बाल कहानियाँ -सीमा सचदेव 1. शेर और कुत्ता आओ बच्चो सुनो कहानी न बादल न इसमें पानी इक कुत्ता जंगल में रहता और स्वयं...
बाल कहानियाँ
-सीमा सचदेव
1.शेर और कुत्ता
आओ बच्चो सुनो कहानी
न बादल न इसमें पानी
इक कुत्ता जंगल में रहता
और स्वयं को राजा कहता
मैं सबकी रक्षा करता हूँ
और न किसी से मैं डरता हूँ
बिन मेरे जंगल है अधूरा
असुरक्षित पूरा का पूरा
मुझ पर पूरा बोझ पड़ा है
मेरे कारण हर कोई खड़ा है
मै न रहूँ , न रहेगा जंगल
मुझसे ही जंगल में मंगल
सारे उसकी बातें सुनते
पर सुन कर भी चुप ही रहते
समझे स्वयं को सबसे स्याना
था अन्धों में राजा काना
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पर यह अहम भी कब तक रहता
कब तक कोई यह बातें सुनता
इक दिन टूट गया अहँकार
जंगल में आ गई सरकार
बना शेर जंगल का राजा
खाता-पीता मोटा-ताजा
शेर ने कुत्ते को बुलवाया
और प्यार से यह समझाया
छोड़ दो तुम झूठा अहँकार
और आ जाओ मेरे द्वार
बिन तेरे नहीं जंगल सूना
यह तो फलेगा फिर भी दूना
पर कुत्ते को समझ न आई
उसने अपनी पूँछ हिलाई
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मैं यहाँ पहले से ही रहता
हर कोई मुझको राजा कहता
कौन हो तुम यहाँ नए नवेले
अच्छा यही, वापिस राह ले ले
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ले लिया उसने शेर से पंगा
मच गया अब जंगल में दंगा
भागे यहाँ-वहाँ बौखलाया
खुद को भी कुछ समझ न आया
जो अन्धो में राजा काना
समझता था बस खुद को स्याना
अब तो वही बना नादान
शेर के हाथ में उसकी जान
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छुप कर गया शेर के पास
बोला मैं जानवर हूँ खास
न बदनाम करो अब मुझको
राजा मैं मानूँगा तुझको
बख़्श दो मुझको मेरी जान
नहीं करूँगा मैं अभिमान
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शेर ने कुत्ते को माफ कर दिया
और अपना मन साफ कर दिया
तोड़ा कुत्ते का अभिमान
और बख़्श दी उसको जान
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2
चिंटू-मिंटू
चिंटू-मिंटू जुड़वाँ भाई
एक ही सूरत दोनों ने पाई
करते बच्चों संग लड़ाई
जिससे उनकी माँ तंग आई
पापा उनको बहुत रोकते
पर दोनों ही अकल के मोटे
टीचर भी उनको समझाती
पर दोनों को समझ न आती
किसी न किसी को रोज़ पीटते
और कक्षा में हल्ला करते
सारे उनसे नफ़रत करते
उनकी मार से सारे डरते
बीमार पड़ा था इक दिन चिंटू
गया स्कूल अकेला मिंटू
बच्चों ने तरकीब लगाई
और मिंटू को सबक सिखाई
कोई भी उससे नहीं बोलेगा
बैठेगा वो आज अकेला
न कोई उस संग लंच करेगा
न उसके संग कोई खेलेगा
मिंटू ने थोड़ा समय बिताया
और फिर जब बच्चों को बुलाया
सभी ने उससे मुँह था फेरा
देखता रह गया वो बेचारा
किसी तरह से दिन बिताया
और फिर जब घर वापिस आया
बैठ गया था घर के कोने
लगा था ज़ोर-ज़ोर से रोने
चिंटू बोला क्या हुआ भाई?
किसी ने तुझसे की लड़ाई?
जल्दी से तू कह दे मुझसे
बदला लूँगा अभी मैं उससे
मिंटू बोला न मेरे भाई
बंद करो अब सारी लड़ाई
अब हम नहीं लड़ेंगे किसी से
मिलजुल कर ही रहेंगे सबसे
मिंटू ने सारी बात बताई
चिंटू को भी समझ में आई
दोनों बन गये अच्छे बच्चे
सारे बन गये दोस्त सच्चे
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बच्चो तुम भी मिलकर रहना
कभी न किसी से झगड़ा करना
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3.
महलो की रानी
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एक कहानी बड़ी पुरानी
आज सुनो सब मेरी जुबानी
विशाल सिन्धु का पानी गहरा
टापू एक वहाँ पर ठहरा
छोटा सा टापू था प्यारा
कुदरत का अद्बुत सा नज़ारा
स्वर्ग से सुन्दर उस टापू पर
मछलियाँ आ कर बैठती अक्सर
धूप मे अपनी देह गर्माने
टापू पे बैठती इसी बहाने
उसपर इक जादू का महल था
जिसका किसी को नही पता था
चाँद की चाँदनी मे बाहरआता
और सुबह होते छुप जाता
उसको कोई भी देख न पाता
न ही किसी का उससे नाता
एक दिन इक भूली हुई मछली
रात को जादू की राह पे चल दी
सोचा रात वही पे बिताए
और सुबह होते घर जाये
देखा उसने अजब नज़ारा
चमक रहा था टापू सारा
सुंदर सा इक महल था उस पर
फूल सा चाँद भी खिला था जिस पर
देख के उसको हुई हैरानी
पर मछली थी बडी सयानी
जाकर खडी हुई वह बाहर
पूछा ! बोलो कौन है अन्दर
क्यो तुम दिन मे छिप जाते हो?
नज़र किसी को नही आते हो?
अन्दर से आई आवाज़
खोला उसने महल का राज
रानी के बिन सूना ये महल
इसलिए रक्षा करता है जल
ढक लेता इसे दिन के उजाले
क्योकि दुनिया के दिल काले
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मछली रानी बडी सयानी
समझ गई वो सारी कहानी
चली गई वो महल के अन्दर
अब न रहेगा महल भी खँडहर
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मछली बन गई महल की रानी
अब न रक्षा करेगा पानी
महल को मिल गई उसकी रानी
खत्म हो गई मेरी कहानी
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4.
कौआ और कबूतर
एक कबूतर एक था कौआ
रहते थे उपवन में भैया
पास-पास थे दोनों के घर
बातें करते दोनों अकसर
दोनों ही की अलग थी जाति
पर सुख-दुख के अच्छे साथी
कबूतर बड़ा ही सुस्त था भैया
बैठा रहता पेड़ की छैया
पर उतना ही चतुर था कौआ
न देखे वह धूप न छैया
कौआ सुबह-सुबह ही जाता
जो भी मिलता घर ले आता
दोनों मिलकर खाना खाते
गाना गाते और सो जाते
कभी-कभी कहता था कौआ
तुम भी चलो साथ मेरे भैया
बड़ा आलसी था वो कबूतर
बोलता मैं बैठूँगा घर पर
एक बार गर्मी का मौसम
सूख गया था सारा उपवन
ख़त्म हो गया पानी वहाँ पर
रहते थे वे दोनों जहाँ पर
गला सूखता था हर पल ही
पर कबूतर तो था आलसी
प्यास से वह बेहाल हो गया
और देखते ही निढाल हो गया
कौए ने जब देखा उसको
नहीं रहा था होश भी उसको
उड़ गया कौआ पानी लाने
लग गया उसकी जान बचाने
दूर गाँव वह उड़ कर आया
चोंच में भर कर पानी लाया
पानी जो कबूतर को पिलाया
तो वह थोड़ा होश में आया
कौए की मेहनत रंग लाई
और कबूतर को सोझी आई
वह भी अगर आलस न करता
तो इतनी तकलीफ़ न जरता
आज अगर कौआ न होता
तो वह बस प्यासा ही मरता
ठान लिया अब तो कबूतर ने
नहीं बैठेगा वो भी घर में
वह भी कौए संग जाएगा
अपना खाना खुद लाएगा
अब वो दोनों मिलकर जाते
जो भी मिलता घर ले आते
दोनों ही मिलजुल कर खाते
गाना गाते और सो जाते
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बच्चो तुमने सुनी कहानी
तुम न करना यह नादानी
कभी भी तुम न करना आलस
बढ़ते रहना आगे हरदम
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5.
रामू-शामू
रामू-शामू दो थे बंदर
रहते थे इक घर के अंदर
मालिक उनका था मदारी
उन्हें नचाता बारी-बारी
सारा दिन वे नाचते रहते
फिर भी खाली पेट थे रहते
नहीं मिलता था पूरा खाना
देता मदारी थोड़ा सा दाना
तंग थे दोनों ही मलिक से
भागना चाहते थे वे वहाँ से
इक दिन उनको मिल गया मौका
और मलिक को दे दिया धोखा
इक दिन जब वो सो ही रहा था
सपनों में बस खो ही गया था
रामू-शामू को वह भूला
छोड़ दिया था उनको खुला
भागे दोनों मौका पाकर
छिपे वो इक जंगल में जाकर
पर दोनों ही बहुत थे भूखे
वहाँ पे थे बस पत्ते सूखे
निकल पड़े वो खाना लाने
कुछ फल, रोटी या मखाने
मिली थी उनको एक ही रोटी
हो गई दोनों की नियत खोटी
रामू बोला मैं खाऊँगा
शामू बोला मैं खाऊँगा
तू-तू, मैं-मैं करते-करते
बिल्ली ने उन्हें देखा झगड़ते
चुपके से वह बिल्ली आई
आँख बचा के रोटी उठाई
रोटी उसने मज़े से खाई
और वहाँ से ली विदाई
देख रहा था सब कुछ तोता
जो था इक टहनी पर बैठा
तोते ने दोनों को बुलाया
और बिल्ली का किस्सा सुनाया
फिर दोनों को सोझी आई
जब रोटी वहाँ से गायब पाई
इक दूजे को दोषी कहने
लगे वो फिर आपस में झगड़ने
बस करो अब तोता बोला
और उसने अपना मुँह खोला
जो तुम दोनों प्यार से रहते
रोटी आधी-आधी करते
आधा-आधा पेट तो भरते
यूँ न तुम भूखे ही रहते
छोड़ो अब यह लड़ना-झगड़ना
सीखो दोनों प्यार से रहना
जो भी मिले बाँट कर खाना
दोषी किसी को नही बनाना
अब तो उनकी समझ में आई
झगड़े में रोटी भी गँवाई
अब न लड़ेंगे कभी भी दोनों
रहेंगे साथ-साथ में दोनों
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6.मम्मी और मुन्ना
इक दिन माँ से मुन्ना बोला
छोटा सा पर बड़ा मुँह खोला
आओ माँ टी.वी पे देखो
वैसा घोला(घोड़ा)मुझे भी ले दो
मै भी घोले पे बैठूँगा
फिर न कभी भी मै रोऊँगा
मुन्ने ने ऐसी जिद्द मारी
चाहिए अभी घोड़े की सवारी
माँ ने मुन्ने को समझाया
तरह तरह से भी ललचाया
ले लो चाहे कोई खिलौना
पर घोड़े के लिए न रोना
घोड़ा जो लातों से मारे
तो दिख जाएँ दिन मे तारे
तुम घोड़े को कहाँ बाँधोगे ?
भूखा होगा तो क्या करोगे ?
पर नन्हा सा मुन्ना प्यारा
दिखाया गुस्सा सारा का सारा
जब तक घोला नहीं मिलेगा
तब तक कुछ भी न खाऊँगा
न तो किसी से बात कलूँगा(करूँगा)
न ही खिलौनो संग खेलूँगा
करती क्या अब माँ बेचारी ?
घोड़े की तो कीमत भारी
कैसे मुन्ने को समझाए ?
और घोड़े की जिद्द हटाए
आया माँ को एक ख्याल
चली समझदारी की चाल
ले गई एक खिलौना घर
जहाँ पे बच्चे खेलते अकसर
भरा खिलौनों से वो घर
एक से बढ़कर एक थे सुन्दर
वहाँ पे था लकड़ी का घोड़ा
चलता था जो थोड़ा-थोड़ा
उस पर मुन्ने को बिठाया
और फिर घोड़े को घुमाया
पकड़ लिया मुन्ने ने घोड़ा
घोड़ा दुम दबा के दौड़ा
इतने मे मुन्ना खुश हो गया
मम्मी का मसला हल हो गया
माँ बेटा दोनो खुश हो गए
हँसते-हँसते वो घर को
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7
चीनू-मीनू
चीनू-मीनू दो सहेली
नहीं रहती थीं कभी अकेली
दोनों ही थीं बड़ी स्यानी
आओ सुनाऊं उनकी कहानी
दोनों पास-पास ही रहती
एक ही कक्षा में थी पढ़ती
चीनू को मिलता एक रुपैया
मीनू को भी एक रुपैया
दोनों ने सोचा कुछ मिलकर
पैसे जोड़ें सबसे छुपकर
दोनों ने इक-इक डिब्बा ढूँढ़ा
सबसे उसे छिपाकर रखा
आठ-आठ आना दोनों बचा के
रख देतीं वो सबसे छुपा के
दोनों ने जोड़े कुछ पैसे
बचा-बचा के जैसे-तैसे
स्कूल में कुछ बच्चे थे ऐसे
जिनके पास नहीं थे पैसे
न कॉपी, पेन्सिल न बसते
घर का काम वे कैसे करते?
टीचर उनको रोज पीटते
पर बच्चे थे, वे क्या करते?
चीनू-मीनू ने घर पे बताया
और पैसों का डिब्बा दिखाया
दोनों बच्चियाँ भोली-भोली
पैसे दे कर ये थी बोली
बच्चों के पास नहीं हैं पैसे
क्यों न उनको ले कर दे दें
कुछ कॉपी, पेन्सिल और बसते
ताकि पढें वो हँसते-हँसते
सबको उनका विचार भा गया
और सारा सामान आ गया
मिल गया बच्चों को सामान
बन गई माँ-बाप की शान
सबको उन पर गर्व हुआ था
उनका ऊँचा नाम हुआ था
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8.
आऊँ दिखाऊँ तुम्हें....... एक भयानक सपना
एक सपना
रात को सोते हुए अचानक
देखा सपना एक भयानक
आओ मैं तुम सबको बताऊँ
सत्य से परिचय करवाऊँ
सूखी धरा प्यासे लोग
सभी को कोई न कोई रोग
चलते मुँह पर रखके रुमाल
सूखे पानी के सब ताल
नहीं था खाने को शुद्ध खाना
न पक्षियों के लिए ही दाना
ऑक्सीजन के भरे सिलेण्डर
रखे हुए थे सब कंधों पर
सारे दिखे कुली के जैसे
चलते-फिरते मरीज़ों जैसे
बडा भयानक था वो मंजर
देख के मैं तो गई थी डर
फिर एक किरण की सुनी पुकार
बोली मन में करो विचार
मानव की गलती का ही फल
जो नहीं मिलता है शुद्ध जल
काटता रहता मानव पेड़
करता प्रकृति से छेड़
तभी तो शुद्ध नहीं है वायु
कम हो गई मानव की आयु
न तो शुद्ध मिलता है खाना
न पक्षियों के लिए ही दाना
पर जो थोड़ा करो विचार
हो सकता है इनमें सुधार
इक-इक वृक्ष जो सभी लगाएँ
तो यह वातावरण बच जाए
वायु तो शुद्ध हो जाएगी
धरा पे हरियाली आएगी
खाने को होंगे मीठे फल
बादल बरसाएगा स्वच्छ जल
होंगे नहीं भयानक रोग
खुश रहेंगे सारे लोग
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आओ हम सब वृक्ष लगाएँ
अपना पर्यावरण बचाएँ
ऐसे दे हम सब सहयोग
मिटाएँ प्रदूषण का रोग
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9.पर्यावरण बचाओ अभियान (कथा-काव्य)
पक्षियों ने इक सभा बुलाई
सबने अपनी बात बताई
सुन रहा था बूढ़ा तोता
जो ऊँची डाली पर बैठा
सबकी समस्या लाया कौआ
हम सब है मुश्किल में भैया
न तो मिलता हमें स्वच्छ जल
और दिखते हैं बहुत कम जंगल
न तो हमें मिलते मीठे फल
न ही शुद्ध वायु की हलचल
न दिखती है शीतल छाया
जाने कैसा समय है आया
दूर देश उड़ कर जाते हैं
तब जाकर भोजन पाते हैं
थोड़ा चोच में भर लाते हैं
उड़ते-उड़ते थक जाते हैं
मानव काटता है सब पेड़
करता प्रकृति से छेड़
वायु भी अब दूषित हो गई
गन्दगी सुन्दर धरा पे भर गई
किया न गर अब इस पे विचार
तो न जिएँगे दिन भी चार
फैला है हर जगह प्रदूषण
हो गया मैला स्वच्छ वातावरण
लुप्त हो रही पक्षी जाति
नहीं है कोई इन सबका साथी
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सुन कर यह सब तोता बोला
धीरे से अपना मुँह खोला
यह सब समस्याएँ गम्भीर
पर रखो तुम थोड़ा धीर
क्यों न हम मिलकर सुलझाएँ
हम अपने कुछ नियम बनाएँ
उन नियमों का पालन करेंगे
हरा-भरा वसुधा को करेंगे
हम सब जो भी फल चखेंगे
उसके बीज नहीं फैकेंगे
रखेंगे उनको सड़को किनारे
सोचो जरा सारे के सारे
हम सब मिलकर करेंग यह सब
कितने पौधे फूटेंगे तब
देंगे हम ऐसे सहयोग
होंगे सुखी सारे ही लोग
हरी-भरी वसुधा फिर होगी
जिससे वायु भी शुद्ध होगी
मिलेंगे फिर हमको मीठे फल
बादल बरसाएगा स्वच्छ जल
नहीं रहेगा फिर प्रदूषण
शुद्ध होगा सारा वातावरण
चलो आज से ही अपनाएँ
हम सब सुन्दर वृक्ष लगाएँ
इसको जीवन में अपनाएँ
हरा-भरा वसुधा को बनाएँ
.............................................
बच्चो तुम भी समझो बात
कुदरत की उत्तम सौगात
वृक्ष लगाओ सारे मिलकर
गन्दगी न फैलाओ धरा पर
आओ धरा को सुन्दर बनाएँ
हम सब इक-इक वृक्ष लगाएँ
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अपील:- प्रकृति अनमोल है। धरा की सुन्दरता, पर्यावरण को सम्हालना हमारी
नैतिक जिम्मेदारी है शुद्ध वातावरण में जीने का हम सब का अधिकार है इस को स्वच्छ बनाने में सहयोग दें...... सीमा सचदेव
10.
पानी है अनमोल
आज मैं लेकर आई कहानी
इक मेंढक की है नादानी
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एक बाग में था तालाब
सुन्दर सा नहीं कोई जवाब
तरह-तरह के खिले थे फूल
छोटे से तालाब के कूल
वहाँ पे कुछ मेंढक रहते थे
जल में जलक्रीड़ा करते थे
कभी अन्दर कभी बाहर जाते
सब तालाब में खूब नहाते
वहाँ पे पूरी मस्ती करते
नहीं वो कभी किसी से डरते
सारे ही वहाँ खुश रहते
उसे स्वर्ग सा सुन्दर कहते
मेंढक इक उनमें शैतान
बुद्धि में सबसे नादान
करता वो ऐसी शैतानी
जिससे गन्दा हो जाए पानी
पानी में कचरा वो फेंकता
और फिर सबका तमाशा देखता
पत्तों में जाकर छुप जाता
और उन सबको बड़ा सताता
सारे मेंढक दुखी थे उससे
क्या करे समझे वो जिससे
प्यार से उसको सब समझाते
और पानी का मूल्य बताते
न बर्बाद करो तुम पानी
पानी से मिलती जिंदगानी
जो तुम इसको गंदा करोगे
तो फिर जाकर कहाँ रहोगे
जो गंदा पानी पियोगे
तो बीमारी से मरोगे
साफ स्वच्छ होगा जो यह जल
तभी होगा अपना मन निर्मल
पर मेंढक ना समझे बात
सबने मिल सोचा इक रात
नया कोई ढूँढ़ेगे ठिकाना
इस मेंढक को नहीं बताना
चुपके से यहाँ से निकलेंगे
नई जगह पे जाके रहेंगे
निकले छुप-छुपा के सारे
अब वो मेंढक मन में विचारे
अब तो मैं हो गया आज़ाद
करूँगा मैं पानी बर्बाद
नहीं कोई अब उसको रोकेगा
और वो मर्ज़ी से रहेगा
किया तालाब का गंदा पानी
खुश था करके वो शैतानी
पीता था वही गंदा पानी
नहीं थी बात किसी की मानी
इक दिन वो पड़ गया बीमार
चलने फिरने से लाचार
नहीं था वहाँ पे कोई स्वच्छ जल
जिससे हो जाता वह निर्मल
अब मेंढक को समझ में आया
सोच-सोच के बड़ा पछताया
जो मैं सबकी बात समझता
और पानी न गंदा करता
तो मैं यूँ बीमार न होता
पड़ा अकेला कभी न रोता
पर न अब कुछ हो सकता था
वो तो बस अब रो सकता था
अपने किए पे पछता रहा था
भूल पे आँसू बहा रहा था
पर ना कोई था उसके पास
बैठ गया वो हो के उदास
नहीं करूँगा अब शैतानी
और न करूँगा गंदा पानी
पानी तो अमृत का घोल
हर बूँद इसकी अनमोल
.....................................
बच्चों तुमको समझ में आई
कभी न करना कोई बुराई
कभी न गन्दा करना पानी
यह तो देता है जिंदगानी
अपील-पानी अनमोल है , इसकी हर बूँद कीमती है |पानी की बचत हमारा धर्म है |
पानी जीवन है , इसकी स्वच्छ्ता और सुरक्षा हमारी जिम्मेदारी है|
बचपन की सैर करा दी आपने.. हालाँकि सारी तो अभी नही पढ़ पाया.. पर फ़ुर्सत में दोबारा पढ़ुंगा
जवाब देंहटाएंThank you so much
हटाएंरवि भाई
जवाब देंहटाएंबहुत ही शानदार और मन को छू लेनेवाला ब्लॉग है ये .
फुर्सत निकाल कर एस ब्लॉग की सारी रचनाओं का पाठ करूँगा...
Padkar class 5 yad aa gayi
हटाएंsach me bachpan yaad aa gaya. dobara bachpan jine ka ji chahta hai. very nice.....
हटाएंDhanyavaad Abhishek ji
हटाएंmera likhana safal ho gaya. thank you so much.
हटाएंAarif ji sach kahaa aapne , dobara bachapan laut aaye to jee bharkar jiyenge. Thank you so much for your valuable comment.
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