विनीता शुक्ला की कहानी - सच से मुठभेड़

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सच से मुठभेड़ - विनीता शुक्ला यूँ ही पड़ोसन के कहने पर, फेसबुक पर प्रोफाइल बना लिया था- शेफाली ने. तस्वीरों का वो संसार... कोई अपना फॅमिली ...

सच से मुठभेड़

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- विनीता शुक्ला

यूँ ही पड़ोसन के कहने पर, फेसबुक पर प्रोफाइल बना लिया था- शेफाली ने. तस्वीरों का वो संसार... कोई अपना फॅमिली फोटोग्राफ पोस्ट कर रहा है तो कोई म्यूजिक वीडिओ. तरह तरह की अदाओं और परिधानों में छायाचित्र, हसीन लम्हों को कैद किये हुए – ‘जनता’ को ‘फ्री’ में नैनसुख देते हुए!! और उन पर वे छल्लेदार कमेंट्स!...”गॉर्जियस, ऑसम, टॉप ऑफ़ द वर्ल्ड वगैरा, वगैरा” कोई चलताऊ टाइप शायरी पर ही, वाहवाही बटोर रहा है तो कोई सामाजिक सरोकारों पर, अपनी राय परोसता है. जिसे देखो वही अपनी विद्वता, झाड़ देता है. राजनीति पर, गरमागरम बहस भी, देखी जा सकती है. उबाऊ तुकबन्दी करने वाले भी फेसबुक कवि/ लेखक बन ही जाते हैं. एक अजब सा, चुम्बकीय आकर्षण है – इस आभासी दुनियां में.

इसकी माया में, शेफाली जकड़ती जा रही थी. अपनों से तो, मोहभंग हो चला था; लिहाजा ‘फेसबुकिया लफ्फाजी’ में ही, ‘गम गलत’ कर रही थी. खोखली औपचारिकता, दिखावटी शुभकामनाओं, बधाई संदेशों, और कृत्रिम संवेदनाओं से बरगलाना- जहाँ की तहजीब थी. इस क्रम में, अवांछित मित्र भी बन जाते थे. ‘पर्सनल पोस्टों’ पर उनके बेतकल्लुफ़ कमेंट्स और कभी कभी अभद्र सन्देश भी. एक पूजा नाम की ‘पुजारन’ भी गले पड़ गयीं. गजब की सुन्दरी दिखती थीं, प्रोफाइल फोटोग्राफ में! नाम इतना सात्विक और करम!! चैटिंग के दौरान पता चला कि उसका पति, कारोबार के सिलसिले में बाहर रहता था. जीवन ऊब, उकताहट और समरसता से भरा हुआ. इसी से, फेसबुक में जुटी रहती. बातों ही बातों में पूछा, संताने कितनी हैं तो बताया दो साल हो गये शादी के; अभी तक कुछ नहीं है.

खोदने पर जवाब मिला–“‘प्रॉब्लम’ है...इसलिए पॉसिबिल नहीं होगा.” सहानुभूति सी हो गयी थी, शेफाली को उससे. वह खुद भी तो, बिना जड़ों की पौध जैसी थी! कहीं न कहीं पूजा से, जुड़ाव महसूस करती. बातों का सिलसिला आगे बढ़ा. पूजा ने उसके बारे में भी, सवाल जवाब किये, “आप कहाँ से हैं...फोटो में तो ‘यंग’ दिखती हैं- पैंतीस से ज्यादा की नहीं”

“नहीं रे, चालीस पूरे कर लिए हैं”

“ओह!...क्या पर्सनालिटी है आपकी...मिलना चाहती हूँ आपसे! आपसे बात करना बहुत अच्छा लगता है”

“ओके, कभी तुम्हारे उन्नाव की तरफ आना हुआ, तो इन्फॉर्म करूंगी”

“मुझे मैरीड औरतों को फ्रेंड बनाना अच्छा लगता है”

“???...”

“और बताइये कुछ अपने बारे में”

“थोडा बहुत पढने लिखने का शौक है. कुकिंग भी अच्छी लगती है...तुम्हारी हॉबीज?”

“सिनेमा देखने जाती हैं?” शेफाली को अजीब लगा. उसे, उसके प्रश्न का उत्तर न मिला और विषय को भटकाकर कहीं और ले जाया गया. उसने संक्षेप में बात समाप्त कर दी. मन में पूजा को लेकर खटका होने लगा. वह खुद के बारे में सवाल टालकर, उसके बारे में पूछती. इस कारण शेफाली ने, उसके साथ वार्तालाप बहुत सीमित कर दिया. फिर भी जाने अनजाने, अपने बारे में, कुछ ‘फीडबैक’ दे ही डाला. यथा पति किस जॉब में हैं, बच्चे कितने हैं...आदि आदि”

एक दिन, रात के दस बजे फिर चैटिंग:

“क्या कर रहीं हैं मैम?”

“इन्टरनेट पर न्यूज़ देख रही थी”

“डिनर हो गया?”

“हाँ...और तुम्हारा”

“हाँ”

“बेटियां क्या कर रही हैं?”

“होमवर्क”

“और पति?” शेफाली ने जानकर, इसका जवाब नहीं दिया. इस पर, दोबारा सवाल दाग दिया गया, “वेयर इज योर हस्बैंड?” अपने पति के बारे में, जरूरत से ज्यादा, पूछताछ उसे अच्छी नहीं लगी. उसने खीजकर लॉग आउट कर लिया. काफी दिनों तक नेट की समस्या रही; इसी से पूजा की कोई खोजखबर नहीं मिली. लम्बे समय के बाद, एक दोपहर, वह कंप्यूटर लेकर बैठी. उसे ‘ऑनलाइन’ पाकर, पूजा फिर से पीछे लग ली,” मैम, मैंने प्रोफाइल फोटो बदला है, आपने देखा?”

“मुझे तो वही पहले वाला लग रहा है”

“नहीं पहले वाला तो छोटा था...आप क्या कर रही है?”

“लंच बनाना है, हस्बैंड के आने का समय हो रहा है’ शेफाली ने, पीछा छुडाने की गरज से कहा .

“कितने बजे आते हैं?”

“साढ़े बारह बजे” अब उसको चिढ होने लगी थी, पर चाहकर भी कठोर न हो सकी. इधर पूजा के पास तो इफरात समय था, सो ‘बकती’ रही “बेटियां स्कूल में हैं?”

“हाँ” शेफाली ने तय किया कि एक या दो शब्दों में ही जवाब देगी. लेकिन पूजा के अगले सवाल के बाद तो, यह भी गैर मुनासिब लगने लगा था, “हाउ वाज़ योर लास्ट नाईट?”

“मैं समझी नहीं...”

“रात में कितने बजे सोती हैं? मॉर्निंग में कब उठती हैं?” शेफाली को कुछ असहज सा महसूस हुआ पर बहुत दिनों बाद पूजा से मिल रही थी; अतः उसकी अवहेलना न कर सकी. यह सोचकर कि शायद उसकी स्लीपिंग रूटीन के बारे में, पूछा जा रहा था; उसने जवाब दिया “रात में जल्दी सोती हूँ. दिन में जल्दी उठना होता है – इसी से. सुबह बेटियों के लिए, लंच पैक करती हूँ...उन्हें स्कूल भेजना पड़ता है सुबह सबेरे’

“मैंने नाईट के बारे में पूछा तो आप क्या समझीं?”

इस ‘अनर्गल प्रश्न’ से घबराकर, शेफाली ने चुप्पी साध ली. वह समझ नहीं पा रही थी कि इस अनचाही दोस्त से पीछा कैसे छुडाएं. तब तक न तो उसे, चैट ऑफ करना ही आता था और न किसी को ब्लाक करना. वह असमंजस में थी और पूजा सवाल पर सवाल जड़े जा रही थी, “बेटियां किस क्लास में हैं?”

“आप कहाँ है मैम?”

“कहाँ चली गयीं मैम?”. शेफाली का दिल उखड़ गया. उसने कंप्यूटर ऑफ कर दिया और रसोईं का रुख किया. लंच के बाद, सहसा उसके दिमाग में आया कि वह पूजा को अनफ्रेंड तो कर ही सकती थी. इसी विचार से, फिर फेसबुक खोली तो पाया कि पूजा ने उसको, एक बेहूदे से फोटोग्राफ में, टैग कर रखा था. उस फोटो में पूजा और उसका पति, स्विमिंग कॉस्ट्यूम में, चुम्बनरत होकर खड़े थे. शेफाली तुरंत पड़ोसन के पास जा पहुंची और उससे फेसबुक में अपनी, ‘व्यक्तिगत शालीनता’ बनाये रखने हेतु, ढेर सारी टिप्स ले डालीं जैसे- कैसे किसी फोटो में, टैग होने से बचना है... कैसे चैट में ‘इनविजिबल’ रहना है या मित्रों को, अपनी ‘टाइमलाइन’ पर पोस्ट करने से रोकना है; साथ ही लोगों को ब्लाक करना और किसी तस्वीर से खुद को अनटैग करना वगैरा वगैरा.

इसके बाद तो, अपने प्रोफाइल से, पूजा को ‘धो- पोंछकर’ निकाल फेंका और उस ‘तथाकथित’ तस्वीर से भी ‘अनटैग’ हो गयी. किन्तु तब भी, कभी कभी, अप्रिय अनुभव हो ही जाते थे. एक सज्जन ने मैसेज भेजा, “ हाई शेफाली! नाऊ वी कैन ट्राई वीडियो चैट...इट्स सो कूल!!” साथ में कोई ‘टूल’ था- वीडियो चैटिंग के लिए. शेफाली उबलकर रह गयी. मान न मान, मैं तेरा मेहमान!!! उसने इन महाशय को, फौरन अनफ्रेंड किया. वह सन्देश, ‘स्पैम’ में डाला और रिपोर्ट करके ब्लाक कर दिया; एक और नमूने से, पाला पड़ा. वह उसके रेसिपीज वाले ‘ब्लॉगों’ पर, बड़ी ही मर्यादित प्रतिक्रिया देता और सदा शेफाली जी के संबोधन से उसे नवाजता. एक दिन उसने भी, अपना रंग दिखा ही दिया. संदेशे में लिख भेजा, “ हाई डिअर, जस्ट सी द फॉलोइंग क्लिप...आई ऍम श्योर, यू विल लाइक इट” साथ ही एक रोमान्टिक वीडिओ क्लिपिंग भी. उसको भी चलता करना पड़ा, अपनी मित्र सूची से. धीरे धीरे अंतर्जाल से, विरक्ति सी होने लगी थी.

एक दिन किसी मैगजीन में पढ़ा, ‘फेसबुक जैसी सोशल साईटों का दुरूपयोग, कुंठित मानसिकता वाले स्त्री/पुरुष खूब करने लगे हैं. खूबसूरत लडकियों की, तस्वीरों में कैद अदाएं और उस पर ‘सेक्सी’ व ‘कातिल जवानी’ जैसी घटिया टिप्पणियां, अक्सर देखी जा सकती हैं. ‘फ़ास्ट जनरेशन’, अपने मूल्यों और मर्यादाओं की धज्जियाँ उड़ाती, नजर आती है. अश्लील चित्र, वीडियो आदि पोस्ट करना, कइयों का पसंदीदा शगल है. लिव- इन रिलेशन को, ‘शौक’ के तौर पर, पालने वाले यह युवा; अपनी निजी बातों को सार्वजनिक करने में भी, संकोच नहीं करते.’

लेख के अंत में यह भी लिखा था- ‘महिलाओं की फोटो, डाउनलोड करके, उसे ‘वल्गर लुक’ दे दिया जाता है. वे बाद में, यही फोटुएं पोस्ट कर देते हैं. इसके चलते, शरीफ लड़कियां भी, बदनाम हो जाती हैं. ऐसी बदनामी से, आत्महत्या तक की नौबत आ सकती है. सुंदरियों से मित्रता के लिए पुरुष, नकली प्रोफाइल बना लेते हैं- जिसमें उनका जेंडर, ‘फीमेल’ इंगित किया होता है. बीमार सोच, स्त्रियों में भी झलकती है. कुछ मतिमूढ़ औरतें, सखियों से चैट करते करते, अपने अन्तरंग पल भी; साझा कर लेती हैं.’ अंत वाला वाक्य पढ़कर, पूजा का मंतव्य, शीशे की तरह साफ़ हो गया था. क्यों वह, विवाहित स्त्रियों से, मैत्री करना चाहती थी और क्यों ‘रात वाली बात’ जानना चाहती थी! शेफाली ने सोचा अब वह फेसबुक से तौबा कर लेगी; हो न हो, अपना प्रोफाइल ही डिलीट कर देगी.

लेकिन जब ये सोच रही थी तो फेसबुक के ‘पन्नों’ ने, उसे दोबारा जकड़ लिया. उन पन्नों में, उसके स्कूली ग्रुप की, सदस्यता का प्रस्ताव मिला. यहाँ उसकी पुरानी शिक्षिकाएं और सहपाठी सहेलियाँ थीं. बुझी हुई चिंगारी, फिर से भडक उठी. समूह में किसी ने लिखा था- “वेलकम लेडीज. ए बिग हग टु यू आल. इट्स रियली थ्रिलिंग टु मीट, आफ्टर ए लॉन्ग स्पैन ऑफ़ टाइम. पुरानी बातें याद करके कितना सुकून मिलता है! काश हम फिर से बच्चे बन जाते!!” पढ़कर अभिभूत हो गयी शेफाली! सब कुछ पुनः रोमांचक लगने लगा. पुरानी दोस्तों का नाम टाइप करके उन्हें ढूंढना... भूली हुई यादों को ताजा करना...कुछ उनकी सुनना, कुछ अपनी कहना!!!

जल्दी ही पुरानी सहपाठियों का, ‘रीयूनियन’ प्लान किया गया. सौभाग्य से वह, उसके पास वाले शहर में ही था. कार से केवल, दो घंटों की यात्रा. शेफाली ने तय कर लिया कि चाहे जो भी हो- वह वहां जाकर रहेगी. हालांकि वो जानती थी कि अपने ‘खोल’ से बाहर आ पाना, सहज न था उसके लिए!! औरतों का घर से अकेले निकलना, उनके परिवार के ‘संस्कार’ नहीं थे. यह भी कि स्त्रियों का, पराये लोगों से बोलना बतियाना अच्छा नहीं. उसी घर के लडके ऋषभ से, उसने प्रेम किया. उन सबकी नजरों में, वो आवारा थी. फिर भी उनके विवाह को, मन मारकर स्वीकृति देनी ही पड़ी; ऋषभ की भूख हडताल के आगे झुकना पड़ा. शादी के बाद, न जाने कितने पहरे, बैठा दिए थे उस पर. उसका रूप ही कुछ ऐसा था- जिसको लेकर ससुरालवाले ही नहीं, स्वयम उसका पति ऋषभ भी, सशंकित रहता!!

बहुत इंतज़ार के बाद, वह मनचाही घड़ी आई. पुरानी साथियों से मिलना हुआ. सब यथासामर्थ्य सजधजकर आई थीं. बीते समय को याद किया गया. स्कूल का प्लेग्राउंड, टीचरों के साथ दिलचस्प अनुभव, आपस की ‘कट्टी- मीठी’ वगैरा वगैरा. बड़े बड़े भाषण भी दिए गये. पर समय के साथ, कुछ चुक सा गया था- उनके बीच. मासूम बचपने का खुलापन और मधुरता, कहीं नहीं थी. वक्त ने चेहरों पर, मुखौटे चढ़ा दिए थे. सब खुश दिखने की कोशिश कर रही थीं, अपनी हैसियत का बढ़चढ़कर प्रदर्शन भी. रिश्तों के स्याह पहलू, चौड़ी मुस्कान तले दबे जा रहे थे... बेटे बेटियों की शैक्षिक उपलब्धियों से लेकर, पति के रुतबे तक- लम्बे लम्बे स्तुति गान!

कुछ ठीक नहीं लग रहा था. सबसे विचित्र बात तो तब हुई जब सबने मिलकर, उसे ही, नायिका बना डाला, “शेफाली जैसे पहले, हमारी स्कूल लीडर थी – वैसे अभी भी है. इसने समाज के सामने, एक मिसाल कायम की है. गैर जात के लडके से शादी करके, जात- पांत को ठोकर मार दी”

“और क्या शान से रहती है!” किसी ने फुसफुसाकर यह भी कहा, “इसके मां- बाप के पास, पैसा ही कहाँ था दहेज़ का... कितना खाती पीती, अच्छी फैमिली मिली है!!”

“इसे कहते हैं भाग्य”

“सच्ची!” शेफाली वहां और न रुक सकी. मन ग्लानि से भर उठा था और आँखें आसुओं से. उन सबको क्या मालूम कि सास उसे बार बार, दहेज़ न लाने का ताना देती है... कमाऊ पूत को, मुफ्त में फांसने का भी! कोसती है, “जात बाहर शादी करी तभी पोता नसीब नहीं हुआ. दो दो लड़कियां पैदा करके बैठी है! ऐसे रूपरंग को लेकर चाटें या उसका अचार डालें!! दरिद्र घर से आई है. न किसी बात का सलीका न सहूर...!!!” अब तो ऋषभ भी उससे कटने लगे हैं. उनकी महिला मित्रों के बारे में, जब तब अफवाहें, उड़ा करती हैं. मां बाप के लिए तो, वो शादी के बाद ही मर गयी थी.

सच्चाई से भागने को वह, आभासी दुनियां की शरण में आई थी. आज उसी दुनिया ने उसे, यथार्थ के, धरातल पर ला पटका!! उसने स्वयम से वादा किया कि इस आकर्षण में खुद को, और नहीं भरमायेगी. यूँ ही अपना समय, जाया नहीं करेगी. फेसबुक में, सहज सरल मित्रों के अलावा(जो उंगली पर गिनने लायक हैं), किसी दूसरे को घास नहीं डालेगी. यदि वहां कुछ करेगी- तो बस रचनात्मक काम. कुकरी वाले ब्लॉग्स पर कुछ और मेहनत...पाककला ही तो उसका क्षेत्र है. पैरों के नीचे की जमीन को, पुख्ता बनाना होगा- घर से ही वह, कुकिंग क्लास चलाएगी. पति जितना भी कमाता हो; अपनी कमाई तो फिर, अपनी ही होती है! शादी के चक्कर में, जो पढाई छूट गयी थी; प्राइवेट एग्जाम देकर, उसे पूरा भी करना है. जीवन एक कठोर सत्य है; सच से मुठभेड़, तो करनी ही होगी!

 

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रचनाकार परिचय -

नाम- विनीता शुक्ला

शिक्षा – बी. एस. सी., बी. एड. (कानपुर विश्वविद्यालय)

परास्नातक- फल संरक्षण एवं तकनीक (एफ. पी. सी. आई., लखनऊ)

अतिरिक्त योग्यता- कम्प्यूटर एप्लीकेशंस में ऑनर्स डिप्लोमा (एन. आई. आई. टी., लखनऊ)

कार्य अनुभव-

१- सेंट फ्रांसिस, अनपरा में कुछ वर्षों तक अध्यापन कार्य

२- आकाशवाणी कोच्चि के लिए अनुवाद कार्य

सम्प्रति- सदस्य, अभिव्यक्ति साहित्यिक संस्था, लखनऊ

 

प्रकाशित रचनाएँ-

१- प्रथम कथा संग्रह’ अपने अपने मरुस्थल’( सन २००६) के लिए उ. प्र. हिंदी संस्थान के ‘पं. बद्री प्रसाद शिंगलू पुरस्कार’ से सम्मानित

२- ‘अभिव्यक्ति’ के कथा संकलनों ‘पत्तियों से छनती धूप’(सन २००४), ‘परिक्रमा’(सन २००७), ‘आरोह’(सन २००९) तथा प्रवाह(सन २०१०) में कहानियां प्रकाशित

३- लखनऊ से निकलने वाली पत्रिकाओं ‘नामान्तर’(अप्रैल २००५) एवं राष्ट्रधर्म (फरवरी २००७)में कहानियां प्रकाशित

४- झांसी से निकलने वाले दैनिक पत्र ‘राष्ट्रबोध’ के ‘०७-०१-०५’ तथा ‘०४-०४-०५’ के अंकों में रचनाएँ प्रकाशित

५- द्वितीय कथा संकलन ‘नागफनी’ का, मार्च २०१० में, लोकार्पण सम्पन्न

६- ‘वनिता’ के अप्रैल २०१० के अंक में कहानी प्रकाशित

७- ‘मेरी सहेली’ के एक्स्ट्रा इशू, २०१० में कहानी ‘पराभव’ प्रकाशित

८- कहानी ‘पराभव’ के लिए सांत्वना पुरस्कार

९- २६-१-‘१२ को हिंदी साहित्य सम्मेलन ‘तेजपुर’ में लोकार्पित पत्रिका ‘उषा ज्योति’ में रचना प्रकाशित

१०- ‘ओपन बुक्स ऑनलाइन’ में सितम्बर माह(२०१२) की, सर्वश्रेष्ठ रचना का पुरस्कार

११- ‘मेरी सहेली’ पत्रिका के अक्टूबर(२०१२) एवं जनवरी (२०१३) अंकों में कहानियाँ प्रकाशित

१२- ‘दैनिक जागरण’ में, नियमित (जागरण जंक्शन वाले) ब्लॉगों का प्रकाशन

१३- ‘गृहशोभा’ के जून प्रथम(२०१३) अंक में कहानी प्रकाशित

१४- ‘वनिता’ के जून(२०१३) और दिसम्बर (२०१३) अंकों में कहानियाँ प्रकाशित

१५- ‘जागरण सखी’ के मार्च(२०१४) के अंक में कहानी प्रकाशित

पत्राचार का पता- टाइप ५, फ्लैट नं. -९, एन. पी. ओ. एल. क्वार्टस, ‘सागर रेजिडेंशियल काम्प्लेक्स, पोस्ट- त्रिक्काकरा, कोच्चि, केरल- ६८२०२१

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तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया 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पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi 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रचनाकार: विनीता शुक्ला की कहानी - सच से मुठभेड़
विनीता शुक्ला की कहानी - सच से मुठभेड़
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