उत्खनन सदगुणों के जीवाश्म का --अनुज खरे भारत के एक प्रसिद्ध नगर के बाजू म खुदाई चल रही है। विदेशों से आयातित बड़ी मशीनें काम प...
उत्खनन सदगुणों के जीवाश्म का
--अनुज खरे
भारत के एक प्रसिद्ध नगर के बाजू म खुदाई चल रही है। विदेशों से आयातित बड़ी मशीनें काम पर लगी हैं। तुच्छ किस्म की कुछ छोटी-मंझोली मशीनें भी काम्प्लेक्स फील करते हुए बड़ी को टक्कर देने में जुटी हैं।
चल क्या रहा है बॉस?
भाईजान, खुदाई चल रही है।
काहै कि?
अरे भाई, जमीन की खुदाई चल रही है। अच्छा हां, क्यों चल रही है। सरकार के आदेश से।
..... फिर क्यों? अरे भाई हाल ही में एक कमीशन ने रिपोर्ट समिट की है नैतिकता-सदाचार के पूर्ण लोप की। सो, इस बाबत खुदाई करके देखा जाएगा कि कहां लुप्त हुई है। सदाचार नैतिकतायुक्त जीवों की अंतिम कड़ी। कहीं इनके जीवाश्म यहां मिल जाएं तो उनके डीएनए परीक्षण से पता लगाया जाएगा कि कैसे, कब ये महत्वपूर्ण प्रजाति इन गुणों सहित धरा से विलुप्त हुई थी। अन्यथा तो इसे पृथ्वी से पूर्णरूप से लुप्तप्रायः ही मान लिया जाएगा। फिर बुराई को लेकर कोई परंपरागत दुख नहीं रहेगा। इस कारण पूरे आयोजन का संयोजन बिठाया गया है।
होरिजेंटल, वर्टिकल में कई ‘ट्रेंचे’ लगी पड़ी हैं। कई स्तरों पर उत्खनन का प्रयास किया जा रहा है। फिलहाल प्रथम स्तर पर एक हड्डी मिली है। वैज्ञानिक इसकी नापजोख में जुटे हैं। प्रारंभिक निष्कर्षों के आधार पर किसी सदाचार से परिपूर्ण जीव की ही रीढ़ की हड्डी लग रही है।
इतना गजब, कैसे पता चला?
वैज्ञानिकों का नापजोख पढें वे बता रहे हैं कि हड्डी ठोस है?
यानि ...?
अब रीढ़ की हड्डी ठोस होती तो मनुष्य मनुष्य की बात में वजन होगा, कथनी करनी में सदाचारी तो होगा ही।
खोखली रीढ़ हो तो... यानि दिखता है आप समझ गए। जय हो! ऐसे ही ज्ञानी मनुष्य पाठकों के रूप में लेखकों के स्तुत्य होते हैं। लेखक लिखता कुछ है, वे समझ ज्यादा लेते हैं। ऐसे ही पाठकों के दम पर बडे-बडे ‘नाम’ पैदा हुए हैं।
अरे-अरे वो देखिए फिर बुढ़ऊ किस्म का वैज्ञानिक चीत्कारें मार रहा है। लगता है फिर इसे कुछ मिला है। अब इन वैज्ञानिकों की यही तो समस्या है समझ ही नहीं आता कुछ मिला नहीं कि इन्हें खुशियों के झंझावात आने लगते हैं। एक पुराने तो आपको याद होंगे ही यूरेका... यूरेका वाले आर्कमिडिज। इधर सफलता मिली नहीं कि वे उधर आदिम हालत में रोड पर निकल पड़े थे। चलिए देखते हैं इस वैज्ञानिक को क्या मिला?
क्या कपड़े का टुकड़ा? कॉलर है, सफेद कड़क कॉलर। मनुष्य में स्वाभिमान का गुण था। एक कड़क कॉलर से इतनी जानकारी। अब सीधी गर्दन पर ही तो कड़क कॉलर लगा होगा। बुढ़ऊ वैज्ञानिक ने जानकारी दी। क्या कहा आपने बुढ़ऊ? सरजी आफ इन धृष्ट विचारों का ही प्रतिफल है ये खुदाई, ढूंढना पड़ रहा है सद्गुणों को जीवाश्म में।
अब क्या मिला? गालों की दुबली-पतली हड्डी।
यानि?
मनुष्य मेहनती रहा होगा।
कैसे?
अब दुबले-पतले मरियल गाल तो किसी मेहनतकश भुखमरे के ही होंगे।
क्या सोचा आपने? कैसे पता चल जाता है इतना कुछ।
यही तो उत्खनन है प्यारे। मरने वाला भी अपने बारे में जितना नहीं जानता, उतना जीवाश्म निकालने के बाद विशेषज्ञ बता देते हैं। ऐसे ही नहीं धूल-गर्दा खाते हुए पागलों की भांति जंगलों में लगे पड़े हैं। कुछ तो होगा ही... और ये आप क्या बार-बार शक कर रहे हैं। दिखता है आफ विश्वास की सुई हमेशा एंड पर ही लपलपाती रहती है। यहां जानकारी पर जानकारी दिए जा रहे हैं। आफ नखरे ही नहीं संभलते, शक ही खत्म नहीं होता आपका। भरोसा नहीं तो खुद ही क्यों नहीं आंख खोल कर देख लेते। खैर आप गुस्सा मत होइए। कहानी फिर से शुरू करते हैं।
आगे सुनें।
अब वो धूप में कब्र में पडा खुद जीवाश्म बना जा रहा वैज्ञानिक क्या बता रहा है? और देखिए बाकियों की धूर्तता। वो चिल्ला-चिल्लाकर उन तक आवाजें पहुंचा रहा है और वे कब्र के ऊपर खड़े अनसुना करने का ढोंग कर रहे हैं।
बेचारे वो चिल्ला रहे हैं और ये क्यों नहीं सुन रहे हैं।
सरजी आप भी ज्यादा हमदर्दी मत दिखाओ कब नीचे वाला वैज्ञानिक आपको भी कब्र में खींच लेगा। फिर कल को आप भी जीवाश्म बनकर बाहर निकलोगे।
अब वैज्ञानिक क्या कह रहा है ये तो बताइए।
क्या?
एक हाथ का कंकाल हाथ उसका कोट खींच रहा है। हां, भई हां, आप ऐसा समझ लें। कंकाल में कोट फंस गया है। कैसे फंस गया? अरे भई, वैज्ञानिक ने उसे देखते ही चिल्लाना इसलिए शुरू किया कि मरने वाला कई बेटियों का सदाचारी बाप था, जिसने जरूर आत्महत्या की होगी।
कैसे पता?
फिर कैसे, भाईसाहब वैज्ञानिक खत यानि चेहरा देखते ही बता देते हैं। कैसी दीनता टपक रही है। लाचारी का कैसा तेज है? पूरे कंकाल पर, दोनों विशिष्ट गुणों का ऐसा अद्भुत सम्मिश्रण तो लाचार बाप की पैदायशी पहचान होती है, लेकिन ये तो कंकाल...। चेहरा कहां है, कि उतना कुछ दिख रहा है। भाई फिर वही शक की सुई... एंड पर लपलपाने लगी। भले ही चेहरा नहीं हो, कंकाल हो...। इन्होंने तो लाखों जीवाश्म उर्फ कंकाल निकाले हैं। विवरण दिया है। फिर यह तो ‘पहुंचेला’ वैज्ञानिक है। इतनी देर आप उसकी उत्कृष्ट कोटि के विवरण के प्रसारण को रिसीव भी तो कर रहे हैं। सद्गुणों का लाइव प्रस्तुतिकरण देख रहे हैं। फिर भी कुछ देर के लिए ये शक वाला निजी सद्गुण तक पैर नहीं रख सकते आप। इसी के कारण तो यह खुदाई जरूरी हुई है। सरकार तक को ढुंढवाना पड़ रहा है सदगुणों का जीवाश्व।
अरे! अब देखो ये क्या मिला है? इतने में दूसरे ट्रेंच से एक और वैज्ञानिक की धीर-गंभीर कर्कश वाणी सुनाई दी।
क्या है! क्या है! कंकालों को परे झटकते, मिट्टी के टीले से बने वैज्ञानिक उस ट्रेंच की ओर लुढके।
अरे ये तो रद्दी का ढेर है। तू इसके लिए चीख रहा था, मुहाने पर पहुंच कई वैज्ञानिकों ने एक साथ निष्कर्ष प्रदान कर दिया।
रद्दी का ढेर नहीं, बॉस किसी कमीशन की रिपोर्ट है। बीच वाला वैज्ञानिक गर्दा झाडते हुए बोला।,
इसके ऊपर वाली फाइल पर लिखा है...? लिखा है...?
बोल न क्या लिखा है? ऊपर वाले अकबकाए से जा रहे थे।
लिखा है सद्गुणों के जीवाश्मों के उत्खनन से प्राप्त निष्कर्ष रिपोर्ट।
यानि हमसे पहले ही सद्गुणों को जीवाश्मों का उत्खनन भी हो गया। रिपोर्ट भी सबमिट कर दी गई और हम यहां धूल-मिट्टी हुए जा रहे हैं।
लेकिन क्यों?
सद्गुणों की खोज के सारे प्रयास हमेशा ही बहुत गहरे दफनाए जाते हैं, ताकि वे जीवाश्म बन जाएं।
कम से कम जीवित पीढ़ी को तो परेशान न कर पाएं। कुछ आकाशवाणीनुमा स्वर सा उभरा।
कौन बोला, कौन बोला? वैज्ञानिक समवेत स्वर में चिंघाडे।
हें, हें, हें...
अस्तु।
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संपर्क:
अनुज खरे
सी- 175 मॉडल टाउन
जयपुर
मो. 9829288739.
wah anuj ji phir se maza aa gaya.
जवाब देंहटाएंshivesh