उपन्यास - रात के ग्यारह बजे - भाग 5 - राजेश माहेश्वरी

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उपन्यास रात के ग्यारह बजे - राजेश माहेश्वरी भाग 1   ||  भाग 2 ||  भाग 3 || भाग 4 || भाग 5 गौरव ने राकेश से पूछा कि तुम्हें मानसी ने नागप...

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उपन्यास

रात के ग्यारह बजे

- राजेश माहेश्वरी

भाग 1  ||  भाग 2 ||  भाग 3 || भाग 4 ||


भाग 5

गौरव ने राकेश से पूछा कि तुम्हें मानसी ने नागपुर यात्रा के विषय में बताया या नहीं।

राकेश कुछ चौंका और कह उठा- नहीं तो। यह नागपुर का क्या मामला है?

मानसी भी चौंकी थी। उसने भी कहा- यह नागपुर यात्रा का क्या किस्सा है?

गौरव ने राकेश को संबोधित करते हुए कहा- मैं तो समझ रहा था कि पल्लवी ने मानसी को नागपुर यात्रा के विषय में बतलाया होगा और मानसी ने तुम्हें बतला दिया होगा।

मानसी ने कहा कि पल्लवी ने जब मुझे कुछ बताया ही नहीं तो फिर मैं इन्हें कैसे कुछ बता सकती हूँ। मुझे तो बस इतना ही पता है कि पल्लवी और आनन्द पिछले सप्ताह नागपुर गये थे।

यह सुनकर गौरव ने बताना प्रारम्भ किया- पिछले सप्ताह आनन्द एक ठेकेदार और मुझे अपने साथ नागपुर ले गया था। उसके साथ पल्लवी भी थी। हम लोग होटल तूली में ठहरे थे। शाम को जब शराब का दौर चल रहा था। आनन्द, ठेकेदार और पल्लवी दो-दो पैग चढ़ा चुके थे। तीनों को सुरुर चढ़ने लगा था। वह ठेकेदार जिसका नाम शायद उमेश था वह पल्लवी की ओर घूरता हुआ बोला- जीवन में वासना प्रेम बन सकती है प्रेम कभी वासना नहीं बन सकता। प्रेम आत्मा का लगाव व स्नेह है इसकी संतुष्टि केवल पत्नी से ही मिल सकती है। क्योंकि उसके साथ आत्मा और मन का मिलन होता है। वासना कुछ क्षण के लिये संतुष्टि देती है। यह भौतिक सुख बढ़ाती है और कामुकता के कारण सेक्स की प्यास और बढ़ा देती है। वह आनन्द से पूछता है कि तुम्हारा क्या खयाल है?

आनन्द कहता है- काम वासना नहीं है। कामुकता वासना हो सकती है। काम से ही दुनियां में जो कुछ दिख रहा है वह होता है। हमारा अस्तित्व भी तो इसी के कारण ही है। इसलिये काम के प्रति समर्पित रहो। इसी में जीवन का सुख है और यही जीवन का सत्य है। इतना कहते-कहते उमेश की नजर बचाकर आनन्द ने आंखों ही आंखों में पल्लवी को कुछ इशारा किया।

पल्लवी ने भी वार्तालाप में भाग लेते हुए कहा- काम और वासना के अतिरिक्त भी जीवन में बहुत कुछ है जो महत्वपूर्ण है। मेरी नजर में तो सृजन जीवन का सबसे महत्वपूर्ण पहलू है। सृजन ही जीवन है, जीवन है तभी सृजन है। अपनी भावनाओं और कल्पनाओं को वास्तविकता में परिवर्तित करने की कला का नाम ही सृजन है। सकारात्मक सोच हो तो सृजन वैचारिक क्रान्ति को जन्म देता है। आदमी तो एक दिन चला जाता है, उसका जीवन समाप्त हो जाता है, किन्तु उसका सृजन यहीं रहता है और उसकी कर्मठता की गाथा सुनाता है।

इतना कहकर वह कुछ ठहरी। उसकी बात सुनकर दोनों ही चुप हो गए थे। उसने फिर कहा- सुहाना मौसम है, महफिल सजी है, शमा आपके साथ है और आप लोग जाने कैसी बातें कर रहे हो। आप लोगों की बातों से मैं स्वयं को तन्हा सा महसूस कर रही हूँ। उस पर भी व्हिस्की का सुरुर तारी हो रहा था। वह बोली- जिसके सामने शराब और शबाब दोनों हों वह ऐसी बहकी-बहकी बातें करे यह मैंने पहली बार देखा है। ये शरीर भी भगवान ने बनाया है और इसमें हर अंग अपना महत्व रखता है।

आनन्द बोल उठता है कहीं तुम्हारा इशारा मेरी ओर तो नहीं है? वह बोली- आपको तो मैं अच्छी तरह जानती हूँ मैं तो इन जनाब की बात कर रही थी। उमेश को यह बात चुनौती सी लगी। वह बोला मैडम आपने अभी मुझे देखा ही कहाँ है?

समय मिला तो देख लूंगी। मैं आनन्द के साथ वालों को जानती हूँ। उसने मेरी ओर इशारा करते हुए कहा- एक ये महाशय हैं जो केवल हार्न बजाते हैं। इन्हें गाड़ी स्टार्ट करना भी नहीं आता। मुझे बुरा तो लगा था लेकिन मैं चुप ही रहा।

उसी समय आनन्द ने उठकर पल्लवी से कहा - तुम उमेश का खयाल रखना। मुझे नींद आ रही है और वह अपने कमरे में चला गया। पल्लवी आनन्द का इशारा समझ चुकी थी। आनन्द अपने धन्धे के लिये उमेश को सिद्ध करने की नीयत से आया था। वह चाहता था कि उमेश से उसका व्यापारिक हित सधता रहे। इसीलिये आनन्द, पल्लवी को उमेश के साथ छोड़कर वहां से चला गया था।

मुझे अधिक नशा नहीं हुआ था फिर भी मैं आनन्द के साथ ही अपने कमरे में चला गया था। लेकिन मैं गया नहीं था। मैं तो पल्लवी की सारी हरकतें देखना चाहता था इसलिये बाहर दरवाजे की आड़ से सब कुछ देखता रहा। हम लोगों के जाने के बाद पल्लवी ने एक-एक पैग और भरा। पैग भरते-भरते उसने अपना पल्लू नीचे ढलका दिया था। उमेश की नजरें उसके छलकते यौवन को देखकर देखती ही रह गईं थीं। उमेश ने अपना गिलास उठाया और अपने मुंह की ओर ले जाने लगा तो पल्लवी ने उसका हाथ पकड़ लिया। फिर बोली- साकी के हाथों से भी तो पीकर देखो उसका मजा और नशा ही कुछ और होता है।

उमेश ने अपने दूसरे हाथ से पल्लवी का वह हाथ थाम लिया जिसमें उसका गिलास था और उसे बढ़ाकर अपने होठों से लगा लिया। पल्लवी ने भी उमेश का गिलास वाला हाथ अपने होठों की ओर बढ़ा लिया। वह पैग दोनों ने एक दूसरे के हाथ से ही पिया। पल्लवी ने एक चिप्स का टुकड़ा उठाया और उसका किनारा अपने होठों में दबाकर उमेश की ओर अपना चेहरा बढ़ाया। उमेश ने अपने होंठ बढ़ाकर उस चिप्स को पकड़ने का प्रयास करते-करते अपने दोनों हाथ पल्लवी की पीठ पर रख दिये। चिप्स टूट गया। आधा पल्लवी के मुंह में और आधा उमेश के मुंह में था लेकिन उमेश ने उसे अपनी ओर खींच लिया था। पल्लवी ने भी अपनी बांहों में उमेश को भर लिया था। होंठों से होंठ चिपके थे और दोनों एक दूसरे की बांहों में थे। कुछ देर एक दूसरे की बांहों में रहने के बाद ही दोनों उमेश के कमरे में चले गये और दरवाजा भीतर से बंद करके उनने लाइट ऑफ कर ली थी।

दूसरे दिन सुबह आनन्द ने होटल चैकआउट के लिये बिल मंगवा लिया था। बयालीस हजार का बिल बना था। आनन्द ने उमेश से कहा कि वह आधा बिल और पल्लवी का मेहनताना भी अदा करे। उमेश इस बात से नाराज हो गया। वह बोला- तुम मुझे इन्टरटेन करने के लिये यहां लाए थे और तुमने ही पल्लवी को मेरे पास भेजा था फिर भला मैं कोई भी पेमेन्ट क्यों करुंगा। यह तो तुम्हें ही करना है। दोनों में कुछ देर तक तकरार चलती रही। उसी समय कुछ पुलिस वाले वहां आये। मुझे लगा कि कहीं किसी ने इन लोगों की शिकायत तो नहीं करा दी है। इनने होटल के सारे रुम हमेशा की तरह मेरे ही नाम और मेरे ही आइडेण्टिटी पर बुक कराये थे। इसलिये मैंने इनसे कहा कि अपनी यह झंझट जल्दी खतम करो और यहां से चलो। आनन्द ने भी जब पुलिस को देखा तो उसे लगा कि कहीं उलटे बांस बरेली को न लद जाएं। उसने पूरा बिल अदा करने में ही अपनी भलाई समझी और बिल अदा कर दिया। वह तो मुझे बाद में पता चला कि पुलिस अपने किसी अफसर की सेवा के लिये आई थी।

वहां से निकलकर जब हम लोग एयरपोर्ट की ओर जा रहे थे तो उमेश ने आनन्द को बहुत बुरा-भला कहा। वह उससे बोला था कि तुम बहुत खूसट और चीमड़ किस्म के आदमी हो। तुम मुझे स्वयं इन्टरटेन करने के लिये लाये थे और फिर मुझी से पैसे मांगने लगे। ऐसा करते हुए तुम्हें शर्म भी नहीं आती। तुम औरों को बेवकूफ समझते हो। मैं क्या चीजों की कीमत भी नहीं जानता। अब तुम मुझसे किसी काम की उम्मीद मत करना। मैं आगे से तुमसे मिलना भी नहीं चाहता। वह एयरपोर्ट तक इसी प्रकार लताड़ता रहा और आनन्द चुपचाप सुनता रहा। एयरपोर्ट पर उन लोगों ने उमेश को छोड़ा। उसे किसी काम से बम्बई जाना था। वह चला गया तो इनकी टैक्सी इनके गृहनगर की ओर बढ़ गई।

काफी देर तक टैक्सी में सन्नाटा रहा। उमेश की लताड़ के बाद गौरव चुप था। आनन्द अपने अपमान से तिलमिला रहा था। तभी पल्लवी ने इस शान्ति को अपनी तीखी आवाज से भंग किया। वह आनन्द पर बरस पड़ी थी। उसने आनन्द से कहा कि वह आनन्द के कहने से आनन्द की खुशी के लिये उस दो कौड़ी के ठेकेदार के पास गई थी। वरना इस प्रकार के लोगों को वह घास भी नहीं डालती। आपके सामने वह मुझे अपमानित कर रहा था और आप चुपचाप सुनते रहे। मेरी इच्छा उस कमीने को उतार कर चप्पल मारने की हो रही थी लेकिन आपका लिहाज करके मैं चुप रही। मुझे लग रहा था कि आप जरुर कोई माकूल जवाब उसे देंगे। आप दोनों पोंगे हो। आप पोंगा नम्बर एक हैं और यह पोंगा नम्बर दो।

तब मैंने उससे कहा- मैं क्या कर सकता था। तुम जैसे आई हो वैसे ही मैं भी आया था। जब इन्होंने कोई जवाब नहीं दिया तो मैं कैसे बोल सकता था। तुम्हें भी ये ही लाये थे और उसे भी इन्होंने ही बुलवाया था। यह तो तुम लोगों के बीच की बात थी इससे मेरा क्या लेना देना और मुझे तुमसे भी क्या लेना देना। तुम्हारा जो भी लेन-देन है वह तो इन्हीं लोगों से है फिर मुझे बीच में क्यों घसीट रही हो।

मेरी बात सुनकर पल्लवी एक मिनिट तो मौन रही परन्तु फिर बोली- मैं राकेश और मानसी को भी यह बात बतलाऊंगी। उन्हें भी समझ में आना चाहिए कि तुम लोगों का असली चेहरा क्या है।

उसकी बात सुनकर आनन्द के हाथ पैर फूल गए। वह कहने लगा- जो हो चुका उसे भूल जाओ। बात आगे बढ़ेगी तो मेरे साथ-साथ तुम लोगों की भी बदनामी होगी। बेहतर होगा कि इस बात को यहीं दफन कर दो। सबसे अधिक घाटा तो मेरा हुआ है। जिस काम के लिये आया था वह काम भी नहीं हुआ। तुम्हारा मजा भी मुझे नहीं मिला वह भी उमेश को मिला। मेरे तो पचास हजार भी डूब गये। ऊपर से पहले उसने जूते मारे अब तुम चप्पलें चटका रही हो। मुझे तो ऐसा लग रहा है कि कहीं मुझे हार्ट अटैक न हो जाए।

सुनकर पल्लवी कुछ सोच में पड़ गई थी। कुछ पल रूककर उसने कहा- तुम उद्योगपति के साथ-साथ नेता भी हो। तुम्हें कुछ नहीं होगा। तुम अभी नहीं मरने वाले। शायद तुमने नेता और यमराज का किस्सा नहीं सुना।

वक्त कभी स्थायी नहीं होता। यह बहुत चंचल होता है। एक दिन वक्त विधान सभा के आसपास घूम रहा था। तभी उसकी मुलाकात वहां यमदूत से हो गई। वक्त ने यमदूत से पूछा- आप यहां कैसे? यमदूत बोला- नेता जी का समय पूरा हो गया है और वह उन्हें यमलोक ले जाने के लिये आया है। अभी विधानसभा में नोकान्फिडेन्स मोशन पर बहस चल रही है। इसके समाप्त होते ही नेता जी को लेकर मुझे यमराज के पास जाना है। इसी बीच विधानसभा परिसर से आवाजें आने लगीं। यह देखने के लिये कि माजरा क्या है? वक्त दर्शक दीर्घा में चला गया। वह वहां का माहौल देखकर आश्चर्य चकित रह गया। उसने देखा कि सारे जन प्रतिनिधि एक दूसरे को गालियां दे रहे और एक दूसरे के कपड़े फाड़ रहे है। यमदूत ऐसी अनुशासनहीनता एवं खादी के कपड़ो का अपमान देखकर नेता जी को बिना लिये ही यमलोक वापिस हो गया। यमलोक में यमराज को उस दूत ने पूरी घटना सुनाई और कहा कि हे यमराज यदि इस प्रकार की आत्माएं यहां आ जाएंगी तो हमारी सभ्यता, संस्कृति और संस्कारों का क्या होगा। यमराज भी इस बात से सहमत हो गए और उन्होंने फरमान जारी कर दिया कि भारत के नेताओं को जब बहुत ही आवश्यक परिस्थितियां हो तभी यमलोक लाया जाए।

इसीलिये हमारे देश में आंधी, तूफान, सूखा, बाढ़, आतंकवाद आदि में निरपराध नागरिक ही मारे जाते हैं पर कोई भी नेता नहीं मरता, क्योकि यमराज का यही आदेश है। इसलिये तुम अभी बहुत सालों तक जिन्दा रहोगे और डार्लिंग इसी प्रकार अपनी गतिविधियां चलाते रहोगे।

यह सुनकर आनन्द का मन थोड़ा ठीक हुआ। टैक्सी लगातार अपने गन्तव्य की ओर बढ़ी चली जा रही थी। उसने पल्लवी को अपनी ओर खांचते हुए कहा- मैं इसीलिये तो तुम पर फिदा हूँ क्यों कि कठिन समय में तुम ही मेरा सहारा हो। सच कहूं तो आज तुम कल रात से भी अधिक हसीन लग रही हो। तब पल्लवी ने कहा था कि आप मुझे बहुत देर बाद मिले। अगर आप उस समय मिले होते जब मैं एक बार डांसर थी तो मैं आज कहीं की कहीं होती। पेट की भूख मिटाने के लिये ही मैं बार डांसर बनी थी। जिस समय मैंने यह काम प्रारम्भ किया था उस समय मेरी मजबूरी थी। लेकिन कुछ दिनों के बाद मैं उस काम में डूब गई। मुझे समझ में आ गया था कि यदि इस शरीर को बचाना और बनाना है तो कुछ न कुछ कमाना जरुरी है। कमाने के लिये भी इसी शरीर का उपयोग करना पड़ता है। शराफत से कमाउंगी तो इतना नहीं कमा पाउंगी जिससे पूरी जिन्दगी चल जाए। जब जीना ही है तो ठाठ से जियो। खुद भी मौज करो और दूसरों को भी मौज करने दो। जवानी तो एक दिन ढल ही जाना है। इसलिये मैंने खुलकर जीना सीख लिया। आप मिल गये होते तो अपने आप को आपको ही पूरी तरह समर्पित कर देती। मेरी एक बारबाला सहेली थी। बड़ी धार्मिक थी। उसके एक प्रेमी ने उसकी दिनचर्या पर एक बार लिखा था।

वह प्रतिदिन सुबह नहा-धोकर पूजन पाठ करती है और प्रतिदिन शाम को एक बार में जाकर जाम भर-भर कर मयकशों को पिलाती है। सुबह वह इतनी तल्लीनता से भजन गाती है कि लगता है जैसे कोई गोपी नाच रही हो। सुनने वाले प्रभु की भक्ति में लीन हो जाते हैं। शाम को वही जब बारबाला के रुप में नाचती है तो उसके अंग-अंग से जो मादकता छलकती थी। उसके नशे में लोग होशो-हवाश खो कर अपना सब कुछ उस पर न्यौछावर करने लगते थे। नारी के कितने रुप हैं। जब वह एक माँ या एक बहिन के रुप में होती है तो वह समाज का सबसे सम्माननीय अंग बन जाती है और जब वही नारी वासना की मूर्ति के रुप में सामने आती है तो समाज का हर वर्ग उसे कामुकता की नजर से देखता है। यह उसकी मजबूरी है कि उसे रोटी, कपड़ा और मकान के लिये अनेक रुप रखना पड़ते हैं। कभी वह मन्दिर में पवित्रता की मूर्ति बनती है तो कभी मदिरालय में वासना की मूर्ति।

पल्लवी बोली- बीती बातों को भूल जाएं। दोपहर का एक बज गया है। दिस इज द राइट टाइम फार बियर। आनन्द ने गौरव से कहा- जाओ बियर ले आओ! लेकिन गौरव अपनी जगह पर कसमसाया तो जरुर पर उठा नहीं। आनन्द समझ गया। उसने अपना पर्स निकाला और पैसे निकाल कर गौरव की ओर बढ़ाये। गौरव उतरा और जाकर छैः बोतल बियर की ले आया। बियर का दौर चल पड़ा। चार घूंट बियर हलक में जाते-जाते ही पल्लवी गुनगुनाने लगी-

कोई पीता है पीने के लिये

कोई पीता है जीने के लिये

जब पिलाती है साकी कोई

पीने का मजा कुछ और ही होता है

मदिरा पीकर जीवन हो जाता है कम

पर हम और अधिक पीते जाते हैं

पीकर बहकने वाले को

उठाकर फेंक दिया जाता है

जो नहीं बहकता

वह नृत्य और संगीत की थाप पर

बारबाला का प्यार पाता है।

मदिरा होती है गरम

और जेब भी रहती है गरम

बोतल है चुम्बक सी

नोटों को खींच लेती है

पीने वाला अपने घर और परिवार को

भूल जाता है और

मदिरा में डूब कर ही

सारी खुशियां पाता है।

जब जेब होती है खाली

तो घर याद आता है

मदिरा की असली कीमत

तो अब वह चुकाता है।

जब घर वाले उसे छोड़

कहीं और चले जाते हैं

और वह उन्हें पाने की लालसा में

भटकता रह जाता है।

गौरव यह सुनकर बोल उठा- तुम तो बहुत अच्छी काव्य रचना भी कर लेती हो।

पल्लवी अपने दोनों हाथ उसके गले में डालकर बोली- जानी अभी तुमने देखा ही क्या है? तुम्हारे तो दूध के दांत भी नहीं टूटे हैं। गौरव पर बियर का असर हो रहा था। उसका बहकना चालू हो गया।

यू डोन्ट नो. आई एम ए इन्टरनेशनल आर्टिस्ट. आई हैव विज़िटेड सेवेरल कन्ट्रीज़ फार माइ एग्जीवीशन्स. गॉड हैव गिविन मी ऑल दोज़ थिंग्स़. प्राइम मिनिस्टर हैड एवार्डेड मी फार माई ग्रेट पेन्टिंग्स. यू एण्ड योर दिस लवर कैन नॉट अण्डर स्टैंण्ड देम. इफ आई स्टे इन न्यू देलही, माय फ्रैन्डस विल श्योरली अरेन्ज ए सीट ऑफ पार्लियामेण्ट फार मी. आई कैन स्पैण्ट ए लॉट ऑफ मनी विदाउट एनी ट्रबल. माई सन इज सेटेल्ड इन यू एस ए एण्ड फिफ्टीन हण्ड्रेड एम्प्लाइज़ वर्क्स अण्डर हिम.

पल्लवी ने आनन्द की ओर देखा और पूछा- ये क्या कह रहे हैं? आनन्द बोला- इसे और बियर चाहिए है। वही मांग रहा है। पल्लवी ने एक बोतल खोलकर उसकी ओर बढ़ा दी। उसने आनन्द से पूछा- तुम कहते थे कि तुम्हें मुझसे प्यार है, परन्तु नागपुर में तुम्हारे व्यवहार ने बता दिया कि तुम भी मुझे अपना स्वार्थ सिद्ध करने का साधन मानते हो। आनन्द स्वार्थी तो था किन्तु एक भावुक व्यक्ति भी था। पल्लवी की बात उसे लग गई। उसे अपनी गलती का भी एहसास हुआ और स्वयं के व्यवहार पर शर्म भी आई। वह पल्लवी के सामने अपनी सफाई देने के स्वर में बोला- मैं अपने पारिवारिक और व्यक्तिगत जीवन में बिलकुल तन्हा हूँ। मेरा न तो कोई दोस्त है और न ही कोई हितैषी। मैं जो सपने देखता हूँ वे हमेशा सपने ही रहते हैं। वास्तविकता को मैं पहचानता नहीं, कल्पना लोक में ही जीवन काट रहा हूँ। मैं तुम्हारा दर्द समझता हूँ। लोग तुम्हारे शरीर और तुम्हारी आत्मा को इसलिये तो रौंद सके क्योंकि तुम्हारे पास धन नहीं था। नागपुर में मैंने यदि कुछ गलती की है तो उसका कारण भी तो धन ही है। मैं तुम्हें धन की ओर से इतना सुखी कर देना चाहता हूँ कि सारे सुख तुम्हारी झोली में आ जाएं। फिर कोई तुम्हें रौंद न सके।

तुम स्वयं जानती हो यहां किसको किससे कितनी प्रीति है। यह दुनियां धन के बल पर चलती है। जब आदमी के पास धन होता है तो उसके सारे सपने पूरे होते हैं। सब उसके अपने होते हैं। धनवान का सभी गुणगान करते हैं। इसके कारण वह भ्रम में पड़ जाता है और अपने आप को महान समझने लगता है। जिस दिन धन समाप्त हो जाता है उस दिन अपने तो क्या अपनी किस्मत भी हमसे रुठ जाती है। जो हमेशा हमारे साथ रहते थे वे ही हमारा उपहास करने लगते हैं। उस समय कोई साथ नहीं देता, सभी छोड़कर दूर चले जाते हैं।

पल्लवी आनन्द से पूछती है कि यदि ऐसा है तो अभी पिछले सप्ताह तुम मानसी को लेकर कहाँ-कहाँ घूमते रहे। एक दिन नहीं दो-तीन दिन तक लगातार। फिर तुमने मानसी से यह भी तो कहा था कि तुम गघे थे जो उसे नहीं पहचान पाये। उसकी और उसकी सुन्दरता की कीमत नहीं समझ पाये। इस मामले में राकेश तुमसे अधिक समझदार निकला जो उसने उसे दस हजार रूपयों की मदद की। अगर वह राकेश को छोड़कर तुम्हें अपना ले और तुम्हारे साथ आ जाए तो तुम राकेश द्वारा जितना भी धन उसे दिया गया है उसे लौटाने के लिये तुम उसे उतना धन देने के लिये तैयार हो और भविष्य में भी उसे जो भी जरुरत होगी तुम वे सब पूरी करोगे और उसे कोई कमी नहीं होने दोगे। मेरी समझ में नहीं आता तुम किस तरह के आदमी हो? मुझसे और मानसी से तुम्हें राकेश ने ही तो मिलवाया था। मुझे यह भी पता चला है कि राकेश ने तुम्हारे व्यापार में तुम्हारा साथ निभाया और उसके कारण तुम्हें करोड़ों को फायदा भी हुआ था। जिस आदमी ने तुम्हारा हर कदम पर साथ निभाया तुम उसी की पीठ में खंजर घोंपने का काम कर रहे थे। इतना सब जानकर मैं यह कैसे यकीन कर लूं कि तुम मेरा सारा रस चूसकर मुझे चूसे हुए आम की तरह एक दिन नहीं फेंक दोगे।

गौरव ने बताया कि उस समय उसने भी कहा था कि आनन्द को ऐसा नहीं करना चाहिए था। राकेश उसका सच्चा मित्र है। लेकिन यह एक धोखेबाजी है। यह सुनकर आनन्द गौरव पर भड़क पड़ा था। बात बढ़ने से पहले पल्लवी बीच में बोल पड़ी- तुम मानसी को नहीं जानते। वह राकेश को सच्चे मन से प्यार करती है। वह उसे छोड़कर कभी भी आनन्द के साथ नहीं जा सकती। वह राकेश को कैसा चाहती है यह आनन्द नहीं समझता है।

इसी प्रकार की बातें करते हुए हम लोग नगर के करीब पहुंच चुके थे। रात प्रारम्भ हो चुकी थी। नगर के टिमटिमाती हुई रोशनी दूर से ही दिखने लगी थी। सभी दिन भर के सफर से थक चुके थे। पहले हम लोग पल्लवी के घर पहुँचे और उसे छोड़ा। फिर आनन्द मुझे मेरे घर छोड़कर अपने घर चला गया।

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(क्रमशः अगले भाग में जारी...)

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जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi 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रचनाकार: उपन्यास - रात के ग्यारह बजे - भाग 5 - राजेश माहेश्वरी
उपन्यास - रात के ग्यारह बजे - भाग 5 - राजेश माहेश्वरी
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