प्रमोद कुमार चमोली का व्‍यंग्‍य - दुनिया में जीना है तो विवाद कर प्‍यारे

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दुनिया में जीना है तो प्‍यार कर प्‍यारे लगता है ये बात कुछ पुरानी पड़ चुकी है। अब खालिश प्‍यार से काम नहीं चलता है। विवाद बगैर जीना भी कोई...

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दुनिया में जीना है तो प्‍यार कर प्‍यारे लगता है ये बात कुछ पुरानी पड़ चुकी है। अब खालिश प्‍यार से काम नहीं चलता है। विवाद बगैर जीना भी कोई जीना है लल्‍लू। पर लल्‍लू बेचारा क्‍या करे उसे तो शाम की रोटी का जुगाड़ जो करना है। खैर ये तो बेचारा लल्‍लू था पर हम कोई लल्‍लू नहीं। हमका तो कुछ जुगाड़ करना ही पड़ी। अब का करें बिना विवाद रोटी कइसे हजम करें। यानि भइया हम तो कहते हैं की दुनिया में जीना है तो विवाद कर प्‍यारे।

आप अच्‍छा काम कर रहें हैं कोई पहचान नहीं बना पाएँगें पर आपने कोई विवाद कर दिया तो समझो रातों रात आपकी ख्‍याति का परचम लहर लहर लहराने लगेगा। साधारण आदमी से सेलिब्रेटी बनने के लिए मात्र एक शानदार विवाद की जरूरत है। ऐसा नहीं है कि ये मात्र ख्‍याति प्राप्‍त करने की ही विधा है विद्वानों इसके कई नये लाभ भी ढूढ़ लिए है। बाजार भी इस नायाब नुस्‍खे का प्रयोग कर अपना माल बेचने लगा है। प्रकाशक को पुस्‍तक बेस्‍ट सेलर बनानी है तो विवाद पैदा करवाना जरूरी, फिल्‍म हिट करवानी है तो विवाद करवाओ मुकदमें करवाओ, चैनलों की चिक चिक में टी.आर.पी. चकाचक करवानी है तो विवाद करवाओ। कुल मिलाकर कुछ भी करना हो विवाद करवाओ। दरअसल बाजार की व्‍यवस्‍थाओं में प्रचार के कुछ इस तरह के एन्‍टी तरीके अपनाए जाते हैं।

यानि आपने अगर बाल की खाल निकालने का गुर सीख लिया तो समझो आप में विवाद पैदा करने का गुण स्‍वतः ही विकसित हो जाएगा। इस के लिए आपको ज्‍यादा कुछ नहीं करना बस हर बात को अपने ढंग से व्‍याख्‍या कर नकरात्‍मकता का छमका लगा कर निंदा करनी है। ऐसा करके बहुत से लोग ख्‍याति की वैतरणी में तैर रहे हैं। राजनेता, समाज नेता, विद्यार्थी नेता कर्मचारी नेता और जो भी प्रकार के नेता हैं वे सब इस फार्मूले का प्रयोग कर अपनी नेतागिरी को चमका रहे हैं। साहित्‍यकारों और कलाकारों सहित समस्‍त बौद्धिक जगत में भी आजकल इस विधा का प्रयोग धड़ल्‍ले से किया जा रहा है।

अब हमारे एक कलाकार मित्र रामभरोसे को ही लीजिए। बेचारे मंच पर अभिनय किया करते थे। अच्‍छे कलाकार थे। उम्रदराज होने लगे तो रंगनिर्देशकों ने उनकी तरफ ध्‍यान देना कम कर दिया। उन्‍हें लगा कि उनकी वैल्‍यू रंगजगत में कम होने लगी है ।बस फिर क्‍या उन्‍होंने भी यही नुस्‍खा अपनाया। आप साहब ने हर नाटक की समीक्षा अखबार में ईमानदारी से करनी शुरू कर दी। शहर के स्‍वयंभू अच्‍छे नाटकों की नाटकीयता सामने आने लगी। रामभरोसे भाई का सत्‍य उद्‌घाटन करने का विवाद रंगजगत के लिए तब और अधिक दुखदायी हो गया जब उन्‍होंने नाटकों के लिए इमदाद के बारे में भी सही सही कहना शुरू कर दिया। उन्‍होंने नाटकों पर इस तरह की तीखी प्रतिक्रिया करनी शुरू क्‍या की कि सारे रंगनिर्देशक उनसे डरने लगे। अब कोई भी नाटक हो उनसे विवाद पैदा नहीं करने की मान मनोव्‍वल की जाती है। उनके विवादी तेवर से बचने के लिए उन्‍हें अब शहर के हर नाटक में बतौर अतिथि बुलाया जाता है। विवादों के कारण रंगजगत में अब जनाब की पूछ बढ़ गयी है।

हमारे एक मित्र हैं पेशे से अध्‍यापक पर काम करना उनके बस की बात विद्यालय में पूरे समय रूकना उनकी शान के खिलाफ उनका काम चल रहा था। अचानक प्रधानाध्‍यापक का तबादला हो गया। नये प्रधानाध्‍यापक कुछ सख्‍त किस्‍म के थे सो उनकी मस्‍ती बंद हो गयी। बेचारे बड़े परेशान थे आखिर उनको भी विवाद का सहारा लेना पड़ा। उन्‍होंने उनके सख्‍त अनुशासन से नाराज विद्यार्थियों को बरगलाया और विवाद खड़ा कर दिया। नतीजा बेचारे प्रधानाध्‍यापक जी अकेले पड़ गये उन्‍होंने समस्‍या की तह में जाकर पता किया तो हमारे मित्र के चरित्र का पता चल गया बेचारों को स्‍कूल चलानी थी सो उन्‍होंने भी हमारे मित्र को छूट देनी शुरू कर दी। अब हमारे मित्र को मांगी मुराद मिल गयी विवाद कर के उन्‍हें सुविधा प्राप्‍त हो गयी अब वो खुश हैं।

विवाद करना वर्तमान समय में रातों रात प्रसिद्धि पाने के अचूक हथियार के रूप में प्रयोग में आने लगा है।इस अमोघ अस्‍त्र का प्रयोग कर बहुतो ने ख्‍याति के शिखर को चूमा है। कुछ दिनों पूर्व हमारे एक साहित्‍यकार साथी ने भी इसका सफल प्रयोग किया।वे किसी भी साहित्‍यिक कार्यक्रम में जाते तो वहाँ कुछ न कुछ लीक से हटकर बोल देते। लोगों ने उन्‍हें बुलाना बंद कर दिया पर जनाब कहाँ मानने वाले थे वे बिन बुलाए ही पहुँच जाते और जबरदस्‍ती मंच पर जाकर भाषण देने लग जाते और किसी न किसी बात पर विवाद कर ही डालते। नतीजा आप साहब केा अब ससम्‍मान बुलाया जाता है शुरू में ही आपके तारीफ में कसीदे काढ दिए जाते हैं। अभी यह भी सुनने में आया है कि वे विवाद नहीं करने के एवज में अध्‍यक्ष या मुख्‍य अतिथी बनने की माँग करने लगे हैं। सुनने में यह भी आ रहा है कि जनाब तारीफ करने के लिए पत्रम पुष्‍पम की भेंट भी स्‍वीकार करने लगे हैं। यानि अब उनकी साहित्‍य जगत में तूती बोलने लगी है।

आजकल राजनीति में भी विवाद पर सभी दल निर्विवाद रूप से एकमत हैै। जनता का ध्‍यान हटाने के लिए इसका उपयोग काफी फलदायक रहा है। मंहगाइ बढ रही जनता हो हल्‍ला न करने लगे इसलिए कोई विवाद की छुरछुरी चला दो। जनता विवाद का आनंद लेने लगेगी मंहगाइ का मुद्‌दा गौण हो जाएगा। सुना है आजकल राजनैतिक दलों ने बकायदा आदमी रख लिए हैं जिनका काम विवाद ढूंढना है।

अब ही हाल ही में हमारे एक मित्र को कहीं जाना था गाड़ी लेट थी सो वे न्‍यूजस्‍टेण्‍ड पर समय बिताने के उद्‌देश्‍य से पहुँच कर किताबे टटोलने लगे तो वहाँ एक किताब देखी जिसका शीर्षक था ‘विवाद करने केे 101 तरीके'। अब भैया विवाद तो विवाद है भला उसके भी तरीके। उनसे रहा न गया उन्‍होंने न्‍यूजस्‍टेण्‍ड वाले से इस किताब के बारे में पूछा तो उसने बताया कि आजकल यही किताब सबसे ज्‍यादा बिक रही है। उनका दिल बैठ गया। उन्‍होंन पास में पड़े कहानी संग्रह को देखा उस पर धुल की एक इंच मोटी परत चढ़ी थी। उन्‍होंने तुरंत अपना कहानी संग्रह निकालने का विचार त्‍याग दिया और निर्णय लिया की इस किताब को खरीदा जाय। किताब को क्‍या पढ़ा उनके ज्ञान चक्षु खुल गए। उनकी बुद्धि में यह बात आयी कि इस विषय पर तो डिप्‍लोमा और डिग्री कोर्स खोले जाने चाहिए। फिलहाल जब तक ये डिप्‍लोमा और डिग्री कोर्स विश्‍वविद्यालयों में खुलें तब तक वे ही क्‍यों न चांदी कूट लें। तो भैया अब वे विवाद करना सिखाने के लिए कोचिंग खोलने जा रहे हैं। आप सभी गुणी जनों से उन्‍हें सहयोग की उम्‍मीद है। उन्‍होंने हमारे दिमाग में यह बात फिट कर दी है कि विवाद करने में फायदे ही फायदे हैं।

अब हम भी इस बारे में सीरियस हैं। हम भी इस विषय का अध्‍ययन कर रहें हैं। अध्‍ययन से ज्ञात हुआ कि विवाद के विषय विद्वानों के दो मत हैं कुछ इसे कला तो कुछ विज्ञान मानते हैं। एक दिन विवाद विषय पर चल रही संगोष्‍ठी में हमने कह दिया कि ‘न तो यह कला है और न ही विज्ञान ये तो व्‍यक्‍ति के दिमागी फितूर है और यह एक मानसिक बीमारी है जिस का समय पर इलाज करवाया जाना चाहिए' हमारे इतना बोलते ही विवादप्रिय लोगों ने हो हल्‍ला मचा दिया। दूसरे दिन अखबारों में हमारे वक्‍तव्‍य की हेडलाइन बन गयी। कुछ ने हमें सच कहने का साहस करने पर बधाई दी पर इस कारण कुछ विवादप्रिय मित्रों की नाराजगी झेलनी पड़ी। हमने पाया कि कुल मिलाकर हम फायदे में ही हैं। इस विवाद ने शहर में हमारी इज्‍जत बढायी है।

हमने इस विषय पर अपने गहन अध्‍ययन से पता लगाया कि कई वाद अभी भी निर्विवाद हैं जैसे जातिवाद निर्विवाद, वंशवाद निर्विवाद, क्षेत्रीयवाद निर्विवाद, भाई-भतीजावाद निर्विवाद। सो हमारी समझदानी में यह बात आ गयी कि इन खतरनाक वादों से बचने का एकमात्र उपाय विवाद करना ही है। हमने तो इस उक्‍ति 'दुनिया में जीना है तो विवाद कर प्‍यारे' को मंत्र की तरह जीवन में उतार लिया है। विवाद कर के अब हम हिट हैं, जो हिट है वो ही फिट है हमारी तंदुरस्‍ती का राज भी यही है।

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सम्पर्क:

राधास्‍वामी सत्‍संग भवन के सामने

गली नं.-2,

अम्‍बेडकर कॉलौनी

पुरानी शिवबाड़ी रोड

बीकानेर 334003

मोबाइल-9414031050

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(चित्र - नव सिद्धार्थ आर्ट ग्रुप की मुखौटा कलाकृति)

COMMENTS

BLOGGER: 7
  1. Prabhu ham ache hai yahi vivad hai ..kyon ki log kahte hai ham achhe nahi hai..
    yogendra kumar purohit

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  2. तब तो विवाद खत्म ही नहीं होना चाहिए

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  3. बेहतरीन रचना के लिए बधाई प्रमोद जी।

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  4. umabhatt gadhwali5:28 pm

    ak sundar rachna

    जवाब देंहटाएं
  5. वास्तव में आपने आज के समय की हालात को विवाद रचना के माध्यम से स्पष्ट कर दिया है। वर्तमान में अधिकांश लोग इसी का सहारा लेकर प्रसिद्धि प्राप्त कर लेते है।

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रचनाकार: प्रमोद कुमार चमोली का व्‍यंग्‍य - दुनिया में जीना है तो विवाद कर प्‍यारे
प्रमोद कुमार चमोली का व्‍यंग्‍य - दुनिया में जीना है तो विवाद कर प्‍यारे
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