ऊ परवाले ने एक खूबसूरत दुनिया बनाई और इस खूबसूरत दुनिया में सबसे खूबसूरत चीज बनाई ‘औरत’. औरत सबसे पहले एक बेटी बनती है. फिर एक बहन का रूप...
ऊपरवाले ने एक खूबसूरत दुनिया बनाई और इस खूबसूरत दुनिया में सबसे खूबसूरत चीज बनाई ‘औरत’. औरत सबसे पहले एक बेटी बनती है. फिर एक बहन का रूप लेती है. औरत का सबसे ज्यादा देर तक टिकने वाला रूप होता है ‘बीवी’ का. फिर औरत एक माँ बन जाती है. और इतने सारे रूपों में औरत हमेशा औरत ही रहती है. हर शक्ल में खूबसूरत.
कई बार तो औरत इतनी खूबसूरत साबित हुई है कि लोगों को अपनी बीवी में ही माँ भी नजर आई है...
लेकिन मेरी बीवी ने फिर ऐसा क्यूँ किया...क्यूँ उसने औरतजात की इन सारी हकीकतों से मुंह फेर लिया...? क्यूँ उसने ऐसा रास्ता चुना...जिसमें मेरे हिस्से में सिर्फ बदनामी और रुसवाई आई और खुद उसने मजे किए...मेरी क्या गलती थी...? क्या यही कि, “मैंने अपनी बीवी को आजादी दे रखी थी, वो सब करने की...जो वो करना चाहती थी...
रीमा बैंक में असिस्टेंट थी....लेकिन वो आफिसर बनना चाहती थी....मैं खुद रीमा को एक्जाम सेंटर तक छोड़के आता था...घर का सारा काम करता था...इसलिए कि मेरी बीवी कुछ बन जायेगी....और एक दिन मेरी बीवी हिन्दुस्तान के एक जाने-माने बैंक में सीनियर असिस्टेंट बन गई. मुझे इस बात पर फक्र था....
मेरी बीवी अब आफिसर बनना चाहती थी...मैंने उसे समझाया था कि “आफिसर बनने के बाद बहुत दिक्कतें आएँगी...घर पे समय नहीं दे पाओगी...बच्चों की देखभाल नहीं कर पाओगी...” मगर उसने मेरी एक न सुनी....उसके सिर पे आफिसर बनने का भूत सवार था....
और शायद इसी वजह से वो हवा में उड़ने लगी थी. और शायद इसी वजह से वो आसमान को छू लेना चाहती थी...या उसके भी पार जाना चाहती थी...किसी भी कीमत पर...
रीमा की नजदीकियां उसी बैंक के चीफ मैनेजर आलोक कुमार सिंह के साथ बढ़ने लगीं थीं. रीमा को अच्छी तनख्वाह चाहिए थी...प्रमोशन चाहिए था...इसलिए उसने आलोक कुमार सिंह का साथ पकड़ना ठीक समझा क्योंकि मेरे पास तो वो सब चीजें नहीं मिल सकती थीं. मेरे पास तो मिलती है सिर्फ एलआईसी की पोलिसी. उसकी जरुरत रीमा को नहीं थी. उसे तो आफिस की नौकरी अच्छी लगती थी....बाहर घूमना अच्छा लगता था...उसे सबकुछ अच्छा लगता था...मगर उसे मैं अच्छा नहीं लगता था...पता नहीं क्यों...? और पता नहीं क्यों उसने मेरे साथ बारह साल बिताए...? इन बारह सालों में मुझे कभी ये अहसास तक नहीं हुआ कि मेरे पीठ पीछे कुछ चल रहा है...मुझे तो पता भी नहीं चलता अगर रीमा उसी तरह पेश आती जैसे वो पिछले दस सालों से मेरे साथ पेश आ रही थी...
एक दिन शाम के वक्त पार्क में टहलते हुए वो अपने मोबाइल पर बात कर रही थी...तभी अचानक मैं उसके सामने आ गया...तब वो घबरा सी गई...और जब मैंने पूछा कि...”किससे बात कर रही थी...? तब उसने कहा....”रांग नंबर था...” लेकिन जब मैंने पता किया तो पता चला कि...वो आलोक कुमार से ही बात कर रही थी....
मुझे यकीन नहीं हो रहा था कि ये वही रीमा है...जिसका एक बार कार से एक्सीडेंट हुआ था और जो बिस्तर पर पूरे एक महीने पड़ी थी...जिसकी जांघ में चोट लगी थी...जिसकी वजह से वो ठीक से खड़ी भी नहीं हो पा रही थी...और जिस रीमा की तब मैंने इतनी तीमारदारी की थी...कि उसकी गन्दगी भी मैं ही साफ़ करता था...
और जब वो खुद से खड़ी हुई तो इतनी तेज भागी कि...मुझे ही पीछे छोड़ दिया....मुझसे ही दूर निकल गई....
जब मैं इस बात को लेकर बैंक के अधिकारियों से मिला तो उनकी बातें सुनके तो मैं दंग रह गया...उन लोगों ने कहा था...”अजी...चंद्रजीत जी...! जितनी जानकारी आपके पास है...उससे कहीं ज्यादा जानकारी हमारे पास है...इस ब्रांच में इस बात को लेकर मीटिंग तक हो चुकी है...क्योंकि हमारे पास पिछले दिनों कई कस्टमर्स का फोन आया और वो सब लोग शिकायत कर रहे थे कि...आपकी ब्रांच गन्दी हो चुकी है...और आपकी ब्रांच के दो लोग जो ये सब कर रहे हैं....उनकी ब्लू फिल्म भी बन चुकी है...”
ये सब बातें सुनके तो मैं और डर गया...मैं सोचने लगा...कहीं ऐसा ना हो कि...कल हर चौराहे पर रीमा और आलोक की ब्लू फिल्म बिकने लगे...फिर तो ढंकी-छुपी बात भी सामने आ जायेगी...
मैं आलोक कुमार के घर भी गया...उसकी बीवी से मिला... मैंने आलोक कुमार की बीवी से शिकायत की...तो उसने उल्टा मुझे नसीहत दी...कि...”आपको शक की बीमारी है...”
जब मैंने जाना कि रीमा एक दूसरे नंबर पर भी ज्यादा बात करती थी और जब मैंने पता किया तो पाया की दूसरा नंबर भी आलोक कुमार का ही था...और जब मैंने उस नंबर पर पीसीओ से फोन किया तो फोन आलोक कुमार की बीवी ने उठाया...और जब मैंने बताया कि मैं...चंद्रजीत बोल रहा हूँ...तब आलोक कुमार की बीवी...हँसने लगी...और कहने लगी...”अरे पागल..! तुझे आज पता चला है...मुझे तो बहुत पहले से पता है...मुझे तो ये भी पता है..कि ये दोनों कब एक दूसरे से मिलते हैं...और कहाँ-कहाँ मिलते हैं...और सुन...मुझे तो ये भी पता है कि...दोनों कितनी बार....? समझ गया न मैं क्या कह रही हूँ....?”
जब मैंने रीमा से, उसके और आलोक के बीच चल रहे नाजायज रिश्ते की बात की तो वो उल्टा मेरे ही ऊपर चिल्लाने लगी....और उसने बड़ी आसानी से कह दिया...”मैं कुछ गलत नहीं कर रही हूँ...अगर तुम्हें पसंद नहीं तो घर छोड़कर चले जाओ...”
ये रीमा नहीं बोल रही थी...ये उसका रुतबा बोल रहा था...जो उसने समाज में बना रखा था. ये मेरी बीवी नहीं बोल रही थी...ये एक असिस्टेंट मैनेजर बोल रही थी जो पहले सिर्फ एक सीनियर असिस्टेंट थी. असिस्टेंट से मैनेजर बनने के लिए उसने बहुत मेहनत की थी. दिन-दिन भर घर से बाहर रहती थी. रात को देर से घर आती थी. संडे को भी आफिस जाती थी. कभी-कभी तो आफिस के काम से दिल्ली से बाहर भी जाती थी.
और भी बहुत कुछ किया था उसने. आलोक कुमार के साथ दिल्ली से हवाई जहाज में बैठकर लखनऊ गई. वहाँ एक ही होटल में, एक ही कमरे में मियाँ-बीवी बनकर रही. आलोक कुमार के साथ उस रात एक ही बिस्तर पे सोई... और भी बहुत कुछ किया था रीमा ने उस रात.....मुझे तो सोच के शर्म आती है...मगर उसके चेहरे की चमक दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही थी. क्योंकि उसे प्रमोशन मिल चुका था जिसके लिए वो इतनी मेहनत कर रही थी.
आखिर आलोक कुमार ने ये प्रमोशन उसे अपनी जेब से निकालकर जो दी थी. अब इस मेहरबानी का कुछ तो सिला चाहिए था, आलोक कुमार को....आखिर वो आदमी भी कितनी मेहनत करता था रीमा के लिए...उसकी तो रीढ़ की हड्डी का आपरेशन तक हुआ पड़ा था मगर रीमा के लिए वो बिलकुल तंदरुस्त था...
रीमा पहले फोन पर मेहनत करती थी. फिर घर से बाहर भी जाना होने लगा. कभी, ट्रेनिंग के बहाने तो कभी टूर के बहाने. लखनऊ भी वो टूर के बहाने से ही गई थी. आलोक कुमार ने ही उसकी आफिशियल विजिट बनाई थी...और खुद उसने हवाई जहाज का टिकट ख़रीदा दो लोगों के लिए और होटल भी खुद ही बुक किया था आलोक कुमार ने...आलोक कुमार ने रीमा को अपनी बीवी बताया....और रीमा किसी और की बीवी होने के बावुजूद एक दिन के लिए आलोक कुमार की बीवी बन गई..और फिर ये सब सिर्फ एक रजिस्टर पर ही तो लिखना था...असली मकसद तो कुछ और था...जब मैंने होटल से पता किया तो होटल वालों ने कहा था...”ये तो हमारे रेगुलर कस्टमर हैं...आते रहते हैं...”
मैं अब भी रीमा को वापस पाना चाहता था. जब मैंने कहा कि, “कोई बात नहीं, जो हुआ उसे भूल जाओ...अब हम एक नयी शुरुआत करते हैं...” तो इसके बदले में रीमा ने सचमुच एकदम ही नयी शुरुआत कर दी.... उसने बेमतलब की बहस चालू कर दी....मुझे घर से भी निकाल दिया...क्योंकि जिस घर में हम रहते थे वो बैंक ने दिया था जो रीमा के नाम पर था...
और जब उसने देखा कि अब उसके घरवाले भी उसे समझाने लगे हैं...फिर उसने अपने आशिक आलोक कुमार की सलाह लेनी शुरू कर दी. और फिर उसके बाद उसने जो किया उसकी मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी...उसने मेरे ही ऊपर घरेलू हिंसा का मुकदमा कर दिया.
बात यहीं खत्म नहीं हुई थी...उसने मुझसे तलाक़ भी मांग लिया...मैं तो बस हैरान होकर सब चीजों को होते हुए देख रहा था. और मेरे ऊपर एक के बाद एक पहाड़ फेंके जा रहे थे. रीमा ने अपनी पूरी ताकत लगा दी थी....मैं ये देख रहा था कि अय्याशी की ये अंधी दौड कितनी दूर तक जाएगी....? मेरे ऊपर महिला अपराध शाखा में भी मुक़दमा किया गया....
अब मुझे लगने लगा कि मेरी कमजोरी और शराफत का गलत फायदा उठाया जा रहा था. और जैसा कि कहते हैं...”जब जुल्म हद से आगे निकल जाता है...तब एक कमजोर से कमजोर आदमी भी तलवार उठा लेता है...” और यहाँ तो मैं अब भी रीमा के वापस आने का इन्तजार कर रहा था.
अब मैंने भी ठान लिया था कि आलोक कुमार और रीमा को सबक सिखा के रहूँगा....
मैंने सबसे पहले रीमा के मोबाईल की कॉल डिटेल्स निकलवाई...और तब मुझे पता चला कि...रीमा के मोबाईल पर सबसे ज्यादा फोन आलोक कुमार के नंबर से आया था....दोनों के बीच एक मिनट से लेकर एक घंटे तक बातें होतीं थीं...दोनों एक-दूसरे को एसएम्एस भी भेजते थे...एक दिन में करीब बीस-तीस एसएम्एस....
जैसा मुझे बैंक वालों ने बताया था कि सबलोग इनकी गन्दी हरकतों से परेशान हैं... दोनों का ट्रांसफर कर दिया गया......रीमा तब पीतमपुरा से रोहिणी ब्रांच में आ गई...और आलोक कुमार राजस्थान में जोधपुर जिले के शास्त्रीनगर ब्रांच में तैनात हो गया...
आलोक कुमार एक ऐसा आदमी था जिस आदमी की खुद एक अठ्ठाईस साल की बेटी थी और उस बेटी के भी बच्चे थे...मगर वो पचास साल का आदमी अय्याशी के नशे में चूर एकदम अन्हराया हुआ था...उसे कुछ दिखाई नहीं दे रहा था...उसे एक औरत का जिस्म मुफ्त में मिल रहा था...जो उसे वैलेंटाइन डे पर फूल भी देती थी...जो कहने को मेरी औरत थी...मगर रहती उसके पास थी...दिन भर...रात भर...
जब मुझे पूरा यकीन हो गया और मुझे सारे सबूत मिल गए...तब मैंने आलोक कुमार सिंह के खिलाफ मेरी बीवी से अवैध सम्बन्ध रखने के लिए भारतीय दंड सहिंता की दफा 497 के तहत मुक़दमा दर्ज करा दिया...और अपनी बात को साबित करने के लिए मैंने बैंक के एचआर मैनेजर, इंदिरा गांधी हवाई अड्डा, दिल्ली के ट्रैफिक आफिसर, वोडाफोन के मैनेजर और अमौसी एअरपोर्ट, लखनऊ के पास मौजूद फाइव स्टार होलीडे रिसोर्ट के फाईनान्सिअल कंट्रोलर की गवाही करवा दी....
अब मामला कोर्ट में है...और आलोक कुमार के खिलाफ कोर्ट में हाजिर होने के लिए सम्मन जारी हो चुका है....
मेरे दोस्त मुझसे कहते हैं...”तू कैसा आदमी है...? बीवी अगर बदचलन हो जाए तो लोग लात मारकर घर से बाहर निकाल देते हैं...तू अभी भी उसका इन्तजार कर रहा है....?” तो मैं कहता हूँ...”हाँ...उसकी भी वजह है...वजह ये है कि...मेरे दो बच्चे अभी भी रीमा के पास हैं...अगर मैंने रीमा को वापस नहीं लिया तो बच्चे भी हाथ से जायेंगे....और रीमा ने वैसे भी तो पूरी कोशिश कर ही डाली है ताकि मेरे बच्चे भी मुझे भूल जाएँ...उसने रमन और नमन के स्कूल के आईकार्ड से बाप का नाम भी हटवा दिया है...मैंने कोर्ट से इजाजत मांगी है अपने बच्चों की कस्टडी के लिए....एक औरत का ये भी रूप हो सकता है...मुझे अब भी यकीन नहीं होता है...
एक बाप को अपने बच्चों को अपने पास रखने के लिए कोर्ट की इजाजत लेनी पड़ती है...क्योंकि माँ ज्यादा पैसे कमाती है...और अपने बच्चों को सिखाती है कि अगली बार अगर मैं मिलने जाऊं तो बच्चे खुद मुझे मना कर दें...तभी तो इस बार जब मैं रमन और नमन से मिलने गया तो मेरे अपने बच्चों ने मुझसे कहा, “आप हमारे पापा नहीं हो...आप हमसे मिलने मत आया कीजिए...”
और फिर मेरी जो इतनी बेइज्जती हुई है....उसका क्या...मैंने तो रीमा को घर से लात मार के नहीं निकाला...मैंने तो उसे एक थप्पड़ भी नहीं मारा....और उसने मेरे अंदर के आदमी के मुंह पर जो थप्पड़ मारे हैं....उनका क्या...? इतनी आसानी से मैं कैसे छोड़ दूँ....कैसे छोड़ दूँ...अपने दो बच्चों को....जो मेरे अपने हैं...जिन्हें नहीं मालूम कि...उनकी माँ ने क्या-क्या किया है...? जिन्हें नहीं मालूम कि एक गोरे चहरे के पीछे कितना काला मन छिपा हुआ है...? उन्होंने तो सिर्फ माँ का पहलू देखा है...एक औरत का दूसरा पहलू तो उन्होंने देखा ही नहीं है...
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कैस जौनपुरी
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(चित्र - ज्ञानेन्द्र टहनगुरिया की कलाकृति)
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