कहानी लेखन पुरस्कार आयोजन -36- कविता वर्मा की कहानी : सगा सौतेला

SHARE:

सगा सौतेला कविता वर्मा ट्रिंग ट्रिंग फ़ोन की घंटी की आवाज़ ने सुधीर को अख़बार छोड़ कर उठने को विवश कर दिया. -हलो सुधीर भैया ब्रज बोल रहे ...

सगा सौतेला

कविता वर्मा

ट्रिंग ट्रिंग फ़ोन की घंटी की आवाज़ ने सुधीर को अख़बार छोड़ कर उठने को विवश कर दिया.

-हलो सुधीर भैया ब्रज बोल रहे हैं राधा भाभी नहीं रहीं.

-अरे कब कैसे? अच्छा बहुत दिनों से बीमार थीं क्या हुआ था?नहीं नहीं मुझे नहीं पता ठीक है कब ले जायेंगे? पूछते पूछते सुधीर ने हिसाब लगाया चार घंटे का सफ़र ट्रेन तो मिलेगी नहीं अभी कोई, कार से भी तुरंत निकलना होगा. अच्छा सविता, सुधा और बाकियों को खबर कर दी है ठीक है हम पहुँचते हैं. फोन रखकर पलट कर देखा नेहा प्रश्नवाचक मुद्रा बनाये खडी थी.

-भाभी नहीं रहीं,अभी निकलना होगा.

-कब? हमें तो कभी कोई खबर ही नहीं की.

ना चाहते हुए भी नेहा का स्वर कसैला हो गया. सुधीर ने इसे महसूस तो किया पर इसे नज़रंदाज़ करना ही उचित समझा.

-तुम चलने की तैयारी करो कल शाम तक लौटना होगा. मैं ऑफिस का इंतजाम करके घंटे भर में आता हूँ. कहते हुए सुधीर जवाब का इंतजार किये बिना कमरे से निकल गया.

कार चलाते हुए सुधीर बिलकुल खामोश था. नेहा ने एक बार उसकी ओर देखा फिर बाहर देखने लगी. सुधीर के दिमाग में पिछले पचास सालों की घटनाएँ चलचित्र की भांति चल रहीं थीं.

राधा भाभी याने उसके सौतेले बड़े भाई गोपाल की पत्नी. सुधीर के पिताजी की पहली पत्नी के बेटे थे गोपाल भैया. उनकी माँ की मौत के बाद सुधीर के पिताजी ने दूसरी शादी की थी. उनसे सुधीर और उनकी दो छोटी बहनें थीं. सुधीर की उम्र जब सात आठ बरस की रही होगी जब पिताजी चल बसे तब तक गोपाल भैया की शादी हो चुकी थी. घर में कमाने वाले गोपाल भैया अकेले थे. छोटा सा जमीन का टुकड़ा और उस पर गुजारा करने वाले गोपाल भैया के तीन बच्चों समेत नौ लोगों का परिवार. गाँव में खुद का लम्बा चौड़ा मकान था सो जगह की कमी नहीं थी. लेकिन राधा भाभी को उनका वहां रहना बिलकुल ना सुहाता था और बहू होते हुए भी माँ के लिए उनके ताने उलाहने हमेशा चलते रहते थे. अपने बढ़ते परिवार को देखते हुए सौतेले भाई द्वारा संपत्ति में हिस्सा मांग लेने का भय उन्हें हमेशा सताता रहा. फिर दो-दो बहनों की शादी और उसके बाद के खर्च खुद का ही गुजारा मुश्किल से होता था . अंततः माँ को तीनों बच्चों को लेकर नानाजी के पास आना पड़ा.

--

रु. 15,000 के 'रचनाकार कहानी लेखन पुरस्कार आयोजन' में आप भी भाग ले सकते हैं. पुरस्कार व प्रायोजन स्वरूप आप अपनी किताबें पुरस्कृतों को भेंट दे सकते हैं. अंतिम तिथि 30 सितम्बर 2012

अधिक व अद्यतन जानकारी के लिए यह कड़ी देखें - http://www.rachanakar.org/2012/07/blog-post_07.html

----

 

नानाजी अपनी विधवा बेटी और उसके बच्चों को पालने का जतन करते रहे. अचार बड़ी पापड़ बनाते और लोगों के कपडे सिलते माँ ने किसी तरह सुधीर को ग्रेजुएशन करवाया. एक बहन की शादी नानाजी के रहते हो गयी थी. उनके गुजर जाने के बाद छोटी बहन की शादी और घर की जिम्मेदारी सुधीर पर आन पड़ी. इधर उधर की छोटी मोटी नौकरी करते हुए वह माँ का संबल बना रहा. इस बीच गाँव से नाम मात्र का ही संपर्क रहा. गोपाल भैया के यहाँ से परिवार बढ़ने की ख़बरें आती रहीं. उनका तीन लड़कियों और तीन लड़कों का समृद्ध परिवार हो गया. लेकिन उनकी समृद्धि बढ़ने के समाचार गाँव से आने वाले किसी रिश्तेदार से ही मिलते.

भौजी गोपाल भैया ने नदी के पास एक और खेत खरीद लिया. इस साल धान की फसल खूब लहलहाई है जैसी ख़बरें देकर रिश्तेदार अपना धर्म निभा लेते. माँ ऐसी ख़बरों पर निर्विकार ही बनीं रहतीं . वह खबर देने वालों की मंशा भी जानती थीं और गोपाल भैया से खबर ना मिलने का मतलब भी,पर वह खुद इतनी असहाय थीं कि कुछ भी प्रतिक्रिया व्यक्त करके रिश्ते के जर्जर पड़े इस धागे को तोड़ देने का साहस ना कर पातीं.

अचानक गाड़ी के सामने भैंस के आ जाने से सुधीर ने जोर से ब्रेक लगाया. इसी के साथ ही विचारों की रफ़्तार भी टूट गयी. उसने नेहा को देखा वह सामने टकराते टकराते बची थी.

सीट बेल्ट लगा लो इस सड़क पर ऐसे ही अचानक ब्रेक लगाने पड़ते हैं. सुधीर ने कहा. गाड़ी ने फिर गति पकड़ी और सुधीर के विचारों ने भी.

सुधीर की बैंक में नौकरी लग गयी. छोटी बहन की शादी हो गयी पर गोपाल भैया के यहाँ से कोई ना आया. शायद उन्हें डर था कि सामने पड़ने पर कोई अन्य खर्च सर पर ना मढ़ दिया जाये . हाँ बहन के पैर पखारने के लिए एक हल्का फुल्का गहना और दहेज़ के पांच बर्तन जरूर आये जिन्हें स्वीकार कर लिया गया.

सुधीर की शादी की खबर गोपाल भैया को काफी पहले से दे दी गयी थी साथ ही बारात में घर के बड़े की हैसियत से चलने का आग्रह भी था. तब इतने सालों में गोपाल भैया भाभी पहली बार आये थे और बारात की सारी व्यवस्थाएं भी संभाली थीं. भाभी माँ के साथ काम में हाथ बंटाती रहीं. पुरानी बातें उकेरने का ना समय था ना किसी ने कीं. भाभी ने ही घर की बड़ी बहू के रूप में नेहा की मुंह दिखाई की.

सुधीर की नौकरी से गोपाल भैया और भाभी को अब ये तसल्ली तो थी की अब वो उन पर बोझ तो नहीं बनेंगे. बहनों की जिम्मेदारियां निबट ही गयीं थीं. बाकी रिश्तेदारी व्यवहार निभाने में सुधीर अब सक्षम था. लेकिन सम्बन्ध अभी भी गहरे नहीं हुए थे. शायद पुश्तैनी जायदाद में हिस्से की आशंका उनके मन के किसी कोने में दुबकी हुई थी,जो उन्हें सुधीर से एक दूरी बनाये रखने को विवश कर रही थी.

इसके बाद जिंदगी बहुत आसान तो ना थी पर एक तसल्ली थी एक अच्छी नौकरी और गोपाल भैया से पत्रों के माध्यम से सतत संपर्क. अब गोपाल भैया माँ को कभी कभार गाँव आने को लिख देते थे. माँ भी ब्याह कर तो उसी घर में गयीं थीं सो वे भी वहां जाने की हुलस दबा ना पातीं और साल में महीने पंद्रह दिनों के लिए गाँव चली जातीं. लेकिन वहां भी अपने आने जाने का खर्च रिश्तेदारी के व्यवहार खुद ही निभातीं इसलिए वो गोपाल भैया पर कोई भार भीं ना थीं. वहां उन्हें अब यथोचित सम्मान मिलता था.

सुधीर ने अपनी सूझबूझ से अपनी गृहस्थी बना ली. नेहा भी अपनी चादर देख कर ही अपनी उमंगों के सिरे संभाले रही. सीमित आय में बच्चों की अच्छी देखभाल और माँ का यथोचित सम्मान के साथ जीवन के छोटे मोटे उतार चढ़ाव वे बखूबी पार करते रहे. उधर गोपाल भैया तीन- तीन बेटियों की जिम्मेदारी उठाने में खुद को अकेला पाते रहे ओर किसी तरह अपनी जिम्मेदारी से मुक्त होने के लिए गरीब कम पढ़े लिखे लड़कों से बेटियों की शादी करते रहे. सगाई होने तक सुधीर को कोई खबर तक ना दी जाती हाँ शादी में सपरिवार आने का आग्रह जरूर होता. शायद गोपाल भैया अपनी बढ़ती जिम्मेदारियों में खुद को अकेला पा कर सुधीर को उसकी जिम्मेदारियों के साथ अकेला छोड़ देने पर शर्मिंदा थे. इसलिए अपनी जिम्मेदारियों के लिए उससे सलाह या मदद माँगने का साहस ना जुटा पाते.

वक्त अपनी रफ़्तार से चल रहा था कि थोड़ा रुक जाते चाय वगैरह पी लेते,नेहा की आवाज़ में उसे वर्तमान में ला दिया. पिछले ढाई घंटों से वह बिना बोले अपने ही विचारों में गुम गाड़ी चला रहा था . नेहा कितनी बोर हो रही होगी ये ख्याल तो उसे आया ही नहीं. वह थोड़ा असहज हो गया. नेहा ने उसे कभी भी भाई भाभी के व्यवहार का उलाहना नहीं दिया और आज भी बिना किसी शिकवे शिकायत के पिछले ढाई घंटों से इस रिश्ते की मूकता के बावजूद उस के साथ चली जा रही है. लेकिन सुधीर के मन में यह रिश्ता पूरी मुखरता के साथ मौजूद है. वह एकाएक नेहा के प्रति अधिक सतर्क हो गया.

चाय के साथ कुछ खाओगी लाऊं? उसने पूछा.

हाँ देखो क्या है अभी कुछ खा लेते हैं वहां जा कर पता नहीं कितनी देर लगे.

सुधीर चौंक कर जैसे यथार्थ में उतरा भैया भाभी तो अब तक उसके साथ ही थे . हाँ हाँ अब तक तो सारे रिश्तेदार भी आ गए होंगे .

नहीं सुधा की ट्रेन तो तीन बजे तक आएगी तब तक तो रुकेंगे ही.

फिर तो हम समय से पहुँच ही जायेंगे .

आप भी कुछ खा लो सब काम होते होते शाम हो जाएगी कब तक भूखे रहोगे . नेहा ने कहा

सुधीर की इच्छा नहीं थी कुछ खाने की घर में ग़मी हो गयी है क्रियाकर्म के पहले कैसे कुछ खा ले. आज जाने क्यों वह जुड़ाव महसूस कर रहा था. नहीं मेरी इच्छा नहीं है उसने बात टाली.

अरे इच्छा अनिच्छा क्या  है नहीं खाओगे तो एसिडिटी हो जाएगी.

सुधीर ने बेमन से चाय के साथ ३-४ बिस्किट खाए.

कार में बैठते ही सुधीर ने सी डी प्लेयर ऑन कर दिया . नेहा के अकेलेपन का एहसास था उसे.

भाभी की बीमारी की कभी खबर नहीं मिली. कुछ बताया बृज भैया ने क्या हुआ था?

हाँ बीमार थीं कई दिनों से,वही पेट की तकलीफ अल्सर था. खाना पीना सब छूट गया था.

हूँ खुद बीमार थीं,बहुओं से तो कोई उम्मीद थी नहीं बीमारी में जाने कौन देखभाल करता होगा? 

क्यों बहुओं का क्या?? सुधीर ने पूछा.

पिछले महीने कुसुम दीदी मिलीं थीं बता रहीं थीं की भाभी बेटे बहुओं के झगड़े से बहुत दुखी थीं.

बहुओं का तो ठीक है लेकिन बेटों का क्या? सुधीर जानने को उत्सुक हुआ.

तीनों बेटों में बिलकुल नहीं बनती. जायदाद ओर काम के बंटवारे को लेकर रात दिन झगड़े होते हैं. नेहा ने कहा.

तुमने कभी बताया नहीं?

अब बताती भी तो क्या कर लेते हम? फिर भैया ने भी तो तुम्हे कभी कुछ नहीं बताया. जब वो ही परायापन पाले हुए हैं तो हम जानकार कर भी क्या लेते? 

सुधीर समझ रहा था. गोपाल भैया से उसका सौतेला रिश्ता था और इस सौतेलेपन का कारण पुश्तैनी जायदाद ही था. इसमें हिस्सा ना देने के लालच में ही भैया भाभी ने दूरियां बढ़ाईं थीं. वैसे तो उनमें कोई वैचारिक मतभेद नहीं था एक दूसरे के लिए यथोचित मान भी था. गोपाल भैया अब कैसे बताते की इसी जायदाद के लिए सगे भाइयों में सर फुटोव्वल हो रही है. भैया भाभी की अजीब स्थिति थी किसकी तरफ बोलें? 

पांच साल पहले बेटे की शादी के लिए घर की पूजा में शामिल होने सुधीर सपरिवार गाँव गया था. पूरे गाँव में पता नहीं कैसे ये खबर फ़ैल गयी की सुधीर जायदाद में हिस्सा लेने आया है. गोपाल भैया भी तब तक जायदाद के लिए बेटों के झगड़ों से तंग आ गए थे. उनके बीच बंटवारा भी वो कर देते लेकिन सगे भाई एक दूसरे के लिए अपना दिल बड़ा करने को तैयार नहीं थे. हर कोई मकान के बड़े हिस्से और खेती की बड़ी जमीन के लिए अड़ा था. गोपाल भैया से भी लड़कों की इसी बात को लेकर तकरार होती रहती और गोपाल भैया उन्हें ये कह कर चुप करा देते की अभी तो हम सौतेले भाइयों में बंटवारा नहीं हुआ पहले वो होने दो फिर हमारे हिस्से में से तुम्हें हिस्सा मिलेगा. तब भैया ने कहा भी था तुम्हारा भी हिस्सा है इस जायदाद में तुम अपना हिस्सा ले लो.

सुधीर भावुक हो गया था उसका गला रुंध गया बहुत देर तक तो वह चुप ही रहा फिर बोला, नहीं गोपाल भैया में क्या करूँगा हिस्सा लेकर? मेरा खुद का मकान है. हिस्सा ले भी लिया तो यहाँ आ कर तो रहूँगा नहीं. और ये आपकी मेहनत से बनी जायदाद है मैंने तो कभी खेती बारी देखी नहीं और इसे बेचने की भी मेरी इच्छा नहीं है. ताला पड़ा रहेगा इससे तो अच्छा है की आप लोगों की चहल-पहल रहे यहाँ.

सुधीर ने ये बात कभी नेहा को नहीं बताई थी. हालाँकि नेहा के संतोषी स्वभाव से वाकिफ था वो पर पता नहीं क्यों? 

सुधीर और गोपाल भैया के बीच रिश्ते का सौतेलापन इस जायदाद की हिस्सेदारी की आशंका ही थी,जिसमे गोपाल भैया की अपनी सीमित चादर की लाचारी थी जो सुधीर की आर्थिक असहायता को देखते हुए बार बार अपना सर उठा लेती थी. वरना तो इस बारे में उनकी कभी कोई अनबन नहीं हुई थी. समय के साथ इस आशंका ने भी दम तोड़ दिया था और अब जब सगे भाइयों ने दिल का सौतेलापन उजागर कर दिया गोपाल भैया सौतेले भाई के सगेपन से विभोर हो गए.

इस वार्तालाप के बाद दोनों बहुत देर तक खामोश बैठे रहे . सुधीर का मन भीगा था अपनेपन की नमी पा कर तो गोपाल भैया की आँखें नम थीं सौतेले भाई के बड़प्पन से.

कब गाँव की सरहद पर पहुँच गए पता ही नहीं चला. नेहा ने सी-डी प्लेयर बंद कर दिया और सिर का पल्लू ठीक करने लगी तब बगल में होती हलचल से उसका ध्यान गया की गाँव आ गया. घर से थोड़ी दूर गाड़ी रोक कर दोनों उतरे नेहा औरतों के बीच चली गयी और वह भैया के पास.

भैया बहुत कमजोर दिख रहे थे. वह उनके पास जाकर बैठ गया और अपना हाथ उनके हाथ पर रख दिया . सुधीर को देखते ही गोपाल भैया उससे लिपट कर फफक पड़े. तीनों बेटे क्रियाकर्म की तैयारियां करवा रहे थे. भाभी की मांग भरने जब भैया उठे तो सुधीर ही उन्हें सहारा दे कर ले गया. भाभी को देख सुधीर की आँखें भर आयीं. बहुत गहरा रिश्ता तो नहीं रहा उनसे लेकिन उन्होंने और सुधीर ने रिश्ते की मर्यादा हमेशा रखी. कभी किसी ने किसी को आहत करने वाली बात नहीं कही. बचपन तो सुधीर को याद नहीं पर जब से होश संभाला भाभी को खुद पर विश्वास करता ही पाया.

भैया  इतने कमजोर हो गए थे की अर्थी को कंधा देने पर लड़खड़ा गए,तब सुधीर ने ही उन्हें सहारा दिया और उनके कंधे पर रखे पाए को अपने कंधे का सहारा दिया. सभी रिश्तेदार बारी बारी से अर्थी को कन्धा देते रहे और सुधीर गोपाल भैया को सहारा देते चलता रहा. आज वह उनसे एक अनोखा जुड़ाव महसूस कर रहा था.

चिता पर भाभी का शव देख कर भैया खुद को संभाल ना सके और गिर पड़े जब पंडित ने मुखाग्नि देने के लिए बड़े बेटे को बुलाया तो गोपाल भैया जैसे अचानक सचेत हुए और हाथ उठा कर बड़के को वहीँ रोक दिया. फिर सुधीर की ओर मुखातिब हो कर बोले अग्नि तुम दोगे.

रिश्तेदारों में खुसुर पुसुर शुरू हो गयी तीन तीन लड़कों के होते,लेकिन भैया ने दृढ़ स्वर में कहा तुम सब लड़कों से बढ़ कर हो. भाभी भी तो माँ होती है तुम ही चिता को अग्नि दोगे. फिर रोते हुए बोले तीन तीन बेटों के होते तुम्हारी भाभी ने बुढ़ापे में जो दुःख झेले हैं उसके बाद इन बेटों ने उनके अंतिम संस्कार का अधिकार खो दिया है. उनके लिए जमीन जायदाद माँ बाप की सुख शांति,उनकी सेवा से ज्यादा बड़े हो गए. तुम्हारी भाभी आखिरी समय तक तुम्हें याद करके रोती रही कहती रही ऐसे तीन के बजाय भगवान सुधीर जैसा एक संतोषी बेटा ही दे देता तो बुढ़ापे में ऐसी गत ना होती. तुमसे मिलना चाहती थी वो तुमसे माफ़ी मांगना चाहती थी जिस जायदाद के मोह ने तुम्हें हमसे पराया कर दिया उसी जायदाद ने हमारे बेटों से हमें पराया कर दिया. लेकिन तुमसे आँख मिलाने की हिम्मत नहीं जुटा पाई और ऐसे ही चली गयी.

वापसी में सुधीर पहले से कहीं अधिक खामोश था चिता की लपटों ने रिश्तों में बचे सौतेलेपन को जला कर राख कर दिया था और वह रिश्ते की गर्माहट को महसूस कर रहा था. उसने भाभी को खोया था लेकिन गोपाल भैया को पा लिया था. देर से ही सही.

--

कविता वर्मा

नाम कविता वर्मा पोस्ट ग्रेजुएट, शिक्षिका ,पढ़ने का शौक बचपन से ही था. लिखना करीब १२ साल पहले किया. लेकिन ज्यादातर लेखन स्वान्त सुखाय ही रहा. ब्लॉग से लेखन को गति मिली. अपने आस पास की घटनाओ को देखते उसके पीछे छिपे कारण को तलाशना ओर लोगों के व्यव्हार को कहानियों के पात्रों में उतारना ही शौक है इसलिए ज्यादातर कहानियां बिलकुल अपने आस पास की घटनायों सी होती है.

जीवन का नजरिया है "बड़ी बड़ी खुशियाँ है छोटी छोटी बातों में. "

--

श्रीमती कविता वर्मा

५४२ a तुलसी नगर

बोम्बे हॉस्पिटल के पास

इंदौर  ४५२०१०

kvtverma27@gmail. com

   http://kavita-verma. blogspot. in/

COMMENTS

BLOGGER: 9
  1. कल जो टिप्पणी लिखी थी शायद वह स्पैम मे होगी।
    कहानी मर्मस्पर्शी और शिक्षाप्रद है।

    जवाब देंहटाएं
  2. रिश्तों के ताने-बाने से बुनी बहुत अच्छी कहानी।

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत ही मर्मस्पर्शी...रचना...ये आस-पास हर जगह हो रहा है...उन्हें शब्दों में पिरोना कमाल है...

    जवाब देंहटाएं
  4. पैसे के लालच में रिश्तों में कडुवाहट आने का बहुत यथार्थपरक एवं सटीक चित्रण. कहानी में पात्रों का बहुत सजीव चित्रण. सुधीर का बहुत सशक्त चरित्र चित्रण और अपने से जुडा सा महसूस होता है. कहानी भावप्रवण होते हुए भी यथार्थ के धरातल पर अपने पद चिन्ह छोड़ जाती है. बहुत सुन्दर...बधाई

    जवाब देंहटाएं
  5. तन-मन-धन में मन की संतुष्टि सबसे अहम है| शानदार तरीके से लिखी कहानी, बधाई|

    जवाब देंहटाएं
  6. kahani nahi vastvikta hai ..jisne irshton ko chinn bhinn kar diya hai....

    जवाब देंहटाएं
  7. पारिवारिक रिश्तों पर आधारित बहुत अच्छी कहानी आज के परिवेश कॊ उदभाषित करती हुई लेखिका को बहुत बहुत बधाई|
    प्रभुदयाल श्रीवास्तव‌

    जवाब देंहटाएं
  8. KHUBASURAT KAHANI RISHTON KA TANABANA.EK SACHCHI KAHANI.
    100 MEN 101

    जवाब देंहटाएं
रचनाओं पर आपकी बेबाक समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद.

स्पैम टिप्पणियों (वायरस डाउनलोडर युक्त कड़ियों वाले) की रोकथाम हेतु टिप्पणियों का मॉडरेशन लागू है. अतः आपकी टिप्पणियों को यहाँ प्रकट होने में कुछ समय लग सकता है.

नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: कहानी लेखन पुरस्कार आयोजन -36- कविता वर्मा की कहानी : सगा सौतेला
कहानी लेखन पुरस्कार आयोजन -36- कविता वर्मा की कहानी : सगा सौतेला
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiQi8HtJtfSwP3vgoE-IzD-XJRKqL3xlS6DMhtwxpam8-J-B7t3Qwd8fm2xnCA3KPBP6iA61jFPY3x-WeDriSh6rw0FPr2ew93_pwmEEWNZ_7YYNsVfSbHPYCthMlCzohTWaF2V/s220/DSC00235.JPG
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiQi8HtJtfSwP3vgoE-IzD-XJRKqL3xlS6DMhtwxpam8-J-B7t3Qwd8fm2xnCA3KPBP6iA61jFPY3x-WeDriSh6rw0FPr2ew93_pwmEEWNZ_7YYNsVfSbHPYCthMlCzohTWaF2V/s72-c/DSC00235.JPG
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2012/08/36.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2012/08/36.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content