शैलेन्द्र नाथ कौल का हास्य-व्यंग्य - मोबाइल दो

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व्‍यंग्य मोबाइल दो लेखक - शैलेन्‍द्र नाथ कौल नोट - सुधी पाठकों इस रचना को पढ़ने से पूर्व आप लोगों को थोड़ा श्रम करके इस रचना का इतिहास पढ...

व्‍यंग्य

मोबाइल दो

लेखक - शैलेन्‍द्र नाथ कौल

नोट - सुधी पाठकों इस रचना को पढ़ने से पूर्व आप लोगों को थोड़ा श्रम करके इस रचना का इतिहास पढ़ना पड़ेगा अन्‍यथा आनन्‍द थोड़ा कम आयेगा । इतिहास का तात्‍पर्य यह कि या तो ‘‘सरिता‘‘ का मई (द्वितीय) 2013 पढ़ें या फिर रचनाकार का जून 2013 अंक देखें और पूरा आनन्‍द लें । यदि आपकी स्‍मरण शक्‍ति इतनी तीव्र है कि पिछला सब याद है तो कोई बात नहीं, बिना परिश्रम सीधे पढ़ें । धन्‍यवाद ।

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मोबाइल दो का अर्थ यह नहीं है कि मैं किसी से मोबाइल मांग रहा हूँ । मोबाइल दो तो मेरी उस रचना का सीक्‍वल है जो ‘‘सरिता‘‘ ने अपने मई (द्वितीय) 2013 अंक में छाप और फिर ‘‘रचनाकार‘‘ ने जून 2013 में पुनः प्रकाशित कर मेरी जान मुसीबत में डाल दी । मैं कोई ऐसा दमदार लेखक नहीं हूँ कि अपनी ही रचना का सीक्‍वल लिखूँ लेकिन जब जान पर बनी हो तो बड़े-बड़े दमदार भी दुमदार बन जाते हैं और दुम हिलाने लगते हैं फिर मैं किस खेत की मूली हूँ ।

जब दबंग-2, आशिकी-2, जिस्‍म-2 और रेस - 2 जैसे फिल्‍मी सीक्‍वल बन सकते हैं तो मोबाइल-2 क्‍यों नहीं लिखा जा सकता चाहे दमदारी से लिखा जाए या दुमदारी से । बस यही सोच कर मुझे मोबाइल-2 लिखने का बीड़ा उठाना पड़ा ।

जब से मेरा लेख ‘‘मोबाइल‘‘ सरिता और ‘‘रचनाकार‘‘ में छपा इतनी धमकियां मिली कि बता नहीं सकता । लगता था मेरी एक अदना सी रचना ने जो लोगों के भले के लिए लिखी गयी थी मोबाइल कम्‍पनियों की बिक्री को बुरी तरह प्रभावित कर दिया था और कुछ समझदार माँ-बापों ने बच्‍चों से मोबाइल छीन कर रख लिये थे । पता नहीं कहाँ से और कैसे मोबाइल कम्‍पनी वालों ने मेरा मोबाइल नम्‍बर पता लगा लिया । मोबाइल नम्‍बर के सहारे घर का पता भी मिल गया । पहले तो कई महीने धमकियां मोबाइल पर मिली जिन्‍हें मैं नज़रअन्‍दाज़ करता रहा । मन ही मन डरते-डरते ख़ुश भी हो रहा था कि मैं एक हस्‍ती हो गया हूँ जिसे मोबाइल वाले अन्‍डरवर्ल्‍ड के माध्‍यम से अप्रोच कर रहे हैं ।

नज़रअन्‍दाज़ी की लापरवाही भारी पड़ी । जो कहते हैं कि लखनऊ तहज़ीब के लिए मशहूर है उन्‍होंने ने अगर वो नज़ारा देखा होता जिस दिन दो मुस्‍टंडों ने मेरे घर की कॉलबेल बजायी थी तब उन्‍हें पता चलता कि यहाँ कि तहज़ीब तो गोमती के उजले पानी की तरह कब की काली हो चुकी है । भगवती चरण वर्मा के बांके भी गा़यब हो चुके हैं और जो बचा है वह सब मुम्‍बईया स्‍टाइल जैसे ठोंक दो वाले हैं ।

पचपन किलो और त्रेसठ साल का मैं जब घन्‍टी की आवाज़ पर बाहर निकला तो सामने अस्‍सी से नब्‍बे किलो के दो भीम खड़े थे । यह पूछने पर कि - कहिए क्‍या काम है ? दोनों ने ऊपर से नीचे तक ऐसे घूरा कि अगर मेरे हाथों कि जगह पंख होते तो मैं फुर्र से उड़ कर पड़ोसी वर्मा जी के तिखंडे की ममटी पर जा बैठता और वहीं से पैर का अंगूठा दिखाता । पैर का इसलिए क्‍योंकि हाथ में तो पंख होते तो फिर अंगूठा कैसे हो सकता था ।

एक भीम बोला । बोला क्‍या गरजा - ‘‘हूँ ऽ ऽ ऽ, तो तू ही हैं जिसे मोबाइल में सिर्फ़ बुराइयाँ ही दिखायी देती हैं । मोबाइल अगर इत्‍ता बुरा है तो तेरे पास क्‍यों है रे ?‘‘

इस एक ही प्रश्‍न ने स्‍थिति स्‍पष्‍ट कर दी कि यह मोबाइल पर मिलने वाली धमकियों का सीक्‍वल है । पहली बार किसी ने लखनऊ में तू करके बात की थी । बिजली, पानी और न जाने किस-किस विभाग ने शहर की सारी सड़के खोद डाली हैं लेकिन मेरे घर के पास नहीं खोदी । यह बात मुझे उस समय बहुत खल रही थी । काश मेरे घर के पास खुदी होती तो मैं किसी खुदी खाई में कूद जाता और कहता मुस्‍टंडों से डाल दो मिट्‌टी ऊपर से मगर तू मत कहो । यहाँ तू तो ख़ुदा को कहा जाता है और मैं ख़ुदा बिल्‍कुल नहीं । फिर सोंचा यह दोनों अपने नक़ली ख़ुदाओं के कहने पर जो करने आए हैं यह कोई अच्‍छी बात नईं है । मेरे सोचने से क्‍या होता है, होगा वही जो इनके ख़ुदा ने कहा होगा, इसलिए मैंने सोचना बन्‍द कर दिया ।

मैंने तुरन्‍त निर्णय लिया कि हौसले से काम लेना है भले मेरे पास कुरुक्षेत्र में अर्जुन का हौसला बढ़ाने के लिए श्रीकृष्‍ण जैसा सारथी दोस्‍त और मार्गदर्शक आस पास कहीं नहीं दिख रहा था । द्वापर से निकल कलियुग के अच्‍छे विचार जैसे ‘‘जो डर गया सो मर गया‘‘ व ‘‘डरना मना है‘‘ भी मन ही मन दुहराये और पूरी दृढ़ता से कहा - ‘‘आपका प्रश्‍न सर्वथा उचित नहीं है और आप किसी भ्रम से ग्रसित प्रतीत होते हैं । मैंने केवल इस वैज्ञानिक आविष्‍कार के दुरुपयोग के कारण होने वाली हानियों के प्रति लोगों का ध्‍यान आकर्षित करने हेतु मधुर हास्‍य के माध्‍यम से एक छोटा सा प्रयास किया था । मेरा उद्येश्‍य कदापि किसी को आहत करना नहीं था ।‘‘

‘‘ओए हिन्‍दी के कौऐ अपनी चोंच बन्‍द कर और हमारे साथ चल अपना मोबाइल लेकर पान की दुकान ।‘‘ - दूसरे भीम ने भी अपनी उपस्‍थिति का अहसास मुझे पूरी तरह करा दिया ।

‘‘पान की दुकान क्‍यों ?‘‘

‘‘सवाल नहीं पूछते लोग हमसे और हम जो कहते हैं वही करते हैं, समझा चूहे ।‘‘

अब इसके बाद कुछ पूछने का तात्‍पर्य था चूहे से चींटी हो जाना और कॉलोनियों की एकल ज़िन्‍दगी के चलते किसी का बचाने भी नहीं आना । अतः अपना मोबाइल जेब से निकाल दोनों भीमों को दिखा कर आश्‍वस्‍त किया और उनके पीछे चल दिया पान की दुकान की ओर उनके आदेशानुसार ।

सड़क की पान की दुकान पर कई लोग सिगरेट का धुंआँ उड़ाते, पान मसाला और पान की पीक से इधर उधर सड़क सींचते अजब अन्‍दाज़ में होय होय कर बातें करते लखनऊ की तहज़ीब का कचूमर निकाल रहे थे । वहाँ पहुँचते ही पहला भीम बोला - ‘‘चालू हो जा आ गया है चूहा ।‘‘

मैंने समझा चालू हो जा का मतलब बीच सड़क मेरी धुनाई से है सो दिल का धड़-धड़ कर धड़कना वाजिब बनता था सो धड़क रहा था । परन्‍तु तभी एक तीसरा भीम हाथ में पत्रकारों जैसा मूवी कैमरा लिए और चौथा एक माइक लिए प्रकट हुआ । दोनों भीमों ने एक-एक हाथ से मेरे बाज़ू पकड़ कर मुझे पास ही खड़ी जीप के बोनट पर बैठा कर आदेश दिया - ‘‘अब बोल के बता कि मोबाइल के क्‍या फ़ायदे हैं और तूने अपना मोबाइल क्‍यों ख़रीदा ?‘‘

कैमरा चलने लगा और माइक, जिस पर झटका टी0वी0 लिखा था, मेरे मुंह के आगे ऑन हो गया । चौथी कक्षा का विद्यार्थी जिस प्रकार गाय का निबन्‍ध सुनाता है बिल्‍कुल उसी अन्‍दाज़ में थूक गटक मैंने बोलना प्रारम्‍भ किया - ‘‘मोबाइल एक बहुत ही लाभ कारी वस्‍तु है । मोबाइल के अनेकों लाभ हैं । मोबाइल से हम बड़ी दूर बैठे लोगों से बड़ी सरलता से बात कर सकते हैं । मोबाइल से हर प्रकार के अच्‍छे या बुरे समाचार एक व्‍यक्‍ति दूसरे को जल्‍दी से दे सकता है । मोबाइल से नानी के मरने का समाचार फौरन मिल जाता है । मोबाइल से हम फ़ोटो भी खींच सकते हैं । मोबाइल से हम ईमेल भी भेज सकते हैं । मोबाइल से हम एस0एम0एस0 भी कर सकते हैं । सेलिब्रिटीज़ का कहना मानते हुए हमें पैदल चलते, मोटरसाईकिल और कार चलाते समय सदा मोबाइल पर बात करनी चाहिए इससे समय की बचत होती है । मोबाइल से अपहरण के बाद फिरौती मांगने में सरलता होती है लेकिन अक्‍सर आदमी पकड़ा .....‘‘

‘‘कट-कट, चुप कर । अबे क्‍या बोल रिया है । तू नहीं मानेगा बड़ा ढीठ है, पर है सोंड़ाँ बन्‍दा । यह हमें पता चल गया था कि मोबाइल की कॉल डिटेक्‍ट हो जाती है और पुलिस पकड़ लेती है सो अब हम मोबाइल से किसी को नहीं बुलाते । देख तुझे बुलाने खुद चल कर आये, आये कि नहींं । हमारे साथ चलता तुझे जिसने भी देख लिया न समझ उसकी तो बैंड अपने आप बज गयी होगी । वो जाके कईयों को बतायेगा और किसी की हिम्‍मत नहीं होगी पूरी कॉलोनी में तेरे से ज़रा सा टेढ़ा बोलने की । अब यह तो बहुत हो गया । आख़िरी लाइन हम एडिट कर देंगे । अब यह भी बता कि तेरे पास मोबाइल कैसे आया ? चालू करो कैमरा ।‘‘ - एक भीम इतना सारा बोल गया कि मेरे कान गरम हो गए ।

जेब से अपना मोबाइल निकाल कर हाथ में लेकर ऊँचा किया । कैमरा और मैं दोनों फिर चालू हो गए - ‘‘मेरे पास जो मोबाइल है यह मुझे उस विभाग से उपहार में मिला जहाँ मैं रिटायरमेन्‍ट से पहले नौकरी करता था । हमारे विभाग में यह प्रथा थी कि रिटायर होने वाले कर्मचारी को विभाग की ओर से एक सूटकेस उपहार स्‍वरुप दिया जाता था । मैंने विभाग के अधिकारियों से अनुरोध किया कि सूटकेस तो घर पर रखा रहेगा, अतः यदि उतने ही मूल्‍य का मोबाइल मुझे उपहार में दे दिया जाए तो उसे मैं सदा अपने साथ रखूँगा और आप सबको सदा याद करता रहूँगा । आप लोगों से बातें करने का जब भी मन करेगा जल्‍दी से कहीं से भी नम्‍बर मिला दिया करुँगा । मेरा सुझाव अधिकारियों को पसन्‍द आया और उन्‍होंने मुझे यह मोबाइल उपहार स्‍वरुप रिटायरमेन्‍ट के समय दे दिया । इसके बाद से आने वाले दिनों में भी जो लोग रिटायर होते उन सभी को उपहार स्‍वरुप मोबाइल ही दिया जाने लगा है । मैंने जब इसका कारण जानने का प्रयास किया तो पता चला कि मोबाइल कम्‍पनी का डीलर विभाग के अधिकारियों को प्रत्‍येक ख़रीद पर सूटकेस के डीलर की तुलना में अधिक कमीशन दे रहा ........‘‘

‘‘कट ... कट । बन्‍द करो कैमरा । ओय तू नहीं मान सकता । हमारा काम तो हो गया । यह इन्‍टरव्‍यू कल टी0वी0 पर देख लियो । क्‍या करें तेरा ?‘‘ - बड़ा भीम अपना सिर खुजाने व हिलाने लगा ।

‘‘सर जी, है तो सच्‍चा आदमी । इसके जैसे ही तो रोके हैं नईं तो तीन तरफ़ से पानी से घिरे देश को डूबे देर .... ओए चूहे चल भई तू अपने घर को जा ।‘‘

जीप के बोनट से बिना किसी सहारे मैं नीचे उतरा । उतरा क्‍या धम्‍म से कूदा । दोनों भीमों को प्रणाम करके उनके साथी कैमरे वाले और माइक वाले से हाथ मिला कर धन्‍यवाद दिया । कैमरा और माइक देख वहाँ जमा भीड़ को पीछे घूमते हुए हाथ हिला-हिला कर अभिवादन किया मानो धोनी ने टी20 मैच जीता हो ।

अगले दिन जैसे ही शाम के समाचार प्रारम्‍भ हुए मैं टकटकी लगाए टी0वी0 के आगे झटका चैनेल लगा कर बैठा था । ब्रेक के बाद हम आप को दिखायेंगे मोबाइल के लाभों पर एक विशेष कार्यक्रम, यह उद्‌घोषणा जैसे बाल कटी एनाउंसर ने की जल्‍दी-जल्‍दी मैंने कुछ परिचतों को मोबाइल से बता दिया कि मैं टी0वी0 पर आने वाला हूँ झटका चैनेल लगा कर ध्‍यान से देखना । इस प्रसारण के बाद से मुझे कोई भी धमकी नहीं मिली है अलबत्‍ता दूर दराज़ तक लोग मुझे पहचानने लगे । कई ने हमें टी0वी0 का सेलिब्रिटी समझ के बाज़ार में हाथ भी मिलाया ।

यह बताने की आवश्‍यकता नहीं कि मोबाइल - 2 दमदारी से नहीं दुमदारी से लिखा गया है । अब क्‍या करें भइया जान है तो जहान है वरना कुछ भी नहीं है । मेरे लिखे को आप अन्‍यथा न लेना और अपने मोबाइल के प्रयोग और अपने जीवन में जीवन के महत्‍व को समझते हुए संतुलन बनाने का प्रयास करना, इसी में सभी की भलाई है ।

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शैलेन्‍द्र नाथ कौल)

11, बसन्‍त विहार (निकट सेन्‍ट मेरी इन्‍टर कालेज)

सेक्‍टर-14, इन्‍दिरा नगर, लखनऊ-226016

ईमेल - shailendra.kaul@gmail.com

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रचनाकार: शैलेन्द्र नाथ कौल का हास्य-व्यंग्य - मोबाइल दो
शैलेन्द्र नाथ कौल का हास्य-व्यंग्य - मोबाइल दो
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