यात्रा वृत्तान्त शैक्षिक भ्रमण-स्थलीय अनुभव डॉ० कुसुम डॉ० बलविन्दर कौर राजकीय शिक्षा महाविद्यालय, सेक्टर २० डी, चण्डीगढ़ भारत विविधता...
यात्रा वृत्तान्त
शैक्षिक भ्रमण-स्थलीय अनुभव
डॉ० कुसुम डॉ० बलविन्दर कौर
राजकीय शिक्षा महाविद्यालय,
सेक्टर २० डी, चण्डीगढ़
भारत विविधताओं का राष्ट्र हैं। ये विविधतायें समाज के जीवन के हर क्षेत्र में हैं। अनेक मतों, विचारधाराओं, वेशभूषाओं, भाषाओं, मान्यताओं, धारणाओं के लोग इस भूमि की छटा युगों-युगों से बढ़ा रहे हैं। ये क्रम समाप्त होने वाला नहीं है। जनसंख्या वृद्धि के साथ ही अनेक अन्य वैश्विक विचारधारायें पूर्व से अधिक वर्तमान में अनेक सामाजिक क्षेत्रों में अपनी उपस्थिति का अहसास करा रही हैं। इन तमाम विभिन्नताओं के होते हुए भी हम समस्त भारतवासी एक हैं। इस राष्ट्र की यदि कोई सबसे बढ़ी विशेषता है तो वह यही है। इसकी एकता, अखण्डता, सम्प्रभुता का अक्षुण्ण रहने का यदि कोई सार्थक कारण हो सकता है तो वह यही है "अनेकता में एकता।"
सभी वर्णों, वर्गों, सम्प्रदायों के शिक्षार्थी पृथक-पृथक शिक्षालयों में अपनी अभिरूचि के अनुरूप शिक्षा ग्रहण करते हैं। शिक्षा का आशय होता है जानकारी। ज्ञान, समझ, विचारादि। इनको विभिन्न स्रोतों से प्राप्त करना और प्राप्त कर उसे यथायोग्य पात्र को उसकी पात्रता के अनुसार प्रदान करना। अपने शिक्षार्थियों की रूचियों के अनुसार प्रत्येक संस्थान "शैक्षिक भ्रमण" का कार्यक्रम बनाता है। जिसके द्वारा शिक्षार्थियों को अपने जनपद और प्रदेश से पृथक अन्य जनपदों और प्रदेशों के विषय में जानकारी प्राप्त करने का सर्वाधिक उत्तम अवसर प्राप्त होता है।
पाठेत्तर क्रिया कलापों की व्यवस्थाओं को दृष्टिगत रखते हुए उनको साकार करने के शासन के आदेशानुसार शैक्षिक भ्रमण का कार्यक्रम कालेज द्वारा बनाया गया। भ्रमण में भाग लेने वालों की टोलियाँ बना दी गयीं। प्रत्येक टोली का एक टोली प्रमुख बना दिया गया। शिक्षक को उन समस्त के क्रिया कलापों को सम्पूर्ण शैक्षिक भ्रमण काल में किसी भी आकस्मिकता से बचने और बचाने के अपने दायित्व का निष्ठापूर्वक संवहन करना था। जिस से सम्पूर्ण दायित्व केन्द्रियकृत न होकर विकेन्द्रिय रहे।
प्रातः छः बजे समस्त शैक्षिक भ्रमण में भाग लेने वाले शिक्षार्थी अपनी पूर्व व्यवस्था और निर्देशों के अनुसार रेलवे स्टेशन पर एकत्र हो गये। टोली प्रमुख छात्रों और शिक्षकों ने अपनी-अपनी टोली के समस्त सदस्यों के होने की जानकारी प्राप्त की। सभी शिक्षार्थी एक अनोखे उत्साह और उल्लास से लबालब भरे थे। भारत की राजधानी दिल्ली से भारत की व्यापारिक राजधानी मुम्बई के लिये ट्रेन के द्वारा यात्रा प्रारम्भ की गयी। दिल्ली भारत का दिल और मुम्बई भारत की समृद्धि का प्रतीक महाराष्ट्र का सिरमौर नगर है। कार्यक्रम था महाराष्ट्र प्रान्त के औरंगाबाद जनपद में सृजित अजन्ता और एलोरा की विश्व प्रसिद्ध शैक्षिक, साँस्कृतिक, स्थापत्य और मूर्तिकला के साथ-साथ लगभग दो हजार किलोमीटर की शैक्षिक यात्रा से अनेकानेक जानकारियाँ प्राप्त कर उनको आत्मसात करना और समयानुसार व्यवहार में लाना।
एक ओर सूरज दिल्ली में व्याप्त धूल, धुन्ध, धुँआ और कोहरे को चीरता पृथ्वी को प्रकाश देने को लालायित था दूसरी ओर हमारा भ्रमण दल पूरे चाव से अपने आरक्षणानुसार स्थान ग्रहण कर दिल्ली छोड़ने को विवश था। सीटी बजी,हरी झण्डी़ हिली,हल्का सा झटका लगा और हम अपने गन्तव्य की ओर आनन्दातिरेक की अतिरंजना के साथ चल पड़े। दो यात्रायें एक साथ हो रहीं थी सूरज अपने गन्तव्य पर और हमारा दल अनेक उत्सुकताओं को अपने मन में संजोयें अपने गन्तव्य की ओर अग्रसर था।
दिल्ली को लाँघ हरियाणा और फिर उत्तर प्रदेश की अत्यन्त घनी जनसंख्या गंगा-यमुना के मैदान की ओर हम बढ़े। जनसंख्या का घनत्व सारे विश्व में इस क्षेत्र में सर्वाधिक है। संसार का हर तरह का अन्न,फल,फूल और मेवायें इस क्षेत्र में उत्पन्न होती हैं। इस कारण जीवन को जीने में कुछ अधिक कठिनाईयाँ यहाँ जीवन के आड़े नहीं आती। लेकिन जनसंख्या का दवाब भू-भाग पर अधिक होने के कारण सब कुछ व्यवस्थित नहीं चल पाता। जीवन के हर क्षेत्र में भीड़ ही भीड़ दिखायी देती है। इसकी सारी सम्पन्नता को जनसंख्या के फैलाव ने विपन्नता में परिवर्तित कर रखा है। उत्तर प्रदेश छोड़ते ही हम मध्य प्रदेश में प्रवेश कर गये। लहलहाती वलुई, मटियार, दोमट और रेतिली जमीन के स्थान पर पठारी काली और कंकरीली भूमि हमारी आँखों का विषय बनी। उत्तरी भारत में जहाँ सभी फूलों,फलों के वृक्ष दृष्टिगोचर होते थे इधर दूर-दूर तक उनका कोई नामों निशान न था। पठारी कंकरीली जमीन सैकड़ों किलोमीटर जिसमें केवल मसूड़ की एक मात्र फसल कहीं-कहीं अरहर के छोटे-छोटे पौधे दिखायी पड़े। उसके बाद ऊसर भूमि,खड़ी मिट्टी की घाटियों को पार किया।
ये भी भारत भूमि का ही भू-भाग है। यकीन नहीं हो रहा था। उधर रेलगाड़ी अपनी गति पकड़ रही थी इधर शैक्षिक भ्रमण के दल के सदस्यों में अनेक प्रकार के विचार हिलोरे मार रहे थे। वे उत्तर भारत का मध्य भारत के साथ तुलनात्मक अध्ययन कर अपनी जानकारियों में अपने साथियों को हिस्सेदार बना रहे थे। पूरा दल अत्यन्त मुदित और आल्हादित था। सूरज क्षितिज की ओर दौड़ रहा था और हम मुम्बई की ओर। शाम आयी रात आयी सुबह हुई शाम हुई रात आयी सबेरे हम मुम्बई पहुँच गये। वहाँ से बस द्वारा औरंगाबाद के लिये प्रस्थान किया पूरे ४०० किलोमीटर की यात्रा बस से नासिक होते हुए तय की। नासिक प्याज और कपास का क्षेत्र है। इसका कुछ भाग उत्तर भारत से मेल खाता है। केलों के विस्तृत बाढ़े यहाँ देखे जा सकते है।
औरंगाबाद के राज्य अतिथि ग्रह में हमारे ठहरने की व्यवस्था हो गयी। संध्या होने को थी। चाय-नाश्ते के पश्चात शिक्षक और शिक्षार्थी सभा कक्ष में पहुँच गये। वहाँ दो हजार किलोमीटर की यात्रा के खट्टे-मीठे शैक्षिक और सामाजिक अनुभवों को खुशी-खुशी एक-दूसरे में बाँटा और अपने-अपने शयन कक्षों में चले गये। लम्बी यात्रा की थकन सबको थका रही थी लेकिन अजन्ता और एलोरा के साथ विशाल किला, रजिया की कब्र, प्रतिरूप ताजमहल, इल्तुतमिस का मकवरा देखने की लालसा सबको लालायित कर रही थी। रात कब और कैसे बीत गयी पड़कर होश किसे था। सबेरा हुआ और हरे रंग की बस द्वारा चिर अभिलसित और चिर प्रतीक्षित गन्तव्य की यात्रा आरम्भ हुई।
मार्गदर्शक(गाइड)साथ लेकर पहले हमारा दल औरंगाबाद किले पर पहुँचा। विशाल पत्थरों को काटकर लगभग चार सौ फिट ऊँचाई वाली पहाड़ी को दुर्ग की आकृति में ढाला गया था। चारों ओर आगरा और दिल्ली के किलों की भाँति चालीस फिट गहरी खाई। अष्टधातु की तोपें एवं तत्कालीन शासकों द्वारा प्रयोग में लायी जाने वाली अनेक वस्तुऐं यहाँ दृष्टि का विषय बनी। जिनको देख कर अनेक प्रकार की विचारधारायें मन में कुलाचें मार रहीं थी। मार्गदर्शक ने अनेकानेक जानकारियों से हमारे दल का शैक्षिक भ्रमण सार युक्त बनाया। उसके पश्चात एलोरा की ओर अब हमारी बस बढ़ रही थी। सब के मन और मस्तिष्क की अनेक जानकारियों में वृद्धि करता हुआ हमारा गाइड एक होटल पर बस को लेकर रूक गया और वहाँ कुछ खा-पीकर हम आगे बढे। एलोरा औरंगाबाद से पेंतीस किमी० है। रास्ते भर अन्य अनेक दर्शनीय स्थलों को देखते-देखते हमारा दल दोपहर के बाद एलोरा पहुँचा। ठण्ड का नामो निशान न था जबकि दिसम्बर का महीना था। उत्तर भारत जाड़े की जकड़न से ठिठुर रहा था। इधर हम सादे कपड़ो में ही शैक्षिक भ्रमण का आनन्द ले रहे थे।
एलोरा की एक के बाद एक गुफाओं को गाइड के द्वारा दिखाया गया। मूर्तिकला का इतना बेजोड़ नमूना वर्तमान में सृजित होना कल्पना का विषय ही कहा जा सकता है। एक-एक कलाकृति जैसे अभी बोल पड़ेगी। हम सभी भाव विभोर थे। उसकी लालसा फलित हो रही थी। आशायें और आकाँक्षायें साकार होकर अपनी कल्पना की वस्तुओं को निहार रही थी।
गाइड ने एक-एक कलाकृति का उसके काल और निर्माणकर्ता के विषय में विस्तार से इतनी जानकारी दी कि सारा शैक्षिक भ्रमण दल विस्मयबोध में डूबता-उतराता दिखायी दे रहा था। जहाँ-जहाँ दल जाता एक के बाद एक नवीनतम जानकारियों से उसे दो-चार होना पड़ रहा था। घूमते-घूमते संध्या हो गयी। दल अपने अतिथि ग्रह लौट आया चाय,नाश्ता, खाना खाकर जैसे ही मुक्त हुए सभा कक्ष में जाकर गर्मागर्म बहस आरम्भ हो गयी। बडे सार्थक तर्क-वितर्क पूरे दिन की चर्या को मथने में सहायक रहे। अपनी-अपनी दृष्टि और अपने-अपने दृष्टिकोण,जिसने जिस रूप में जिसको देखा उसने उसी रूप में उस पर अपने विचारों को अन्य साथियों के साथ साझा किया। उसके बाद सब अपने-अपने शयन कक्षों में जाकर सो गये। सबेरा हुआ नित्य की क्रियाओं से मुक्त होकर चाय-नाश्ता किया गया फिर हरे रंग की बस में सवार हो गये और चल पड़े अजन्ता की ओर गाइड के साथ।
सूरज अपनी खिली धूप से रात को प्रकृति द्वारा बरसायी गयी ओस को चाट रहा था। बस एक सौ एक किमी० की यात्रा की ओर बढ रही थी। धुली-धुली प्रकृति,धूल भरे रास्ते, ठगी सी फसलें और उदास फलों-फूलों के वृक्ष आँखों का विषय बन रहे थे। मन दक्षिण भारत और उत्तर भारत का अन्दर ही अन्दर शैक्षिक तुलनात्मक अध्ययन करने में मगन था। आँखों के आगे सूखी और रूखी पहाडियाँ आते ही बस ने एक मोड़ लिया और राज्य सरकार के पार्किंग स्थल पर जाकर रूक गयी। हम सभी बस से उतरे और गाइड के इशारे के साथ हम रूखी लगने वाली पहाड़ियों की ओर बढे।
गाइड ने बताया अब से २५५२ वर्ष पहले भगवान बुद्ध का भारत भूमि पर अवतरण हुआ। उनके द्वारा निरन्तर त्याग,तपस्या और अनुभवों को आधार बना कर एक नवीन तार्किक,वैज्ञानिक,विवेकशील विचारधारा को व्यवहार में लाया गया। उनके परवर्ती अनुचरों ने उनकी विचारधारा से प्रभावित होकर उनके समस्त जीवन को ही पत्थरों पर चित्रित कर दिया। शील, समाधि,प्रज्ञा के उनके समस्त आसन और प्राणायाम की समस्त मुद्रायें पत्थरों को काट कर बनायी गयी है। जो तैलीय चित्र छतों में बनाये गये हैं वे पच्चीस सौ साल बाद भी धूमिल तो हुए हैं लेकिन अपनी चमक से आज भी अतीत को एक-एक कर शब्द दे रहे हैं। उनका अतीत कितना गौरवशाली था,वे उसके प्रतीक हैं। राज्य सरकार की चुस्त सुरक्षा व्यवस्था हर ओर दिखायी दे रही थी। किसी को भी किसी भी कलाकृति का चित्र लेने की अनुमति नहीं थी। किसी ने सुरक्षा अधिकारियों की आँखों में धूल झोंक कर यदि फ्लेश चला दी तो उसका कैमरा अथवा उसके सैल तुरन्त निकाल लिये गये।
अजन्ता की गुफाओं में बाहर से कुछ दिखायी नहीं देता लेकिन अन्दर प्रवेश करते ही ऐसा प्रतीत होता है जैसे हम किसी नयी दुनिया के संग्रहालय में आ गए हैं। ऊँची-ऊँची पहाड़ियों को अन्दर से खोखला किया गया है। पूरे-पूरे पत्थरों को असाध्य श्रम द्वारा काट-छाँट करके मनोनुकूल आकृति प्रदान की गयी है। कई किमी० तक एक के बाद एक गुफा है। हर गुफा में बौद्ध कालीन संस्कृति को इस तरह से उकेरा गया है कि मन मुग्ध हो जाता है।
पहली गुफा में पहुँचते ही सारी कल्पनाशीलता को विराम लग जाता है। बीस से तीस फिट ऊँचे पत्थरों के गोलाकार स्तम्भ को आँखें देखती की देखती रह जाती हैं। सामने बीचों-बीच पद्मासन लगाए बुद्ध की शान्त सौम्य प्रतिमा मन की सारी उथल-पुथल और तनाव को हर लेती है। विश्व के हर कोने से आये पर्यटक अपनी-अपनी अनुभूति के अनुसार उसकी गरिमा को शब्द देते हैं।
बायीं ओर जलहीन नदी या घाटी और दायीं ओर सोपानबद्ध एक के बाद एक गुफा जिसमें प्रवेश के बाद बलात् एक को छोड़ दूसरी की ओर जाया जाता है। माना कि वे अतीत के भग्नावशेष हैं फिर भी वे आज भी अपनी उपस्थिति पर गर्व अनुभव करते हैं। एक के बाद कई गुफायें देख लेने के बाद एक खुले आकाश की बहुत विस्तृत गुफा, नहीं खुला क्षेत्र है। उसकी छत या तो बनी ही नहीं थी क्योंकि उसका क्षेत्रफल बहुत विस्तृत है यदि बनायी भी गयी होगी तो वह काल के गाल में समा गयी होगी ऐसा अनुमान लगाया जा सकता है। इस विस्तृत विशाल कक्ष में सम्पूर्ण महाभारत को एक-एक करके चित्रों के माध्यम से दर्शाया गया है। अत्यन्त मनोहारी, मार्मिक, मूर्धन्य चित्रों का यह खजाना है। इतनी कुशलता ,गम्भीरता और कला नैपुण्यता से इनको बनाया है कि घण्टों घूमने के बाद भी ऐसा लगता है जैसे शायद कोई चित्र देखने से छूट गया है।
अन्य गुफायें सम्पूर्ण रामायण को साकार रूप से हमारे समक्ष प्रस्तुत करती हैं। गाइड पूरे रंग में चुस्की और चुटकी ले-लेकर और ठन्डा पी-पीकर शैक्षिक दल के भ्रमण को गये सदस्यों का मन मोह लेने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ता है। वह अनेक भाषाओं का ज्ञाता है। जिस तथ्य को हिन्दी में बोलता है उसे तुरन्त मराठी में अनुवाद करके उसकी अंग्रेजी बना देता है। जो जिस भाषा में जितनी आसानी से समझ सके बिना अपने मस्तिष्क और शब्दकोश को व्यवहार में लाए वह उसे समझ ले।
छोटी-बड़ी मिलाकर ३० से ५० के बीच में बन्द और खुली गुफायें और स्थल हैं। लेकिन सबेरे से संध्या तक १२ से १४ घन्टे का समय उनको देखने में कम पड़ जाता है। शिक्षक और शिक्षार्थी स्वभाव से ही जिज्ञासु होते हैं। वे गाइड से एक के बाद एक और फिर अनेक प्रश्न करते हैं। मजा हुआ गाइड बड़ी शालीनता से उनकी शंकाओं का समाधान और प्रश्नों का उत्तर देता है। संध्या होते-होते हमारा दल भगवान बुद्ध की अन्तिम प्रतिमा के पास पहुँचता है। जिसमें वे अपने हाथ का तकिया बनाकर लेटे हुए हैं। गाइड ने बताया कि यह उनके महापरिनिर्वाण की प्रतिमा है। मस्तिष्क में अब इतना स्थान नही था कि कुछ ओर जानकारियों को अपने में रख पाता। पैर थक गये थे। भूख शैक्षिक भ्रमण की तो शान्त हो चुकी थी लेकिन जठराग्नि बलवती हो रही थी। सूरज ढल चुका था। पर्यटक अपने-अपने वाहनों से लौट रहे थे। पक्षियों का कलरव शान्त हो चला था। हमारा दल भी अपने वाहन से अपने अतिथि निवास में लौट आया। रात में ही औरंगाबाद से मुम्बई और मुम्बई से हम फिर भारत के दिल दिल्ली आ गये। जिसको जहाँ जाना था वह अपने गन्तव्य की ओर चला गया।
इस एक सप्ताह के शैक्षिक भ्रमण में योजनाबद्ध ढंग से रहने के कारण कोई असामान्य आकस्मिक घटना नहीं घटी। शरदावकाश बीत चुका था। शिक्षक और शिक्षार्थी अपने कालेज पहुँचे और अपने सारे अनुभवों और अनुभूतियों को यथायोग्य अपने साथियों और सहयोगियों में बाँटकर शैक्षिक भ्रमण से लाभान्वित किया।
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