असग़र वजाहत का नाटक - समिधा

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समिधा पात्र डी0 पी0 देारिया: दोरिया उधोग समूह के मालिक। एक बहुत प्रभावशाली औद्योगिक घराने के मुखिया। विदेश में विज्ञान की शिक्षा प्राप्त ...

समिधा

पात्र

डी0 पी0 देारिया: दोरिया उधोग समूह के मालिक। एक बहुत प्रभावशाली औद्योगिक घराने के मुखिया। विदेश में विज्ञान की शिक्षा प्राप्त आयु। 50 के आसपास।

स्वामी सुखानंदाचार्य/अम्बिकाप्रसाद:

आयु 30-35, सहज और साधारण आदमी।

गीलानी: विज्ञापन एजेंसी मैनेजिंग डायरेक्टर। आयु 45 के आस-पास।

मल्लिका चुग: 20-22 वर्ष की सुंदर लड़की। विचारों से कुछ वामपंथी। महिला आंदोलनों में सक्रिय।

डी0सी0चुग: मल्लिका चुग के पिता। दोरिया फर्टिलाइजर्स में मैनेजिंग डायरेक्टर।

अनादि: 25-30 साल का जागरुक और वामपंथी युवा। मल्लिका चुग का प्रेमी।

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दृश्य : एक

(अनोखेराम का क्वार्टर- अम्बिका प्रसाद सुखानंदाचार्य और अनोखेराम बैठे हैं। अनोखेराम हुक्का पी रहा है।)

अनोखेराम: अरे तुझे अब किस बात की चिन्ता है... लाला, ये शहर है, शहर- यहां बरसों नौकरी नहीं मिलती... तेरी किस्मत अच्छी है...

सुखानंदाचार्य: पर अनोखे भाई...

अनोखेराम: देख, सब चिन्ता छोड़ दे। सेठ जी ने तुझसे कहा नहीं कि जो वो कहते जायें तू करता जा... बस... तुझे क्या... हुक्म तो मालिक का सब बजाते हैं।

सुखानंदाचार्य: पर अनोखे भाई अपनी तो कुछ समझ में आता नहीं।

अनोखेराम: चल यही बता क्या समझ में नहीं आता?

सुखानंदाचार्य: यही कि कहते हैं- अब तुम सुखानंदाचार्य हो... सुबह से पढ़ाने वाले आ जाते हैं... ऐसी ऐसी धम्र की बातें तो कभी न सुनी थीं अनोखे भाई... ये कपड़े... भी दिये हैं पहनने को... मोटे साब जो शाम को आते हैं जान ले लेते हैं... ऐसे चलो... ऐसे चलो... ऐसे बैठो, ऐसे उठो... ऐसे देखो. बार-बार- सैकड़ों बार।

अनोखेराम: पर ये बता कि इसमें तेरा नुकसान क्या है?

सुखानंदाचार्य: नुक़सान? नुकसान क्या है। कुछ नहीं।

अनोखेनाम: फिर तुझे चिन्ता काहे की है... दो चार अच्छी बातें बता रहे हैं। उठना बैठना सिखा रहे हैं तो इसमें काहे की चिन्ता? मेरी तो समझ से सेठ तुझे अपने किसी मंदिर में बैठा देगा... अरे भाई बड़े लोगों का बड़ा ही काम होता है... तुझे तो नौकरी से मतलब...

सुखानंदाचार्य: अभी तक पगार नहीं मिली अनोखे भाई। दो महीने हो गये। मुरारी बाबू से बोला था तो बोले सेठ जी से बोलो। उनसे बोलने की हिम्मत नहीं पड़ती... न जाने क्या समझें।

अनोखेराम: समझेगा क्या? अरे काम करते हो, पगार न लोगे।

सुखानंदाचार्य: रूपया जमा न हो पायेगा तो मेरा यहां आना ही बेकार हो जायेगा।

अनोखराम: हां, ये तू ठीक कहता है।

सुखानंदाचार्य: आठ हज़ार में काम होगा।

अनोखराम: आठ हजार लेकर बेच डाला था?

सुखानंदाचार्य: (दुखी स्वर में) हां, अनोखे भाई.. पशु है... पशु...

अनोखेराम: और नहीं तो कया... अपनी बहू को कोई ऐसे बेचता है...

सुखानंदाचार्य: पूरा गांव थू-थू कर रहा थ। पर... पटवारी से मिलकर बेच डाला... बताते हैं दो हजार तो पटवारी ने रख लिये हैं...

अनोखेराम: पर तुझे तो पूरे आठ हजार देकर छुड़ाना होगा उसे। (ठहर कर) एक बात ओर सुन (धीरे-धीरे) यहां किसी को ये पता न चले... समझ गया... ये लोग बड़ा बुरा मानते हैं इसका... पता चल गया तो हम दोनों की छुट्टी, समझे...

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दृश्य : दो

(डी0 पी0 दोरिया की कोठी के एक कक्ष में सुखानंदाचार्य बैठा है। वह चिन्ता में डूबा हुआ है। उसने रेशमी कुर्ता और पाजामा पहना है। बाल उसके लम्बे हैं। दाढ़ी भी लम्बी है। पर दोनों पर कायदे से कंघा किया गया है। कमरे में डी0 पी0 दोरिया आते हैं। डी0 पी0 दोरिया को देखकर सुखानंदाचार्य खड़ा हो जाता है।)

डी0 पी0 दोरिया: अब आप मुझे देख कर खड़े न हुआ करें- महाप्रभु...

सुखानंदाचार्य: पर आप मालिक हैं...

डी0 पी0: महाप्रमु, अब आप अम्बिका प्रसाद नहीं हैं और मालिक तो मैं आपका हो ही नहीं सकता। आपने तो मेरे ऊपर उपकार किया है जो यहां पधारे हैं।

सुखानंदाचार्य: मुझे नौकरी...

डी0 पी0: यह मेरा सौभाग्य है कि मैंने आपके अन्दर छिपी शक्ति को पहचाना।

सुखानंदाचार्य: ये सब मेरी समझ में नहीं आता...

डी0 पी: इसमें समझने की तो कोई बात नहीं है...

सुखानंदाचार्य: महाराज, समझे जो सेवा बन पड़ेगी करूंगा...

डी0 पी0: आप जानते हैं सुखानंदाचार्य कि आदमी सूखी रोटी भी खाता है तो कपड़़ा बिछा कर बैठता है। कुत्ता भी बैठता है तो दुम से ज़मीन साफ़ कर लेता है... आपके अन्दर जो शक्ति है वह अपने सहज रूम में मुझ तक तो पहुंच गयी पर साधारण लोगों तक उसे पहुंचाने के लिए प्रयास करना पड़ेगा...

सुखानंदाचार्य: ठीक कहते हैं सेठ जी।

डी0 पी0: आप मुझे सेवक सम्बोधित किया करें सुखानंदाचार्य।

सुखानंदाचार्य: सेवक...? ये आप क्या कह रहे हैं सेठजी।

डी0 पी: (हंसकर) ठीक ही कह रहा हूं... केवल मुझे सेवक कहने से लाखों लोग अपने आप आपके सेवक हो जायेंगे...

सुखानंदाचार्य: पर ऐसा हो कैसे सकता है कि मैं आपको...

डी0 पी: सुखानंदाचार्य, यदि आप ऐसा नहीं करेंगे तो मेरी उपेक्षा करेंगे... मैं चाहता हूं आपका संदेश दुनिया के कोने-कोने में पहुंचे... आपके भक्तों की संख्या किसी भी धर्म के मानने वालों से अधिक हो... इसलिए मैं जो भी सलाह देने का साहस कर रहा हूं वह अनुचित नहीं है... लेकिन आपके सहयोग के बिना कुछ न हो सकेगा...

सुखानंदाचार्य: नहीं सेठ जी, मैं तो गिरा पड़ा छोटा आदमी हूं, आपने मुझे उठाया है। यह आपका बड़प्पन है। मैंने आपके पास रह कर ही सब कुछ सीखा है... आप ही मेरे...

डी0 पी0: यह मैंने स्वार्थवश किया है... स्वार्थ यह कि मैं आपसे जो पाता हूं वह दूसरे भी पायें।

सुखानंदाचार्य: सेठ जी आज... (हकलाता है)

डी0 पी0: कहिए कहए।

सुखानंदाचार्य: छह महीने हो गये अब...

डी0 पी0: (ज़ोर का ठहाका लगाकर) महाप्रभु, आप भी कैसी बातें कर रहे हैं... मेरा जो कुछ है सब आपका ही है... जो चाहिए हो आदेश दें आ जायेगा... क्या आपको कोई तकलीफ़ है...

सुखानंदाचार्य: नहीं-नहीं...

डी0 पी0: फिर आप धन का क्या उपयोग करेंगे महाप्रभु? आपके नाम से जो ट्रस्ट बनाया गया है, उसमें करोड़ों रुपये की संपत्ति है... आपके नाम से जो रिसर्च इंस्टीट्यूट बनाया जायेगा उसकी लागत एक करोड़ आयेगी... ये सब आपका ही है महाप्रभु... मैं भी आपका हूं... आपको जिस चीज़ की ज़रूरत हो आदेश दें...

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दृश्य : तीन

(रात का समय है। सुखानंदाचार्य अपने कमरे में बैठा है। बाहर से किसी के अन्दर आने की आवाज़ आती है। अनोखेराम अन्दर जाता है।)

सुखानंदाचार्य: क्या हाल है अनोखे भइया...

अनोखेराम: बस ठीक है... आज तो सेठ जी कहीं गये नहीं... अपने राम भी बैठे रहे वर्दी पहने... तुम्हारा क्या हाल रहा?

सुखानंदाचार्य: अपनी तो कुछ समझ में नहीं आ रहा अनोखे भइया...

अनोखेराम: (पास खिकस कर) अरे अंबिका प्रसाद यह तो भगवान की लीला है... सेठ को तेरे अन्दर न जाने किसका रूप दिखाई दे गया... तुझे क्या यह सब काटता है?

सुखानंदाचार्य: पर डर तो लगता है।

अनोखेराम: काहे का डर...? क्या कोई सूली में चढ़ा देगा... खा-पी... आराम से रह... जो कहते हैं करता रह।

सुखानंदाचार्य: आज सेठ जी ने मुझसे कहा, सुखानंदाचार्य...

अनोखेराम: (हंसते हुए) सेठ जी ने तेरा नाम तो बड़ा बढ़िया रखा है।

सुखानंदाचार्य: बोले, आप मुझे सेवक कहा कीजिए...

अनोखेराम: क्या? सेवक... मानी नौकर...

सुखानंदाचार्य: हां अनोखे भाई... हमारे तो प्राण फंस गए हलक में...

अनोखेराम: अरे तू छोड़ डर वर... जो सेठ जी कहें करता जा।

सुखानंदाचार्य: आज सेठ जी से पगार मांगी तो हंसने लगे।

अनोखेराम: हंसने लगे?

सुखानंदाचार्य: हां बोले... मेरा सब कुछ आपका है महाप्रभु... दो-चार सौ रुपया आप क्या करेंगे... जो कुछ भी चाहिए हो बता दें... आ जायेगा... ये बड़ी मुसीबत हो गयी अनोखे भाई..

अनोखेराम: मुसीबत कैसी?

सुखानंदाचार्य: अरे आठ हजार न जमा हो पायेंगे तो रामकली कैसे छूटेगी...

अनोखेराम: हां ये बात तो है।

सुखानंदाचार्य: रामकली बहुत दुख में होगी अनोखे भाई... एक ही तो बहन है हमारी...

(सुखानंदाचार्य की आवाज़ भर्रा जाती है।)

अनोखेनाम: कोई बहाना बना के ले ले उनसे आठ हज़ार...

सुखानंदाचार्य: बहाना क्या बनाऊं?

अनोखेराम: कह दे, गांव के मंदिर की मरम्मत कराना है।

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दृश्य : चार

(श्रुति दोरिया और डी0 पी0 दोरिया बैठे हैं।)

डी0 पी0: मूर्खों की कमी कहीं नहीं है। कोई भी पेशा हो, कोई भी जगह हो... तुम्हें निराशा न होगी अगर तुम मूर्खों को खोजने की कोशिश करो।

श्रुति: लेकिन वे कहते क्या हैं अंकल?

डी0 पी0: पिछली बोर्ड आफ डायरेक्टर्स की मीटिंग में स्वामी सुखानंदाचार्य ट्रस्ट को जो डोनेट किए जाने का फैसला लिया गया है उससे वे खुश नहीं हैं... स्टूपिड... बेवकूफ़ हैं वे... उन्हें ये भी बताने की जरूरत है कि वह पैसा जो हम ट्रस्ट में लगाते हैं दरअसल...

(कहते कहते रुक जाते हैं)

श्रृति: दरअसल क्या अंकल?

डी0 पी0: (बात बदलकर) बहुत ज़रूरी है... या कहो एक तरह का इंवेस्टमेंट है... हमारा इंवेस्टमेंट ‘मल्टी-डायमेंशनल' होता है... हम एक चीज़ को भी दूसरों के लिए छोड़ नहीं सकते... आर्ट- कल्चर हो, शिक्षा हो, व्यापार हो, धर्म हो, कला हो या इंडस्ट्री हो... अब सौ दो सौ साल पहले वाला ज़माना नहीं रहा कि बनिये की दूकान की तरह इंडस्ट्री चलाये जाओ और दुनिया से बेखबर रात में मीठी नींद सोते रहो।

श्रुति: लेकिन अंकल छ: करोड़ रुपये का डोनेशन...

डी0 पी0: हां लेकिन ये डोनेशन हमारे पूरे ग्रुप ने किया है... किसी एक कम्पनी ने नहीं किया है... फिर इस पर इन्कमटैक्स रिलीफ़ मिलेगी... और सबसे बड़ी बात ये कि ये पैसा एक बड़े और ज़रूरी काम में लगेगा।

श्रुति: कुछ ये भी कह रहे हैं कि सुखानंदाचार्य किस धर्म और किस पंथ काा है।

डी0 पी0: धर्म, पंथ, जाति... ये सब पुरानी बातें हो गयीं बेटा... सब धर्म एक हैं... सबका उपदेश एक ही है... सब ईश्वर पर विश्वास करते हैं... ईश्वर पर विश्वास करने वाला ही ‘सुपर नेचुरल' शक्तियों पर विश्वास करता है... उससे उससे बड़ा संदेश क्या हो सकता है?... अब तुम जाओ... और हां स्वामी सुखानंदाचार्य से मिलती रहा करो... तुम देखोगी कि वह वास्तव में अद्भुत है... उसके अन्दर महान् शक्तियां छिपी हुई हैं... ठीक है जाओ...

(श्रुति चली जीती है। डी0 पी0 दोरिया इंटरकाम पर बात करता है।)

डी0 पी0: हां, गीलानी को भेज दो।

(डी0 पी0 दोरिया अखबार उठा लेता है। कुछ ही क्षण बाद गीलानी आकर खड़ा हो जाता है।)

डी0 पी0: बैठो गीलानी...

(गीलानी बैठ जाता है।)

गीलानी: सब कुछ आपकी मर्ज़ी के मुताबिक हो रहा है सर।

डी0 पी0: उन्हें किसी तरह की आपत्ति तो नहीं हुई?

गीलानी: नहीं सर, वह बहुत सज्जन आदमी हैं... वह तो कह रहा था कि यह कितनी अच्छी बात है कि उसे अच्छी-अच्छी बातें बतायी और सिखाई जा रही हैं। उसने हमें पूरी तरह “को-ऑपरेट” किया है सर... उसके अन्दर बेहतर स्टेमना है... ‘एक्सरसाइज़ेज़' में कभी चूं-चां नहीं की उसने। अब हमें पूरा यकीन है कि वह ‘पब्लिक एक्पीरियेंस' के लिए तैयार है... बस एक कसर है... एक कसर... ये ‘एक्सपर्ट्स' का कहना है सर...

डी0 पी0: बताओ।

गीलानी: सर, सुखानंदाचार्य के साथ-उस समय जब वे दर्शन दें- दो लड़कियों का होना ज़रूरी है।

डी0 पी0: क्यों?

गीलानी: सर, हम उन लड़कियों को सुखानंदाचार्य की शिष्याएं बनायेंगे... उनको पूरा ‘गेटअप' देंगे... उएने महाप्रभु के साथ होने की वजह से पूरा ‘ऐटमास्फियर'...

डी0 पी0: हूं...

गीलानी: सर, सेक्स के बिना धर्म नहीं चलता... वी फील हेल्पलेस...

डी0 पी0: अगर तुम ‘सेक्स' का सही इस्तेमाल न कर पाये तो? एक गंदा और ‘वल्गर' मज़ाक हो जायेगा।

गीलानी: नहीं सर... ऐसा क्यों होगा?... हमारे ‘एक्सपर्ट' इससे सहमत हैं... हमें दो लड़कियां चाहिए हैं... लड़कियों के बारे में एक-एक ‘डिटेल' ‘वर्कआउट' कर ली गयी है... लड़कियों के शरीर पर पूरे कपड़े होंगे... लेकिन फिर भी उनमें अथाह ‘सेक्स अपील‘ होगी। ऐसी जो किसी को भी एक बार झुका देने की ताकत रखती हो... उनके फीचर पूरे हिंदुस्तानी फीचर नहीं होंगे... मतलब एक छोटा-सा ‘ऐलियिन टच' होना ज़रूरी है... उनको हम ऐसा ‘मेकअप' देंगे जो देखने ‘मेकअप' ही नहीं लगेगा, उनका पूरा ‘गेटअप' स्वप्निल यानी ‘ड्रीमी' सा होगा... ऐसा लगेगा जैसे वे इस दुनिया की लड़कियां ही नहीं हैं.... स्वप्न या स्वर्ग...

डी0 पी0: ये लड़कियां क्या करेंगी?

गीलानी: सर, ये दर्शन के वक़्त महाप्रभु सुखानंदाचार्य के साथ रहेंगी... उनकी छोटी-मोटी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए... सर, उनके बालों में चमेली की फूलों...

डी0 पी0: इतना काफी है... आइ कैन अंडरस्टंड यू...

गीलानी: सर... इस सिलसिले में एक गलती और हो गयी है।

डी0 पी0: कैसी गलती?

गीलानी: हमने दो लड़कियां तलाश कर ली हैं... गलती इसलिए कह रहा हूं कि आपकी ‘परमीशन' के बिना ये नहीं करना चाहिए था... लेकिन हमें जल्दी थी... दोनों लड़कियां हमारे ‘इस्फैसिफिकेशन्स' पर बिल्कुल ठीक उतरती हैं... लेकिन उनमें से एक लड़की किसी भी तरह यह काम करने को तैयार नहीं है...

डी0 पीद्ध क्यों?

गीलानी: कोई वजह समझ में नहीं आती... लड़की का नाम है मल्लिका चुग... अपने दोरिया फरटिलाइज़र्स के मैनेजिंग डाइरेक्टर डी0 सी0 चुग की लड़की...

डी0 पी0: उसे क्या ‘प्राब्लम' है?

गीलानी: कुछ पढ़-लिख ज़्यादा गयी है... ‘वीमेन्स लिब'...

डी0 पी0: तुम उसकी फ़िक्र मत करो... चुग की लड़की आ जायेगी...

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दृश्य : पांच

(स्वामी सुखानंदाचार्य अपने कमरे में उदास और परेशान बैठा है। डी0 पी0 दोरिया आते हैं। उन्हें देखकर स्वामी सुखनंदाचार्य खड़ा होता है और न नमस्ते करता है।)

डी0 पी0 दोरिया: यह देखकर मुझे प्रसन्नता हुई महाप्रभु कि आप आज न मुझे देखकर खड़े हुए और न आपने नमस्ते किया... दरअसल ये हम जैसे साधारण लोगों की बातें हैं... आप... लेकिन आज बाप चिंता में डूबे हुए...

सुखानंदाचार्य: आपसे एक निवेदन करना है श्रीमान्... मुझे... आठ महीने काम करते तो गये... अभी तक (हिम्मत करके कहता है) मुझे वेतन...

(डी0पी0 दोरिया जोर का ठहाका लगाते हैं।)

डी0 पीद्ध: आपके पास क्या नहीं है महाप्रभु? और आपसे अब तक कौन- सी इच्छा व्यक्त की है? हम तो चाहते हैं कि हमें आपकी सेवा का अधिक से अधिक अवसर मिले...

सुखानंदाचार्य: कुछ पैसा तो पास रहना...

डी0 पी: पैसा पाप का दूसरा रूप है महाप्रभु... पैसे से आप कया करेंगे...

सुखानंदाचार्य: पुण्य करूंगा श्रीमान्...

डी0 पी: आप जो आदेश दें किया जाये...

सुखानंदाचार्य: गांव में मंदिर है उसकी मरम्मत...

डी0 पी: मुरारी से कह दें हो जायेगा... और कोई आदेश...

सुखानंदाचार्य: (सोच में डूब जाता है) जी... वो... मैं... मुझे... मेरी... (हकलाता ह। रुक जाता है।)

डी0 पी0: महाप्रभु... कहिए कहिए... और कोई आदेश।

सुखानंदाचार्य: नहीं सेठ जी... नहीं... नहीं...

डी0 पी0: महाप्रभु अब हमारे बहुत रोकने और मना करने के बाद भी आपके दर्शनाभिलाषियों का दबाव इतना हो गया कि कुछ समझ में नहीं आता... लगता है समय निश्चित करना ही पड़ेगा... एक दिन जब लोग आकर आपके दर्शन कर लिया करें... महप्रभू दर्शनार्थियों की भीड़ का संचालन करने के लिए और आपका विशेष ध्यान रखने के लिए दो लड़कियां...

सुाानंदाचार्य: लड़कियां।

डी0 पी0: हां महाप्रभु... दो लड़कियां... जो आपका ध्यान रखेंगी... आपके पास...

सुखानंदाचार्य: पर उसकी क्या ज़रूरत है?

डी0 पी0: है महाप्रभु... दर्शनार्थियों में महिलाएं भी तो होंगी... विदेशी भी... अच्छा ही रहेगा...

सुखानंदाचार्य: जैसा आप उचित समझें...

(सुखानंदाचार्य सोच में डूब जाता है।)

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दृश्य : छह

(सुखानंदाचार्य का कमरा। वह उदास बैठा है। रात का समय है। अनोखेराम आता है।)

अनोखेराम: राम-राम अम्बिका भाई।

(सुखानंदाचार्य कोई उत्तर नहीं देता।)

अनोखेराम: क्या सेठ जी अभी इधर आये थे?

सुखानंदाचार्य: हां आये थे।

अनोखेराम: क्या बोले?

सुखानंदाचार्य: अनोखे भाई.. हमारी तो कुछ समझ में नहीं आता ये सब माया जाल...

अनोखेराम: पर बात क्या हुई?

सुखानंदाचाय: बात क्या... वही बोले... बोले आपके ऊपर हम करोड़ों रुपया ख़र्च कर रहे हैं... इतने आराम से यहां हैं... जो चाहिए हो बताएं... पैसा क्या करेंगे.. मंदिर मुरारी बाबू बनवा देंगे।

अनोखेराम: धत्त तेरे की... फिर वही मुर्गे की एक टांग।

सुखानंदाचार्च: हम तो सोचते हैं गांव ही लौट जायें अनोखे भाई।

अनोखेराम: अरे ये क्या पागलपन करेगा? सेठ जी मुझे तो कोल्हू में पिरा देंगे... और रोने लगती है... फिर आंख खुल जाती है... हम तो सो भी नहीं पाते रात भी... पूरे दिन वही एक बात दिमाग़ में गुंजा करती है... फिर वो लोग आ जाते हैं तो बेमन से सब काम करने पड़ते हैं...

अनोखेराम: अरे इतना अनमना क्यों होता है रे... कुछ न कुछ तो होगा ही... अब जाने सेठ जी क्या करना चाहते हैं?

सुखानंदाचार्य: अरे वो तो कभी अमेरिका-लंदन की बात करते हैं... कभी करोड़ों रुपये की बात करते हैं... कभी कहते हैं स्वामी सुखानंदाचार्य आप हमारे प्रभु हैं... क्या जाने क्या है अनोखे भाई...

अनोखेराम: तो तेरे साथ बुरा क्या हो रहा है?

सुखनंदाचार्य: अनोखे भाई, एक बात कहें... तुम रामकली से मिल ही आओ... वहीं होगी जहां अपने गांव बिरादरी की और लड़कियां होंगी... मेरी बात मान लो अनोखे भाई... तुम अपनी आंख से उसे देख लोगे... तो लगेगा... हमने देखा... फिर उससे कह भी देना कि जुगाड़ कर रहे हैं उसे छुड़ाने की...

अनोखेराम: काम तो ये टेढ़ा है... पर...

सुखानंदाचार्य: पर कर ही डाल भाई... देख ‘न' न करना...

अनोखेराम: पर मेरे पास टाइम कहां है?

सुखनंदाचार्य: सेठ जी से कह कर तुझे छुट्टी दिला दें...

अनोखेराम: नहीं... ऐसा न करना... शक्की मन है उनका...

सुखानंदाचार्य: तुम्हें कभी छुट्टी ही नहीं मिलती...

अनोखेराम: मिलती है पर...

सुखानंदाचार्य: ये काम कर ही दे भाई... मैं फिर तुझसे कुछ न कहूंगा... मेरी बहन को देख आ (गिड़गिड़ा कर) तेरे पैर पड़ता हूं... मैं... चला जा अनोखेभाई... मेरी आत्मा व्याकुल रहती है... जाने कैसी होगी वह... तो तू जायेगा न?

अनोखेराम: (ठंडी सांस लेकर) ठीक है चला जाऊंगा...

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दृश्य : सात

(डी0 सी0 चुग के ड्राइंग रूम का दृश्य। डी0 सी0 चुग, मिसेज चुग, मल्लिका चुग तथा उनके चाचा (अंकल) बैठे हैं।)

मल्लिका: डैडी इम्पासेबुल... जस्ट इम्पासेबुल... ये दोरिया अपने को समझते क्या हैं। और मेरा तो उनसे कोई मतलब नहीं है...

अंकल: यू आर राइट मल्लिका... ये कोई... तमाशा है क्या?

डी0 सी0 चुग: तुम इन सब चीज़ों को जितना आसान समझ रही हो उतनी हैं नहीं... देखे दोरिया को तुम अपने घर में बैठकर जो चाहे कह लो... लेकिन...

अंकल: वेरी राइट भाईसाहब... अरे दोरिया सीमेंट, दोरिया कैमिकल्स, दोरिया फर्टिलाइजर्स, दोरिया पेपर्स, दोरिया टे्रडिंग, दोरिया शिपिंग, दोरिया ड्रग्स, दोरिया स्टील, दोरिया रियल इस्टेट, और... दोरिया सेंटर फार लैंग्वेज, लिटरेचर एंड कल्चर... आप कहां आयेंगे इन लोगों से भाग कर?...

मल्लिका: आप लोग इनके पैसे से और इनसे इम्पे्रस हों तो हों... मैं कभी नहीं हो सकती... आई एम ए फ्री स्टिीज़न आफ ए फ्री कंट्री...

अंकल: यू आर राइट मल्लिका... क्या कोई जोर जबर्दस्ती है...

मल्लिका: कांस्टीट्यूशन ने कम से कम ये हमें... सिविल राइट्स दिये हैं... फण्डामेंटल राइट्स... आप आज किसी को गधे और घोड़े की तरह हांक तो नहीं सकते?

अंकल: हंड्रेड परसेंट राइट मल्लिका... अब मेरा ही केस ले लो...

डी0 सी0: बेटी, ये बहुत सीरियस प्राब्लम है... तुम ये मत सकझो कि दोरिया के पी0 ए0 मुरारी ने मुझसे निवेदन किया है।

मल्लिका: तो उसने आपको आर्डर दिया है?

डी0 सी: मैं कहता हूं इसमें बुराई क्या है? ये तुम्हें स्वामी सुखानंदाचार्य बोर्ड आफ ट्रस्टीज़ पर रखना चाहते हैं... ये तो सम्मान की बात होगी... फिर तुम्हें...

मल्लिका: डैडी मैं ये स्वामी स्टंट को ‘हेट' करती हूं... ये सब फ्राड हैं... इस्प्रीचुवलिज्म... माई फुट...

डी0 सी0: नहीं बेटी... बहुत से सवालों के जवाब साइंस भी नहीं दे पाती...

अंकल: वेरी राइट भाई साहब... साइंस तो आज तक मुझे एक भी सवाल का जवाब नहीं दे पाई... जबकि इधर-उधर के लोग फिर भी दे देते हैं...

डी0 सी0: प्लीज़ शट अप... (मल्लिका से) बेटा... तुम ये क्यों समझती हो कि स्वामी सुखनंदाचार्य फ्राड है... वह खुद ही कहता है कि वह कोई आध्यात्मिक आदमी नहीं है।

मल्लिका: फिर वह क्या है? उसके आगे पीछे कैसा ‘पैराफरनोलिया' है?

अंकल: यू आर राइट मल्लिका... ये साधु-महात्मा, संत-फकीर... ‘मैटरी मोनियल' से लेकर ‘मर्डर' तक में काम आते हैं?

डी0 सी0: मल्लिका, दोरियाज़ को पबिल्क रिलेशन्स के लिए ये सब करने की कोई ज़रूरत नहीं है... तुम जानती ही हो बड़े-बड़े मंत्री है उनकी ‘पैरोल' पर...

(वाक्या अधूरा छोड़ देता है।)

अंकल: राइट भाई साहब... आधी सरकार उसकी जेब में रहती है...

श्रीमती चुग: बेटी, मैं तो समझती हूं... इसमें बुरा क्या है? साधु-संत किसी धर्म का हो... उसके संग आदमी कुछ सीखता ही है।

मल्लिका: प्लीज़ मम्मी... मैं नहीं सीखना चाहती... अगर मुझसे यही काम लेना था तो मुझे क्यों ऐसा पढ़ाया लिखाया कि मैं अपना अच्छा बुरा सोच समझ सकती हूं।

डी0 सी0: मल्लिका मेरी बात ध्यान से सुनो... इसलिए बता रहा हूं कि अब तुम बच्ची नहीं रही हो। मैं पिछले दस साल से दोरियाज़ में हूं... जितनी लम्बी लम्बी जम्प्स मैंने यहां ली हैं, उनकी लोग कल्पना भी नहीं कर सकते हैं... दो हज़ार से सोलह हज़ार की सीढ़ी पर मैं दस साल में पहुंचा हूं... कौन-सी चीज़ है जो आज मेरे पास नहीं है... ‘वर्कस' ऐसे हैं कि उन्हीं के सहारे सब खर्च पूरे हो जाते हैं... ये सब क्यों है बेटी जानती हो? इसलिए नहीं कि मैं दोरियाज़ का रिश्तेदार हूं... बल्कि इसलिए कि मैंने दोरियाज़ का करोड़ों रुपये का फायदा करके दिखाया है। करोड़ों के फायदे के लिए क्या कुछ नहीं किया जाता, ये तुम से छिपा नहीं है... कभी-कभी तो... ऐसे काम करने पड़ते हैं... जिन्हें तुम... ‘सिविलाइज्ड लैंग्वेज' में ‘क्राइम'... हां ‘क्राइम' तक कह सकती हो... लेकिन जिन्हें हम मैनेजमेंट वाले ‘रेज़ल्ट ओरियन्टेड मैनेजमेंट' कहते हैं... एकाउंट्स, सेल, परचेज, इन्कमटैक्स और सेल्सटैक्स के फर्ज़ी रिकार्ड... दोरियाज़ आकर नहीं बनाते... हम लोगों को बनाने पड़ते हैं... उन पर साइन करने पड़ते हैं...

मल्लिका: ठीक है डैडी... अगर ये सब इसी कीमत पर होना है तो.



दृश्य : आठ

(मल्लिका और उसका प्रेमी अनादि साथ-साथ बैठे हैं। दोनों के चेहरे पर तनाव है। अनादि मल्लिका को घूर रहा है।)

अनादि: मैं समझ नहीं पा रहा हूं। तम कह क्या रही हो?

मल्लिका: अनादि तुम समझ नहीं सकते या समझना चाहते नहीं। (ज़ोर देकर) मैं स्वामी सुखानन्दाचार्य महाप्रभु के ट्रस्ट की मैम्बर बन गयी हूं। मैंने कालेज छोड़ दिया है। मेरी एम. फ़िल. अब कभी नहीं पूरी हो सकेगी।

अनादि: तुम अच्छी तरह जानती हो धर्म की ये दुकानें करप्शन के अड्डे हैं। ये करप्ट लोग हैं। दुनिया भर के पापा वहां होते हैं। और तुम वहां जा रही हो?

मल्लिका: हां मैं वहां जा रही हूं।

अनादि: लेकिन क्यों मल्लिका?

मल्लिका: इतने सवाल मत पूछो अनादि।

अनादि: तुम ये सब अपनी मर्ज़ी से कर रही हो?

मल्लिका: हां।

अनादि: (बिगड़ कर) तुम झूठ बोलती हो मल्लिका।

मल्लिका: ये कहने का तुम्हें क्या अधिकार है?

अनादि: इसका मतलब है वह सब नाटक था जो तुम पहले करती थीं। ‘वीमेन्स स्ट्रगल' का अन्त चोर महात्माओं के आश्रम में होता है। ‘माक्ईज़्म' और ‘क्लास स्ट्रगल' ने तुम्हें यहीं पहुंचाया है? जो तुम दुनिया के मज़दूरों एक हो नारा लगाया करती थीं वह फ़र्जी था? भूख हड़तालों और धरनों तथा मीटिंगों...

मल्लिका: (रोती आवाज़) प्लीज़ अनादि।

अनादि: कम से कम तुम मुझे तो धोखे में न रखतीं। मेरे साथ तो झूठ न बोला होता... मल्लिका ये सिर्फ़ तुम्हारा सवाल नहीं है... मुझे लगता है... मेरा... मतलब जिससे मैं प्यार करता था...

मल्लिका: प्लीज़ अनादि छोड़ो उन बातों को।

अनादि: तुम्हारे कहने या मुझे बोलने से रोक देने के बाद भी मेरा इस सवाल से पीछा नहीं छूट सकेगा कि मलिका, तुमने ये सब क्यों किया?

मल्लिका: तुम्हें धोखा दिया?

बनादि: हां, मुझे धोखा दिया... अपने आप को धोखा दिया और अब... अब उस स्वामी को भी धोखा ही दोगी... क्योंकि तुम शायद...

(मल्लिका रोने लगती है। अनादि चुप हो जाता है।)

अनादि: (कड़वे सवार में) रोने का अभिमय न करो मल्लिका, मेरा वह विश्वास पक्का हो गया है कि ‘क्लास कैरेक्टर' आसानी से नहीं बदलता... बल्कि कहीं-कहीं तो ‘आइडियोलॉजी' तक क्लास कैरेक्टर नहीं बदल पाती... एक तुम ही नहीं हो, आज हमारे चारों तरफ़ ऐसे लोगों की बड़ी तादाद है जो -दिमाग़ की खुजली' की वजह से दिन-दिन भर मिल गेट पर धरना देते हैं और उनकी रातें ‘फाइव स्टार' होटलों में गुज़रती हैं... हर तरह की क्रांति उस वक्त तक करते रहते हैं जब तक कि... खैर छोड़ो तुम्हारे केस में अफ़सोस है तो इस बात पर कि मैं धोखा खा गया...

मल्लिका: (रोने की आवाज़ में) प्लीज़ अनादि...



दृश्य : नौ

(सुखानन्दाचार्य अपने कमरे में बैठा है। रात अधिक बीत चुकी है। वह बेचैनी से किसी का इन्तज़ार कर रहा है। धीरे से दरवाज़ा खुलता है और अनोखेराम अन्दर आता है। सुखानन्दाचार्य उसकी ओर झपट पड़ता है।)

सुखानन्दाचार्य: बहुत देर कर दी अनोखे भाई?

अनोखेराम: अरे न पूछ... जब सब सो गये तब ही इधर आ पाया नहीं तो न जाने किसी को क्या शक होता।

सुखानन्दाचार्य: तुम वहां गए थे अनोखे भाई?

अनोखेराम: हां गया था।

सुखानन्दाचार्य: रामकली मिली?

अनोखेराम: बड़ी बिकट जगह है भाई... खोजते-खोजते मुसीबत आ गई... जिसे देख ऐसा लगता है कि दो चार क़तल किये हुए हो... अब मैं उधर कभी न जाऊंगा... गन्दगी इतनी है कि टट्टी-पेशाब में भी न होगी...

सुखानन्दाचार्य: (बेचैनी से) रामकली मिली अनोखे भाई।

अनोखेराम: अरे वही तो सब बता रहा हूं... खेजते-खोजते तंग आ गया... अपने तरफ़ का एक आदमी मिला तो बताया कि बिल्डिंग नंबर बारह में जाओ... वहां से बताया कि पिछली गली में जाओ... वहां गया तो...

सुखानन्दायार्च: रामकली मिली?

अनोखेराम: अरे पूरी बात तो सून ले भाई... अभी वहां मिली। बिल्डिंग के अन्दर गया तो पचासों लड़कियां... हरामियों ने जीवन नरक बना दिया है... किसी को बीमारी तो किसी को बुखार किसी को खाने को नहीं... तो कोई लड़ रही है तो कोई तीसरे माले पर गया... वहां मिली रामकली...

सुखानन्दाचार्य: क्या बोली?

अनोखेराम: बोलेगी क्या? मुझे देखते ही रोने लगी...

सुखानन्दाचार्य: (निराश भरे स्वर में) रोने लगी?

अनोखेराम: अरे और क्या वहां हंसेगी? क्या तो वहां का हाल है। उसका ससुर भी साला कुत्ता है जो अपनी बहू को चकले वालों के हाथ बेच डाला... बोटी-बोटी नोंच डाली है उसकी। सूख कर काटा हो गई है। आंखों अन्दर को धंस गई हैं... बड़ा बेढब हाल हो गया है उसका।

सुखानन्दाचार्य: कुछ बात हुई? तुमने बताया कि उसे छुड़ाने के लिए मैं पैसा जमा कर रहा हूं... जल्दी ही उसे छुड़ा ले जाऊंगा।

अनोखेराम: सब बतला दिया... कहने लगी जल्दी ही वहां से ने निकल पायी तो उसकी लाश ही निकलेगी वहां से...

(सुखानन्दाचार्य दुख के कारण बिलकुल पत्थर की मूर्ति जैसा हो जाता है।)

अनोखेराम: दिलासा दिया... बीस रुपये थे मेरे पास... दिये पर रुपये तो उससे तुरन्त एक बुढ़िया ने छीन कर अपने पास रख लिए और गालियां देकर कहने लगी कि रामकली के लिए उसने हज़ारों रुपये ख़र्च किए हैं... रामकली की आमदनी उसी की है।

सुखानन्दाचार्य: अनोखे भाई मैं सेठ जी को बता ही देता हूं।

अनोखेराम: (चौंककर) क्या? अरे ये क्या कहता है... तू भी निकाला जायेगा... मेरे भी जूते पड़ेंगे... ये बिल्कुल न करना।

(सुखानन्दाचार्य का चेहरा फिर पत्थर का सा हो जाता है। लगता है वह कुछ सुन ही नहीं रहा है।)

अनोखेराम: अरे कोई और रास्ता निकालेंगे... तू सेठ से बिलकुल न कहना कि तेरी बहन चकले में पेशा करती है... समझता है... समझ गया?



दृश्य : दस

(डी0 पी दोरिया तथा गीलानी बैठे हैं। डी0 पी दोरिया की कोठी का ही कोई कमरा है।)

गीलानी: सर, सेक्स ऐलीमेंट ने तो पूरी ‘इमेज' को कहीं से कहीं पहुंचा दिया है। दोनों लड़कियों के बीच में सुखानन्दाचार्य एक देव-लोक की प्रतिमा जैसे लगते हैं... लड़कियां इस तरह उनके साथ रहती हैं कि वे होते हुए भी उनके साथ न हों... एक अजीब तरह का ‘अटेचमेंट' और ‘डिटेचमेंट' है जो स्प्रीचुअल ‘पैडेस्टल' पर ‘बेस' करता है... और लड़कियों की सेक्स अपील का मैसेज स्वामी सुखानन्दाचार्य के सुख और शांति के मैसेज के साथ इस तरह घुल जाता है कि दोनों एक-दूसरे के ‘सप्लीमेंट्री' लगते हैं।

डी0 पी0 दोरिया: आई एम हैप्पी एबाउट इट।

गीलानी: सर कम्पेन का पहला पेज़ पूरा हो गया है, छोटे शहरों के लोकल पेपर्स में सुखानन्दाचार्य पर ‘न्युज़ आइटम' और ‘राइड अप्स' आ रहे हैं... हमने बेस्ट अर्नालिस्ट्रस को इस काम के लिए इंगेज किया है... बाद में स्वामी सुखानन्दाचार्य की प्रेस ब्यूरो बनाना पड़ेगी। हम दुनिया के दस देशों में पचास साइंटिस्ट, टाप साइंस्टिट बुलायेंगे और वे स्वामी सुखानन्दाचार्य को देखकर कहेंगे कि ‘सुख' और ‘आनन्दा' का ऐसा अद्भुत अनुभव उन्हें कभी नहीं हुआ था... ये सब अख़बारों में छपेगा... ये हमारी ‘कम्पेन' का हिस्सा है। फिर योरोप और अमेरिका से ‘टाप पब्लिक पर्सनाल्टीज़' को बुलाया जायेगा... और उनके साथ स्वामी सुखानन्दाचार्य के फोटो इंटरनेशनल प्रेस में छपेंगे...

डी0 पी0 दोरिया: इट्स आल राइट... ये तो सब मैंने तुम्हारे ‘कम्पेन प्रोजेक्ट' में पढ़ लिया था... चीज़ों को ‘रिपीट' मत किया करो...ट्राई टु बी प्रसाइज़...

डी0 पी0 दोरिया: चुग की लड़की तो कोई प्राब्लम नहीं खड़ी कर रही है...

गीलानी: (हंस कर) नहीं सर... पता नहीं आपने क्या जादू कर दिया है।

डी0 पी0 दोरिया: मैंने तो उसे आज तक देखा भी नहीं।

गीलानी: अच्छा सर... लेकिन सर... एक बात है स्वामी सुखानन्दाचार्य को मल्लिका पसंद नहीं करती... मतलब... ठीक है... एक तरह से वह अच्छा ही है... शायद कुछ अभी ‘ट्यूनिंग' में प्राब्लम है... ठीक हो जायेगा... और सर हम सोचते हैं कि कोई नोबल प्राइज़ विनर स्वामी सुखानन्दाचार्य को यूरोप या अमेरिका ‘इनवाइट' करे...

डी0 पी0 दोरिया: ठीक है, लेकिन अभी नहीं... वी मस्ट गो स्लो...

गीलानी: यस सर...

(इंटरकाम पर घंटी बजती है। डी0 पी. दोरिया फोन उठाता है। एक क्षण सुनता है। कुछ बोलता नहीं। फोन रख देता है।)

डी0 पी0 दोरिया: और कोई प्राब्लम?

गीलानी: नो सर... नो प्राब्लम... तो मैं चलूं सर...

डी0 पी0 दोरिया: ठीक है...

(गीलानी उठकर चला जाता है। श्रुति अन्दर आती है।)

श्रुति: अंकल मैंने तो सोचा भी न था कि स्वामी सुखानन्दाचार्य महाप्रभु इतने पापुलर हो जायेंगे... ‘ट्रमिन्डस मास अपील'... इमेजिंग अंकल... अब तो लगता है कि कोठी के बाहर गाड़ियों की पार्किंग के लिए कोई बड़ा ही अरेंजमेंट करना पड़ेगा... और अंकल फोन की पांच लाइनें इतनी बिज़ी हैं कि आप कहीं किसी को ‘कान्टेक्ट' ही नहीं कर सकते... वी0 वी0 आई0 पी0 फोन पर इस तरह घिघियाते हैं जैसे भीख मांग रहे हों... आपको किसी ने बताया कि बाहर पुलिस को लाठी चार्ज करना पड़ा। टै्रफिक जैम हो गया और...

डी0 पी0 दोरिया: बेटी मुझे मालूम है... मैं पहले ही जानता था कि महाप्रभु की शक्ति ये चमत्कार कर देगी... इसलिए मैंने पूरे बोर्ड की मुख़ालफ़त के बाद भी महाप्रभु को अपनाया... उनकी सेवा की... वे महान् हैं बेटा... उनके चरणों का आशीर्वाद है कि आज सुख और शांति है आनंद और सम्पन्नता है...

श्रुति: महाप्रभु के वीडियो कैसेट भी बनाये जा सकते हैं।

डी0 पी: यह काम महाप्रभु रिसर्च फाउंडेशन करेगी... इसके अलावा और भी उसके प्रोजेक्ट्स हैं... तुम स्वयं महाप्रभु का ध्यान रखा करो। इन दो लड़कियों पर सब कुछ नहीं छोड़ा जा सकता।

श्रुति: यस अंकल... आई नो।



दृश्य : ग्यारह

(तेज़-तेज़ क़दमों से चलता स्वामी सुखानन्दाचार्य डी0 पी0 दोरिया के पास आता है। उसे देखकर डी0 पी0 डोरिया खड़ा हो जाता है और हाथ जोड़ कर कहता है।)

डी0 पी0 दोरिया: महाप्रभु आदेश दें...

सुखानन्दाचार्य: मुझे आठ हज़ार रुपये की ज़रूरत है...

डी0 पी. दोरिया: रुपये की चिंता करने की ज़रूरत नहीं है... पर क्या मैं जान सकता हूं क्यों?

सुखानन्दाचार्य: (घबरा कर) नहीं-नहीं... आप मेरे ऊपर विश्वास करें... मैं...

डी0 पी0 दोरिया: आपके ऊपर विश्वास है इसी वजह से पूछ रहा हूं और आप मेरे विश्वास को बनाये रखेंगे...

सुखानन्दाचार्य: बस... बात ही कुछ ऐसी है... (अटक जाता है)

डी0 पी0 दोरिया: महाप्रभु... आप न भी बतायेंगे तो भी पता चल जायेगा... बतायेंगे तो... विश्वास बना रहेगा।

सुखानन्दाचार्य: (कुछ सोचते हुए) पर आप... अनोखेराम को नौकरी से निकाल तो न देंगे...

डी0पी0 दोरिया: अनोखेराम... ड्राईवर... क्या उसे चाहिए पैसा...

सुखानन्दाचार्य: नहीं.. चाहिए तो मुझे ही पर...

डी0पी0 दोरिया: तो उसमें अनोखेराम की नौकरी कहां से आ गयी?

सुखानन्दाचार्य: बात ही कुछ ऐसी है... आप वचन दें... अनोखेराम को नौकरी से तो न निकाल देंगे?

डी0पी0दोरिया: क्या आप ऐसा समझते हैं कि मैं कोई अनुचित काम करूंगा? अगर अनोखेराम को नौकरी से निकाल देना अनुचित काम होगा और जैसा कि मुझे लगता है, होगा ही, तो मैं उसे क्यों निकालूंगा।

सुखानन्दाचार्य: इसमें उसकी कोई गलती नहीं है... उसने तो मेरे साथ उपकार ही किया है... मैं नहीं चाहता मेरे कारण उसकी रोज़ी मारी जाये...

डी0पी0 रोदिया: पर बात है क्या...

सुखानंदाचार्य: ब...ब...बात... ये है... मुझे अपनी बहन रामकली के छुड़ाने के लिए आठ हजार रूपए चाहिए।

डी0पी0दोरिया: छुड़ाने के लिए- क्या मतलब? क्या पुलिस ने उसे गिरफ़्तार कर लिया है?

सुखनंदाचार्य: नहीं... नहीं... व... व... उसके ससुर ने... उसके ससुर पर किसी का आठ हज़ार कर्ज़ा था... उसे बेंच डाला...

(अटक जाता है।)

डी0पी0दोरिया: कहां बेच डाला... महाप्रभु... जब तक साफ़-साफ़ नहीं बतायेंगे मैं कुछ नहीं कर सकूंगा... बता देंगे तो शायद ही कोई ऐसा काम हो जा मैं न कर सकता हूं... मैं आपको महाप्रभु कहता हूं... आप मेरे भगवान के बराबर हैं...

सुखानंदाचार्य: (लगभग रोते हुए) वह बहुत कष्ट में है... बहुत ही कष्ट में...

डी0पी0 दोरिया: (स्वर बदल कर कुछ सख्‍़त और गर्म लहजे में) महाप्रभु, सब कुछ बतायें...

सुखानंदाचाय: मेरा और कोई नहीं है... एक बहन है... रामकली... उसके ससुर के ऊपर किसी का कर्ज़ा चढ़ गया था... उसने उसे किसी के हाथ आठ हज़ार रुपये में बेच डाला... रामकली से वह आदमी पेशा करा रहा है... जब उसके पैसे...

डी0पी0दोरिया: (सब समझ कर, चेहरे पर सख्‍़ती आ जाती है) कहां? यहां इसी शहर में?

सुखानंदाचार्य: हां, यहीं... वह बहुत कष्ट में है... कह रही थी... किसी तरह उसे...

डी0पी0 दोरिया: कह किससे रही थी? क्या आप उसके पास गए थे?

सुखानंदाचार्य: नहीं मैं... नहीं गया था...

डी0पी0 दोरिया: तब किससे कह रही थी...?

(सुखानंदाचार्य झिझकता है)

डी0पी0 दोरिया: सब कुछ साफ़-साफ़ बतायें महाप्रभु...

सुखानंदाचार्य: अनोखेराम से...

डी0पी0 दोरिया: ठीक है... मैं आपके कष्ट को समझता हूं... मैं जानता हूं कि इस समय आपके मन में किस तरह के विचार आ रहे होंगे... आपको कैसा अनुभव हो रहा होगा... निश्चय ही बहुत दुख और पीड़ा की बात है... लेकिन दुख ओर पीड़ा ने किसे छोड़ा है महाप्रभु... आप जानते हैं मेरी कोई संतान नहीं है... करोड़ों खरबों सम्पत्ति का कोई वारिस नहीं है... क्या ये सब सोचकर मुझे दुख नहीं होता होगा? क्या संतान से जो सुख मिलता है वह मुझे कसी तरह से मिल सकता है? हम सबके जीवन में कुछ-न-कुछ ऐसा है जो लगातार दुख देता है... लेकिन उसी को लेकर तो हम नहीं बैठ जाते? उसी को तो सब कुछ नहीं मान लेते? और आप तो महाप्रभु हैं... स्वामी सुखानंदाचार्य... लोगों को सुख और आनंद बांटने वाले... आप अपने दुख को इतना बड़ा मान लेंगे तो कैसे काम चलेगा सारे विश्व का दुख आपका है महाप्रभु... सारे विश्व के लोग आपके अपने हैं...

सुखानंदाचार्य: (रोते हुए) किसी तरह, उसे उस नरक से निकाल लें... मैं आपका दास बना रहूंगा... मैं आपका...

(फूट-फूट कर रोने लगता है)

डी0पी0 दोरिया: एक शर्त पर.. आप विश्वास करें रामकली वहां नहीं रहेगी... वह अपने पति के पास गांव चली जाएगी... पक्का विश्वास करें... पर इस बारे में किसी से भी... मुझसे भी नहीं... फिर कभी बात न करें... ऐसा करके आप अपने आपको छोटा बनाते हैं... चिंता सुख और आनंद को समुद्र के लिए अशोभनीय है...

(मध्यान्तर)



दृश्य : बारह

(रात का समय। सुखानंदाचार्य अपने कमरे में बचैनी से टहल रहा है। वह किसी को बुलाने के लिए घंटी बजाता है। कुछ क्षण बाद एक नौकर अंदर आता है।)

सुखानंदाचार्य: अनोखेराम को इधर बुला लाओ।

नौकर: महाप्रभु...

(हिचकिचाता है)

सुखानंचार्य: क्या... क्या बात है?

नौकर: आप मुरारी जी से बात कर लें...

सुखानंदाचार्य: क्यों? इसमें मुरारी जी से बात करने का क्या है?

नौकर: जी बात ये है महाप्रभु... कि... आर्डर नहीं है।

सुखानंदाचार्य: क्या आर्डर नहीं है?

नौकर: आप मुरादी बाबू से ही बात कर लें... उन्हें भेज दूं आपके पास?

सुखानंदाचार्य: (सोचते हुए) ठीक है, उन्हीं को भेज दो।

(नौकर चला जाता है सुखानंदाचार्य बेचैनी से फिर टहलने लगता है। कुछ क्षण बाद मुरारी आता है। मुरारी हाथ जोड़कर बड़ी श्रद्धा से सुखानंदाचार्य को नमस्ते करता है।)

सुखानंदाचार्य: अनोखेराम कहां है मुरारी जी... मैं उससे मिलना चाहता हूं।

मुरारी‘ आदेश दें महाप्रभु... क्या सेवा करूं?

सुखानंदाचार्य: अनोखेराम को यहां भेज दें।

मुरारी: (आश्चर्य से) गांव चला गया... लेकिन कब? क्यों? मुझसे मिले बिना वह जा कैसे सकता है?

मुरारी: महाप्रभु, उसे गांव गए तो कई दिन हो गए...

सुखानंदाचार्य: उसका परिवार?

मुरारी: सब गए महाप्रभु... लेकिन आप आदेश दें महाप्रभु... हम आपके सेवक तो यहीं हैं।

सुखानंदाचार्य: मुरारी जी... अनोखेराम मुझे बताये बिना गांव कैसे जा सकता है।

मुरारी: मेरा विश्वास करं महाप्रभु... उसकी छुट्टी मैंने ही मंज़ूर की थी।

(सुखानंदाचार्य सोच में पड़ जाता है।)

मुरारी: आप हमें आदेश दें महाप्रभु...

सुखानंदाचार्य: मैं बाहर जाना चाहता हूं... अकेले...

मुरारी: महाप्रभु... जहां. आप कहें मैं आपको ले चलूं...

सुखनंदाचार्य: नहीं, मैं अकेला जाना चाहता हूं...

मुरारी: महाप्रभु.. ये आप क्या कह रहे हैं... कल सुबह आपके दर्शन करने के लिए लोग अभी से कोठी के चारों तरफ़ खड़े हो गए हैं... आपको देखते ही वे बेक़ाबू हो जायेंगे... इस समय तो गार्ड्स भी इतनी संख्या में नहीं हैं कि भीड़ पर क़ाबू कर सकें...

सुखानंदाचार्य: लेकिन मैं जाना ही चाहता हूं मुरारी...

मुरारी‘ आप रुकें... मैं सेठ जी को बुलाता हूं।

(मुरारी इंटरकाम उठाकर बात करता है।)

मुरारी: सर... यस सर... ज़रूरी काम है महाप्रभु... इस समय अकेले बाहर जाना चाहते हैं... जी... जी... जी सर..

(इंटरकाम रख देता है।)

मुरारी: सेठ जी आ रहे हैं... महाप्रभु आपके दर्शनों के लिए तो पूरे शहर में उत्साह है... आप इस समय यदि...

(डी0पी दोरिया आ जाता है।)

डी0पी0 दोरिया: महाप्रभु सुखानंदाचार्य... आदेश दें...

सुखानंदाचार्य: मैं... मैं... बाहर जाना चाहता हूं...।

(डी0पी दोरिया मुरारी की तरफ़ देखता है। वह बाहर निकल जाता है। डी0पी. दरोरिया और सुखानंदाचार्य अकेले रह जाते हैं।)

डी0पी0 दोरिया: महाप्रभु... मैं जानता हूं आप कहां जाना चाहते हैं। लेकिन अब वहां रामकली नहीं है... रामकली गांव चली गयी है।

सुखानंदाचार्य: (कांपती आवाज़) मैं... आप... आप सच कह रहे हैं सेठ जी...

डी0पी0 दोरिया: महाप्रभु... विश्राम कीजिए... अपने मन को बिना कारण कष्ट न दीजिए।

(डी0पी0 दोरिया चला जाता है। सुखानंदाचार्य एक लम्बी सांस लेकर कुर्सी पर बैठ जाता है। फिर अचानक खड़ा हो जाता है।)

सुखानंदाचार्य: (स्वागत कथन) लेकिन तब अनोखेराम कहां चला गया है... बिना बताए... ऐसा तो नहीं हो सकता... वह मुझसे मिले बिना जा नहीं सकता... तो क्या झूठ बोल रहे हैं सेठ जी?... रामकली वहीं है... उसी नरक में...?

(दोनों हाथों से सिर पकड़ कर बैठ जाता है।)



दृश्य : तेरह

(श्रुति दोरिया बैठी है। डी0पी0 दोरिया टहल रहे हैं। उनके चेहरे पर पूरा आत्मविश्वास है जबकि श्रुति के चेहरे पर चिंता की हलकी परछाईं है।)

डी0पी0 दोरिया: महाप्रभु की बेचैनी का कारण है।

श्रुति: क्या कारण है?

डी0पी0 : भावुक आदमी के साथ जो घपले होते हैं उन्हीं में एक का शिकार हो गए महाप्रभु।

श्रुति: प्लीज़ अंकल बताइए... मैं बहुत परेशान हूं। महाप्रभु का नया व्यवहार तो बहुत परेशान कर देने वाला है। बड़े-बड़े लोग बैठे थे तब ही महाप्रभु अचानक उठे और अपने कमरे में चले गए... और जब उनको बुलाया गया तो महाप्रभु गुस्से में कांपने लगे... उनकी आवाज़ इतनी तेज़ हो गयी कि मेहमानों ने सुन ली हो तो हैरत नहीं।

डी0पी: आध्यात्मिक लोगों के साथ यह होता रहता है। वे हमारे तुम्हारे जैसे साधारण लोग नहीं होते- ऐसा सब विश्वास करते हैं। इसलिए महाप्रभु का व्यवहार सामान्य ही माना जाएगा। पर तुम्हारी चिंता यह है कि उनके व्यवहार में यह परिवर्तन आया क्यों?

श्रुति: महाप्रभु बहुत कोआपरेट करते थे। चुपचाप शांति और लगन से दर्शन देते थे... ये उन्हें आजकल क्या हो रहा है। बताया गया है कि अक्सर रात का खाना छोड़ देते हैं।

डी0पी: (टहलते-टहलते रुक कर) महाप्रभु की बेचैनी का कारण उनकी बहन रामकली है, जिसे उसके ससुर ने वेश्यावृत्ति के लिए आट हज़ार रुपये में बेच डाला है।

(श्रुति दोरिया का मुंह हौले से खुल जाता है)

डी0 पी0: पर यह महाप्रभु के लिए अपमान की बात नहीं बल्कि इस बात की पुष्टि होती है कि महाप्रभु हमारे-तुम्हारे जैसे साधारण आदमी हैं। और उन्हें स्वयं यह पता नहीं कि उनके अंदर कैसी शक्ति छिपी हुई है।

श्रुति: ये सब आपको कैसे मालूम हुआ अंकल?

डी0 पी0: महाप्रभु के मां-बाप मर चुके हैं। गांव में उनके पास थोड़ी बहुत ज़मीन है। महाप्रभु की बहन रामकली उनसे पंद्रह साल छोटी है। महाप्रभु ने उसे बच्ची की तरह पाला है। वे जान छिड़कते हैं रामकली पर। तीन साल पहले उन्होंने कुछ ज़मीन बेचकर रामकली की शादी कर दी थी। रामकली का ससुर औरतों का व्यापारी है। दलालों के हाथ रामकली को आठ हज़ार में बेच दिया था। वे अपनी बहन को चकले से आज़ाद कराना चाहते हैं।

श्रुति: तो इसमें क्या मुश्किल है।

डी0 पी0: रामकली आज़ाद हो गई है।

श्रुति: तब?

डी0 पी0: सवाल ये नहीं है कि रामकली अब वेश्या है या नहीं... थी तो क्यों थी। नहीं है तो क्यों नहीं है। सवाल है महाप्रभु अब तक अपने आपको, अपने अतीत को, अपने संबंधों को और अपने परिवेश को भूले नहीं हैं...

श्रुति: लेकिन अगर रामकली अब गांव लौट चुकी है तो महाप्रभु क्यों चिंतित हैं।

डी0 पी0 वे अपनी आंखों से रामकली को आज़ाद और खुश देखना चाहते हैं जबकि उन्हें मेरी आंखों पर उतना ही विश्वास करना चाहिए जितना अपनी आंखों पर करते हैं।



दृश्य : चौदह

(महाप्रभु सुखानंदाचार्य मंच पर बैठे हैं। उनके इधर-उधर दो कन्याएं बैठी हैं। उनमें से एक मल्लिका है। मंच सफ़ेद फूलों से बनाया गया है। महाप्रभु अपनी पूरी गरिमा के साथ विराजमान हैं। हल्का आध्यात्मिक संगीत बज रहा है। पूरे वातावरण में लोबान का धुआं है। मंच पर एक ओर से लोग आते हैं। महाप्रभु के पैर छूते हैं और श्रद्धा से उनकी तरफ़ देखते हैं। दूसरी ओर से निकल जाते हैं। वे कुछ बोलते नहीं। दो संचालक भी मंच के इधर-उधर खड़े हैं।)

संचालक-1: (संचालक 2 से) अब तो दस बज गया...

संचालक-2: बाहर तो इतनी भीड़ है कि लाठी चार्ज हो रहा है...

संचालक-1: हम क्या कर सकते हैं। दर्शन का समय तो ख़त्म हो गया।

संचालक-2: (अपनी जेब से वायरलेस सेट निकाल कर) हैलो... हां, मैन गेट बंद करा दो... बस... कल कहां?... कल तो महाप्रभु सिडनी जा रहे हैं... फिर? मैं क्या बताऊं, आफ़िस से पूछो कि कब आयेंगे...

(धीरे-धीरे लोगों का आना कम हो जाता है। एक अंतिम आदमी आता है और पैर छूकर चला जाता है।)

संचालक-1: महाप्रभु... समय हो गया है...

(स्वामी सुखानंदाचार्य जैसे सुन नहीं पाते। लड़कियां खड़ी हो जाती हैं।)

संचालक-2: (लड़कियों से) कल का प्रोग्राम आफ़िस से मिल जाएगा... पर शायद कल सिडनी के लिए मार्निंग फ़्लाइट लेनी होगी...

मल्लिका: (झल्लाकर) अभी कल ही तो मौंट्रियाल से लौटे हैं...

संचालक-1: मैडम हम क्या कर सकते हैं? प्रोग्राम तो आफ़िस में ही बनता है...

मल्लिका: उसके बाद?

संचालक-1: उसके बाद पेरिस में महाप्रभु ‘वर्ल्ड कान्फ्रेंस ऑफ़ आल रिलीजन्स' का उद्घाटन करंगे।

मल्लिका: (उसकी बात काट कर) मैं तो तंग आ गयी हूं... कहीं दो रातें नहीं गुज़रतीं... पता नहीं ये (धीरे से स्वामी की ओर देख कर) कैसे मैनेज कर लेता...

दूसरी लड़की: अच्छा तो मैं जाऊं?

संचालक-1: गाड़ी बाहर ही है... गेट नंबर तीन पर लेकिन मैडम आफ़िस में रिपोर्ट कर देना।

मल्ल्किा: (उकता कर और स्वामी की तरफ़ नाराज़गी से देखते हुए) मैं भी चलती हूं...

(मंच का सारा प्रकाश मल्लिका पर केंद्रित हो जाता है। मल्लिका का स्वागत कथन)

मल्लिका: पाखण्डी, चोर, कमीना, कुत्ता... शिट... आई हेट हिम... सारे पाखंड की जड़... कैसा आंखों फाड़े बैठा रहता है... मेरी तो ज़िन्दगी बर्बाद कर दी कमीनों ने....

(पूरे मंच पर प्रकाश आ जाता है। मल्लिका का स्वागत कथन समाप्त हो जाता है।)

मल्लिका: ठीक है तो मैं चलती हूं...

(बाहर निकल जाती है।)

(कुछ क्षण के बाद संचालक भी बाहर चले जाते हैं। स्वामी सुखानंदाचार्य अकेला रह जाता है। वह धीरे से उठता है। उसकी आंखें डबडबा रही हैं। वह धीरे-धीरे चलता हुआ खिड़की के पास आता है और खिड़की पर सिर रख देता है। उसी क्षण दूसरे दरवाज़े से डी0 पी0 दोरिया आता है। वह कुछ क्षण सुखानंदाचार्य को उदास बैठा देखता है। फिर धीरे-धीरे पास आता है। उनके कंधे पर हाथ रख देता है। सुखानंदाचार्य चौंक जाता है।)

डी0पी0 दोरिया: आप दुखी हो रहे हैं महाप्रभु?

सुखानंदाचार्य: नहीं... नहीं... दुख कैसा?

डी0पी0: महाप्रभु, हमारे बीच सच बोलने का पक्का वायदा है।

सुखानंदाचार्य: कुछ नहीं सेठ जी... रामकली की याद आ गई थी...

डी0पी0 दोरिया: आपको मैं बता चुका हूं वह अब इस शहर में नहीं है... आपने मुझसे यह भी वायदा किया था कि रामकली के बारे में आप किसी से कोई बात नहीं करेंगे... मुझसे भी नहीं... महाप्रभु आप सुख और आनन्द का समुद्र हैं... आपसे लाखों को प्रेरणा मिलती है... आपके दर्शन मात्र से करोड़ों ग़रीब असहाय लोगों में सुख और आनंद का भाव जागृत होता है... कितनी बड़ी बात है ये...

सुखानंदाचार्य: अनोखेराम कहां हैं सेठ जी...

डी0पी0: (सख्‍़ती से) वह गांव गया है।

सुखानंदाचार्य: नहीं सेठ जी... आप... आपने उसे नौकरी से निकाल दिया है... आप....

डी0पी0: शक का इलाज नहीं है... संदेह लोग भगवान पर भी करते हैं... आप मेरा विश्वास करें महाप्रभु... पूरा विश्वास।

सुखानंदाचार्य: तो रामकली गांव पहुंच गई है?

डी0 पी0: आपने मुझे वचन दिया है मि रामकली के बारे में किसी से, यहां तक कि मुझसे भी कोई बात नहीं करेंगे।



दृश्य : पन्द्रह

(सुखानंदाचार्य अपने कमरे में बैठा है। रात का समय है। वह बहुत थाका हुआ लग रहा है। उठकर टहलने लगता है।)

सुखानंदाचार्य: (स्वागत कथन) हे भगवान, हे दुर्गामाता... जाने ये सब कब ख़त्म होगा... अरे मैं तो यहां आया था कि रामकली को छुड़ा ले आऊंगा... फिर उसे ससुराल न भेजूंगा... वहीं गांव में वह भी रहती। गइया उससे कितनी हिली हुई है... दो तीन प्राणी लायक तो मोटा-झोटा अनाज हो ही जाता खेतों में... जाने पिछले जन्म के कौन-से पाप थे जो यहां आया... आज यहां तो कल वहां, तो परसों वहां... नाम भी नहीं बताते कहां ले आए हैं... बतायें भी तो क्या... क्या पता कौन शहर कहां है?... रात दिन का पता भी चलता... कभी रात में सुबह... दिन में रात... अब रामकली की खबर लगे तो कैसे लगे... मेरा क्या मैं तो यहीं का ट दूं तकलीफ़ क्या है- कुछ नहीं... पर रामकली का क्या हुआ... सेठ कहता है कि उसके बारे में बात न करो... अनोखेराम तीन महीने से लापता है...

(श्रुति अन्दर आती है। सुखानंदाचार्य रुक जाता है।)

श्रुति: महाप्रभु... दर्शनार्थी आ रहे हैं।

सुखानंदाचार्य: इस समय?

श्रुति: महाप्रभु क्षमा करें, दर्शन का टाइम तो ओवर हो चुका है लेकिन महाप्रभु... कुछ वी0 वी0 आई0 पी0 लोग हैं... प्लीज़।

(सुखानंदाचार्य बीच के सोफ़े के बीचोबीच बैठ जाता है। श्रुति बाहर चली जाती है। दोनों लड़कियां आकर महाप्रभु के दाहिने-बायें खड़ी हो जाती हैं। पूरा दर्शन वाला वातावरण बन जाता है।

डी0 पी0 दोरिया और कुछ बहुत ही सम्मानित नागरिक आते हैं। कुछ महिलाएं और दो-चार बच्चे हैं। सब महाप्रभु को देखकर हाथ जोड़े देते हैं।)

डी0पी0 दोरिया: बैठें... प्लीज़... महाप्रभु... आप मंत्री महोदय हैं।

(सब बैठ जाते हैं।)

मंत्री: वास्तव में महाप्रभु की आंखों में अद्भुत शांति, सुख और आनन्द का संदेश है।

मंत्री पत्नी: दोरिया जी महाप्रभु कुछ बताते नहीं... मतलब इनका (पति मंत्री की ओर संकेत) अभी तो इंडिपेंडेंट चार्ज नहीं है न।

डी0पी0 दोरिया: भाभी जी महाप्रभु सीधे तो नहीं बताते... संकेत देते हैं... वह भी हर समय नहीं... जब इच्छा होती है... और उनके संकेत समझने पड़ते हैं...

मंत्री पत्नी: तो कहिए संकेत दें...

डी0पी दोरिया: महाप्रभु... बतायें भाभी जी की मनोकामना पूरी होगी?

(सुखानंदाचार्य चुप रहता है। उनका पत्थर जैसा चेहरा स्थिर रहता है। आंखें एकटक देखती जाती हैं।)

डी0पी0 दोरिया: (एक क्षण बाद) अच्छा संकेत है।

मंत्री पत्नी: मुझे तो कोई समझ नहीं आया।

(डी0 पी0 दोरिया हंसते हैं।)

अन्य व्यक्ति: महाप्रभु आशीर्वाद देते हैं?

डी0पी दोरिया: हां हां क्यों नहीं।

अन्य व्यक्ति: ये हमारा बच्चा... कहिए इसके सिर पर हाथ रख दें।

(श्रुति बच्चे को महाप्रभु के पास ले जाती है। वे हाथ रख देते हैं।)

श्रुति: दरअसल महाप्रभु बहुत थके हुए हैं... रोज़ दस से पन्द्रह हज़ार आदमी दर्शन करते हैं... पिछले वीक इंग्लैंड के टुअर से आये हैं... अब टोरेंटो जा रहे हैं... वहां ‘स्प्रीचुअल यूनीवर्सिटी' इनको पी0 एच0 डी0 की डिग्री दे रही है... उसके बाद पूरे कांटीनेंट में प्रोग्राम लगे हुए हैं... इतना काम तो इनका ‘रोटीन' है... अब आप सोचिए...

डी0 पी0 दोरिया: अच्छा तो अब महाप्रभु को आराम करने दें।

(सब उठकर महाप्रभु के पैर छूते हैं और निकल जाते हैं। महाप्रभु अकेले रह जाते हैं।)



दृश्य : सोलह

(महाप्रभु का कमरा। वह खिड़की पर सिर रखे सो रहा है। अकेला है। तभी मल्लिका अन्दर आती है। वह महाप्रभु को देखकर आश्चर्य में पड़ जाती है। धीरे-धीरे आगे बढ़ती है। महाप्रभु के कंधे पर हाथ रख देती है। महाप्रभु पीछे देखता है और मल्लिका की ओर देखकर आंसू पोंछने लगता है और कोशिश करता है कि वह अपने ‘सही' रूप यानी महाप्रभु सुखनंदाचार्य के रूप में आ जाये। पर मल्लिका की आंखों में सहानुभूति देखकर वह अपना इरादा बदल लेता है और एक निरीह-सा आदमी लगने लगता है।)

मल्लिका: आप रो रहे थे महाप्रभु!

(सुखानंदाचार्य कुछ नहीं बोलता।

मल्लिका आश्चर्य से उसकी ओर देखती रहती है। वह नज़रें झुका लेता है।)

मल्लिका: आप क्यों रो रहे थे महाप्रभु?

(वह फिर कोई जवाब नहीं देता।)

मल्लिका: (बहुत सहानुभूति और स्नेह से) नहीं बतायेंगे?

(मल्लिका महाप्रभु का हाथ पकड़कर उसे मंच की ओर लाती है। वह मंच पर बैठ जाता है।)

मल्लिका: क्यों रो रहे थे आप महाप्रभु?... इतनी ख्याति... इतना धन... इतना सम्मान... फिर भी आप रो रहे थे... बताइए?

सुखानंदाचाय: क्या बताऊं... मैं कुछ नहीं...

मल्लिका: कुछ तो है महाप्रभु...

सुखानंदाचार्य: (अचानक फट पड़ता है) हां है-है क्यों नहीं... मैं... मैं... इसलिए थोड़ी आया था शहर कि इतना बड़ा महाप्रभु बना दिया जाए मुझे। जहां चाहते हैं ले जाते हैं... जो चाहते हैं करना पड़ता है... और आठ हज़ार रुपया तक नहीं दिया कि... (स्वर बदल जाता है। हताश है, पराजय के स्वर में) मैं... यहां आया था... इस शहर में मेरी बहन रामकली को उसके सुसर ने बेच डाला था। आठ हज़ार रुपये में। वह कोठे पर बैठा दी गई है... मैं सोचता था... मेहनत मज़दूरी करके... रुपया जोड़कर... उसे वापस ले जाऊंगा। (स्वर बदलता है। अधिक करुण होता है।) मेरा और कोई नहीं है... वही है... पूरी दुनिया में...

(यह सुनकर मल्लिका का चेहरा दमकने लगता है। जैसे उसे कोई बड़ा रहस्य का पता चल गया हो। वह उत्त्ोजित हो जाती है।)

मल्लिका: तो आप महाप्रभु सुखानंदाचार्य नहीं है?

सुखानंदाचार्य: नहीं नहीं नहीं... मैं अम्बिका प्रसाद हूं...

मल्लिका: और आपकी बहन?

सुखानंदाचाय: बहन... हां उसका नाम रामकली है... गांव हमारा सतपुरा है... उसके ससुर ने उसे दलालों के हाथ बेच डाला है... उसे देखकर अनोखेराम आया है... कह रहा था- बीमार भी रहती है... कह रहा था (करुण स्वर में)... कह रही थी किसी तरह इधर से निकालो मुझे...

मल्लिका: तब आपने क्या किया...

सुखानंदाचाय: क्या करता... रुपया कहां है? सेठ जी से कहा था...

मल्लिका: फिर?

सुखानंदाचाय: सेठ जी ने कहा... सब हो जायेगा... तुम्हारी बहन अपने गांव पहुंच जायेगी... पर तुम किसी से ये सब...

मल्लिका: तो क्या आपकी बहन गांव नहीं पहुंची?

सुखानंदाचाय: पहुंची होती तो... पता नहीं... पता तो चलता... और फिर अनोखेराम भी अब मेरे पास नहीं आता... मैं... उसके पास नहीं जा सकता... जब निकलता हूं तो कोई साथ है... हर समय... यहां-वहां, इधर-उधर... सब जगह... सब तरफ़ से...

मल्लिका: हूं... इसका मतलब है- पता नहीं ब आप की बहन ज़िन्दा भी हो कि नहीं?

सुखानंदाचाय: (घबरा कर) क्या कहती हो?

मल्लिका: महाप्रभु... आप इसे नहीं समझ सकते... क्या बहन का पता दे सकते हैं... मैं पता लगवा सकती हूं... अगर

सुखानंदाचाय: बिल्डिंग नंबर बारह। पीछे वाली गली से तीसरे तल्ले में... नाम...

मल्ल्किा: रामकली है।

सुखानंदाचाय: हां रामकली।



दृश्य : सत्रह

(अनादि अपने फ़्लैट में मेज़ पर बैठा कुछ लिख रहा है। रात बहुत बीत गई है। अचानक कालबेल बजती है। वह चौंक जाता है। उठकर दरवाज़ा खोलता है। सामने मल्लिका खड़ी है। वह मल्लिका को देखकर बुरा-सा मुंह बना लेता है। मल्लिका उत्तेजित है।)

मल्लिका: अनादि सुनो, महाप्रभु सुखानंदाचार्य कोई परभु-विरभु नहीं है... वह फ्राड है... बल्कि उसके साथ फ्राड किया जा रहा है... वह तो समझो गिरफ़्तार कर लिया गया है... उसके ‘मूवमेंट्स' तक ‘चेक' किये जाते हैं... और उसकी बहन तो ‘प्रास्टीट्यूट' है...

अनादि: ये तुम क्या कह रही हो... शायद...

मल्लिका: (जोश में) अनादि पूरी बात तो सुनो... महाप्रभु सुखानंदाचार्य वाला पूरा ‘फ्राड एक्सपोज़' हो गया है... मतलब मुझे पता चल गया है।

अनादि: तुम पहले ठीक से बैठ जाओ। पानी पियो... क्या तुम पैदल आ रही हो... तुम्हारी सांस क्यों फूल रही है...

मल्लिका: नो, थेंक यू अनादि... आई डोंड वांट ऐनीथिंग... सुनो... पूरी बात सुनो... आज दर्शन वाले ड्रामे के बाद मैं बाहर आई तो याद आया कि चाबियां उसी कमरे में रह गई हैं... अन्दर आई तो देखा महाप्रभु खिड़की पर सिर टिकाये बच्चों की तरह फूट-फूट कर रो रहा है।

अनादि: क्या कह रही हो... रो रहा था... रोएगा क्यों वह फ्राड... कहीं तुम्हें फंसाने के चक्कर में तो नहीं है...

मल्लिका: (झल्ला कर) अरे बात तो सुनो...

अनादि: सुनाओ।

मल्लिका: मैंने उससे पूछा कि क्या बात है तो अपनी पूरी दास्तान सुना गया... वो स्टोरी अगर प्रेस में आये तो ये फ्रॉड खुल जाएगा... और मैं भी वहां से निकल भागूंगी... समझे...

अनादि: स्टोरी बताओ...

मल्लिका: महाप्रभु... जो है वो सीधी-सादा आदमी है... उसकी बहन को उसके ससुर ने कुछ हज़ार में बेच डाला था... उसकी बहन अब यहीं है ‘रैडलाइट' एरिया में है। महाप्रभु यहां आया था कि किसी तरह मेहनत-मज़दूरी करके अपनी बहन को छुड़ा ले जाएग... मतलब कर्ज़ उतार देगा... यहां वो डी0 पी0 दोरिया के हत्थे चढ़ गया... और उसने पूरा खेल शुरू कर दिया... डी0 पी0 दोरिया को जब ये पता चला कि जिस आदमी को उसने ‘इंटरनेशनल फेम' का महाप्रभु सुखानंदाचार्य बना दिया है उसकी बहन वेश्या है तो दोरिया ने सुखानंदाचार्य को बिल्कुल ‘क़ैद' कर लिया है... अगर प्रेस में...

अनादि: उसकी बहन का क्या नाम है?

मल्लिका: उसका नाम रामकली है।

अनादि: रामकली... पर पता नहीं इस नाम की कितनी प्रास्टिट्यूट्स इस शहर में होंगी...

मल्लिका: क्या बात करते हो... उसका पूरा पता है... बिल्डिंग नम्बर बारह, तीसरा तल्ला... रामकली नाम है उसका...

अनादि: ग्रेट... अब तो मैं सेठ डी0 पी0 दोरिया को बता दूंगा कि फ्रॉड करने का क्या ईनाम मिलता है... आज तो नहीं... कल पूरे नेशनल प्रेस में महाप्रभु और उसकी बहन की तस्वीरें साथ-साथ छपेंगी... और दोरिया की भी... कुत्ता साला...

मल्ल्किा: लेकिन... तुम्हें...

अनादि: तुम फिक्र मत करो... मैं पहले रामकली के पास जाऊंगा... उसका इंटरव्यू टेप कर लूंगा... फिर प्रेस जाऊंगा...

मल्लिका: लेकिन शायद... रामकली को... दोरिया ने...

अनादि: कुछ कह नहीं सकता... देखो अगर दोरिया ने रामकली को कहीं ‘इधर-उधर' कर दिया हो तब भी तुम महाप्रभु से यही कहना कि उसकी बहन पेश कर रही है... यहीं है।

मल्लिका: क्यों?

अनादि: इसलिए कि वह यक आश लगाये रहे कि अपनी बहन को पा जाएगा... ठीक है?

मल्लिका: हां...

अनादि: बल्कि तुम महाप्रभु से यह भी कह सकती हो कि उसकी बहन की बड़ी बुरी हालत है... जल्दी ही वहां से न निकाली गई तो... शायद मर ही जाए... या किसी भयानक बीमारी में... समझ गयीं...

मल्लिका: हां- हां... बिल्कुल...

अनादि: प्रेस का काम मेरे ऊपर छोड़ दो... ऐसी ‘स्टोरीज़' तो प्रेस वाले दौड़ कर छापते हैं.. फिर अख़बारों में इतने दोस्त हैं, किस दिन काम आयेंगे?



दृश्य : अठारह

(अख़बार का दफ़्तर। न्यूज़ ऐडीटर के सामने अनादि बैठा है।)

न्यूज़ ऐडीटर: भई ख़बर तो ज़ोरदार लाये हो... पर ये छप नहीं सकती।

अनादि: क्यों नहीं छप सकती?

न्यूज़ ऐडीटर: हमारी पालिसी नहीं है।

अनादि: पालिसी नहीं है? क्या मतलब?

न्यूज़ ऐडीटर: किसी के ‘रिलीजस सेंटीमेंट' हम ‘हर्ट' नहीं कर सकते।

अनादि: रिलीजन का इससे क्या लेना-देना साहब...

न्यूज़ ऐडीटर: स्वामी सुखानंदाचार्य को मानने वाले पूरे विश्व में हैं- वे धर्म गुरू हैं... आप कह रहे हैं रिलीजन से उनका क्या देना...

अनादि: वह सब फ्रॉड है।

न्यूज़ एडीटर: सॉरी मिस्टर... प्लीज़...

(मंच पर अंधेरा हो जाता है। पुन: प्रकाश आता है। अनादि दूसरे अख़बार में किसी रिपोर्टर के सामने बैठा है।)

अनादि: पूरा सबूत है मेरे पास... देखा अपने...

रिपोर्टर: वो तो आप सब ठीक कहते हैं लेकिन...

अनादि: लेकिन क्या?

रिपोर्टर: भई मैनेजमेंट की पालिसी कोई डिस्प्यूट खड़ी करने की नहीं है...

अनादि: क्या मतलब...

रिपोर्टर: मतलब ये कि इससे पहले हमने एक भगवान के ख़िलाफ़ छापा था तो दफ़्तर पर हमला हो गया था... आप क्या चाहते हैं... फिर हम पर हमला कर दिया जाये...

अनादि: तो ये अख़बार का ढकोसला क्यों करते हैं?

रिपोर्टर: ये मिस्टर... क्या कहा?....

(प्रकाश चला जाता है फिर आता है, अनादि एक और अख़बार के कार्यालय में है।)

न्यूज़ एडीटर: छापने को तो छाप दें... लेकिन जाने हो क्या होगा? कम से कम मेरी नौकरी चली जायेगी... हमारे अख़बार का मालिक जगत कौड़िया डी0 पी0 दोरिया की बात न माने ये हो नहीं सकता...

अनादि: तब आप न छापें...

(उठता है। रोशनी चली जाती है। रोशनी फिर आती है। एक नये न्यूज़ एडीटर के सामने अनादि बैठा है।)

न्यूज़ एडीटर: देखो भाई, तुम इसे छपवाना ही चाहते हो तो किसी छोटे-मोटे अख़बार में छपवा दो...

अनादि: पर छोटे-मोटे अख़बार में छापने का असर ही क्या होगा... नेशनल डेली में छप जाता तो...

न्यूज़ एडीटर: किसी नेशनल डेली में ख़बर नहीं... छप सकती... जानते हो क्यों?

(एक रिपोर्टर पास बैठा ये बातचीत सुन रहा है। वह उठकर अनादि के पास आता है, और कंधे पर हाथ रखकर कहता है।)

रिपोर्टर: जानते हो क्यों? ये सुनना हो तो मेरे पास आओ...

न्यूज़ एडीटर: (हंसकर) हां हो आप रवींद्र जी से बात करें तो आपको सब समझा देंगे...

(रवींद्र अनादि को अपने टेबल पर ले जाता है। दोनों बैठ जाते हैं।)

रवींद्र: ऐसी बहुत-सी ख़बरें आती हैं... हमें पता भी चलती हें... लेकिन हम नहीं छापते... हम छापते हैं बलात्कार, हत्या, डकैती... खून... राहज़नी... पिस्तौल दिखाकर लूट लिया... ठगी... चार साल की बच्ची के साथ बलात्कार... आतंकवाद...

अनादि: ये आप लोग ठीक करते हैं?

रवींद्र: वो मैं कहां कह रहा हूं... सुनो बात... ये अख़बार... ये नेशनल प्रेस किसका है... तुम सके मालिक हो या मैं इसका मालिक हूं... नहीं... हममें से कोई नहीं... कुत्ता अपने मालिक के ‘शू' करने पर ही झपटता है... घर वालों पर नहीं झपटता... तुम चाहते हो... मालिक को ही काट खाए?

अनादि: लेकिन फ्री प्रेस...

रवींद्र: (ज़ोर का ठहाका मारकर) हंसी बहुत आती है... ‘जोक' ज़रूर थोड़ा पुराना हो गया है।

अनादि: इसका मतलब है?

रवींद्र: (बात काटकर) इसका मतलब है, ये सब ढोंग है... दिखावा है, झूठ है, मक्कारी है, चालाकी है, पाखंडी है, नीचता है... और अपने आपको... अपनी सड़ी-गली व्यवस्था को बचाए रखने की कोशिश है... अपने कुत्तों को दूध और डबल रोटी देना तो ज़रूरी हो ही जाता है... मैं भी यहीं काम करता हूं... मेरी बातें सुनकर तुम समझ रहे होगे कि मैं कितना फ्री हूं कि अपने मालिकों को उनके कार्यालय में बैठकर गालियां दे रहा हूं और फिर भी नौकरी बरक़रार है... मतलब मालिक उदार भी है... है न? ऑफ़िस में बैठकर मालिकों को चाहे जितनी गालियां दो वो उसे बर्दाश्त कर लेते हैं लेकिन अख़बार में ऐ लाइन उनके हितों के ख़िलाफ़ हो जाये तो... पेज तो बदल ही देते हैं... बीस साल सब-एडीटर बनाकर सड़ा सकते हैं... मतलब मैं सिर्फ़ इस कमरे में अपनी बात कह सकने के लिए फ्री हूं... और मेरे मालिक पूरे देश तक अपनी पहुंचाने के लिए फ्री हैं... फिर बताओ फ्री कौन है?... तो भाई तुम इस चक्कर में मत पड़ो... महाप्रभु सुखानंदाचार्य की बहन के लिए कुछ कर सकते हो तो करो... नहीं तो...



दृश्य : उन्नीस

(महाप्रभु सुखानन्दाचार्य अकेले बैठे हैं... मल्लिका मंच पर आती है। वे मल्लिका को देखते ही खड़े हो जाते हैं।)

सुखानन्दाचार्य: कुछ पता चला?

मल्लिका: पता चल गया है (स्वर निराश है) अच्छा हुआ महाप्रभु आपने मुझे बता दिया। नहीं तो आपको उस वक़्त पता चलता जब शायद बहुत देर हो चुकी होती।

सुखानन्दाचार्य: क्या रामकली वहीं है...

मल्लिका: हां महाप्रभु वहीं है... अनादि उससे मिलकर आया है... उससे बात की है...

सुखानन्दाचार्य: बात की है उससे?

मल्लिका: हां बात की है...

सुखानन्दाचार्य: क्या हाल है उसका?

मल्लिका: आप जानते हैं महाप्रभु नरक है पूरी वह जगह... वहां इन्सान नहीं शैतान रहते हैं... उन्होंने बड़ा बुरा हाल कर दिया है आपकी बहन का... इतना बुरा कि...

सुखानन्दाचार्य: बताओ... जल्दी बताओ...

मल्ल्किा: उसे बीमारी हो गयी है महाप्रभु... बहुत भयानक बीमारी... उसका शरीर सड़ने लगा है... पर अभी शुरूआत है...

(सुखानन्दाचार्य एकदम चेतनाशून्य हो जाता है। वह एकटक सामने की तरफ़ देखने लगता है। मल्लिका बोलती रहती है।)

मल्लिका: आपको बहुत याद करती रही थी रामकली... कह रही थी अब तो यही इच्छा है कि मरने से पहले एक बार आपको देख लें... ऐसी हालत में भी वे पानी उसे आराम से नहीं रहने देते...

(सुखानन्दाचार्य उसी प्रकार चेतनाशून्य दृष्टि से देखता रहता है।)

मल्लिका: दोरिया जी ने आपसे झूठ बोला था... आपको धोखा दिया था... रामकली आज तक उसी कोठे पर है जहां पहले थी... और आपको पता है महाप्रभू कि अनोखेराम ग़ायब हो गया है...

सुखानन्दाचार्य: (बुद्बुदाता है) अनोखेराम ग़ायब हो गया है।

मल्लिका: और दोरिया साहब के पी0 ए0 मुरारी ने पुलिस में उसके ग़ायब होने की रिपोर्ट कर दी है। डी0 पी. दोरिया ढोंगी आदमी है... वह आपको बर्बाद का देगा... इस ढोंग से आपको क्या मतलब...

(मल्लिका महाप्रभु सुखानन्दाचार्य की तरफ़ देखकर डर जाती है। उसका चेहरा बड़ा भयानक हो गया है। मल्लिका धीरे-धीरे खिसकती हुई बाहर निकल जाती है।

सुखानन्दाचार्य इन्टरकाम का बटन दबा देते हैं।)

सुखानन्दाचार्य: सेठ जी को अभी इधर भेज दो...

(सुखानन्दाचार्य बिल्कुल सीधा तन कर खड़ा हो जाता है। टहलता है। डी0 पी0 दोरिया का प्रवेश। डी0 पी0 दोरिया महाप्रभु की यह दशा देख कर कुछ भांप जाते हैं।)

डी0पी0 दोरिया: आदेश महाप्रभु।

सुखानन्दाचार्य: आपने मुझे धोखा दिया है सेठ जी...

डी0पी0: महाप्रभु... ये क्या कह रहे हैं। कैसा धोखा? मेरे आने से पहले आपके पास कौन था?

सुखानन्दाचाय: (चीख़कर) तुमने झूठ बोला है मुझसे... मेरी बहन आज भी वहीं सड़ रही है... और तुम... (आगे बढ़ता है)

डी0पी0: नहीं महाप्रभु वह गांव चली गई है।

सुखानन्दाचार्य: (चीख़कर) यह झूठ है... झूठ है... जिन्होंने खुद अपनी आंखों से देखा है उन्होंने मुझे बताया है...

डी0पी: आप मेरे ऊपर उतना ही विश्वास करें जितना अपने ऊपर करते हैं...

सुखानन्दाचार्य: अनोखेराम कहां है?

डी0पी: हवं तो गांव गया है।

सुखानन्दाचार्य: वह गांव जाने से पहले मुझसे मिलने क्यों नहीं आया।

डी0पी: आपका और एक मामूली ड्राइवर का कोई जोड़ नहीं है महाप्रभु...

सुखानन्दाचार्य: आपने रोका है उसे... मना किया है... मुझसे न मिले... वह ग़ायब हो गया है... मुरारी ने पुलिस में उसके ग़ायब हो जाने की रिपोर्ट लिख दी है...

डी0पी0: ये आप क्या रह रहे हैं महाप्रभु... ज़रूर किसी ने आपके कान भरे हैं।

सुखानन्दाचार्य: (करुण स्वर में) ये आपने क्या किया सेठजी... मैंने आपके साथ क्या बुराई की थी जो आपने मेरी बहन...

(दोनों हाथों से चेहरा छुपा लेता है।)

डी0पी: आपको क्या कष्ट है... अनोखेराम गांव से लौट आयेगा... वह स्वयं आपको बता देगा कि आपकी बहन वहां कितनी ख़ुश है... और...

सुखानन्दाचार्य: नहीं... मैं नहीं सह सकता... मैं जाना चाहता हूं...

डी0पी: आप जब चाहें जा सकते हैं भगवान... महाप्रभु आपको रोकने का साहस कौन कर सकता है... पर इतना ध्यान रहे कि यह अपराध होगा... रुपये पैसे को भूल जाइए... उसकी मुझे चिंता नहीं है... जो ख़र्च हो गया उसे मैं आसानी से भूल सकता हूं लेकिन ये पूरी दुनिया से जो आपको आने के निमंत्रण मिल रहे हैं इनका क्या होगा... लाखों लोग आप पर आस लगाये बैठे हैं और आप मंह मोड़ लेंगे। नहीं... महाप्रभु। ये न करें... और मैं आपको बता दूं कि मेरे यहां ऐसे लोगों की संख्या काम नहीं है जो चाहते हैं कि मैं आपसे अलग हो जाऊं...उन्हीं में से किसी ने... शायद... मुरारी ने... या शायद... (डी0पी0) दोरिया चाहता है कि महाप्रभु नाम बता दे पर वह नहीं बताता)... या किसी और... नहीं-नहीं मुझे कोई दिलचस्पी नहीं है उस आदमी का नाम जानने में... लेकिन वे सब चाहते यही हैं कि आप मुझसे अलग हो जाएं... आप मानें... महाप्रभु आप एक संस्था बन चुके हैं... दुनिया के हर कोने में लोग आपको जानते हैं... दुनिया के मीडिया ने पिछले साल जिस आदमी को सबसे अधिक कवरेज दिया था उससे दुगना अब तक आप करो मिल चुका है... यू आर ए हाउुस होडल नेम इन यूरोप एण्ड अमेरिका... समझे भगवन... लाखों लोगों को आपसे मिलकर शांति मिलती है... यह कितना बड़ा पुण्य है.. क्या आप ईश्वर...

(इण्टरकाम बजता है। डी0 पी0 दोरिया फ़ोन उठा लेते हैं।)

हैलो!

(इंटरकाम की आवाज़ सुनाई पड़ती है। पर लगता है केवल डी0 पी0 दोरिया ही रिसीवर से सुन रहा है।)

आवाज़: सर अभी-अभी रिपोर्ट मिली है कि अनादि नाम का कोई आदमी नेशनल प्रेस में यह ख़बर छपवाना चाहता है कि सुखानन्दाचार्य फ्राड है। उनकी बहन वेश्या है। वह आध्यात्मिक व्यक्ति नहीं है। आपने उसे अपना ‘टूल' बना कर यह सब स्‍ंटअ खड़ा किया है। ख़बर कहीं नहीं छप सकी है।

डी0पी0 दोरिया: उसको देख लेना... हमारे सामने और कोई ‘च्वाइस' नहीं बची है... समझे...

आवाज़: यस सर...

डी0पी0 दोरिया: जल्दी में कुछ मत करना, ये है कौन?

आवाज़: सर, इसके साथ कभी मल्लिका चुग का ‘अफ़ेयर' था...



दृश्य : बीस

(डी0 पी0 दोरिया सोफ़े पर बैठा है। मुरारी (पी0ए0) बायीं ओर से आता है। डी0 पी0 दोरिया की ओर देखकर सिर झुकाता है और खड़ा हो जाता है।)

डी0 पी0 दोरिया: क्या बात है बताओ?

मुरारी: सर आज सुबह की फ़्लाइट से अनादि और मल्लिका फ्रेंकफुर्ट चले गए हैं...

(डी0 पी0 दोरिया जल्दी ही सामान्य हो जात है। वह शांत स्वर में बात करने लगता है।)

डी0पी0 दोरिया: ठीक है... किसी को भी कहीं चले जाने की आज़ादी है लेकिन मल्लिका के जाने की वजह से महाप्रभु के प्रोग्राम में कुछ अड़चन ज़रूर आ जायेगी... क्या तुमने मल्लिका के घर फ़ोन करके ‘कन्फ़र्स' किया है?

मुरारी: यस सर... बताया गया वह कहीं चली गयी है।

डी0पी0 दोरिया: कहां?

मुरारी: ये नहीं बताया गया।

डी0पी0 दोरिया: ठीक है तुम जाओ... महाप्रभु को इधर भेज देना... और फ्रेंकफुर्ट आफ़िस से ‘कांट्रैक्ट' करो...

(मुरारी चला जाता है। कुछ क्षण बाद स्वामी सुखानंदाचार्य आते हैं। उन्हें देखकर डी0 पी0 दोरिया खड़ा हो जाता है। वे सामने बैठ जाते हैं)

डी0पी0 दोरिया: महाप्रभु... मल्लिका आज सुबह की फ़्लाइट से कहीं चली गयी है।

(महाप्रभु चौंक जाता है।)

सुखानंदाचार्य: क्यों?

डी0पी0 दोरिया: इसका जवाब आपके पास है।

सुखानंदाचार्य: मेरे पास?

डी0पी0 दोरिया: हां आपके पास... महाप्रभु... मैंने आपके ऊपर जितना विश्वास किया उतना आपने मरे ऊपर नहीं किया... इसका मुझे कितना दुख है उसकी आप कल्पना नहीं कर सकते। आपने मेरा अपमान किया है...

सुखानंदाचार्य: अपमान?

डी0पी0 दोरिया: हां, हां अपमान... मैंने आपसे कहा था कि रामकली के बारे में आप किसी से न कहिएगा... आपने पूरी बात मल्लिका को बता दी... मल्लिका ने अपने पे्रमी को बता दी... वह अख़बार में यह सब छपवाना चाहता था...

सुखानंदाचार्य: (आश्चर्य से) अख़बार में छपवाना चाहता था...

डी0पी0 दोरिया: हां... ये कि आपकी बहन वेश्या है... आप पाखंडी हैं... मैं नाटक कर रहा हूं...

(सुखानंदाचार्य दोनों हाथों से अपना सिर पकड़ लेता है।)

डी0पी0 दोरिया: मेरे ऊपर विश्वास न करने का फल मिला आपको और मेरे हिस्से में आयी बदनामी... अपमान...

सुखानंदाचार्य: श्रीमान जब मुझे जाने दें...

डी0पी0 दोरिया: कहां... कहां... जाने दें? फिर आपको रोका किसने है?

सुखानंदाचार्य: मैं गांव जाना चाहता हूं...

डी0पी0 दोरिया: आप यहां इतना रहने के बाद भी यह न समझ पाये कि अब आप अम्बिका प्रसाद नहीं रह गए हैं... आप वैसा जीवन बिता ही नहीं सकते जैसा पहले बिताते थे... अब गांव वाले भी आपकी पूरा करेंगे... मेरे ख्‍़याल से, उससे कहीं अच्छा यही होगा कि पूरा संसार आपकी पूजा करता रहे... लेकिन अब आपकी पूजा नहीं होगी... मेरा अपमान किया जायेगा... कल के अख़बारों में छप जायेगा कि महाप्रभु सुखानंदाचार्य की बहन रामकली वेश्या है जिसे जो चाहे दो-तीन रुपये में ख़रीद सकता है।

सुखानंदाचार्य: ये आप क्या कह रहे हैं सेठ जी।

डी0पी0 दोरिया: उचित कह रहा हूं महाप्रभू... सुनकर आपको कष्ट हो रहा होगा पर यही यथार्थ है। कल तक ये सब अख़बारों छप जायेगा।

(सुखानंदाचार्य ठगा और परेशान से खड़ा रहता है।)

डी0पी0: केवल एक रास्ता है... आप बयान दें... कहें... हलफ़ लें कि आप किसी रामकली को नहीं जानते, आपकी कोई बहन नहीं है।

सुखानंदाचार्य: (ज़ोर से चिल्ला कर) नहीं... रामकली को मैं जानता हूं... वह मेरी बहन है...

(अचानक फूट-फूटकर रोने लगता है। डी0 पी0 दोरिया उसे तटस्थ भाव से देखता है और बाहर निकल जाता है।)



दृश्य : इक्कीस

(सुखानंदाचार्य के लिए मंच पर बड़ी सी सुनहरी कुर्सी रखी है। इधर-उधर अन्य कुर्सियां हैं। कोने में ड्रिंक्स रखी हैं। पत्रकार हाथ में गिलास लिए आपस में बातें कर रहे हैं। श्रंति दोरिया और मुरारी बहुत व्यस्त दिखाई दे रहे हैं। श्रुति तेज़ी से किसी ओर जा रही है। पत्रकार-1 उससे कहता है।)

पत्रकार: (शराब में डूबी आवाज़) मैडम, महाप्रभु की प्रेस कान्फ्रेंस न हुई बीरबल की खिचड़ी हो गयी... कहां हैं?

श्रुति: एक मिनट पर.. एक मिनट।

(आगे बढ़ जाती है।)

पत्रकार-1: (दूसरे पत्रकार से) भई ये एक मिनट को क्या समझते हैं।

(दोनों हंसते हैं। तभी शोर होता है कि महाप्रभु आ गए। मंच के एक कोने से दो लड़कियों के बीच महाप्रभु धीर-धीरे चलते सामने आते हैं और मंच पर कुर्सी पर बैठ जाते हैं। इस बीच कैमरों के फ़्लैश लगातार चलते रहते हैं और फ़्लड लाइट्स पड़ती रहती हैं। आध्यात्मिक संगीत बजने लगता है। महाप्रभु के कुर्सी पर बैठते ही संगीत बन्द हो जाता है। दोनों कन्याएं और श्रुति दोरिया कुर्सी के पीछे खड़ी हो जाती हैं मुरारी पास ही खड़ा होता है। प्रेस वाले कैमरे और टेप रिकार्डर लेकर आगे बढ़ आते हैं।)

सुखानंदाचार्य: मैं सुखानंदाचार्य आप सबके सामने घोषणा करता हूं.. हलफ़ लेता हूं कि मैं रामकली नाम की किसी औरत या वेश्या को नहीं जानता। मैं यह भी हलफ़ लेता हूं कि मेरी कोई... बहन (धीरे-धीरे आवाज़ ऊंची होती रहती है)... नहीं है... मेरा कोइ्र भाई नहीं है (लगता है जो याद कराया गया था उसे भूल रहा है) मेरा कोई नहीं है... मैं रामकली को तो जानता ही नहीं... बिल्कुल नहीं जानता... मैंने उसे पाल-पोस कर बड़ा नहीं किया... मैं उसे कंधे पर बैठा कर मेला दिखाने नहीं ले जाता था...

आवाज़ फट जाती है और भावावेश में चिल्लाने-सा लगता है।... वह मेरी कोई नहीं है... मैं उसका भाई नहीं हूं... वह मेरी... कुछ भी नहीं है... कुछ भी नहीं है... (मेज़ पर मुक्के मारते हुए) कुछ भी नहीं है... (सामने रखे शीशे के जग को हाथ मार कर गिरा देता है। पत्रकार पीछे हट जाते हैं। सुखानंदाचार्य हिस्ट्रीकल अंदाज़ में चिल्लाता है) रामकली कौन है... मैं नहीं जानता... मैंने... उसकी शादी करने के लिए खेत नहीं बेचे थे...

(मुरारी जल्दी से माइक्रोफ़ोन का स्विच आफ कर देता है और ज़ोर से कहता है।)

मुरारी: थैंक यू नेशनल प्रेस... प्रेस कांफ्रेंस इज़ ओवर...

(सुखानंदाचार्य लगातार चीख़ता है।)

सुखानंदाचार्य: मैं और सबको जानता हूं... तुम सबको जानता हूं... पर रामकली को नहीं जानता... नहीं जानता... नहीं...जानता..

मुरारी: (चीख़ कर) डाक्टर... डाक्टर... प्लीज़।

श्रुति: महाप्रभु होश में आइए।

(डाक्टर आ जाता है। मुरारी तथा श्रुति महाप्रभु को पकड़ लेत हैं। पत्रकार धीरे धीरे निकलने लगते हैं। सुखानंदाचार्य बेहोश-सा हो जाता हे। डाक्टर उसकी बांह पर इंजेक्शन लगा देता है। मुरारी और श्रुति महाप्रभु को कुर्सी पर डाल देते हैं।)

(आध्यात्मिक संगीत बजने लगता है!)

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फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ 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divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
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रचनाकार: असग़र वजाहत का नाटक - समिधा
असग़र वजाहत का नाटक - समिधा
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