पाद टिप्पणी // डॉ. सुरेन्द्र वर्मा

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कहाँ कहाँ, कितने कितने, कैसे कैसे तो पाद हैं ! ऋषि पतंजलि ने अपने योग दर्शन को चार भागों में विभक्त किया है – समाधि पाद, साधन पाद, विभूति पा...

कहाँ कहाँ, कितने कितने, कैसे कैसे तो पाद हैं ! ऋषि पतंजलि ने अपने योग दर्शन को चार भागों में विभक्त किया है – समाधि पाद, साधन पाद, विभूति पाद और कैवल्य पाद। एक वैदिक ऋचा में सिर से लगा कर पैर तक, शरीर के सब अंगों को, पवित्र करने के लिए प्रार्थना की गई है, ज़ाहिर है ‘पाद’, जो शरीर का ही एक अंग है, भी इसमें सम्मिलित हैं –ओं तप: पुनातु पादयो ! ये पाद (या, कहें, पैर) क्योंकि शरीर के सबसे नीचे होते हैं, इसलिए वृक्ष या पौधे की जड़ भी उसका पाद है। किसी पर्वत के नीचे का छोटा पहाड़ भी पर्वत-पाद है। पगडंडी पाद-पथ है।

और तो और हमारे शरीर की अपान-वायु का विसर्जित होना भी पाद ही तो है। इस पाद के नाम से ही आप के चेहरे पर शर्तिया मुस्कराहट आ गई होगी। बच्चे यदि कहीं इस पाद-ध्वनि को सुन लें तो बिना हँसे नहीं रह सकते ! चीज़ ही ऐसी है। लेकिन कोई भी व्यक्ति पाद पर कोई टिप्पणी करने के लिए हिचकता है। आप भी अवश्य सोच रहे होंगे कि इस उम्रदराज़ व्यंग्य-लेखक को क्या सूझी जो इस अत्यंत व्यक्तिगत क्रिया को सार्वजनिक कर उस पर टीका करने पर तुल गया है ? सच कहूँ, हिचक तो मैं भी रहा हूँ। लेकिन क्या करूं, बात ही कुछ ऐसी बन आई है कि कोई बिन बताए न बने।

खबर आई है कि यूरोप में एक विमान को इसलिए आपात स्थित में उतारना पड़ा क्योंकि उसमें सवार किसी महिला यात्री ने बार बार दुर्गन्ध फैला कर साथ सफ़र कर रहे लोगों को बेहाल कर दिया। विमान दुबई से नीदरलैंड जा रहा था। उड़ते विमान के अन्दर महिला ने अपनी अपान वायु का ऐसा विसर्जन किया कि उसके पास बैठे दो अन्य मुसाफिर परेशान हो गए। देखते-देखते बात बिगड़ने लगी और झगड़ा शुरू हो गया। चालक दल ने चलते विमान में इसे “फार्ट-अटैक” (पादाकर्मण) की संज्ञा देकर आस्ट्रिया में इमरजेंसी लैंडिंग का निर्णय ले लिया। झगड़े में दो पुरुष और दो महिलाएं सम्मिलित थे। दोनों महिलाओं को अन्य सदस्यों की राय लेने के बाद विमान से उतार दिया गया।

आस्ट्रिया पुलिस ने महिलाओं को गिरफ्तार कर लिया, लेकिन किसी भी कानून के तहत मामला नहीं बन पाने के कारण उन्हें रिहा कर दिया गया। इन दो महिलाओं में एक कानून की छात्रा है। उसका कहना है कि वह विमान कम्पनी के खिलाफ कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाएगी।

भारत में बनी एक प्रसिद्ध मूवी, थ्री ईडियट्स, में पाद-ध्वनि का एक खासा विश्लेषण हुआ है। यह तीन प्रकार की बतलाई गई है – (१) उत्तमम ,यह धडधड़ात पाधम है। इसकी ध्वनि धमाकेदार है। इसमें बिना गंध के भारी भरकम आवाज़ के साथ पाद-विसर्जन होता है। (२) मध्यम- हलकी आवाज़ और थोड़ी बदबू के साथ पाद-विसर्जन मध्यम कोटि का माना गया है। और तीसरा (३) कनिष्ठम , यह महा-बदबू फैलाने वाला ध्वनि –रहित विसर्जन है।

आपने अबतक अंदाज़ लगा ही लिया होगा की विमान में कौन सी कोटि का धमाका हुआ होगा। अवश्य ही यह तीसरी कोटि का ही रहा होगा जिसने कानों को अपना निशाना न बना कर नाकों दम कर दिया। लेकिन सवाल उठता है कि दो में से किस महिला ने यह आक्रमण किया था ? दोनों एक साथ ही ऐसा करें, इसकी संभावना तो लगभग नहीं के बराबर है। फिर दोनों को विमान से क्यों उतारा गया ?

सवाल और भी हैं। लोगों का एक विश्वास यह भी है कि महिलाएं पाद-विसर्जन करती ही नहीं। यह धारणा तो खैर गलत है। पर इतना ज़रूर है कि उनमें रोककर रखने की क्षमता कहीं अधिक होती है। अत: दोनों में से कोई भी महिला इसका श्रेय किसी पुरुष पर मढ़ सकती थी। ऐसा करके वे दोनों ही अपना बचाव कर सकती थीं। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। हो सकता है किसी पुरुष ने ही यह हरकत की हो और लिहाज़ की मारी दोनों महिलाएं, बोल ही न पाईं हों।

एक बात और। यह तो सर्व-विदित है कि हवाई यात्रा में लोग ज्यादह गैस छोड़ते हैं। इसीलिए जहाज़ में बदबू कम करने के लिए चारकोल फिल्टर्स का इस्तेमाल किया जाता है। क्या सम्बंधित विमान में चारकोल फिल्टर्स थे ही नहीं ? फिर तो गलती विमान कम्पनी की ही मानी जाएगी। पाद-विसर्जन तो एक स्वाभाविक सहज कर्म है। इसे तो चिर काल तक रोका ही नहीं जा सकता। मैं पूरी तरह आश्वस्त हूँ कि कानूनविद महिला इन बिन्दुओं को लेकर कोर्ट में अवश्य बहस करेगी।

एक दिलचस्प बात यह भी है कि जबसे यह मामला वाइरल हुआ है, ट्विट और फेसबुक के क्षेत्र में पाद- टिप्पणियों की बाढ आ गई है। न जाने कितने अन्य यात्रियों ने हवाई यात्राओं में इस तरह की घटनाओं का अपना अनुभव शेयर किया है। सच तो यह है कि जल, थल और नभ कहीं भी ऐसे अनैच्छिक पाद-आक्रमण हो सकते हैं। कभी पूं, कभी पाँ, कभी पदर पदर - इसे ‘छोड़े जाने’ या ‘मारे जाने’ पर सब एक दूसरे की तरफ अवाक देखने लगते हैं। सिवा इसके और कर भी क्या सकते हैं ? बच्चों की तरह हंस लीजिए या बड़ों की तरह टाल जाइए – बस।

कहते हैं कि प्राण वायु के बाद सबसे ज़रूरी यह अपान वायु ही है। यह आपके पेट में गडबडी होने की आपको सूचना देती है ताकि आप सतर्क हो जाएं। इसका पान वर्जित होने के कारण ही शायद इसे “अपान” कहा गया हो। लेकिन आप मानें न मानें एक वैज्ञानिक शोध का कहना है कि यदि आप कैंसर जैसे रोग से बचना चाहते हैं तो उसका एक तरीका पेट से विसर्जित अपान वायु का पान करना, उसे सूँघना भी है !! इति शुभम।


डा. सुरेन्द्र वर्मा

१०, एच आई जी / १, सर्कुलर रोड,

इलाहाबाद – २११००१

COMMENTS

BLOGGER: 2
  1. सादर पादस्ते!
    मनोरंजक रचना हेतु शुभकामनाएं स्वीकारें।

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  2. कहीं भी पाद देना अनुचित हैं ऐसा कहना ही सर्व वेदों और चिर कालिक मानव परंपरा का विरोध हैं | पाद वैज्ञानिक तरीके से देखा जाये तो h2so4 नामक एक रसायन के कारण होता हैं जो की हमारे पेट में पल बढ़ रहे अरबों बैक्टीरिया के द्वारा छोड़ा जाता हैं | चीन में तो लोग पाद सूंघना एक रोजगार हैं जिससे तकरीबन ५०००० डॉलर सालाना आप कमा सकते हैं अगर विश्वास न हो तो नीचे दी गयी लिंक पर आप पढ़ सकते हैं https://www.thecrazyfacts.com/professional-fart-smeller-actual-job-china-can-make-50000-year/ |

    पादने को पश्चिनी सभ्यता में ही हास्य का विषय बनाया गया जबकि वायु मुक्त करना भारतीय संस्कृति में कहीं भी वर्जित नहीं हैं | शायद महान इतिहासकारों ने इसे तवज्जो नहीं दिया जिसके कारण हम महान व्यक्तियों की पाद-गाथा न सुन सके अगर इतिहास में कहीं लिखा होता की फलाना राजा "पौं पौं फूस " पादता था तो शायद आज ये व्यंग न होता| योगासन में कई क्रियाये हैं (जैसे वज्रासन ) जिसका मुख्य उद्देश्य ही पादने की क्षमता को बढ़ाना हैं| हमारे घर में तो आज भी पापा या दादाजी बिना किसी संकोच के पादते हैं हाँ ये माहौल में बदबू आने से थोडा असहज जरूर महसूस होता हैं मगर पाद की तासीर ही ऐसी हैं| पादना एक गंभीर क्रिया हैं इसके लिए हिम्मत, साहस, धैर्, निडरता एवं अनुभव की अव्यशकता होती हैं गंभीर मुद्दों में पाद देने में जहां धैर्य की जरूरत होती हैं वहां पर ही भरी भीड़ में पादने के लिए हिम्मत चाहिये|

    पादने के प्रकारों को लेकर भी मुझे यहाँ तकलीफ हैं क्यूंकि पाद व्यक्तिगत होता हैं इसे अनेक संभागों में बांटा जा सकता हैं यहाँ जो भाग हुए हैं वो केवल ध्वनि एवं महक को ही लेकर किये गए जबकि इसका लेना देना हमारे उदार रोगों से भी हैं अथवा मनोवैज्ञानिक स्तिथि से भी उदाहरण के तौर पर अगर देखा जाए तो घर के बड़े नि:संकोच पादते हैं जबकि नयी नवेली दुल्हन इस आजादी का चाह कर भी लाभ नहीं उठा सकती| हैजे से पीड़ित के पाद पान में अलग महक होती हैं जबकि साधारणत: ये अलग होती हैं| पाद को लेकर बहुत पुरानी कहावत हैं "बड़ों का पाद आशीर्वाद", "पाद के हँसे उसका घर कभी न बसे ", "राजा न पड़ेगा तो क्या प्रजा पादेगी " या "जो भरपूर हो वो ही पादेगा " अगर हम सोचे तो क्या खुद कभी पादकर हमें असल में मजा आया हैं?? नहीं न वो मजा तब ही आएगा जब किसी ने उस का रसपान किया हो और अपनी नाक भों सीकोडा हो |

    पाद एक अनोखी कला हैं जिसमे निपूर्ण होना कोई छोटी बात नहीं हैं| मैंने कई कहानी सुनी हैं जैसे "मन में आई बात, और पेट से आई पाद कभी नहीं रोकना चाहिए " | पाद पद प्रतिष्ट एवं सम्मान के साथ आता हैं| विश्व में आज भी ऐसी कई सभ्यताएं हैं जो इसे केवल एक क्रिया मान कर ही रह जाती हैं | साहित्य अगर देखे तो पाद गाथाओं से भरा पड़ा हैं |

    यदि किसी की भावनाए आपके पाद दान से आहात होती हैं तो होने दे, कोई राष्ट्र या कोई सभ्यता हमें पादने से नहीं रोक सकती इसीलिए जीता हो सकें पादें, खुल कर पादे बैठकर पादे सोये हुए पादे ... मगर पादें जरूर|

    आपका अपना
    किशन शर्मा
    crazykane2000@gmail.com

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रचनाकार: पाद टिप्पणी // डॉ. सुरेन्द्र वर्मा
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