कहानी लेखन पुरस्कार आयोजन -79- कैस जौनपुरी की कहानी : उस औरत का समाज

SHARE:

कहानी कैस जौनपुरी उस औरत का समाज --- रु. 15,000 के 'रचनाकार कहानी लेखन पुरस्कार आयोजन' में आप भी भाग ले सकते हैं. अपनी अप्रकाशित...

कहानी

कैस जौनपुरी

उस औरत का समाज

---

रु. 15,000 के 'रचनाकार कहानी लेखन पुरस्कार आयोजन' में आप भी भाग ले सकते हैं. अपनी अप्रकाशित कहानी भेज सकते हैं अथवा पुरस्कार व प्रायोजन स्वरूप आप अपनी किताबें पुरस्कृतों को भेंट दे सकते हैं. कहानी भेजने की अंतिम तिथि 30 सितम्बर 2012 है.

अधिक व अद्यतन जानकारी के लिए यह कड़ी देखें - http://www.rachanakar.org/2012/07/blog-post_07.html

image

----

स औरत की जो हालत हुई ऐसी हालत दुनिया की किसी औरत की कभी नहीं हुई. कहने को तो वो औरत थी. एक पांच साल के बच्‍चे की मां भी थी. लेकिन देखने में वो खुद एक बच्‍ची लगती थी. और ऐसी हालत में उस औरत को प्यार हो गया था. कोई मिल गया था उसे, जिसने उस औरत के अन्दर छिपी बच्‍ची को देख लिया था. बस, फिर क्‍या था……….. उस औरत को अपनी पहचान मिल गई थी. कोई था जो उसे बच्‍ची समझता था.

लेकिन अपने समाज में वो एक औरत ही थी, जिस पर दुनिया भर की जिम्मेदारियां थीं. वो औरत अपनी दुनिया में इतनी उलझी हुई थी कि उसे समझ में नहीं आ रहा था कि अब क्‍या करे? प्यार तो हो गया. प्यार होने में कोई वक्‍त थोड़े लगता है. मसअला तब शुरु हुआ तब उसका प्रेमी उससे मिलने की बात करने लगा. शुरु-शुरु में उस औरत ने छोटी-मोटी मुलाकात भी की. जैसे, सड़क पे एक-दो मिनट की, मगर उसका जो प्रेमी था वो भी बड़ा अजीब था. उसे उस औरत के अलावा कुछ सूझता ही नहीं था.

वो औरत थी भी वैसी कि, जिसे उसका साथ मिल जाए, उसे उसके अलावा कुछ न सूझे. और ये प्यार में ही सम्भव होता है. प्यार हो तो पत्थर में भी जान आ जाती है.

उसके प्रेमी को उस औरत के अलावा कुछ नहीं सूझता था. मगर उस औरत को अपने प्रेमी के अलावा सब कुछ दिखता था. वो अपने प्रेमी से दुनिया भर की बात करती थी. अपने समाज की बात करती थी. अपने माहौल की बात करती थी. वो बताती थी कि अगर उसका माहौल ऐसा नहीं होता तो वो उसके साथ आराम से आ जाती. मगर अभी वो किसी और की हो चुकी है. अब अपने प्रेमी की नहीं हो सकती. ये कह के वो रोती भी थी.

उसका प्रेमी ये सोच के उसकी हर बात सुनता था कि इसे अच्छा लगता है. आदमी जब प्यार में हो जाता है तब सामने वाले की हर बात अच्छी लगने लगती है.

मगर धीरे-धीरे बात बिगड़ने लगी. उसका प्रेमी उस पर इस कदर दीवाना हो गया कि अब बात सिर्फ बात पे टिकी नहीं रह सकती थी. अब मुलाकात जरुरी हो गयी थी. प्रेम जब मन में अंगड़ाई लेता है तब मुलाकात जरुरी हो जाती है.

यहाँ एक उलझन और थी. उसका प्रेमी उसे देखने की बात करता था. मगर उस औरत को लगता था कि उसका प्रेमी उससे वो सब चाहता है जो एक औरत अपने पति के साथ करती है. यहाँ समस्या खड़ी हो गयी.

प्रेमी उसे देखने के लिए परेशान, वो औरत इस बात से परेशान कि वो उससे मिले कैसे? उसका प्रेमी उसके चेहरे का दीवाना था. मगर वो औरत किसी और ही उलझन में थी. वो सब कुछ चाहती थी. और उसे कुछ नहीं मिलता था. फिर वो झुंझला जाती थी. और मिलना भी नहीं हो पाता था.

उसका प्रेमी हैरान होता था कि ये कैसी औरत है? मैं इससे मिलने की बात करता हूँ. और ये है कि फालतू की बातों की वजह से जिसे मैं सोचता भी नहीं उन बातों की वजह से ये मिलती भी नहीं.

उसका प्रेमी तो बस उसे देखना चाहता था. जी भर के. जब इंसान प्यार में होता है तब वो जी भरके देख लेना चाहता है. यही हाल उस प्रेमी की थी.

मगर उस औरत का हाल इससे भी बुरा था. पहले वो अपने प्रेमी से ऐसी बातें करने की कोशिश करती थी जो एक पति-पत्‍नी में होती हैं. तब उसका प्रेमी कहता था "नहीं, मैं तुम्हे इस नजर से नहीं देखता, तुम ऐसी बातें मत किया करो. तुम वो नहीं. तुम वो हो कि तुम्हारी मूर्ति बनाई जाए." ये प्यार में ही हो सकता है कि कोई अपनी प्रेमिका की मूर्ति बनाने की बात कहे.

वो औरत जो अपने समाज में इतनी बंधी हुई थी खुलके जीना चाहती थी. मस्ती करना चाहती थी. मगर उसका प्रेमी वैसा नहीं था. वो उसे जिस्म की जरुरत नहीं समझता था. वो उसे फूल की तरह नाजुक कहता था. उस औरत की ख़ूबसूरती पे कवितायेँ लिखता था. इन्सान जब प्यार में हो जाता है तब कविता अपने आप उमड़ने लगती हैं.

उस औरत को ये सब अच्छा लगता था. और फिर उस औरत ने वैसी बातें करनी बंद कर दीं और अपने प्रेमी की प्यार भरी बातें सुन के खुश रहने लगी.

फिर कुछ दिनों के लिए उस औरत को कहीं जाना था. ये एक ऐसा मोड़ आया जहाँ उसका प्रेमी थोडा सा आगे बढ़ गया. वो उस औरत के होंठ छूने की बात करने लगा. ऐसा इसलिए हुआ कि उसके चेहरे पे कविता लिखते-लिखते उसने उसके होंठों के बारे में भी लिखा. और जब उसने उस औरत की ख़ूबसूरती को गहरे मन से देखा तो उसका मन हुआ कि उसके फूल जैसे नाजुक होंठ को छू भी ले.

तब तक बात कुछ और हो चुकी थी. उस औरत ने मस्ती करना छोड़ दिया था. वो अपने प्रेमी की प्रेम भरी बातों से खुश रहने लगी थी. उसे लगा था कि अब ऐसा ही चलेगा. मगर थोडा सा फर्क आ गया था. ये फर्क बिलकुल सम्भव था. वो औरत खूबसूरत थी. और दोनों घंटों-घंटों फोन पे बातें करते थे. वो उसे उसके चेहरे की एक-एक बनावट की खूबसूरत होने की बात करता था. वो औरत खुश रहती थी. मगर अब जब उसे पता था कि उसकी प्रेमिका कुछ दिनों के लिए दूर हो जाएगी तो वो अपने मन को कैसे संभालेगा? इसलिए वो चाहता था कि जाने से पहले वो उसके होंठों को छू ले.

कुछ ऐसा ही हाल उस औरत का भी था. मगर बीच में आड़े आया उस औरत का समाज. वो औरत मन से तो चाहती थी कि अपने प्रेमी की बात सुन ले. इसमें उसका अपना मन भी था. लेकिन वो इतनी हिम्मत नहीं जुटा पाई कि अपने प्रेमी के तरीके से उससे मिल सके. अब एक सिलसिला शुरु हुआ रोने का. औरत जब अपने मन का नहीं कर पाती है तब उसे रोना आता है. और उसका प्रेमी उसके लिये ऐसा कन्धा था कि वो किसी भी बात पे उसके सामने रो सकती थी, और रोती भी थी. सबकुछ हुआ मगर दोनों की मुलाकात न हो सकी.

वो औरत बिना मिले चली गई. उसका प्रेमी पागलों की तरह उसका इन्तजार करता रहा. उस औरत ने सोचा, चलो देखते हैं इतने दिनों की लम्बी दूरी के बाद क्‍या पता बात कुछ और हो जाए.

और ऐसा ही हुआ, बात कुछ और ही हो गई. वो औरत दस दिन भी इन्तजार न कर सकी. अपने प्रेमी से वो इतनी ज्यादा बातें करती थी कि उससे रहा नहीं गया. उसने दूर परदेश से भी अपने प्रेमी को फोन लगा दिया.

उसका प्रेमी जो उसे ही याद कर रहा था उसका फोन पाके इतना खुश हुआ कि उसके आंसू निकल पड़े. उसे हैरत हुई कि क्‍या ये वही औरत है जो उसे इस हाल में बिना मिले छोड़के गई थी? और आज क्‍या हुआ कि इसने इतनी दूर से मुझे फोन कर दिया? उसका प्रेमी बहुत खुश था उससे बात करके.

वो औरत भी उससे बात करके रो पड़ी. आखिर दस दिन बीत गये थे एक दूसरे से बात किए हुए. कहां दोनों दिन भर में दस बार बात किया करते थे. और आज दस दिन बाद उसका फोन आया था तो खुशी की बात तो थी ही.

उस औरत को तसल्‍ली हो गई कि उसने अपने प्रेमी से बात कर ली और वो अब भी उसका इन्तजार कर रहा है. औरत को ये बात बहुत अच्छी लगती है कि कोई उसका प्रेम से भरे मन से उसका इन्तजार करे.

इधर उसके प्रेमी को तो इतनी तसल्‍ली हो गई कि उसे लगा अब उसके बाकी के इन्तजार के दिन आसान हो गये. उसे इस बात की तसल्‍ली हो चुकी थी कि वो औरत उसे अब भी चाहती थी. ऐसा नहीं था कि दूर जाने के बाद उसका मन बदल गया हो. जब आदमी प्यार में होता है तब उसे इस बात का डर हमेशा बना रहता है कहीं उसका प्यार खो न जाए.

लेकिन अब उसे अपने ऊपर पूरा भरोसा था कि उसने उस औरत का मन जीत लिया है. आदमी एक बार औरत का मन जीत ले तो उसे बड़ा सुकून मिलता है. उसे लगता है जैसे उसने कोई बहुत बड़ी जंग जीत ली हो.

और सच भी है प्यार से बड़ी जंग और भला क्‍या होती है जहां आपके पास कोई हथियार नहीं होता है. और जीतने के लिये बहुत बड़ा मैदान होता है. एक औरत का गहरा मन जीतना कोई आसान खेल भी नहीं है. एक औरत जब अपने सोच-विचार करने वाले मन के आगे हार मान लेती है तब एक आदमी की जीत होती है. उससे पहले वो चाहे कितनी भी नाक रगड़ ले कुछ भी फर्क नहीं पड़ता.

आदमी को तौलने का औरत का अपना ही तराजू होता है. जिसके तरीके किसी किताब में नहीं मिलते. हर औरत अलग और हर औरत का तराजू अलग. आदमी कई बार इसी उलझन में धोखा खा जाता है. जब आदमी औरत को एक जैसा समझ लेता है वहीं गड़बड़ हो जाती है. औरत का बरताव भले एक जैसा हो सकता है लेकिन उसकी वजह हमेशा अलग होती है. हर औरत छोटी सी बात पे रो पड़ती है. मगर उस छोटी सी बात के पीछे उस औरत ने क्‍या दिमाग लगाया है ये बस वो औरत ही जानती है.

उसका प्रेमी अब इत्मिनान से उसका इन्तजार करने लगा. वो उसके इन्तजार में कवितायें लिखने लगा. कविताएं सिर्फ दो हालात में जन्म लेती हैं, या तो प्रेमिका बहुत पास आ जाए या बहुत दूर चली जाए. इस वक्‍त उसकी प्रेमिका उससे दूर थी. तो वो उसे याद करके जो उसके मन में आता था लिख देता था कि लौटने के बाद जब वो पढ़ेगी तब उसे पता चलेगा कि मैं यहां उसके बिना किस हाल में था. प्यार में ये एक अजीब सी हालत होती है. हम सारी बात कहना भी नहीं चाहते हैं और सामने वाले से ये उम्मीद भी होती है कि वो बिना कहे सारी बात समझ ले. और ऐसा होता भी है. जब प्यार गहरा हो जाता है तब सामने वाले की हर बात बिना कहे समझ में आने लगती है.

वो औरत कुछ दिनों बाद जब परदेश से लौटी तब उसके प्रेमी को बड़ी राहत मिली. राहत इस बात की थी कि अब उसका इन्तजार खत्म हुआ. मगर ऐसा था नहीं. उसे इन्तजार ही करना था उस औरत के लौटने के बाद भी. क्‍योंकि परदेश से लौटने के बाद उस औरत को अपनी जिम्मेदारियों का अहसास फिर हुआ. और जब आप एक घिरे हुए समाज में रहते हैं तो अगर आपको अपनी जिम्मेदारियों का अहसास न भी हो तो आपका समाज आपको आपकी जिम्मेदारियों का अहसास करा ही देता है. समाज के पास और कोई काम भी नहीं है. समाज बस लोगों से उनका आराम छीनकर उन्हें काम पे लगा देता है. नहीं तो लोग क्‍या कहेंगे...??? ये डर सताने लगता है.

वो औरत लौटने के बाद मिलने का वादा करती मगर मिल नहीं पाती. कुछ न कुछ ऐसा होता कि मिलना नहीं हो पाता. उसका प्रेमी बड़ा हैरान होता कि आखिर हम मिल क्‍यूं नहीं पा रहे...? जबकि वो औरत हमेशा कहती थी कि मैं चाहूं तो तुमसे आराम से मिल सकती हूं... मगर अब मुझे तुमसे मिलना ही नहीं है. उसके प्रेमी को ये बात बिल्कुल समझ में नहीं आती थी कि जो औरत मिलने का वादा करती है, वो मिल नहीं पाती है. फिर वही औरत कहने लगती है कि अब मुझे तुमसे मिलना ही नहीं है. नहीं मिलना है ये तो ठीक...मगर न मिलने की वजह तो बताओ...? ऐसा पूछने पर कोई वजह नहीं बता पाती थी वो औरत.

फिर वो औरत झुंझलाने लगती थी, रोने लगती थी. और औरत जब रोने लगती है तब आदमी को रोती हुई औरत को चुप कराने के लिए बात बदलनी पड़ती है. क्‍यूंकि चाहे कितना ही कठोर दिल आदमी क्‍यूं न हो...औरत को रोते हुए नहीं देख सकता...कुछ औरतें तो इस कमजोरी का फायदा उठा के रो रो के आदमी को इतना कठोर बना देती हैं कि आदमी को कुछ असर ही नहीं पड़ता...फिर चाहे तुम कितना ही रो लो...मगर इस प्रेमी के साथ ऐसा नहीं था...वो उमर में तो उस औरत से छोटा था मगर उसकी हिफाजत उससे बड़ा बनके करता था. वो प्रेमी अपने मन को समझा लेता था कि तुम्हारे मन की तसल्‍ली से ज्यादा जरूरी उस औरत की हिफाज़त है...और वो प्रेमी हमेशा अपना मन मार लेता था...

और जब न मिलने की वजह समाज बनके सामने आती थी...तब उसका प्रेमी हमेशा की तरह अपने दिल पे पत्थर रख के चुप हो जाता था...फिर इधर उधर की बातें होती थीं और उस औरत के जाने का वक्‍त हो जाता था...फिर वो औरत ये पूछने पर कि हम कब मिलेंगे...? कहती थी, मैं तुमसे कल बात करूंगी...हम कल बात करेंगे फिर इस बारे में बात करेंगे...और फिर दूसरे दिन बात की शुरूआत किसी और ही बात से होती थी...वो औरत अब डर डर के बात करने लगी कि कहीं उसका प्रेमी फिर मिलने की बात न कर बैठे...! बाकी सब बात उसके लिए ठीक थी...बस मिलने की बात न करो...और तुमने मिलने की बात की नहीं कि वो औरत एक घेरे में खड़ी हो जाती थी. जहां वो अपने प्रेमी को भी नहीं आने देती थी...उसकी शकल कुछ ऐसी होती थी कि अब तुम चले जाओ मेरी जिन्दगी से दूर...मैं अकेले रहना चाहती हूं...एकदम अकेले...फिर उसका प्रेमी उसके हाथ पैर जोड़ने लगता था कि नहीं...ऐसा मत करो....तुम्हें नहीं मिलना है... ठीक है...लेकिन इस तरह गुस्से से भगाओगी तो कभी नहीं जाऊंगा...प्यार से कह दो कभी नहीं आऊंगा...

वो औरत आज भी अपने समाज में है...वो औरत आज भी उस प्रेमी की जिन्दगी में है...वो प्रेमी आज भी उस औरत का इन्तजार कर रहा है...

--

COMMENTS

BLOGGER: 1
  1. यह मन सदैव इच्छा करता रहता है....मन बहुत कुछ चाहता है परन्तु ....चेतना, चित्त या अंतर्मन ... अनुचित-उचित का अंतर करके कर्तव्य निर्धारित करता है...

    जवाब देंहटाएं
रचनाओं पर आपकी बेबाक समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद.

स्पैम टिप्पणियों (वायरस डाउनलोडर युक्त कड़ियों वाले) की रोकथाम हेतु टिप्पणियों का मॉडरेशन लागू है. अतः आपकी टिप्पणियों को यहाँ प्रकट होने में कुछ समय लग सकता है.

नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: कहानी लेखन पुरस्कार आयोजन -79- कैस जौनपुरी की कहानी : उस औरत का समाज
कहानी लेखन पुरस्कार आयोजन -79- कैस जौनपुरी की कहानी : उस औरत का समाज
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgnLLUY5Lb7o3jtMuX56DIP499rjPd2obVgx7LL9cbv-baETK5BeTqa1bCRkyk66VrMcpJa2vfRbfsVNd7pGQAGcHskeMFQfzokJ0JGEn-yUtIilXjLLDy-ooJqZfTxf70WND7w/?imgmax=800
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgnLLUY5Lb7o3jtMuX56DIP499rjPd2obVgx7LL9cbv-baETK5BeTqa1bCRkyk66VrMcpJa2vfRbfsVNd7pGQAGcHskeMFQfzokJ0JGEn-yUtIilXjLLDy-ooJqZfTxf70WND7w/s72-c/?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2012/09/79.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2012/09/79.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content