कहानी: पिंकी की गुड़िया पिंकी को गुड़िया खेलने का बहुत शौक था. हर समय वह गुड़िया खेलने, उनकी पोशाक तैयार करने, उनका घर बनाने और सजाने संवा...
कहानी: पिंकी की गुड़िया
पिंकी को गुड़िया खेलने का बहुत शौक था. हर समय वह गुड़िया खेलने, उनकी पोशाक तैयार करने, उनका घर बनाने और सजाने संवारने में ही लगी रहती थी. वह गुड़ियों के खेल में इतनी मगन रहती कि पढ़ाई पर बिल्कुल ध्यान न देती थी. वह आठ साल की हो गई थी लेकिन उसे अभी पढ़ना भी नहीं आता था. इसलिए उसके मम्मी पापा कई बार उसकी पढ़ाई के बारे में सोचकर चिंतित हो जाते थे. एक दिन उनके पड़ोस में किराये पर रहने एक परिवार आया. उस परिवार में भारती गुप्ता जो एक लेखिका थी उनसे से ये बात बताई. भारती एक बहुत समझदार महिला थी. वे थोड़ी देर सोचती रही फ़िर बोली " देखिये, इस उम्र में बच्चों पर पढ़ाई के लिये बहुत दबाव तो नहीं डालना चाहिये, पर जैसा आपने बताया कि वह बिल्कुल नहीं पढ़ती तो मेरे पास इसके लिये एक आइडिया है. बस आप पिंकी से ये कह दीजिये कि मेरी बेटी सीमा उसके साथ गुड़ियों का खेल खेलने आएगी." जब पिंकी की मम्मी ने पिंकी को ये बात बताई तो पिंकी बड़ी खुश होकर बोली "फ़िर तो बडा मजा आयेगा". शीघ्र ही रविवार आ गया. पिंकी बड़ी उत्साहित थी क्योंकि भारती जी की बेटी सीमा उसके साथ गुड़ियों का खेल खेलने जो आ रही थी. दोपहर को सीमा आई. वह अपने साथ एक सजा धजा गुड्डा भी लाई थी. पिंकी उस गुड्डे को देख कर झूम उठी और बोली "इतना सुंदर गुड्डा!"
"हम इसकी शादी तुम्हारे गुड्डे से करेंगे" सीमा ने कहा.
"फ़िर तो बड़ा मजा आयेगा" पिंकी चहक कर बोली.
पिंकी की मम्मी ने पूरियाँ और हलवा बनाया. फ़िर पिंकी ने अपनी गुड़िया को सजा धजा कर तैयार किया. सीमा के साथ मिलकर पिंकी ने गुड्डा-गुड़िया के फ़ेरे कराए. फ़िर उन्होंने खेल खेल में हलवा-पूरी गुड्डा-गुड़िया को खिलाया फ़िर खुद खाया. "मेरा गुड्डा तो चला परदेस कमाने के लिए" सीमा गुड्डे को दूसरे कमरे में ले जाते हुए बोली. दो मिनट बाद वह पिंकी के पास आई, उसके हाथ में एक कागज था, वह बोली "लो मेरे गुड्डे ने अपनी गुड़िया बहू को पत्र लिखा है, तुम उसे पढ़कर सुनाओ." सीमा ने वह कागज पिंकी को दे दिया. पिंकी उस कागज को लिये दस मिनट तक ऐसे ही खड़ी रही. सीमा ने कहा, " क्या बात हुई, क्या तुम अपनी गुड़िया से नाराज हो, उसे यह पत्र पढ़कर सुनाती क्यों नहीं?" पिंकी धीरे से बोली " लेकिन मुझे तो पढ़ना ही नहीं आता."
"तुम आठ साल की हो गई हो और तुम्हें पढ़ना भी नहीं आता फ़िर तो तुम्हारी गुड़िया भी अनपढ़ ही रह जाएगी, फ़िर वह कैसे अपने गुड्डे को पत्र का उत्तर भेजेगी?" सीमा ने ये सब कहा तो पिंकी शर्मिंदा हो गई. "ठीक है आज से तुम खुद भी पढ़ना और अपनी गुड़िया को भी पढ़ाना." पिंकी बोली आज से में रोज मन लगाकर पढूंगी." पिंकी की मम्मी दूर खड़ी मुस्कुरा रही थी.
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कहानी: घमंड का सिर नीचा
किसी गांव में आमने सामने दो इमारतें थी. एक का मालिक एक अमीर सेठ था तो दूसरी का मालिक एक गरीब गडरिया. सेठजी ने अपनी हवेली को बड़ा आलीशान बना रखा था, उस पर बढ़िया लिपाई पुताई करवा रखी थी, हवेली के दरवाजों और दीवारों पर नक्काशी करवा रखी थी इसलिए वह बड़ी सुन्दर दिखती थी जबकि उसके सामने वाली गरीब गडरिये का मकान बड़ा साधारण सा था क्योंकि गरीबी के कारण उसके पास न तो अपने मकान की मरम्मत के पैसे थे और न ही साज सजावट के. सेठजी की हवेली के आगे गडरिये के मकान की इमारत बड़ी भद्दी दिखाई देती थी. आते जाते लोग सेठजी की हवेली की प्रशंसा करते थे इससे हवेली में घमण्ड हो गया. एक दिन उसने सामने वाली गरीब गडरिये की इमारत से कहा
"देखो मैं कितनी सुन्दर हूं, सब मेरी प्रशंसा करते नहीं थकते और एक तुम यहां पर बदसूरती फ़ैला रही हो"
गरीब गडरिये की इमारत ने कहा "नहीं, बहन ऐसा नहीं कहते, मेरा मालिक एक गरीब आदमी है वह मेरी मरम्मत और साज सज्जा पर खर्च नहीं कर सकता, वह तो बेचारा अपना पेट भी बड़ी मुश्किल से भरता है"
सेठजी की आलीशान इमारत उसकी ये बात सुनकर हंसकर बोली "तुम्हारी किस्मत मेरी जैसी नहीं है तो मुझे नसीहत दे रही हो"
गरीब गडरिये की इमारत यह सुनकर मायूस हो उठी. अक्सर इसी तरह वह आलीशान इमारत उस इमारत क मजाक उड़ाया करती. समय बीतता गया, एक दिन ऐसा आया जब सेठ अपनी इमारत को ताला लगाकर शहर में रहने चला गया. दो साल, चार साल, दस साल बीत गए किन्तु सेठ नहीं आया. बिना देख-रेख के उसकी
आलीशान इमारत खंडहर हो गयी. दीवारों का पलस्तर उखड गया, काई लग गई, घास फ़ूस और पीपल के पेड़ कोनों में उग आए. कुल मिलाकर इत्ना कहा जा सकता था कि सेठजी की इमारत अब भद्दी हो चुकी थी. जबकि गरीब गडरिये के दोनों बेटे अब बड़े हो गए और कमाने लग गए. उसने अपनी इमारत की मरम्मत करवा ली. उस पर सुंदर पुताई करवा दी. खिड़कियों में रंगीन कांच लगवा लिये. गडरिये की इमारत अब शानदार लगने लगी. एक दिन सेठजी वाली इमारत जो पहले आलीशान और अब भद्दी हो चुकी थी ने मायूसी और धीरे से गडरिये वाली इमारत से कहा
"बहन मैं कभी कितनी सुंदर दिखती थी पर अब मेरी कोई सुध नहीं लेता, पता नहीं मेरी हालत कब सुधरेगी"
गडरिये की इमारत ने उससे कहा "निराश मत हो, बहन! तुम्हारा मालिक भी कभी न कभी आएगा फिर तुम पहले जैसी हो जाओगी"
हालांकि गडरिये की इमारत ने उससे सांत्वना देते हुए कहा था फिर भी सेठजी की इमारत ने सोचा कि वह उस पर व्यंग्य कर रही है, वह आहत हो उठी, और आंखें नीची कर ली. किसी ने सच कहा है कि घमंड का सिर हमेशा नीचा होता है.
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कहानी: लालची राजधन का सुधार
राजधन एक बहुत लालची ठेकेदार था. वह हरे छायादार पेड़ों को रुपयों की खातिर कटवाता रहता था. वन विभाग का अधिकारी अगर उसके खिलाफ़ कुछ करता तो वो उसे रिश्वत देकर चुप करा देता. वह इतना दबंग थ कि कोई भी उसे कुछ कहने की हिम्मत नहीं करता. एक दिन वह सुबह अपनी गाड़ी में बैठकर पेड़ कटवाने के लिये जा रहा था. जून का महीना था, बड़ी चिलचिलाती धूप और गर्मी थी.
आते वक्त उसे दोपहर हो गयी. अचानक उसकी गाड़ी खराब हो गयी. दूर दूर तक कोई भी उसे दिखाई न दिया. राजधन का गांव यहां से तीन मील दूर था. जब उसे कोई भी व्यक्ति दिखाई नहीं दिया तो उसने पैदल चलने की सोची. वह अभी थोडी दूर चला ही था कि उसे प्यास लग आई लेकिन आसपास पानी का कोई स्त्रोत न था. लगभग एक मील चलने के बाद धूप, प्यास और गर्मी से बेचैन हो गया लेकिन उसे आसपास कहीं कोई पेड़ नजर नहीं आया क्योंकि सारे पेड़ तो उसने कटवा दिये थे. वह चलता ही रहा क्योंकि उसके विश्राम के लिये कोई जगह ही नहीं थी.
वह सोच रहा था कि काश कोई छायादार पेड़ होता जिसके नीचे वह थोड़ी देर आराम कर लेता. उसे अब अपनी करनी पर पछतावा होने लगा. अचानक उसे चक्कर आ गया.
वह गिर पड़ा और बेहोश सा हो गया. बेहोशी की हालत में उसे सपना आया कि जैसे वह उसी जगह पर चल रहा है उसकी हालत धूप और गर्मी से बहुत बुरी है तभी उसे एक पेड़ नजर आता है जो छायादार है और जिस पर रसीले फ़ल लगे हुए हैं वह उस पेड़ के पास जैसे ही जाता है वह उससे पहले से भी दूर हो जाता है इस तरह वह जितना उस पेड़ के समीप जाता है वह उतना ही उससे दूर हो जाता है, वह थककर गिर जाता है
तभी वन देवता प्रकट होते हैं वे कहते हैं, " लालची राजधन! तूने धन लालच में आकर सारे उपयोगी पेड़ों को कटवा दिया, कभी ना सोचा कि ये तुम्हारे कितने काम आते हैं, आज अन्तिम पेड़ बचा है क्या तू इसे भी काट देगा?"
रामधन का जी घबराने लगा वह बोला, "मुझे माफ़ कर दो, मैं ऐसी गलती कभी नहीं करूंगा, कभी नहीं, मुझे माफ़ कर दो....माफ़ कर दो........."
तभी उसके चेहरे पर किसी ने पानी के छींटे मारे, राजधन को होश आया उसने देखा कि उसके सामने एक राहगीर खड़ा है, राह्गीर ने उसे पानी पिलाया. उसे अपना सपना याद था उसने राहगीर को अपने साथ जो कुछ घटित हुआ था वह सब बताया और आगे से प्रण लिया कि कभी हरे छायादार पेड़ों को नहीं काटेगा.
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-प्रवीन कुमार
-गांव= कन्हौरा,
-जिला=रेवाडी, हरियाणा
पिन-123035
email id- parvkumar.kumar8@gmail.com
तीसरी कहानी अधिक पसंद आई ।
जवाब देंहटाएंacchi kahaniya
जवाब देंहटाएंprabhudayal
nice
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