नए पुराने - मार्च 2011 - 13 : बुद्धिनाथ मिश्र - संचयन

SHARE:

आरक्षण वान छाया हुई आरक्षित सभी जलस्रोत भी हो गये आरक्षित है अरक्षित सिर्फ कोमल प्राण कस्तूरी मृगों का। साल -सालों से बँधा जल टू...

आरक्षण

वान छाया हुई आरक्षित

सभी जलस्रोत भी हो गये आरक्षित

है अरक्षित सिर्फ कोमल प्राण

कस्तूरी मृगों का।

साल-सालों से बँधा जल

टूटकर ऐसा बहा है-

कंठ तक पानी गया भर

तपोवन के आश्रमों में।

हाथ में कीचड़-सने कुश

ले खड़े हैं ब्रह्मचारी

लग गए कीड़े विषैले

जाति के कल्पद्रुमों में।

 

 

नये पुराने

(अनियतकालीन, अव्‍यवसायिक, काव्‍य संचयन)

मार्च, 2011 

बुद्धिनाथ मिश्र की रचनाधर्मिता

पर आधारित अंक

कार्यकारी संपादक

अवनीश सिंह चौहान

संपादक

दिनेश सिंह

संपादकीय संपर्क

ग्राम व पोस्‍ट- चन्‍दपुरा (निहाल सिंह)

जनपद- इटावा (उ.प्र.)- 206127

ई-मेल ः abnishsinghchauhan@gmail.com

सहयोग

ब्रह्मदत्त मिश्र, कौशलेन्‍द्र,

आनन्‍द कुमार ‘गौरव', योगेन्‍द्र वर्मा ‘व्‍योम'

----

आरक्षण

वान छाया हुई आरक्षित

सभी जलस्रोत भी हो गये आरक्षित

है अरक्षित सिर्फ कोमल प्राण

कस्तूरी मृगों का।

साल-सालों से बँधा जल

टूटकर ऐसा बहा है-

कंठ तक पानी गया भर

तपोवन के आश्रमों में।

हाथ में कीचड़-सने कुश

ले खड़े हैं ब्रह्मचारी

लग गए कीड़े विषैले

जाति के कल्पद्रुमों में।

कुंभ के घनपुष्प आरक्षित

सभी आसन सभा के हुए आरक्षित

है अरक्षित सिर्फ कलरव

ज्योति-आराधक खगों का।

है व्यवस्था-सूर्य के रथ में

जुतें बैसाखनंदन

हयवदन के मुंड से हो

अर्चना गणदेवता की।

है व्यवस्था-मानसर पर

मोर का अधिकार होगा

हंस के हिस्से पड़ेंगी

झाड़ियाँ बस बेहया की।

पवन शीतल हुआ आरक्षित

सभी मधुमास भी हो गए आरक्षित

है अरक्षित आदिकवि का छंद

करुणामय दृगों का।

रात हुई है

रात हुई है चुपके-चुपके

इन अधरों से उन अधरों की

बात हुई है चुपके-चुपके।

नीले नभ के चाँद-सितारे

मुझ पर बरसाते अंगारे

फिर भी एक झलक की खातिर

टेर रहा हूँ द्वारे-द्वारे।

मेरे मन की छाप-तिलक पर

घात हुई है चुपके-चुपके।

इक चिड़िया ने आकर कैसे

नीड़ बनाया, देख रहा हूँ

भीतर बाहर कैसे एक

नशा-सा छाया, देख रहा हूँ।

देख रहा हूँ कैसे शह से

मात हुई है चुपके-चुपके।

मेरा उससे परिचय इतना

जितना ओसबिंदु का तृण से

कोई पता नहीं कब जलकण

टूट गिरे सीपी में घन से।

इक हिरना की आँखों में

बरसात हुई है चुपके-चुपके।

ओ मेरी मंजरी

मेरे कंधे पर सिर रखकर

तुम सो जाओ

ओ मेरी मंजरी आम की।

मैं तुममें खो जाऊँ

तुम मुझमें खो जाओ

ओ मेरी मंजरी आम की।

ये पाँवों के छाले

बतलाते हैं, तुमने

मेरी खातिर कितनी

पथ की व्यथा सही है।

पीर तुम्हारी हर लूँ

यह चाहता बहुत हूँ

किंतु कंठ से मुखरित

होते शब्द नहीं हैं।

मेरी शीतल चंदन वाणी

तुम हो जाओ

ओ मेरी मंजरी आम की।

वह भी कैसा सम्मोहन था

खिंचकर जिससे

आये हम उस जगह

जहाँ दूसरा नहीं है।

यह भी क्रूर असंगति

जीनी पड़ी हमी को

घर अपना है, पर अपना

आसरा नहीं है।

बीज बहारों के पतझर में

तुम बो जाओ

ओ मेरी मंजरी आम की।

मेरे कंधे पर सिर रखकर

तुम सो जाओ

ओ मेरी मंजरी आम की।

सावन के अंधो!

कब तक पूरब को पश्चिम का

पाठ पढ़ाओगे?

नंदन कानन को मरुथल की

राह दिखाओगे?

मरी हुई सीपियाँ समय की

कब तक बेचोगे?

गाजर घास अविद्या की

तुम कब तक सींचोगे?

धरती की धड़कन को जानो

सावन के अंधो!

नभ के इंगित को पहचानो

सावन के अंधो!

वट-पीपल के वृक्ष नहीं,

तुम बोन्साई घर के

धूप-हवा से दूर रहे

हो ज्ञान बिना जड़ के।

गौरांगों के गमलों में

मधुमास तुम्हारा है

अंधा-बहरा, पतझर का

इतिहास तुम्हारा है।

पहले तो अपनों को जानो

सावन के अंधो!

फिर जग का उत्कर्ष बखानो

सावन के अंधो!

तम से निकल ज्योति को पाना

शिक्षा की मंजिल

धर्म-सत्य का दीप जलाना

शिक्षा की मंजिल।

रस्सी को जो साँप बताए

ज्ञान नहीं होता

काटे जो भविष्य का तरु

विज्ञान नहीं होता

सारा देश असहमत मानो

सावन के अंधो!

मुक्त करो खुद को नादानो

सावन के अंधो!

चाँद जरा धीरे उगना

चाँद, जरा धीरे उगना।

गोरा-गोरा रूप मेरा।

झलके न चाँदनी में

चाँद, जरा धीरे उगना।

भूल आयी हँसिया मैं गाँव के सिवाने

चोरी-चोरी आयी यहाँ उसी के बहाने

पिंजरे में डरा-डरा

प्रान का है सुगना।

चाँद, जरा धीरे उगना।

कभी है असाढ़ और कभी अगहन-सा

मेरा चितचोर है उसाँस की छुअन-सा

गहुँवन जैसे यह

साँझ का सरकना।

चाँद, जरा धीरे उगना।

जानी-सुनी आहट उठी है मेरे मन में

चुपके-से आया है जरूर कोई वन में

मुझको सिखा दे जरा

सारी रात जगना।

चाँद, जरा धीरे उगना।

 

संचयन

ऋतुराज एक पल का

बुद्धिनाथ मिश्र

ऋतुराज एक पल का

राजमिस्त्री से हुई क्या चूक,

गारे में बीज को संबल मिला

रजकण तथा जल का।

तोड़कर पहरे कड़े पाबंदियों के

आज उग गया है

एक नन्हा गाछ पीपल का।

चाय की दो पत्तियों वाली फुनगियों ने पुकारा

शैल-उर से फूटकर उमड़ी दमित-सी स्नेह धारा।

एक छोटी-सी जुही की कली

मेरे हाथ आयी और पूरी देह,

आदम खुशबुओं से महमहायी।

वनपलाशी आग के झरने नहाकर

हम इस तरह भींगे कि खुद जी हो गया हलका।

मूक थे दोनों, मुखर थी देह की भाषा

कर गया जादू जुबाँ पर गोगिया पाशा।

लाख आँखें हों मुँदी- सपने खुले बाँटें

वह समर्पण फूल का ऐसा, झुके काँटे।

क्या हुआ जो धूप में तपता रहा सदियों

ग्रीष्म पर भारी पड़ा ऋतुराज इक पल का।

 

जंगलराज

घटता जाए जंगल

बढ़ता जाए जंगलराज

और हाथ पर हाथ धरे

बैठा है सभ्य समाज।

क्या सोचा था और

हुआ क्या क्या से क्या निकला

फूलों जैसा लोकतंत्र था,

काँटों में बदला।

सोमनाथ से चली अहिंसा

पहुँची होटल ताज।

कहाँ गये वे अश्वारोही

राजा और वजीर

धुँधली पड़ी सभी तेजस्वी

पुरुषों की तस्वीर

खेतों पर कब्जा मॉलों का

उपजे कहाँ अनाज?

क्या भाषा, क्या संस्कृति

अवगुणता का हुआ विकास

पब के बाहर पावन तुलसी-

पीपल हुए उदास।

कड़वी लगे शहद, मीठी

पत्तियाँ नीम की आज!

 

संक्रांति

ढाल रही खुद को

बल्लू की भाषा में दादी।

खल में कूट-कूट शब्दों को

चिपटा कर देती

अपने गालों में बल्लू की

साँसें भर लेती

देख रही पीछे, बचपन की

आशा में दादी।

अपना क ख मिटा-मिटाकर

ए बी सी लिखती

अनजाने फल-फूलों का

अनुमानित रस चखती

नील कुसुम-सी फबती

घोर निराशा में दादी।

गौरैया-सी पंख फुलाकर

नाच रही घर में

जैसा सुनती, वैसा गाती

बल्लू के स्वर में

गंगाजली डुबोती

नदी विपाशा में दादी।

 

गृहस्थ

प्राण-प्रतिष्ठा कर दी मैंने

सारे देवों के विग्रह में

फिर भी मूक-बधिर-अंधे बन

वे सब मंदिर में स्थापित हैं।

मैं गंगोत्री से गंगाजल

ला उनका करता हूँ अर्चन

अपने खूँटे की गायों के

घी से करता हूँ नीराजन

फिर भी उनका पलक न झपके

आँखों से ना आँसू टपके

भक्तों की बेचैन भीड़ में

मैं पिसता हूँ, वे पुलकित हैं।

मुझ गृहस्थ को दाना-पानी

जुट जाए तो सफल मनोरथ

कुछ संन्यासी होकर भी

चाहते पालकी, चांदी का रथ

संत-रंग के कलाकार सब

ईश्वर से ज्यादा पूजित हैं।

बैलों के संग सदा सुखी थे

डीजल पीकर मरी किसानी

भूत-प्रेत से ज्यादा डरती

टोपी से मित्रो मरजानी

माटी की मूरतें मौन हैं

चुप हैं सारे देवी-देवा

श्रद्धा के कच्चे धागे पर

चलने वाले लोग व्यथित हैं।

 

भोले बाबा

सड़क किनारे, बित्ते भर का

टूटा-फूटा खड़ा शिवाला

उसमें कैसे करें गुजारा

देवों के, असुरों के बाबा!

मुकुट नहीं है, बाबा के सिर

काँटेदार धतूरे के फल

या रग्घू के गले बताशे

या फिर राघव के नीलोत्पल।

सड़क किनारे छत्रक जैसा

बेढंगा-सा उगा शिवाला

जहाँ पालते पशु आवारा

मनुजों के, दनुजों के बाबा!

पेट्रो के इस युग में उनके

गंगाजल की माँग नहीं है

इसीलिए बाबा के घर में

देखो भूजी भाँग नहीं है।

सड़क किनारे नित असँख्य

संतानों के संग

सोता है बूढ़ा बेचारा

जीवों-मरजीवों के बाबा!

पाट-पटोरा, सोना-चाँदी

जो भरते हैं औरों के घर

वे देवों के देव स्वयं

रहते मसान में, बने दिगंबर।

सड़क किनारे, बड़े जतन से

विश्वासों पर टिका शिवाला

जहाँ आज डाले हैं डेरा

नंगो के, चंगों के बाबा!

 

रिश्ता भींग गया

साथ चले जब एक राह पर

दोनों सूखे थे

तय करते दूरियाँ दुबारा

रिश्ता भींग गया।

कदम दो कदम तक थी

केवल बातें ही बातें

रुई हाथ में, सोच रहे

कैसे तकली कातें।

लोगों की टोकाटाकी से

बच-बचकर चलते

पहुँचे जोड़ा ताल

कि कोरा रिश्ता भींग गया।

कभी-कभी गहरी साँसें भी

घनी छाँह देतीं

कौए की ममता कोयल के

अंडे है सेती।

पथ की धूल पाँव से सिर तक

चढ़ी सोनपाँखी

बादल हुआ पसीना

सारा रिश्ता भींग गया।

तन की रीत गाँव में मन के

झूठी लगती है

चोरी की खट्टी अमिया भी

मीठी लगती है।

पार कर गया मरुथल

लेकर सपना सागर का

पानी के कोड़ों का मारा।

रिश्ता भींग गया।

 

फागुन आया

फागुन आया

फागुन के संग आया है ऋतुराज

हाथों में पुष्पांजलि लेकर

खड़ा हुआ वन आज।

राजा की अगवानी है

मामूली बात नहीं

वे भी पौधे फूले दम भर

जिनकी जात नहीं।

चार दिनों का सिंहासन भी

बड़ा नशीला है

बाँट रहे सबको अशर्फियाँ

बड़े गरीबनवाज।

गोद हिमालय की हो

या हो विंध्य पार का गाँव

कोयल का स्वर एक रंग है

ज्यों ममता की छाँव।

गंगातट की अमराई से

कावेरी तट के

झाऊवन तक एक प्रेम की

भाषा का है राज।

मारे गये हजार बोलियाँ

बोल-बोल कर आप

दरका हुआ दर्प का दर्पण

धन है या अभिशाप!

यहाँ-वहाँ के तोता-मैना

बतियाते खुलकर

तरस गया सुख-दुख बतियाने को

यह सभ्य समाज!

 

मैं चलता

मैं चलता

मेरे साथ चला करता पग-पग

वह सत्य कि जिसको पाकर

धन्य हुआ जीवन।

मेरे समकक्ष न कोई साधू-संन्यासी

मेरी स्पर्धा सर्वदा स्वयं ईश्वर से है

उसके दर्शन की जरा नहीं चाहत मुझमें

वह कहाँ नहीं है, यही सवाल इधर से है।

मैं जगता

मेरे साथ जगा करती धरती

मावस में चाँद-सितारों से

अधभरा गगन।

जिस दिव्य पुरुष की प्रतिमा को पूजता जगत

वह तो अधिपति का छोटा-सा अभिकर्ता था

भूमिका निभायी उसने मात्र ‘करण’ की थी

कैसे समझाऊँ, कभी नहीं वह ‘कर्ता’ था।

मैं पलता

मेरे साथ पला करता मोती

धर्म का, काम की सीपी में

सम्पुटित नयन।

कर चित्रगुप्त मुर्दाघर का लेखा-जोखा

आँकना मुझे है तेरे वश की बात नहीं

हर पाप-पुण्य में मेरे, था वह साथ रहा

जिसको छू पाने की तेरी औकात नहीं

मैं ढलता

मेरे साथ ढला करता सूरज

फिर उगने को

कर प्रातः का संध्या वंदन।

 

लाल पसीना

जहाँ गिरा है लाल पसीना।

वह काशी है, वही मदीना।

नाम देश का भले और हो

वह भारत है, ताने सीना।

अनपढ़ और गंवार भले था

गिरमिटिया लोगों का जत्था

तुलसी के रामजी साथ थे

फिर क्यों समझें उन्हें निहत्था।

जहां गये हम, नई भूमि पर

नये सिरे से सीखा जीना।

छोटा है भूगोल भले ही

भारत का इतिहास बड़ा है

नहीं तख्त के लिए आजतक

हमने सच के लिए लड़ा है।

धोखा बार-बार खाया पर

नहीं किसी का है हक छीना।

हम तो अमरबेल हैं, केवल

साँस ले सकें, इतना काफी

खाली हाथ न लौटे साधू-

श्वान द्वार से, इतना काफी।

कभी नहीं आराम लिखा है

सावन हो या जेठ महीना।

 

राजा के पोखर में

ऊपर-ऊपर लाल मछलियाँ

नीचे ग्राह बसे।

राजा के पोखर में है

पानी की थाह किसे!

जलकर राख हुई पदमिनियाँ

दिखा दिया जौहर

काश कि वे भी डट जातीं

लक्ष्मीबाई बनकर।

लहूलुहान पड़ी जनता की

है परवाह किसे।

कजरी-वजरी, चैता-वैता

सब कुछ बिसराए

शोर करो इतना कि

कान के पर्दे फट जाएँ।

गेहूँ के सँग-सँग बेचारी

घुन भी रोज पिसे।

सूखें कभी जेठ में

सावन में कुछ भीजें भी

बड़ी जरूरी हैं ये

छोटी-छोटी चीजें भी

जाने किस दलदल में हैं

सारे नरनाह फँसे।

 

निकला कितना दूर

पहले तुम था, आप हुआ फिर

अब हो गया हुजूर।

पीछे-पीछे चलते-चलते

निकला कितना दूर।

कद छोटा है, कुर्सी ऊँची

डैने बड़े-बड़े

एक महल के लिए न जाने

कितने घर उजड़े।

वयोवृद्ध भी ‘माननीय’

कहने को हैं मजबूर।

पूछ रहा मुझसे प्रतिक्रिया

अपने भाषण की

जिसको लिखकर पायी मैंने

कीमत राशन की।

पाँव नहीं धरता जमीन पर

इतना हुआ गुरूर!

हर चुनाव के बाद आम

मतदाता गया छला

जिसकी पूँछ उठाकर देखा

मादा ही निकला।

चुन जाने के बाद हुए

खट्टे सारे अंगूर।

 

देवदार

जंगल से आया है समाचार

कट जाएँगे सारे देवदार।

देवदार हो गये पुराने हैं

पेड़ नहीं, भुतहे तहखाने हैं

उन बूढ़ी आँखों को क्या पता

पापलरों के नये जमाने हैं।

रह लें वे तली बन शिकारे की

अश्वत्थामाओं में हों शुमार।

घूम-घूम कह गये गड़ाँसे हैं

ठीक नहीं ज्यादा हिलना-डुलना

बाँसवनों ने तो दम साध लिया

बंद हुआ बरगद का मुँह खुलना।

मरी हुई सीप थमाकर लहरें

मोती ले गयी सिंधु से बुहार।

नाप रहा पेड़ों को आराघर

कुर्सियाँ निकलती हैं इतराकर

बिकने को जाएँगी पेरिस तक

नाचेंगी विश्वसुंदरी बनकर।

कौन सुने, ओसों के भार से

दबी हरी दूबों का सीत्कार!

 

गंगोजमन

और सब तो ठीक है

बस एक ही है डर

आँधियाँ पलने लगीं

दीपावली के घर।

हर तरफ फहरा रही

तम की उलटबाँसी

पास काबा आ रहा

घुँधला रही कासी।

मंत्रणा समभाव की

देते मुझे वे लोग

दीखता जिनको नहीं

अल्लाह में ईश्वर।

नाव जर्जर खे रही

टूटी हुई पतवार

अंग अपने ही कटे

शिवि की तरह हर बार।

हम चुकाते रह गये

गंगोजमन का मोल

रंग जमुना का चढ़ाया

शुभ्र गंगा पर।

बँट रही मुँह देखकर

रोली कहीं गोली

मार गुड़ की सह रही

गणतंत्र की झोली।

बाँटते अंधे यहाँ

इतिहास की रेवड़ी

और गूँगे हम, बदलते

फूल से पत्थर।

 

फटेहाल भारत ने

फटेहाल भारत ने जब भी

अर्ज किया दुखड़ा।

नई इंडिया ने गुस्साकर

फेर लिया मुखड़ा।

चर्चा उसने जरा चलायी

महँगाई की थी

लगे आँकड़े फूटी झांझ

बजाने उद्यम की।

उसने मुँह खोला ही था

खेतों के बारे में

सौ-सौ चैनल देने लगे

पिछड़ने की धमकी।

मुट्ठी में कसकर मुआवजे के

रुपये थोड़े

अपने खेतों पर बुलडोजर

चलता देख गड़ा।

बहुत किया तप-त्याग

धूप-वर्षा की खेती में

गयी ‘पूस की रात’ न होगा

अब ‘गोदान’ नया।

परदेसी कंपनियाँ आकर

फसल निचोड़ेंगी

ऐश करो मॉलों में जाकर

चीखो मत कृपया।

पिछड़ गये प्रतिभा के बेटे

नये जुआघर में

जिसका ‘उनसे’ तार जुड़ा है

वही हुआ अगड़ा।

देख चुका है ग्राह

मछलियों का अंधा जनमत

कत्लगाह की ओर जा रही

भेड़ों की किस्मत।

सबके हैं प्रस्थान-बिंदु

पर संगम-बिंदु नहीं

तीन कनौजी तेरह चूल्हे-

वालों की ताकत।

मौन रही पूरी पंचायत

बड़े सवालों पर

मामूली प्रश्नों पर

सारा देश लड़ा-झगड़ा।

 

मस्क्वा नदी के तट पर

इस परी के देश में

कितना भरा है प्यार

भाग्य था मेरा कि देखा

रूप का संसार।

संगमरमर की छबीली

मूरतों के संग

धर हिमानी बाँह

होता सुर्ख गेहुवाँ रंग।

लाल-पीले हो रहे हैं

भोजवृक्ष, चिनार।

बिजलियाँ-ही बिजलियाँ

पाताल रेलों में

उग रहे हैं चांद

वन की नई बेलों में।

बहे मस्क्वा नदी

बाहर मौन, भीतर ज्वार।

फड़फड़ाते होठ पर हैं

मुक्ति के मधु बोल

उत्तरी ध्रुव की हवा भी

उड़े पाँखें खोल।

श्वेत हिम का लाल धरती पर

नया शृंगार।

 

पीटर्सबर्ग में पतझर

रात-दिन झलते रहे

रंगीन पत्तों से

वृक्ष वे फिर भी रहे

मेरे लिए अनजान!

वे नहीं थे भोजवृक्षों

की तरह अभिजात

मानते थे वे वनस्पति की

न कोई जात।

पत्तियाँ उनकी सभी

होतीं कनेर-गुलाब

घोर पतझर में दिलाते

फागुनी अनुदान।

उड़ रहे हैं फड़फड़ा

इतिहास-जर्जर पत्र

दिख रही पतझार की

आवारगी सर्वत्र।

डूबता दिन चंदगहना

चीड़वन के पार

लड़कियों के सुर्ख

गालों की तरह अम्लान।

 

उड़ने को तैयार नहीं

चिड़ियाघर के तोते को है

क्या अधिकार नहीं!

पंख लगे हैं, फिर भी

उड़ने को तैयार नहीं।

धरती और गगन का

मिलना एक भुलावा है

खर-पतवारों का सारे

क्षितिजों पर दावा है।

आवारे घन का कोई

अपना घर-द्वार नहीं।

घोर निशा के वंशज

सूरज का उपहास करें

धूप-पुत्र ओस के घरों में

कैसे वास करें।

काँटों में झरबेरी फबती,

हरसिंगार नहीं।

गर्वित था जो कंटकवन का

पंथी होने में

सुई चुभ गई उसे

सुमन का हार पिरोने में।

कुरुक्षेत्र में कृष्ण

मिला करते हर बार नहीं।

 

चलती रही तुम

मैं अकेला था कहाँ अपने सफर में

साथ मेरे, छाँह बन चलती रही तुम।

तुम कि जैसे चाँदनी हो चंद्रमा में

आब मोती में, प्रणय आराधना में

चाहता है कौन मंजिल तक पहुँचना

जब मिले आनंद पथ की साधना में।

जन्म-जन्मों मैं जला एकान्त घर में

और बाहर मौन बन जलती रही तुम।

मैं चला था पर्वतों के पार जाने

चेतना के बीज धरती पर उगाने

छू गये लेकिन मुझे हर बार गहरे

मील के पत्थर विदा देते अजाने।

मैं दिया बनकर तमस से लड़ रहा था।

ताप में, बन हिमशिला, गलती रही तुम।

रह नहीं पाये कभी हम थके-हारे

प्यास मेरी ले गये हर, सिंधु खारे

राह जीवन की कठिन, काँटों भरी थी

काट दी दो-चार सुधियों के सहारे।

सो गया मैं, हो थकन की नींद के वश

और मेरे स्वप्न में पलती रही तुम।

 

संचयन

मैथिली कविताएँ

बुद्धिनाथ मिश्र

गरहाँक जीवाश्म

बाबू पढ़ने छलाह- ‘अ’ सँ अदौड़ी ‘आ’ सँ आमिल तें,

ने दौड़ सकलाह ने मिल सकलाह

सौराठक धवल-धारसँ।

जिनगी भरि करैत रहलाह

पुरहिताइ खाइत रहलाह

चूड़ा-दही बान्हैत रहलाह भोजनी,

अगों आ सिदहाक पोटरी

पूजा वला अंगपोछामे।

हम पढ़लहुँ- ‘अ’ सँ अनार ‘आ’ सँ आम तहिया

नहि बुझना गेल जे ई वर्णमाला

पढ़िते खाससँ आम ‘भ’ जाएब।

एहि देसक आरक्षित शब्दकोश में

फूलक सहस्रो पर्याय भेटत

मुदा फलक एकोटा नहि।

बून-बूनसँ समुद्र बनबाक प्रक्रियामे

फँसल हम ओ भूतपूर्व बून

छी जकरा समुद्र कहएबाक

अधिकारसँ वंचित राखल गेल छै।

आब हमर नेना पढ़ि रहल

अछि- ‘ए’ सँ एपुल ‘बी’ सँ बैग, ‘सी’ सँ कैट

आ धीरे-धीरे उतरि रहल अछि

हमर दू बीतक फ्लैटमे बाइबिलक आदम,

आदम क ईव आ ईवक वर्जित फल।

हमरा परदेसकें मात करत बौआक

बिदेस हमर लगाएल आमक

गाछी बाबुओ देखलनि,

बौओ देखलथि मुदा बौआक

लगायल सेबक गाछ

समुद्र पारक ईडन गार्डेनमे फरत

जत’ ने हेतै आमक वास

ने हेतै अदौड़ीक विन्यास।

लिबर्टीक ईव पोति रहल अछि आस्ते-आस्ते

मधुबनीक चित्रित भीतकें।

देसी गुरूजीक एक्काँ-दुक्काँ

सबैया-अढ़ैया आ

गरहाँ जा रहल’ए भूगर्भमे

जीवाश्म बनबा लेल।

 

चलला गाम बजार

हम ओ कनहा कुकूर नहि

जे बाबू साहेबक फेकल

माँड़े पर तिरपित भ’ जाइ।

हमर आदर नहि करू

जुनि कहू पण्डित, जुनि कहू बाभन

हम सरकारक घूर पर

कुण्डली मारिकें बैसल

ओ कुकूर छी

जकरा महर्षि पाणिनी

युवा आ इन्द्रक पाँतिमे

सूत्रबद्ध केने छथि।

हमर परदादा जहिया

बाध-बोनमे रहै छलाह तहिया बाघ जकाँ

तैनि क’ चलै छलाह।

तहिया गाम छलै दलिद्दरे

मुदा छलै सारिल सीसो।

तहिया गामक माइ-धीकें

दोसरा आँगन जा क’ आगि मँगबामे

नहि छलै कोनो अशौकर्य।

तहिया परिवासँ टोल, टोलसँ गाम

गामसँ जनपद, जनपदसँ राष्ट्र

आ राष्ट्रसँ विश्व-परिवार बनै छलै।

बुढ़-बुढ़ानुस कहै छलाह-

यत्र विश्वं भतत्येक नीडम्!

छाडू पुरना बातकें, बिसरि जाउ

ओ परतन्त्र देसक कुदिन-सुदिन

बिसरि जाए ओ अराँचीक खोइयामे

सैंतल परबल देल जनौ।

आब अहाँ छी परम स्वतन्त्र

वैश्वीकरणक सुनामी

अहाँक चौरा पर साटि रहल अछि

विश्वग्रामक चुम्बकधर्मी विज्ञापन।

एकटा जानल-सुनल अदृश्य हाथ

चटियासँ भरल किलासमे

घुमा रहल छै, ग्लोबकें।

दुनू पैर धेनें टेबुल पर

ग्लोब पर बैसल छै कुण्डली मारि क’

पुरना क्लबक साहेब सभ

आ सहेब्बाक आगाँ बैसल छै

झुण्डक झुण्ड नँगरकट्टा कुकूर।

बदलि दियौ

नवका ‘हिज मास्टर्स वॉयस’क प्रतीक-चिह्न

कुकूरकें एकवचनसँ बहुवचन बना दियौ।

 

लोकसभासँ शोकसभा धरि

महगू बाजल-

कते महगी आबि गेल छै!

दालि-चाउरमे तँ

आगि लागिए गेल छै।

कथीसँ डिबीया लेसी

मटियाक तेलो

उड़नखटोला भ, गेल।

मुदा मन्त्रीजी नहि मानलनि।

लुंगी उठा-उठा क’ देखबै छथि-

एहि विकासशील अर्थव्यवस्थामे

कते सस्त भ’ गेल छै

लोकक जान-परान

महानुभावक चरित्र

बेनगंन मौगीक शील।

कतेक सस्त भ’ गेल छै

पंडिज्जीक पोथी-पतरा

गोसाउनिक गीत

चिनबारक माटि

आ टीवी चैनलक मौसगर मनोरंजन।

मन्त्रीजी नहि देखा रहल छथि

ओ सुरंग जे लोकसभासँ शोकसभा धरि जाइ छै।

ओ नहि देखा रहल छथि

नीलामी घर

जाहमे मैनोक पात बिकाइ छै

करोड़क करोड़मे!

ओ नहि देखा रहल छथि

बघनखा पहिरने हाथ

जे महानसँ महान योजनाक

मूड़ी पकड़ि क’ सौंसे चिबा जाइ छै।

कुसियारक रस बटैछ सदनमे

आ सिट्ठी फेकाइछ

गामक माल-जालक आगाँ।

लोक माल जकाँ

मरि रहल अछि

कि माल-जाल लोक जकाँ-

से कहब कठिन।

 

रेड रिबन एक्सप्रेस

रेड रिबन एक्सप्रेस

घूमि रहल अछि चारू दिस

अश्वमेधक घोड़ा जकाँ।

घराड़ी-बरारीक देवालकें

‘आखी’ लत्ती जकाँ छेकने

लाल तिकोनकें

धकिया रहल छै रेड रिबन।

साम्प्रदायिक रामायणक अन्त्येष्टि क’ क’

स्कूलक मास्टरजी चटिया सभकें

पढ़ा रहल छथिन-कामायन।

कोना सात फेराक लपेटसँ उन्मुक्त भ’

यौन-सुख प्राप्त करी-

नवका फुक्कासँ,

ज्ञान द’ रहल छथिन मास्टरजी

बुझा रहल छथिन-डासग्रामसँ, थ्योरीसँ

नहि बुझला पर प्रैक्टिससँ।

मैकालेक बनाओल

स्कूलक चारू कात

कटि रहल छै मेहदीक वंश

बढ़ि रहल छै नागफेनीक बेढ़।

विषवृक्षक छाँहमे

योगक पटिया उनटा क’

यौन-शिक्षा देल जाइछ।

एकटा सांस्कृतिक धूर्ततासँ

कसल जा रहल अछि ब्रह्मचर्यक

समस्त ज्ञानतन्तु।

फगुआ-देबारीसँ बेसी

पुनीत पर्व अछि एड्स दिवस।

नवताक आवेशी डिप्टी साहेबक

वारण्टी आदेशसँ

केराबक अँकुरी-सन

नान्ह-नान्ह स्कूली छात्र-छात्रा

कण्डोमक प्रचार करैत अछि।

मुँह बबैत बाबा-बाबी

सुनै छथि नव भिक्षु-भिक्षुणीक उपदेश।

एकटा कृत्रिम अदंकसँ

---

(समाप्त)

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: नए पुराने - मार्च 2011 - 13 : बुद्धिनाथ मिश्र - संचयन
नए पुराने - मार्च 2011 - 13 : बुद्धिनाथ मिश्र - संचयन
http://1.bp.blogspot.com/-9OLeskdr0WM/TlJz1M7fU3I/AAAAAAAAKhc/J1Pzbe9xPKU/s1600/naye-purane+%2528Mobile%2529.jpg
http://1.bp.blogspot.com/-9OLeskdr0WM/TlJz1M7fU3I/AAAAAAAAKhc/J1Pzbe9xPKU/s72-c/naye-purane+%2528Mobile%2529.jpg
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2011/08/2011-13.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2011/08/2011-13.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content