सोमेश शेखर चन्द्र का यात्रा संस्मरण : एवरेस्ट का शीर्ष - 4

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एवरेस्ट का शीर्ष - सोमेश शेखर चन्द्र ( पिछले अंक से जारी ....) थोड़ी देर चलने के बाद, मैंने देखा कि एक काफी बड़ा मोटा और पिलंद क...



एवरेस्ट का शीर्ष
- सोमेश शेखर चन्द्र

(पिछले अंक से जारी....)

थोड़ी देर चलने के बाद, मैंने देखा कि एक काफी बड़ा मोटा और पिलंद कुत्ता, मेरी तरफ बढ़ा चला आ रहा है। येल्लो एक और कुत्ता। अमरीका में कुत्ते, छुट्टा छोड़ने की किसी को भी इजाजत नहीं है। यदि कुत्ता किसी ने खुला छोड़ दिया, और वह किसी को काट खाया, और उस आदमी ने इसकी शिकायत पुलिस से कर दिया तो कुत्ते के मालिक को भारी जुर्माना भरने के साथ साथ जेल की हवा भी खानी पड़ सकती है इसलिए यहाँ पर कोई भी अपना कुत्ता खुला नहीं छोड़ता। यहाँ कुत्ता खुला नहीं छोड़ने के पीछे, एक और भी बड़ा कारण है वह यह कि, अगर कुत्ते ने बाहर कहीं टट्टी कर दिया, तो कुत्ता मालिक को इसके लिए बड़ा जुर्माना भरना पड़ जाएगा। वैसे भी, यहाँ के लोग, साफ सफाई के प्रति इतने सावधान होते हैं कि न तो खुद, कागज की एक चिंदी तक, सड़क पर या दूसरी किसी जगह फेंकते हैं और न ही फेंकने वाले को वे बर्दाश्त ही करते हैं, इसीलिए, जब वे अपना कुत्ता लेकर कहीं बाहर निकलते हैं तो उसके गले में जंजीर पहना देते हैं और उसे अपने हाथ में पकड़े चलते हैं। साथ में वे एक खुरपी और पालिथीन की बैग भी लेकर चलते हैं। कोई कुत्ता यदि कहीं पर टट्टी कर देता है तो वे उसका मल, खुरपी से उठाकर, पन्नी में डाल लेते हैं और उसे अपने घर ले जाते हैं या जहाँ कूड़ादान दिखा उसमें डाल देते हैं।

खैर, वह कुत्ता, जो मेरी तरफ बढ़ा आ रहा था उसके गले में, न तो जंजीर थी और न ही उसका मालिक ही उसके साथ था। वह एकदम छुट्टा था। कुत्ते को तेजी से अपनी तरफ आता देख, मेरा तो खून ही सूख गया था। उस जैसे कुत्ते से दौड़ लगाकर भाग निकलना अच्छे अच्छे दौड़ाकों के बस का नहीं था तो मेरी क्या औकात थी जो मैं भागकर उससे अपनी जान बचाता और वैसे वियाबान में गुहार लगाने पर मेरी वहाँ कोई सुनने वाला भी नहीं था। कुत्ते की जैसी ड़ील डौल थी, उससे लड़कर मैं उसे परास्त कर दगा उतनी ताकत भी मुझमें नहीं थी। इस सबके चलते, कुत्ते को अपनी तरफ आता देखकर उतनी सर्दी में भी, डर के मारे मैं पसीने पसीने हो उठा था। जब मैंने देखा था कि कुत्ते से बचने के लिए मेरे पास कोई उपाय नहीं है सिवाय खड़ा होकर उससे नुचने के तो मैं एक जगह, अपनी सॉस थामकर खड़ा हो गया था। कुत्ता मेरे पास पहुँचकर, ठीक मेरे सामने आकर खड़ा हुआ था और किसी पुलिस आफिसर की तरह मुझे ऊपर से नीचे तक, एक दफा देख गया था। दूसरे कुत्तों की तरह, न तो वह मुझ पर भौंका था और न ही गुर्राया था। किसी आत्मीय बुजुर्ग की तरह वह, थोड़ी देर तक मेरी ऑखों में ताकने के बाद मेरा रास्ता छोड़कर आगे बढ़ गया था। कुत्ते का उस समय, मेरे साथ का वह व्यवहार, कुछ इस तरह का था जैसे मेरा कोई हितैषी मुझे परेशानी में पड़ा हुआ देखकर मेरे पास आया हो और मेरी हाल पर, अपनी सहानुभूति जताने के साथ, साथ मुझे उस स्थिति से उबरने में, मेरी कोई भी मदद न कर पाने की अपनी असमर्थता प्रकट करके, बड़े दुखी मन से वहाँ से हट लिया हो। एक जानवर इतना सुसभ्य आत्मीय और शालीन हो सकता है यह बात, आज भी मेरी कल्पना से परे है। अपने साथ कुत्ते का, वैसा व्यवहार देखकर मैं एकदम से हैरान था। वह कुत्ता आज भी रह रहकर मुझे याद आता है। आत्मीयता से सराबोर और इस बात के लिए मुझे आश्वस्त करती उसकी आँखें, कि मुझसे, तुम्हें डरने की कोई जरूरत नहीं है साथ ही उस विपत्ति की घड़ी में मेरी कोई भी मदद न कर पाने से उसका दुखी हो उठना, उसके रोए रोएं से टपकी पड़ रही शालीनता और बड़प्पन, याद आते ही, उसके प्रति श्रद्धा से मेरा मन भर उठता है।

कुत्ते के वहाँ से हट लेने के बाद, मैं फिर सड़क पर चलना शुरू कर दिया था और थोड़ी ही दूर चलने के बाद मुझे, घर के सामने, टहलती, एक अधेड़ उम्र की महिला दिख गई थी। मैं उसके पास जाकर उससे अपने भटके होने की बात बताने के साथ साथ, यह भी बताया था कि मेरा घर फलां स्ट्रीट पर है और वह ठीक स्कूल के पास है क्या आप बता सकती है कि उस स्कूल को जाने का रास्ता कौन सा है? जिस तरह थोड़ी देर पहले जब मैंने उस लड़के से अपने घर का रास्ता पूछा था तो वह मुझसे बुरी तरह डर गया था ठीक उसी तरह, मैं जब उस भद्र महिला से अपने घर का रास्ता पूछा था तो वह भी डर के मारे एकदम से सहम गई थी और इसके साथ अपना सिर जमीन की तरफ गोदकर चलते चलते मुझे नहीं पता, है आप किसी के घर की घंटी बजाकर उससे पूछ लीजिए, कहकर वह सीधा अपने घर में घुस गई थी। दरअसल महिला मुझे कोई चोर या उचक्का समझ बैठी थीं। अमरीका में किसी के घर की घंटी बजाकर, उसका घर खुलवाने का मतलब है अपनी जान से हाथ धोना। भारत में, जिस तरह लोग, किसी के भी घर की घंटी बजाकर उससे उसका घर खुलवा लेते हैं, या अपने मित्रों और सगों के घर, जब जी में आया, और दिन या रात के किसी भी पहर, बिना किसी इत्तिला के पहुँच लेते हैं वैसा अमरीका में नहीं होता। यहाँ पर किसी को अपने किसी सगे या धनिष्ठतम मित्र तक के यहाँ भी जाना होता है तो, उसके यहाँ जाने के पहले, वह जब तक उसकी इजाजत नहीं पा लेता, तब तक उसके घर नहीं जाता। यहाँ के ऐसा सिस्टम के होने के पीछे, कई कारण है। पहला कारण तो यह कि यहाँ के लोगों को, बिना इजाजत के, उनकी जाती जिंदगी में, किसी की भी दखल पसंद ही नहीं है, दूसरे यहाँ के लोग, अपनी सुरक्षा को लेकर बेहद सतर्क रहते हैं। इसके लिए यहाँ पर हर घर में लोग, सुरक्षा के कई तरह के उपकरण लगवाकर रखते हैं। ऐसे उपकरण कि यदि कोई अदना सी बिल्ली भी उनके घर के नजदीक पहुंच जाए तो भीतर लगे उपकरण घनघनाने लग जाते हैं। यहाँ के ज्यादातर लोग अपने घरों में दो दो तीन कुत्ते तक पाल कर रखते हैं इसके पीछे कुत्तों से उनका शौक, एक बड़ा कारण तो है ही कुत्ते, उनकी जान और माल दोनों की हिफाजत करते हैं, इसका दूसरा अहम कारण यह भी है। सुरक्षा के कारणों के चलते ही, यहाँ पर घातक से घातक हथियार, दूकानों में गाजर मूली की तरह बिकने के लिए रखे हुए होते हैं और यहाँ की सरकार हथियारों के रखने पर, किसी पर किसी भी तरह का कोई प्रतिबंध नहीं लगाई है। इसीलिए यहाँ के सिस्टम के जानकार या कोई अजनबी, यहाँ पर किसी के घर की घंटी बजाकर उसका दरवाजा नहीं खुलवाता। ऐसा करने पर यदि घर वाले ने उस पर गोली दाग दिया तो कानून उसे कोई सजा नहीं देता। उस महिला ने, शायद मुझे कोई चोर उचक्का ही समझा था इसीलिए उसने मुझसे किसी के घर की घंटी बजाकर, उससे अपने घर का रास्ता पूछ लेने को कहा था जिससे कि वह मुझे, गोली मारकर मेरा काम वही तमाम कर दे। उस महिला के कहने पर, जिस तरह मैं उस समय परेशान था मेरे मन में एक दफा आया था कि, किसी घर की घंटी बजाकर उस घर के आदमी से अपने घर का रास्ता पूछ लूं और वैसा करने के लिए मैं एक घर की तरफ बढ़ा भी था लेकिन फिर पता नहीं किस दैवी प्रेरणा ने मुझे वैसा करने से रोक दिया था। इसके बाद मैं वहाँ से चलकर थोड़ा आगे गया तो देखा तीन चार आदमी, पैदल ही मेरी तरफ चलते चले आ रहे है। उनके पास पहुँचने पर मैंने उनसे स्कूल का रास्ता पूछा तो वे मुझे उसका रास्ता बता दिए थे।

अमरीका में, अगल-बगल के घरों में, दो पड़ोसी वर्षों से रह रहे होते हैं, लेकिन दोनों के बीच, शायद ही कभी बात चीत होती होगी। बगल वाला, यदि अकेला हुआ और किसी कारण, उसकी मृत्यु हो गई, तो उसकी लाश घर में पड़े पड़े ही सड़ जाएगी लेकिन उसका पड़ोसी, उसके घर में झांक कर यह तक जानने की कोशिश नहीं करेगा कि आदमी इतने दिनों से दिख क्यों नहीं रहा है, वह आखिर गया कहाँ? कहीं उसे कुछ हो तो नहीं गया? यहाँ सबको सिर्फ अपने से मतलब होता है दूसरे के बारे में जानने या उसकी जाती जिंदगी में ताक-झांक करने की यहाँ के लोगों की आदत ही नहीं है। यहाँ के लोगों का ऐसा रवैया इसलिए नहीं है कि वे पूरी तरह से आत्मकेन्द्रित और स्वार्थी लोग होते हैं ऐसा वे इसलिए रहते हैं कि उन्हें उनकी अपनी जिंदगी में किसी का ताक-झांक करना न तो पसन्द है और न ही वे ऐसा करने की किसी को इजाजत ही देते हैं। पति पत्नी और बच्चे यही उनकी पारिवारिक इकाई है, और इसी के इर्द-गिर्द उनका जीवनचक्र केन्द्रित होता है। हमारे यहाँ के लोगों के भीतर की यह धारणा है कि यहाँ के बच्चे बच्चियाँ, इतने कृतघ्न और स्वार्थी होते हैं कि शादी हो जाने के बाद वे अपने माँ-बाप को पूछते ही नहीं है और उन्हें मरने के लिए एकदम, अकेला छोड़ देते हैं। यह उनकी एकदम गलत धारणा है। हमारे यहाँ पारिवारिक व्यवस्था है और हमारे सिस्टम में बुजुर्गों की सारी जिम्मेदारी, उनके बच्चों के ऊपर होती है लेकिन अमेरिका में वैसा सिस्टम है ही नहीं। यहाँ पर स्वतंत्र, आत्मनिर्भर और सीना तानकर अपना जीवन जीने का सिस्टम है इसलिए यहाँ की माएँ ही अपने साथ अपनी बहुओं को रखना पसन्द नहीं करती और बच्चों के सक्षम होते ही या तो वे खुद उन्हें छोड़कर अलग हो जाते हैं या बच्चे खुद ही अपना स्वतंत्र जीवन जीने लगते हैं, यहाँ पर न तो कोई, किसी को छोड़ता है न निकालता है, और न ही बहियाता है, साथ रहने से दोनों की स्वतंत्रता में खलल पड़ती है इसलिए दोनों ही, एक दूसरे के साथ रहना पसन्द नहीं करते। स्वतंत्र, आत्मनिर्भर जीवन यहाँ के सिस्टम का मूल है इसलिए यहाँ पर लड़के, लड़कियों के निर्णय में भी उनके माँ-बाप या यहाँ के समाज का कोई हस्तक्षेप नहीं होता बल्कि बच्चे के पैदा होने से लेकर उनके बड़ा होने तक और उसके बाद भी मरने तक सब आत्मनिर्भर होते हैं और अपने तरीके से अपनी जिंदगी की दिशा और दशा दोनों तय करते हैं। यहाँ के लड़के लड़कियों को चकि अपनी जिंदगी खुद ही संवारना होता है तथा अपना रास्ता खुद ही चुनना होता है, इसलिए वे अपने जीवनसाथी का भी चुनाव खुद ही करते हैं। भारतीय समाज में लड़के-लड़कियों का आपस में मिलना, जुलना, घूमना फिरना एक तरह से वर्जित सा है लेकिन अमेरिका में लड़के लड़कियाँ, आपस में निर्द्वंद मिलते जुलते और घूमते फिरते हैं यहाँ चाहे लड़का हो या लड़की अपने मित्र के साथ देश विदेश तक घूम आते हैं लड़के लड़कियों के बीच आपसी घनिष्ठता की बात पर हमारा ध्यान तत्काल सेक्स पर जा टिकता है और हम मान लेते हैं कि जब वे आपस में मिलने के लिए इतने स्वतंत्र हैं तो सेक्स के मामले में भी वैसा ही उन्मुक्त होंगे। तमाम बंदिशों के कारण, अपने यहाँ के लड़कियाँ निहायत दब्बू, डरपोक एवं कमजोर होती है और उनकी इसी कमजोरी के चलते, जब वे बाहर निकलती हैं तो लोग उन पर फिकरे कसते हैं भद्दी हरकतें करते हैं, और उनके साथ बलात्कार तक कर देते हैं। लेकिन यहाँ की लड़कियाँ लड़कों की तरह ही बोल्ड, स्ट्रांग और स्मार्ट होती हैं, शरीर से वे लड़कों के मुकाबले चाहे जो कमजोर हों लेकिन दूसरे सभी मामलों में वे, उनसे बीस ही होती हैं। ऐसे में उनके साथ कोई भद्दी हरकत कर दे या उनकी मर्जी के खिलाफ कोई और कुछ कर लें, ऐसा हो सकना संभव ही नहीं है, वैसे भी किसी भी लड़के या लड़की की मर्जी के खिलाफ कुछ करने की न तो यहाँ के लोग और न ही यहाँ का सिस्टम ही इजाजत देता है, शायद यही कारण है कि यहाँ पर जितने दिन मैं रहा जोर जबरदस्ती या बलात्कार जैसी घटना न तो मुझे किसी अखबार या इन्टरनेट पर पढ़ने को मिली और न कभी ऐसा सुनाई पड़ा।

अपने यहाँ एक जोक है कि एक आदमी दूसरे को बताता है कि यार, आज मैंने दुनिया का आठवां आश्चर्य देखा, अच्छा जरा सुन तो वह आश्चर्य तुमने क्या देखा? दूसरा पहले से पूछता है? आश्चर्य यह देखा कि दो औरतें, आमने-सामने बैठी हुई थी लेकिन दोनों चुप थीं। हमारे यहाँ दो अनजान औरतें मिल जाएँ तो वे, कोई न कोई बहाने ढूँढ कर, आपस में संवाद स्थापित कर ही लेती हैं। हमारे घर से थोड़ी ही दूर पर एक स्कूल का काफी बड़ा मैदान था उस मैदान के एक सिरे पर बच्चों के झूलने, फिसलने की व्यवस्था के साथ, वे दौड़, धूप के खेल, खेल सकें इसके लिए वहाँ प्रचुर जगह भी थी। मैं शाम को अक्सर वहाँ जाकर बैठा करता था। वहाँ पर कई माएँ अपने बच्चों को रोज ही खेलने के लिए लाया करती थी। उनके बच्चे जब खेल रहे होते तो कई औरतें एक ही बेंच पर बैठी रही होती थी, लेकिन उन्हें मैं आपस में बोलते, बतियाते कभी नहीं देखा। हम लोगों की यह धारणा भी, कि पश्चिम के लड़के लड़कियाँ, आपस में बड़ा उन्मुक्त आचरण करते हैं। एकदम गलत है। क्रिसमस के दिन, माल के भीतर, बर्फ पर फिसलते, उस लड़के और लड़की के अलावा, मैं जितने दिनों वहाँ पर रहा हाट बाजार से लेकर पार्कों, उद्यानों तथा झीलों और नदियों के किनारों तक में कहीं भी किसी लड़के या लड़की या औरत मर्द को आपस में आलिंगन, चुम्बन करते कभी नहीं देखा, पति-पत्नी भी यहाँ आपस में एक दूसरे के प्रति पूरी तरह एकनिष्ठ और ईमानदार होते हैं और वे ताउम्र एक दूसरे का साथ निभाते हैं हाँ यदि उन दोनों में आपस में नहीं पटती तो वे एक दूसरे से तलाक लेकर अलग हो लेते हैं और दोबारा से अपने मन का साथी चुनकर विवाह कर लेते हैं।

जब तक मैं, अमरीका नहीं गया था, मैं समझता था कि वह देश, अपने पैसे के बल पर पृथ्वी का अच्छा से अच्छा ब्रेन, अपने यहाँ बुला लेता है। लेकिन यहाँ आकर मुझे पता चला कि यहाँ ऐसा कुछ भी नहीं है। यहाँ का हर तरह का आयात जिसमें ब्रेन भी शामिल है पूरी तरह मांग और पूर्ति के फार्मूले पर नियंत्रित और संचालित होता है, और इसके नियंता और जज वहाँ की सरकार नहीं बल्कि वहाँ के उद्योगपति और व्यापारी होते हैं। पृथ्वी का जीव जगत, जो फिट है, वही यहाँ रहने का हकदार है, प्रकृति के जिस फार्मूले से नियंत्रित और संचालित होता है, ठीक वही फार्मूला यहाँ के उद्योग और व्यापार पर भी लागू होता है। वह अच्छी तरह चलता रहे उसके लिए जिस तरह के कच्चे माल और कुशल श्रमिकों की जरूरत होती है यदि वह उस देश में उपलब्ध नहीं हैं, तो वे उसे, पृथ्वी पर जहाँ कहीं भी मिलेगा, वहाँ से ले लेने के लिए स्वतंत्र है। यहाँ का व्यापार और तमाम उद्योग, पूरी तरह, निजी स्वामित्व के हाथों में होता है, इसलिए कच्चा माल, और श्रमिक उन्हें जहाँ से भी मिलता है, वहाँ से ले लेते हैं, लेकिन चूँकि, कुशल श्रमिकों के आयात का संबंध, वहाँ की आब्रजन नीति से नियंत्रित होता है इसलिए इसमे सरकार की पूरी दखल होती है। इसके लिए यहाँ का उद्योगपति और व्यापारी सरकार के सामने, अपनी माँग रखते समय, इस बात का प्रमाण-पत्र देता है कि बाजार में हमें, इस वर्ग के श्रमिक उपलब्ध नहीं है, आप इनकी आपूर्ति करने का उपाय करिए और सरकार उनकी वह मांग पूरी करने के लिए जहाँ भी, उन्हें इस तरह के श्रमिक मिलते हैं उन्हें वर्क परमिट देकर अपने यहाँ बुला लेती हैं। वैसे यहाँ की सरकार भी अपने स्रोतों से, उद्योग और व्यापार से संबंधित हर जरूरत का आंकलन और तैयारी पहले से ही करके रखती हैं।

यहाँ का रोजगार बाजार, पूरी तरह हायर और फायर के सिद्धांत पर नियंत्रित और संचालित होता है। यदि किसी कंपनी का व्यापार चढ़ाव पर है, तो वह, धड़ाधड़ नए कामगार रखती चली जाती है। लेकिन जहाँ उसके व्यापार में मंदी आ गई, या उसे घाटे का अंदेशा हुआ, तो वह, अपने कामगारों को, निकालने में भी एक सेकंड की देरी नहीं करती। कामगारों को निकालने के पहले यहाँ पर, किसी भी तरह की नोटिस या सूचना देने की जरूरत नहीं पड़ती। वे इसे इतने अचानक से कर देते हैं कि श्रमिक हक्के बक्के रह जाते हैं। यहाँ पर किसी को भी पता नहीं होता कि कल, उसकी नौकरी रहेगी कि नहीं। लोग, रोज की तरह, बड़ा खुशीमन, अपने काम पर पहुँचते हैं तो, उनका इन्ट्री कार्ड, इनवैलिड हुआ रहता है और बोर्ड पर उन्हें एक छोटी सी सूचना चिपकी मिलती है कि, आज से आपको, कार्यमुक्त कर दिया गया है। इसके बाद किसी को कंपनी के गेट के भीतर, घुसने तक की इजाजत नहीं होती। इसी तरह, यदि किसी कामगार का काम या कौशल, उस स्तर का नहीं होता, जिस स्तर का कंपनी को, उससे उम्मीद होती है तो, कंपनी उसे भी उसके काम से हटाने में एक सेकंड की देर नहीं करती। भारत की तरह यहाँ भी रोज आठ घंटे के काम का प्रावधान है। अपने यहाँ लोग, अपनी ड्यूटी पर समय से पहुँचें और अपने काम पर मुस्तैद रहें इसे सुनिश्चित करने के लिए, उनके पीछे, डंडा लेकर पड़ा रहना होता है और संस्थान चाहे बड़ा हो या छोटा या कोई सरकारी विभाग हो सब जगह सुपरवाइजर से लेकर जनरल मैनेजर तथा बड़ा बाबू से लेकर मिनिस्ट्रिलियल अधिकारियों की लंबी कतार होती है और हर स्तर के अधिकारी का अधिकार और कार्यक्षेत्र बंटा हुआ होता है। इस व्यवस्था में छोटा सा छोटा काम, इतनी टेबुलों से गुजरकर, अपने अंजाम तक पहुँचता है कि उसके होने में महीनों और बरस लग जाते हैं लेकिन अमेरिका में ऐसा नहीं है। वहाँ पर सिर्फ तीन स्तरीय प्रणाली है। इस तीन स्तर में पहले स्तर पर कंपनी का हेड होता है दूसरा सेक्सन या विभाग का हेड और तीसरा सबसे निचले स्तर का कर्मी। कंपनी का हेड कंपनी सुचारु रूप से काम करे इसकी बढ़ोत्तरी हो और मुनाफा कमाए, इसके लिए रणनीति और योजना बनाता है तथा उनका अनुपालन सुनिश्चित करता है। ठीक उसी पैटर्न पर, किसी भी विभाग का हेड, अपने विभाग का सी0ई0ओ0 या मालिक होता है। गलाकाट प्रतिस्पर्धी बाजार में, उसके संस्थान की क्या पोजीशन है, उस पोजीशन को बनाए रखकर प्रतिस्पर्धियों को पछाड़कर कैसे आगे निकल लिया जाए इसके लिए कंपनी की जो रणनीतियाँ, योजनाएं और लक्ष्य निर्धारित होता है उससे वह पूरी तरह वाकिफ होने के साथ, कंपनी को उससे जो अपेक्षाएँ है उस पर खरा उतरने की दिशा में वह सतत प्रयत्नशील रहता है। वह अपने विभाग का पूरी तरह सर्वेसर्वा होता है इसलिए जरूरत पड़ने पर, अपने विभाग में नए आदमियों की भर्ती, उनसे मोल भाव करके, उनके वेतन पैकेज के निर्धारण से लेकर, किसी को तत्काल निकाल बाहर करने तक के लिए वह पूरी तरह सक्षम होता है। लोग समय से अपनी ड्यूटी पर आएं और अपनी सीट पर आठ घंटे बैठकर मुस्तैदी से अपना काम करें, इसके लिए यहाँ पर, डंडे लेकर, किसी को किसी के पीछे पड़ने की जरूरत नहीं होती। इसके लिए कर्मियों के गेट के भीतर प्रवेश करने के समय से लेकर, उनके वहाँ से बाहर निकलने तक, की हर सेकंड की गतिविधियाँ, जगह जगह लगे कैमरों और उपकरणों से कैद होती रहती है। ऐसे में किसी के लिए काम के दौरान गप्पे लगाना या फंकैती करके समय काटना संभव ही नहीं है। यहाँ पर मजदूरी, घंटे के हिसाब से, भुगतान की जाती है इसलिए यदि किसी को अपने काम के दौरान घंटे भर की ही सही छुट्टी लेने की जरूरत पड़ गई तो उसका घंटे भर का पैसा या छुट्टी काट लिया जाता है। मुझे यहाँ पर, इस सिस्टम से हटकर, एक और एकदम नया और अनोखा सिस्टम देखने को मिला, वह यह कि कई लोग, दफ्तर न जाकर अपना काम अपने घर में ही बैठ कर करते रहते हैं। पैसे सहित साल की छुट्टियाँ वहाँ पर काफी कम दिनों की मिलती हैं ऐसे में भारत के लड़कों की, उन छुट्टियों का एक बड़ा हिस्सा, आने जाने में ही खर्च हो जाता है, यदि किसी को किसी कारण से, लंबे अर्से तक, भारत में रूकने की जरूरत हुई तो वह कंपनी से परमीशन लेकर, भारत आ जाता है और यहीं से अपना काम करता रहता है। यहाँ सब लोगों को आठ घंटे की ड्यूटी बजाना अनिवार्य है। किसी किसी दफ्तर में, इसके लिए जरूरी नहीं होता कि लोग सुबह निर्धारित समय पर दफ्तर पहुँचे और काम के घंटे पूरा होने पर अपने घर लौटें। अपनी सुविधा के लिए तथा भीड़ भाड़ से बचने के लिए कई दफ्तरों में लोग, चाहे वे डिपार्टमेंट के हेड हों, या उसके नीचे के कर्मी, सुबह छः बजे ही अपने दफ्तर पहुँच जाते हैं और आठ घंटे की अपनी ड्यूटी करके वापस अपने घर लौट आते हैं।

अपने यहाँ की तरह, यहाँ पर, किसी भी पद या काम के लिए पहले से कोई वेतनमान, निर्धारित किया हुआ नहीं होता सिवाय एक दिन में, आठ घंटे का काम और दस डालर, प्रति घंटे की न्यूनतम मजदूरी के। किसी की मर्जी के खिलाफ निर्धारित घंटों से ज्यादा का काम और न्यूनतम मजदूरी से कम की मजदूरी का भुगतान करना यहाँ कानूनन जुर्म है और इतने दिनों वहाँ रहकर जो मैंने देखा है वह यह कि, यहाँ के लोग, न सिर्फ खुद, किसी भी कानून का बाइबिल के निर्देशों की तरह पालन करते हैं, बल्कि दूसरों का उसका उल्लंघन न तो उन्हें बर्दाश्त होता है और न ही वैसा करने की वे किसी को इजाजत ही देते हैं। इसके अलावे यहाँ की सरकारी एजेसियाँ जो इस सब पर नजर रखने के लिए बनी हुई है वे अलग से है। यदि उनके पास कोई अपने शोषण या उत्पीड़न की शिकायत कर दिया तो वे एकदम से काल भैरव बनकर उत्पीड़क पर पिल पड़ती है। इसीलिए श्रमिकों को अपने अधिकारों की रक्षा के लिए, किसी यूनियन, संगठन या नेता की शरण में जाने की जरूरत ही नहीं होती। वेतन से लेकर काम के घंटों तथा उनकी दूसरी तमाम सुविधाओं, असुविधाओं पर संस्थान तथा सरकार पूरी तरह सजग होती है। इसलिए यहाँ किसी को, अपनी माँग मनवाने के लिए धरना प्रदर्शन करने या हड़ताल पर जाने की जरूरत ही नहीं पड़ती। वैसे भी, किसी का शोषण और उत्पीड़न तभी होता है जब वह कमजोर और मजबूर होता है। यहाँ पर काम के इतने अवसर उपलब्ध हैं कि श्रमिकों के मामले में यहाँ का मार्केट पूरी तरह विक्रेता का मार्केट है। यहाँ पर श्रमिकों की बाजार में इतनी मांग है कि काम के लिए उनको कहीं दौड़ लगाने या किसी के आगे पीछे करने की जरूरत ही नहीं पड़ती। अर्थशास्त्र का एक सिद्धांत यह है कि जब मार्केट विक्रेता का होता है तो वह क्रेता पर धौंस जमाता है उस पर अपनी शर्ते लगाता है और कभी कभी उसके साथ उद्दंडता भी कर बैठता है, और क्रेता का मार्केट होने पर वह भी विक्रेता के साथ उसी तरह का सलूक करता है लेकिन यहाँ पर मुझे ऐसा कुछ भी देखने को नहीं मिला। यहाँ पर क्रेता, और विक्रेता, दोनों को मैंने, एक दूसरे के प्रति, पूरी तरह विनम्र और सहयोगी देखा। वैसे मुझे, यहाँ की जिंदगी के, किसी भी क्षेत्र में ऐंठ या अकड़, लोभ लालच या किसी को ठग फुसलाकर, काढ मूस लेने की प्रवृत्ति, एक दूसरे में टकराव, कहीं भी दिखाई नहीं पड़ी। झूठ बोलना और दूसरों को धोखा देना, आदमी की सहजवृत्ति है लेकिन वह भी मुझे, यहाँ के लोगों में, कहीं देखने को नहीं मिलीं। क्यों है ऐसा यहाँ? क्यों, यहाँ के मार्केट पर अर्थशास्त्र के मांग और पूर्ति का सिद्धांत प्रभावी नहीं है और क्यों यहाँ के लोगों में, मनुष्य की मूल सहजवृत्ति निष्क्रिय और लोप हुई सी लगती है? क्यों यहाँ के लोगों में ऐंठ और अकड़ और दंभ की बजाए इतनी विनम्रता और निस्पृहता है? इस सब पर गौर करने पर, जो बात मेरी समझ में आई वह यह कि यहाँ पर किसी भी क्षेत्र में किसी भी चीज की कमी नहीं है और सभी चीजें प्रचुरता से उपलब्ध है। यहाँ के लोग अघाए हुए लोग हैं। और उनका न सिर्फ आज, धनधान्य से भरा पुरा और सम्पूर्ण हैं बल्कि उन्हें, अपने कल की पूर्णता के बारे में भी, पूरी आश्वस्ति और इत्मीनान हैं। अपने सिवाय उन्हें भाई बहन लगों-सगों को संभालने सहेजने की न तो कोई मजबूरी है और न ही अपने बाल बच्चों और आने वाली संततियों की सुरक्षा के लिए, किसी तरह की थाती ही छोड़ जाने की जरूरत है। मूड भर कमाओ पेटभर खाओ और जब तक जिंदगी है उत्सव मनाओ बस। इसके आगे और कुछ तुम्हें सोचने की जरूरत ही नहीं है। इसलिए यहाँ के लोग इतने विनम्र, सहिष्णु और निस्पृह और खुद में मस्त रहने वाले लोग होते हैं। अपने यहाँ के लोगों में अपनी गाड़ी, बाड़ी और हैसियत दिखाकर शान बघारने की जैसी आदत है वैसी आदत भी मुझे, यहाँ के लोगों में नहीं दिखाई पड़ी। इसका कारण यह है कि अपनी शान, कोई तभी बघार सकता है जब उसके इर्द गिर्द उससे ईर्ष्या करने वाले लोग मौजूद हों। यहाँ पर अधिसंख्य लोगों के पास अपना मकान, सभी के पास गाड़ी और पहनने खाने के मामले में सब कमोवेश एक ही हैसियत के है इसलिए दूसरे की हैसियत देखकर किसी की आँखें नहीं चुँधियाती जिससे कि उसमें ईर्ष्या जगे। इसी तरह किसी को अपनी ऐठ और अकड़ दिखाने दूसरों पर रौब झाड़ने का मौका भी तभी मिलता है जब उसे खाने और खाकर हजम कर लेने वाले लोग मौजूद होते हैं। यहाँ पर सभी, हर तरह से सक्षम और समर्थ है और जो नहीं भी हैं उनके लिए सरकार की तरफ से इतना प्रबंध है कि उन्हें किसी के सामने हाथ पसारने की जरूरत ही नहीं होती। इसलिए यहाँ के लोगों में किसी तरह की ऐंठ या अकड़ भी देखने को नहीं मिलती।

यहाँ पर आटा, चावल, दाल, दूध, माँस से लेकर फल, फ्रूट, सब्जी भाजी तक जो भी सामान दूकानों की रैकों में, बिकने के लिए सजे हुए होते हैं सब, पूरी तरह शुद्ध और खाँटी होते हैं। इतने शुद्ध और साफ, कि उन्हें घर लाकर चुनने, बिनने या धोने सुखवाने की जरूरत नहीं होती। लोग उन्हें, वहाँ से खरीदकर लाते हैं और काट पीट कर चूल्हे पर चढ़ा देते हैं। उसी तरह होटलों और रेस्टोरेंटों में, खाने पीने की चीजें भी, पूरी तरह शुद्ध और ताजे होते हैं। किसी भी उत्पाद या खाने पीने की चीजों में मिलावट होगी या वह सड़ा गला या घटिया स्तर का होगा, यहाँ के लोग, इसकी कल्पना तक नहीं कर सकते। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण यह है कि जो उत्पाद, उच्च गुणवत्ता का होने के साथ साथ लोगों की सेहत के लिए भी निरापद होगा, सिर्फ वही, यहाँ के स्टोरों में बिकने के लिए और लोगों की टेबुलों पर खाने के लिए परोसा जा सकता है। इसकी गुणवत्ता की परख, उत्पादों या वस्तुओं का, लेब्रोरेटरी में जाँच परख से ही नहीं, बल्कि वह किस तरह के बीज, खाद और पानी से उगाया गया होता है वहाँ से शुरू होती है। यहाँ का कृषि और फूड डिपार्टमेंट इसीलिए, अमेरिका में, बाहर देशों से किसी को भी, कोई बीज या पौधा लाने की इजाजत नहीं देता। यहाँ का सरकारी विभाग, वस्तुओं और उत्पादों की गुणवत्ता के मामले में कोई समझौता नहीं करता। स्टोरों की वस्तुओं और उत्पादों के शुद्ध और खाँटी होने के पीछे एक बड़ा कारण यह तो है ही, लेकिन उससे भी बड़ा और प्रमुख कारण है यहाँ का कानून और यहाँ के लोग। कानून यहाँ का ऐसा है कि अगर, किसी ने स्टोर से कोई समान खरीदकर या किसी रेस्तरॉ में बैठकर खाया और उसे खाकर वह बीमार पड़ गया या कोई ऐसा सामान खरीदा, जिससे उसे कोई शारीरिक या मानसिक नुकसान हो गया तो वह उस कंपनी पर करोड़ों डालर के हर्जाने का मुकदमा ठोंक देता है और मजे की बात तो यह है कि, कोर्ट जब यह देखता है कि वादी को सचमुच में, उस उत्पाद से नुकसान हुआ है तो, वह उसके पक्ष में फैसला भी दे देता है। इस तरह के विवाद से निपटने के लिए कंपनियाँ, पहले से ही बीमा करवा कर रखती है और करोड़ों डालर का भुगतान इंश्योरेंस कंपनी के मत्थे ठोंक कर डूबने से तो बच लेती हैं लेकिन खराब या घटिया दर्जे का सामान या उत्पाद बेचने की खबर पर, लोग जो उसे एकदम से बहिष्कृत कर देते हैं इसकी भरपाई कर पाना या उस चोट को सह लेना, यहाँ किसी पर बूते की बात नहीं होती। जब मैं अमेरिका में था तो एक रेस्टोरेंट, हमारे घर से थोड़ी ही दूर पर था। आते जाते नजर उधर जाती थी तो मुझे उसके बाहर अनगिनत कारें खड़ी दिखती थी। एक दिन, एक आदमी अपने पूरे परिवार के साथ उस रेस्टरां में खाना खाया और उसके बाद उसके सभी लोगों का पेट खराब हो गया। यह खबर जंगल में आग की तरह लोगों में फैल गई और इसका नतीजा यह हुआ कि लोग उस रेस्तरॉ में जाना ही बंद कर दिए और वह थोडे दिनों बाद बंद हो गया। उसी दौरान एक दूसरी घटना जो सुनने में आई वह यह कि, एक महिला ने, किसी नामी रेस्तरॉ के काउंटर से, पीने के लिए काफी खरीदा। काफी बहुत गरम थी। उसे सिप करते ही, उसका मुँह जल गया। उसने, इसके लिए, कंपनी पर एक करोड़ डालर का दावा ठोंक दिया। कारण उसने यह दिया कि कंपनी ने उसे, जिस गिलास में पीने के लिए काफी दिया था, उस पर, इस बात की वार्निंग नहीं दी गई थी कि काफी जरूरत से ज्यादा गर्म हो सकती है इसलिए पीने के पहले, होशियार रहें नहीं तो आपकी जुबान जल सकती हैं। भारत के लोगों के विचार में, ये कारण बड़ा अजीबो गरीब और ऊटपटांग का लग सकता है लेकिन यहाँ के कानून के हिसाब से कंपनी की यह चूक एक बहुत बड़ी चूक थी और इसके लिए, उस कंपनी को करोड़ डालर का हर्जाना भरना पड़ा गया था। किसी भी उत्पाद से उपभोक्ता किसी बड़ी विपत्ति में न पड़ जाए या उसके साथ कोई हादसा न पेश आ जाए, इसके लिए यहाँ, उत्पाद के सभी घटकों की विस्तृत जानकारी, उनके पैकेटों पर लिखी हुई होती है। यहाँ तक कि, स्टोर वाले, जिस पालिथीन की पन्नी में, ग्राहकों को सामान भरकर देते हैं उस तक पर, लिखा हुआ होता है कि, इसे छोटे बच्चों से दूर रखें, यदि वे इसे अपने सिर में फँसा लिए तो उनका दम घुट सकता है। अपने यहाँ, दुकानों पर सामान खरीदते समय लोग, जिस तरह उसे उठाकर, उलट पलट कर देखते हैं और उसके बारे में पूरी तरह इत्मीनान हो लेने के बाद ही उसे खरीदते हैं, वैसा यहाँ पर नहीं है। यहाँ पर स्टोरों में जो सामान जैसा तथा जिस पैक में रखा हुआ है इसे उसी तरह खरीद कर, अपने घर ले जाइए। इसका कारण यह है कि यहाँ पर किसी भी स्टोर में, किसी को कुछ दिखाने समझाने के लिए, कोई स्टाफ या सेल्समैन नहीं होता। भुगतान काउन्टर पर सामान तौलने, उसका बिल बनाने और पैसा लेने वालों के अलावे, स्टोरों में दूसरा कोई स्टाफ नहीं होता। यहाँ पर किसी भी उत्पाद या सामान, या सामग्री से संतुष्टि नहीं होने पर ग्राहक को वह समान पन्द्रह दिनों के भीतर, वापस करने की छूट मिली होती है। स्टोरों में, इसके लिए, एक अलग वापसी काउंटर ही होता है, जहाँ का स्टाफ, बिना किसी पछताछ के सामान वापस ले लेता है।
(क्रमशः अगले अंकों में जारी...)

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रचनाकार: सोमेश शेखर चन्द्र का यात्रा संस्मरण : एवरेस्ट का शीर्ष - 4
सोमेश शेखर चन्द्र का यात्रा संस्मरण : एवरेस्ट का शीर्ष - 4
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