कहानी लेखन पुरस्कार आयोजन -73- गोविन्द बैरवा की कहानी मटकी

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कहानी मटकी  -गोविन्‍द बैरवा ‘‘सुनती हो सरोज। जरा मदन को भेजना।‘‘ कमरे में बैठे-बैठे ही जगमोहन ने आवाज लगाई। ‘‘अजी! मदन, अपने दोस्‍तों क...

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कहानी

मटकी 

-गोविन्‍द बैरवा

‘‘सुनती हो सरोज। जरा मदन को भेजना।‘‘ कमरे में बैठे-बैठे ही जगमोहन ने आवाज लगाई। ‘‘अजी! मदन, अपने दोस्‍तों के साथ बाहर गया है।‘‘ रसोई घर से सरोज ने ऊँचे आवाज में बोलते दिया।

जगमोहन अपने स्‍थान से उठकर रसोई घर की तरफ चलने लगता है। सरोज को भोजन बनाता देखकर कहने लगते हैं।- ‘‘आज तो स्‍कूल से छुट्टी का दिन है। किस काम से बाहर गया है, बेटा मदन।‘‘ पति के कहे कथन को रोटी बैलती सरोज बेलन को रोककर कहने लगती है। ‘‘स्‍कूल से जिस पर्व को लेकर छुट्टी बनी है, उसी की तैयारी में लगा है, तुम्‍हारा बेटा मदन।‘‘

पत्‍नी के कहे कथन को सुनकर जगमोहन कुछ देर सोचकर कहने लगते हैं-‘‘अच्‍छा ! आज कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी पर बनने वाला कार्यक्रम में जुड़ा है बेटा मदन।‘‘

जगमोहन फिर अपने कमरे की तरफ चले आते हैं। कुछ देर बाद सरोज रसोई घर का काम समाप्‍त कर चाय की प्‍याली लिए कमरे की तरफ चली आती है। चाय की प्‍याली जगमोहन के सामने रखकर पास पड़ी कुर्सी पर बैठ जाती है। चाय की एक चुस्‍की लेकर जगमोहन पत्‍नी की तरफ देखकर कहने लगता है-

‘‘सरकारी सेवा को प्राप्‍त करने की मटकी मैं आज 38 वर्षों के प्रयास के बाद भी नहीं फोड़ पाया। मेरा बेटा ना जाने कौन सी मटकी फोड़ने की तैयारी कर रहा है।‘‘

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रु. 15,000 के 'रचनाकार कहानी लेखन पुरस्कार आयोजन' में आप भी भाग ले सकते हैं. अपनी अप्रकाशित कहानी भेज सकते हैं अथवा पुरस्कार व प्रायोजन स्वरूप आप अपनी किताबें पुरस्कृतों को भेंट दे सकते हैं. कहानी भेजने की अंतिम तिथि 30 सितम्बर 2012 है.

अधिक व अद्यतन जानकारी के लिए यह कड़ी देखें - http://www.rachanakar.org/2012/07/blog-post_07.html

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सरोज कुछ देर चाय पीने में लगी रही। अपने पति के कथन का जवाब कुछ देर सोचकर देने लगती है- ‘‘मेरा बेटा अपने स्‍वार्थ से ज्‍यादा, सभी के लाभ से जुड़ी मटकी फोड़ने की तैयारी में लगा है।‘‘ जगमोहन को पत्‍नी की बात कड़वी लगती है। क्रोधमयी चेहरा स्‍पष्‍ट यह दिखा रहा था। सरोज की तरफ एक टक देखते हुए कहने लगे-‘‘क्‍या? कहा, मैं स्‍वार्थ की मटकी फोड़ने में इतने वर्षों से लगा हूँ।‘‘

सरोज का चेहरा भी अब कुछ गम्‍भीर लग रहा था। पति की तरफ देखकर कहने लगी-‘‘आप प्राईवेट नौकरी से सरकारी नौकरी प्राप्‍त करने के लिए, प्रयास इतने वर्षों से कर रहे हैं। सरकारी नौकरी आपकी आवश्‍यकता को पूरा करने के प्रति सक्षम है। इसकी प्राप्‍ति के लिए आप प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी करते हो। अभी तक आप अपने लक्ष्‍य तक नहीं पहुँचे या यह कहे कि सरकारी सेवा की मटकी आपसे नहीं फूटी अन्‍यथा फूट गयी होती तो उस मटकी का माखण आप ही तो खाते। पर मेरा बेटा ऐसी मटकी फोड़ने की तैयारी कर रहा है, जिसका माखण सभी के लिए लाभदायक होगा।‘‘

जगमोहन का चेहरा लाल पड़ गया था। रह-रहकर क्रोध शरीर में हलचल मचा रहा था। पर पत्‍नी की बातों में सच्‍चाई थी। फिर भी जानने की चाहत मन में बनी हुई थी। दबी आवाज में पत्‍नी की तरफ देखकर कहने लगे-‘‘क्‍या मैं जान सकता हूँ, कौन सी मटकी फोड़ने में लगा है, तुम्‍हारा लाड़ला बेटा मदन।‘‘

सरोज भी अपने क्रोध को दबाकर पति की तरफ देखकर इतना ही कह सकी-‘‘आप स्‍वयं देखकर समझ लेना। शाम को फूटेगी सभी के लाभ की मटकी।‘‘ सरोज के चेहरे पर थोड़ी सी हँसी महसूस हो रही थी।

पति जगमोहन मन ही मन कुछ सोच रहे थे। इतने में फोन की घण्‍टी बजने लगती है।

‘‘ट्रिंग, ट्रिंग,,,,,,,,,,,,,,,ट्रिंग।‘‘

‘‘हैलो! कौन बोल रहा है?‘‘ जगमोहन ने फोन कान में लगाकर पूछने लगे। ‘‘हैलो ! जगमोहन मैं दीनदयाल बोल रहा हूँ।‘‘ दूसरी तरफ से जवाब सुनकर जगमोहन के मुँख पर मुस्‍कान, चेहरे पर नजर आने लगती है। हल्‍की हँसी हँसकर बोलने लगे-‘‘आज कैसे याद किया दीनदयाल जी!‘‘

‘‘अरे यार तुझे खुश खबरी देने के लिए फोन किया।‘‘ दीनदयाल के इस कथन को सुनकर जगमोहन की जिज्ञासा बढ़ गयी। सुनते ही पूछने लग गये-‘‘अरे क्‍या सरकारी सेवा में चयन हो गया क्‍या तुम्‍हारा।‘‘ दूसरी तरफ से जबाव मिला- हाँ! यार, हो गया चयन सरकारी सेवा में मेरा।‘‘ कुछ देर जगमोहन को यकीन नहीं हुआ।

जगमोहन ये जानते थे कि, दीनदयाल की शैक्षणिक योग्‍यता इतनी कम प्रतिशत से जुड़ी है। जिसका प्रभाव साक्षात्‍कार में चयन कराने के प्रति सक्षम नहीं, पर दीनदयाल का चयन होना किसी आश्‍चर्य से कम नहीं जिसे जानना अति-आवश्‍यक था। मुँख पर हँसी लेकर फोन पर कहने लगे-‘‘पहले तो यार तुझे सरकारी नौकरी की शुभकामना। यार ये तो बता, ये असफलता का रूझान सफलता लेकर कैसे आ गया।‘‘

दीनदयाल ने जगमोहन के सवाल का जवाब बड़े ही स्‍पष्‍ट शब्‍दों में देने लगते हैं-‘‘यार इस देश में नहीं सोचते, वह भी हो जाता है। बस इतना समझ ले कि कुछ दक्षिणा चढ़ाई और कुछ पहचान करवाई, हो गया चयन। अच्‍छा यार, अन्‍य मित्रों को भी यह खुशी सुनानी है, इसलिए बाद में बात करेंगे।‘‘

जगमोहन सामने बेटी पत्‍नी को एकटक देखता रहता है। अगर उसके पास भी बीते वर्ष दक्षिणा व पहचान होती तो आज एक वर्ष सरकारी सेवा करते हो गया होता। आज का परिवेश कुछ इस तरह का बना है, जिसमे योग्‍यता से ज्‍यादा महत्‍व पहचान वह दक्षिणा को दी जाती है। कुछ लम्‍बी सांसें लेकर पत्‍नी से इतना ही कह पाते हैं-‘‘सरोज, मैं मनोज की दुकान तक जाकर आता हूँ।‘‘

पत्‍नी सब कुछ बिना कहे ही समझ गयी। आज इनके मन में दुःख बढ़ गया है, आखिर पति की शैक्षणिक योग्‍यता दीनदयाल से काफी अच्‍छी है। पर क्‍या करे, इस समय देश की कुछ यथास्‍थिति ऐसी बनती जा रही है, जिसमें महत्‍व इंसान की योग्‍यता व ज्ञान का नहीं, पहचान व पैसे का कुछ ज्‍यादा है।

जगमोहन घर से बाहर निकलकर बाजार जाने वाली सड़क पर चलने लगते हैं। कुछ दूर ही चल पाते हैं कि रास्‍ते में आवाज सुनाई देती है- ‘‘नमस्‍ते अंकल।‘‘ पलटकर देखते हैं तो सूरज खड़ा नजर आता है। सूरज मोहल्‍ले में रहने वाला युवक है। जिसके पिताजी कपड़ों के व्‍यापारी है। अक्‍सर सूरज को जगमोहन दुकान में देखते रहते थे। इसी कारण जान पहचान बनी हुई थी।

‘‘अरे सूरज कब आया शहर से, और बता कैसे चल रहा है, तेरा डिप्‍लोमा कोर्स‘‘ जगमोहन ने सूरज के कंधे पर हाथ रखकर पूछने लगे। सूरज चेहरे पर हल्‍की मुस्‍कान लाकर कहने लगा-‘‘अच्‍छा चल रहा है अंकल। मैं अभी प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी करने के साथ दुकान सम्‍भालने में लगा हूँ।‘‘

जगमोहन आश्‍चर्य में पड़ गये। डिप्‍लोमा चल रहा है शहर में। यह यहाँ अन्‍य कार्य में व्‍यस्‍त हैं। कुछ देर सोचकर सूरज को कहने लगते हैं-‘‘सूरज डिप्‍लोमा कोर्स तो नियमित उपस्‍थिति के द्वारा पूरा होता है, ना ?‘‘ सूरज फिर से चेहरे पर मुस्‍कान लेकर कहने लगता है- ‘‘हाँ! अंकल। नियमित होता है, ये डिप्‍लोमा। मैंने सब सेंटिग कर ली है, खिला-पिलाकर। अब मुझे सिर्फ मेन पेपर ही देने हैं। शेष सारा कार्य हो जायेगा। अच्‍छा अंकल मैं चलता हूँ, दुकान पर पापा इन्‍तजार कर रहे होगें।‘‘

जगमोहन, सूरज को जाते हुए एकटक देखते रहते हैं। ऐसे सड़क पर अकेला खड़ा देखकर सामने से दुपहिया वाहन लेकर आते शंकरलाल, जगमोहन के करीब गाड़ी रोकते हुए कहने लगते हैं-‘‘अरे क्‍या हुआ जगमोहन जी। क्‍या देख रहे हो, सड़क के बीचोंबीच खड़े-खड़े।‘‘ सूरज की तरफ से नजर हटाकर, शंकरलाल की तरफ देखकर कुछ देर खामोश रहने के बाद बोलने लगे-‘‘कुछ नहीं, ऐसे ही देख रहा था।‘‘

जगमोहन का जवाब सुनकर शंकरलाल हल्‍की हँसी लेते हुऐ कहने लगे-‘‘अरे यार आखिर वो काम हो गया।‘‘ जगमोहन समझ नहीं पाया। इसलिए पूछने लगे -‘‘कौन सा काम शंकरलाल ?‘‘

शंकरलाल जगमोहन की तरफ देखकर बोलने लगते हैं-‘‘अरे यार मकान बनाने के लिए जो प्रार्थना पत्र नगरपालिका में दिया था, वह स्‍वीकृत हो गया। मिठाई का प्रसाद चढ़ाया, जब जाकर यह स्‍वीकृत हुआ। अन्‍यथा एक माह तो ऐसे ही चक्‍कर लगाने में दिन निकल गये थे।‘‘

खुशी की लहर शंकरलाल के चेहरे पर साफ झलक रही थी। पर जगमोहन उसकी तरफ देखकर कुछ कह नहीं पा रहे थे। शंकरलाल अपना दुपहिया वाहन शुरू करते हुए जगमोहन की तरफ देखकर कहने लगते हैं-‘‘अच्‍छा यार मैं चलता हूँ, कार्य शुरू करवाना है।‘‘

जगमोहन मनोज की दुकान का रास्‍ता अधूरा छोड़कर घर की तरफ चलने लगते हैं। मन ही मन में कई प्रकार की सोच उनके साथ चल रही थी। घर पहुँचते ही सरोज की आवाज कमरे से आते हुई सुनाई दी-‘‘सुनिये, आधा घण्‍टे में हमें चलना है, कार्यक्रम देखने तैयार हो जाना, चलने के लिए।‘‘

पत्‍नी की आवाज को सुनकर जगमोहन बेमन से जाने की तैयारी करने लगते हैं। आखिर ये जानना भी जरूरी था कि पुत्र के द्वारा ऐसी कौन सी तैयारी तय हुई, जिसके बारे में पत्‍नी से इतना ही सुन पाये थे कि आज सभी के लाभ की मटकी फूटेंगीं।

दोनों पति-पत्‍नी घर से साथ निकलते हैं। कुछ दूर चलते हुए लाउडस्‍पीकर की आवाज से देश भक्‍ति का गीत सुनाई देता है-‘‘है, प्रीत जहाँ की रीत सदा। मैं, गीत वहीं के गाता हूँ। भारत का रहने वाला हूँ, भारत की बात सुनाता हूँ।‘‘ उस चलते गीत की दिशा में दोनों बढ़ते चले जाते हैं।

कुछ देर चलने के बाद मुख्‍य बाजार के चौराहे पर भव्‍य रूप से सजा हुआ मण्डप दिखाई देता है। मण्डप के मेन गेट पर लगा हुआ बड़ा बैनर पर बड़े अक्षर में लिखा हुआ था-‘‘भ्रष्टाचार मटकी फोड़ कार्यक्रम में आपका स्‍वागत है।‘‘

सरोज ने बैनर को देखकर अपने पति का ध्‍यान उस बैनर की तरफ ले जाकर कहने लगती है ‘‘देखिये, ये कार्यक्रम है आज। भ्रष्टाचार मटकी फोड़ कार्यक्रम।‘‘ जगमोहन पत्‍नी की तरफ घूरकर देखते हुए अपनी नजर बैंनर पर छपे अक्षरों को पढ़ते हुए अन्‍दर की तरफ कदम बढ़ाने लगते हैं।

जगमोहन को मटकी की ऊँचाई देखकर आश्‍चर्य होता है। मटकी की ऊँचाई जगमोहन को बीते वर्षों से आधी नजर आती है। अक्‍सर कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी पर मटकी ऊँचाई पर बँधीं होती है, पर इस बार का रहस्‍य वह समझ नहीं पाया। देखा अत्‍यधिक मात्रा में लोगों की भीड़ मण्‍ड़प के अन्‍दर कुछ बैठी हुई, तो कुछ खड़ी नजर आ रही थी । सामने बने मंच के आस-पास युवाओं की भीड़ अहसास दिला रही थी कि इस कार्यक्रम में सबसे ज्‍यादा युवाओं की भूमिका महत्‍वपूर्ण है। जगह देखकर दोनों पति-पत्‍नी लोगों के बीच बैठ जाते हैं।

मंच से एक सज्‍जन माईक लेकर बोलने लगते हैं- ‘‘आप सब लोगों का इस भ्रष्टाचार मटकी फोड़ कार्यक्रम में स्‍वागत है। इस कार्यक्रम की तैयारी युवा पीढ़ी के द्वारा बड़े उत्‍साह से की गई। जिसमे मुख्‍य रूप से मदन, अमीत, वरूण और इनके सहयोगी युवा पीढ़ी का सहयोग उत्‍साह जनक व महत्‍वपूर्ण है।‘‘ लोगों की भीड़ में से तालियों की गड़गड़ाहट सुनाई देने लगती है।

फिर मंच से सज्‍जन बोलने लगते हैं-‘‘ आपको आश्‍चर्य होगा कि इस बार मटकी इतने नीचे क्‍यों है। इसका जवाब देने के लिए मैं मंच पर उस युवक को बुलाता चाहता हूँ, जिसने इस कार्यक्रम को युवाओं में जाग्रत किया। मदन, मदन आप मंच पर आकर इस कार्यक्रम को मनाने के पीछे छुपे उद्देश्‍य को सबके सामने स्‍पष्‍ट करें।‘‘

मंच की दाँय तरफ से युवाओं के बीच में से 16-17 वर्ष का लड़का खड़ा होता है। लम्‍बा कद, सांवला रंग, चेहरे पर झलकता तेज, जिसको उजागर करती उसकी बड़ी-बड़ी आँखें। अपने स्‍थान से कदम बढ़ाते हुए मंच की तरफ बढ़ने लगता है।

मंच पर बोलने वाले सज्‍जन को नमस्‍ते कर माईक अपने हाथ में लेकर कुछ देर तक भीड़ को देखकर झुककर नमस्‍ते कर बोलने लगता है-‘‘आप सभी का मैं व मेरे साथियों की तरफ से इस कार्यक्रम में स्‍वागत है। ये जो मटकी आपको नीचे नजर आ रही है, वह भ्रष्टाचार की मटकी है। इस मटकी को फोड़ने की क्षमता वयस्‍क व्‍यक्‍तियों में नहीं है। माफ करना में सभी को दोषी नहीं ठहराता पर अधिकतर व्‍यक्‍ति भ्रष्टाचारी में लिप्‍त है या कह सकते हैं कि लिप्‍त रह चुका है। इस कारण वे इस भ्रष्टाचार की मटकी फोड़ने में सक्षम नहीं। पर हम युवाओं में इस मटकी को फोड़ने की पूर्णरूप से क्षमता है। हमारे जीवन में अभी भ्रष्टाचारी का फैला वातावरण इतना समाहित नहीं हुआ। हम युवा पीढ़ी इस मटकी को फोड़कर हमेशा-हमेशा के लिए इस दूषित वातावरण से मुक्‍ति का संकल्‍प लेंगे।‘‘

मदन के मुँह से निकलते शब्‍दों में अजीब सी शक्‍ति थी। इतनी भीड़ होते हुए ऐसा लग रहा था जैसे कोई नहीं। सभी लोग शांत बने सुन रहे थे। सभी का ध्‍यान मदन की तरफ था, और कान लाउडस्‍पीकर की तरफ थे। ऐसा लग रहा था मानों समाज सुधारकों की वाणी मदन की वाणी के साथ जुड़कर देश में फैले इस दूषित वातावरण को जल्‍दी से जल्‍दी दूर करने के प्रति जागरूक है। मदन पूरे विश्‍वास के साथ बोले जा रहा था।

‘‘आज हर कोई अपना काम शार्टकट तरीके से करना चाहता है। देश के अन्‍तर्गत इस प्रकार का वातावरण फैल रहा जिसमे सरकारी या गैर सरकारी कार्य की पूर्ति बिना घूस लिए तय नहीं होती। इस बँधी मटकी की तरह अभी उसका स्‍तर नीचे है, क्‍योंकि हम युवाओं को इस दूषित वातावरण ने अभी इतना प्रभावित नहीं किया अन्‍यथा आज ये जो भ्रष्टाचार की मटकी इतनी नीचे नहीं बँधीं होती। हम युवा पीढ़ी इस मटकी को ऊँचाई पर बढ़ने से पहले ही इसको जड़ से समाप्‍त करना चाहते हैं।‘‘

जगमोहन अपने बेटे को बोलता देखकर अन्‍दर ही अन्‍दर ढ़ेरों सारा आशीर्वाद दे रहा था। आखिर इस भ्रष्टाचारी का प्रकोप को वो व्‍यतीत कर चुका है।

सरोज अपने बेटे की प्रतिभा से प्रभावित थी। हल्‍के से पति को चुटकी मारकर ध्‍यान अपनी तरफ आकर्षित करवाकर कहने लगती है-‘‘क्‍यों जी! इतनी चुप्‍पी क्‍यों छा गई चेहरे पर आपके। देखो आपका बेटा कितना स्‍वार्थ रहित है और समझदार भी। आज युवा पीढ़ी को उस तरफ लेकर चलना चाहता है जहाँ भ्रष्टाचार रहित सुखद सवेरा है। भ्रष्टाचार का घिरा अँधेरा नहीं।‘‘ जगमोहन कुछ बोलते उससे पहले ही मदन के बोलने की आवाज सुनाई दी।

‘‘हम युवाओं को आप सब लोगों की आवश्‍यकता है। हम युवाओं को अपने लक्ष्‍य तक पहुँचाने में आपका सहयोग अतिआवश्‍यक है। आपके व हमारे जीवन में भ्रष्टाचारी संबंधी रूझान अगर सामने आकर खड़ा हो जाए, तो आप उसका सामना करने में संकोच ना करे, क्‍योंकि इस लडाई में युवापीढ़ी आपके साथ है। आप और हम मिलकर इस दूषित वातावरण को जड़ से उखाड़ फेंकने के प्रति आज से प्रतिज्ञा करेंगे।‘‘

लोगों की भीड़ में से तालियों की आवाज का शोर इतना बढ़ गया था कि जगमोहन को कुछ पल के लिए अपने कान पर हाथ रखना पड़ा। भीड़ में से लोग भारत माता की जय, कृष्‍ण कन्‍हैया की जय, के साथ ही भ्रष्टाचार की मटकी फोड़ने के लिए अपने स्‍थान पर खड़े होकर युवाओं को आशीर्वाद दे रहे थें।

मदन अपने युवा मित्रों को हाथ से आगे आने का संकेत कर रहा था। मदन ने माईक पहले बोलने वाले व्‍यक्‍ति को देकर युवाओं की टोली की तरफ बढ़ गया।

माईक लेने वाले सज्‍जन बोलने लगते हैं -‘‘इन युवाओं का लक्ष्‍य देश में तेजी से फैल रहे भ्रष्टाचार को समाप्‍त करने के प्रति आतुर है। हम लोगों को भी संकल्‍प लेना होगा कि इनको इनके उद्देश्‍य तक पहुँचाने में तन-मन से सहयोग करेंगे। आने वाले कुछ वर्षों में इसका सुखद परिणाम हमें दिखाई देगा। आज ये युवा पीढ़ी कृष्‍ण रूप में हमारे सामने खड़ी है। इनकी सोच व समझ को हमें अपनाना होगा। भ्रष्टाचार की मटकी फोड़ने में इनका उत्‍साह महसूस करवाता है कि जल्‍द ही हमारे जीवन के ईद-गिर्द घिरे इस दूषित वातावरण का अंत होगा।‘‘

मदन और उसके युवा साथी एकता बनाकर घेरा बनाते हैं। मटकी फोड़ने के लिए बीते वर्षों में जो बार-बार प्रयत्‍न किया जाता था, वह इस बार नहीं करना पड़ा। इन युवाओं की योजना व समझ लक्ष्‍य के प्रति स्‍पष्‍ट बनी हुई थी। युवाओं में सबसे ऊपर मदन चढ़ा हुआ था। युवाओं ने मदन को मटकी के स्‍तर तक पहुँचा दिया। मदन ने एक बार मटकी को आक्रोश भरी नजर से देखा। अपने हाथ से बल पूर्वक प्रहार मटकी के ऊपर कर दिया। एक ही प्रहार में मटकी टुकड़ों में बिखरती हुई जमीन पर गिरने लगी। लोगों का जयकारा जोरों के साथ सुनाई दे रहा था।

जगमोहन भीड़ के अन्‍दर से बेटे की तरफ बढ़ने लगते हैं। आँखों में खुशी के आँसू चेहरे पर नजर आ रहे थे। मदन के कंधे पर हाथ रखते हुए कहने लगे - ‘‘बेटा मुझे तुम पर गर्व 7 है। तुम्‍हारी सोच स्‍वार्थ रहित है। भ्रष्टाचार रहित देश बनाने का जो संकल्‍प तुम युवा पीढ़ी ने अपने कंधों पर लिया है। उसे लक्ष्‍य तक पहुँचाने में हम सभी तुम्‍हारे साथ है।‘‘

जगमोहन अपने पुत्र को सीने से लगा देता है। सरोज भी इतने समय में मदन के करीब आकर बड़े प्‍यार से मदन के सिर पर हाथ फेरकर आशीर्वाद देती है।

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लेखक-गोविन्‍द बैरवा पुत्र श्री खेमाराम जी बैरवा

आर्य समाज स्‍कूल के पास, सुमेरपुर

जिला-पाली, राजस्‍थान, पिन कोड-306902

govindcug@gmail.com

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जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi 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रचनाकार: कहानी लेखन पुरस्कार आयोजन -73- गोविन्द बैरवा की कहानी मटकी
कहानी लेखन पुरस्कार आयोजन -73- गोविन्द बैरवा की कहानी मटकी
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