कहां गए. "मनीष ने उत्सुकता से पूछा.


"मनौती मांगने. "

"किससे?"मनीष ने उत्सुकता बढ़ गई थी.

"देवता से. "तान्या ने श्रद्धा से कहा.

"तुम नहीं गए. "मनीष ने पूछा.

"जाऊंगा. "तान्या ने चाल तेज करते हुए कहा.

मनीष भी तेज चलने लगा. बस्ती पीछे छूटने लगी थी. अब यह लोग गन्ने के खेतों से गुजर रहे थे.

गन्ने के खेत से निकलते ही मनीष को सामने नदी दिखाई दी. नदी के किनारे ढ़ेरों जंगली खड़े थे. सभी के चेहरे बस्ती की ओर थे. इस समय किसी के भी हाथ में कोई हथियार नहीं था. सभी खाली हाथ थे.

तान्या अब नदी की ओर बढ़ रहा था. उसकी चाल में अब और तेजी आ गई थी. तान्या के साथ चलते हुए मनीष उलझन में पड़ गया. वह अनुमान नहीं लगा पा रहा था कि उसे नदी पर क्यों ले जाया जा रहा है?यह लोग देवता से मनौती मांगेंगे. ?लेकिन वह वहां क्या करेंगे?उसकी इच्छा हुई कि इस बारे में तान्या से बात करे. लेकिन फिर कुछ सोचकर चुप रह गया.

नदी अब ज्यादा दूर नहीं रह गई थी. नदी किनारे खड़े जंगलियों के चेहरे साफ नजर आ रहे थे. सभी के चेहरों पर उत्सुकता थी. वे लोग तान्या और मनीष की ओर बढ़ गए. जैसे इनके स्वागत में खड़े हो.


मनीष और तान्या नदी किनारे जंगलियों के पास पहुंच गए. जंगलियों ने मनीष और तान्या को चारों ओर से घेर लिया. सरदार और सफेद मोतियों की माला वाली स्त्री सबसे आगे थे. सफेद मोतियों की माला वाली स्त्री के हाथ में एक थाल था. थाल में चार बत्तियों वाला दीपक जल रहा था. सरदार ने थाल में से सफेद सी राख उठाकर मनीष का तिलक कर दिया. सफेद मोतियों की माला वाली स्त्री ने मनीष की आरती उतारी. सरदार ने थाल में से दीपक उठाकर मनीष के हाथ में थमा दिया.

"इसका क्या करुं ?"मनीष ने तान्या से पूछा.

तान्या ने कोई उत्तर नहीं दिया. बस नदी की ओर चलने का इशारा किया.

मनीष एक बार फिर उलझन में पड़ गया था. वह निर्णय नहीं ले पा रहा था कि इन लोगों के साथ नदी की ओर चले या नहीं. लेकिन इतने जंगलियों के बीच वह अपनी इच्छा से कुछ कर भी नहीं सकता था. उसने तान्या का कहना मान लेने में ही अपनी भले समझी. वह तान्या के साथ नदी की ओर बढ़ गया. मनीष के बायीं ओर तान्या चल रहा था. दाहिनी ओर सरदार चल रहा था. बाकी सभी लोग इन लोगों के पीछे चल रहे थे.

नदी में उतर कर तान्या ने दीपक नदी में बहा देने का इशारा किया. मनीष ने दीपक नदी में बहा दिया. पानी पर तैरता हुआ दीपक आगे बढ़ गया. दीपक के नदी में तैरते ही तान्या ने मनीष का बायाँ हाथ पकड़ कर सरदार के दाहिने हाथ में दे दिया. इसके साथ ही सरदार ने मनीष को पकड़ कर नदी में डुबकी लगाई. मनीष इस स्थिति के लिए तैयार न था. मनीष घबरा गया. तान्या ने भी नदी में डुबकी लगाई. अगले ही पल सरदार मनीष सहित पानी से ऊपर आ गए.

मनीष ने पानी से भीगा चेहरा साफ किया. अब सभी जंगली नदी में नहा रहे थे. वातावरण में केवल छपाक-छपाक का शोर था. सभी जंगली खामोश थे. बीच -बीच में खांसी और छींकों का दौर चलता. कभी कोई जंगली नदी से निकल कर कै करने लगता. मनीष को सभी जंगली उदास और बीमार लग रहे थे. सरदार ने अब मनीष का हाथ छोड़ दिया था. सभी नदी में स्नान कर रहे थे. सूरज की किरणों में मनीष को नहाना अच्छा लग रहा था. वह भी पानी में डुबकी लगाने लगा.

नहाते-नहाते मनीष के मन में एक विचार कौंधा, तैरता हुआ यहां से दूर भाग जाये. उसे विश्वास था कि वह तेजी से तैरता हुआ यहां से दूर निकल जाएगा. तैराकी प्रतियोगिता में वह हमेशा जिले में प्रथम आता रहा है. फिर उसने तैर कर भागने का विचार त्याग दिया. उसे घर पहुंचने की सही दिशा भी नहीं पता थी. यदि तैरते-तैरते फिर नर भक्षियों के हाथ पड़ गया तब? इस विचार के आते ही मनीष ने भागने का इरादा बिल्कुल त्याग दिया.


पानी में काफी देर नहाने के बाद मनीष का मन भर गया . वह नदी से बाहर निकल आया. मनीष के नदी से बाहर आते ही, सरदार और तान्या भी नदी से बाहर निकल आए. सरदार के पीछे सभी जंगली भी नदी से बाहर आ गए.

नदी के बाहर खड़ा मनीष कपड़ों के बारे में सोच रहा था. कमीज तो वह नदी में प्रवेश करने से पहले ही उतारकर गया था. लेकिन, पैंट गीली हो गई थी. वह पैंट के बारे में सोच ही रहा था. तब तक तान्या ने हिरन की खाल उसके कंधे पर डाल दी. मनीष ने हिरन की खाल कमर लपेट ली. पैंट निचोडकर कर मनीष ने कंधे पर डाल ली. अब वह अगली कार्यवाही का इंतजार कर रहा था.

सब जंगलियों ने कपड़ें बदल लिए तो तान्या ने मनीष को चलने का इशारा किया. सरदार ने मनीष को अपने और तान्या के बीच कर लिया. सरदार, मनीष और तान्या के पीछे अन्य जंगली थे. अब वे बस्ती की ओर जा रहे थे.

गन्ने के खेतों को पार करके सरदार ने बस्ती में प्रवेश नहीं किया. वह दाहिनी ओर घूमकर बस्ती के बाहर -बाहर चलने लगा. थोड़ी दूर चलने के बाद मनीष को एक छोटा सा टीला दिखाई दिया. टीले पर चार बत्तियों वाला दीपक चल रहा था. टीले के पास ही सात बड़ी -बड़ी हांड़ियां एक पंक्ति में रखी थीं. जिनमें से भाप उठ रही थी. मनीष इन हांडियों को उत्सुकता से देखने लगा. वह अंदाजा नहीं लगा पा रहा था कि इन हांडियों में क्या होगा?

टीले के पास पहुंच कर सरदार और तान्या रूक गए. मनीष को भी रूक जाना पड़ा. मनीष के रुकते ही सारे जंगली टीले के चारों ओर एकत्र हो गए. तान्या और सफेद मोतियों की माला वाली स्त्री हांड़ियों की ओर बढ़ गए. सरदार अभी भी मनीष के पास खड़ा था. हांडियों के पास पहुंच कर तान्या ने प्रत्येक हांडी में से पीले रंग का पदार्थ निकाल कर एक थाल में रख दिया. इस पीले रंग के पदार्थ में से भाप उठ रही थी. मनीष ध्यान से थाल में रखे पदार्थ को देखने लगा.


[6:24 PM, 5/5/2020] +91 70887 29321: थाल उठा कर सफेद मोतियों की माला वाली स्त्री मनीष के पास आ गई. तान्या भी स्त्री के पीछे वापस आ गया. सरदार ने मनीष को अपने और तान्या के बीच में कर लिया. सफेद मोतियों की माला वाली स्त्री सरदार के ठीक पीछे थी. उसके हाथ में थाल था. मनीष ने थाल में रखे पदार्थ को ध्यान से देखा. थाल में पीले रंग के चावल थे. जो सात जगह रखे हुए थे. मनीष ने अनुमान लगा लिया कि यह मीठा चावल है. क्योंकि कल रात उसे इसी तरह का चावल खाने को दिया गया था.

तान्या ने मनीष को चलने का इशारा किया. मनीष ने कोई विरोध नहीं किया. वह जानता था इन लोगों के बीच विरोध करने से कोई लाभ नहीं होगा. हालाँकि इन लोगों ने अभी तक उसे कोई हानि नहीं पहुंचायी थी. फिर भी वह उलझन में था. प्रत्येक कार्य में उसे आगे किया जा रहा था. वह अपने को इतना महत्व देने का कारण नहीं समझ पा रहा था.

टीले के चारों ओर एक फेरा पूरा होते ही तान्या रूक गया. सरदार और सफेद मोतियों की माला वाली स्त्री भी रूक गए. मनीष को भी रुक जाना पड़ा. अब सरदार ने थाल में से एक जगह का चावल उठा कर मनीष के हाथ पर रख दिया. मनीष ने प्रश्नसूचक दृष्टि से तान्या की ओर देखा. तान्या ने संकेत से बताया कि वह चावल टीले पर चढ़ा दे. मनीष ने हाथ में रखा चावल टीले पर चढ़ा दिया. इसी प्रकार मनीष ने तान्या और सरदार के साथ टीले के सात चक्कर लगाए. प्रत्येक फेरे पर उसने थाल में रखा चावल चढ़ाया.

सात फेरे पूरे होते ही तान्या और सफेद मोतियों की माला वाली स्त्री हांडियों की ओर बढ़ गये. इसके साथ ही सारे जंगली देखते ही देखते टीले के पास एक पंक्ति में बैठ गए. लेकिन पंक्ति में बैठते हुए भी कोई शोर शराबा नहीं हुआ था. सभी के कदम सदे हुए थे. किसी के अंदर कोई हड़बड़ी नहीं थी. जंगलियों के बैठते ही तान्या ने एक -एक पत्तल सरदार और मनीष के आगे रख दी. यह पत्तलें पीपल के पत्तों को आपस में जोड़कर बनाई गई थी . सफेद मोतियों की माला वाली स्त्री ने थाल में से मीठा चावल मनीष और सरदार के आगे रखी पत्तलों में रख दिया.

तान्या पंक्ति में बैठे जंगलियों के आगे पत्तल रखता जा रहा था. सफेद मोतियों की माला वाली स्त्री पत्तल पर मीठे चावल रख रही थी. सारा कार्य बिना बोले चल रहा था. सभी खामोश थे. किसी को भी किसी प्रकार का उतावला पन नहीं था. मनीष आश्चर्य से इन लोगों को मशीन की भाँति कार्य करते देख रहा था.

सा री पत्तलों पर मीठा चावल रखा जा चुका था. तान्या ने मनीष को चावल खाने का इशारा किया. मनीष पल भर के लिए झिझका लेकिन भूख के मारे उसका बुरा हाल था. समय भी काफी हो चुका था. उसने थोड़ा सा चावल मुँह में रखा. उसके चावल खाते ही सरदार ने भी खाना शुरू कर दिया. अब सभी लोग चावल खा रहे थे. तांन्या और सफेद मोतियों की माला वाली स्त्री सभी को पानी देने का कार्य कर रहे थे.


मनीष को चावल का स्वाद अच्छा नहीं लग रहा था फिर भी वह पेट भरने की कोशिश कर रहा था. इसके बाद दोबारा कब खाना मिलेगा. इसका उसे कोई पता नहीं था. धीरे धीरे चावल खाते हुए वह चारों ओर का निरीक्षण करने लगा. टीले से कुछ हट कर प्याज का एक बड़ा ढेर लगा था. जिसमें से कुछ प्याज उगने भी लगे थे. प्याज के इस ढेर को देखकर अनुमान लगाया जा सकता था कि यह लोग इसका उपयोग नहीं करते हैं. टीले के बायीं ओर गन्ने के खेत थे. शायद कुछ देर और उसकी निगाहें खेतों में उलझी रहती, लेकिन कुछ जंगलियों के उल्टी करने से उसका ध्यान बंट गया. उसकी निगाहें खेतों से हटकर जंगलियों के चेहरे पर टिक गई. कुछ जंगलियों को उबकाई आ रही थी. दो जंगली बच्चे उल्टी और दस्त से निर्जीव हो गए थे. वह इन लोगों की सहायता करना चाहता था, लेकिन उसे समझ नहीं आ रहा था कि कैसे सहायता करे?

अचानक मनीष को ध्यान आया कि हैजा होने पर उस की दादी मां प्याज का अर्क निकाल कर पिलाती थीं. उसने देर नहीं की. वह अपने आगे रखा पानी का बर्तन लेकर प्याज के ढ़ेर की ओर दौड़ गया. उसके भागते ही तान्या और सरदार भी उसके पीछे भागने लगे. मनीष ने इन लोगों की कोई परवाह नहीं की. वह भागता हुआ सीधे प्याज के ढेर के पास पहुंच गया. उसने शीघ्रता से आठ दस प्याज के छिलके साफ किए. फिर उसने इन प्याज को कुचल कर उनका अर्क पत्थर के बर्तन में एकत्र किया . यह सब उसने बहुत तेजी के साथ किया. मनीष प्याज का अर्क लेकर मुड़ने को हुआ. लेकिन इससे पहले ही वह तान्या और सरदार की पकड़ में था. दोनों ने उसकी बांह कसकर पकड़ रखी थी. उनकी आँखों में क्रोध तथा आश्चर्य के मिले जुले भाव थे.

मनीष ने बारी-बारी तान्या और सरदार की ओर देखा. फिर धीरे से बोला, 'मुझे छोड़ दो. "

"तुम्हें छोड़ दिया तो हमारा देवता नाराज हो जायेगा. "तान्या के स्वर म़े भय तथा नाराजी थी.

"तुम्हारा देवता अब खुश है, उसने मुझसे तुम्हारी तकलीफें दूर करने को कहा है. "मनीष ने बात बनाते हुए कहा.


सरदार तथा तान्या आश्चर्य से मनीष की ओर देख रहे थे. उन्हें मनीष की बात पर विश्वास नहीं हो रहा था.

"मेरे हाथ में यह देवता का प्रसाद है . इसे परेशान लोगों को देने दो. "प्याज का अर्क दिखाते हुए मनीष ने कहा.

तान्या की आँखों में विश्वास के भाव जागे. उसने सरदार को कुछ इशारा किया. अगले पल मनीष मुक्त था. लेकिन तान्या और सरदार अभी भी उसके दांये-बांये चल रहे थे.

बीमार बच्चों के पास पहुंच कर मनीष ने कै करते बच्चों के मुँह में प्याज का रस डाल दिया. कुछ अर्क उबकाई करते जंगलियों को भी दिया. कुछ ही समय गुजरा था

कि कै करते जंगलियों के मुरझाए चेहरे सुधरने लगे. हालत

में सुधार होते देख कर थोड़ा -थोड़ा अर्क इन लोगों को और दे दिया. सभी जंगली आश्चर्य से मनीष को देख रहे थे. मनीष ने एक बार इन जंगलियों की ओर देखा फिर अपनी पत्तल की ओर बढ़ गया.

मनीष के पत्तल पर बैठते ही सब अपनी अपनी पत्तल पर बैठ गए. जिन लोगों को उबकाई आ रही थी वे अब स्वस्थ थे.

चावल खाकर मनीष ने पत्तल एक ओर खिसका दी. इसके बाद वह उठ खड़ा हुआ.

मनीष के उठते ही सरदार सहित सारे जंगली पत्तल छोड़कर उठ गए. इस बीच तान्या और सफेद मोतियों की माला वाली स्त्री भी खाना खा चुके थे.

मैं तुम्हारी बस्ती में घूमना चाहता हूं. "मनीष ने तान्या से कहा.


"देवता की आज्ञा के बिना तुम्हें छोड़ा नहीं जा सकता. "सरदार ने कठोरता से कहा.

मनीष सरदार के कठोर स्वर सुनकर घबरा गया. लेकिन उसने धैर्य नहीं खोया. यहां से बचकर निकलने के लिए इनका विश्वास पाना आवश्यक था. लेकिन उसे ऐसी कोई युक्ति नहीं सूझ रही थी कि इन लोगों का विश्वास पा ले.

"आज पूरे चांद की रात है. बिना चांद की रात तक तुम्हें ऐसे ही रहना होगा. "सरदार ने अपने शब्दों पर जोर देकर कहा.

सरदार की बात सुनकर मनीष का चेहरा खुशी से चमक गया. आज पूर्णिमा है. यानी 22सितंबर. इसी तारीख को चन्द्र ग्रहण पड़ना है. मनीष ने अंधेरे में तीर मारा, "यदि तुम लोग मुझे बांध कर रखोगे तो तुम्हारा देवता नाराज हो जायेगा. वह गुस्से में चांद खा जायेगा. "

मनीष की बात सुनते ही तान्या और सरदार के चेहरे उतर गए.

"यदि तुम लोगों को विश्वास नहीं है तो मुझे झोंपड़ी में बंद कर दो . रात को तुम्हारा देवता चांद खा जायेगा. "मनीष ने तीर ठिकाने पर लगते देखकर कहा.

"ठीक है. यदि तुम्हारी बात सही हुई तो तुम्हें कल से बंधन मुक्त कर देगें. "कहते सरदार ने मनीष की बांह कस कर पकड़ ली.

अब मनीष तान्या और सरदार की पकड़ में था. फिर वे लोग बस्ती की ओर चल दिए. बाकी सभी लोग इनके पीछे थे.

बस्ती में पहुंच कर मनीष को उसी झोंपड़ी में बंद कर दिया. जिसमें वह कल रात रहा था. मनीष ने झोंपड़ी में बंद होने में कोई आपत्ति नहीं की. उसे विश्वास था रात को चन्द्र ग्रहण देख कर यह लोग उसकी बात पर अवश्य विश्वास कर लेगें.


झोंपड़ी बंद करके सभी जंगली अपने अपने काम पर चले गए.

रात ढ़ल चुकी थी. चांद की तेज रोशनी में पूरी बस्ती नहाई हुई थी. तान्या, सरदार और सफेद मोतियों की माला बाली स्त्री चांद पर निगाहें गड़ाये बैठे थे. शेष जंगली भी सो नहीं रहे थे. रात बढ़ती जा रही थी. किसी की आँखों में नींद नहीं थी. सभी के मन में एक उत्सुकता थी कि देवता चांद खाये गा या नहीं?"

बच्चे भी कम उत्सुक नहीं थे, वे झोपडियों के आगे झुंड में खड़े जंगलियों के बीच खड़े हो गए. कटे चांद को देखने के लिए सभी की निगाहें आसमान पर टिकी हुई थी. सभी उतावले थे. लेकिन कोई शोर शराबा नहीं था. जब चुप्पी टूटती तो झुंड में से कोई जंगली पूछ उठता, "देवता चांद खा गया तो क्या होगा. ?

"सरदार लड़के को छोड़ देगा. "दूसरा जंगली बोला.

"छोड़ने के बाद लड़का भाग गया तो देवता नाराज नहीं होगा. '"एक अन्य जंगली ने संशय प्रकट किया.

"भागेगा नहीं. वह तो हमारी तकलीफों को दूर करने आया है. "एक जंगली ने विश्वास के साथ कहा.

"लगता है देवता का भेजा हुआ है. "

"तभी तो आज उसने कितने लोगों की तकलीफें दूर कर दीं. "एक अन्य जंगली ने हां में हां मिलाई.

"क्या देवता चांद को खा जायेगा?"पास खड़े एक बच्चे ने हवा में प्रश्न उछाला.


बच्चे के प्रश्न के साथ ही सबकी उत्सुक निगाहें चांद की ओर उठ गई. अगले ही पल सबके होठों पर एक चीख भरी आवाज थी, "देवता चांद को खा गया. "

चन्द्र ग्रहण पड़ने लगा था. चांद का काफी हिस्सा छुप चुका था.

"सरदार के पास चलो. "कहते हुए सभी जंगली सरदार की झोंपड़ी की ओर भागने लगे.

सरदार की झोंपड़ी की ओर भागते हुए जंगलियों ने देखा कि सरदार, तान्या और सफेद मोतियों की माला वाली स्त्री मनीष की झोंपड़ी की ओर भाग रहे हैं.

तान्या जल्दी करो. "बदहवास से भागते हुए सरदार ने कहा.

"सरदार, हमें लड़के की बात पहले ही मान लेनी चाहिए थी. "तान्या ने अपनी सांसों पर काबू पाते हुए कहा.

"मुझे लड़के की बात पर विश्वास नहीं हुआ था. "सरदार ने अपने पैरों में गति लाते हुए कहा.

"शायद सभी ने चांद देख लिया है. "अपने पीछे कदमों की आवाजें सुनकर सफेद मोतियों की माला वाली स्त्री ने कहा.

"हां, मनका. "सरदार इससे जायदा कुछ न कह सका. भय के मारे उसका चेहरा सफेद पड़ रहा था.

मनीष की झोंपड़ी के पास पहुंच कर सरदार, तान्या और मनका तेजी से सीढियां चढ़ गए.


सारे जंगली मनीष की झोंपड़ी के आगे एकत्र हो गए. सभी घबराये हुए थे. उनके चेहरों पर हवाईयां उड़ रही थी. सभी के होठों पर एक ही सवाल था, "देवता ने चांद को नहीं छोड़ा तब क्या होगा. "

अंधेरा बढ़ते ही मनीष को नींद आ गई थी. बाहर शोर सुनकर उसकी आँख खुल गई. वह चौंक कर उठ बैठा. पल भर के लिए वह घबरा सा गया. न जाने क्या होने बाला है. ?लेकिन उसे यह विश्वास भी कि चंन्द्र ग्रहण देखकर जंगली उसकी बात पर विश्वास कर लेगें. मनीष अपने विचारों में उलझा हुआ था . इसी बीच झोंपड़ी का दरवाजा खुल गया. दरवाजा खुलते ही सरदार, तान्या और मनका ने मनीष के पांव पकड़ लिए. मनीष घबरा कर पीछे हट गया.

"देवता नाराज हो गया. उसने चांद खा लिया. "सरदार बुरी तरह हांफ रहा था.

"देवता को मना लो. वह हम सबको मार डालेगा. "मनका ने गिड़गिड़ाते हुए कहा.

"देवता को मना दो हम तुम्हें मुक्त कर देगें. "तान्या ने मनीष के पांव कसकर पकड़ लिए.

मनीष को सारी स्थिति स्पष्ट हो गई. वह समझ गया कि चन्द्र ग्रहण पड़ रहा है. इन लोगों को उसकी बात का विश्वास हो गया है.

झोपड़ी के बाहर से आवाजें आ रही थीं.


"सरदार, देवता नाराज हो गया. "

"देवता ने चांद खा लिया. "

"सरदार, हम सबको बचाओ. "

"देवता हम लोगों को मार डालेगा. "

झोंपड़ी के बाहर की आवाजें सरदार का दिल दहला रही थीं. वह मनीष के आगे गिड़गिड़ा रहा था. मनीष अभी टाल रहा था . वह चाहता था कि यह लोग उसकी बात पूरी तरह मान ले .

"बच्चे, हमें बचा लो. हम सब मर जायेंगे. "मनका की आँखों से आँसू बह रहे थे. सरदार और मनका का बुरा हाल था.


(क्रमशः अगले अंकों में जारी...)

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रचनाकार: बाल उपन्यास - "मनीष और नर भक्षी" - भाग 3 : लेखिका - आभा यादव
बाल उपन्यास - "मनीष और नर भक्षी" - भाग 3 : लेखिका - आभा यादव
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