फजलु मियां की पान की दुकान मोहल्ले की नाक थी। उसी के सामने एक बड़ा सा खुला चौक पसरा पड़ा था। जो भविष्य के सचिन, गावस्कर, कपिल देव त...
फजलु मियां की पान की दुकान मोहल्ले की नाक थी। उसी के सामने एक बड़ा सा खुला चौक पसरा पड़ा था। जो भविष्य के सचिन, गावस्कर, कपिल देव तैयार होने की नर्सरी का काम करता था। अब इस नर्सरी से चाहे सारा मोहल्ला परेशान क्यो न हो परन्तु मजाल क्या कोई उन्हे ड़ाटे-डप्टे या कुछ कहे, ये मोहल्ले के ही नहीं, देश के साथ भी गद्दारी समझी जाती। किस को पता है कल कोई निकल जाये सहवाग, गम्भीर, जो दूर दराज मोहल्ले का नाम रौशन करे, परन्तु ये तीसरी पीढ़ी चल रही है, नवाब पाटोदी से लेकर धोनी जी सम्हाल चुके है बाग डोर भारत की पर मजाल है आज तक ये साध पूरी हुई हो, पर एक आस है भविष्य के इन दुलारों से आज नवाब रजवाड़ों से क्रिकेट निकल कर गली मोहल्ले में तो आ गई है। सो भविष्य के इन जुगनुओं से उम्मीद है एक दिन मोहल्ले का नाम चमकायेगें। इस लिए वो कितना भी शोर मचाये, कैसा ही चौका-छक्का मारे, बीच में खुदा ना खोसता आप आ गये और बाल ने आपकी मुहँ पीठ या गाल तक की भी चुम्बन ले ली तो आपने केवल मुस्कराना है, किसी किस्म का कोई प्रतिरोध नहीं करना है। भले ही मोना लिसा जैसी मुस्कान न हो आप के हंसने की, इसके अलावा शाबाशी के लिए अगर आप ने ताली भी बजा दी तो ये हुई न सोने पे सुहागे वाली बात पुरी, ‘गुड़ शाँट .... बैल प्लेयड़ सर’। ये तो भला हो फटा-फट क्रिकेट का जो टेनिस के बाल से बच्चे खेलते है, वरना तो न किसी का सर हेाता न खिड़कियों पर कॉंच। फजलु मियां अपनी पान की दुकान पर बैठे पान की गिलोरियां बनाते, बीच-बीच में विशेषज्ञ की भाति विशेष टीका-टीपणी भी देते नहीं थकते थे। फिर कौन सचिन कि तरह शाँट मारता है, या सोलकर की तरह कैच लपकता है, ये सब टीका-टिप्पणी मुतु स्वामी तक पहुँचा ही देते।
मोहल्ले का थोड़ा परिचय क्या पूरा भारत दर्शन ही समझो, गली के दायें खन्ड़ेलवाल जी, उसके आगे खन्ना जी, नीम का पेड़ जिस घर के सामने है वो बाड़ कर जी का मकान, पान की दुकान के सामने भट्टाचार्य जी, चोक के दूसरे कोन पर जहां दीवार पर क्रिकेट का विकट बना है, बहीं मोट-मोटे अक्षरों में लिखा है, एम सी सी (मुतु स्वामी क्रिकेट क्लब ) गाहे बगाहे वो ही बच्चों को क्रिकेट के महीन राज बताते है। बही एक पंडित थे क्रिकेट के हमारे मोहल्ले में। खंडेलवाल जी की परचून की दुकान थी , उससे कोई फरलांग भर आगे जहां गली खत्म हो चौड़ा रोड़ लाल किले कि तरफ जाता है। बही रामचंद्र हलवाई की मशहूर दुकान थी, जलेबी, समोसे, कचोरी सब लाजवाब। तीस साल से रामचंद्र जी दुकान चलाते है, दुकान के आगे मजाल आप एक दोना, कागज तक पा जाओ, मुहँ में बीड़ी हाथ में झाडु सफाई का जुनून है उन्हें, यही वजह है, इस गली के अन्दर भी रामचंद्र की दुकान चल ही नही रही दौड रही है। मंगल के दिन तो सुबह से ही बुन्दी बनने लग जाती थी, उस दिन समोसे कचोरी वालो को तो आधे पेट ही रह जाना पड़ता था। उस दिन दुकान की रौनक देखने जैसी होती थी। चारों तरफ से ग्राहकों की मारा मारी , राम चन्द्र जी का काम केवल पैसे इक्कठा करके गल्ले में जगह बनाना होता था। सब बातों की एक बात हमारा मोहल्ला बहु-जातीयता, बहु-सामाजिकता का आदर्श नमूना था। अगर कभी सरकार के मन में खेल रत्न, भारत रत्न के साथ मोहल्ला रत्न की घोषणा की तो आप ये समझिये ये इनाम तो गया हमारी झोली में। काश गांधी जी जिन्दा होते तो उनका सीना चौड़ा हो जाता फ़ूल कर, देख लेते आप अगर वो ‘साबरमती’ छोड़ हमारे मोहल्ले में रहने के लिए नहीं आ जाते, हाय होनी को मन्जूर नहीं था ये सब, जब चने नहीं थे तब दांत थे, अब चने हुए तो दांत नहीं है। मोहल्ला क्या है गुणों की खान है, एक-एक के गुणों का जिक्र करूं तो पुरा एक मेघ दूत सा ग्रंथ बन जायेगा, फिर वो धूल चाटता पड़ा रहता पुस्तकालयों में, सो भलाई इसी में है, इसे कहानी तक ही सीमित रखे।
फजलु मियां का पूरा नाम फजलु रहमान कुरैशी था, इनकी बेगम के खानदान में कोई बेगम हजरत महल के हुजूर में पान की गिलोरियॉं लगाया करती थी। अब यहीं एक प्रशस्ति-पत्र है फजलु मियां के पास वो भी केवल जबानी। फजलु मियां का पान आपने नौशा नहीं फर्माया तो नाहक आए आप दिल्ली। अरे अगर गली कूचे की बजाये कहीं होती फजलु मियां की दुकान कनाट प्लेस में तो देखना अमरीका तक फजलु मियां के पान निर्यात नहीं होते तो हमारा नाम बदल देते। मियां मुहँ में पान की गिलौरी रखी नहीं की लगी मक्खन की तरह पिघलने, अपने आप सुपारी मुहँ घुलने लग जाती, दाँतों को पता ही नही चलता कि कब पान चबाया, जनाब दूसरों के पान की सुपारी दांतों से तोड़ते-तोड़ते कब सुपारी दाँत को भी अपना हम सफर बना लेगी ये ड़र हमेशा लगा रहता था, पान न खाना हो गया जनाब दांतों की कोई कसरत हो रही हो। सामने मुतु स्वामी के यहां कोई नया किराये दार आया है, फूल बेचने बाला, मोहल्ला इसी एक सौगात के बिना अधूरा था। सो वो साध भी पुरी हुई, वरना तो दरीबे कला से जा कर फूल लाना न हो एक सजा मिल गई, चप्पलें चटकाते एक तो इतनी दूर जाओ उपर से पुरा मोहल्ला ऐसे देखेगी की आप चिड़ियों घर के कोई प्राणी हो। कितने दिनो की ये साध पुरी हुई सब ने एक दूसरे को बधाईयाँ दी मुतु स्वामी की चप्पल बुद्धि के क़सीदे पढ़े गये। परन्तु फजलु मियां को वो आदमी फूटी आंख नहीं भाया, फजलु मियां की बात पर किसी ने गोर भी किया। बात आई गई हो गई दिन बीते महीने भर के अन्दर फूल वाले का परिवार भी आ गया। परिवार क्या भानमती का कुनबा समझो, आठ फूल से बच्चे, पूरी टीम में मात्र तीन कम मोना मुतु स्वामी ने कोई किराये दार न रख कर एक क्लब को निमन्त्रण दिया हो।
सारा दिन बच्चे गली मोहल्ले की घन्टियाँ बजाते फिरते, किसी के आंगन में खेलने चले जाते तो रौनक मेला सा लग जाता, खाना खाने बैठते तो एक छोटा मोटा लंगर ही खुल जाता। चावल परोसते जब कोई आगे चलता तो पीछे-पीछे दाल, अचार, पापड़, लिए दूसरी बहन चल रही होती थी। अचानक एक रात नौ बजे मोहल्ले की शान्ति को श्राप लग गया, जोर-जोर से कोई गालियां बकने लगा, दरो दीवारों पर जो शान्ति इतने दिनो से पलास्टर की तरह चिपकी थी। आज अचानक भूर-भूरा कर गिर गई, घटना इतनी अनहोनी थी, मोहल्ले के लोगो ने खिड़कियाँ खोल के देखा कि क्या हो रहा है। देखा तो फूल वाला दारू के नशे में अन्ट–शन्ट गालियां बक रहा था। फूल वाले की आमदनी बढ़ने लगी थी, आधा मैदान उसके फूलों की रेहड़ी की भेंट चढ़ गया था। फिर अगर बच्चों की बाल आठ रतनों में से किसी को छू गई तो वो तांडव शुरू होता कि बच्चों को खेल खत्म कर घर जाना ही पड़ता। फिर रही सही कसर फूल बाला रात को आकर करता, सबकी माँ बहन एक कर देता, ऐसी-ऐसी गलियों का उच्चारण किया जाता कि भोला नाथ की पर्यायवाची कोश भी फेल हो जाता, आप पूरा दिन सर खपाई करते रहो शब्द कोश में, मजाल वो शब्द आप को मिल जाये।
मोहल्ले की खुशी को ग्रहण लग गया, फजलु मियां ने तो पूत के पैर पहले ही देख लिये थे। परन्तु उसके अनुभव का मोहल्ले ने फायदा नहीं उठाया सो अब पछताने से क्या होता है, बात गई दो साल के लिए। दो साल का एग्रिमेन्ट किया था, मुतु स्वामी ने, फूल वाले के साथ। पहाड़ से ये दो साल क्या आज ही खत्म होने वाले है, सबको यही चिन्ता थी। क्रिकेट का ग्राउंड सुनसान पड़ा रहने लगा, बच्चे डरे सहमें किताबों में सर घुसाये उदास बैठे होते थे। दूध का गिलास रो झिक के पिलाया जाता, जो फ्रिज कल तक खाली मुहँ ताकता रहता था, आज फलों से भरा रहता, कोई उसे छूता भी नहीं। फजलु मियां का जब पान लगाते हुए सामने मैदान की तरफ ध्यान जाता वहां फूल वाले के बच्चे मस्त खेल रहे होते या एक दो चिड़ियाँ दाना चुग रही होती थी। फूल वाला तो सुबह ही पिन्नक में सवार हो जाता, फूलों पे पानी छिड़कते हुए दो चार बुन्दे शायद सोम रस की भी गिर जाती थी। राम चन्द्र हलवाई के सामने ही तो वो पुराना शिव मन्दिर था, जो शायद पांच सो साल पुराना अवश्य होगा। सालों पहले मन्दिर के एक कोने में पीपल के पेड़ के नीचे हनुमान जी की मूर्ति स्थापित की थी जब मन्दिर का नया नाम करण करना पड़ा था, ‘प्रचीन शिव हनुमान मन्दिर, अभी दो साल पहले लोगो के मन में श्लाधा उठी की सिर्डी के सॉंई बाबा की मूर्ति लाई जाये, सो पास ही रेलवे रोड़ की दुकानों में से छांट कर सुन्दर मूर्ति ला स्थापित कर दी गई। अब नाम करण संस्कार भी पुण्य करना पड़ा सर्व सम्मति से नाम रखा गया,’ प्रचीन शिव हनुमान सॉंई मन्दिर’ अब आगे की राम जाने या आने वाली नसलें ।
फूल वाला अपनी लड़की के साथ खड़ा हो फूल बेचता, नाजुक बेचारी सारा दिन धूप में खड़ी रहती थी। फूल वाला सार दिन नशे में धुत्त रहता, लड़की जब घर चली जाती तो उसे न फूलों का होश रहता न सामने वाले का कौन खड़ा है। कभी तो किसी महिला के हाथ की उंगली को भी छू लेता था। अब तो फूलों के नीचे ही अपना पव्वा दब के रखता था, जब मन करता फूलों के नीचे से निकालता जय सोम रस। मुहँ से इतनी बू आती मन्दिर जाने से पहले मानो नरक के फाटक पर हाज़री देना अनिवार्य हो गया। कोई उसके मुहँ माथे नहीं लगता, कौन यहां घर बसाने आये है, फूल लिए और मन्दिर में। राम चन्द्र हलवाई शोर मचाता ‘’ हमारे जमाने में चाय पीते भी ग्राहक अगर आ भी जाता तो पहले हाथ धोते फिर ग्राहक को सामान देते थे। दुकान शिव जी का थड़ा है, इसे पवित्र पूजा भाव से करना चाहिए। परन्तु इस पापी फूल वाले ने तो सार कायदे कानून ताक पर रख दिए है।‘’फूल बाला एक बार राम चन्द्र हलवाई की तरफ देखता, उसे लगता ये सब बक झक करते रहेंगे पैसे जोड़ कर मर जायेंगे, बनेंगे मरने के बाद सांप उसकी रखवाली करने के लिए। क्या जीवन है इन लोगों का घास फूस खाते हैं, जानवरों की तरह और पानी पी कर राम नाम सत्य हो जायेंगे। वो इन फजुल की बातों पर ध्यान ही नही देता था। धीरे-धीरे मन्दिर के साथ मोहल्ले की साख भी मिटटी मिलने लगी। दूसरे मोहल्ले की बहु-बेटियाँ मन्दिर आने के लिए गली से न आ कर पूरा चक्कर लगा कर आना मन्जूर करती थी। मोहल्ले वालो ने पुलिस से सहायता ली, इतना काम जरूर कर दिया फूल वाला मन्दिर के सामने फूल नहीं लगता । कुआँ वापस अपने ठिकाने सरक गया, जाना पड़ा फिर भी लोगो को फूल वाले के पास।
एक समस्या हो तो कहें, जो मैदान कभी शीशे की तरह साफ सुथरा रहता था। अब कूड़े के ढ़ेर लगे रहते, भंगन भी रोज झिक-झिक करके हार गई, तेल चुपड़े मटके पर पानी की एक बून्द रुके तब तो कोई बात फूल वाले के भेजे में घूसे। फूल वाले की बीवी का रंग एक दम शाह काला, परन्तु जब गली में बैठ पैरो की ऐड़ियाँ रगड़ती तब लगता अब खून निकला की तब खून निकला, नहाने की राम जाने अन्दर ही कही हरी ओम हरी ओम कर लेती होगी। बच्चों के बाल चिड़ियों के घोसले हुए रहते, जब किसी का नहाने का नम्बर आता तो पूरे मोहल्ले में हाहाकार मच जाता था।
मोहल्ले का गुण धर्म ही बदल गया, फजलु की दुकान पर मायूसी फैली रहती, क्रिकेट के बादशाह दूर से ही अपने प्रिय ग्राऊंड को निहार कर तृप्त हो जाते । फूल वाले का एक छत्र राज हो गया पूरे मोहल्ले पर। गांधी, बुद्ध, महावीर का अहिंसक मोहल्ला था। हिंसा तो यहां के शब्द कोश में भी नहीं थी। हां किसी फिल्म में ये दृश्य जरूर देखा होगा। अब कहां सें पैदा करे ‘’भैराम डाकू’’ को जो इस मोहल्ले को फूल वाले से मुक्ति दिलाये। अब भगवान भी मानो फूल वाले से प्रसन्न है, क्यों न हों इसके फूल जो भगवान जी के चरणों में चढ़ते हैं। होली आई फूल वाले के नाते रिसते दार भी आ पधारे, क्या होली का हुड़दंग मचा रात के नौ बज गये, जो होली सालों से 2-3 बजे खत्म हो जाती थी मानो उसकी रील ही अटक गई खत्म हो फिर शुरू, ऐसी होली मोहल्ले ने देखी न सुनी थी। अरे ‘’बरसाने’’ बाले भी आ जाते तो यहां आ के हार मान लेते। नाच गाना ढोल मंजीरा, गाली-गलौज मोहल्ले वालो ने खिड़कियाँ बंद कर टी वी की आवाज तेज कर के इस शोर को अपने घर से दूर रखने की लाख कोशिश की। फिर भी कोई पंचम सुर इन अवरोधों को तोड़ कर अन्दर पहुँच ही जाता था। रात 12बजे जब ये नौटंकी खत्म हुई तब जा के मोहल्ले ने शान्ति की सांस ली।
खन्ड़ेलवाल जी सुबह तीन बजे उठ दो घण्टे नित नियम से पूजा पाठ करते थे। घर के बीच खुला आंगन जिसमें एक भेल पत्र, अमरूद, नींबू, के साथ मौसमी फूल भी लगवाते थे, पूजा के लिए अपने घर के फूलों की क्या बिसात, एकदम शुद्ध न किसी की गन्दी छुअन न किसी की झूठ-कुठ, आज तो जमाना ही नहीं रहा, फूल क्या सब्जी क्या जब गाड़ियों में लाद कर लाते है तो जूतों समेत, वहीं पान तम्बाकू खा थूकते रहते है। लोग है कि संवेदन हीन हो गये है, हमारे जमाने में चारा काट कर जब खेत से लाते हुए आप गट्ठे पर बैठ गये तो मजाल क्या जो भैंस उसमें से एक तिनका भी मुँह में डाल ले। राम..राम समय ने कितनी जल्दी रंग बदल लिया, ये फूल वाला तौबा..तौबा, चारों तरफ गहन शान्ति का राज्य था, शायद कृष्ण पक्ष था, चांद कि अनुपस्थिति में तारा मँडल पूर्ण आभा छाई हुई थी। एक-आध बादल का टुकड़ा तारों के झुण्ड के साथ आँख मिचौली खेल रहा था। खन्ड़ेलवाल जी के पूजा के बर्तन साफ हो गये थे, लाल और सफेद चंदन घिसने कि तैयारी कर रहे थे। अचानक एक छोटी सी बदली जो अभी-अभी तारों के साथ आंख मिचौली खेल रही थी, मानो झुंझला के उसके आंसू निकल गये। बूंदा-बांदी के साथ अचानक गली जो अभी तक शान्त थी, शोर से थरथराहा गई, खन्ड़ेलवाल जी ने खिड़की से झाँक कर देखा तो वहीं फूल बाला ऊपर की तरफ हाथ उठा कर गालियां दे रहा था। खन्ड़ेलवाल जी ने देखा क्या ये पागल हो गया है क्या, न आदमी न आदमी की जात फिर किसको ये गालियां दे रहा है। किस घड़ी में मुतु स्वामी इस निछत्र को मोहल्ले में लें आया जीना दूभर कर रखा है। पूजा की तैयारी कर ही रहे थे लो हो गई पूजा। इतनी देर में एक काली सी परछाई दिखाई दी, उसकी आवज तो खन्डेलवाल जी के कानों में नहीं पड़ी परन्तु वो हाथ हिला कर कुछ इशारे कर रही थी। जिसका जवाब नशेडी फूल वाला इतने जोर से दे रहा था, वो खन्ड़ेलवाल जी के कानों को भी फाड़े डाल रहे थे।
‘’देखो ये हराम खोर मोहल्ले वाले मुझे रात को सोने भी नही देते, छत पर खड़े हो कर मेरे ऊपर पानी फेंक रहे है। मेरा जीना हराम कर रखा है, इस मोहल्ले में या नरक में आ गया हूँ, थू है इस मोहल्ले को’’...........।
इतनी देर में परछाई का हाथ घूमा च.टा..क...बड़ी जोर से एक आवाज आई, फूल बाला चारों खाने चित। परछाई ने हाथ हिला का कुछ निर्देश दिये और अचानक अंधेरे में गायब। ये सब इतनी जल्दी हुआ की खन्ड़ेवाल जी को यकीन ही नहीं आता, अगर फूल वाले को नीचे गिरा नहीं देखता। पुजा का समय बीता जा रहा था। कितनी देर पूजा करते रहे आज पूजा में भी ध्यान नहीं लग रहा था, बार-बार फूल वाले की तरफ जाता था। कितनी देर से बाहर का भी कोई शोर नहीं आया, कैसी निभ्रर्म शान्ति फैली रही घण्टों तक मानो ये अपना वो मोहल्ला ही नही है, जहां कुछ देर पहले महातांड़व हो रहा था। काली अंधेरी रात बीत गई, गली में भी मानो शुक्ल पक्ष का उजियारा फैलने लगा था। फिर मोहल्ला दोबारा अपनी चिर परिचित गति में लौटने लगा था। फूल वाले की चिडि़या एक दम चुप जैसे उसकी जबान को लकवा मार गया हो। सुबह सवेरे मोहल्ले का चौक एक दम साफ सुथरा। किसी को भी यकीन नहीं आया रात तो इतनी मूसलाधार बारिश हो रही थी, अचानक ये सूरज भगवान कैसे निकल आया। खन्ड़ेलवाल जी जब श्याम को पूजा के लिए पान सुपारी लेने गये तो फजलु मिया को रात की परछाई वाली बात का जिक्र किया ‘’ फजलु मिया मेरी बात का यकीन करो या मत करो परन्तु मैने सुबह-सुबह एक चमत्कार देखा’’
फजलु मिया ने गर्दन हिलाते हुये कहा ‘’क्या देखा लाला जी’’
‘’ये जो अपना फूल वाला है इसकी चिड़िया चुप भोले बाबा के गणों ने की है, एक काली सी परछाई इस पर कोई मन्त्र मार गई नहीं ये शैतान आदमी के बस में आने वाला नहीं था। लोग कछ भी कहे भोले बाबा अपने भगतों की सुनता है, धन्य हुई मेरी आंखें जो भगवान न सही उसके गण की एक झलक तो पाई।‘’
फजलु मिया ने पान सुपारी पत्ते मे लपेटते हुए, एक हलकी सी मुस्कान बिखेरी, और आसमान की तरफ देखते हुए कहां अल्ला सब पे करम फ़रमा। ‘’ शिव-शिव जय भोले’’
‘’भगवान के घर देर है अन्धेर नहीं, जय सिया राम’’फूल बाला मोहल्ला छोड़ कर चला गया, एम0 सी0 सी0 क्लब फिर आबाद होने लगा। परन्तु किसी की बात समझ में नहीं आई ये अचानक फ़ूल वाले को हो क्या गया। जाते हुए भी फजलु मिया से हाथ जोड़ कर माफी भी मांग रहा था। मुतु स्वामी को सबने हिदायत दे दी थी, अगर दोबारा कोई किराये दार रखे तो पुरी तरह छान बीन कर ले। फिर मुतु स्वामी ने वो कमरा कभी किराये पर नहीं दिया, भविष्य के सहवाग और धोनी...... के लिए खाली छोड़ दिया कि जब कोई खिलाड़ी भारत का प्रतिनिधित्व करेगा वो ही इसकी भरपाई करेगा। देखो कब साध पूरी होती है मोहल्ले कि या मुतु स्वामी की, फजलु मिया की पान कि गिलोरीयों के साथ अब भी रीले केमेस्ट्री या आँखो देखा हाल जारी है। पान के साथ एक शरारती मुस्कुराहट भी परोसने लगे थे फजलु मिया जिसे कोई समझने की कोशिश भी नहीं करना चाहता था, सोचते है ये फजलु का कोई नया स्टाइल है।
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मनसा आनन्द ‘मानस’29- गॉव दसघरा, पो आ पूसा,नई दिल्ली – 110012 मो – 9810057527फोन – 65398369
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