आर के भारद्वाज की कहानी : केयर टेकर

SHARE:

  प्रातः कालीन भ्रमण मेरा शौक है, सुबह की हवाखोरी से मुझे दिन भर ताजगी, स्‍फूर्ति मिल जाती है, सुबह के दौरान मैं कई अपने जैसे लोगों को भी ...

bhawna navarang 9 

प्रातः कालीन भ्रमण मेरा शौक है, सुबह की हवाखोरी से मुझे दिन भर ताजगी, स्‍फूर्ति मिल जाती है, सुबह के दौरान मैं कई अपने जैसे लोगों को भी देखता हूं। कोई दौड़ लगा रहा होता, तो कुछ अपने झुण्‍ड के साथ राजनैतिक चर्चा करते हैं, प्रायः महिलायें तो विगत दिन उन्‍होंने क्‍या किया इसकी चर्चा करती मिल जाती हैं। बाबा रामदेव ने जो अपना आंदोलन योग के लिये चलाया है उससे कितनी सामाजिक जाग्रति आई है यह बखूबी सुबह सैर के दौरान देखने को मिल जाता है, अनुलोम विलोम, कपाल भाति, प्रणव जाप करते लोग मिल जायेगें, हैरत तो तब होती है जब बुजुर्ग व्‍यक्‍ति भी योग करते देखने को मिल जाते हैं इस योग से उन्‍हें कितना फायदा होता होगा यह तो वही बता सकते हैं जो इसे करते हैं, बहरहाल लोग अपने स्‍वास्‍थ्‍य के प्रति जागरूक हुए हैं यह आशा जगाने वाली बात है।

जब से तीन नये प्रदेशों का गठन हुआ है तब से बहुत से लोग इधर से उधर हुए हैं कोई अपने मूल प्रदेश में गया तो किसी ने उसी में रहने का अपना विकल्‍प दिया । मैं भी इस शहर में नया नया आया हूँ हालांकि प्रदेश गठन से मेरे तबादले को कोई अर्थ नहीं हैं मै केन्‍द्रीय सरकार का कर्मचारी हूँ, और अपने परिवार को अभी मै यहां नहीं ला पाया हूँ। सरकारी गेस्‍ट हाउस में ठहरा हूँ। इस शहर की आबोहवा ने मुझे मोह लिया है, सोचता हूँ अगर यहीं कोई मकान या प्लाट मिल जाये तो बाकी उमर भी यही काटने का मेरा इरादा है।

तो बात चल रही थी सुबह के दौरान घूमने की, मैंने अपने दो तीन सहकर्मियों से यहाँ सुबह घूमने वाली सड़कों के बारे में जान लिया था । सुबह घूमते हुए मै काफी दूर तक निकल गया, यह कैन्‍ट का इलाका है, जहाँ काफी दूर जाकर कैंट का इलाका खत्‍म हो जाता हू, लेकिन खुली खुली जगह, सामने दूर दिखाई देती पहाड़ियाँ हरा भरा माहौल बरबस अपनी ओर खींच लेता है । पहले ही दिन उस सड़क पर मेरी नजर एक ऐसे मकान पर पड़ गई जो वास्‍तुकला का अद्‌भुत नमूना था बनाने वाले की कला दृष्‍टि निसंदेह आश्‍चर्यजनक थी। एक विशेष बात जिसने फिर मुझे आश्‍चर्य में डाल दिया वह था एक बुजुर्ग व्‍यक्‍ति की झोपड़ी जो उसी मकान के सामने एक आम के पेड़ के नीचे थी। उसी सड़क पर यों तो और भी बहुत सी कोठियाँ थी लेकिन उस इलाके की अगर कोई नायाब और खूबसूरत कोठी थी तो बस वही थी, लेकिन आश्‍चर्य तब और अधिक हुआ, जब उस गेट पर मैंने ताला पाया। अपने ही ख़्यालों में मैं सोचता जाता था कि शायद इस मकान का मालिक कोई बहुत ही पैसे वाला व्‍यक्‍ति होगा जो शायद अपने परिवार के साथ विदेश में रह रहा होगा यहाँ वह कभी कभी आते होंगे। मेरी प्रतिदिन की सैर अब उसी कोठी के आसपास तक होने लगी। अगर यह कोठी मैं खरीद लूं तो कैसा रहेगा लेकिन मकान मालिक का तो कुछ पता नहीं था। शायद इस बूढ़े व्‍यक्‍ति से कुछ पता चल सके धीरे धीरे मैंने उस बूढ़े से दोस्‍ती करनी शुरू कर दी पहले मैंने ही उसे नमस्‍ते कर दी उसने नमस्‍ते ली उसके बाद न वह बोला न मै ही बात को आगे बढ़ा पाया ।

बरसात के दिन थे, उस दिन सुबह से ही काले काले बादलों ने अपना मकान बनाना शुरू कर दिया था, मैं फिर भी अपना छाता लेकर घूमने निकल ही गया । थोड़ी दूर चलने पर हल्‍की हल्‍की बूंदा बांदी शुरू हो गयी थी, कैन्‍ट का इलाका खत्‍म होते ही बारिश जोर से शुरू हो गयी, उस इलाके में ऐसा शेड आदि नहीं था जहाँ रूककर मैं बरसात रूकने का इंतजार करता, बूढ़े ने मुझे नमस्‍ते की और कहा,

'' आप यही बैठ जाइये, जगह तो कम हैं पर बरसात में भीगने से बच जायेगें''

मुझे आज अपना काम होता नजर आया ।

कितना स्‍वार्थी होता है आदमी, अपने हित के लिये कुछ भी करने को तैयार, तुलसीदास ने कहा भी तो हैं '' सुर नर मुनि सब की यह रीति, स्‍वार्थ लगें कर सब प्रीति'' आज रोज ही देखने में आ रहा है अपने स्‍वार्थ के लिये क्‍या क्‍या नहीं कर रहा है आदमी, सरकार को अपने हजार के लिये लाखों का नुकसान पहुंचा रहे है लोग, भाई-भाई कितना लड़ रहे हैं रिलायन्‍स के दो होनहार भाइयों का समझौता कराने के लिये सरकार तक को कूदना पड़ा है इनके बीच, पति पत्‍नी जरा से स्‍वार्थ के लिये अदालतों का दरवाजा खटखटा रहें है कितने ही किस्‍से हैं '' हरि अनंत हरि कथा अनंता'' वाली बात है।

बूढ़े ने मुझे बैठने के लिये अपनी चारपाई दी, कितना समझदार, खुद पायताने की तरफ बैठा मुझे सिरहाने की तरफ बैठाया। संसाधन कम थे, पर फिर भी पूरे घर का सामान व्‍यवस्‍थित था, लगा इस अकेले को भी साफ सफाई का कितना ध्‍यान है। बात को मैंने ही आगे बढाया...............

'' आप यहाँ अकेले रहते है?''

''हाँ''

''आप के बाल बच्‍चे वगैरह''

''....................''

शायद वह अपने बारे में बताने को तैयार नहीं था ।

''आप के लिये चाय वगैरह बना दूं’' बूढ़े ने मुझसे पूछा।

''नहीं अभी मैंने नहाना धोना है, उसके बाद ही कुछ ले पाता हूँ''

''आज तो इस मौसम की सबसे बडी बारिश है'' बूढ़े ने कहा

''हाँ बरसात के दिन है बारिश तो होगी ही, कम या ज्‍यादा यह तो इन्‍द्र भगवान ही बता सकते है''

''उसकी मरजी वो ही जाने''

''आप को तो बडी परेशानी होती होगी इस छोटे से मकान में''

''अब तो आदत सी पड़ गयी है।

''वैसे यह इलाका काफी अच्‍छा है, मुझे पूरे शहर में यह इलाका अच्‍छा लगा''

''हाँ , ये बात तो है''

बूढ़ा अपने बारे में ज्‍यादा बातें नहीं कर रहा था, मुझे थोड़ा आश्‍चर्य हुआ कि यह अकेली जान, क्‍या इसका मन नहीं करता लोगों से बातें करने का, अकेला दिन-रात कैसे कटती होगी इसकी। मैं अभी अपना स्‍वार्थ उसे बताना नहीं चाहता था।

अजीब है मानव मन भी, अन्‍दर चाहे कितना जहर भरा हो, जितना स्‍वार्थ हो, लेकिन सामने वाले पर हम अपने प्रभाव छोड़ने में कोई कसर नहीं उठाना चाहते। कुछ ऐसी ही स्‍थिति मेरी भी है न, मेरी नजरों में बूढ़ा एक साधारण आदमी है जिससे बातचीत का मेरा मकसद सिर्फ अपने स्‍वार्थ की प्रतिपूर्ति तक ही सीमित था। बरसात अब कम हो चली थी, मैंने बूढ़े से बिदा ली.....फिर मिलने का वायदा किया और वापस लौट आया ।

अब मेरी दिनचर्या दस पन्‍द्रह मिनट बूढ़े के पास रूकने की हो चली थी, अक्‍सर हम इधर उधर की बातें करते, लेकिन अभी तक न तो मैं अपनी बात उस तक कह सका था न ही उसके बारे में और अधिक जान सका था। लेकिन इतने दिनों में एक बात स्‍पष्‍ट थी कि बूढ़ा न सिर्फ पढ़ा लिखा था बल्‍कि उसके बाल केवल धूप में ही सफेद नहीं हुए थे बल्‍कि उसे जिन्‍दगी का तर्जुबा भी था, मै इतना तो जोर देकर कह सकता हूँ कि किसी बात ने उसे हिलाकर रखा हुआ था। मैं सिर्फ अब उसके बारे में जानने का इच्‍छुक था अब मेरी मकान या प्‍लाट खरीदने की इच्‍छा गौण हो चुकी थी, मुझे बात ही बात में पता चला कि बूढ़ा एक बाल बच्‍चेदार आदमी है लेकिन फिर वह यहाँ इस झोपड़ी में क्‍यों रहा रहा है ये प्रश्‍न आज भी अनुत्‍तरित था। समय गुजरता गया, मेरी और बूढ़े की अब अच्‍छी खासी जान पहचान हो चुकी थी और उसे में अपने बारे में सब कुछ बता चुका था, मेरी कोई बात अब उससे छिपी नहीं थी, लेकिन मैं अभी उसके बारे में शून्‍य था ।

एक दिन मैंने उससे कहा कि '' आप अपने बारे में कुछ बतायें''

वह टाल गया ।

बोला'' फिर कभी और अब मेरे बारे में जानकर करें भी क्‍या ? बुझते दीपक डूबते जहाज पर सिर्फ अफसोस ही तो कर सकते हैं और अफसोस करते करते मैं इतना थक चुका हूँ कि अब अफसोस शब्‍द सुनना भी नहीं चाहता।''

मैं हैरत में था कि इन बुजुर्गवार के साथ ऐसी कौन सी घटना घट गई कि जो अब यह अपने बारे में बात करते हुये हिचकता है। ज्‍यों ज्‍यों समय गुजरता गया त्‍यों त्‍यों मेरी दिलचस्‍पी उसमें बढ़ने लगी। एक दिन मैंने उसे बड़े अपनेपन से पूछ ही लिया कि मैं आपके बारे में जानना चाहता हूँ, उसने उस दिन भी टाल दिया कहा, फिर कभी.......अब तो जिन्‍दगी का कुछ ही समय बचा है, हो सकता है कि मेरी बात आप समझ जायें, फैसला जो भी हो?

कुछ दिनों के बाद फिर एक दिन वह अवसर आया, जब मैं फिर बूढ़े से मिलने गया, इधर उधर की बातों के बाद मैंने फिर उसके जख्‍म कुरेदने शुरू किये, कितना आनन्द आता है न किसी के जख्‍म कुरेदने में और उस पर हमारी हेठी यह कि हम कितने इंसाफ पसन्‍द हैं, दूसरों के लिये हमारे दिल में कितना दर्द हैं, लेकिन अपने बारे में हम जरूरी नहीं समझते क्‍योंकि जो अपने चेहरे पर हमने नकाब ओढा हुआ है अच्‍छे आदमी का, कही वह बेनकाब न हो जायें । मैं अपनी ही बात करता हूँ कि मैंने ही अपने बारे में उसे कितना बता दिया था।

उसने बताना शुरू किया '' मेरा नाम मुकेश मोहन पाण्‍डे हैं, कभी हमारे पूर्वज गढ़वाल में रहा करते थे वो किस गांव के थे कौन से गढ़वाल के थे मुझे नहीं मालूम यह मेरे जन्‍म से पहले की बात है, जब मेरे दादा परदादा गढ़वाल से पलायन कर इस शहर में आये थे । हम दो भाई और दो बहने थी, हमारे बाप ने अपनी पूरी मेहनत से हमें पढ़ाया लिखाया, बहनों की शादी की। जैसा कि आम होता है शादी के बाद हम भाई अलग अलग हो गये किसी से कोई शिकायत नहीं......भाई की नौकरी तबादले वाली थी इसलिये उसने दिल्‍ली शहर में अपना मकान बना लिया और अपने बच्‍चों के साथ वहीं रहने लगा। पिताजी जिस मकान में रहते थे भाई के अनुरोध पर हमने वह मकान और जमीन बेच दी मैंने उस पैसे से जो मुझे विरासत के मिले थे जमीन खरीद ली, मेरे दो बच्‍चे थे एक लड़का और एक लड़की, लड़का बड़ा था, धीरे धीरे वह बड़ी क्‍लास में पहुंच गया पढ़ने में कुशाग्र था उसकी इच्‍छा एक डाक्‍टर बनने की थी, लेकिन मेरे पास इतने पैसे नहीं थे कि उसे डाक्‍टरी करा पाता, उधर उसकी माँ ने कहा बच्‍चे कि जिन्‍दगी का सवाल है आप किसी भी तरह से इसे डाकटरी पढ़ा दें, मैं असमंजस में था, परेशान था कि कैसे? किस तरह से इसकी डाक्‍टरी की पढ़ाई कराऊं? रात दिन परेशान रहने लगा, उधर लड़के की जिद थी कि मैंने डाकटरी ही पढ़नी है, अजब से भंवर में फंसा था मैं। । फिर मैंने एक दिन सोचा कि आखिर मेरा सब कुछ इनका तो ही है क्‍यों न जमीन बेच दूं लेकिन उसके पैसे उस समय बहुत ही कम मिल रहे थे यानि खाल के चक्कर में ढोल से भी जाने वाली बात थी । लिहाजा मुझे अपना इरादा बदलना पड़ा, फिर अपने सहकर्मियों के सुझाव पर मैंने अपने जी0पी0एफ0 से पैसे निकलवाने की सोची, कुछ मेरे पास विरासत के पैसे थे कुल मिलाकर उसकी पढ़ाई का खर्चा तो निकल सकता था, लेकिन हास्‍टल अन्‍य खर्चों में आगे परेशानी आने वाली थी। पत्‍नी न एक ही जिद पकड़ी थी, कि चाहे जैसे हो उसे डाक्‍टर बनाना ही है। मैंने अपनी जमा पूंजी से उसकी फीस आदि भर दी, इस हिदायत के साथ कि चाहे भूखा रहना पड़े, लेकिन और खर्चों के लिये मुझसे कुछ नहीं मांगोगे, किसी तरह खींच तान कर मैंने उसे डाक्‍टरी पढ़ा दी वह गोल्‍ड मेडल लेकर पास हुआ और दिल्‍ली के अस्‍पताल में नौकरी कर ली, इस बात का ताना वह अक्‍सर मुझे दिया करता कि फीस अलावा आपने कुछ नहीं दिया । जिस समय वह डाकटरी पढ़ रहा था मैंने काफी पहले अपने भवन निर्माण अग्रिम के लिये जा ऋण आवेदन किया हुआ था उसकी मंजूरी आ गई करीब 6 लाख के रू0 के करीब मुझे मिलने थे बाकी मैंने बैंक से ऋण ले लिया और अपनी पसन्‍द का एक मकान बनवा दिया । मेरा सारा वेतन कटौतियों में चला जाता था, बडी मुश्‍किल से घर का खर्च चल रहा था, पैसे की तंगी के चक्कर में अब मेरे और पत्‍नी की बीच अक्‍सर किच किच होने लगी थी, अपनी जगह वह भी सही थी और मै भी । इस बात का पता जब लड़के को लगा तो उसने मां का पक्ष लिया और कहा''.....आपको मैं पैसे भेज दिया करूंगा आप खर्चे से परेशान न हों'', पत्‍नी भी अक्‍सर मुझे ताना देने लगी......''अगर मेरा लड़का पैसे नहीं भेजता तो आपने तो कटोरा पकड़ा देना था। मैं अक्‍सर चुप रहने लगा, मेरे सिर पर कर्जे का एक भारी बोझ था, लड़का कहता जब पैसे नहीं थे तो इतना बडा मकान बनवाने की क्‍या जरूरत थी? सभी लोगों को आपने परेशान कर रखा है। अब पत्‍नी अक्‍सर उसके पास दिल्‍ली जाकर रहने लगी दोनों माँ बेटों में अक्‍सर मेरे ही बारे में बातें होती, एक तरह से अब मुझे अलग कर दिया गया था। फिर एक दिन मेरे पास एक संदेशा आया कि '' विकास ने अपनी पसंद की लड़की से कोर्ट मैरिज कर ली, अर्न्‍तजातीय विवाह था। मुझे क्‍या आपत्‍ति होनी थी, मैंने भी हालात देखकर समझौता कर लिया। बहू ने हमारे परिवार के बारे में सब कुछ जान लिया था, उसकी नजरों में मैं एक खलनायक था, जब भी वह घर आती अक्‍सर मेरी ओर उसकी उपेक्षा की दृष्‍टि होती, मैं समझ नहीं पा रहा था कि मेरे से गल्‍ती कहाँ हुई, पत्‍नी अपने बेटे बहू के साथ खुश थी, पैसों का रोना अब वह मुझसे नहीं करती थी। समय गुजरता गया मैं अपने ही घर में एक अजनबी हो गया, एक दिन फिर वह लावा फूटा, जिसको बहुत पहले फूट जाना चाहिये था। आखिर कोई कब तक सब्र करता, मै अपने अकेलेपन से परेशान था और बाकी लोग मुझसे। उस दिन कुछ ऐसा हुआ कि बहु के कुछ करीबी रिश्तेदार घर पर आ गये मैं अपने कमरे में था, न मुझे किसी ने बुलवाया न मै ही गया, मैंने अपने हाथों से अपने घर में तरह तरह के फूल पौधे लगा रखे थे अब वह ही मेरे जीने का सहारा थे, उन्‍हें मैं बड़े जतन से पालता था, बहू के रिस्‍तेदारों के बच्‍चों ने वहीं पर अपना क्रिकेट खेलना शुरू कर दिया, काफी उधम चौकडी मचा रखी थी बच्‍चों के अभिभावक उन्‍हें रोक नही रहे थे पूरे घर में उन्‍होंने गन्‍दगी का साम्राज्‍य फैला दिया, मैंने बात बढ़ने के डर से कुछ नहीं कहा, फिर अपनी क्रिकेट की गेंद से उन्‍होंने सामने के सारे शीशे तोड़ दिये, मैंने एक दो बार उन्‍हें रोकने की कोशिश की, लेकिन बहु ने मुझे कुछ ऐसी नजरों से देखा कि मानों मैंने कोई बहुत बड़ा गुनाह किया हो, फिर खेलते खेलते उन्‍होंने फूल पौधे तोड़ने शुरू कर दिये, अब मुझसे रहा नहीं गया मैंने बच्‍चों को जोर से डांट दिया और उनका खेल रूकवा दिया । बच्‍चे अपने अभिभावकों के पास जाकर बैठ गये एक तल्‍खी सी वातावरण में छा गई, कुछ देर बाद वह चले गये।

अब बाकि के सब लोग मेरे पीछे पड़ गये, पत्‍नी और लड़का तो ज्‍यादा नहीं बोले लेकिन बहु ने मेरी वो कलास ली कि मुझे भी गुस्‍सा आ गया, काफी लानत मलामत हुई, हैरत मुझे इस बात की थी कि मेरी पत्‍नी और बेटा भी सारा दोष मेरा ही निकाल रहे थे, काफी रात देर तक वाक युद्ध होता रहा। आखिर मैंने फैसला किया '' लो सम्‍भालो अपना घर'' और मै घर से बाहर आ गया, मुझे किसी ने रोकने की कोशिश नहीं की । मैं घर छोड़कर बाहर आ गया, सारी रात मैं सड़कों पर घूमता रहा, लेकिन मुझे बुलाने कोई नहीं आया। मैं अपने घर से काफी दूर निकल गया था, सुबह करीब आठ बजे जब मैं वापस घर पहुंचा यह सोचकर कि चलो अब मामला ठण्‍डा हो गया होगा, तो गेट पर ताला लगा था, सब लोग चले गये थे, मैंने इधर उधर नजर डाली शायद मेरे लिये कोई संदेश हो, लेकिन मुझे कुछ नहीं मिला.....उसके बाद दिन गुजरे......महीने गुजरे.......साल गुजरे.......वो लोग अक्‍सर आते हैं लेकिन न मुझे किसी ने बुलाया, न मेरी कोई खबर ही ली.....इतना कहकर बूढ़ा चुप हो गया।

मैंने पूछा'' इस सारे मामले में आपकी बेटी ने कुछ नहीं कहा''

बूढ़ा बोला '' वो बेचारी क्‍या कहती, वह तो जन्‍म से ही गूंगी और बहरी थी''

''और फिर उस मकान का क्‍या हुआ? वह अब किसके पास है?

बूढ़ा बोला '' वह जो सामने मकान देख रहे हैं? जिस पर ताला लगा है वह ही है वह मकान....और मैं उसका केयर टेकर...

**

RK Bhardwaj

151/1 Teachers’ Colony, Govind Garg,

Dehradun (Uttarakhand)

E mail:  rkantbhardwaj@gmail.com

---

(चित्र – भावना नवरंग की कलाकृति)

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: आर के भारद्वाज की कहानी : केयर टेकर
आर के भारद्वाज की कहानी : केयर टेकर
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhX5hs_TSWOs8VPpUJjbERBL2OgLq86fU2ITHJcgxlLzCXE16hTgXnvkW_GZT-FBwpB6vu0xIOSmrybMIEEkqY27zj4inmWLmZzEEi1t-2N_c2Nyy9YA9mZjfRR_0mVfci6iGL2/?imgmax=800
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhX5hs_TSWOs8VPpUJjbERBL2OgLq86fU2ITHJcgxlLzCXE16hTgXnvkW_GZT-FBwpB6vu0xIOSmrybMIEEkqY27zj4inmWLmZzEEi1t-2N_c2Nyy9YA9mZjfRR_0mVfci6iGL2/s72-c/?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2010/05/blog-post_27.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2010/05/blog-post_27.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content