जौली अंकल की हास्य व्यंग्य रचना - चांद की सैर

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'' चांद की सैर '' एक शाम वीरू काम से लौट कर अपने घर में टीवी पर समाचार देख रहा था। हर चैनल पर मारपीट, हत्‍या, लूटपाट और सर...

'' चांद की सैर ''

एक शाम वीरू काम से लौट कर अपने घर में टीवी पर समाचार देख रहा था। हर चैनल पर मारपीट, हत्‍या, लूटपाट और सरकारी घोटालों के अलावा कोई ढंग का समाचार उसे देखने को नही मिल रहा था। इन खबरों से ऊब कर वीरू ने जैसे ही टीवी बंद करने के रिमोट उठाया तो एक चैनल पर ब्रेकिंग न्‍यूज आ रही थी कि वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि उन्‍हें चांद पर पानी मिल गया है। इस खबर को सुनते ही वीरू ने पास बैठी अपनी पत्‍नी बसन्‍ती से कहा कि अपने शहर में तो आऐ दिन पानी की किल्‍लत बहुत सताती रहती है, मैं सोच रहा हूं कि क्‍यूं न ऐसे मैं चांद पर ही जाकर रहना शुरू कर दूं। बसन्‍ती ने बिना एक क्षण भी व्‍यर्थ गवाएं हुए वीरू पर धावा बोलते हुए कहा कि कोई और चांद पर जायें या न जायें आप तो सबसे पहले वहां जाओगे। वीरू ने पत्‍नी से कहा कि तुम्‍हारी परेशानी क्‍या है, तुम्‍हारे से कोई घर की बात करो या बाहर की तुम मुझे हर बात में क्‍यूं घसीट लेती हो। वीरू की पत्‍नी ने कहा कि मैं सब कुछ जानती हूं कि तुम चांद पर क्‍यूं जाना चाहते हो? कुछ दिन पहले खबर आई थी चांद पर बर्फ मिल गई है और आज पानी मिलने का नया वृतान्‍त टीवी वालों ने सुना दिया है। मैं तुम्‍हारे दारू पीने के चस्‍के को अच्‍छे से जानती हूं। हर दिन शाम होते ही तुम्‍हें दारू पीकर गुलछर्रे उड़ाने के लिये सिर्फ इन्‍हीं दो चीजों की जरूरत होती है। अब तो सिर्फ दारू की बोतल अपने साथ ले जा कर तुम चांद पर चैन से आनंद उठाना चाहते हो।

वीरू ने बात को थोड़ा संभालने के प्रयास में बसन्‍ती से कहा कि मेरा तुम्‍हारा तो जन्‍म-जन्‍म से चोली-दामन का साथ है। मेरे लिये तो तुम ही चांद से बढ़ कर हो। बसन्‍ती ने भी घाट-घाट का पानी पीया हुआ है इसलिये वो इतनी जल्‍दी वीरू की इन चिकनी-चुपड़ी बातों में आने वाली नही थी। वीरू द्वारा बसन्ती को समझाने की जब सभी कोशिशें बेकार होने लगी तो उसने अपना आपा खोते हुए कहा कि चांद की सैर करना कोई गुडियों का खेल नही। वैसे भी तुम क्‍या सोच रही हो कि सरकार ने चांद पर जाने के लिये मेरे राशन कार्ड पर मोहर लगा दी है और मैं सड़क से आटो लेकर अभी चांद पर चला जाऊगा। अब इसके बाद तुमने जरा सी भी ची-चुपड़ की तो तुम्‍हारी हड्डियां तोड़ दूंगा। वैसे एक बात बताओ कि आखिर तुम क्‍या चाहती हो कि सारी उम्र कोल्‍हू का बैल बन कर बस सिर्फ तुम्‍हारी सेवा में जुटा रहूं। तुम ने तो कसम खाई हुई है कि हम कभी भी कहीं न जायें बस कुएं के मेंढ़क की तरह सारा जीवन इसी धरती पर ही गुजार दें।

बसन्‍ती के साथ नोंक-झोंक में चांद की सैर के सपने लिए न जाने कब वीरू नींद के आगोश में खो गया। कुछ ही देर में वीरू ने देखा कि उसने चांद पर जाने की सारी तैयारियां पूरी कर ली है। वीरू जैसे ही अपना सामान लेकर चांद की सैर के लिये निकलने लगा तो बसन्‍ती ने पूछा कि अभी थोड़ी देर पहले ही चांद के मसले को लेकर हमारा इतना झगड़ा हुआ है और अब तुम यह सामान लेकर कहां जाने के चक्‍कर में हो? वीरू ने उससे कहा कि तुम तो हर समय खामख्‍वाह परेशान होती रहती हो, मैं तो सिर्फ कुछ दिनों के लिये चांद की सैर पर जा रहा हूॅ। वो तो ठीक है लेकिन पहले यह बताओ कि जिस आदमी ने दिल्‍ली जैसे शहर में रहते हुए आज तक लालकिला और कुतुबमीनार नहीं देखे उसे चांद पर जाने की क्‍या जरूरत आन पड़ी है? इससे पहले की वीरू बसन्‍ती के सवालों को समझ कर कोई जवाब देता बसन्‍ती ने एक और सवाल का तीर छोड़ते हुए कहा कि यह बताओ कि किस के साथ जा रहे हो। क्‍योंकि मैं तुम्‍हारे बारे में इतना तो जानती हूं कि तुममें इतनी हिम्‍मत भी नहीं है कि अकेले रेलवे स्टेशन तक जा सको, ऐसे में चांद पर अकेले कैसे जाओगे? मुझे यह भी ठीक से बताओ कि वापिस कब आओगे?

बसन्‍ती के इस तरह खोद-खोद कर सवाल पूछने पर वीरू का मन तो उसे खरी-खरी सुनाने को कर रहा था। इसी के साथ वीरू के दिल से यही आवाज उठ रही थी कि बसन्‍ती को कहे कि ऐ जहर की पुड़िया अब और जहर उगलना बंद कर। परंतु बसन्‍ती हाव-भाव को देख ऐसा लग रहा था कि बसन्‍ती ने भी कसम खा रखी है कि वो चुप नही बैठेगी। दूसरी और चांद की सैर को लेकर वीरू के मन में इतने लड्डू फूट रहे थे कि उसने महौल को और खराब करने की बजाए अपनी जुबान पर लगाम लगाऐ रखने में ही भलाई समझी। वीरू जैसे ही सामान उठा कर चलने लगा तो बसन्‍ती ने कहा कि सारी दुनियां धरती से ही चांद को देखती है तुम भी यही से देख लो, इतनी दूर जाकर क्‍या करोगे? अगर यहां से तुम्‍हें चांद ठीक से नहीं दिखे तो अपनी छत पर जाकर देख लो। बसन्‍ती ने जब देखा कि उसके सवालों के सभी आक्रमण बेकार हो रहे है तो उसने आत्‍मसमर्पण करते हुए वीरू से कहा कि अगर चांद पर जा ही रहे हो तो वापिसी में बच्‍चों के वहां से कुछ खिलाने और मिठाईयां लेते आना।

वीरू ने भी उसे अपनी और खींचते हुए कहा कि तुम अपने बारे में भी बता दो, तुम्‍हारे लिये क्‍या लेकर आऊ? बसन्‍ती ने कहा जी मुझे तो कुछ नहीं चाहिये हां आजकल यहां आलू, प्‍याज बहुत मंहगे हो रहे है, घर के लिये थोड़ी सब्‍जी लेते आना। कुछ देर से अपने सवालों पर काबू रख कर बैठी बसन्‍ती ने वीरू से पूछा कि जाने से पहले इतना तो बताते जाओ कि यह चांद दिखने में कैसा होता है? अब तक वीरू बसन्‍ती के सवालों से बहुत चिढ़ चुका था, उसने कहा कि बिल्‍कुल नर्क की तरह। क्‍यूं वहां से कुछ और लाना हो तो वो भी बता दो। बसन्‍ती ने अपना हाथ खींचते हुए कहा कि फिर तो वहां से अपनी एक वीडियो बनवा लाना, बच्‍चे तुम्‍हें वहां देख कर बहुत खुश हो जायेंगे। कुछ ही देर में वीरू ने देखा कि वो राकेट में बैठ कर चांद की सैर करने जा रहा है। रास्‍ते में राकेट के ड्राईवर से बातचीत करते हुए मालूम हुआ कि आज तो अमावस है, आज चांद पर जाने से क्‍या फायदा क्‍योंकि आज के दिन तो चांद छु्ट्टी पर रहता है।

इतने में गली से निकलते हुए अखबार वाले ने अखबार का बंडल बरामदे में सो रहे वीरू के मुंह पर फेंका तो उसे ऐसा लगा कि जैसे किसी ने उसे चांद से धक्‍का देकर नीचे धरती पर फैंक दिया हो। वीरू की इन हरकतों को देखकर तो कोई भी व्‍यक्‍ति यही कहेगा कि जो मूर्ख अपनी मूर्खता को जानता है, वह तो धीरे-धीरे सीख सकता है, परंतु जो मूर्ख खुद को सबसे अधिक बुद्धिमान समझता हो, उसका रोग कोई नहीं ठीक कर सकता। वीरू के इस ख्‍वाब को देख जौली अंकल उसे यही सलाह देना चाहते है कि ख्‍वाब देखने पर हर किसी को पूरा अधिकार है। लेकिन यदि आपके कर्म अच्‍छे है और आप में एकाग्रता की कला है तो हर क्षेत्र में आपकी सफलता निश्चित है फिर चाहे वो चांद की सैर ही क्‍यूं न हो?

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Jolly Uncle

Associate Member – The Film Writer’s Association, Mumbai

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जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi 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रचनाकार: जौली अंकल की हास्य व्यंग्य रचना - चांद की सैर
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