कहानी लेखन पुरस्कार आयोजन -77- केवल तिवारी की कहानी : एक थी तान्या

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कहानी एक थी तान्‍या केवल तिवारी --- रु. 15,000 के 'रचनाकार कहानी लेखन पुरस्कार आयोजन' में आप भी भाग ले सकते हैं. अपनी अप्रकाशित क...

कहानी

एक थी तान्‍या

केवल तिवारी

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रु. 15,000 के 'रचनाकार कहानी लेखन पुरस्कार आयोजन' में आप भी भाग ले सकते हैं. अपनी अप्रकाशित कहानी भेज सकते हैं अथवा पुरस्कार व प्रायोजन स्वरूप आप अपनी किताबें पुरस्कृतों को भेंट दे सकते हैं. कहानी भेजने की अंतिम तिथि 30 सितम्बर 2012 है.

अधिक व अद्यतन जानकारी के लिए यह कड़ी देखें - http://www.rachanakar.org/2012/07/blog-post_07.html

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मोहित पांडेय का मन नहीं लग रहा था ऑफिस में। इधर-उधर टहलना। फिर कंप्‍यूटर पर आकर बैठ जाना। थोड़ी देर कंप्‍यूटर की ओर नजर गड़ाना और परेशान सा हो जाना। उनके पड़ोस में बैठने वाले जोगेंद्र जैसे उनकी बेचैनी समझ रहे थे। उनके उठने-बैठने, कंप्‍यूटर पर आंख गड़ाने फिर बेचैन होकर टहलने को देखते हुए उन्‍होंने चुटकी ली, क्‍या हुआ? नहीं आई क्‍या। मोहित सकपकाए, क्‍या मतलब कौन नहीं आई। जोगेन्‍द्र समझ गए मोहित को बात शायद चुभ रही है, तुरंत ट्रैक बदलते हुए बोले, अरे रात में नींद नहीं आई क्‍या। मैं तो आपके नींद आने की बात कह रहा था, लेकिन आप तो ऐसे चौंक गए थे जैसे मैंने यह पूछ दिया हो कि आपकी कोई गर्लफ्रेंड नहीं आई क्‍या। मोहित हल्‍का मुस्‍कुराए और वॉशरूम की तरफ चल दिए। वैसे मोहित की जैसी बेचैनी दफ्‌तर में उस दिन कई लोगों के चेहरे पर नजर आ रही थी। कुंआरे गोकुल कुमार हों या फिर दो बच्‍चों के बाप जितेन्‍द्र प्रसाद। टीम लीडर रोहित बालियानी हों या फिर ड्‌यूटी इंचार्ज अमित कुमार।

असल में ये सभी लोग एक सॉफ्टवेयर कंपनी में काम करने वाले हैं। अमूमन जरनल शिफ्ट लगती है ऑफिस में। शाम के समय घंटा-डेढ़ घंटा उस दफ्‌तर के अनेक लोग व्‍यस्‍त से लगते हैं। वैसे तो काम दिनभर रहता है, लेकिन शाम की व्‍यस्‍तता बड़ी रहस्‍यमयी। इस रहस्‍य के बारे में कई लोग जानते भी हैं, लेकिन उसका जिक्र उसी तरह करते हैं जैसे कुछ नहीं जानते। शाम की व्‍यस्‍तता के बारे में तो और भी अजीब हाल है। कंप्‍यूटर का मॉनीटर थोड़ा झुकाकर, आसपास कोई कुछ न देख पाए इस अंदाज में सबकी व्‍यस्‍तता होने लगती है। कुछ नहीं कर रहे हैं जैसा दिखाने के अंदाज में बहुत कुछ चल रहा होता है। उनके कंप्‍यूटर मॉनीटर पर। ऐसा-वैसा कुछ नहीं चल रहा होता था। असल में एक लड़की थी तान्‍या। लड़की ही होगी क्‍योंकि नाम से तो यही लगता है। वह एक अखबार में पत्रकार है। पत्रकार ही होगी क्‍योंकि उसने तो यही बताया था। वह 24 साल की अविवाहित युवती है। अविवाहित होगी और 24 साल की ही होगी, क्‍योंकि उसने यही बताया था। असल में उसकी हर बात वही होगी जो उसने बताई। यूं तो सभी की वही बात होती है जो वह बताता है या बताती है, लेकिन तान्‍या के मामले में यह बताना और उस बताने पर विश्‍वास करना ज्‍यादा सटीक है और मानने की बाध्‍यता। सटीक इसलिए कि तान्‍या हर किसी को अच्‍छी लगती है, मानने की बाध्‍यता इसलिए कि उसे किसी ने देखा नहीं। जब देखा नहीं तो कोई उसकी उम्र को लेकर क्‍या कहे और क्‍या अंदाजा लगाए। उसके पेशे को लेकर क्‍या जाने। बेशक उसे किसी ने देखा न हो, लेकिन मोहित, जोगेन्‍द्र, रोहित, जितेन्‍द्र और गोकुल जैसे तमाम लोग इस तान्‍या के मित्र हैं। जीमेल और फेसबुक मित्र। तान्‍या ने जो प्रोफाइल डाला था, उसके मुताबिक वह एक पत्रकार थी। उम्र 24 साल। अविवाहित। दिखने की बहुत सुंदर। उसके निजी प्रोफाइल में दो-तीन फोटो पड़े हुए थे। उसके मुताबिक वह वाकई बहुत सुंदर थी। वह फोटो किसी फिल्‍मी हस्‍ती की भी नहीं थी, इसलिए उन पर भरोसा न करने का कोई कारण नहीं था। मित्रों की सूची में ज्‍यादातर छात्र, नौकरीपेशा और अधेड़ उम्र के कुछ लोग थे। महिलाओं की संख्‍या भी अच्‍छी-खासी थी। लेकिन ज्‍यादा मित्र थे पुरुष। वह अक्‍सर शाम को चार बजे ऑन लाइन होती थी। उसके ऑन लाइन होते ही उसके चाहने वाले शुरू हो जाते हेलो, हाउ आर यू। आप तो पत्रकार हैं, आज क्‍या बड़ी खबर है। वगैरह․․․वगैरह। कभी कभार वह ऑन लाइन नहीं होती तो मोहित, जोगिन्‍द्र जैसे कई लोग परेशान हो उठते। असल में उसकी खूबी यह थी कि वह सबको जवाब तुरंत देती थी। जैसे ही किसी ने चैट में जाकर हेलो लिखा नहीं कि, उसका तुरंत जवाब आता हाई। फिर बातें बढ़तीं। एक हद तक वह सारी बातें कर लेती थीं। कई बार कुछ लोगों को चैट पर ही झिड़क देती। मजेदार बात देखिए कि झिड़कने पर भी लोग बहुत खुश होते। धीरे-धीरे मोहित, जोगेन्‍द्र और रोहित आदि सबको पता चल गया कि उसके साथ कई लोग चैट करते हैं। उन्‍हीं के ऑफिस के तमाम लोग। असल में मित्रों की सूची तो दिख ही जाती थी। कई बार लोग ठहाके भी लगाते अरे देखिए, वर्मा जी भी बन गए हैं तान्‍या के मित्र। वह जनाब सफाई देते, अरे यार रघुवर जी को कॉमन फ्रेंड में देखा तो मैं भी मित्र बन गया। चोरी-छिपे लोग एक दूसरे के कंप्‍यूटर पर यह भी देख लेते कि कितने लोग तान्‍या से चैट पर लगे हैं। एकाध बार तो चैट पर ही एक दूसरे का विरोध शुरू हो जाता। कुछ मजाकिया और मसखरे टाइप के लोग कह भी देते देखो तान्‍या तुम्‍हारे बारे में क्‍या लिख रही है। असल में होता यह कि कोई व्‍यक्‍ति तान्‍या से किसी अन्‍य के बारे में पूछता तो वह चैट पर ही बता देती कि नहीं वह व्‍यक्‍ति तो बहुत ठर्की है। फिर चैट क्‍यों करती हो, पूछने पर वह कह देती मैं किसी को निराश नहीं करती।

तान्‍या की दोस्‍ती का दायरा जब बहुत बढ़ गया तो लोगों को तान्‍या के अस्‍तित्‍व पर ही संदेह होने लगा। कोई कहता तान्‍या नाम की कोई लड़की है ही नहीं। कोई और है जो यूं ही मजे ले रहा है या ले रही है। किसी को इसमें क्‍या मजा आएगा। इस तरह का तर्क भी तान्‍या के चैट दोस्‍त देने लगते। रोज उससे घंटों चैट के माध्‍यम से बतियाने वाले आज तक यह नहीं पूछ पाए कि आखिर वह किस अखबार में है या चैनल में है। वह पत्रकार है यह सबको मालूम था, लेकिन कहां? किसी को पता नहीं। वह तान्‍या थी यह सब बोलते थे, लेकिन कहां रहती है कोई नहीं जानता। उससे चैट सब करते लेकिन क्‍या बातें होती किसी को पता ही नहीं चलता। उस कंपनी में टीम लीडर से लेकर जूनियर स्‍टॉफ तक तान्‍या की फ्रेंड लिस्‍ट में आ चुके थे।

यूं तो लोगों को जीमेल या फेसबुक खुला रहता लेकिन चार बजते ही सबकी निगाहें कंप्‍यूटर स्‍क्रीन पर ऐसे चिपक जातीं जैसे कोई बहुत बड़ी बात होने वाली है। जैसे कुछ खास असाइनमेंट आने वाला हो। आज भी यही हुआ था। मोहित पांडेय बार-बार कंप्‍यूटर स्‍क्रीन पर देखते, फिर बेचैन हो जाते। बेचैनी तो जोगेन्‍द्र को भी हो रही थी, लेकिन वह अपनी बेचैनी शो नहीं कर रहे थे। उनकी नजर भी जीमेल और फेसबुक के चैट ऑप्‍शन पर ही थी, लेकिन तान्‍या आज ऑन लाइन नहीं दिख रही थी। बेचैनी अन्‍य लोगों को भी थी। यहां तक कि कुछ तो यह सोचने लगे कि हो न हो तान्‍या ने ऑफ लाइन वाला ऑप्‍शन चुन लिया हो। यह सोचकर कुछ लोगों ने ऑफ लाइन तान्‍या को ही हेलो और हाई के मैसेज भेज दिए। लेकिन कोई जवाब नहीं आया। कोई इतना भी दिमाग नहीं लगा रहा था कि हो सकता है तान्‍या आज ऑफिस नहीं आई हो। हो सकता है कहीं किसी काम के सिलसिले में व्‍यस्‍त हो गई हो। चार के बाद पांच बजा, फिर छह। सब लोग कंपनी से जाने की तैयारी करने लगे। धीरे-धीरे मन मसोस कर सबने कंप्‍यूटर शट डाउन कर दिए।

कंपनी से धीरे-धीरे लोग अपनी कैब में बैठने चले गए। टीम लीडर रोहित बालियानी भी वहां सबकी बात सुन रहे थे। उन्‍हें इस बात पर कतई भरोसा नहीं हो रहा था कि तान्‍या कोई है ही नहीं। वह यह मानने को कतई तैयार नहीं थे कि तान्‍या बनकर कोई और उनसे चैट कर रहा है। वे आज कुछ काम होने की बात कहकर कंपनी में कुछ देर के लिए रुक गए थे। असल में जैसे ही 6 बजे के करीब सब लोगों के कंप्‍यूटर शट डाउन हुए, सवा छह बजे रोहित को दिख गया कि तान्‍या ऑन लाइन हो गई है। आज उन्‍होंने अपनी चैटिंग में बातचीत का रास्‍ता घुमाया। उन्‍होंने सवाल दागा कि आप जर्नलिज्‍म में कितना कमा लेती हैं। क्‍या एचआर के फील्‍ड में जाने का मन है। अच्‍छा पैकेज है। हमारी कंपनी में भी जरूरत है वगैरह․․․वगैरह। रोहित अपने मकसद में लगभग कामयाब हो गए। करीब 10 मिनट की चैटिंग के बाद तान्‍या ने मान लिया कि यदि अच्‍छा वेतन मिलेगा तो वह अपना फील्‍ड बदल सकती है। यही नहीं वह अपना बायोडाटा भेजने को तैयार हो गई। न केवल तैयार हो गई, बल्‍कि आधे घंटे में ही उसने अपना बायोडाटा रोहित बालियानी को मेल कर दिया। पता लगा कि तान्‍या दिल्‍ली में नहीं रहती, बल्‍कि वह पंजाब के लुधियाना के किसी छोटे अखबार में बतौर अल्‍पकालिक रिपोर्टर काम करती है। पिता फौज से रिटायर्ड हैं। बायोडाटा में उसने अपना कोई मोबाइल नंबर नहीं लिखा था, अलबत्‍ता अपने घर का लैंड लाइन नंबर लिख छोड़ा था। रोहित को बड़ा सुकून मिला और वह भी कंप्‍यूटर शट डाउन कर घर की ओर बढ़ चले। अगले दिन दोपहर से ही तान्‍या के बारे में खुसर-पुसर शुरू हो गई। रोहित भी हौले-हौले हो रही इस बात को सुन रहे थे। उस दिन शाम को फिर तान्‍या ऑन लाइन नहीं हुई। अब तो आपस में ही जोर-जोर से लोग कहने लगे, किसी ने हम सबको बेवकूफ बनाया है। तान्‍या आज भी नहीं आई है। एक बोला, मैं तो जानता था यह सब फ्रॉड है, लेकिन ऐसे ही कभी-कभी चैट कर लेता था। सब अपने-अपने तर्क देने लगे लेकिन ध्‍यान सबका कंप्‍यूटर स्‍क्रीन पर था। रोहित आज फिर कुछ देर के लिए रुक गए। लेकिन आज तान्‍या सात बजे तक भी ऑन लाइन नहीं हुई। ऑन लाइन न होने का यह सिलसिला अब लगातार चलने लगा। धीरे-धीरे लोग तान्‍या को जैसे भूलने की कोशिश करने लगे। एक दिन लंच के समय सब लोगों के बहस का मुद्‌दा ही तान्‍या थी। अबकी रोहित से भी नहीं रहा गया। यह तो सबको पता था कि वह भी तान्‍या की फ्रेंड लिस्‍ट में शामिल हैं। उन्‍होंने बायोडाटा मंगाने की बात सबको बता दी और बताया कि वह लुधियाना में एक छोटे से अखबार में काम करती है। उसके घर का नंबर भी है उसके पास। रोहित सबको यह बात बता ही रहे थे कि उन्‍हें अपने ब्‍लैक बेरी फोन के जरिये पता चला कि एक मेल आया है। मेल खोलते ही वह हक्‍का-बक्‍का रहे। तान्‍या का मेल। उन्‍होंने सबको बताया कि तान्‍या का मेल आया है। सबका ध्‍यान उसी तरफ गया। रोहित ने इनबॉक्‍स में जाकर देखा तो तान्‍या के आईडी से किसी रुपाली ने मैसेज किया था कि तान्‍या का भयानक एक्‍सीडेंट हो गया है, बचने की उम्‍मीद न के बराबर है। रोहित को लगा कि फोन करना चाहिए। लेकिन नंबर घर का है, वह क्‍या कहेगा। कैसे जानता है तान्‍या को। उन्‍होंने साथियों से राय लेनी चाही। ज्‍यादातर ने फोन नहीं करने को कहा। आज फिर शाम के चार बजे, किसी के चेहरे पर कोई बेचैनी नहीं झलक रही थी। कोई अपने काम में व्‍यस्‍त था, कोई मेल डिलीट कर रहा था। कोई तान्‍या के साथ चैट सेविंग को डिलीट कर रहा था। रोहित ने बायोडाटा वाला मैसेज डिलीट कर दिया। आज तान्‍या का न तो किसी को इंतजार था और न ही किसी तरह की बेचैनी। वह बचेगी या नहीं, इसकी भी परवाह किसी को नहीं थी। न जाने कौन थी यह तान्‍या और अब․․․

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-केवल तिवारी

मकान नंबर 4109

सेक्‍टर 4बी, वसुंधरा-गाजियाबाद

पिन 201012

COMMENTS

BLOGGER: 7
  1. Kahani Bahut achhi lagi.aaj k virtual life me aise kai kirdaar hain.....

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  2. बेनामी1:58 pm

    अनुभव झलक रहा है

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  3. umesh chandra pant10:05 am

    Kewal ji aapki rachna mea aapka anubhav jalak raha hae, bahut hea aachi kalpana thi, aaj ke vyasth samay mea log tab tak aap ke saath hote hea jab tha sab kuch tik hota hae, uske baad sab aapne mea mast ho jate hae, jase ki upar kahani mae huwa, kewal ji ki ye kahani sirf kewal hea likh sakte hae

    Aapka

    Umesh pant
    9899221158

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  4. acchi story hai shru sai anat tak bandh ker rakhti hai pathak ko


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रचनाकार: कहानी लेखन पुरस्कार आयोजन -77- केवल तिवारी की कहानी : एक थी तान्या
कहानी लेखन पुरस्कार आयोजन -77- केवल तिवारी की कहानी : एक थी तान्या
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