महावीर सरन जैन का आलेख : संसार के भाषा परिवार

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अनुमान किया जाता है कि संसार में लगभग सात हजार भाषाएँ बोली जाती हैं। एथनोलॉग के अनुसार संसार में 6912 भाषाएँ बोली जाती हैं। संसार में बोली ज...

अनुमान किया जाता है कि संसार में लगभग सात हजार भाषाएँ बोली जाती हैं। एथनोलॉग के अनुसार संसार में 6912 भाषाएँ बोली जाती हैं। संसार में बोली जाने वाली भाषाओं की निश्चित संख्या के बारे में प्रामाणिक रूप से कहना सम्भव नहीं है। इसका मूल कारण यह है कि किन्हीं दो भाषाओं के बीच निश्चित विभाजक रेखा नहीं खींची जा सकती। दो भाषिक रूप एक ही भाषा के भिन्न रूप हैं अथवा वे भिन्न भाषाएँ हैं - इस पर विद्वानों के बीच विवाद रहता है। ( Gordon, Raymond G., Jr. (Ed.): (2005) Ethnologue: Languages of the world (15th ed.) Dallas, TX: SIL/  http://www.ethnologue.com  /  http://en.wikipedia.org/wiki/Language_family )


इनमें ऐसी भाषाएँ भी हैं जिनके बोलने वालों की संख्या केवल सैकड़ों में है। भारत की 1991 की जनगणना के अनुसार भारत में  96 ऐसी भाषाएँ बोली जाती हैं जिनके बोलने वालों की संख्या भारतीय स्तर पर 10 हजार से भी कम है। एथनोलॉग के अनुसार संसार में 204 भाषाओं के  बोलने वालों की संख्या 10 से भी कम है तथा 548 भाषाओं के  बोलने वालों की संख्या 100 से  कम है। जो भाषाएँ दस लाख से अधिक लोगों द्वारा बोली जाती हैं उनकी संख्या 347 है।  इन 347 भाषाओं में  75 भाषाओं के  बोलने वालों  की संख्या एक करोड़ से अधिक है। संसार में दस भाषाएँ ही ऐसी हैं जिनके  बोलने वालों की संख्या की संख्या दस करोड़ से अधिक है - 1. चीनी 2. हिन्दी 3. अंग्रेजी 4. स्पेनिश 5. बंगला 6. पुर्तगाली 7. रूसी 8. अरबी 9. जापानी 10. जर्मनी। बहुत से विद्वानों का मत है कि किसी भाषा के अनुरक्षण के लिए उसके बोलने वालों की संख्या एक लाख से अधिक होनी चाहिए।

भाषा वैज्ञानिकों का अनुमान है कि इक्कीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध तक भाषाओं की संख्या में अप्रत्याशित रूप से कमी आएगी।(Harrison, K. David. (2007) When Languages Die: The Extinction of the World’s Languages and the Erosion of Human Knowledge. New York and London: Oxford University Press.) अनुमान है कि वे भाषाएँ ही टिक पायेंगी जिनका व्यवहार अपेक्षाकृत व्यापक क्षेत्र में होगा तथा जो भाषिक प्रौद्योगिकी की दृष्टि से इतनी  विकसित हो जायेंगी जिससे इन्टरनेट पर काम करने वाले प्रयोक्ताओं के लिए उन भाषाओं में उनके प्रयोजन की सामग्री सुलभ होगी।


संसार की भाषाओं को विद्वानों ने उनके ऐतिहासिक सम्बन्धों के आधार पर भाषा परिवारों / भाषा कुलों में बाँटा है। भाषा परिवार ऐसी समस्त भाषाओं के समूह को कहते हैं जो किसी एक आदि भाषा से निकला हो। दूसरे शब्दों में आदि भाषा से प्रसूत भाषाओं के समूह को भाषा-परिवार कहते हैं। इस प्रकार की विचारधारा का पल्लवन 17वीं शताब्दी में यूरोप के उन विद्वानों के उद्घोष के कारण हुआ कि संस्कृत, लैटिन एवं ग्रीक में पर्याप्त भाषिक समानताएं हैं। ऐतिहासिक दृष्टि से एक भाषा परिवार की भाषाओं में समानताएँ होती हैं।(1. Voegelin, Carl F. & Voegelin, Florence M. (1977) Classification and index of the world’s languages. Amsterdam. 2. C. George Boeree.The Language Families of the World. Shippensburg University 3. Merritt Ruhlen. A Guide to the World’s Languages. Stanford University Press, Stanford 1991)


काल एवं देश के कारण आदि भाषा से प्रसूत भाषायें ऐसी दशाओं में विकसित हो सकती हैं जिससे उनमें भाषिक-संरचना की समानता एवं एकरूपता की स्थिति न रह जाए। इसी प्रकार, काल एवं देश के कारण भिन्न भाषा-परिवारों की भाषाओं में भाषिक-संरचना की समानता एवं एकरूपता का विकास भी हो सकता है। उदाहरणार्थ, संरचनात्मक दृष्टि से भारत की आधुनिक आर्य भाषाएँ भारोपीय परिवार की यूरोपीय शाखाओं की भाषाओं की अपेक्षा भारत के द्रविड़ परिवार की भारतीय भाषाओं के अधिक निकट हैं।
भौगोलिक आधार पर भाषा परिवारों को चार खण्डों में विभाजित किया जा सकता है :-


1.    प्रशांत महासागर एवं आस्‍ट्रेलिया महाद्वीप
2.    अमेरिका महाद्वीप
3.    अफ्रीका महाद्वीप
4.    यूरोप एवं एशिया महाद्वीप

    यूरोप एवं एशिया महाद्वीपों के भाषा-परिवारों की भाषाओं का अपेक्षाकृत क्रमबद्ध एवं वैज्ञानिक अध्‍ययन निष्पन्न हुआ है किन्‍तु अन्‍य तीन खण्‍डों के भाषा परिवारों की भाषाओं का अभी तक  समुचित एवं वैज्ञानिक अध्‍ययन सम्‍पन्‍न नहीं हुआ है। इसी कारण इन क्षेत्रों के भाषा परिवारों की संख्‍या एवं नामों के सम्‍बन्‍ध में मत भिन्‍नता अधिक मिलती  है।

1.    प्रशान्त महासागर एवं आस्‍ट्रेलिया महाद्वीप के भाषा-परिवार-
    इस खण्‍ड के भाषा परिवारों की भाषाओं का प्रसार हिन्‍द महासागर एवं प्रशान्त महासागर के द्वीपों एवं आस्‍ट्रेलिया महाद्वीप में है। इस खण्‍ड की भाषाओं को प्रायः 5 भाषा परिवारों में वर्गीकृत किया जाता है :
    1.   इंडोनेशियन परिवार - प्रमुख भाषाएँ : मलय, फारमोसन, जावनीज़, सुन्‍दानीज़, मदुरन, बालीनीज,                                                                                                                                                                                                                            फिलिप्‍पाइन, होवा
                 2.    मलेनेशियन परिवार - प्रमुख भाषाएँ :  फीज़ी, सोलोमानी
3.     पालिनेषियन परिवार - प्रमुख भाषाएँ : समोआन, मओरी, हवाइयन, ताहिशियन , टोंगी
4.    पापुअन परिवार - मुख्‍य रूप से पापुअन न्‍यूगिनी द्वीप समूह की भाषाएँ :  विद्वानों का  अनुमान  है कि पापुअन न्‍यूगिनी द्वीप समूह  में लगभग 820 भाषाएँ बोली जाती हैं। (1.Languages of Papua New Guinea: Publications of the Summer Institute of Linguistics 2. Andrew Pawley, Robert Attenborough, Robin Hide and Jack Golson, eds, Papuan pasts: cultural, linguistic and biological histories of Papuan-speaking peoples. )
5.आस्ट्रेलियन परिवार - आस्ट्रेलियन परिवार के अन्तर्गत 27 भाषा परिवार माने जाते हैं। इन 27 भाषा परिवारों में से एक भाषा परिवार ‘पाम न्यूगन' के अन्तर्गत विद्वानों ने 175 भाषाओं के नाम गिनाए हैं।

विद्वानों का  अनुमान  है कि आस्ट्रेलियन परिवार की 90 प्रतिशत आदिवासी भाषाएँ विलुप्त हो जायेंगी। (1. Dixon, R. M. W. (2002) Australian Languages: Their Nature and Development2. Cowden, Janet, compiler. (1996) Bibliography of the Summer Institute of Linguistics, Australian Aborigines and Islanders Branch: Up to December 1996. 3. Huttar, George L., Joyce Hudson, and Eirlys Richards( 1975) Bibliography of the Summer Institute of Linguistics, Australian Aborigines Branch.4.Jagst, Else, compiler( 1981) Bibliography of the Summer Institute of Linguistics, Australian Aborigines Branch (up to August 1981)5.Jagst, Else( 1985) Bibliography of the Summer Institute of Linguistics, Australian Aborigines Branch (up to December 1985)6. Poole, Alison, compiler( 1988) Bibliography of the Summer Institute of Linguistics, Australian Aborigines and Islanders Branch (up to December 1988).7.Poole, Alison, compiler. 1992. Bibliography of the Summer Institute of Linguistics, Australian Aborigines and Islanders Branch, up to December 1991.   8.  http://en.wikipedia.org/wiki/Australian_Aborginal_languages )

2.अमेरिका महाद्वीप के भाषा-परिवार-
अमेरिका महाद्वीप के आदिम निवासियों के भाषा परिवारों की संख्या निश्चित नहीं है। कुछ विद्वानों ने केन्द्रीय अमेरिका एवं मेक्सिको के क्षेत्र में 28 भाषा परिवार, शेष दक्षिणी अमेरिका में लगभग 80 भाषा परिवार तथा उत्तरी अमेरिका में लगभग 28 से 50 भाषा परिवारों के नाम गिनाए हैं।)( http://en.wikipedia.org/wiki/Indigenous_languages_of_the_Americas   )
हम इस क्षेत्र के भाषा परिवारों को तीन उपखंडों में विभाजित कर सकते हैं :-

1    उत्‍तरी अमेरिका - 1. एस्‍किमो, 2. अल्‍गोनक़िअन 3. अथबस्‍कन, 4. इरोक़ोइअन 4. मुस्‍कोजिअन 5. सिउआन आदि 35 भाषा परिवार हैं।
2.    केंद्रीय अमेरिका एवं मेक्‍सिको- 1. पिमान 2. नहुअत्‍लन 3. शोशोनियन 4. अज़्‍टेक 4. मयान आदि  भाषा परिवार प्रसिद्ध हैं।
3.    शेष दिक्ष्‍ाण अमेरिका- 1. अरबाक एवं कारिब़ 2. तुपी-गौरानी, 3. अरोकैनिअन एवं केचुआन, 4. तेराडेलफ़्‍यूगो आदि  भाषा परिवार प्रसिद्ध हैं।


अमेरिका महाद्वीप के आदिम निवासियों की भाषा एवं संस्‍कृति की अध्‍ययन परम्‍परा का सूत्रपात करने वालों में बोआस तथा सपीर के नाम सर्वाधिक महत्‍वपूर्ण हैं।( Boas, Franz. (1911). Handbook of American Indian languages (Vol. 1). Bureau of American Ethnology, Bulletin 40. / Boas, Franz. (1922). Handbook of American Indian languages (Vol. 2 )/Boas, Franz. (1933). Handbook of American Indian languages (Vol. 3)./Sapir, Edward. (1929). Central and North American languages. In The Encyclopædia Britannica: A new survey of universal knowledge (14 ed.) (Vol. 5, pp. 138-141). London.
परवर्ती विद्वानों में कैम्पबेल, गॉर्डन, काफमेन आदि भाषा वैज्ञानिकों के नाम प्रसिद्ध हैं। (Campbell, Lyle. (1997). American Indian languages: The historical linguistics of Native America. New York: Oxford University Press. / Campbell, Lyle; & Mithun, Marianne (Eds.). (1979). The languages of native America: Historical and comparative assessment. Austin: University of Texas Press./Gordon, Raymond G., Jr. (Ed.). (2005). Ethnologue: Languages of the world (15th ed.). Dallas, TX: SIL International./ Kaufman, Terrence. (1990). Language history in South America: What we know and how to know more. In D. L. Payne (Ed.), Amazonian linguistics: Studies in lowland South American languages/ Kaufman, Terrence. (1994). The native languages of South America. In C. Mosley & R. E. Asher (Eds.), Atlas of the world’s languages. )        
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3.    अफ्रीका महाद्वीप के भाषा परिवार -
एशिया महाद्वीप के सामी परिवार की भाषाएँ इस महाद्वीप के उत्तरी भाग में भी बोली जाती हैं। महाद्वीप के इसी भाग में हैमेटिक परिवार की भाषाएँ भी बोली जाती हैं। कुछ भाषा वैज्ञानिक भाषा परिवारों के अन्तर्गत इस भाषा परिवार को ‘सामी-हामी' (सेमेटिक-हेमेटिक) भाषा परिवार के नाम से पुकारते हैं।
सामी परिवार की अरबी तथा हेमेटिक परिवार की भाषाओं में मिस्र की इजिप्शियन, सहारा क्षेत्र की कबीले, षिल्ह, ज़ेनागा और तुआरेग तथा उत्तर-पूर्वी क्षेत्र की सोमाली, चाड, हौसा अधिक प्रसिद्ध हैं। सामी एवं हेमेटिक के अतिरिक्त अफ्रीका के शेष भू-भाग की भाषाओं को तीन भाषा परिवार-समूहों में वर्गीकृत किया जाता है :
1.    सूडान भाषा परिवार-समूह परिवार
2.    बाण्‍टु भाषा परिवार- समूह परिवार
3.    बुशमैन भाषा परिवार- समूह परिवार
(1. Alice Werner .The Language-Families of Africa. Adamant MediaCorporation 2. Bernd Heine and Derek Nurse.(2000) African Language., Cambridge University Press 3. Greenberg, Joseph H. (1966). The Languages of Africa (2nd ed.). Bloomington: Indiana University.)

 

सूडान भाषा परिवार-समूह -
इस भाषा परिवार-समूह के अन्तर्गत बहुत से भाषा-परिवार आते हैं। इन परिवारों की भाषाओं का विश्वस्त एवं प्रामाणिक वर्गीकरण एवं अध्ययन अभी तक सम्पन्न नहीं हुआ है। इन्हें प्रायः चार भागों में विभक्त किया जाता है :- 1 .सेनेगल 2 .एवे 3. मध्यवर्ती 4. नीलोत्तरी
प्रमुख भाषाएँ - सोन्याई, डिन्का, नूएर, शिल्लूक, अकोली, मसाई, नूबा, वर्गिमी, मोरू, कानुरी, तेम्ने, बुलोम , वुलुफ , फुलानी , क्पेल्ले , लोमा , मेण्डे , मलिंके, बम्बारा, फान्ती, त्वी, बाउले, एवे, फान, योरुबा, इबो, नूपे, मोस्सी, ज़ान्दे, संगो।

बाण्टु भाषा परिवार-समूह -
इस समूह की भाषाएँ दक्षिण अफ्रीका एवं पूर्वी अफ्रीका के एक भाग में बोली जाती हैं। इस समूह  की भाषाओं के दक्षिण-पश्चिम में बुशमैन तथा उत्तर में सूडान परिवार-समूह की भाषाएँ बोली जाती हैं। इस परिवार-समूह के अन्तर्गत लगभग 150 भाषायें आती हैं। इनके वर्गीकरण के सम्बन्ध में भी विद्वानों में मतैक्य नहीं है।
प्रमुख भाषाएँ : स्वाहिली, कांगो, लूबा, न्गाला, शोना, न्यान्जा, गाण्डा, किकूयु, कम्बा, चागा, न्याम्वेसी, रुण्डी, र्वाण्डा, बेम्बा, उम्बून्दु, किम्बून्दु , हेरेरो, जुलू, सोथो।

बुशमैन भाषा परिवार-समूह -
दक्षिण अफ्रीका के आदि निवासियों को बुशमैन प्रजाति के नाम से पुकारा जाता हैं। डॉ0 ब्लीक एवं मिस ल्वायड ने बुशमैन भाषा परिवार-समूह की भाषाओं का अध्ययन किया है। बुशमैन भाषा परिवार-समूह  की भाषा- परिवारों  के तीन प्रमुख समूह हैं :-
1.    नामा         2.    खोरा        3.    होटेण्टाट
बुशमैन भाषा परिवार-समूह की भाषाओं का लिखित साहित्य नहीं है। इन भाषाओं के बोलने वाले अलग-अलग वर्गों में आरेंज नदी से नगामी झील तक निवास करते हैं।

4.    यूरोप एवं एशिया महाद्वीपों के भाषा-परिवार-   
प्रशान्त महासागर के इंडोनेशियन भाषा-परिवार के अतिरिक्त यूरोप एवं एशिया महाद्वीपों में बोली जाने वाली भाषाओं को निम्नलिखित भाषा परिवारों में वर्गीकृत किया जाता है :-
1.    भारत-यूरोपीय परिवार / भारोपीय परिवार
2.    द्रविड़ परिवार
3.    सिनो-तिब्‍बत परिवार ( चीनी - तिब्‍बत परिवार )
4.    आग्‍नेय/आस्‍ट्रिक/आस्‍ट्रो-एशियाटिक परिवार
5.    सामी/सेमेटिक परिवार
6.    यूराल-अल्‍ताई परिवार
7.    काकेशस परिवार

1. भारोपीय परिवार :-
जनसंख्या, क्षेत्र-विस्तार, साहित्य, सभ्यता, संस्कृति, वैज्ञानिक प्रगति, राजनीतिक एवं भाषा वैज्ञानिक महत्व- इन सभी दृष्टियों से भारत-यूरोपीय परिवार का महत्व निर्विवाद है।
भारत-यूरोपीय परिवार को विभिन्न नामों से अभिहित किया गया है। आरम्भ में भाषा विज्ञान के क्षेत्र में जर्मन विद्वानों ने उल्लेखनीय कार्य किया और उन्होंने इस परिवार का नाम इंडो-जर्मनिक रखा। यूरोप के  इटली, फ्रांस, स्पेन, पुर्तगाल, रोमानिया, रूस , पोलैण्ड आदि अन्य देशों में भी इसी परिवार की भाषाएं बोली जाती हैं, पर वे न तो भारतीय शाखा के अन्तर्गत आती हैं और न जर्मनिक शाखा के।यूरोप के अन्य देशों के विद्वानों को यह नाम इसी कारण स्वीकृत नहीं हुआ। इसका एक और कारण था। प्रथम महायुद्ध के बाद जर्मनी के प्रति यूरोप के देशों की जो द्वेश-भावना थी, उसने भी इस नाम को ग्रहण करने में बाधा पहुँचायी। इस भाषा-परिवार के साथ जर्मनी का नाम संपृक्त करना यूरोप के अन्य देशों के विद्वानों को स्वीकार्य नहीं हुआ।  जर्मन विद्वान आज भी इस परिवार को इंडो-जर्मनिक ही कहते हैं।

कुछ विद्वानों ने इस परिवार को आर्य परिवार कहा तथा कुछ विद्वानों ने इस परिवार के लिए भारत-हित्ती (इंडो-हित्ताइत) नाम सुझाया। सन् 1893 ई0 में एशिया माइनर के बोगाजकोई नामक स्थान की पुरातात्विक खुदाई के प्रसंग में कुछ कीलाक्षर लेख मिले, जिन्हें 1917 में चेक विद्वान होज्नी ने पढ़कर प्रतिपादित किया कि हित्ती भारत-यूरोपीय परिवार की ही भाषा है। हित्ती के सम्बन्ध में एक और मान्यता भी सामने आयी कि वह आदि भारत-यूरोपीय भाषा से संस्कृत, ग्रीक, लातिन की तरह उत्पन्न नहीं हुई  बल्कि उसके समानान्तर प्रयुक्त होती थी। इस तरह वह आदि भारत-यूरोपीय भाषा की पुत्री न होकर बहन  हुई। अतः  इस परिवार का नाम भारत-हित्ती रखने का प्रस्ताव हुआ। दोनों नाम चल नहीं पाए। विद्वानों को ये नाम स्वीकार न हो सके।

भारत-यूरोपीय (इंडो-यूरोपीयन) नाम का प्रयोग पहले-पहले फ्रांसीसियों ने किया। भारत-यूरोपीय नाम इस परिवार की भाषाओं के भौगोलिक विस्तार को अधिक स्पष्टता से व्यक्त करता है । यद्यपि यह भी सर्वथा निर्दोष नहीं है। इस वर्ग की भाषाएँ न तो समस्त भारत में बोली जाती हैं और न समस्त यूरोप में। भारत एवं यूरोप में अन्य भाषा परिवारों की भाषाएँ बोली जाती हैं।  यह नाम अन्य नामों की अपेक्षा अधिक मान्य एवं प्रचलित हो गया है तथा भारत से लेकर यूरोप तक इस परिवार की भाषाएँ प्रमुख रूप से बोली जाती हैं, इन्हीं कारणों से  इस नाम को स्वीकार किया जा सकता है।

भाषा परिवार का महत्व :-

1.    विश्व की अधिकांश महत्‍वपूर्ण भाषाएँ इसी परिवार की हैं। ये भाषाएँ विश्व के विभिन्‍न देशों की राजभाषा/सह - राजभाषा हैं तथा अकादमिक, तकनीकी एवं प्रशासनिक दृष्टि से महत्‍वपूर्ण हैं। उदाहरणार्थ : अंग्रेजी, हिन्‍दी-उर्दू, स्‍पेनी, फ्रेन्‍च, जर्मन, रूसी, बंगला।
2.    विश्व की आधी से अधिक आबादी भारोपीय परिवार में से किसी एक भाषा का व्‍यवहार करती है। यह व्‍यवहार मातृभाषा/प्रयोजन-मूलक भाषा के रूप में होता है।
3. हम पूर्व में यह संकेत कर चुके हैं कि    विश्व में 10 करोड़ (100 मिलियन) से अधिक व्‍यक्‍तियों द्वारा बोली जाने वाली मातृभाषाओं की संख्‍या 10 है। इन 10 भाषाओं में से चीनी, अरबी एवं जापानी के अतिरिक्‍त शेष 7 भाषाएँ भारोपीय परिवार की हैं :- 1. हिन्‍दी 2. अंग्रेजी 3. स्‍पेनी 4. बंगला 5. पुर्तगाली 6. रूसी 7. जर्मन
4.    धर्म, दर्शन, संस्‍कृति एवं विज्ञान सम्‍बन्‍धी चिन्‍तन जिन शास्त्रीय भाषाओं में मिलता है उनमें से अधिकांश भाषाएँ इसी परिवार की हैं।
    यथा : संस्‍कृत, पालि, प्राकृत, लैटिन, ग्रीक, अवेस्‍ता (परशियन)
5-    भारोपीय परिवार की भाषाएँ अमेरिका से लेकर भारत तक बहुत बड़े भूभाग में बोली जाती हैं।

 

आदि / आद्य भारत-यूरोपीय भाषा की विशेषताएं              
(1)�प्राचीन भाषाओं के तुलनात्‍मक अध्‍ययन से  पता चलता है कि आदि भारत-यूरोपीय भाषा संश्लेशात्‍मक थी।
(2)�इस भाषा में विभक्‍ति-प्रत्‍ययों की बहुलता थी। वाक्‍य में शब्दों का नही अपितु पदों का प्रयोग होता  था।
(3) मुख्‍यतः धातुओं से शब्द निष्पन्‍न होते थे।
(4) उपसर्गों का सम्‍भवतः अभाव था। उपसर्गों के बदले पूर्ण शब्‍दों का प्रयोग होता था जो बाद घिसते घिसते परिवर्तित हो गये और स्‍वतन्‍त्र रूप से प्रयुक्‍त होने की क्षमता खोकर उपसर्ग कहलाने लगे।
(5)�इस भाषा में संज्ञा पदों में तीन लिंग - पुंलिग, स्‍त्रीलिंग, नपुंसकलिंग तथा तीन वचन - एकवचन, द्विवचन, बहुवचन थे। 
(6)�तीन पुरूष थे- उत्‍तम, मध्‍यम, अन्‍य ।
(7) � आठ कारक थे। बाद में ग्रीक एवं लैटिन में कुछ कारकों की विभक्‍तियां छँट गयीं।
(8) क्रिया में फल का भोक्‍ता कौन है इस आधार पर आत्‍मनेपद और परस्‍मैपद होते थे। यदि फल का भोक्‍ता  स्‍वयं है तो  आत्‍मनेपद का प्रयोग होता था और यदि दूसरा है तो परस्‍मैपद का प्रयोग होता था।
(9) क्रिया के रूपों में वर्तमान काल  था। क्रिया की निष्पन्नता पूर्ण हुई अथवा नही - इसको लेकर सामान्‍य, असम्‍पन्‍न एवं सम्‍पन्‍न भेद थे।�
(10) समास इस भाषा की  विशेषता थी।
(11) भाषा अनुतानात्‍मक थी ।�अनुतान से अर्थ में अन्‍तर हो जाता था। भाषा संगीतात्‍मक थी, इसलिए उदात्‍त आदि स्‍वरों के प्रयोग से अर्थ बोध में सहायता ली जाती थी। वैदिक मन्‍त्र इसके उदाहरण है जिनके उच्‍चारण में उदात्‍त, अनुदात्‍त, स्‍वरित-का प्रयोग आवश्यक माना जाता है। प्राचीन ग्रीक में भी स्‍वरों का उपयोग होता था। बाद में चलकर अनुतान का स्‍थान बलाघात ने ले लिया।

 

भारत -यूरोपीय परिवार की शाखाएँ / उपपरिवार
1.केल्‍टिक - मध्‍य यूरोप के केल्‍टिक भाषी लगभग दो हजार वर्श पूर्व ब्रिटेन के भू-भाग में स्‍थानान्‍तरित हुए । .़ जर्मेनिक ऐंग्‍लो सेक्‍सन लोगों के आने के कारण ये केल्‍टिक भाषी वेल्‍स, आयरलैंड, स्‍काटलैंड चले गए।
2. जर्मेनिक - अंग्रेजी, डच, फ्‍लेमिश, जर्मन, डेनिश, स्‍वीडिश, नार्वेजियन
3  .लैटिन / रोमांस / इताली - फ्रांसीसी , इतालवी , रोमानियन , पुर्तगाली , स्‍पेनी
4. स्‍लाविक - रूसी, पोलिश, सोरबियन, स्‍लोवाक, बलगारियन।
4.    बाल्‍तिकः - लातवी
5.    हेलेनिक - ग्रीक
6.    अलबानी -  इलीरी
7.    अंतोलियन -
9.    प्रोचियन - आरमीनी।
10.  ईरानी - परशियन, अवेस्‍ता , फारसी, कुर्दिश, पश्तो, ब्‍लूची
11.    भारतीय आर्य भाषाएँ- इनका विवरण अगले अध्‍याय में प्रस्‍तुत किया जाएगा।
12.    तोखारी- इस भाषा के सन्‌ 1904 ई0 में मध्‍य एशिया के तुर्किस्‍तान के तुर्फान प्रदेश  में कुछ हस्‍तलिखित पुस्‍तकें एवं पत्र मिले, जिन्‍हें पढ़कर प्रोफेसर सीग की  यह मान्‍यता है कि  यह भाषा भारत-यूरोपीय परिवार के केंतुम्‌ वर्ग की  भाषा है।

13.    हित्ती -इस भाषा के सन्‌ 1893 ई0 में एशिया माइनर के बोगाज़कोई नामक स्‍थान की पुरातात्‍विक खुदाई के प्रसंग में कुछ कीलाक्षर लेख मिले, जिन्‍हें 1917 में चेक विद्वान होज्‍नी ने पढ़कर यह स्‍थापना की कि हित्ती भारत-यूरोपीय परिवार की ही भाषा है।
अस्कोली नामक भाषाविज्ञानी ने 1870 ई0 में इन भाषाओं को दो वर्गों में बाँटा। इन भाषाओं की ध्वनियों की तुलना के बाद वह इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि आदि भारत-यूरोपीय भाषा की कंठ्य ध्वनियाँ कुछ शाखाओं में कंठ्य ही रह गयीं और कुछ में संघर्शी (श स ज़) हो गयीं। इस प्रवृत्ति की प्रतिनिधि भाषा के रूप में उसने लातिन और अवेस्ता को लिया और सौ के वाचक शब्दों की सहायता से अपने निष्कर्ष को प्रमाणित किया। लातिन में सौ को केन्तुम् कहते हैं और अवेस्ता में सतम्। इसीलिए उसने केन्तुम् और सतम् वर्गों में समस्त भारत-यूरोपीय भाषाओं को विभाजित किया।
   

सतम्‌ वर्ग            केन्‍तुम्‌ वर्ग
    1. भारतीय-शतम्‌             1. लातिन-केन्‍तुम्‌
  2. ईरानी - सतम्‌                2. ग्रीक - हेकातोन
  3. बाल्‍तिक - ज़िम्‍तस             3. जर्मेनिक - हुन्‍द
  4. स्‍लाविक - स्‍तो                4. केल्‍टिक - केत्‌
                                   5. तोखारी - कन्‍ध

 

भारोपीय परिवार की भाषाओं की विशेषताएं
(1)  आरम्‍भ में इस परिवार की भाषाएं संश्लेषात्‍मक थीं किन्‍तु इनमें कई विश्लेषणात्‍मक हो गयी हैं। संस्‍कृत और हिन्‍दी के निम्‍नलिखित रूपों की तुलना से यह बात स्पष्ट हो जायेगीः

               संस्‍कृत     हिन्‍दी
               देवम्‌ देव को
               देवेन     देव से
               देवाय   देव के लिए
               देवात्‌    देव से
               देवस्‍य     देव का
               देवे     देव में

(2) शब्दों की रचना उपसर्ग , धातु और प्रत्‍यय के योग से होती है। आरम्‍भ में उपसर्ग स्‍वतंत्र सार्थक शब्द थे किन्‍तु आगे चलकर वे  स्‍वयं  स्‍वतंत्र रूप से प्रयुक्‍त होने में असमर्थ� हो गए।

�(3) वाक्‍य-रचना शब्दों से नहीं पदों से होती है अर्थात्‌ शब्दों में विभक्‍तियां लगाकर पदों की रूप सिदि्‌ध की जाती है और विभक्‍तियों के द्वारा ही पदों का पारस्‍परिक अन्‍वय सिद्ध होता है।  शब्द में विभक्‍ति लगे बिना वाक्‍य नहीं बनता।

(4) आदि / आद्य भारत-यूरोपीय भाषा में समास बनाने की जो प्रवृत्‍ति थी, वह भारत - यूरोपीय भाषाओं में भी रही।

�(5) अनुतान की चर्चा  हो चुकी है।

�(6) भारत-यूरोपीय परिवार की भाषाओं  में प्रत्‍ययों� का अधिक्‍य है।

( 1 .P. Baldi (1983). An Introduction to the Indo-European Languages  2.  S. K. Chatterji (2d ed. 1960) Indo-Aryan and Hindi 3. A. M. Ghatage (2d ed. 1960)  Historical Linguistics and Indo-Aryan Languages 4. C. P. Masica, The Indo-Aryan Languages (1989))

2. द्रविड़ परिवार. :-
उत्तरी श्रीलंका, लक्षद्वीप, पाकिस्तान एवं अफगानिस्तान के सीमान्त भूभाग (मुख्यतः बिलोचिस्तान) तथा भारत में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार, झारखण्ड, उड़ीसा के कुछ भागों में तथा मुख्य रूप से  नर्मदा एवं गोदावरी नदियों के दक्षिणी भाग सें लेकर कन्याकुमारी तक इस परिवार की भाषाएँ  बोली जाती हैं। 
द्रविड़ परिवार के भौगोलिक स्वरूप पर विचार -
टी0पी0 मीनाक्षीसुन्दरन् ने ‘तमिल भाषा का इतिहास' पुस्तक में द्रविड़ परिवार की भाषाओं के भौगोलिक क्षेत्र के सम्बन्ध में निम्न टिप्पणी की है :-
‘जहाँ तक द्रविड़ भाषी क्षेत्र का प्रश्न है, वह बाहुई क्षेत्र को छोड़कर, लगातार है - दक्षिण भारत और श्रीलंका का उत्तरी भाग। तमिल, मलयालम, कन्नड़ और तेलुगु - ये साहित्यिक भाषाएँ समुद्रतटवर्ती प्रदेशों और उनके आन्तरिक भागों में बोली जाती हैं। यह एक विचित्र संयोग है कि ऐसी द्रविड़ भाषाएँ, जिनका इतिहास नहीं मिलता भौगोलिक दृष्टि से ऊँचे क्षेत्रों में ही बोली जाती हैं जैसे ब्लूचिस्तान के पठार पर , उत्तर भारत और दकन के मध्यवर्ती इलाके में और दक्षिण में छोटे-छोटे पहाड़ी भागों में। तमिल भाषा का क्षेत्र वर्तमान मद्रास राज्य (तमिलनाडु) है। मलयालम केरल में बोली जाती है, तेलुगु आन्ध्र प्रदेश में और कन्नड़ मैसूर में। किन्तु इन सभी क्षेत्रों के समीपवर्ती प्रदेश द्विभाषी हैं। मद्रास के उत्तर में तेलुगु का क्षेत्र पड़ता है और पश्चिम में कन्नड़ और मलयालम का। तुलु मंगलौर के आसपास बोली जाती है। कोडगु कुर्ग के निवासियों की मातृभाषा है, जो अब मैसूर राज्य का अंग है। बड़गा, कोटा और टोडा नीलगिरि के क्षेत्रों में बोली जाती हैं।

तेलुगु-प्रदेश के एक और उड़ियाभाषी क्षेत्र पड़ता है और दूसरी ओर मराठी-भाषी क्षेत्र। तेलुगु के ही पड़ोस में गोंडी का क्षेत्र है। कुइ और कोण्डा उस पठार पर बोली जाती हैं, जो महानदी घाट के दोनों ओर पड़ता है। कोलामी और परजी मध्यप्रदेश और हैदराबाद में बोली जाती हैं। कन्नड़ प्रदेश मराठी, कोंकणी, तेलुगु और तमिलभाषी क्षेत्रों से घिरा हुआ है। गोंडी की सीमाओं पर तेलुगु,   कोलामी, मुण्डा और मराठी हैं। यह अनोखा तथ्य है कि साहित्यरहित द्रविड़ भाषाओं को बोलने वाले पहाड़ों पर मिलते हैं। छोटा नागपुर में बोली जाने वाली गदबा, कुरुख या ओरांव और राजमहल में बोली जाने वाली माल्तों के अड़ोस-पड़ोस में मुण्डा भाषाएँ व्याप्त हैं। ब्राहुई पश्चिमी पाकिस्तान के पहाड़ी इलाकों में व्यवहृत होती है। ( दे0 - तमिल भाषा का इतिहास, पृ0 16 - 17,  टी0पी0 मीनाक्षीसुन्दरन्, अनुवादक : डॉ0 रमेशचन्द्र महरोत्रा, मध्यप्रदेश ग्रन्थ अकादमी, भोपाल, प्रथम संस्करण , 1984)
डॉ0 मीनाक्षीसुन्दरन् ने द्रविड़ परिवार की निम्न बीस भाषाओं का उल्लेख किया है -

1. तेलुगु 2. तमिल 3. कन्नड़ 4. मलयालम 5. तुलु 6. कुरुख 7. कुइकुवि 8. गोंडी 9. बडगा 10 कोडगु 11. गदबा 12. इरुक 13. कोलामी 14. कुरवा 15. माल्तो 16. परजी 17. कोया 18. कोण्डा 19. नइक्कदी और नकी पोदी 20. कोटा और टोडा (दे0 वही, पृ0 15)

द्रविड़ परिवार की ज्ञात भाषाओं में प्रथम चार भाषाएँ प्रधान हैं। उनमें साहित्य है और अब तो उनकी भौगोलिक सीमाओं का राज्यवार निर्धारण भी हो गया है। शेष 16 भाषाएँ साहित्यरहित हैं और  ऐसी भाषाएँ बोलने वाले प्रधान रूप से पहाड़ों एवं जंगलों में निवास करते  हैं।
डॉ0 भक्त कृष्णमूर्ति ने द्रविड़ परिवार की भाषाओं का वर्गीकरण भौगोलिक एवं भाषावैज्ञानिक आधार पर किया है :-

(क)    दक्षिण की द्रविण भाषाएं :- तमिल, मलयालम, टोडा, कोटा, कन्‍नड़, कोडगु, इरुक, कोरगा और तुलु (अन्‍य तीन बोलियों की स्‍थिति स्पष्ट नहीं है - कुरुबा, कसबा और कडा)
(ख)    दक्षिण - केन्‍द्रीय द्रविड़ भाषाएँ - तेलुगु, गोंडी (कोया समेत), कोंड, कुई, कुवि, पेंगो, मण्‍डा और अवि (या इण्‍डि)
(ग)    केन्‍द्रीय द्रविड़ भाषाएँ - कोलामी, नाइकि, परजी और गदबा (ओलारि और कोणकोर-उपबोलियाँ हैं।)
(घ)    उत्‍तर की द्रविड़ भाषाएँ - कुरुख, माल्‍तो और ब्राहुई ।

    कोष्‍ठकों में दी गई बोलियों को छोड़ दें तो कुल 24 भाषाएँ होती हैं और कोष्ठकों की बोलियों को जोड़ लें तो संख्‍या 29 तक पहुँच जाती है। (दे0 XI All India Conference of Dravidian Linguists, P.25, Osmania University, Hyderabad, Souvenir, June 5-7, 1981)

    डा0 बी0 रामकृष्ण रेड्‌डी ने साहित्‍येतर द्रविड़ भाषाओं का सर्वेक्षण (1965-1980 तक) किया । तेलुगु के ही एक अन्‍य विद्वान डॉ0 पी0एस0 सुब्रह्मण्‍यम्‌ ने अपनी पुस्‍तक ‘द्राविड़ भाशलु' (1977 ई0 में प्रकाशित) में द्रविड़ भाषाओं का विकास क्रम प्रस्‍तुत किया जिसका सारांश डॉ0 कर्णराज शेशगिरिराव ने द्रविड़ भाषाओं का वर्गीकरण प्रस्‍तुत करते हुए दिया है। (दे0 - द्रविड़ भाषाओं का वर्गीकरण, डॉ0 कर्णराज शेषगिरिराव, सम्‍मेलन पत्रिका, पृ0 84-86, भाग 67, संख्‍या 1-2, पौष ज्‍येष्ठ, शक 1902-3, हिन्‍दी साहित्‍य सम्‍मेलन, प्रयाग )

    डॉ0 पी0एस0 सुब्रह्मण्‍यम्‌ का वर्गीकरण  आदि / आद्य  द्रविड़ भाषा की संकल्‍पना पर आधारित है और वे उस आदि / आद्य  द्रविड़ भाषा को भी तीन भागों में विभाजित करते हैं। यह विभाजन भौगोलिक आधार पर है - 1. दक्षिण वर्ग की भाषाएं 2. मध्‍य द्रविड़ वर्ग  3. उत्‍तर द्रविड़ वर्ग। उन्‍होंने प्रत्‍येक वर्ग के लिए आदि / आद्य  द्रविड़ भाषा को आधार माना है और तदनन्‍तर आदि / आद्य  द्रविड़ को तीन भागों  ( दक्षिण, मध्‍य और उत्‍तर) में  विभाजित किया है :-

 

आदि / आद्य  द्रविड़ भाषा
1. आदि / आद्य  दक्षिण द्रविड़    2. आदि / आद्य  मध्य द्रविड़ 3. आदि / आद्य  उत्तर द्रविड़

आदि / आद्य  दक्षिण द्रविड़ भाषाओं का  वर्गीकरण :

आदि / आद्य  दक्षिण द्रविड़

तमिल                             कन्‍नड़

तमिल             4. तुळु    /तुलु        5. मानक कन्‍नड़        6.अन्‍य

तमिल         तोडा

तमिल +       3 .कोडगु/कूरगी
मलयालम

1 .तमिल     2. मलयालम

॥. आदि / आद्य  मध्‍य द्रविड़ वर्ग की भाषाओं का  वर्गीकरण :-

     आदितेलुगु + कुवि / गौंड़            आदि कोलामी     +            पर्जी

7. तुलुगु    आदि गोंड + कवि    14. कोलामी  15. नायकी   16.  पारगी  17. गदबा

    8.    गोंडी         9.  कोंड/खोंड
                10. पेंगो  11. मंड  12. कुमि  13. कुइ

॥।. आदि / आद्य उत्‍तर द्रविड़ वर्ग की भाषाओं का  वर्गीकरण :-

                आदि / आद्य   उत्‍तर द्रविड़

     आदि / आद्य   कुरुख                         20.    ब्राहुई

 

18.    कुरुख / ओराँव     19.  माल्‍तो

    उक्‍त विभाजन विकास क्रम की दृष्टि से है। आधुनिक भाषाओं के संदर्भ में एककालिक दृष्टि से द्रविड़ परिवार की भाषाओं का वर्गीकरण लेखक ने अन्‍यत्र प्रस्‍तुत किया है।

 

3 .आग्नेय (आस्ट्रो-एशियाटिक) परिवार :-
इस परिवार की भाषाएँ भारत से वियतनाम तक के भूभाग में यत्र तत्र बोली जाती हैं। इसकी तीन शाखाएँ हैंः- 1.  वियत-मुआँग शाखा 2. मान-ख्मेर शाखा 3. मुंडा शाखा
( www.vietthu.net /www.khmerlanguage.com )
इस परिवार की भाषाओं को इस प्रकार वर्गीकृत किया जा सकता है :-
आग्नेय (आस्ट्रो-एशियाटिक)

वियत-मुआंग            मान-ख्‍मेर                मुंडा

1 .वियतनामी            1 .मोन              1. खासी
2 .    मुआंग            2 .ख्‍मेर              2. निकोबारी        
                3 .पालुंग                3. अन्‍य भाषाएँ - संताली    
                4 .सो

 

4 .सिनो -  तिब्‍बत परिवार :-
इस परिवार की भाषाएँ चीन, थाईलैण्‍ड, तिब्‍बत, म्‍यांमार एवं पूर्वोत्‍तर भारत के भूभाग में बोली जाती हैं। इस परिवार की भाषाओं की विशेषता यह है कि ये एकाक्षर तान भाषाएँ हैं। भारोपीय परिवार की भाषाओं में वाक्‍य के अंत में अनुतान स्‍तर मिलते हैं। अनुतान स्‍तर भेद से सामान्‍य वाक्‍य प्रश्नवाक्‍य में बदल जाता है। इस परिवार की भाषाओं में प्रत्‍येक शब्द एक अक्षर द्वारा ही निर्मित होते हैं तथा प्रत्‍येक अक्षर के अनेक तान होते हैं जिससे उसके अर्थ बदल जाते हैं। इस परिवार की भाषाओं की सामग्री के आधार पर आदि / आद्य .सिनो -तिब्‍बत भाषा की पुनर्‌रचना एवं व्‍युत्‍पत्‍ति कोश निर्माण का कार्य चल रहा है। ( http:// stedt.berkeley.edu ) (phuh eankfju ds fy, osc lkbV& zhongwen.com/chat.htm / zhongwen.com / frCcr&cehZ ds fy, osc lkbV& thor.prohosting.com/~linguist/burmese.htm/www.dharma-haven.org/tibetan/language.htm )
इस परिवार की भाषाओं को इस प्रकार वर्गीकृत किया जा सकता है :-
सिनो / चीनी -तिब्बत

सिनो
                तिब्‍बत-बर्मी                थाई          दक्षिणी                  

1. मंदारिन        तिब्‍बती-हिमालयी        बर्मी-आसामी           
2 .वू
3 .अमोय       तिब्‍बती       हिमालयी    बोदो  नाग  कुकि  वर्मी      मिरि/    1. थाई  1 .मिआओ
                                                               2. लाओ     2 याओ़
4. गन                                                                     3 चुआड़          3 .से
5. मिन                                        4 तुड.
6 .हक्‍का                                                                  5 .नुड.
                                                                    6. शान                                                                                                                                              7. जिआड.
8 .केंटोनी                                                                  7. कमसुइ
                                                                          8. जुहा ड.
                                                                          9. ली

 

5 .सामी/सेमेटिक परिवार :-
बाइबिल के आख्यान के अनुसार हजरत नौह के ज्येष्ठ पुत्र ‘‘सैम'' अरब, असीरिया एवं सीरिया के निवासियों एवं यहूदी-जाति के लोगों के आदि पुरूष हैं। इन्हीं के कारण इस क्षेत्र की भाषाओं को सामी/सेमेटिक भाषा परिवार के नाम से पुकारा जाता है। इस परिवार की पूर्वी शाखा की प्राचीन भाषाएँ - आसिरीय, आक्कदीन एवं बेबिलोनीय तथा पश्चिमी उपशाखा की प्राचीन भाषाएँ-कनानीय, फोएनीशीय एवं आरामीय हैं।

इस परिवार की भाषाओं के अन्तर्गत अरबी एवं हिब्रू भाषाएँ आती हैं। अरबी भाषा के प्राचीनतम उपलब्ध लेख 328 ई0 के हैं। बाइबिल का ओल्ड टेस्टामेण्ट हिब्रू भाषा में लिखा गया है। इस्लाम धर्म की ‘कुरान' अरबी भाषा में है। इस्लाम धर्म के प्रचार-प्रसार के कारण अरबी भाषा का विस्तार पूर्वी एशिया एवं अफ्रीका के भू-भाग तक है। फारसी, तुर्की एवं भारतीय भाषाओं विशेष रूप से  उर्दू आदि  पर अरबी भाषा का बहुत प्रभाव पड़ा है। यूरोप की भाषाओं ने भी अरबी से शब्दों का आदान किया है। वर्तमान हिबू तथा अरबी जीवित भाषाएँ हैं। उत्तर अफ्रीका, पश्चिम एशिया एवं खाड़ी के देशों - 1. मोरक्को 2. अल्ज़ीरिया 3. लीबिया 4. सूडान, 5. मिस्र, 6. सीरिया 7. जोर्डन 8. इराक 9. संयुक्त अरब अमीरात 10. यमन आदि में अरबी भाषा के जो भाषिक रूप बोले जाते हैं, उन्हें कुछ विद्वान ‘अरबी भाषा' के उपभाषिक रूप मानते हैं तथा कुछ इन्हें भिन्न-भिन्न भाषाओं के रूप में स्वीकार करते हैं। (De Lacy O Leary : Comparative grammar of the semitic languages / Karin C. Ryding : A Reference Grammar of Modern Standard Arabic, Cambridge UniversityPress)

6. यूराल-अल्ताई परिवार :- बहुत से भाषा वैज्ञानिक इस परिवार की भाषाओं को दो भिन्न भाषा-परिवारों में वर्गीकृत करते हैं :- 1. यूराल परिवार, 2. अल्ताई परिवार । इन दो परिवारों की भाषाओं में ध्वनि एवं शब्दावली की भिन्नताएँ अधिक हैं। इस अपेक्षा से भिन्न भाषा-परिवार मानने का मत तर्क संगत प्रतीत होता है। मगर व्याकरण एवं भाषिक संरचना की दृष्टि से इन दो परिवारों की भाषाओं में एकरूपता है। इस अपेक्षा से इनको एक भाषा परिवार के रूप में स्वीकार किया जा सकता है। यूराल पर्वत से यूरोप महाद्वीप के क्षेत्र में यूराल उप परिवार की भाषाएँ तथा मंगोलिया के आसपास स्थित अल्ताई पर्वत से जापान तक के क्षेत्र में अल्ताई उप परिवार की भाषाएँ बोली जाती हैं :-

यूराल उप परिवार की दो शाखायें हैं :- 1. फीनी-उग्री,  2. समोयेदी
अल्ताई उप परिवार की पांच शाखायें हैं :- 1.तातारी / तुर्की, 2. मंगोली 3. तुंगूजी 4. कोरियन 5. जापानी
इस परिवार को फिनो-तातारिक, सीदियन, तूरानी, फिनो-उग्रीय नामों से भी अभिहित किया जाता है।
प्रमुख भाषाएँ :- 1. फिनी या सुओमी या फिन्नीय  2. मग्यार  (हंगरी) 3. तुंगूजी 4. मंगोली 5. तुर्की 6. गिरगिज 7. उज़्बेगी 8. कज़ाकी 9. तुर्कमेनी 10. तातारी 11. मंगोली 12. मांचु 13. कोरियन 14- जापानी।
(Shirokogoroff, S. M. (1931). Ethnological and linguistical aspects of the Ural-Altaic hypothesis. Peiping, China: The Commercial Press.) / (en.wikipedia.org/wiki/Ural-Altaic_languages )

7 .काकेशस परिवार :-
इस परिवार की भाषाओं का क्षेत्र कृष्ण सागर से लेकर कैस्पियन सागर के बीच है। मूल क्षेत्र कोकोशस पर्वतमाला है।
प्रमुख भाषाएं : इंगुश ,  कबदि कबर्दियन, चेचेन, जार्जियन (www.armazi.demon.co.uk/georgian/grammar.html / members.tripod.com/ggdavid/georgia/language / ingush.narod.ru / ingush.berkeley.edu:7012/ingush.html )

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सम्‍पर्क :   
    प्रोफेसर महावीर सरन जैन

    (सेवानिवृत्त्‍ा निदेशक, केन्‍द्रीय हिन्‍दी संस्‍थान)
      123, हरिएन्‍क्‍लेव
       बुलन्‍दशहर-203001
       (05732-233089)
         mahavirsaranjain@gmail.com

COMMENTS

BLOGGER: 3
  1. बहुत उपयोगी जानकारी ! साधुवाद। मैने इसे विकिपिडिया पर 'भाषा परिवार' नामक लेख में 'बाहरी कड़ियाँ' के अन्तर्गत जोड़ दिया है।

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  2. बेहतर जानकारी।आभार।

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रचनाकार: महावीर सरन जैन का आलेख : संसार के भाषा परिवार
महावीर सरन जैन का आलेख : संसार के भाषा परिवार
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