विज्ञान-कथा : जुलाई-सितंबर 2017 : रोमांचक विज्ञान-कथा मदाम आमू : राजीव रंजन उपाध्याय

SHARE:

उस घने जंगल से निकलने के बाद खुला मैदान ऐसा लगता था कि जैसे घने बादलों को चीरता हुआ चन्द्रमा निकल आया हो। दूर तक दृष्टिपात करने पर उस छोटी प...

उस घने जंगल से निकलने के बाद खुला मैदान ऐसा लगता था कि जैसे घने बादलों को चीरता हुआ चन्द्रमा निकल आया हो। दूर तक दृष्टिपात करने पर उस छोटी पहाड़ी और इस घने जंगल के बीच समतल मैदान किसी को असहज कर देने के लिए काफी था। उस मैदान में एक विदूषक-सा दिखने वाला व्यक्ति नाच रहा था। वास्तव में उसका नृत्य, नृत्य मग्न दरवेशों, सूफी दरवेशों की याद दिलाता था। उस उज्ज्वल स्निग्ध रात्रि में, चाँदनी में, जो अपने माशूक की जुस्तजू पाने के लिये, अहसासे रुहानियत के वास्ते, नाच-नाच कर, उसे पाना चाहते थे। यहाँ पर एक अन्तर था-यह विदूषक-सा नाचने वाला, घबराहट से नाच रहा था-वह स्त्री बना था और घबराहट के कारण उसके वक्ष की गेंदें बार-बार खिसक कर नीचे गिरतीं और वह चतुरता से जिससे कोई उसे देखे नहीं, उन्हें अपने उचित स्थान पर लगाने का प्रयास करता।

उस शीतल चाँदनी में वह पसीने से भीग गया था। उसके कानों में घोड़ों के टापों की आवाजें आने लगीं। वह रुक गया प्रतीक्षा में। दूर से धीरे-धीरे आती हुई एक ढकी हुई-घोड़ों द्वारा खींची जा रही एक विशाल गाड़ी देखी। वह जमीन पर बैठ गया। उस गाड़ी के पास आते ही वह बाज की तेजी से झपटा और गाड़ी के पीछे प्रयास कर चढ़ गया-धीरे से। उस गाड़ी चालिका को, जो अपना सारा बदन काली चादर से छिपाये थी तथा उसके साथ उसी गाड़ी में बैठे बौने को अथवा उन चारों घोड़ों को भी उस विदूषक बने व्यक्ति के गाड़ी में आने का पता न चला।

वह उस गाड़ी में, उस बन्द गाड़ी में पीछे लगे दरवाजे से धीरे से भीतर आया। उसकी इच्छा थी अपने विदूषक से लगने वाले कपड़ों को बदल कर, नयी पोशाक पहनना, परन्तु यहाँ भी परिस्थितियाँ उसके विपरीत थीं। वह गाड़ी एक स्टोरेज गाड़ी थी। उसके भीतर एक दरवाजे के पास संदूक लगी थी तथा दूसरी ओर गठरियाँ थीं।

वह झल्लाता हुआ संदूकों को खोल-खोलकर, धीरे-धीरे देखने लगा। उन काली, आबनूसी संदूकों में चोरी का माल भरा था। उसको देखते ही वह समझ गया कि यह माल चोरी से तुर्की के सौदागरों से खरीदा गया है। चोर चोरी के माल को पहचानता है-यह शत प्रतिशत सत्यापित सत्य है।

दूसरे संदूक में रूसी चित्रकारों के बनाये, अनेक चित्र, पेंटिंग भरी थीं तथा तीसरे बॉक्स में भरी थी क्रिस्टल ग्लास की सुनहरे काम की डिनर प्लेंटे और सुनहरी चायदानियाँ तथा प्याले।

चोरी का माल, वह कह उठा। सुनहला पर सोना नहीं। उसने तत्क्षण जनाने पेटीकोट के पॉकेट में हाथ डाला। एक छोटी पोटली जो धागे से ढकी हुई थी, अपनी जगह पर थी। उसने अँगूठियों को छुआ-सुरक्षित-सोने की चोरी की हुई अंगूठियां सुरक्षित हैं। वह प्रसन्नता से भर उठा। उसके गालों की लालिमा बढ़ गयी।

तीसरे बॉक्स में खंजर, चाकू, छोटी तलवारें और कुछ बर्तन भरे थे। उसी बॉक्स के पास लपेटा पड़ा था एक तुर्की का बना कालीन।

उसने उस छोटी, सुनहरे काम की तलवार को उठाया ही था कि वह पीछे आते हुए घोड़ों के टापों की आवाज सुनकर चौंक गया।

उन घुड़सवारों ने जोर से कुछ कहा। उस गाड़ी के आगे बैठी महिला ने कुछ उत्तर भी दिया। जिसे वह समझ न सका। घबराहट में उसने उस छोटी तलवार को बॉक्स में रख दिया और उस तुर्की कारपेट को खोलकर अपने ऊपर लपेट कर वह उसी कारपेट का, कालीन का अंश बनकर छिप गया। घुड़सवार तेजी से आगे चले गये।

घोड़ों के दौड़ने की आवाज उसे रात्रि में सुनाई नहीं पड़ रही थी। वह धीरे से कारपेट से बाहर निकलकर लेट गया। थोड़ी देर के बाद जब उसकी धड़कते हृदय की गति सामान्य हुई, वह उस छोटी तलवार को हाथ में लेकर, उस गाड़ी के फर्श पर बैठ गया। उसने तुरन्त उस छोटी-सी तलवार को इस प्रकार अपने हाथ में पकड़ रखा था, जैसे वह उसके भय से डूबते हुए मन का अन्तिम सहारा हो।

सुबह होने में अनुमान से दो घण्टे की देर थी। वह गाड़ी जिसे आप स्टोर गाड़ी कह सकते हैं, वह छोटी सी नदी के समीप आकर रुक गयी। घोड़ों को खोल दिया गया। वे पानी पीने लगे और उनके पानी पीने की आवाज, उस स्थिर, शान्त एवं निःशब्द वातावरण में अनुनाद-सा उत्पन्न कर रही थी।

उसकी नाक में आग के जलाने के कारण उत्पन्न हुए धुएँ की गंध भर उठी। उसे ऐसा लगा कि उसकी ठण्ड पल भर के लिए घट गयी।

कोई उस स्टोर गाड़ी के पिछले दरवाजे को खोल रहा था। वह सतर्क हो गया। सूर्य की हल्की आभा में उसने उस छोटे कद के, बड़े सिर वाले बौने को भीतर आते देखकर चतुर शिकारी की भाँति उसका हाथ पकड़कर अपनी तरफ खींच लिया। वह बौना घबराहट के कारण, उस अनपेक्षित घटना से, चकित होकर, पूरी ताकत से चीख उठा। उसकी चीख विचित्र थी, किसी बकरी की मिनमिनाहट की तरफ।

‘‘चुप रहो!’’ उसने उस बौने के गले पर उस छोटी तलवार को रखते हुए कहा।

वह बौना इस घटना के त्रास के कारण बेहोश हो गया था। वह कुछ हिलडुल नहीं रहा था। गर्दन घुमाने पर उसने देखा कि एक छाया काली चादर में लिपटी उस छोटे से दरवाजे पर खड़ी थी।

‘‘उसे मत मारो’’ उस छाया ने स्त्रीयोचित स्वर में कहा।

‘‘मुझे दो वस्तुओं की आवश्यकता है।’’

‘‘क्या हैं वे?’’

‘‘खाना और बदलने के लिए कपड़े।’’

‘‘खाना तुम्हें मैं दूँगी और कपड़े अगले पड़ाव पर

खरीद दूँगी।’

‘‘यह कौन है?’’

‘‘मेरा नौकर-बहुत पुराना और विश्वसनीय।’’

‘‘उसे छोड़ दो।’’

‘‘ठीक है।’’

‘‘जल्दी’’ ‘‘तुम जानते हो कि पुलिस तुम्हारे पीछे पड़ी है।’’

‘‘तो तुम जानती हो कि मैं कौन हूँ।’’

‘‘अच्छी तरह से, भली-भाँति।’’

‘‘कैसे?’’

‘‘जैसे तुम्हारी माँ तुम्हारे बारे में जानती है।’’

‘‘ओह! तो तुम जिप्सी जादूगरनी की तरह हो?’’

‘‘यह तो तुम्हीं जानो।’’

‘‘मैंने इस स्टोर गाड़ी को इसमें रखे तमाम सामानों को भली-भाँति देखा है। हम तुम दोनों एक ही धन्धे में लगे हैं। हम शत्रु होने की अपेक्षा मित्र बन जायें तो बेहतर होगा।’’ उसने सिर से पैर तक काली चादर से अपने को ढके हुए महिला के चेहरे पर दृष्टिपात करते हुए कहा।

‘‘तुम्हारी बात काबिले-गौर है बारबू गोल लू’’ उस महिला ने नपे सधे स्वर में उत्तर दिया।

बारबू गोल लू उस महिला के चेहरे की तरफ हैरत-भरी फटी आँखों से देख रहा था, जैसे उसे अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा हो।

‘‘मेरा नाम तुम कैसे जानती हो?’’

‘‘तुम्हारी माँ ने शायद पहले से ही मुझे बता रखा हो’’ अपने पतले लाल होठों पर कुटिल मुस्कान लाती हुई उस महिला ने उत्तर दिया।

बारबू लू कुछ पलों तक मौन रहा।

‘‘तुम्हारे नौकर का क्या नाम है?’’

‘‘आमन।’’

‘‘वह कितने सालों से तुम्हारे पास है?’’ अपने वाग्वाण

का संधान करते हुए बारबू गोल लू ने जानना चाहा।

‘‘यदि तुम्हें तथ्य बता दूँ तो तुम विश्वास नहीं करोगे?’’

‘‘फिर भी’’ इसरार भरे स्वर में बारबू ने जानने की इच्छा प्रगट की।

‘‘वह मेरे साथ बहुत दिनों से है, मेरी सेवा वह बहुत समय से कर रहा है।’’

‘‘फिर भी कितने समय से?’’

‘‘तुम गणना नहीं कर सकोगे।’’

‘‘और तुम्हारा नाम क्या है, मदाम?’’

‘‘लोग मुझे आमूहस्तप कहते हैं।’’

‘‘बहुत विशिष्ट इजिप्शियन नाम है आपका।’’ ‘‘ठीक तुम्हारे तुर्की नाम की भाँति।’’ सूरज का प्रकाश चतुर्दिक फैल चुका था। घोड़े भी तरोताजा हो गये थे।

‘‘तुम्हारे लिये यह कम्बल है। इससे अपने दुर्गन्धियुक्त शरीर को ढक लो और फिर यह ब्रेड लेकर आग के पास रखे टोमैटो सूप को ले लो।’’

‘‘ठीक है मदाम। मैं इस बौने आमन को भी साथ ले जा रहा हूँ आग के पास। वहीं हो दोनों पेट की आग बुझायेंगे।’’

‘‘देर मत करो’’ आदेश देते हुए मदाम आमू गाड़ी के दूसरी ओर चली गयी।

‘‘तुम्हारी मलिका तुम से कोई कड़ा काम नहीं लेती?’’ आमन को घूरते हुए बारबू ने पूछा।

अपनी मिमियाती आवाज में आमन ने कहा ‘‘नहीं,

वह मुझ पर कृपालु है।’’

‘‘तुम भाग्यशाली हो’’ बारबू का उत्तर था। उनकी बातें सुनने के लिए आमू उनके पास आ गयी।

‘‘मदाम, आप अकेली ही यह यात्रा कर रही हैं। एकाकी महिला पुरुष के सहयोग के बिना यह कार्य, इस जमाने में, जहाँ हत्यारे, डाकू, लुटेरे, दरिया डेन्यूब के उस क्षेत्र में स्वतंत्र घूमते हैं, कैसे करती हैं, यह मैं जानना चाहता हूँ?’’ रुक-रुक कर ब्रेड-सूप पीते-खाते बारबू ने पूछा।

‘‘तुम पहले सर्कस में काम करते थे, यह मुझे पता है तथा तुम इन धूर्त बाबुओं से, क्लर्कों से नुमायश की परमिट प्राप्त कर सकते हो, बारबू।’’

मदाम आमू का अनुरोध भरा स्वर प्रभावशाली रहा। बारबू अपने कौशल को, क्लर्कों को प्रभावित करने की कला का प्रदर्शन करने हेतु तैयार हो गया।

उसे आशा थी कि मदाम आमू उसे कपड़े, खाना और गाड़ी में साथ-साथ चलने की स्वीकृति अवश्य देंगी, वह सोचने लगा।

‘‘तुम हमारे सहयोगी हो अब, बारबू, मैं तुम्हें वह सभी उपलब्ध कराऊँगी जो तुम चाहते हो’’ उसके भावों को समझते हुए मदाम मामू ने उसको सुना दिया।

बारबू चकित था, ठगा-सा, विस्मित-सा वह मदाम आमू को देख रहा था।

घोड़े तेजी से उस मैदान में आगे बढ़ रहे थे। दोपहर ढल रही थी, गाड़ी रुक गई। बारबू ने स्टोर गाड़ी का पर्दा हटाया। उसके हटते ही आमन जोर से चीखा। वही परिचित बकरे की चीख। सूर्य का प्रकाश देखकर उसने आँखें बंद कर लीं। फर्श पर पेट के बल लेटकर, उसने कालीन अपने ऊपर डाल लिया।

चकित बारबू उसे देख रहा था। सामने एक पहाड़ी की तलहटी में बसा सुन्दर-सा गाँव था।

‘‘तुम प्रकाश से, रोशनी से डरते हो?’’ बारबू ने आमन से पूछा।

‘‘मुझे अन्धकार प्रिय है।’’

‘‘क्या तुम वैम्पायर हो?’’

‘‘मैंने तुम्हारा खून पिया नहीं है’’ आमन ने अपनी आँखों को बन्द किये हुये उत्तर दिया।

‘‘मदाम आमू तुम को किस काम के लिये रखे हुए हैं’’

आमन मौन रहा।

‘‘तुम्हारे लिये पहनने के लिए कपड़े’’ गाड़ी में कपड़ों का एक बन्डल फेंकते हुए मदाम आमू ने कहा।

बारबू ने उसे उत्सुकता से खोला और कम्बल जिससे वह अब तक अपना नग्न शरीर ढके था, हटाकर पैन्ट पहनने लगा।

मदाम आमू उसकी तरफ पीठ किये खड़ी थी। पैन्ट-कोट पहनते हुये उसकी दृष्टि मदाम आमू के पृष्ठभाग पर जमी रही। सुन्दर है इसका शरीर। कितने वर्ष की होंगी मदाम आमू। वह सोचने लगा।

दूसरे क्षण मदाम आमू उसके सम्मुख खड़ी थी, तनी हुई।

बारबू ने सुना मदाम आमू के शब्द, ‘‘इस ड्रेस का दाम तीस दीनार है।’’

‘‘बस इतना!’’ बारबू ने अपने उस खुरदुरे कोट की पॉकेट में हाथ डालकर कुछ टटोलने लगा। कुछ पलों बाद उसकी मुट्ठी में एक अँगूठी थी।

उसे अपनी हथेली पर रखकर, उसने मदाम आमू की तरफ देखते हुए कहा, ‘‘नील नदी में खिली कमलनी की भाँति सुन्दर, ओ! इजिप्ट की मलिका, यह तेरे लिये है।’’ कुछ क्षणों के बाद उसने उस अँगूठी को मदाम आमू

की उँगली में पहना दी।

मुझे स्पर्श मत करो, गन्दे तुर्क। तुम्हारी यह हरकत तुमसे आती बदबू की तरह है। वही बदबू तेरी इस अँगूठी में भी आ रही है। दूसरे ही क्षण एक तेज झटके के साथ वह अँगूठी मदाम आमू की उँगली से निकलकर जमीन पर पड़ी थी।

बारबू ने झुककर अँगूठी को उठा लिया और चूमकर, मदाम आमू को देखकर मुस्कुराता हुआ, उसके सामने खड़ा हो गया। उसे आशा थी कि मदाम आमू कुछ कहेगी।

मदाम आमू के निर्विकार चेहरे पर न कोई भाव उभर रहा था और न कोई संवेदना झलक रही थी। उसका चेहरा तनावरहित प्रस्तर प्रतिमा का चेहरा लगा बारबू को, जिसको वह समझने के प्रयास में अभी तक असफल रहा

था।

वह मदाम आमू के बगल में, बिना बुलाये बैठ गया। मदाम आमू अपने सधे हुये घोड़ों को चला रही थी, उस ओर जहाँ पर वह छोटी नदी सूख गयी थी और उधर से गाड़ी का निकलना सम्भव था।

‘‘मेरी प्रिय मैडम! आप मेरे ऊपर विश्वास कीजिये। मैं गलत व्यक्ति नहीं हूँ और न ही मैं गलत सलाह देता हूँ। आप भविष्यवाणी द्वारा कितना कमा लेती हैं?’’

‘‘बारबू! मेरी यात्रा का खर्च निकल जाता है’’ मदाम आमू ने उत्तर दिया।

‘‘तब तो आप कुछ नहीं पातीं। आप क्या काफी के प्याले से, ‘क्रिस्टल बाल’ से अथवा संकेतों के माध्यम से भविष्यवाणी करती हैं?’’

‘‘नहीं, मैं हस्तरेखाओं को पढ़ती हूँ। उनका मुझे पूरा ज्ञान है।’’

‘‘तब तो आप उन्हें खूब भयभीत करती होंगी, भय का, आने वाले संकट के निराकरण का मार्ग बताती होंगी, और इस प्रकार उनसे धन ऐंठती होंगी?’’

‘‘नहीं, मैं मात्रा सत्य बताती हूँ। उन्हें अनावश्यक रूप से, मेरा तात्पर्य उस जिज्ञासु को सत्य बता देती हूँ और फिर वह जो कुछ दे देता है, उसे स्वीकार कर लेती हूँ’’ मदाम आमू ने उत्तर दिया।

‘‘लगता है तुम प्राचीन मिस्र के, इजिप्ट के किसी श्राप के कारण ऐसा कर रही हो’’ अपने ज्ञान का प्रदर्शन करते हुए बारबू ने कहा।

मदाम आमू ने उस पर जलती हुई निगाह डाली।

बारबू को लगा कि वह सिर से पैर तक सिहर उठा।

मदाम आमू के ओंठ गोल हो गये, जैसे वह मंत्र पाठ कर रही हो।

बारबू ने मदाम आमू के चेहरे की तरफ, उसकी गरुड़ की भाँति मुड़ी हुई नासिका पर, उसके सुन्दर पतले होठों को, आँखों को ध्यान से देखा। सुन्दर है मदाम आमू। वह सोच रहा था।

रात्रि अपनी चादर फैलाकर उन्हें ढकने का प्रयास कर रही थी।

सूर्य के प्रकाश से घबराने वाला आमन जाग गया था। उसने मदाम को पुकारा।

‘‘तुम्हारा बौना वैम्पायर जाग गया। रात्रि के आते ही वह चैतन्य हो गया है’’ व्यंग्यात्मक स्वर में बारबू ने कहा।

‘‘वह तुम्हारा नहीं है’’ मदाम आमू का त्वरित उत्तर था।

‘‘तुम्हारे लिये खाने का सामान रखा है, उसी बॉक्स में उसे खा लेना’’ कहती हुई मदाम आमू ने घोड़ों की लगाम तेजी से खींचकर ढीली कर दी। कुछ सैकण्ड बाद उनकी गाड़ी एक गाँव के मैदान में खड़ी थी।

वह मैदान उस छोटे से गाँव के मध्य में था। जहाँ पर इस गर्मी के मौसम में मेला-रात्रि मेला लगता था। उसी मैदान के एक कोने में, जहाँ कुछ छायादार पेड़ थे, मदाम आमू ने अपनी गाड़ी रोककर कैम्प करने का निश्चय किया। वह कोना कुछ साफ था, क्योंकि उस मैदान में चारों तरफ कागज की प्लेंटे, लिफाफे, घोड़ों का मल और उनके मूत्र की दुर्गंध तथा अधपके खाने की जूठनें पड़ी थीं।

मदाम आमू अपनी गाड़ी से उतरकर अपने दोनों हाथों को ऊपर उठाकर कुछ अस्पष्ट-सा उच्चारित कर रही थी। फिर उसने अपने को पूरी तरह से चादर से ढक कर हाथों को जोड़कर पूरब-पश्चिम, उत्तर-दक्षिण दिशाओं की तरफ घूम-घूमकर कुछ कहा और इसके बाद अपनी काली चादर को तेजी से अपनी गाड़ी के ऊपर फेंककर दोनों पैरों और हाथों को फैलाकर उस स्थान पर पाँच चक्कर लगाकर रुक गयी। वह कुछ कह रही थीं उसके पतले होठों में अजीब-सा कम्पन हो रहा था। वह अशान्त थी और फिर उसने आगे बढ़कर चादर से अपने को ढक लिया। बारबू आँखें फाड़कर यह सब देख रहा था। यद्यपि वह अपनी भाव-भंगिमा पर नियंत्रण रखने का प्रयास कर रहा था, परन्तु तथ्यतः वह भयभीत था और उस गाड़ी के भीतर बैठा आमन विचित्र प्रकार की आवाज में कुछ कह रहा था। बारबू के लिये आमन की बात को, शब्दों को समझ पाना कठिन था। वह सोच रहा था कि मदाम आमू किस को किस भाषा में, किस लिये सम्बोधित कर रही है।

रात्रि के बढ़ने के पहले ही लोगों ने उस गन्दे मैदान को साफ कर दिया था और उसमें आसपास से आये व्यापारियों की, दुकानदारों की, करतबबाजों की, गाने वालों की दुकानें-स्टाल लग रहे थे।

बारबू तनावग्रस्त था। वह इस दृश्य को देखकर सोच रहा था कि किस प्रकार इस मेले का आर्थिक लाभ उठाया जाये। उसे एक क्षण लगा कि मदाम आमू अपनी गाड़ी से उतर कर उसके पीछे खड़ी है।

घबराकर उसने गर्दन पीछे घुमायी। वास्तव में मदाम आमू उसके पीछे खड़ी थी। उसने मदाम को देखकर मुस्कुराने का प्रयास किया, पर उसकी आँखों से मदाम आमू की आँखों को टकराते ही, उसकी मुस्कान गायब हो गयी। बारबू सिर से पैर तक काँप उठा।

मदाम आमू ने उसकी तरफ एक चमड़े का पर्स बढ़ाते हुए कहा, ‘‘यह मेरे पेपर्स हैं, इन्हें लेकर मेला-क्लर्क के पास चले जाओ और मेरे शो के लिए परमिट बनवा लो।’’ ‘‘ठीक है मदाम! पर क्या इसमें कुछ दीनार भी है?’’ ‘‘नहीं।’’

‘‘वह मैं तुम्हें दे रही हूँ’’ कहते हुए मदाम आमू ने अपने दूसरे हाथ की मुट्ठी में दबे सौ दीनार के नोटों को बारबू की ओर बढ़ा दिया।

बारबू की आँखें चमक उठीं। उसने तेजी से परमिट क्लर्क की लगी टेबिल की ओर कदम बढ़ा दिये। उस क्लर्क से परमिट पाने के लिए लम्बी कतार लगी थी, लोगों की।

परमिट क्लर्क अपेक्षाकृत ईमानदार था। उनसे बारबू

का नम्बर आते ही कहा, ‘‘पेपर्स।’’

‘‘यह हैं’’ कहते हुए बारबू ने पेपरों को उसकी तरफ बढ़ा दिया।

‘‘यह तो कोई स्त्री है-मदाम आमू?’’

‘‘रूसी है या जिप्सी इजिप्शिन?’’

‘‘नहीं इजिप्ट की हैं, मदाम आमू’’ बारबू ने कहा। ‘‘तुम्हारी.... है?’’

‘‘नहीं, वह मेरी पत्नी बाद में हुई। पहले वह हरम-डांसर थी। दुर्भाग्य से वे हरम की नर्तकी के कार्य से निकाल दी गयीं और बहुत ही दयनीय स्थिति में वे मुझे प्राप्त हुई थी। काहिरा की एक सराय में-तीन दिनों से भूखी।’’

‘‘मैंने उनकी सहायता की। क्रमशः वे स्वस्थ हो गयीं और उनमें इस भूख की प्रताड़ना के कारण, एक नवीन शक्ति का संचार हो गया। वे आने वाली घटनाओं को देख सकती हैं-हस्त रेखाओं के माध्यम से।’’

‘‘ओह! तो वे हस्त रेखा विशेषज्ञ हैं?’’ क्लर्क ने आश्चर्य पूछा।

‘‘वे अनोखी दृष्टि सम्पन्न है-इस विषय की पूर्ण ज्ञाता हैं।’’

‘‘दस दीनार।’’

‘‘यह लो’’ कहते हुए बारबू ने उसे नोट दे दिया और परमिट लेकर मदाम आमू के पास आ गया।

‘‘मैं तुम्हारा सेवक, अब कौन-सा कार्य करूँ?’’ कहते हुए उसने परमिट मदाम आमू को दे दिया।

मदाम ने उसे ध्यान से देखा, ‘‘ठीक है! अब तुम थोड़ा आराम कर लो’’ कहकर बारबू की तरफ उसने अपनी पीठ कर दी। बारबू ने कुछ देर तक उसके कहने की प्रतीक्षा की, परन्तु कुछ उत्तर न पाने के उपरान्त वह कहने लगा, ‘‘क्या मदाम के लिए मैं ड्रम अथवा नगाड़ा बजाकर घोषणा करूँ।’’

‘‘नहीं, तुम मक्खियाँ भगाने का काम करो’’ कहती हुई मदाम आमू गाड़ी में बैठ गयी। बारबू मदाम आमू के पर्स को दबाता परोक्ष में मदाम के स्पर्श की अनुभूति करता उस मेले में लग रही दुकानों-स्टालों को, पुरुषों को, स्त्रियों को व बच्चों को देखने में व्यस्त हो गया।

उसने साथ चलने के लिए आमन को जगा दिया। दोनों अब स्टालों को देख रहे थे-आमन चैतन्य था-रात्रिचर जो ठहरा वह।

एक स्टाल पर एक नवयुवती अपनी शारीरिक क्षमता का, लचीलेपन का प्रदर्शन कर रही थी, जो दूसरे स्टाल पर एक नवजवान अपने हाथों में जलती हुई गर्म लाल लोहे की छड़ को पकड़ कर उछाल रहा था। दूर के एक स्टाल पर जलते अंगारों पर एक युवती नंगे पैर दौड़ रही थी। सारे मैदान में ठहाकों के, बाजों के जोर-जोर से अपना प्रचार करते व्यापारियों की मिश्रित आवाजें गूँज रही थीं।

बारबू बौने आमन का हाथ पकड़ कर उसे चारों तरफ टहला रहा था।

‘‘मुझे भूख लगी है।’’

‘‘छोटे वैम्पायर! यहाँ तुम्हें पीने के लिए खून नहीं मिलेगा’’ उसका हाथ जोर से दबाते हुए बारबू ने कहा।

‘‘मुझे वह खाना है मक्के-भुने हुए’’ आग पर, मक्के की बाली को दिखाते हुए आमन ने कहा।

बारबू उसे घसीटता हुआ, उस स्टाल पर ले गया जहाँ पर दहकते हुये अँगारों पर मक्का भूना जा रहा था। दुकानदार ने पास में रखी नमकीन पानी की बाल्टी में गर्म भुने मक्के को भिगोकर-डूबाकर आमन को पकड़ा दिया। आमन का चेहरा प्रसन्नता से खिल उठा। उसकी आँखों में चमक आ गयी।

मदाम आमू की गाड़ी से एक व्यक्ति बाहर निकला। वह रात की लैन्टर्न की रोशनी में भी भय के कारण पीला पड़ गया था-वह काँप रहा था।

बारबू ने आमन का हाथ पकड़ कर उसे आगे खींच लिया। वे दोनों एक दूसरे स्टाल के सामने खड़े थे।

‘‘इस जार में जड़े पत्थर के छोटे टुकड़ों को बताने वाले को सौ दीनार इनाम’’ कहते हुए एक ग्लास जार में भरे पत्थरों को जार में ऊपर से नीचे करता दुकानदार जोर-जोर से चिल्ला रहा था।

‘‘बताने के लिए दस दीनार की फीस’’ दुकानदार कह रहा था।

‘‘मैं बता दूँगा’’ आमन ने कहा।

‘‘तुम! तुम बौने-’’ बारबू ने उसे-आमन के घूरते हुए कहा।

‘‘तुम दस दीनार दो, मैं अभी बताता हूँ’’ कहते हुए आमन ने दस दीनार स्टाल पर फेंका।

स्टाल वाले ने अपने जार को ऊपर से नीचे किया और चीखा, ‘‘कितने पत्थर?’’

‘‘पाँच सौ तैंतीस’’ आमन की खरगोश की सी आवाज गूँजी।

‘‘बाहर निकाल कर पत्थरों को गिनो’’ आवाजें आने लगीं।

आमन के सामने पत्थर गिने गये। वे पूरे पाँच सौ तैंतीस निकले।

भीड़ ने आमन के हुनर की तारीफ की। दुकान मालिक ने उसे सौ दीनार दिये।

और थोड़ी देर बाद वही दुकानदार दहाड़ रहा था, ‘‘सौ दीनार जमाकर एक हजार दीनार पाइये। बताइये इस जार में कितनी मोतियाँ हैं। एक दो तीन! आइये दाँव लगाइये और जीतिये एक हजार दीनार!’’

दाँव लगाने वालों के सौ दीनार दुकानदार पर बरस रहे थे। लोग चीख रहे थे। कोई 700 मोती बता रहा था तो कोई ग्यारह सौ। मोतियों की संख्या वह दुकानदार प्रत्येक बोलने वाले के नाम के आगे नोट करता जा रहा

था। बारबू ने आमन से कहा, ‘‘यह वह तैयार हो तो सौ दीनार का दाँव लगाया जाये।’’ उस भीड़ में तीन फुट के आमन के लिये दुकानदार का मोतियों का जार देख पाना सम्भव नहीं था।

‘‘तुम मुझे यदि कँधे पर बैठा लो, तो तुम दाँव लगा सकते हो?’’ आमन ने कहा। बारबू ने आमन को कंधे पर बैठा कर चीखा, ‘‘सौ दीनार आमन के नाम।’’

‘‘लिख लिया, दीनार दो’’ दूकानदार की आवाज गूँजी।

‘‘लो’’ कहकर बारबू ने उसे दीनार पकड़ा दिये।

‘‘हाँ बताइये साहबान! कितने मोती। आखिरी बार मैं कह रहा हूँ। दुकानदार चीखा।

‘‘एक हजार तीन’’ ‘‘एक हजार तीन’’ आमन अपनी खरगोश की मिचमिचाती आवाज में चीखा।

‘‘एक हजार तीन मोती इस जार में हैं। उन्हें गिनो’’ बारबू की गरजदार आवाज के साथ दुकानदार ने मोतियों की गिनती उन्हें जार से सफेद कपड़े पर गिराकर, सबके सामने गिनना शुरू कर दिया।

भीड़ आँखों को मोतियों पर जमाये, कानों से प्रत्येक अंक ध्यान से सुनने के लिए तत्पर खड़ी थी। गिनती चल रही थी। लोगों की, दाँव लगाने वालों की साँसों का ऊपर नीचे होना चल रहा था।

नौ सौ के बाद भीड़ कम हो गयी और एक हजार की संख्या आते आते मात्रा दस व्यक्ति रह गये।

‘‘एक हजार तीन मोती-आमन को एक हजार दीनार।’’ बारबू ने आमन को अपने कंधे पर विजयी होने के लिए दो बार उचकाया और फिर चीखा ‘‘आमन जीत गया, आमन जिन्दाबाद।’’ आमन ने नोट गिनकर अपनी पॉकेट में रखा और बोला, ‘‘मुझे भूख लगी है।’’ अर्धरात्रि हो गयी थी। गरमी के मौसम का लुत्फ उठाता हुआ मेला शबाब पर था।

खाने की खोज में वे दोनों एक स्टाल के सामने से स्टूल पर बैठ गये। बारबू ने कहा ‘‘पुलाव और सीख कबाब तथा बादमजान (बैंगन) का भुर्ता और प्याज।’’ पाँच मिनट बाद बादमजान के बुर्ते (भुर्ता) को पुलाव में मक्खन मिलाकर, कबाब के साथ दोनों विजेता खाने पर जुटे थे। प्याज को दाँतों से काटने की उनके स्वाद को बढ़ा रही थी। दोनों वास्तव में भूखे थे। खाने को समाप्त करने में उन्हें मात्रा पन्द्रह मिनट लगे। पेमेन्ट कर वे इधर-उधर मटरगश्ती-सा करते मदाम आमू को अपनी उपलब्धि बताने को आतुर थे। मदाम आमू की गाड़ी के सामने खड़ा व्यक्ति बार-बार उनसे कुछ पूछ रहा था। मैडम उसे कुछ समझा रही थीं। अन्त में वह उन्हें कुछ देता हुआ भीड़ में गायब हो गया।

मदाम आमू अपनी गाड़ी से बाहर आ गयी थीं। बारबू आमन को घसीटता-सा उनके सम्मुख ले आया। ‘‘तुम्हारे इस बौने सेवक ने आज कमाल कर दिया।’’ ‘‘क्या किया?’’

‘‘इसने एक हजार दीनार जीत लिए। मोतियों की संख्या बिलकुल सही बताकर’’ बारबू ने उत्साह से बताया।

‘‘मेरे लिये यह आश्चर्य की बात नहीं है’’ मदाम आमू का संक्षिप्त उत्तर था।

बारबू मदाम की बगल में खड़ा था। उसने मदाम की आँखों में देखने का प्रयास करते हुए उनका हाथ पकड़ा और कहा, ‘‘मदाम! उस स्टाल पर अच्छा भोजन किया था हमने, क्या आपको भूख नहीं लगी है?’’ बारबू ने मदाम आमू को अपने पास लाने का प्रयास किया। दूसरे क्षण उसे लगा कि मदाम की फौलादी उंगलियों के दबाव के कारण उसकी कलाई टूट जायेगी। उसने अपना हाथ छुड़ाने का प्रयास किया-पर वह तो न हो सका... उसकी कलाई पर फौलादी शिकंजा कसता जा रहा था... वह चीख पड़ा, ‘‘मुझे छोड़ दो मदाम! मेरी जान! .... कलाई टूट जायेगी...’’ यह कहते-कहते वह पसीने से भीग गया था।

मदाम ने उसकी कलाई को छोड़ दिया। बारबू जमीन पर बैठ गया था और आमन... खरगोश की भाँति दाँतों को निकाल कर हँस रहा था।

मदाम आमू अकेले ही उस मेले में घूमने चली गई। बारबू अब सामान्य हो गया था। उसने देखा मदाम आमू एक पैकेट में कुछ लेकर आ रही थीं।

‘‘आपका यह सेवक यह कार्य कर सकता था’’ अपने विशिष्ट तुर्की अन्दाज में बारबू ने मदाम को सम्बोधित करते हुए कहा।

‘‘सेवक तो आमन है, तुम नहीं’’ मदाम का सधा संक्षिप्त उत्तर था।

‘‘आप का आमन जो एक धन कमाने वाली मशीन-सा है, उसका धन कमाने हेतु आप उपयोग क्यों नहीं करतीं? आप बताइए क्या इसमें कुछ रहस्य है?’’ बारबू ने इसरार भरे स्वर में कहा।

‘‘रहस्य! तुम क्या समझोगे रहस्य को!! आमन स्वयं एक रहस्य है।’’

‘‘इस रहस्य को... आमन को कहाँ से लायी हैं आप?’’

‘‘अनाथालय से।’’

यह कहती हुई मदाम आमू पैकेट को लेकर गाड़ी में बैठ गयी। घोड़े मदाम आमू का संकेत पाते ही चल पड़े। आमन तो गाड़ी में बैठा था पर बारबू उस गाड़ी के पीछे दौड़ रहा था। मदाम ने गाड़ी खड़ी कर दी, हाँफता बारबू गाड़ी पर चढ़कर मदाम आमू के बगल में बैठ गया। रात्रि अभी बाकी थी। उनकी गाड़ी दोनों तरफ जंगलों के मध्य की सड़क पर चली जा रही थी। दौड़ते घोड़ों के सामने भेड़ियों का एक झुँड खड़ा था। बारबू ने उन पर बन्दूक से निशाना लगाना चाहा, परन्तु गाड़ी के भीतर बैठे अथवा लेटे हुए आमन ने एक विचित्र प्रकार की आवाज निकाली। उसने पूरी ताकत से उसी आवाज को दुहराया। भेड़िये कान उठाकर सुनने लगे। आमन की तीसरी बार की आवाज ने उन भेड़ियों को घोड़ों के सामने से हटने के लिए बाध्य कर दिया। वे धीरे-धीरे जंगल में अदृश्य हो गए।

बारबू हाथ में बन्दूक लिये चकित-सा यह नजारा देख रहा था। उसे लगा कि जैसे वह एक स्वप्न देख रहा था। गाड़ी आगे चल पड़ी।

प्राची में सूर्य की किरणों का नर्तन प्रारम्भ हो चुका था। पल-पल में जंगल और पहाड़ों का दृश्य बदल रहा था। सामने की नदी में पड़ती सूर्य की किरणें उसे ओर स्वर्णिम बना रही थी। घोड़े पानी देखकर हिनहिना उठे। मदाम ने गाड़ी रोक दी। बारबू बन्दूक जिसे वह अभी तक हाथ में पकड़े था, गाड़ी में रखकर कूद पड़ा।

मदाम आमू घोड़ों को खोलकर उन्हें पानी पिलाने, नदी की तरफ जा रही थी। बारबू भी कुछ सोचता हुआ, धीरे-धीरे मदाम की पीछे जा रहा था और आमन अपनी चादर से मुख को ढक कर सो रहा था। उसके स्वभाव के प्रतिकूल था, सूर्य दर्शन।

घोड़ों को पानी पिलाकर मदाम कुछ विचार करने लगी।

‘‘मुझे तीन घण्टों के लिए यहाँ से कुछ दूर जाना होगा। तुम आमन के साथ गाड़ी की और तीन घोड़ों की सुरक्षा करोगे?’’ उसने बारबू से कहा।

‘‘मगर तीन घोड़े’’ बारबू ने सआश्चर्य कहा।

‘‘क्योंकि चौथे घोड़े पर सवार होकर मैं उधर जाऊँगी।’’ ‘‘नंगे घोड़े की पीठ पर तुम बैठ लोगी?’’

‘‘तुम देखना’’ कहती हुई मदाम आमू एक घोड़े पर आसानी से सवार होकर आँखों से ओझल हो गयी। वह जंगल में अदृश्य हो गयी।

‘‘हो सकता है मदाम स्नान करने किसी सरोवर में जो जंगल के मध्य में है, वहीं गयी हो’’ बारबू बड़बड़ा रहा था। वह तीनों घोड़ों को पानी पिलाकर घास चरने के लिए पेड़ से बाँध दिया।

आमन सो रहा था। बारबू ने मदाम की गाड़ी-स्टोर गाड़ी की दुबारा तलाशी लेने का विचार बनाया। उसे तलाश थी सोने की छड़ों की, सोने के सिक्कों की और छिपे दीनारों की-तुर्की के सोने की दीनारों की।

उसने उस गाड़ी में बनी गुप्त दराजों को खोलना शुरू किया। कुछ दराजों में शीशे के बर्तन, कुछ में शीशे के बने रिटार्ट के भाग, कुछ में विविध प्रकार की जड़ी-बूटियाँ और एक दराज में नमक का तेजाब तथा दूसरे दराज में जो अपेक्षाकृत बड़ी थी, में कई बोतलों में लाल शराब, अँगूर की लाल शराब भरी हुई थी।

सोना... लूट का सोना... वह नहीं था। बारबू को कागजों, स्याहियों और शीशे के बर्तनों से क्या मतलब। आराम से सो रहा आमन जाग गया।

‘‘क्या झांक-ताक कर रहे हो तुम?’’ उसने बारबू से पूछा।

‘‘तुम्हें जगाने के लिए बस खटपट कर रहा था’’ बारबू ने बात बनाते हुए कहा।

‘‘तुम दिन में क्यों सोते रहते हो?’’

‘‘सूर्य का प्रश मेरी आँखों में गड़ता है’’ आमन ने आँखों को मलते हुए उत्तर दिया।

बारबू गाड़ी से उतर कर गाँव से खाने का सामान खरीदने चला गया। रात हो चुकी थी। आमन लैम्प जलाकर बारबू की प्रतीक्षा कर रहा था। उसने आग जला रखी थी और उसी के समीप बैठकर वह कुछ अपने से ही कह रहा था। रात्रि में बियावान में, सन्नाटे में आवाज तेज सुनायी पड़ती है।

बारबू हाथों में झोलों में भरकर सामान खरीद लाया था। उसने आमन से पैन लाने के लिए कहा और उसमें समीप बहती नदी से पानी लाकर, डालकर उसे उबलने के लिए रख दिया। आग में उसने बादमजान (बैंगन) डाल दिया और पैन में कच्चे आलू को काटकर, मसाले डालकर, उबलाने लगा। पानी के सूखने के बाद और चर्बी डालकर आलू को तल लिया। बैंगन भुन चुका था। उनकी भूख बढ़ रही थी। बैंगन का भुर्ता, फ्राइड आलू और मोटी मक्के की ब्रेड, उन दोनों को अमृत का स्वाद दे रही थी। खाना खाकर आग से अपने को गर्म करते हुए बारबू ने आमन से पूछा ‘‘तुम मदाम आमू की सेवा में कितने दिनों से हो?’’

‘‘बहुत दिनों से... अनेक वर्षों से।’’

‘‘क्या हजार वर्षों से?’’ बारबू ने व्यंग्य करते हुए कहा।

‘‘हो सकता है’’ गम्भीरता से आमन ने उत्तर दिया। उत्तर बारबू को परेशान करने के लिए काफी था।

‘‘तुम मदाम का क्या काम करते हो?’’

‘‘सब काम।’’

‘‘पर कुछ खास काम भी तुम करते हो?’’

‘‘हाँ! मैं मदाम को अमृत-रस पिलाता हूँ।’’

‘‘क्या! अमृत-रस!!’’

‘‘यह क्या होता है?’’

‘‘यह उन दराजों में जड़ी-बूटियों को मिलाकर वाइन

की बोतल में भरकर रखा जाता है।’’

‘‘ओह! तो लाल शराब की बोतलें!’’ बारबू कहते हुए रुक गया।

‘‘तुम इनको देख चुके हो। मैं जानता हूँ’’

‘‘तो तुम जग रहे थे... जब मैं....’’ बारबू पूरी बात कह न सका।

‘‘मैं सोते समय भी जागता रहता हूँ’’ आमन का प्रतिउत्तर बारबू को कंपा देने के लिए काफी था। कुछ साहस जुटाकर उसने आमन से फिर पूछा, ‘‘आमन! मदाम आमू अमृत-रस क्यों पीती हैं?’’

‘‘जिससे वह मृत्यु का ग्रास न बन सके।’’

‘‘तो उसकी आयु कितनी होगी?’’

‘‘कोई नहीं जानता’’ आमन का उत्तर था। दूर जंगल की ओर से आती हुई घोड़ों के टापों की आवाज ने उसे चौंका दिया।

उसने आग में और सूखी लकड़ियाँ डाल दीं। आग तेजी से धधक उठी।

घोड़ा अपने साथियों को देखकर हिनहिनाया। दूसरे पल मदाम आमू आग के पास खड़ी थी।

बारबू ने घोड़े को नदी के पास पानी पीने के लिए ले गया। मदाम आमू, आमन के बगल में बैठ गई।

‘‘स्वागत है रानी का!’’ अपनी आवाज को मधुर बनाते हुए बारबू ने कहा।

‘‘उससे भेंट हुई?’’

‘‘यह तो तुम्हीं जानो’’ मदाम के उत्तर ने बारबू को दो पलों के लिए मौन कर दिया।

‘‘कुछ आप खाना पसन्द करेंगी, मदाम!!’’ अपनी वाक्पटुता का प्रदर्शन करते हुए बारबू ने कहा।

‘‘ब्रेड तो तुम लाये हो। मेरे घोड़े की पीठ पर एक बैग बंधा है। उसमें सालमन है। उसे आग में भूनकर, ब्रेड के साथ मैं उसे खाना पसन्द करूँगी’’ मदाम आमू ने बताया।

बारबू ने झोले से मछली निकाल पर आग में डाल दी। करीब आधे घण्टे के बाद वह बेक हो चुकी थी। एक प्लेट में उस पर नमक, काली मिर्च और पिघली चर्बी डालकर मदाम ने ब्रेड के साथ उस मछली को जिस चाव से, प्रेम से खाया, उसे देखकर बारबू चकित था।

भोजन के बाद मदाम अपनी गाड़ी के आगे के बड़े बॉक्स पर तथा बारबू और आमन गाड़ी के भीतर सो गये। घोड़े आग के पास बैठ गये थे।

सूर्य के क्षितिज पर उदय होने के साथ ही मदाम आमू की गाड़ी चल दी। दूर दिखने वाला पहाड़ क्रमशः पास आता जा रहा था। जंगल के वृक्षों की संख्या घटती जा रही थी और रास्ता धूल भरा था। घोड़ों के दौड़ने से धूल उड़ती थी। उस रास्ते से मदाम आमू भली-भाँति परिचित थी। यह बारबू समझ चुका था। वे अब पहाड़ों के मध्य से जा रहे थे। सामने के नगर का चर्च और सुन्दर मकान साफ-साफ दिख रहे थे। यह नगर पहाड़ के दूसरी ओर उसकी तलहटी में बसा था और एक नदी उस शहर को दो भागों में बाँट रही थी। दोनों भाग एक पुल के द्वारा जुड़े थे। आवागमन उसी पुल से होता था।

मदाम आमू की गाड़ी उस पुल को पार कर दूसरी ओर के मैदान में रुक गयी।

यहीं कार्निवाल की-मेले के जगह थी। सूर्य मध्याह्न में था। घोड़े थके थे। उन्हें पानी पीने के लिए खोलकर मदाम आमू पहाड़ों पर अपनी कृपा रश्मि बरसाते हुए सूर्य को इस प्रकार देख रही थी जैसे प्रेमिका प्रेमी की छवि को निरख कर तुष्टि पाती हो।

मदाम आमू ने बारबू को अपना चमड़े का पर्स देकर मेला-क्लर्क से परमिट लेने के लिए कहा।

क्लर्क ने बारबू को खा जाने वाली दृष्टि से देखा। उसकी गुर्राहट भरी आवाज सुनकर बारबू ने उसे पेपर्स दिये। बिना बारबू को देखे उसने कहा ‘‘सौ दीनार।’’ सौ दीनार पाते हुए उसने मुहर लगायी। उसे बारबू की शक्ल से दीनार की शक्ल अच्छी लगी। बारबू बिना कुछ कहे कागजों पर लगी मोहर को देखता हुआ चल दिया।

शाम को वह मैदान गैस लाइट और क्षेत्रीय नागरिक संगीत से गूँज उठा।

बारबू ने आमन का हाथ पकड़ कर, एक प्रकार से उसे खींचता हुआ गाड़ी से उतारा। आमन ने चीखकर आँखों को बन्द कर लिया। ‘‘क्या हुआ?’’ बारबू ने पूछा।

‘‘बहुत प्रकाश है’’ आमन का उत्तर था।

‘‘यह गैस लैम्प का प्रकाश है, सूर्य का नहीं.. तुम बेवकूफ...’’ कहते हुए बारबू ने उसे तेजी से घसीट लिया।

‘‘मुझे भूख लगी है, मैं वियना सासेज खाऊँगा’’ आमन चिंचियाया।

‘‘आओ देखें’’ कहता हुआ बारबू आमन का हाथ पकड़े खाने के स्टाल के सामने पहुँच कर वियना सासेज की फर्माइश की।

‘‘वह नहीं है पर सारमाले बढ़िया पोलेन्टा के साथ मिल सकता है।’’ दुकान मालिक की आवाज ने मसालेदार पोलेन्टा की कल्पना मात्रा से ही, बारबू के मुख में पानी ला दिया।

उसने एक प्लेट सारमाले जिसमें शोरबा मसालेदार था तथा पोलेन्टा लेकर, मैदान के एक शान्त कोने में आकर खाने लगा। उसने आमन को सारमाले, अंगूर के पत्ते में लिपटी सरमाले खाने के लिए दिया। पर आमन... आमन

ठहरा। उसने वियना सासेज की जिद लगा रखी थीं सारमाले ओर पोलेन्टा को समाप्त कर बारबू ने आमन का हाथ पकड़ा और शुरू हो गयी तलाश वियना सोसेज की। किसी भी फ्रूट-सलाद स्टाल पर वियना सासेज नहीं मिला। हार कर आमन ने कहा, ‘‘मुझे कैन्डी-फ्लास खिलाओ।’’ बारबू ने उसे कैन्डी फ्लास खरीद दी। प्रसन्न आमन उसे खाने में जुट गया।

बारबू आमन को देख रहा था। कैन्डी खाकर आमन ने डकार ली। बारबू ने उसे पास लाकर कहा, ‘‘तुम तो बेवकूफ हो। तुम्हें, स्त्री, शराब और डाँस का कुछ अन्दाज नहीं है। मेरा खून गर्म हो रहा है, मैं चाहता हूँ कि तुम्हारी मदाम को बता दूँ, दिखा दूँ कि मेरा पौरुष कैसा है। वह मुझे उत्तेजित करती है।’’

पर आमन कैन्डी की बची कोन को देख रहा था। वह

पौरुष क्या होता है जानता ही नहीं था।

मदाम आमू को हाथ दिखाकर गाड़ी के भीतर गया व्यक्ति बाहर आ गया था। उसके गाड़ी से थोड़ी दूर जाते ही मदाम गाड़ी से बाहर आ गयी।

वह आमन को देख रही थीं और बारबू मदाम को। वह मन ही मन कह उठा, ‘‘काश यह फौलादी औरत एक बार.....।’’

‘‘आमन को क्या हुआ?’’ मदाम ने पूछा।

‘‘कैन्डी फ्लास को खाकर उल्टी कर रहा है’’ बारबू ने सीधे उत्तर दिया।

मदाम को देखकर आमन कहने लगा, ‘‘मुझे भूख लगी है..... मुझे खाना खिला दो। मैं आलू का बुरता (भुर्ता) खाऊँगा।’’

‘‘मैं तुम्हें और इस सुन्दरी को खाना खिलाऊँगा’’ बारबू ने कहा। मदाम आमू की दृष्टि उस पर पड़ी। उसे लगा कि उसके हृदय की गति मंद हो गयी। फिर भी उसने मुस्कुराने का प्रयास किया। मदाम आमू ने उसे याद दिलाया, ‘‘आधी रात हो चुकी है।’’

‘‘वह स्टाल खुला है-उसकी लाइट जल रही है’’ बारबू का उत्तर सुनकर मदाम आमू, आमन के साथ चल दीं। स्टाल के पास खाने वालों की भीड़ लगी थी। किनारे की एक टेबिल पर वे तीनों बैठ गये। मदाम आमू ने भीड़ को ध्यान से देखा और उसे कुछ महत्त्व न देते हुए उसने आमन को अपनी काली चादर से ढक दिया। शीत के प्रभाव से बच जाने के बाद उसका काँपना रुक गया।

एक वेटर मीनू कार्ड लेकर आ गया। लम्बा, सुन्दर और अपनी काली घनी मूँछों से छिपे होठों से तेजी से बोलता हुआ सने कहा, ‘‘फैमिली के लिए क्या लाऊँ?’’

‘‘कार्टे-डी-नुई (रात्रि का कार्ड पर लिखा मीनू) बारबू ने कहा.... और हाँ, ‘जरीना सूप’ भी।

मदाम की तरफ देखकर बारबू ने कहा, ‘‘आप मेरी मदाम और मैं...।’’

‘‘तुम एक गधे हो’’ मदाम की व्यंग्योक्ति गूँजी। कुछ देर के लिए मौन छा गया। वेटर ने वाइन की एक पुरानी बॉटल खोली। ‘‘मैं आलू खाऊँगा’’ आमन फुसफुसाया।

‘‘ठीक है, क्या वियना सासेज मिल सकेगी?’’ बारबू ने पूछा।

‘‘कोशिश करूँगा और मदाम आप के लिए।’’ मदाम आमू ने कुछ कहा पर किस भाषा में बारबू समझ न सका। वेटर ने अपने पैड पर लिख लिया और फिर उसने बारबू की तरफ भौहों के नीचे से मुस्काते हुए पूछा, ‘‘सर! आप क्या लेंगे?’’ ‘‘ब्लूट डर्स्ट’’ बारबू का उत्तर था। वे डिनर कर रहे थो कि उनके सामने की टेबिल से उठकर एक नवयुवक और युवती उनके पास आ गये। मदाम आमू को अपना हाथ दिखाते हुए युवक ने कहा, ‘‘हम जीवन भर एक-दूसरे को प्यार करेंगे?’’

‘‘तुम तीन दिन के भीतर मर जाओगे’’ मदाम आमू ने अपनी तेज आवाज में उत्तर दिया।

वह युवक घबराकर हट गया, युवती उससे चिपक गयी। वे उस स्टाल से उठकर बाहर आ गये।

‘‘तुमने ऐसा क्यों कहा?’’ बारबू ने मदाम आमू से पूछा।

‘‘मरना तो उन्हें है ही चाहे वह तीन दिन बाद मरे या तीन साल बाद, कोई फर्क नहीं पड़ता’’ मदाम का उत्तर सुनकर बारबू मौन हो गया।

‘‘तुम यदि इसी प्रकार की स्पष्टवादिनी बनी रही, तो तुम्हारा कार्यक्रम फेल हो जायेगा’’ बारबू ने चेतावनी भरे स्वर में उत्तर दिया।

‘‘तो क्या मैं झूठ बोलूँ?’’ मदाम का त्वरित उत्तर था। ‘‘तो अप्रिय सत्य क्यों बोलो।’’

‘‘इस कारण कि यही सत्य उसकी हस्तरेखा बता रही थी’’ मदाम ने स्पष्ट किया।

मदाम आमू ने आमन को देखा। उसके चेहर पर भूख दिखायी पड़ रही थी। बारबू मौन था।

वेटर उसी समय एक ट्रे को कपड़े से ढंककर ला रहा था। उसने वह प्लेट आमन के सामने रखकर, कपड़ा हटाया। वियाना सासेज और कायदे से काटे गर्म आलू, जिससे भाप निकल रही थी तथा उस पर पड़े मसाले की महक, किसी की भूख को बढ़ाने में सक्षम थी।

बारबू ने देखा, आमन भूखे शेर की भाँति अपनी प्लेट पर टूट पड़ा।

दूसरे क्षण वही वेटर मदाम के सामने एक बड़ी डिश में स्पिरिट के ज्वाला में सेंके हुए मांस के तराशे हुये टुकड़े, लहसुन और बादमजान (बैंगन) के फ्राइड किये हुए टुकड़ों पर कायदे से सजाकर रखे थे।

यही डिश बारबू के लिए भी थी।

‘‘ब्लूट-डर्स्ट स्वादिष्ट है’’ बारबू ने कहा। ‘‘इतनी अच्छी है कि तुम कभी भी न मरो।’’

बारबू की बात पर वेटर हँस पड़ा।

‘‘केक के लिए जगह रखिए, मैं ला रहा हूँ’’ कहते हुए वेटर चला गया।

वे दो दिनों की यात्रा के बाद एक दूसरे शहर में पहुँचे। एक साथ-सुथरी जगह पहुँच कर मदाम ने गाड़ी रोकी और अपने ब्लाउज से एक पर्स निकाल कर बारबू को यह कहते हुए दे दिया कि वह बाजार से खाने-पीने का सामान लेकर आ जाये।

बारबू ने पर्स को हिलाया। सिक्कों की आवाज इजहार कर रही थी कि धन की मात्रा अधिक नहीं है, पर बारबू खुश था कि मदाम उसकी सेवा चाहती है।

‘‘आलू के साथ और सामानों की लिस्ट बनी है, उन्हें लेते आना।’’

‘‘अवश्य! मेरी प्रेयसी’’ बारबू ने कहा और फिर मन में सोचने लगा कि मदाम निष्ठुर पाषाण हृदय नहीं है। अब उसकी कृपालुतायुक्त प्रेम रस में डूबने का समय आ गया है।

यही सोचता हुआ वह एक सार्वजनिक हम्माम की तलाश में चल पड़ा। हम्माम में पैसे देकर उसने कपड़े उतारे, हम्माम के नौकर ने उसके शरीर पर गर्म पानी डालकर रगड़ना शुरू किया। फिर उसने उसे भाप-स्नान कराकर, ठण्डे पानी से नहलाया। लम्बी तुर्की तौलिया से अपने को लपेटे उसने शेव कराया। फिर गर्म पानी में स्नान कर कस्तूरीयुक्त पानी से अपने को तरकर वह जब उस हम्मान से बाहर निकला तो उसकी सूरत बदल गयी थी। उसके गालों से गुलाबी आभा फूट रही थी और शरीर में एक विशेष प्रकार की उमंग भर गयी थी। बाजार से उसने आलू, प्याज, आटा, तेल, मसाले तथा एक बोतल अच्छी आस्ट्रियन शैम्पेन, चॉकलेटों के साथ सुन्दर पुष्पों का एक गुच्छा भी खरीद लिया।

मदाम आमू उसे पल भर देखती रही।

‘‘यह क्या?’’

‘‘यह तुम्हारे लिये है रूपसी मदाम’’ उसको फूलों का गुच्छा देते हुए बारबू ने कहा।

मदाम के चेहरे पर विचित्र भाव उभर रहे थे। ‘‘मैं इनका क्या करूँ?’’ कुछ पलों बाद उसने बारबू से पूछा।

‘‘इन्हें प्यार से पानी में रख दो’’ कहता हुए बारबू अपने सामान के बैग को खोलने लगा।

मदाम आमू और आमन आग के पास बैठे थे। बारबू ने शैम्पेन की बोतल और चॉकलेटों के पैकेट को एक हाथ में तथा दूसरे हाथ में इनामेल के दो मग लेकर मदाम के सामने पहुँच गया।

मदाम आग की उठती लपटों में कुछ तलाशने के भाव से देख रही थी। आमन उससे चिपक कर बैठा था।

बारबू ने मदाम के दूसरी तरफ बैठकर शैम्पेन की कार्क खोल दी। आमन चीख पड़ा।

मदाम ने चॉकलेट के पैकेट को देखा।

‘‘यह कहाँ से तुम लाये?’’

‘‘मुझे एक परी ने स्वर्ग से लाकर मेरी रानी के लिये दिया है’’ बारबू ने मुस्काते हुए कहा।

‘‘मेरी रानी तुम चेरी के, आरेंज के अथवा मिल्क और फलों वाला चॉकलेट लोगी?’’

मदाम ने फ्रूट चॉकलेट लेकर मग की तरफ देखा।

बारबू ने शैम्पेन मग में डालकर मदाम को दे दिया। चॉकलेट का एक पीस खाकर, मदाम शैम्पेन को पानी की तरह पी गयी। बारबू चकित-सा देखता रहा।

‘‘और दूँ’’ कहते हुए बारबू के शरीर में वासना की एक तेज लहर दौड़ पड़ी। मदाम आमू ने क्रीम चॉकलेट को हाथों में ले लिया। उसे उलट-पुलट कर देखा और कागज के पर्तों को हटाकर, इतनी जोर से दबाया कि चॉकलेट का सारा क्रीम उसकी हथेली में आ गया।

एक हाथ में शैम्पेन का पैग लेकर, वह चॉकलेट को इस तन्मयता से हथेली से चाट-चाटकर चटखारे ले रही थी कि बारबू चकित-सा उसे देख रहा था।

‘‘तुम्हें चॉकलेट इस कदर पसन्द है, मुझे पता नहीं

था’’ बारबू ने कहा। मदाम आमू शैम्पेन का सिप लेती, चॉकलेट खाती अपनी अजीब निगाहों से आग को देख रही थी। जिसकी लपटें ऊँची उठ जाती थीं।

‘‘तुम मेरे टेस्ट को कैसे जान सकते हो?’’ मदाम ने चॉकलेट को अपनी हथेली से जीभ से साफ करते हुए उत्तर दिया।

‘‘बात सही है’’ मदाम के समीप लकड़ी, जिस पर वह बैठा था, को सरकाते हुए बारबू ने कहा।

‘‘शैम्पेन अभी मग में है, उसे पीयो। तुम और सुन्दर और जवान हो जाओगी’’ बारबू बोल पड़ा।

उसकी बात सुनकर मदाम ने जोर का अट्टहास किया। ऐसी हँसी जो शुष्क और घृणा से भरी थी। वह इतनी तीखी थी, भीषण थी कि आमन चीख पड़ा, भयभीत होकर। जंगल उस हँसी से गूँज उठा, भेड़िये गुर्राने लगे-जंगल का अंधेरा बढ़ गया और आग तेजी से धधक उठी। बारबू भीतर ही भीतर काँप उठा, पर जब मदाम ने उसके हाथ से शैम्पेन का मग लेकर शैम्पेन को कण्ठ के नीचे उतार लिया, उस समय हिम्मत कर बारबू ने कहा, ‘‘प्यारी मदाम, इस शैम्पेन के साथ सारी समस्याओं को भुलाकर मुझे तुम्हारी सेवा का अवसर दो।’’ मदाम ने बचे हुए चॉकलेट को खाकर शैम्पेन का एक घूँट लिया। बारबू मदाम से सट गया था-उसकी साँस तेज चल रही थी। उसने मदाम का हाथ पकड़ कर मधुरता से कहा, ‘‘हे! नील नदी की सुन्दर कमलनी! अपने विषय में कुछ बताने का कष्ट करो।’’ मदाम आमू धीरे से हँसी और बचे हुए चॉकलेट को समाप्त कर शैम्पेन की बोतल से शैम्पेन अपने मग में डालकर पी गयी। बची शैम्पेन को उसने आग में डाल दिया। आग धधक उठी, मदाम आमू की आँखों की तरह। फिर वह कहने लगी, ‘‘तुम मेरी कहानी सुनना चाहते हो! बारबू!!’’

‘‘आज से हजारों वर्ष पहले एक नदी के किनारे पर एक सुन्दर हरी-भरी जमीन थी। उस सुन्दर जमीन से दूर पर एक रेगिस्तान था जिसमें भेड़िये और दुष्ट आत्माएँ रहती थीं। हमारे उस गाँव की औरतें और पुरुष सभी कहते थे कि यदि मैं रात्रि में अपने घर में अपने घर में रहूँ तो मैं एक अच्छी लड़की बनी रहूँगी और मैं कभी भी मरूँगी नहीं। मुझे लेने के लिए एक पुरुष-नरकुल (रीड) की नाव पर नदी से आएगा और मुझे ओमेन-रा (सूर्य) के पास लेकर जायेगा। मैं अमर हो जाऊँगी।

कुछ दिनों बाद उस मरुभूमि को पार करते हुये लम्बे, दुबले लोगों ने हमारे हरे-भरे खेतों पर आक्रमण कर दिया। युद्ध में हमारे बन्धु-बान्धवों ने उन्हें मार डाला और नदी में फेंक दिया। देखते-देखते ही खड़ियाल उन्हें खा गये। उन्हें इस पार दुनिया से उस पार ले जाने के लिए कोई नाव नहीं आयी। उस दिन मैंने उसे देखा और मैं बहुत ही ज्यादा डर गयी थी।’’

‘‘वह कौन था?’’

‘‘मृत्यु का देवता,’’ कहते हुए मदाम आमू का चेहरा रंगहीन हो गया। ‘‘उसके मुख से चमकीले दाँतों को, सफेद चमकते दाँतों को मैं भूल नहीं सकती।’’

‘‘उसको देखने के बाद मैंने उसकी एक प्रतिमा, उसी नदी की गीली मिट्टी से बना डाली और उसको खुश करने के लिए चूहों और कीड़ों, पक्षियों आदि का बलिदान कर उसे समर्पित करने लगी। प्रार्थना में सदैव उससे कहती-तुम इनको स्वीकार करो और मुझे जीने दो।’’

‘‘अगले वर्ष और आक्रान्ता हमारे हरे-भरे खेतों के वृक्षों को नष्ट करने आ गये। भीषण युद्ध में वे मारे गये। वे सभी उसके-मृत्यु देवता के मुख में चले गये। मैंने उसी समय यह अनुभव किया कि इस विश्व पर उसका-मृत्यु देवता का शासन है।’’

‘‘हमारे कबीले के लोगों ने उस भरे-भरे क्षेत्र से दूर जाने का निश्चय किया। उन लोगों ने सारा सामान लेकर जाने का निश्चय किया। एक महिला ने मेरे द्वारा बनायी गयी उसकी-मृत्यु देव की प्रतिमा देख ली। उसने उसे तोड़ डाला। मुझे बहुत मारा और कहा कि मैं दुष्ट हूँ और असामान्य हूँ।’’

‘‘मृत्यु देवता ने उस स्त्री को नहीं छोड़ा। रास्ते में, मरुभूमि के लोगों ने उसे मार डाला। ओमेन-रा (सूर्य) हमें बचाने के लिए नहीं आया। मैं उनसे बचने के लिए नदी के किनारे पर दौड़ने लगी’’ मदाम आमू की आवाज कष्ट की अनुभूति से भर गयी थी। वह भारी होती हुयी फुसफुसाहट में बदल गयी। बारबू मदाम की बातों को सुनता हुआ सोच रहा था कि मदाम कबीलों के युद्ध की बात, जो आदिम युग में सामान्य थी, को भावपूर्ण ढंग से सुना रही है। इसमें नयापन कहाँ है। अजनबीपन कहाँ है। अच्छा हुआ मैं आज जान गया कि मदाम किसी फराओं (मिस्र का सम्राट) की पुत्री नहीं है, यह तो एक सामान्य कबीले की- प्राचीन मिश्र के कबीले की लड़की है।

‘‘तो तुम बची कैसे?’’ मदाम से सटे हुये उसकी कमर में हाथ डालकर, उनसे सटते हुये बारबू ने स्नेह भरे स्वर में पूछा। मदाम ने उसकी तरफ देखा और अपनी धवल दंत पंक्ति दिखाते हुए कहा, ‘‘कुछ देर बाद एक नाव आयी। उस पर सूर्य बैठा था। उसने मुझे नाव पर बैठा लिया और नाव धीरे-धीरे नदी में चलने लगी।’’

‘‘बाकी लोगों का क्या हुआ?’’ बारबू ने उत्सुकतापूर्ण स्वर में जानना चाहा।

‘‘वह ओमेन-रा (सूर्य) सिर्फ मेरे लिए आया था। जो उसमें विश्वास नहीं करते उनके लिए नहीं। तभी मुझे प्रतीत हुआ कि यह दुनिया एक सुन्दर स्वप्न है-अस्थिर- स्वप्न।’’

‘‘वह मुझे ले गया स्वर्ग और यह मेरी गलती थी कि मैंने स्वर्ग की अमरता, जो एक तरह से गुलामी है, स्वर्ग की, को स्वीकार किया। मैंने मृत्यु के मुख से बचने का जो प्रयास किया वह तथ्यपरक नहीं था, उचित नहीं था।’’

‘‘स्वर्ग में पवित्रा मधुमक्खियों ने मुझे पन्द्रह वर्षों तक खूब काटा। मैं उनके विष की प्रतिमा बन गयी थी। मुझे अब कोई मार नहीं सकता था-किसी विष का प्रभाव मुझ पर नहीं पड़ सकता था। इस प्रकार हजार वर्ष बीत गये। मैं स्वर्ग की दासता से घबरा गयी थी। मैंने मृत्यु का-मृत्यु देवता का स्मरण किया, पर मृत्यु-देव आये नहीं।’’

‘‘ओमेन रा ने मुझे स्वर्ग से धरती पर भेज दिया। हत्यारों, डाकुओं, चोरों से अनुबंध बनाने, उनसे व्यापार करने और भविष्य जानने के लिये आतुर स्त्री-पुरुषों को सही तथ्य बताने के लिए। ओमेन-रा (सूर्य) एक सुदर्शन पुरोहित भी है।’’

‘‘अब मुझे उससे घृणा है, पर वह प्रतिदिन उगता और डूबता है, यह दिन और रात्रि का चक्र चलाता रहता है। वह मृत्यु-देव को मेरे पास आने नहीं देता। मैं ओमेन-रा से घृणा करती हूँ।’’

‘‘एक दिन मैंने मृत्यु-देव को फिर बुलाने का निश्चय किया।’’

‘‘मैंने उस चाँदनी रात में नदी के किनारे पूर्ण निर्वस्त्र होकर अपने स्तनों को हाथ से उठाकर, झुककर उसे समर्पित करते हुये कहा, ‘‘मुझे अपने साथ ले चलो। हे चमकीले श्वेत दाँतों वाले मृत्यु-देव, मेरे इस शरीर का समर्पण स्वीकार करो, पर मृत्यु-देव नहीं आये।’’

मदाम आमू मौन हो गयी। वह अपलक नेत्रों से जलती हुयी आग में देखते हुये भी कहीं बहुत दूर देख रही थी। बारबू मदाम आमू के निर्वस्त्र शरीर को नदी के किनारे दौड़ता, झुकर मृत्यु-देव को समर्पण के बिम्बों में डूब गया था, परन्तु आग की भभक ने उसे वास्तविक संसार में ला दिया।

मदाम की उपमाएँ विलक्षण तो हैं, पर क्या वह सत्य हैं? यही विचार कर उसने मदाम से कहा, ‘‘यह चोर, डाकू और हत्यारे जो सामान, जो वस्तुएँ तुम्हें लाकर देते हैं, क्या तुम इन सबको यदि उसे, मृत्यु-देव को समर्पित न करो तो क्या होगा?’’

मदाम आमू बची हुयी चॉकलेट को खाते हुए आग की लपटों को देख रही थी। वह मौन थी, शायद बारबू के प्रश्न का उत्तर खोज रही थी।

‘‘यदि मैं तुम्हारी बात एक क्षण के लिए मान भी लूँ और इस तरह के सामान को बेचकर, बिक्री कर पर्याप्त धन पा भी जाऊँ, उस समय भी मैं उसके प्रभाव से बची हुई नहीं रह सकूँगी। वह मुझे प्रताड़ित करेगा’’ मदाम आमू ने अपने होठों को गोल करते हुये उत्तर दिया।

‘‘तुम्हारा यह मृत्यु-देव रहता कहाँ है? इस नगर में, वियना में, बुखारेस्ट में अथवा...। मैं उससे बात करना चाहूँगा-उससे मिलना चाहूँगा एक पुरुष की तरह, उसे धमकी देने के लिए,’’ बारबू की बात सुनकर मदाम आमू ने जोरदार ठहाका लगाया।

‘‘हम यदि धनार्जन के लिए पैसे कमाने के लिए छोटे-बौने आमन की गणितीय शक्ति का उपयोग करें?’’ ‘‘बारबू! आमन मेरा है। वह एक रहस्य है। इसका उपयोग नहीं किया जा सकता’’ सर्पणी की सी फुफकार भरे स्वर में मदाम आमू ने उत्तर दिया।

‘‘और यदि किया जाये?’’ बारबू ने फिर प्रश्न किया।

‘‘उस स्थिति में वह मृत्यु-देव, मेरे प्यारे आमन को मुझसे अगल कर देगा। वह आमन को अपने साथ लेकर चला जायेगा। आमन को मैंने बड़े परिश्रम के बाद पाया है, वह विलक्षण है, वह वैम्पायर है। उसकी वही तिरछी आँखें, उसका तिकोना सिर देखो। तुम समझ सकते हो कि आमन क्या है। वह एजिएस का प्रतिनिधि है। वह मेरा है।’’

‘‘बारबू! यह तुम मत पूछो, उसे अभी नहीं जानते हो।’’ मदाम ने चेतावनी भरे स्वर में समझाने का प्रयास किया।

अगर मैं ओर प्रतीक्षा करता रहा तो मदाम का नशा उतर सकता है और देर नहीं। यही सोचते बारबू का हाथ मदाम आमू के वस्त्रों के भीतर जा चुका था।

उसी क्षण एक काली छाया अन्तरिक्ष से उस पर झपटी। बारबू ने देखा कि उसकी आँखों से ज्वाला निकल रही थी और उसके हाथ की मुट्ठियाँ बंधी थीं। उसका शरीर काला और बलिष्ठ था। बारबू पर उसने अपनी बंधी मुट्ठी से क्रोध में भरकर जोरदार प्रहार किया। एक तेज चीख वातावरण में गूँज उठी।

बारबू भय से चीख कर उलट गया था। बारबू पर सूर्य की पड़ती किरणों की ऊष्मा ने उसे जगा दिया। वह आँखों को खोलकर चारों ओर देखने का प्रयास करने लगा। वह शीत से भीग गया था और उसका सिर चकरा रहा था। उसकी आँखें कुछ ठीक से देख नहीं पा रही थीं। कई बार प्रयास करने पर वह खड़ा हो सका। उसने अपने सिर पर, जहाँ दर्द हो रहा था, जहाँ से पीड़ा उठ रही थी, अपना हाथ प्रयास कर फेरा। उसके सिर पर खून जमा था और वह भाग फूल गया था। काफी बड़ी थी वह चोट। आग धीमे-धीमे जल अथवा सुलग रही थी। आमन उसी के पास बैठा रो रहा था।

‘‘क्यों रो रहे हो?’’ बारबू ने कहा।

‘‘सूरज निकल रहा है। मुझे सूरज से, उसकी किरणों से डर लगता है’’ कहते हुए बारबू से लिपट कर आमन सिसकने लगा।

बारबू ने उसे साथ लेकर गाड़ी का दरवाजा खोला। आमन तेजी से अपने उसी काले बॉक्स में घुस गया जो गाड़ी में जाम किया हुआ था और उसका ढक्कन बन्द कर लिया।

बारबू ने देखा मदाम आमू अपने बॉक्स पर काली चादर ओढ़े सो रही है।

उसने मदाम आमू को हिलाया। यंत्रवत मदाम आमू उठ कर बैठ गयी ‘‘मैंने आमन को उसके बॉक्स में सुला दिया है, मदाम! मेरे लिये आपका क्या निर्देश है?’’ कहते हुये बारबू ने अपने हैट को उठाकर अभिवादन करना चाहा, पर हैट उसके पर नहीं था। ‘‘तुम यहाँ से बाहर चले जाओ’’ मदाम आमू का स्वर गूँजा।

बारबू ने गाड़ी का कपाट बन्द कर दिया। वह गाड़ी से बाहर था। उसने अपनी निगाह चारों तरफ दौड़ायी। आग जल रही थी और उसका हैट आग के पास की झाड़ी में उलझा पड़ा था।

वह तेजी से बढ़ा, हैट उठाया, आग को प्रज्ज्वलित करने हेतु वह लकड़ियाँ उसमें डाल कर, आग की गरमी में बीती घटनाओं के विशेष कर, क्या मदाम आमू को पिछली घटना की याद है? वह कैसे आमन को आग के पास छोड़कर अपने सोने की जगह पर आयी? इस विषय में सोचने लगा।

दोपहर के बाद मदाम आमू गाड़ी से बाहर आयी। उसने बारबू को पूर्ण दृष्टि से देखा, पर पिछली रात की घटना पर कुछ बोली नहीं। बारबू को लगा कि मदाम आमू उसे चाहते हुये भी उसको चाह नहीं पा रही है। वह यह सोच रहा था कि मदाम आमू उसे पास बुलाकर, उसके कंधों पर हाथ रखकर स्नेह से एक कागज का पन्ना, जिस पर बाजार से खरीदने के सामानों की लिस्ट थी, दे दिया। बारबू ने उसे पढ़ा और कह उठा, ‘‘यह सामान कहाँ मिलेगा?’’ ‘‘कल हम लोग बुखारेस्ट पहुँच जायेंगे, तुम वहाँ किसी सिटी सेन्टर चले जाना समान तुम्हें मिल जायेगा’’ मदाम ने कहा।

‘‘चॉकलेट कौन-सी चाहिये तुम्हें?’’

‘‘जो तुम्हें मिल जाये पर काफी मात्रा में चॉकलेट लाना’’ मदाम का स्वर मधुर था।

‘‘और यह समान?’’

‘‘बारबू! तुम्हें यह सामान अल-केमिस्ट के यहाँ मिलेगा।’’

‘‘पर इसकी जरूरत क्या है?’’

‘‘तभी तो मैंने लिखा है’’ मदाम गम्भीर स्वर में बोली।

रात्रि में आग के पास बैठकर सबने रात्रि भोज किया।

रात्रि सामान्य ढंग से बीत गयी।

बुखारेस्ट पहुँच कर उन्होंने शहर में प्रवेश करने से पहले, उस विशाल मैदान में रुकने का विचार बनाया जहाँ पर साप्ताहिक मेले का-कार्निवलों का आयोजन होता था। बारबू सामान खरीदने सिटी सेन्टर चला गया और मदाम ने लकड़ियाँ एकत्र कर आग सुलगा ली। आमन और मदाम उस आग के पास बैठे, घोड़े मैदान में उगी घास खाने में व्यस्त हो गये। बारबू सामान झोलों में भर कर, वापस आया। वह थक गया था और उसे आशा थी कि मदाम उससे प्यार से मिलेगी।

मदाम ने बारबू को देखा तक नहीं। उसने तेजी उसके झोलों को ले लिया, उसमें रखे सामानों को देखने लगी। बारबू की आँखों में निराशा की झलक था तो मदाम आकर चॉकलेट पैकेट को सूँघ-सूँघ कर प्रसन्न हो रही थी। चकित बारबू ने पूछा, ‘‘तुमने मेरे लिए खाना तो बनाया होगा?’’

‘‘तुम आज बुखारेस्ट चले जाओ, वही रात्रि में खाना खाकर किसी सराय में सो लेना और इस प्रकार तुम दूसरे दिन की शाम को वापस आना’’ मदाम का शुष्क स्वर, बारबू को आहत करने के लिये पर्याप्त था।

‘‘ठीक है, मैं अपना बैग, पर्स और कपड़ों को लेकर जा रहा हूँ’’ कहते हुये बारबू गाड़ी की तरफ बढ़ा। मदाम आमू एक पक्षी की भाँति दौड़ती हुयी गाड़ी के भीतर चली गयी और वह बाहर आयी, उस समय उसके हाथों में बारबू का बैग, पर्स और कपड़े थे।

बारबू ने अपना सामान ले लिया और वह मन ही मन यह सोचता जा रहा था कि मदाम आमू क्या करना चाहती है। क्या वह यहाँ से चली जायेंगी? क्या वह उसे छोड़ देगी अथवा वह कोई नयी योजना बना रही है?

यदि वह बुखारेस्ट में रही तो मैं उसे अवश्य ढूँढ लूँगा शाम हो चली थी। बारबू एक सराय के दरवाजे के सामने खड़ा था। उसने दरवाजे को पीछे जाने के लिए धक्का दिया। दरवाजा पीछे चला गया और बारबू के सामने था एक बड़ा अँधेरा कमरा, जिसमें कुछ लोगों की छाया वह देख सका। वह स्तब्ध-सा खड़ा रहा। उसकी आँखें अंधकार को भेदने में सक्षम हो गयी। उस समय वह समझ सकता कि टेबैलों और कुर्सियों पर बैठे लोग शराब पी रहे थे। वह भी तो इस स्थान की खोज में था। बारबू को उस कमरे के कोने में लगी मेज अच्छी लगी। वह उधर बढ़ा और बार के परिचायक को ‘स्नाप्स’ लाने का आदेश देकर अकेला मेज के पास लगी कुर्सी पर बैठ गया। उसे लगा कि दूसरे कोने में बैठा एक वृद्ध उसे ध्यान से देख रहा है। उसकी प्रिय ड्रिंक ‘स्नाप्स’ आ गयी थी। उस वृद्ध व्यक्ति को संबोधित कर उसने ‘नराक’ कहा। उस व्यक्ति ने भी अपना वाइन का ग्लास उठा कर

‘नराक’ कहा। बारबू को लगा कि उसने इस वृद्ध को कहीं देखा है। वह वृद्ध व्यक्ति सधे धीमे कदमों से बारबू की मेज के पास आया और कुर्सी पर बैठ गया।

उसने अपनी लाल शराब की एक चुस्की ली। उस वृद्ध व्यक्ति के समय के प्रहार झेले, लकीरों भरे चेहरे की बुझी हुयी आँखों में चमक आ गयी। ऐसा लगा कि यह चमक किसी पुरानी धूमिल पड़ गयी स्मृति के पुर्नजागरण हो जाने के फलस्वरूप उत्पन्न हुयी हो।

‘‘तुम मदाम आमू के साथ हो?’’ उसने बारबू को ध्यान से देखते हुये कहा।

‘‘ऐसा लगता है कि आप मुझ जैसे सुन्दर युवक को देखकर, कुछ विस्मृत से होकर तेरी तुलना किसी अन्य युवक से कर रहे हैं?’’ बारबू ने रुक-रुक कर बोलते हुये कहा।

‘‘नहीं, मैं तुमको भली-भाँति पहचानता हूँ। मैं किसी से तुम्हारी तुलना नहीं कर रहा हूँ। वास्तव में क्या मदाम आमू तुमसे सामान नहीं मँगवाती? क्या वे तुमसे आग नहीं जलाने के लिए कहती?’’ उस वृद्ध ने आँखों में चमक लाते हुए पूछा।

‘‘वह एक महिला है’’ बारबू बोल उठा।

‘‘ओह! मैं उसे जानता हूँ। मैं भी उसके साथ था और जो तुम कर रहे हो, वही काम मैं किया करता था’’ मन्द मुस्कान बिखेरते हुए वृद्ध व्यक्ति कहने लगा।

बारबू न जाने क्यों ईर्ष्या से भर उठा। उसकी इच्छा हुयी कि वह उस वृद्ध को अपनी बात बन्द करने के लिए कह दे, पर वह यह कहने की हिम्मत जुटा न सका। कुछ पलों का मौन उस वृद्ध को भारी लगा।

‘‘वह सुन्दर स्त्री क्या अभी भी मृत्यु-देवता के लिए लूट का सामान, चोरी का सामान खरीदती है?’’

‘‘हाँ! पर क्या आपने उसके मृत्यु-देवता के लिए लूट का सामान, चोरी का सामान खरीदती है?’’

‘‘हाँ! पर क्या आपने उसके मृत्यु-देवता को देखा है?’’ व्यंगपूर्ण स्वर में बारबू ने कहा।

‘‘हाँ! मात्रा एक बार।’’

‘‘वह कैसे?’’

‘‘एक बार सैनिकों ने एक मस्जिद लूट ली, उसमें लगा सुनहरे काम के एक सुन्दर लैम्प लेकर बेचने के लिये आये और मदाम ने उसे मुँह माँगे दाम पर खरीद लिया। उसके बाद चोरी के दूसरे सामानों को खरीदते हुए हम समीप के एक नगर में पहुँचे। वहाँ पर उस नगर के पास के जंगल में मैंने उसे-मदाम आमू के मृत्यु-देव को देखा था।’’

‘‘कैसा था वह देखने में?’’ उत्सुक बारबू ने पूछा।

‘‘वह मुझे एक सम्पन्न अफ्रीकन-मिस्र का वासी लगा-वैभवशाली व्यक्ति’’ उस वृद्ध ने सोचते हुये उत्तर दिया।

‘‘मैंने भी सुना है कि वह व्यक्ति चोरी का सामान खरीद कर, कर्मचारियों को मिलाकर, प्रभावित कर, घूस देकर, अपना काम करा लेने में कुशल है। वह इस सहयोग के कारण सम्पत्ति एकत्र करता है। सारा कार्य दूसरे करते हैं वह तो मात्रा एक सफल सूत्रधार है... वह भी योरप की इस भू-भाग में, आश्चर्य है’’ बारबू का उत्तर था।

‘‘वह मदाम आमू की गतिविधियों को सदैव देखा करता है, वह मदाम का नियंत्रक है। मैंने इस बात को बाद में समझा। वास्तव में मैंने सोचा कि मदाम आमू का कार्य करता हुआ मैं भी एक दिन धनवान हो जाऊँगा, परन्तु मेरा यह स्वप्न पूरा न हो सका।’’ वृद्ध व्यक्ति गहरी साँस लेते हुये उत्तर दिया। बारबू को लगा कि सामने बैठा वृद्ध व्यक्ति मानसिक पीड़ा से निकलने का असफल प्रयास कर रहा है। कुछ सोचते हुये बारबू ने अपने ‘स्नाप्स’ का एक घूँट लिया और उस वृद्ध व्यक्ति की आँखों में झाँकने का प्रयास-सा करता हुआ, कहने लगा ‘‘क्या मदाम ने आपके सहयोग की कामना को ठुकरा दिया?’’ ‘‘हुआ कुछ ऐसा ही। मेरी मदाम के विषय में अवधारणा गलत सिद्ध हुयी। मैं उसे जो समझता था, वह नहीं थी। उसकी वास्तविकता कुछ और ही थी तथा आज भी वही है’’ उस वृद्ध की बात सुनकर बारबू चौंक उठा।

‘‘आप कहना क्या चाहते हैं?’’ चकित बारबू ने पूछा।

‘‘मदाम आमू एक अतृप्त आत्मा है जो इस दुनिया में घूमती रहती है। हो सकता है तुम्हें मेरी बात पर विश्वास न हो, हो सकता है तुम मेरी बात को हँसी में उड़ा दो, पर यह एक तथ्य है। ऐसी आत्माएँ जब कहीं भी आक्रमण होता है, युद्ध होता है, वह वहाँ पर पहले से ही उपस्थित हो जाती हैं। वे विध्वंस की प्रतीक्षा करती रहती हैं और फिर उस विनाश के बाद वे मनचाही वस्तुओं को उठा ले जाती हैं। कभी-कभी सुन्दर सुकुमार शिशुओं को भी चुराकर ले जाकर उन्हें पाल लेती है। बाद में वे शिशु अपनी धात्री का, प्राणरक्षिका का, उस स्त्री रूपी अतृप्त आत्मा का सारा कार्य करने लगते हैं। इस प्रकार की आत्माएँ दीर्घ जीवी होती हैं’’ बारबू उस वृद्ध की बातों को ध्यान से सुन रहा था।

‘‘उनकी आयु कितने वर्षों की होती है-सामान्यतः?’’ बारबू ने प्रश्न किया।

‘‘हजार वर्ष तो कम से कम’’।

‘‘उनका यौवन-सौंदर्य किस प्रकार सुरक्षित और अक्षुण्ण रहता है?’’

‘‘वे विशेष विधि द्वारा यौवन-संरक्षण करने में सक्षम होती हैं। क्या तुमने मदाम आमू के ड्रायरों में भरी हुयी जड़ी-बूटियाँ तथा अन्य पदार्थ नहीं देखे हैं?’’ उस वृद्ध की इस तथ्यपरक बात ने बारबू को चकरा दिया।

‘‘मैंने देखा है, उन जड़ी-बूटियों को’’ उसने हकलाते हुये कहा।

‘‘क्या हम उस विधि को जान नहीं सकते?’’ बारबू ने उस वृद्ध से पूछा।

‘‘मैंने कई बार मदाम आमू को उन वस्तुओं को उठाते, उन्हें जड़ी-बूटियों से मिलाते हुये देखा है। वह उनको किस अनुपात में मिश्रित करती है यह मैंने अनेक बार जानने का प्रयास किया, परन्तु सफल न हो सका। मैंने उसका वह अमृत-पात्र, काले पत्थर का पात्र जिसमें वह इन पदार्थों को मिलाकर पीती है, को छुपकर देखा है, परन्तु सारी प्रक्रिया एक रहस्य है आज तक मेरे लिये।’’

‘‘मैंने कई बार उससे दूर चले जाकर कुछ और करने का, जीवन-यापन करने का प्रयास किया, परन्तु मदाम की अमरता का रहस्य जानने के प्रयास में, मैंने अपना सारा समय व्यर्थ कर दिया’’ कहते हुये उस वृद्ध व्यक्ति की आँखों में उसकी व्यथा झलक उठी।

‘‘एक बार मदाम आमू ने मुझे उसके अमृत-पात्र में वस्तुओं को मिलाते हुये, पीते हुये देख लिया था। उसने मुझे मार डालने का प्रयास किया, पर मैं जान बचाकर भाग निकला। अनेक वर्षों तक मैं छिपा रहा, परन्तु जब मैंने तुम्हें नगर के उस मेले में मदाम के साथ देखा, उस समय मेरे मन में तुमसे सम्पर्क करने की इच्छा जाग्रत हो उठी थी।’’

‘‘यदि तुम उसके अमृत-पान के पात्र में मिश्रित किये जाने वाली औषधियों की सूची प्राप्त कर सको तो हम दोनों भी दीर्घजीवी हो सकते हैं।’’

‘‘मैं उस महिला से, जिससे मैं प्यार करता हूँ, विश्वासघात करूँ?’’ बारबू अपने को नियंत्रित न रखकर, कह उठा।

‘‘तुम पूर्णरूपेण मूर्ख हो! मदाम आमू और उससे इश्क! तुम पागल हो गये हो!’’ कहते हुये वह वृद्ध व्यक्ति क्रोध से भरकर उठ गया।

‘‘आप मेरी बात का बुरा मान गये’’ बारबू ने उस व्यक्ति की बाँह पकड़कर बैठाते हुये कहा।

‘‘आप नाराज हो गये, मेरी बात से, परन्तु वास्तव में क्या सबूत है आपके पास, अपनी बात के सत्यापन के लिए?’’ बारबू ने नम्रतापूर्वक कहा।

‘‘तो तुम्हें बताता हूँ कि... मैं दस वर्ष का था, उस समय मैं मदाम आमू के पास आया था।’’

‘‘कहाँ से?’’

‘‘एक अनाथ आश्रम से। मदाम आमू मुझे आकर वहाँ से लायी थी।’’

‘‘अब आपकी आयु क्या है?’’

‘‘मात्रा एक सौ अस्सी वर्ष’’ कहते हुये वह वृद्ध उठ गया। वह दरवाजे को खोलकर बाहर निकल गया। बारबू ने अपना ‘स्नाप्स’ गटक लिया। वह तेजी से दरवाजे को खोलकर बाहर सड़क पर आ गया। चाँदनी रात थी। दूर-दूर तक सन्नाटा छाया हुआ था। वृक्षों के पंक्तियों की छाया भी शान्त थी। दूर-दूर तक सड़क पर कोई चलता हुआ दिख नहीं रहा था। वृद्ध व्यक्ति इतना तेज नहीं चल सकता, कहाँ अदृश्य हो गया वह! बारबू भय से, अज्ञात भय से काँप उठा। दूर से एक कुत्ते के भौंकने की आवाज आ रही थी... वह वास्तव में कुत्ते की आवाज थी... बारबू भय से पसीने से भीग गया था। वह वृद्ध व्यक्ति था कौन... क्या वह... घबराया बारबू सोचने लगा।

थोड़ी देर इधर-उधर सड़क पर घूमने के बाद बारबू उसी शराबखाने में आ गया और एक कमरे में अपना सामान रखने के बाद, वह उसी रूम में आकर स्वादिष्ट भोजन करने के उपरान्त अपने सोने के कमरे में चला गया।

काफी दिनों बाद उसे बेड पर सोने का मौका मिला, परन्तु नींद उसकी आँखों से दूर थी।

वह लगातार उस वृद्ध व्यक्ति के, उस मदाम आमू के मृत्यु-देव के विषय में सोचता रहा। सभी कुछ मदाम आमू की भाँति ही रहस्य की काली चादर में लिपटा हुआ उसे प्रतीत हुआ। इसी को समझने, सुलझाने के प्रयास में वह सो गया।

उसकी नींद दोपहर में खुली, उस समय उसने समझा कि वह कितना थका था और उठने के बाद, नींद से उठने के बाद, वह अपने वास्तविक रूप में युवा बारबू के रूप में आ गया था।

वह शहर में सुन्दर औरतों की तलाश में निकल पड़ा।

अब वह पूर्णरूपेण भयरहित था।

शाम होते-होते वह उस मैदान में पहुँच गया जहाँ पर उसने मदाम आमू को छोड़ा था। गाड़ी और घोड़े, उसे दूर से दिख रहे थे। गाड़ी अपने स्थान पर खड़ी थी और उसके चारों तरफ एक अनन्य शान्ति का प्रभाव बारबू ने महसूस किया।

अपने सामानों को लटकाये उसने गाड़ी का पिछला दरवाजा खटखटाया। शान्ति!

उसने पुनः दरवाजे को जोर से खटखटाया। वह खुला नहीं।

बारबू ने जोर से धक्का दिया। दरवाजा खुल गया। उसे पहले लगा कि भीतर कोई नहीं है। ‘‘लगता है मदाम कहीं चली गयी’’ उसने मन-ही-मन सोचा।

सावधानी से वह गाड़ी के भीतर आया। हाथ का सामान उसने गाड़ी में डाल दिया।

गाड़ी में मसालों की, औषधियों की महक भरी थी। उसने घबराकर अपनी नाक पर रूमाल रख ली।

मदाम आमू अपने उसी बाक्सनुमा बेड पर कपड़े पहने लेटी थी। उसके दोनों हाथ सीने पर थे। उसके चेहरे पर एक मुस्कान थी और उसकी आँखें बन्द थीं। वह बारबू को अतीव सुन्दर और स्वस्थ लगी। बारबू सावधानी से चलता हुआ मदाम आमू के पास आया। उसने धीरे से मदाम को पुकारा।

कोई उत्तर नहीं मिला। उसने मदाम के हाथ को पकड़कर हिलाना चाहा, परन्तु वह मदाम के हाथ के स्पर्श से चौंक उठा।

मदाम का हाथ बर्फ की भाँति ठण्डा था। बारबू मदाम के पास से घबराकर हट गया। वह इतना घबरा गया था कि वह समीप की कारपेट पर गिर पड़ा।

उसने उठकर देखा एक काले पत्थर का पात्र उस कालीन पर, कारपेट पर लुढ़का पड़ा था। बारबू ने उसे उठा लिया। किसी विचित्र प्रकार की महक रखने वाली

एक अज्ञात द्रव की एक बूँद उस प्याले में बची थी। वह उसी उधेड़बुन में पड़ा था कि क्या अमृत पान करते-करते मदाम आमू ने विष पान कर लिया कि उसने आमन की काँपती आवाज सुनायी पड़ी।

‘‘मैं बहुत भूखा हूँ। जब से तुम गये मैंने कुछ खाया नहीं है’’ आमन रोते हुये कह रहा था।

‘‘तुम्हें यही कहना है। मदाम मृतक है और तुम्हें भूख लगी है?’’ बारबू ने दुखी स्वर में आमन को समझाया।

‘‘मदाम की यह दशा कैसे हुयी?’’

‘‘उसने अपनी हत्या कर ली।’’

‘‘तुमने उसे अमृत-पात्र दिया था, आमन?’’ बारबू ने जानना चाहा।

‘‘नहीं।’’ आमन ने कहा।

‘‘क्यों?’’

‘‘मदाम जीना नहीं चाहती थी। उसने अमृत नहीं विषपान किया है। वह जीते-जीते ऊब चुकी थी। वह मरना चाहती थी’’ कहते हुये आमन रोने लगा।

‘‘क्या तुम हमेशा उसे मृत्यु प्राप्त करने के लिए पात्र से, उस पत्थर के काले ग्लास से विष पान कराते थे?’’ बारबू ने आमन से पूछा।

‘‘हाँ! पर मदाम को मृत्यु नहीं आती थी, इस कारण उन्होंने अनेक औषधियों के साथ मुझसे थियोब्रोमिन मिलाने के लिए कहा था। मैंने उनकी आज्ञा का पालन किया’’ कहते हुये आमन की आँखों से आँसुओं की बूँदें

झरने लगीं। बारबू आमन को, मदाम आमू के शरीर को देखता रहा। वह जड़वत हो गया था। वह स्टूल पर बैठना चाहता था, पर बैठ न पाने के कारण वह कारपेट पर जोर से गिर पड़ा।

‘‘हे! ईश्वर!! यह क्या हुआ? मदाम आमू की अमरत्व की कामना क्यों मृत्यु में बदल गयी?’’ कहते हुये बारबू के नेत्रों से वर्षा की भाँति आँसू की बूँदें गिरने लगीं।

‘‘मदाम क्यों जीवन से ऊब गयी। हम सभी तो अमर होना चाहते हैं? क्या अमरत्व कष्टदायी है? क्या दीर्घ जीवन एक अनावश्यक भार है? क्या सुख भोग अनादि काल तक नहीं सतत रह सकता? क्या कारण था मदाम के जीवन को समाप्त करने के पीछे?’’ बारबू खुद से पूछ रहा था।

‘‘मदाम भोग से ऊब गयी थी। वह तुम्हारी विचारधारा को शायद ठीक से समझ नहीं सकी’’ आमन ने कहा।

‘‘आमन! तुम क्या हो? कैसे तुम वह अमृत-पान की, दीर्घजीवन की औषधि बनाते हो? क्या तुम मुझे भी दीर्घजीवन हेतु अमृत-पान करा सकते हो? बारबू ने पूछा।

‘‘मैं कुछ नहीं कर सकता’’ आमन का संक्षिप्त उत्तर था।

‘‘तुम कुछ नहीं जानते! बेवकूफ’’ बारबू ने क्रोध से कहा।

‘‘मैं स्वतः कुछ नहीं जानता। मदाम जो कहती थी वही करता था मैं’’ आमन ने शान्ति से उत्तर दिया।

बारबू की दृष्टि मदाम आमू के चेहरे पर टिक गयी।

उसकी मुस्कान अति रहस्यमयी लगीं।

‘‘हो सकता है मृत्यु के देवता से कुछ समझकर मदाम आमू ने यह कार्य किया हो?’’ बारबू ने सोचते हुये मदाम की बन्द मुट्ठी को ध्यान से देखा। उसे लगा कि मदाम की उस मुट्ठी में कुछ बन्द है। बढ़कर उसने मदाम की बन्द मुट्ठी खोल दी। उसमें बन्द थी पकी मिट्टी की बनी एक छोटे से घड़ियाल की प्रतिमा!

बारबू एक बार फिर सिर से पैर तक काँप उठा।

‘‘मुझे भूख लगी है’’ आमन ने रोते हुए कहा।

‘‘पहले हम मदाम की कब्र खोदेंगे, फिर उनको दफनाने के बाद भोजन करेंगे’’ बारबू ने उसको समझाते हुये कहा।

सूर्य निकल आया था। आमन भागकर गाड़ी में छिप गया था। मदाम की कब्र बारबू ने परिश्रम से अकेले खोद कर तैयार कर दी। उसने मदाम को गोद में उठाकर कब्र में लिटा दिया। उनके शरीर पर उनकी काली चादर डाल दी। उसने आकाश की तरफ हाथ उठाकर प्रार्थना करते हुये कहा, ‘‘हे ईश्वर! यदि मदाम ने मृत्यु के देवता की आज्ञा मानकर जीवन समाप्त किया है तो उसे मृत्यु के पंजे से छुड़ाकर अपनी शरण में ले लेना, जिससे उसकी अतृप्त आत्मा को शान्ति मिल सके। मैं इस महिला को प्यार करने लगा था, हे ईश्वर! उसकी आत्मा को शान्ति प्रदान करने की कृपा करो। आमीन!!’’

यह कहते हुये बारबू ने मदाम की कब्र को मिट्टी से भर दिया। उस रात्रि बारबू मदाम आमू के लिये रोया, परन्तु प्रातः काल के सूर्य के उदय होते ही, उसकी स्वर्णिम किरणों के साथ ही बारबू के मानस में नवीन योजना का प्रस्फुटन हो गया। वह आमन से कह रहा था, ‘‘अब मेरे पास एक सुन्दर गाड़ी और चार मजबूत घोड़े हैं और फिर तुम मेरे साथ हो। तुम्हारी प्रतिभा अभी तक लोगों से छिपी थी, अब उसको दिखाने का समय आ गया है। तुम्हें प्रदर्शन के लिए तैयार रहना चाहिये।’’

उसने आग पर रखे पैन में पड़े आलुओं को दबाया। वे पक गये थे। बारबू ने उनका छिलका हटाकर, एक लम्बी मुलायम ब्रेड को बीच से फाड़कर, उसमें आलुओं को रखकर, जैम के साथ, अच्छी तरह से दबाकर आमन को दे दिया और बचे आलुओं को इसी भाँति दूसरी ब्रेड में भरकर अपनी भूख मिटाने का प्रयास करने लगा।

खाते हुये वह आमन से कह रहा था, ‘‘बाल्कान प्रदेश के नगर, वियना, क्रोनस्टाड, बुखारेस्ट, प्राहा और काँस्टीनोपुल तक हम यात्रा करेंगे। हम पैसों को, धन को अपनी चतुरता से वाक-कौशल से एकत्रा करेंगे। हम ताँबे की प्लेट में नहीं सुन्दर चाइना की प्लेटों में, रेस्तरां में भोजन करेंगे। धन हमारे पास होगा, पास होंगी महँगी शराबें और सुन्दरियाँ और ख्याति।’’ कहकर वह गले को, गर्म पानी से तर करने के प्रयास में लग गया। खाना गले के नीचे उतर गया, पानी के दबाव के कारण। बारबू के शब्द आमन के कानों में गूँजे, ‘‘मित्र! हम लोगों को उनके कष्टों से, उनके बुढ़ापे से, उनकी सेक्स की समस्याओं से, मुक्ति दिलाने का प्रयास करेंगे और आमन तुम्हें भी बहुत काम करना होगा। अभी तक तो तुम सिर्फ सोते रहते थे, मदाम आमू के चहेते प्रिय गुलाम!’’

आमन पूरी बात तो समझ नहीं सका, पर उसने प्रसन्नता का इजहार करते हुये कार्य करने की स्वीकृति दे दी।

‘‘तुम्हारी सुरक्षित रखी जड़ी-बूटियाँ, औषधियाँ, रसायन और पुरानी शराब से भरी बोतलें, हमारी औषधियों के निर्माण में सहायक होंगी। मैं तुम्हें दिन में उसी गाड़ी में सोने दूँगा, तुम्हें मात्रा सांकेतिक कार्य करने होंगे.... कार्य तो मैं करूँगा प्रोफेसर... जोबान बारबू बिच... सभी स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का कुशल चिकित्सक बनकर।’’

एक सप्ताह बाद उसी मैदान में मेले के प्रारम्भ होने के पहले, प्रोफेसर जोबान बारबू ने अपनी गाड़ी में आमन को भीतर बैठाकर, शान से उसे धीरे-धीरे चलाता हुआ मेले के मुख्य प्रवेश द्वार से थोड़ा हटकर गाड़ी को रोक दिया। वह उतर गया। घोड़ों को गाड़ी में लम्बी डोर से बाँधकर उसने स्टेज लगाने के लिए लोगों की तलाश शुरू कर दी। थोड़ी ही देर में अपनी वाकपटुता से बारबू ने मजदूरों से स्टेज बनवाकर, उस पर पर्दे लगवा कर, अपनी योजना को स्वरूप देने को तत्पर हो गया। उसके स्टेज के सामने के पर्दे पर सूर्य-चन्द्रमा, सफेद और लाल रंगों से बने थे। उनके नीचे सुनहरे अक्षरों में लिखा था ‘‘प्रोफेसर जोबान बारबू विच... स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के कुशल चिकित्सक।’’

कुछ लोग कुतूहल से इस स्टेज को देख रहे थे और मंद स्वरों में आपस में गुफ्तगू भी करते, कुछ रुकते और कुछ चलते जा रहे थे। एक पुलिसवाला मौके की नजाकत सूँघता आया। उसने प्रोफेसर जोबान से मेले का पास माँगा। पास के साथ दस दीनार पाकर वह प्रोफेसर को सलाम करता चला गया।

प्रोफेसर जोबान ने पहले से मुद्रित कराये, छपवाये रंगीन पोस्टर जिन पर लिखा था ‘‘आपके मनोरंजन के लिए! स्वास्थ्य और पौरुष प्राप्त करें!! प्रोफेसर जोबान से!!! चमत्कारी शाहजादे का कमाल देखिये!!!!’’

एक दुकानदार का लड़का आगे बढ़ता हुआ जोर-जोर से कहने लगा ‘‘शाहजादे का कमाल चमत्कारी करतब, तुरन्त संख्याओं की गणना देखिये!!’’

‘‘आप चाहे जितनी संख्या में, छोटे पत्थरों के टुकड़े, मटर, जौ, लोबिया के बीज, बाजरे के बीज को जार में ले लें। उनकी संख्या बता देंगे चमत्कारी शाहजादे! गलत साबित करने वालों को इनाम मिलेगा।’’

‘‘तुरन्त संख्याओं की गणना कैसे होगी?’’ नाई के लड़के ने कहा।

‘‘यह चमत्कारी शाहजादा है कौन?’’ लोहार का लड़का बोला।

‘‘हो सकता है यह कोई धोखेबाज हो!’’ पुलिसवाले के लड़के ने सुझाया।

‘‘नहीं, तुम्हारा अनुमान गलत है। बच्चों अपने घरों से गिनकर जारों में, अलग-अलग जौ, बाजरा, मटर के बीजों को, पत्थरों के टुकड़ों को, मोतियों को, लोबिया के बीजों को लेकर शाम को आ जाओ। चमत्कारी शाहजादा उनकी संख्या तुरन्त बता देगा। जाओ घर जाकर अपने मम्मी, पापा और मित्राों को बुला लाओ और फिर देखो तमाशा।’’

शाम होते ही बच्चे अपने-अपने जारों में, शीशे के जारों में गिन-गिन कर मटर, जौ, बाजरा के बीजों को पत्थरों के छोटे टुकड़ों को, लोबिया के बीजों को भरकर, अपने पापा, मम्मी और मित्रों के साथ प्रोफेसर जोबान का चमत्कार का देखने के लिए एकत्र हो गये।

यह भीड़ देखकर दूसरे स्त्री-पुरुष भी कुतूहलवश वहाँ आ गये। वे आतुर थे, शो को देखने के लिए।

स्टेज पर लगी मशालें जल उठीं। लोगों की आशा बढ़ गयी।

एक लड़का चिल्लाया, ‘‘प्रोफेसर! बाहर आओ।’’ दूसरा बोला, ‘‘प्रोग्राम शुरू करो।’’ पर्दों को धीरे से बीच में हटा, सिर पर काली ऊँची हैट, काले कोट और चमकदार सफेद पैन्ट में प्रोफेसर जोबान को देखकर लोग प्रसन्नता से, खुशी से चीख पड़े।

‘‘मैं प्रोफेसर जोबान बारबू बिच आपकी सेवा में उपस्थित हूँ’’ सिर से टोप को उतार कर झुककर अभिवादन स्वीकार करते हुये प्रोफेसर ने कहा।

‘‘इस नगर के स्वास्थ्य के प्रति जागरूक नागरिकों! आपका मैं अपने चमत्कारी शहजादे के साथ स्वागत करता हूँ’’ प्रोफेसर ने भीड़ को सम्बोधित किया।

‘‘मैं अपने जार में मटर के दाने लेकर आया हूँ’’ नाई का लड़का चिल्लाया।

‘‘ठीक है, ठीक है, पर सज्जनों, मेरे मित्रों मेरी कहानी सुनो।’’

‘‘क्या तुम कोई जादूगर हो?’’ भीड़ में से कोई चीखा।

‘‘नहीं! पर मेरी बात ध्यान से सुनिये’’ कहते हुये प्रोफेसर जोबान ने अपने काले कोट के भीतर से एक छोटी-सी वायलिन निकालकर उसके तारों को झंकृत किया।

‘‘मैं आपके सुख, समृद्धि एवं स्वस्थ दीर्घ जीवन की कामना करता हूँ। मैंने कैसे अद्भुत शक्तियाँ सिद्ध की, आप सुनिये।’’

‘‘यह तथ्य है कि मैंने अपनी युवावस्था में प्रसिद्ध तांत्रिक गुरु प्रोपेलस से शिक्षा प्राप्त की थी। मैं उसके साथ-साथ वर्षों तक रहा, परन्तु जब मुझे ज्ञात हुआ कि वह प्रत्येक शिष्य को शिक्षा प्राप्ति के बाद मृत्यु-देवता के लिए बलिदान कर देता है, मैं उसके पास से, उसके स्थान से भाग निकला।’’

‘‘मैंने अपने धन से एक जहाज खरीदा और नाविकों के साथ मिस्र-इजिप्ट के लिए निकल पड़ा। इजिप्ट आप जानते हैं, रहस्यमयी विद्याओं की जन्मस्थली है।’’

‘‘मैं अपनी इस समुद्र यात्रा के दौरान भयभीत था। भय का कारण मेरा गुरु प्रोपेलस था, जो अपनी तंत्र विद्या से मेरा पता लगा सकने में सक्षम था। मेरी यात्रा लम्बी थी, कष्टदायी थी। मेरे जहाज पर पीने की पानी की कमी पड़ गयी। हम समीप के किसी टापू की तलाश में थे, जहाँ पर हमें पीने का पानी मिल सके। कई दिनों की यात्रा के बाद हमें एक टापू दिखा। हमने अपने जहाज का लंगर डाला और टापू के पास पहुँच गये।’’

‘‘यह टापू वही विख्यात टापू था जिस पर इजिप्ट के प्रसिद्ध शक्तिमान देवता ओसीरिस का मंदिर था और उसकी सुरक्षा के लिए भीषण विशालकाय नर-पशु जिनकी शक्ल और मुख चीटियों के समान होने के कारण, लोग इन्हें चींटी-मनुष्य या चींटी-मानव कहते थे, दिन-रात जागरूक रहते थे। इन दस हाथों वाले जीवों के भीषण दाँतों में विष भरा रहता था और जिस किसी को यह जीवन काट लेते थे वह तत्काल मौत के मुख में चला जाता था। ओसीरिस ने इन जीवों को मंदिर की सुरक्षा के लिए नियुक्त कर रखा था।’’

‘‘पर यह जीव मेरे उस टापू पर पहुँचने के एक हजार वर्ष पूर्व ही समाप्त हो चुके थे, क्योंकि जब मैं उस रहस्यमय मंदिर के समीप पहुँचा उस समय उनका राजा था जो मेरे सामने आया, वह छोटा, कमजोर दो हाथों वाला पुरुष था। मैंने उसे पकड़कर साथ ले लिया। बाद में वह मेरा मित्र बन गया।’’

‘‘लेकिन उस कहानी का मटर के दानों की गिनती से क्या संबंध है?’’ पुलिस के लड़के ने ऊबते हुए कहा।

‘‘मैं उसी बात पर आ रहा हूँ। मेरे नवजवान मित्र धैर्य रखो। हाँ! मैंने शाहजादे को मारा नहीं। मैं उसके साथ ओसीरिस के मंदिर में घुसा।’’

‘‘मैंने अपने लैम्प के प्रकाश में, उस भीषण कर्म करने वाले देवता की मूर्ति को देखा, पर मित्रों! यह आश्चर्य नहीं था। आश्चर्य था उस मंदिर की चारों दीवारों पर, ऊपर से नीचे तक लिखे गये अक्षर। यह अक्षर चित्रमय

थे। कहीं पर पिंजरे में बैठी चिड़िया थी, कहीं साँप था, तो कहीं कुत्ता और सूर्य, परन्तु मैं इस भाषा से पूर्ण परिचित था। मैंने उसे ध्यान से पढ़ा।’’

‘‘क्या वह ओसीरिस की प्रार्थना थी?’’ भीड़ में से किसी ने पूछा।

‘‘नहीं, वह औषधियों के बनाने की विधियाँ थीं।’’

‘‘आप जानते हैं कि ओसीरिस, प्राचीन इजिप्ट का देवता युद्ध में हुये घावों को ठीक करने का देवता था-स्वास्थ्य लाभ कराने का देवता था। दीवार पर अंकित अक्षर गुप्त संकेत थे औषधि निर्माण के।’’

‘‘मैंने तत्काल अपनी नोट-बुक पर उन अनेकों प्रकार की दवाओं के बनाने की विधियों को नोट कर लिया, जिससे उन दवाओं के द्वारा मैं जनसामान्य को स्वास्थ्य लाभ करा सकूँ।’’

‘‘मैं अन्तिम औषधि निर्माण की विधि लिख ही रहा था कि उसी समय मृत्यु के देवता का प्रभाव वहाँ पर छा गया। मंदिर तेजी से काँपने लगा, मेरे हाथ का लैम्प बुझ गया और मैं किसी प्रकार उस मंदिर से निकलकर बाहर आया ही था कि वह, एक भीषण भूकंप के साथ अदृश्य हो गया-समुद्र में।’’

‘‘मैं तेजी से भागता हुआ, राजा शाहजादे को गोद में उठाये, अपने जहाज पर आ गया। मेरी नोट-बुक मेरे कोट में सुरक्षित था और मैं सुरक्षित था।’’

बारबू-प्रोफेसर जोबान बारबूबिच भीड़ पर अपने भाषण का प्रभाव को अंदाज करके प्रसन्न था। भीड़ का बढ़ना, उसकी वाक्पटुता को सिद्ध कर रहा था। प्रसन्नतापूर्वक उसने कहा, ‘‘और बच्चों मैंने अपनी यात्रा के दौरान शाहजादे को शिक्षित करना शुरू कर दिया। यह तो तुम जानते ही हो कि जैसे आदमी का पूर्वज बन्दरों की तरह था, उसके पूँछ थी, वह लम्बा और आदमी से अधिक ताकतवर था, पर आज का आदमी अपनी पूँछ का इस्तेमाल न करने के कारण पूँछ खो चुका है और वह अपने पूर्वजों की तरह ताकतवर भी नहीं रहा है। ठीक उसी तरह शाहजादा भी अपनी दो भुजाओं को काम में लाता था-वही बची है तथा कम मेहनत करने के कारण वह दुबला और छोटा भी है। लेकिन उसके कमजोर शरीर में तेज दिमाग है। वह अपने देवता ओसीरिस के प्रभाव के कारण गणनाएँ करने में माहिर है। वह बन्द ग्लास जार में रखे मटर, बीज, जौ तथा छोटे पत्थरों की संख्या को, जार को देखकर, दूर से देखकर बता सकता है।’’

‘‘क्या आप इस चमत्कारी शाहजादे को! ओसीरिस के वरदान पाये छोटे शाहजादे का देखना नहीं चाहेंगे?’’

‘‘हम उसको देखना चाहते हैं’’ भीड़ में खड़े सभी दर्शकों के इतर बच्चों की आवाजें थीं।

‘‘तो देखिये’’ कहते हुए प्रोफेसर जोबान ने पर्दा हटा दिया।

आमान काली पैन्ट, काली जैकेट में, आँखों पर पट्टी, वह भी सफेद रंग की बाँधे हुए तथा सिर पर काले रंग का टोप जिसमें उल्लू के पंख लगे थे, लगाए हुए, एक ऊँचे स्टूल पर बैठा था। उसके चेहरे के सामने मशाल के आते ही बहुत तेज आवाज में चीखा।

इस पर प्रोफेसर जोबान ने भीड़ को सम्बोधित करते हुए कहा, ‘‘शाहजादा अपनी भाषा में आँख की पट्टी को हटाने के लिए कह रहा है। मैं जानता हूँ कि उसकी आँख की पट्टी को हटाते ही आप जल सकते हैं। उसकी आँखों को तेज असहनीय होता है। इस कारण से मैंने शाहजादे की आँख पर बँधी पट्टी को नहीं हटाया है, पर अब मैं यदि आप चाहते हों, तो उससे अपनी आँख की पट्टी को हटाने के लिए अनुरोध कर सकता हूँ।’’

प्रोफेसर जोबान ने कुछ पलों रुक कर दर्शकों की ओर देखा।

भीड़ चिल्ला उठी, ‘‘शाहजादा के आँख पर बंधी पट्टी को खोल दो।’’ प्रोफेसर जोबान ने शाहजादे के कान में कुछ कहा। फिर अपने कान को शाहजादे के मुख के पास ले जाकर कुछ सुना और भीड़ की ओर देखकर बोला, ‘‘प्यारे दोस्तों! शाहजादा मान गया है, देखिये वह अपना सिर हिलाकर सहमति का संदेश दे रहा है।’’ शाहजादे-आमन ने अपना सिर हिलाया।

‘‘तो दोस्तों! अब आप तैयार हैं?’’ प्रोफेसर जोबान ने कहा।

‘‘हम इन्तजार कर रहे हें’’ भीड़ की आवाज उस मैदान में गूँज उठी। उसी समय एक बच्चे ने मटर के दानों से भरा ग्लास जार उठाया।

बारबू ने उसे स्टेज पर बुला लिया। लड़का कूद कर स्टेज पर आ गया।

‘‘तुमने इस ग्लास जार में कितने मटर के दाने डाले हैं, यह तो तुम जानते हो’’ प्रोफेसर जोबान बारबू ने उस लड़के से कहा। फिर भीड़ को देखकर कहा, ‘‘यह किसका लड़का है?’’

नाई ने मशाल की रोशनी में जोर से चीखकर कहा, ‘‘मेरा।’’

‘‘यहाँ पर जो पुलिस इंस्पेक्टर साहब खड़े हैं वे कृपा कर स्टेज पर आ जायें’ प्रोफ़ेसर जोबान बारबू ने सभ्यतापूर्ण स्वर में कहा। पुलिस इंस्पेक्टर सहज भाव से चलता हुआ, स्टेज पर आ गया। उसका अभिवादन, नाटकीय ढंग से, अपने हैट को उतारकर, प्रोफेसर जोबान ने किया।

‘‘मेरे प्यारे बच्चे, अब तुम धीरे से, इंस्पेक्टर साहेब के कान में अपने ग्लास जार में रखी हुयी, मटर के दानों की संख्या बता दो तथा इंस्पेक्टर साहब आप संख्या को अपनी डायरी में लिख लें’’ प्रोफेसर जोबान ने इंस्पेक्टर ने अनुरोधपूर्ण स्वर में कहा।

‘‘अवश्य! अवश्य!!’’ कहते हुए इंस्पेक्टर ने मटर के दानों की संख्या को अपनी डायरी में लिख लिया।

‘‘अब यदि आप आज्ञा दें’’ कहते हुए जोबान ने उस लड़के के हाथ से ग्लास का मटर के दानों से भरा जार ले लिया। उसने मशाल ऊँची की जिससे सब देख सके और फिर शाहजादे की ओर मुड़ते हुये, उसने मशाल की रोशनी में उस जार को दिखाकर दूर से पूछा ‘‘शाहजादे! इस ग्लास जार में कितने मटर के दाने हैं?’’

‘‘पाँच सौ बीस’’ शाहजादे ने धीमे परन्तु स्पष्ट स्वर में उत्तर दिया।

‘‘और इंस्पेक्टर साहेब, अब आप बताएँ कि जार में मटर के दानों के बारे में आपने अपनी डायरी में क्या लिखा है?’’

‘‘मैंने लिखा है पाँच सौ बीस दाने’’ ध्यान से डायरी में अंकित नम्बरों को पढ़ते हुये इंस्पेक्टर ने उत्तर दिया।

‘‘आपने देख लिया शाहजादे की शक्ति का कमाल!’’ कहते हुये प्रोफेसर जोबान ने मटर के दानों के जार को उस लड़के को पकड़ा दिया।

‘‘अब और सबूत! शाहजादे की शक्ति का कमाल!’’ कहते हुये प्रोफेसर जोबान चीखा।

बच्चों की चीखों से मैदान गूँज उठा। प्रोफेसर जोबान ने एक बच्चे को जो ग्लास जार में बीन के दाने भरे था, को गोद में उठा लिया। ‘‘तुम किसके लड़के हो?’’ बच्चे ने पुलिस इंस्पेक्टर की तरफ ऊँगली उठाई।

‘‘ठीक है, अब तुम धीरे से अपने पापा को जार में रखी बीन के बीजों की संख्या नोट करा दो!’’ प्रोफेसर जोबान ने बच्चे को सलाह दी।

बच्चे ने अपने पापा के कान में धीरे से बीनों की संख्या बता दी। पुलिस इंस्पेक्टर ने उसे पिछली बार की भाँति अपनी डायरी में लिख लिया। प्रोफेसर जोबान ने बीन के बीजों से भरा ग्लास जार उठाया। मशाल की रोशनी में बीन ग्लास जार में चमक रही थी।

वह ग्लास जार लेकर शाहजादे के पास गया और जोर से बोला ‘‘शाहजादे! इस जार में कितनी बीन हैं?’’ चारों तरफ शान्ति थी।

‘‘चार सौ पन्द्रह’’ शाहजादे की धीमी पर कमजोर आवाज सभी को सुनायी दी।

‘‘और आपने कितनी बीन लिखी हैं?’’ इंस्पेक्टर को देखता हुआ प्रोफेसर जोबान ने कहा।

‘‘चार सौ पन्द्रह।’’ इंस्पेक्टर ने जोरदार आवाज में उत्तर दिया।

प्रोफेसर जोबान ने उस बच्चे को गोद से उतार दिया। वह बच्चा दौड़कर पुलिस इंस्पेक्टर की गोद में चढ़ गया। अब लोगों की भीड़ अनेक प्रकार के जारों में भरे जौ, मूँग आदि के दानों को लेकर आगे बढ़ने को उत्सुक थी। प्रोफेसर जोबान ने समय को पहचान लिया था। उसने लोगों को सम्बोधित करते हुये कहा ‘‘दोस्तों! अभी आपने मेरी यात्राा के सहयोगी की करामात देखी। यह तो कुछ नहीं था। अब मैं आपको यहाँ आने का रहस्य दिखाना चाहता हूँ। यह देखिये! यह स्वास्थ्य लाभ करने वाले ओसीरिस का प्रसाद है’’ कहते हुये उसने एक बॉक्स का ढक्कन खोल दिया।

उत्सुकता भरी आँखों से भीड़ ने अनेक प्रकार की रंग-बिरंगी दवा की शीशियों के ढक्कनों को देखा।

‘‘दोस्तों यह दवाएँ उसी ओसीरिस के मन्दिर में लिखे नुस्खों के अनुसार बनी हैं। इन स्वास्थ्यवर्धक दवा की शीशियों का दाम मात्रा दस दीनार है। यह दाम इतना कम है, इनके लाभकारी प्रभाव की तुलना में, इनकी स्वास्थ्यवर्धक गुणों की तुलना में, जिसको आप खुद समझ सकते हैं। यह दाम कुछ नहीं है-मैं आपको इनको एक तरह से मुफ्त में दे रहा हूँ।’’

चारों तरफ सन्नाटा छा गया।

‘‘मैं यह समझता था’’ पुलिस इंस्पेक्टर की आवाज गूँजी।

‘‘क्या आपको स्वास्थ्य लाभ के लिए दस दीनार देना कठिन मालूम हो रहा है? क्या आप चाहते हैं कि आप को रोग, एकाकीपन, मरदाना कमजोरी आदि जीवन भर परेशान करते रहें?’’

‘‘आगे आइये! इनको आजमाइये’’ कहते हुये प्रोफेसर जोबान ने एक व्यक्ति जो धीरे-धीरे स्टेज की तरफ बढ़ रहा था, तेज चलकर आने के लिए कहा।

करीब-करीब दौड़ता वह व्यक्ति स्टेज पर कूदकर चढ़ गया।

‘‘मुझे आपको यहाँ तक आने के लिये प्रेरित करना पड़ा।’’

‘‘सर! आप क्या अपना टोप उतारेंगे। आप के बाल गिर रहे हैं, यह मैं देख रहा हूँ।’’

वह व्यक्ति शर्म से लाल हो गया। उसने घबराकर प्रोफेसर जोबान को देखा और पसीना अपनी रुमाल से पोंछने लगा।

उसकी दयनीय दशा पर भीड़ हँस रही थी।

‘‘शरमाओ मत!’’ प्रोफेसर जोबान ने गर्जदार आवाज में कहा, ‘‘यदि तुम्हारे सर पर बाल फिर से उग आयें तो कैसा रहेगा?’’

वह व्यक्ति चाहकर भी कुछ कह न सका।

‘‘यह देखो यह विश्वविख्यात टोलेमी का तेल है। इसके लगाते ही सिर पर बाल निकल आते हैं’’ प्रोफेसर जोबान ने एक शीशी का ढक्कन खोलते हुये कहा।

‘‘इसका प्रभाव चमत्कार देखो’’ कहते हुये प्रोफेसर जोबान ने उस बोतल से कुछ बूँदों को उस व्यक्ति के बाल-विहीन हिस्से पर गिराया।

‘‘मेरा सिर जल रहा है’’ कहकर वह आदमी चीखा।

‘‘बिना कष्ट के फल नहीं मिलता’’ कहते हुये अपनी जेब से रूमाल निकालकर, उससे उस आदमी के सर पर गिरी बूँदों को रगड़ते हुये, प्रोफेसर जोबान का उत्तर था।

‘‘धैर्य रखो और जोर-जोर से साठ तक गिनती गिनो’’ प्रोफेसर ने सुझााया।

लोग आश्चर्य से देख रहे थे। चालीस की गिनती आते उस आदमी के बालविहीन हिस्सों पर नये काले बाल उग आये थे।

‘‘ओह यह क्या हुआ’’ सिर पर हाथ फेरते हुये वह व्यक्ति आश्चर्य मिश्रित स्वर में बोल पड़ा। उसकी पीठ को जोर से थपथपाते हुये प्रोफेसर की रोबदार आवाज गूँजी, ‘‘तुम अब जवान दिखने लगे, परन्तु तुम्हारा पुरुषत्व कैसा है यह तो तुम्हीं जानो।’’

‘‘दोस्तों, क्या तुम अपनी पार्टनर को पूर्ण संतुष्टि दे पाते हो? हो सकता है आज यह संभव हो, पर सोचो वह दिन जब वह मछली की तरह तड़पती होगी और तुम गर्दन नीची किये खड़े होंगे।’’

‘‘दोस्तों, उस दिन के आने के पहले इजिप्ट के सम्राटों द्वारा प्रयोग में लायी जाने वाली कामवर्धक दवा, सिर्फ दस दीनार में आपके लिये।’’

‘‘आगे आकर ले लें। शरमाइये मत।’’ भीड़ मौन थी कुछ पल। परन्तु एकाएक लोग दस दीनार के सिक्के खनखनाते बोतल खरीदने, इजिप्ट के सम्राटों की कामवर्धक दवा खरीदने के लिए समुद्र की तरंग की भाँति स्टेज पर दौड़ पड़े।

‘‘दोस्तों! अण्डे खाने के बाद इस दवा को आजमाये। बच्चों को यह मिलने न पाये। सावधान! जीवन का आनन्द उठाइये।’’ कहते हुये प्रोफेसर जोबान की जेब, कोट की जेब, पैन्ट की जेब सिक्कों से भर गयी थी। उसकी टोलेमी की तेल की बोतलें और इजिप्ट के सम्राटों की कामवर्धक औषधि की सारी शीशियाँ बिक चुकी थीं।

प्रोफेसर जोबान ने अपना हाथ पैन्ट की जेब पर फेरते हुये जोशभरी आवाज में लोगों को ललकारते हुये कहा, ‘‘तुम्हारे पौरुष को बढ़ाने वाली दवा का क्या उपयोग यदि तुम्हारी पार्टनर बर्फ की तरह ठण्डी रहे। तुम्हारे बार-बार प्रेरित करने के बाद भी वह तैयार न हो। तुम्हारे साथ नवीन उत्साह-आनन्द प्राप्ति हेतु वह तत्पर न हो। क्या करोगे तुम ऐसी हालत में?’’

‘‘दोस्तों, निराश न हो! मेरे पास है तुम्हारी सोयी हुयी पार्टनर की इच्छाशक्ति, काम शक्ति को जगाने की दवा। यह देखिये यह इजिप्ट की देवी की औषधि, इजिप्ट की देवी आईसिस की कामवर्धक दवा। इसे पीकर तुम्हारी पार्टनर, तुम्हारी मैना, चहक कर तुमको बुला लेगी।’’

भीड़ तेजी से धक्का लगाती आगे बढ़ी, प्रोफेसर जोबान की आईसिस की दवा की शीशियाँ बिक गयीं और प्रोफेसर की जेब सिक्कों से भर गयी।

अब उसके पास सिर्फ कुछ शीशियाँ रह गयीं। उनको ध्यान से देखते हुये प्रोफेसर जोबान ने फिर एक बार लोगों को पुकारकर कहा, ‘‘आपके पास, सब कुछ हो, आप का दाँत अगर खराब है तो कभी भी आप न तो भोजन का आनन्द ले सकते हैं और न सुख, न अनुभव। कष्ट-दाँत के दारुण कष्ट से मुक्ति का सिर्फ एक आसान तरीका है। वह है वाम-बास्ट, जो आपको दाँत के कष्ट से तुरन्त आराम देगा।’’

भीड़ उसका ‘बाम-बास्ट’ खरीदने दौड़ी, पर उस संख्या में नहीं, जैसे पहले की दो दवाओं को खरीदने के लिए दौड़ी थी।

प्रोफेसर जोबान को लगा कि भीड़ के मध्य में कुछ और तमाशा हो रहा है। उसने देखा कि एक बूढ़ा आदमी जिसके सिर पर और पैरों में पट्टियां बँधी हैं, उसकी तरफ लँगड़ाते हुये बढ़ रहा है।

उसने प्रोफेसर जोबान को गालियाँ बकते हुये कहा, ‘‘सूअर के बच्चे तुमने मुझे कैसी दवा दी है-मेरा दर्द तो कम हुआ नहीं, पर मेरा खून इस बुढ़ापे में तेज दौड़ रहा है। तुम हरामी हो! तुमने मुझसे बुरा मजाक किया है-हाय! मैं कहाँ जाऊँ’’ कहते हुये वह जमीन पर गिर पड़ा।

दूसरी तरफ जिन लोगों ने बाल उगाने की दवा खरीदी थी और जोश में भरकर उसे अपने हाथों में, शरीर में लगा लिया था, उनके शरीर के अधिकाँश हिस्सों पर बाल उग आये थे। वह अनावश्यक बालों को नोचने में लगे हुये बालों को उखाड़ने की पीड़ा से चीख रहे थे।

उस अँधकार में मशाल बुझ गयी थी और पुरुषत्व की दवा, इजिप्ट के सम्राटों की कामवर्धक दवा के आजमाइश के कारण कुछ स्त्रिायाँ चीख रही थीं तो जिन महिलाओं ने आइसिस की कामवर्धक दवा पी चुकी थी, वह हँस रही थी, आहें भर रही थीं। उस घने अँधकार में बच्चों की चीखें सुनायी पड़ रही थीं। वे अपने माता-पिता को चीख- चीखकर बुला रहे थे.... पर उनकी सुनता कौन?

प्रोफेसर जोबान स्टेज पर जलती एक मशाल से भीड़ क्या कर रही है देखने का प्रयास कर रहा था। अपनी दवा के चमत्कार को देखकर मुस्कुराया और तभी बच्चों की चीखें तेज हो गयी।

दूर अँधेरे में प्रोफेसर जोबान को बिजली कड़कने की आवाज के साथ एक काली छाया स्टेज की तरफ दौड़ती दिखी। उसकी आँखें उस अँधकार में मशाल की तरह जल रही थीं। उसके सफेद दाँत मशाल की रोशनी में एक

डरावना दृश्य उत्पन्न कर रहे थे। वह काली छाया मशाल की रोशनी में अब साफ दिख रही थी। उसकी बाहें और मिट्टी से सने नाखून साफ दिख रहे थे। वह दौड़ती हुयी, अपने शरीर को मिट्टी सनी चादर से ढँके हुये थी।

उसे देखते ही प्रोफेसर जोबान काँप उठा। वह पसीने से भीग गया था। उसकी आवाज गले में फँस गयी थी। ‘‘तुम मेरा रहस्य जान गये हो!...’’ वह काली छाया गरजी.. ‘‘मैं तुझे मार डालूँगी’’ यह आवाज सुनते ही प्रोफेसर जोबान चीखा, ‘‘भागो.... मदाम आमू.... जिन्दा..’’ वह पूरी ताकत से स्टेज से कूदा और भागा। मदाम आमू उसको कुछ ही दूर तक दौड़ा सकी। प्रोफेसर जोबान बारबू तेजी से दौड़ता अपने घोड़े की नंगी पीठ पर चढ़कर, उसे पूरी ताकत से दौड़ाता हुआ उस मैदान से दूर निकल गया था।

‘‘मुझे बचा लो,’’ की आवाज ने मदाम आमू को आमन, उसके प्यारे गुलाम को पहचानने में सहायता की। उसने आमन को हाथों से उठाकर जोर से अपने सीने से लगा लिया, जैसे उसने खोया खजाना पा लिया हो। भीड़ भाग रही थी... बारबू अपने प्रेम पर, अपने दुर्दिन पर, अपनी किस्मत पर रोता हुआ उस अँधेरी रात में, घोड़े को चुमकारता-दौड़ाता हुआ भाग रहा था... किधर, किस तरफ... वह स्वतः, वह खुद नहीं जानता था।

image

ई-मेल ः rajeevranjan.fzd@gmail.com

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: विज्ञान-कथा : जुलाई-सितंबर 2017 : रोमांचक विज्ञान-कथा मदाम आमू : राजीव रंजन उपाध्याय
विज्ञान-कथा : जुलाई-सितंबर 2017 : रोमांचक विज्ञान-कथा मदाम आमू : राजीव रंजन उपाध्याय
https://lh3.googleusercontent.com/-ZnzfPf4U2J0/WVIOfqAes5I/AAAAAAAA5Lo/2Fi_pP1rvig_UahJroNvsCglpNsMwjPzACHMYCw/image_thumb%255B1%255D?imgmax=800
https://lh3.googleusercontent.com/-ZnzfPf4U2J0/WVIOfqAes5I/AAAAAAAA5Lo/2Fi_pP1rvig_UahJroNvsCglpNsMwjPzACHMYCw/s72-c/image_thumb%255B1%255D?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2017/06/2017_10.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2017/06/2017_10.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content