शिवा अग्रवाल का आलेख : गंगा को भी अब मोक्ष चाहिए

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गंगा को भी अब मोक्ष चाहिए -शिवा अग्रवाल गंगा जो समस्त चराचर के प्राणियों को जीवन व मोक्ष प्रदान करती है आज मानव द्वारा उसकी कैसी ...

गंगा को भी अब मोक्ष चाहिए

-शिवा अग्रवाल

गंगा जो समस्त चराचर के प्राणियों को जीवन व मोक्ष प्रदान करती है आज मानव द्वारा उसकी कैसी दुर्गति की जा रही है कि स्वयं गंगा आज अपने मोक्ष के लिए छटपटाती दिखायी दे रही है। कारण मात्र एक ही है गंगा में गिरने वाले गंदे नाले। गंगा में विभिन्न अन्य कारणों से बढ़ता प्रदूषण। इन पर लाख कोशिशों के बावजूद भी रोक लगा पाना संभव नहीं दिख रहा है।

आधुनिकीकरण की अंधी दौड़ तथा स्वार्थ सिद्धि के चलते मानव ने प्रकृति का हमेशा से दोहन किया परन्तु इसी दोहन की पराकाष्ठा सृष्टि के विनाश का कारण बनती है। आज मनुष्य अपने क्रियाकलापों से अपने जमींदोज होने का साजो समान तैयार कर रहा है। प्रदूषण की समस्या विकराल होकर जनमानस के सामने है। परन्तु फिर भी हम मूकदर्शक बने बैठे हैं। गंगा की अस्मिता के साथ खिलवाड़ भी इसका एक हिस्सा है। कहते हैं गंगा के दर्श, पर्श और जल के पान से ही मनुष्य पवित्र हो जाता है किन्तु गंगा का जल आज मनुष्य द्वारा अपवित्र कर दिया गया है। जो केवल दर्श मात्र तक ही सिमटकर रह गया है। स्नान और पीने के पानी योग्य गंगा का जल आज मानव ने नहीं छोड़ा। गौमुख से पूर्व मीलों लम्बे हिमालय का सीना चीर कल-कल निनाद करती गंगा की स्वच्छ धारा आज अपने उद्गम स्थान के अतिरिक्त अन्यत्र कहीं दिखाई नहीं पड़ती। यूं तो गौमुख से लेकर ऋषिकेश तक पहाड़ों के सैकड़ों मील लंबे संकरे रास्ते से गुजरती हुई गंगा नदी न जाने कितने नदी नालों को अपने अंदर समाहित किये हुए कुंभ नगरी में अपने रूप में विस्तार करती है। वैसे तो ऋषिकेश से ही गंगा की दुर्दशा की कहानी प्रारम्भ हो जाती है। जहां न जाने कितने गंदे नाले इसमें प्रवाहित किये जाते हैं किन्तु हरिद्वार तक आते-आते मात्र कुछ ही किलोमीटर के सफर में गंगा का जल और भी अधिक विकृत हो जाता है। जहां न जाने कितने गंदे नाले और अन्य तरह के पदार्थ गंगा में प्रवाहित होते हैं। गंगा के प्रति आस्था रखने वाले प्रत्येक जन का मन गंगा की इस दुर्दशा को देख द्रवित हुए बिना नहीं रहता और अन्तः करण से एक ही चीत्कार निकलती है कि मनुष्य का कल्याण करने वाली हे गंगा आज मानव द्वारा तेरे साथ क्या किया जा रहा है।

गंगा गंदे नालों का जल डाले जाने से जहां मैली होती जा रही है वहीं हरिद्वार में सबसे अधिक गंगा को प्रदूषित करने का कार्य मृत व्यक्तियों के शवों की राख भी है जो प्रतिदिन स्थानीय स्तर व बाहर से आकर भी गंगा में प्रवाहित की जाती है। यूं तो पूर्व प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी ने गंगा मुक्ति के लिए अभियान चलाकर एक नई दिशा दी थी। परन्तु अरबों रूपये गंगा मुक्ति के नाम पर बहाये जा रहे हैं और परिणाम शून्य है। कहा जात है कि कानपुर से निकलते ही गंगा गंदे नाले का रूप ले लेती है। क्या हरिद्वार में बह रही गंगा की और किसी ने ध्यान दिया।

यूं तो शासन-प्रशासन द्वारा गंगा में गंदे नाले न डाले जाने का फरमान जारी हुआ परन्तु यह केवल कागजों तक सिमटकर रह गया। विचारणीय यह है कि उस पर अमल कितना हो रहा है यह देखने वाला कोई नहीं। यदि तीर्थनगरी में गिरने वाले नालों की बात करें तो दर्जनों ऐसे नाले हैं जिस पर शासन-प्रशासन का आज तक कोई ध्यान नहीं गया और न ही उसे रोकने की कोशिश की गई। साथ ही सबसे अधिक गंगाजल का प्रदूषण गंगातट पर बसे होटलों,

भवनों तथा संन्यासियों के आश्रमों से हो रहा है। गंदे नालों के पानी को डालने से मात्र गंगा का जल ही अपवित्र नहीं होता इसके साथ न जाने कितनी वनस्पतियां व जीव प्रभावित होते हैं इस पर कोई विचार नहीं करता। शासन द्वारा गंदे नालों के ट्रीटमेंट के लिए प्लांट भी लगाये गये किन्तु या तो उनकी क्षमता कम है या वे ठीक प्रकार काम नहीं करते हैं। सोचिए! जब वर्तमान में जल की विकराल समस्या सम्पूर्ण विश्व के समक्ष मुंह बाये खड़ी है और कहा भी जा रहा है भविष्य में यदि युद्ध होगा तो वह पानी के लिए होगा। बावजूद इसके हम इस और कोई ध्यान न देकर इस समस्या का उपहास ही कर रहे हैं। गौमुख से गंगासागर तक हजारों मील का सफर तय कर इसके तट पर बसे करोड़ों लोगों को धन-धान्य से परिपूर्ण करने वाली मां भागीरथी का ऐसा हश्र क्या हम पर लानत नहीं है। एक तरफ हम गंगा को भारत का प्राण कहते हैं दूसरी औ र उसी मां गंगा को नष्ट करने पर तुले हैं। हरिद्वार वह जगह है जहां गंगा सर्वप्रथम मैदान में प्रवेश करती है। इस पर गंगा का यहां यह हाल वास्तव में हैरान करने वाला है। हाल ही में संतों ने एक बार फिर से गंगा को प्रदूषण मुक्त करने का संकल्प लिया। परन्तु देखना दिलचस्प होगा कि यह कितना कारगर साबित होता है। हरिद्वार में सप्तसरोवर, भूपतवाला, हरिपुर, खड़खड़ी, भीमगोडा और कनखल में सन्यास रोड़ और दक्ष रोड ऐसे आश्रम बहुल्य क्षेत्र हैं जहां प्रतिदिन निजी वाहनों में लाखों की संख्या में श्रद्धालुओं का आवागमन होता है। यात्रियों को आश्रमों में ठहराकर प्रायः सभी वाहनों के चालक अपने वाहन गंगा तटों पर धोते हैं जो भी प्रदूषण का कारक है। गंगा को यूं तो कई बरसाती नाले भी प्रदूषित करते हैं परन्तु वाहनों की धुलाई गंगा प्रदूषण का एक बड़ा कारण है। हास्यास्पद यह है कि सरकारी बसों के चालक भी अपनी बसें गंगा में धोते देखे जा सकते हैं।

यही नहीं गंगा के घाटों को साफ कर तमाम कूड़ा-करकट गंगा में बहा दिया जाता है। इस घाटों पर लंगरों की जूठन भी पड़ी रहती है। इसके साथ ही पुराने मंदिरों से निकले फूलों को भी गंगा में उंड़ेल दिया जाता है। कुशावर्त घाट यूं तो पौराणिक घाट माना जाता है परन्तु यहां से गोबर सीधे गंगा में बहा दिया जाता है। नगरीय प्रदूषण ने गंगा को भारी क्षति पहुंचाई है। इस क्षेत्र में जितने निर्माण होते हैं, उनका मलबा रात के समय गंगा में बहाया जाता है। कई गंदे नालों से प्रदूषित हो रही गंगा नगरीय प्रदूषण को झेलते-झेलते कुछ और मैली हो चली है। देखा जाए तो गंगा अपने भक्तों के आचरण से दुःखी है। किसी को उसकी परवाह नहीं है। उसके आंचल को लगातार मैला किया जा रहा है। अब तो गंगा चाहती है कि उसे खुद को मोक्ष मिल जाए। हरकीपैड़ी से जुड़े करीब एक किमी क्षेत्र के अंदर ही नजर दौड़ाई जाए तो गंगा की हालत का सहज अनुमान लगाया जा सकता है। भूपतवाला के सर्वानंद घाट से चंडी चौक तक के करीब एक किमी के दायरे के अंदर आरक्षित मेला भूमि पंतद्वीप, लालजीवाला, चमगादड़ टापू और रोड़ी बेलवाला में राष्ट्रीय राजमार्ग के दोनों और की मेला भूमि पर गंगा किनारे झुग्गी-झोपड़ियों की संख्या बढ़ रही है। सिंचाई विभाग की ही मानें तो उसने 300 झोपड़ियों को चिह्नित किया है। इनमें रहने वाले लोगों की संख्या हजारों में है और वे मोक्षदायिनी कही जाने वाली गंगा के किनारे ही रोजाना मलमूत्र त्यागते हैं। पथरी में बसाए गये वन गुर्जरों अपने परिवारों और सैकड़ों भैसों के साथ गंगा किनारे डेरा डाल दिया है। उनकी भैंसे गंगा में गोबर व मल-मूत्र कर प्रदूषण बढ़ा रही हैं। इस क्षेत्र में गंगा घाटों पर खनन चुगान पर अवैध खनन ने भी मुश्किलें बढ़ाई हैं। घोड़ों, खच्चरों और गधों के जरिए गंगा से खनन का कार्य होता है। सौ से ज्यादा ऐसे जानवर हैं। इसके साथ ही हरकी पैड़ी के आसपास के क्षेत्र में अवस्थित ढाबों की भंयकर गंदगी भी गंगा में बहाई जाती है। जिस पर कोई कुछ कार्यवाही नहीं करता। वहीं प्रदूषण के वैज्ञानिक प्रभावों पर चर्चा करें तो स्पष्ट होगा कि सीवर युक्त जल जीवों व वनस्पतियों के लिए जल में ऑक्सीजन की कमी ला देता है जिससे उनके श्वसन व विभिन्न जैविक क्रियाओं पर प्रतिकूल असर पड़ता है। पानी के विषैला होने से उसमें पाये जाने वाले शैवाल मर जाते हैं वहीं एक निश्चित स्तर से ऑक्सीजन कम हो जाए जो मछलियां व अन्य जलीय प्राणी मरने लगते हैं। कई तरह के जीवाणु विषाणु व अन्य रोग उत्पन्न करने वाले कीटाणु इस तरह के पानी में घर करने लगते हैं।

ऐसी मान्यता है कि गंगा का जल लंबे समय तक रखने से भी खराब नहीं होता है। इसका वैज्ञानिक आधार यह है कि गंगा के जल में फॉज नाम का एक जीवाणु पाया जाता है जो जल को खराब नहीं होने देता। परन्तु ताजा शोधों ने यह सिद्ध किया है कि अत्यधिक प्रदूषण से फॉज जीवाणु नष्ट होने लगे हैं जिससे गंगा जल को अधिक दिनों तक सुरक्षित नहीं रखा जा सकेगा। जरा इस बात की कल्पना करें यदि गंगा विलुप्त हो गई या इसका अस्तित्व नहीं रहा तो क्या होगा। ऐसी दशा में इसके तट पर बसे लोग जो गंगा के कारण ही अपनी आजीविका चला रहे हैं कहां जाएंगे। अभी भी वक्त है हमें इस बात पर विचार करना होगा कि आखिर गंगा को कैसे बचाया जाए।

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संपर्क:

शिवा अग्रवाल,

पत्रकार, होली मोहल्ला कनखल हरिद्वार

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रचनाकार: शिवा अग्रवाल का आलेख : गंगा को भी अब मोक्ष चाहिए
शिवा अग्रवाल का आलेख : गंगा को भी अब मोक्ष चाहिए
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