शशि पाठक का कहानी संग्रह - अपरिमित - (2) इन्तजार में

SHARE:

अपरिमित (कहानी संग्रह) श्रीमती शशि पाठक   प्रकाशक जाह्‌नवी प्रकाशन दिल्‍ली - 32 © श्रीमती शशि पाठक इन्‍तजार में कमरे से आती आवाज...

अपरिमित

(कहानी संग्रह)

श्रीमती शशि पाठक

 

प्रकाशक

जाह्‌नवी प्रकाशन दिल्‍ली-32

© श्रीमती शशि पाठक

इन्‍तजार में

कमरे से आती आवाज से मेरे कदम वहीं ठिठक गये। जो सुना उस पर विश्‍वास नहीं हुआ। क्‍या इसी दिन के लिये मैंने अपने स्‍वर्णिम वर्ष भेंट चढ़ा दिये।

‘‘सुनो, ये कब तक हमारी छाती पर मूँग दलती रहेगी?''

‘कौन? मुक्‍ता दीदी, अरे पता नहीं.... खुद सोचती भी नहीं।'

भैया-भाभी का यह वार्तालाप मेेरे अन्‍तस को हिला गया, काश मैंने भी अपनी दुनिया बसा ली होती। मुझे अपने फैसले पर अब गुस्‍सा आ रहा था। कितनी भाग्‍यशाली थी मैं, अच्‍छे से अच्‍छे रिश्‍ते आ रहे थे। भैया-भाभी उसके बारे में ये विचार रखते हैं। भाभी को तो नहीं लेकिन भइया को तो सब पता है कितना छोटा था वह, जब पिताजी हम सभी को रोता छोड़ इस दुनिया से चले गये थे। रह गये थे तो हम तीन प्राणी, जिसमें मैंने ही उस वक्‍त पूरे-परिवार की जिम्‍मेदारी सँभाली थी। उसने भाभी की बातों का जबाव क्‍यों नहीं दिया। चुपचाप सुनकर, अपनी सहमति भी दे दी भाभी के विचारों को।

क्‍यों किया उसने ऐसा? शायद कोई मजबूरी रही हो। पर ऐसी भी क्‍या मजबूरी जो बहन के लिये ऐसे कटु शब्‍द सुन ले। उसे उसके कर्त्तव्‍य ने धिक्‍कारा तक नहीं। मुझे लगा कि मेरी सारी मेहनत बेकार गई। जब पिताजी का देहान्‍त हुआ था उस वक्‍त मैं इण्‍टर में पढ़ती थी। रात-रात भर जाग कर आगे की पढ़ाई के साथ-साथ नौकरी भी ढूंढती रही। एक दिन मेरी नौकरी भी पक्‍की हो गई।

सुमित उस वक्‍त बहुत छोटा था। कक्षा तीन में पढ़ता था। उसको पढ़ाना भी मेरी दिनचर्या में शामिल था। सुबह जल्‍दी उठना, दैनिक क्रिया से निवृत हो, माँ को दवाई देना फिर जल्‍दी-जल्‍दी सुबह का नाश्‍ता-खाना तैयार कर स्‍वयं भी तैयार होकर अॉफिस जाना। इस बीच सुमित को टिफिन देकर स्‍कूल भेजना हेाता था। शाम को लौट-कर माँ का हाल-चाल लेकर घर के कामों में लगना पड़ता था।

मैं कर्त्तव्‍य को निभाते-निभाते यह भी भूल गई कि अपने बारे में भी आगा-पीछा सोचना है। बेटी की तेजी से बढ़ती जा रही उम्र से, अपाहिज माँ, बेखबर थी। घर-परिवार की चलती गाड़ी से जुड़े उनके स्‍वार्थ उन्‍हें मौन धारण कराये हुए थे। पास-पड़ौसी जब भी मेरी शादी का जिक्र करते तो माँ उन्‍हीं के ऊपर टाल देतीं और इस तरह मैं सब कुछ देखते हुए भी कुछ न बोल पाती। मुझे भी लगता कि मेरे विवाह कर चले जाने पर घर का ढांचा ही चरमरा जायेगा और यही सोच कर कभी-कभी प्रबल होते जाते उम्र के तकाजे को भी मैं सायास दबाती रही।

अपने साथ पढ़ने वाले युवक अभय को मैं पसन्‍द करने लगी थी और वह भी मुझे चाहता था। जब मैंने उससे शादी के बारे में पूछा तो एकदम से खिल उठा- ‘‘अरे तुमने तो मेरे मन की बात कह दी, कहो, कब कर रही हो शादी?''

‘‘अभी नहीं, जिम्‍मेदारियों से निवृत्त हो जाऊँ, तब। तब तक इन्‍तजार कर लोगे?''

‘‘हाँ, क्‍यों नहीं। लेकिन ये सब तो तुम शादी के बाद भी कर सकती हो।'' वह बोला।

‘‘नहीं अभय, शादी के बाद ये तुम्‍हारे और तुम्‍हारे परिवार के साथ नाइंसाफी होगी।''

‘‘अभी तक तो तुम अकेली हो, शादी के बाद हम दोनों मिलकर जिम्‍मेदारियों को उठायेंगे।''

‘‘नहीं अपनी जिम्‍मेदारियां मैं स्‍वयं ही उठाऊंगी।''

‘‘जैसी तुम्‍हारी मर्जी, किन्‍तु बेहतर ही रहता कि.....।''

उसके बाद कई वर्ष बीत गये। अभय ने इस बीच कई बार मुझसे कहा। किन्‍तु जब मेरी जिद और मुझे जिम्‍मेदारियों से मुक्‍त होते न देखा तो हार कर चुप हो गया।

फिर सुनने में आया कि उसने शादी कर ली। कुछ दिन तो मन बेचैन रहा लेकिन फिर सब सामान्‍य हो गया। जिम्‍मेदारियों को पूरा करते-करते उम्र तेजी से बढ़ती जा रही थी और अब मैंने शादी के बारे में सोचना भी छोड़ दिया था।

भाई की शादी के बाद सोचा कि चलो कुछ तो राहत मिली। मेरे साथ की सभी लड़कियां दो-दो, तीन-तीन बच्‍चों की माँ बन गईंथीं। मायके आने पर वह मुझसे मिलने अवश्‍य आतीं। उन्‍हें देख कर मेरे मन में नारी सुलभ एक टीस सी उठती लेकिन मैं ऊपर से प्रसन्‍न होने का नाटक करती।

‘‘दीदी-मेरा टिफिन तैयार हो गया क्‍या? मुझे अॉफिस के लिए देर हो रही है।''

‘‘हाँ तैयार है।'' मैंने अतीत से वर्तमान में आते हुए कहा। भैया-भाभी की वार्ता अभी भी मन में हलचल मचा रही थी। पर चाह कर भी मैं कुछ कह न सकी। सुबह-सुबह का वक्‍त है काम पर वैसे जा रहा है कुछ कह दिया तो उसका तो मूड खराब होगा ही मुझे भी तनाव रहेगा। इसलिये चुप्‍पी लगा गई।

दफ्‍तर पहुँची तो चपरासी ने बताया- ‘‘मैडम आपको बॉस बुला रहे हैं।''

‘‘क्‍यों?''

‘‘पता नहीं।''

बॉस के चैम्‍बर में पहुँचकर देखा, वो फोन पर किसी से बात कर रहे थे। बात करने के बाद उन्‍होंने फोन रक्‍खा।

‘‘मे आई कम इन सर'' मैंने शिष्‍टाचारवश पूछा।

‘‘यस-यस बैठिये।''

‘‘आपने बुलाया था सर, कोई काम था?''

‘‘हाँ मैंने बुलाया था आपको, आपका प्रमोशन हो गया है और आपको फरीदाबाद जाना है।''

‘‘अच्‍छा कब?'' मैंने जिज्ञासावश पूछा।

अभी तो मुँह-माँगी मुराद मिल रही थी। घर जाकर ये सब को बताया तो सबके चेहरे उतर गये लेकिन किसी ने कुछ कहा नहीं।

कुछ दिन बाद जाने का समय हुआ। गाड़ी में बैठते ही पैरों पर झुके भाई के सिर पर हाथ रखते ही मन जाने कैसा-कैसा हो गया ‘लोक-लाज के लिये ही ये सब कर रहा है वर्ना उस वक्‍त अपनी बीवी के कटु-बचनों का समर्थन न करता।'

सारे रास्‍ते माँ, भाई-भाभी का चेहरा आँखों के सामने विभिन्‍न मुद्राओं में आता रहा। कभी भाई का बचपन आँखों के आगे आ जाता। एक रात किसी काम से अॉफिस में रुक जाना पड़ा। सुबह आने पर माँ ने बताया कि सुमित, तेरे बिना बहुत बेचैन रहा। न उसने ठीक से खाना खाया और न सोया ही। अब तुम जहाँ तक हो रात में आफिस न रुकने की कोशिश करना वर्ना सुमित बीमार हो जाएगा।

बड़ी मुश्‍किल से मैंने उसे मनाया और ये वादा किया कि आगे से ऐसा न होगा। समय के साथ बहुत कुछ बदल जाता है। सुमित अब पहले वाला सुमित नहीं रह गया, अब तो कुछ जानने के लिए फुर्सत ही नहीं है उसके पास। ठीक भी है आखिर कब तक वो मेरी उँगली पकड़ कर चलता रहेगा। अब खुद समर्थ हो गया है असमर्थ तो मैं हो गई हूँ।

आज अभय की बहुत याद आ रही है। काश! मैंने तब उसका कहना मान लिया होता तो आज मेरी स्‍थिति इतनी दयनीय नहीं होती। लेकिन अब सिवाय पछतावे के क्‍या कर सकती हूँ। गाड़ी एक झटके के साथ रुकी उसके साथ ही मैं वर्तमान में आ गई।

िख्‍ाड़की से बाहर देखा गाड़ी स्‍टेशन से पहले ही रुक गई थी। कुछ देर बाद गाड़ी चल दी और स्‍टेशन पहुँच गई। सामान के नाम पर एक अटैची थी जिसे मैंने उठाया और स्‍टेशन पर उतर गई।

पर्स से पते वाला कागज निकाल कर मैंने पता एक बार फिर पढ़ा। रिक्‍शे वाले को रोका और अटैची उसके रिक्‍शे में रख दी।

27 सेक्‍टर पहुँच कर अपनी सहेली का घ्‍ार ढूढ़ने में कोई दिक्‍कत नहीं हुई। दरवाजा सहेली ने ही खोला। सामने मुझे देख वह मुझसे लिपट गई। बातें करते-करते चाय पी। बातों ही बातों में मैंने अभय के बारे में पूछा तो उसने बताया कि अभय ने शादी कर ली है उसके दो बच्‍चे भी हैं।

उसका जबाव सुनकर मैं मन ही मन बुझ सी गई लेकिन मन को मजबूत किया। इसमें उसकी क्‍या गलती थी, वो तो साथ-साथ चलने को तैयार था पर मैंने ही मना कर दिया था।

तब तो भूत चढ़ा हुआ था न परिवार को किनारे लानेे का। ऐसा क्‍या पता था कि समय बीतते ही सभी आँखें बदल लेंगे। मैं नितान्‍त अकेली रह जाऊँगी।

‘‘क्‍या सोचने लगी?''

‘‘कु... कु.... कुछ-कुछ नहीं'' - मैंने हकलाते हुए कहा।

बात का रुख बदलते हुए मैंने पूछा- ‘‘यहाँ से अॉफिस कितना दूर है?''

‘‘यही कोई दो-तीन किलोमीटर।''

‘‘सवारी तो मिल जाती है न, या पैदल ही जाना पड़ेगा।''

‘‘सवारी मिल जाती है।''

सुबह को दफ्‍तर पहुँच कर इधर-उधर सब तरफ निरीक्षण के दौरान बॉस के चैम्‍बर के सामने की नेम प्‍लेट पढ़ कर मैं चौक उठी। फिर सोचा होगा कोई, एक नाम के और भी तो व्‍यक्‍ति हो सकते हैं। पर मन में शंका हुई, यदि ये वही हुआ अपना वाला अभय तो..... कैसे सामना करूंगी अभय का। लेकिन अब कैसा घबराना, उसने तो शादी कर ही ली, सोचकर अपने मन को तसल्‍ली दी। सोचते-सोचते मैं जाने कब चैम्‍बर में प्रिवष्‍ट हो गई- आईये मिस मुक्‍ता। उसने ऐसे कहा जैसे मेरा ही इन्‍तजार कर रहा हो। बैठिये। सामने बैठे व्‍यक्‍ति को देखते ही मैं समझ गयी कि ये अभय नाम का कोई और व्‍यक्‍ति है जो इस समय उसका बॉस है।

उसका अभय तो जाने कहाँ होगा। काश! वही उसका बॉस होता।

क्‍या सोचने लग गयीं मुक्‍ता जी?

‘‘कु.......कुछ नहीं थैंक्‍यू सर।'' कुर्सी पर बैठते हुए मैंने बॉस की कुर्सी पर बैठे व्‍यक्‍ति को एक बार फिर गौर से देखा।

देखिये मुक्‍ता जी आपके इम्‍मीडियेट बॉस तो तीन महीने के लिए बाहर गये हैं। तब तक उनकी जगह मुझे ही कार्य देखना है। अतः आप अपना कार्य समझ लें।

अच्‍छा! तो सामने बैठे व्‍यक्‍ति का कुछ और नाम है। मैं फिर से अभय नाम के चक्‍कर में उलझ गयी। तीन महीने के लिए बाहर गया अभय उसके वाला ही अभय है या कोई और व्‍यक्‍ति है।

आप फिर से किसी सोच में डूब गयीं क्‍या?

नहीं नहीं ये बात नहीं है सर, मैंने झेंपते हुए कहा। सर एक गिलास पानी मंगा सकें तो......... मैंने सूख आये गले को थूक निगल कर तर किया।

हाँ हाँ क्‍यों नहीं।

फिर उसने चपरासी को एक गिलास पानी लाने को कहा।

पानी पीने के बाद कुछ राहत मिली।

फरीदाबाद के दफ्‍तर में ड्‌यूटी रिज्‍यूम किये हुए अभी दो महीने भी नहीं बीते थे। मैं फाइलों में उलझी हुए पेंडिंग कार्यों को निपटाने में व्‍यस्‍त थी कि तभी रिसेप्‍सनिस्‍ट ने इंटरकोम पर सूचना दी कि आपसे कोई मिलने आया है।

रिसेप्‍सन हॉल में जाकर देखा तो चौंक पड़ी, सामने सुमित बैठा था। अरे सुमित तुम! कैसे आना हुआ? मैंने आश्‍चर्य से सुमित को ऊपर से नीचे तक निहारा।

बात यह है दीदी कि मुझे कुछ रुपयों की सख्‍त जरूरत आ पड़ी है।

‘‘अच्‍छा! किसलिए?''

बात यह है दीदी कि....... सुमित ने झिझकते हुए कहना जारी रखा- प्रभा की इच्‍छा है कि एक गाड़ी खरीद ली जाए। ''

अच्‍छी बात है खरीद लो गाड़ी।

लेकिन गाड़ी खरीदने लायक मेरे पास रुपये नहीं हैं यदि आप कुछ सहायता कर दें तो, यही कोई 50-60 हजार की।

50-60 हजार! मेरे पास कहाँ हैं इतने रुपए? जितना भी वेतन मिलता था सारा तुम लोगों पर ही खर्च करती रही हूँ अब तक फिर रुपये क्‍या पेड़ पर लगते हैं जो टहनी हिलाकर तोड़ लाऊं? उस दिन की भइया भाभी की बातें स्‍मरण होते ही मेरी वाणी में कटुता आ गयी।

प्रभा कह रही थी कि दीदी अपने भविष्‍य निधि खाते से.......

अच्‍छा तो रुपयों के लिए आज दीदी हो गयी, वैसे प्रभा की छाती पर दाल दल रही थी मैं।

मैंने मन ही मन सोचा पर सुमित को नहीं बोला कि मैंने उस दिन उन दोनों की बातें सुन लीं थीं और इसलिए मैंने अपना ट्रांन्‍सफर भी फरीदाबाद करा लिया था। प्रकट में तो मैंने बस इतना ही कहा कि मेरे विभाग में भविष्‍य निधि से पैसा इतनी आसानी से नहीं निकाला जा सकता।

सुनकर सुमित निराश होकर चला गया। घर आकर मैं निढाल सी बिस्‍तर पर पड़ गयी। एक ओर तो मेरे अन्‍दर सुमित और उसकी बहू के दुर्व्‍यवहार के लिए क्रोध उत्‍पन्‍न हो रहा था तथा दूसरी ओर जाते समय उसका उदास चेहरा मेरे सामने बार-बार प्रगट होने लगा। मन में अन्‍तर्द्वन्‍द्व मचा हुआ था। मेरा अहं प्रबल होकर सुमित की कोई भी सहायता न करने के लिए बाध्‍य करता वहीं हृदय कुछ और ही कहता- ‘क्‍या करेगी अब पैसा इकट्ठा करके। किसके लिए इकट्ठा कर रही है, देर सबेर सुमित के ही काम आना है। जब इसकी परवरिश में अपने जीवन को दाव पर लगा ही चुकी है तो करने दे सुमित हो जीवन का सुख भोग। अभय के कितने प्रस्‍तावों को ठुकराकर स्‍वयं ही तो कांटों की राह चुनी थी मैंने। अब अभय ने भी कर ली शादी। फिर किसका इंतजार है जो...... और अब इस ढलती उम्र में कौन करेगा तुझसे शादी।'

ठीक है फिर, दे देती हूँ एप्‍लीकेशन भविष्‍य निधि से रुपये निकालने के लिए। करने दो सुमित को मौज-मस्‍ती। कुछ लोगों का जन्‍म ही मौज करने के लिए होता है और कुछ का ता उम्र कष्‍ट भोगने के लिए।

मैडम आपको बॉस ने याद किया है।

पीयोन ने आकर कहा तो मेज की फाइलों को समेटते हुए वह बॉस के चैम्‍बर में पहुँच गयी -

‘‘मे आई कम इन सर''- उसने बॉस के चैम्‍बर में झाँकते हुए कहा।

‘‘यस, कम इन।'' फोन पर बात करते-करते ही बॉस ने कहा।

बॉस के चैम्‍बर में प्रवेश कर जैसे ही उसकी नजर सामने बैठे बॉस पर गयी तो वह एकदम से उछल पड़ी - अभय! अरे, यह तो उसका ही अभय है। मैंनेजर की कुर्सी पर। अच्‍छा हुआ कि यह उसी का अभय निकला। सोचकर मन ही मन वह प्रसन्‍न हुयी। पर दूसरे ही झण उसकी खुशी कपूर की भांति उड़ गयी। क्‍या फर्क पड़ता है अब, जब अभय ने शादी कर ही ली है, दो बच्‍चे भी बता रही थी अभय पर उसकी सहेली। तो फिर वह उसके वाला अभय हो या कोई और।

अभय ने रिसीवर क्रैडिल पर रखते हुए सामने देखा तो वह भी चौंक उठा- ‘‘अरे तुम! यहाँ?''

‘‘हाँ मैं। आप विदेश गये हुए थे न सर, उसी दौरान मेरा यहाँ के लिए स्‍थानान्‍तरण हो गया था और इन तीन महीनों में मैं पूरे असमंजस की स्‍थिति में रही, चैम्‍बर के बाहर लगी नेमप्‍लेट को पढ़कर-पढ़कर कि आप वही हैं या कोई और........

और जब तीन महीने पूरे हुये तो मैं वही निकला जो .......... अभय ने वही चिर-परिचित ठहाका लगाया। तो मैं स्‍वप्‍न लोक से जागी होऊं जैसे।

जी सर, आपने मुझे बुलाया था?

हाँ, बैठो मुक्‍ता, कैसे हैं सब लोग?

अभय ने सभी की राजी खुशी पूछी।

सुमित की शादी में मैंने आप लोगों का बहुत पता लगाया सर, लेकिन तब आप विदेश गये हुए थे।

हाँ, इंजीनियरिंग पढ़ने गया था।

‘‘हाँ, मैंने सुना था। ये भी कि आपने वहीं पर अपनी शादी भी..... दो बच्‍चे भी हैं आपके?''

सुनकर अभय ने फिर से ठहाका लगाया फिर सामान्‍य होते हुए बोला ‘‘अच्‍छा तुम सुनाओ। सब जिम्‍मेदारी पूरी हो गई या अभी भी बची है कोई?''

‘‘हाँ, हो गईंपूरी। सुमित की नौकरी लग गई। शादी हो गई। वो अपने बच्‍चों में मस्‍त है। माँ तो अपना समय पूरा कर चली गइर्ं।'' मैंने ठंडी आह भरते हुए कहा तो अनायास ही मेरी आँखों की कोर गीली हो उठी और कंठ अवरूद्ध हो आया।

फिर ये भविष्‍य निधि से रुपये निकालने के लिए किसलिए आवेदन किया है। ऐसा क्‍या काम आ पड़ा अचानक?

दरअसल रुपयों की मुझे नहीं सुमित को जरूरत है। वह आया था यहाँ। पहले तो मैंने सोचा क्‍यों दूँ उसे, पर बाद में लगा कि अब मेरे जीवन में आकर्षण ही क्‍या है। जिसके लिए इकट्ठा करूँ, सब उसी को तो मिलना है। इसलिए आवेदन दिया था। वैसे अभय ........ मैंने आपकी बात न मानकर अपने साथ बहुत अन्‍याय किया.... लेकिन अब समय बीतने पर पछताने से क्‍या लाभ.... खैर मेरी छोड़ो, अपनी सुनाओ मिसेज और दोनों बच्‍चे कैसे हैं?''

अभय ने एक बार फिर ठहाका लगाया - ‘‘तुम किनकी बात कर रही हो मुक्‍ता। मैं तो अभी तक तुम्‍हारी जिम्‍मेदारियों के पूरे होने के इन्‍तजार में हूँ।''

‘क्‍या! मैं आश्‍चर्य से उछल पड़ी।'

‘‘हाँ मुक्‍ता।''

‘‘लेकिन वो मेरी सहेली ने तो बताया था कि......''

‘‘नहीं, तुम्‍हारी सहेली ने मजाक किया होगा।''

मैंने मन ही मन ईश्‍वर को धन्‍यवाद दिया। लेकिन प्रत्‍यक्ष में कुछ न बोली।

‘अब क्‍या सोचने लगी मुक्‍ता। कोई और जिम्‍मेदारी तो याद नहीं आ गई।'

सुनकर हम दोनों ही ठहाका लगा कर हँस पड़े- ‘‘नहीं अभय, अब नहीं।''

l

(क्रमशः अगले अंकों में जारी...)

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: शशि पाठक का कहानी संग्रह - अपरिमित - (2) इन्तजार में
शशि पाठक का कहानी संग्रह - अपरिमित - (2) इन्तजार में
http://lh4.ggpht.com/-ctkbHgSIupc/TfHA4U7la_I/AAAAAAAAJ9Y/PB27QLwYMfM/Aparmit%252520%252528Custom%252529%25255B3%25255D.jpg?imgmax=800
http://lh4.ggpht.com/-ctkbHgSIupc/TfHA4U7la_I/AAAAAAAAJ9Y/PB27QLwYMfM/s72-c/Aparmit%252520%252528Custom%252529%25255B3%25255D.jpg?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2011/06/2.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2011/06/2.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content