हरीन्द्र दवे का धारावाहिक उपन्यास : वसीयत - 2

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सुप्रसिद्ध गुजराती कवि, विवेचक, पत्रकार, उपन्यासकार स्व. श्री हरीन्द्र दवे के उपन्यास 'वसीयत' का हिंदी अनुवाद धारावाही रूप में (किश...

सुप्रसिद्ध गुजराती कवि, विवेचक, पत्रकार, उपन्यासकार स्व. श्री हरीन्द्र दवे के उपन्यास 'वसीयत' का हिंदी अनुवाद धारावाही रूप में (किश्तों में ) प्रस्तुत कर रहे हैं श्री हर्षद दवे. प्रस्तुत है दूसरी कड़ी. पहली कड़ी यहाँ पढ़ें

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वसीयत - प्रकरण - २

हरींद्र दवे 

भाषांतर : हर्षद दवे.

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बैरिस्टर अवनीश मोहंती का चेहरा काफी गंभीर था. इतने बरसों में ऐसी समस्या उसके सामने कभी नहीं आइ थी. उसने फिर से डॉ. मिश्र से पूछा: 'डॉक्टर, आपने ठीक से सूना तो है न?'

'हाँ.'

'क्या आपने सही आदमी से बातचीत की थी?'

' बैरिस्टर, जयपुर की सिविल अस्पताल के सर्जन डॉ.जैन मेरे क्लासमेट थे. उनकी आवाज क्या मैं नहीं पहचान सकता?'

'परन्तु उनकी जानकारी क्या ठीक होगी?'

'वे पूरी जाँच किये बगैर फोन पर कुछ भी कह दें ऐसे लोगों में से नहीं है. मोहिनी की देह का अभी पोस्टमोर्टम चल रहा होगा.'

बैरिस्टर मोहंती ने चश्मे निकाल कर साफ़ किये. फिर कुछ सोचते हुए कहा: 'सोलिसिटर अमीन को फोन करो.'

'क्यों?'

'मोहिनी वील करना चाहती थी. मैंने कहा कि मैं डॉक्टर का मित्र हूँ. आप कोई और सोलिसिटर से वसीयतनामा कराइए तो ठीक रहेगा. मैंने अमीन का नाम दिया था. शायद उसे कुछ पता हो.'

'परन्तु डॉ. पंडित की बाडी का क्या करना है? अब तो मोहिनी के लिए रुकना नहीं है.' डॉ. मिश्र ने कहा: 'फ्यूनरल कब है उस के बारे में फोन आते रहते है. मैं सब को क्या जवाब दूं?'

बैरिस्टर मोहंती ने आँखे मूंदकर कुछ गहन सोच विचार करने के बाद कहा: 'मोहिनी के मृत्यु की खबर बिलकुल सही है?'

'हाँ, फिर भी मैं यहाँ से कोल बुक करूं? डॉ.जैन से ही आपकी बात करा दूं क्या?' डॉ. मिश्र ने कहा.

'आप को कुछ अनुचित लगेगा पर अन्यथा न लेना लेकिन मेरा बात करना जरूरी है.' मोहंती की आवाज में दृढ़ता थी.

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'बैरिस्टर साहब, यदि मृत देह बोल पाती तो मैं मोहिनीदेवी के सम्मुख रिसीवर ला कर यकीन दिलाता. अब तो साहब, आप एवं डॉ. मिश्र मुझे बताएं कि इस बोडी का कब्जा लेने कौन आ रहे हैं? फिलहाल पुलिस की डायरी में इस स्त्री के परिचित के रूप में केवल मेरा ही नाम है.' डॉ. जैन ने फोन क्रेडल पर जैसे पटक ही दिया. और बाद में अपनी पत्नी से कहा: 'रेशमा, यह डॉ. मिश्र मुझे कहीं कोई परेशानी में न डाल दे.'

'सवेरे से आपने कुछ लिया ही नहीं, इसका कुछ ख़याल है?'

डॉ. जैन सचमुच यह बात भूल गए थे. सवेरे आठ बजे डॉ. मिश्र का फोन आया था: 'वहाँ की पेलेस होटल में मिसेज मोहिनी पंडित ठहरी है.  उन्हें जल्दी बैंगलोर भेजिए. कहिये कि उनके पति की स्थिति गंभीर है. डॉ. जैन, दरअसल तो उनके पति की मृत्यु हो गई है, किन्तु उन्हें सदमा न पहुंचे इसलिए ऐसे बताना. वे फिलहाल आर्कियोलोजी की किसी साईट पर है. कहीं से भी उनका पता लगाइए - धिस इज वेरी अर्जंट. डॉक्टर, अगर कोई इमरजंसी न हो तो प्लीज, आप ही यह काम कीजिए.'

उसके मित्र ने पहली बार ऐसी नाजुक परिस्थिति में उसे इतना महत्त्वपूर्ण काम करने को कहा था. उसे मना करने की हिम्मत डॉ.जैन में नहीं थी. उसने पत्नी से कहा: मैं आज दोपहर देर से भोजन लेने आउंगा.' इतना कहकर सब से पहले वे पेलेस होटल गए. वहाँ से पता चला कि 'श्रीमती पंडित रात को नौ बजे भोजन ले कर अपनी गाड़ी में कुछ दो-एक घंटे की दूरी पर स्थित गाँव सरसपुर गई हुई है. रात वहीँ पर डाक बंगले में ही बितानेवाली थी. हमने ही वहां पर बुकिंग करवाया था.'

'कौन सी गाड़ी थी?' डॉ. जैन ने पूछा.

'फोर्ड : नंबर पी. ९४३.'

अपनी डायरी में नंबर नोट कर के डॉ. जैन सीधे सरसपुर जाने के लिए निकले. 'मिश्र ने भी कैसा काम थमा दिया है?' रस्ते में वे सोच रहे थे. सवेरे ठीक से चाय नहीं पी थी यह भी उन्हें याद नहीं रहा.

करीब डेढ़ घंटे के बाद वे एक पेट्रोल पम्प पर पेट्रोल डलवाने के लिए रुके. आदमी पेट्रोल डाल रहा था जब डॉ. जैन ने पूछा: 'सरसपुर का डाक बँगला किस तरफ है?' उस आदमी पलभर डॉक्टर को देखता रहा फिर उसने कहा: 'पन्द्रह मिनट के ड्राइव के बाद चौराहा आएगा: वहाँ से दाहिनी ओर मुड़ जाने पर पांच मिनट में वहाँ पहुँच जाएँगे.' कार के हवा और पानी चेक करते हुए उस आदमी से रहा नहीं गया इसलिए पूछ लिया: 'वहाँ क्या है, साहब?'

'क्यों?' डॉ. जैन ने विस्मित होकर पूछा.

'कल दोपहर एक यूरोपियन कपल भी सरसपुर के डाक बंगले के बारे में पूछ रहे थे.' उस आदमी ने कहा.

'कपल आया था?' जैन ने आश्चर्य जताया. प्राप्त जानकारी के अनुसार तो श्रीमती पंडित जयपुर से अकेली ही गाड़ी में निकली थी. इसलिए तसल्ली करने के लिए पूछा: 'कपल के अलावा कोई मेमसाहब इस ओर आई थी क्या?'

'मेमसाहब तो रात को आई थी.' उस आदमी ने कहा.

'रात को? कब?'

'ठीक ग्यारह बजे.'

'ग्यारह बजे? ठीक? इतना सही वक्त कैसे बता सकता है? क्या समय को नोट करते हो?'

'नहीं साहब, ग्यारह बजे हम पम्प बंद कर रहे थे कि मेम साहब अपनी फोर्ड में आई और कहा: 'जल्दी से टंकी फुल कर दो'. 

चलो, अब निश्चित रूप से श्रीमती पंडित का अतापता तो मिल गया. परन्तु यहाँ से उसे बैंगलोर किस तरह से पहुंचाया जाए? डॉ. जैन सोच रहे थे.

'मेमसाहब भी सरसपुर के डाक बंगले के बारे में ही पूछ रही थी.' डॉक्टर के कुछ न पूछने पर भी उस आदमी ने स्वयं ही बोनेट बंद करते हुए कहा.

डॉक्टर जैन ने बिल के पैसे देकर सरसपुर डाक बंगले की ओर तेजी से गाड़ी बढ़ाई. ठीक पन्द्रह मिनट के बाद चौराहा दिखाई दिया. वहां से वह दाहिनी ओर मुड़े. पांच मिनट में रस्ते पर साइनबोर्ड पाया: ‘सरसपुर डाक बंगला’ और फिर ‘एरो’ कर के दिशा दर्शाई गई थी. डॉ. जैन उस तरफ गए. डाक बँगला आम तौर पर शांत स्थान पर पाया जाता है. लेकिन दूर से देखते ही वहां आठ-दस आदमी मैदान में खड़े थे ऐसा लगा. पास जाकर देखा तो वहां दो जीपें खड़ी थीं. जैन विस्मित हुए. सब के सब पुलिस की वर्दी में थे. ‘शायद कोई आई.जी. या डी.आई.जी. ठहरे होंगे.’ डॉ. जैन ने सोचा.

उनके वहां पहुंचते ही सब सतर्क हो कर उनके सामने देखने लगे. सब उसकी और टकटकी लगाए क्यों देख रहे हैं यह बात डॉ. जैन की समाज में नहीं आई. सब के सामने देखने के बजाय उन्होंने इंस्पेक्टर को स्माइल दे कर पूछा: ‘क्यों आज यहाँ पर ठहरे हैं?’

‘ड्यूटी, सर, ड्यूटी. लेकिन आप...’ और फिर गाड़ी पर लगे रेडक्रास को देखकर कहा: ‘डॉक्टर साहब, आप यहाँ कैसे?’

बैंगलोर से मेरे एक फ्रेंड का फोन था, उन के बोस की पत्नी यहाँ है. कल रात को ही आईं हैं. आर्कियोलोजिस्ट है. यदि उनके उत्खनन कार्य के लिए नहीं निकली है तो मुझे उनको वापस बैंगलोर पहुँचाना है.’ और फिर यकायक उनकी नजर अंगने में खड़ी फोर्ड गाडी पर पड़ी. उस पर नंबर था पी ९४३. ‘थेंक गोड, यहीं पर है. उसकी गाड़ी यही है.’

‘तो क्या आप उसे जानते हैं?’

‘नहीं, मैंने तो उसका नाम भी आज सवेरे पहलीबार सूना. बाय द वे, वह कौन से कमरे में होगी इसके बारे में कौन बता सकता है?’

‘डॉक्टरसाहब, यह मैं ही बता सकता हूँ. लेकिन इसके पहले आपको मेरे साथ कुछ बातें करनी होगी.’

‘माफ करना इन्स्पेक्टर...’

‘इन्स्पेक्टर न्यालचंद.’

‘हाँ, न्यालचन्दजी, मैं जरा जल्दी में हूँ. देर इज अ सेड न्यूज फॉर द लेडी (इस महिला के लिए बुरी खबर है)’, और फिर बिलकुल दबी सी आवाज में कहा: ‘न्यालचन्दजी, उसके पति की बैंगलोर में मृत्यु हो गई है.’

इन्स्पेक्टर कुछ देर के लिए डॉक्टर के सामने देखते रहे, फिर उसका हाथ पकड़कर बोले: ‘डॉक्टर, यह गाड़ी यहाँ होने से आप ऐसा मान रहे हैं कि मिसेज पंडित यहाँ पर हैं?’

डॉक्टर जैन विस्मित हुए: ‘आप नाम भी जानते हैं?’ अच्छा. हाँ, गाड़ी देख के मैं निश्चिन्त हुआ. अन्यथा वह साईट पर निकल चुकी होती तो मैं उसे कहाँ ढूँढता फिरता?’

‘गाडी यहाँ है पर श्रीमती पंडित यहाँ नहीं है,’ इन्स्पेक्टर न्यालचंद ने कहा और फिर वे अपने शब्दों का असर देखने के लिए डॉ. जैन की ओर एकटक देखते रहे.

‘मतलब?’

‘डॉक्टर...’

‘डॉक्टर जैन, डॉ. प्रकाशचंद्र जैन’, डॉक्टर ने अपना नाम बताया.

‘डॉक्टर, मिसेज पंडित की हत्या हुई है.’

पैरों के तले बम फटा होता तो भी डॉ.जैन इतने चौंकते नहीं. वे सिर से ले कर पाँव तक सिहर उठे. ‘क्या कह रहे हैं, इन्स्पेक्टर?’

‘जो हुआ है वही कह रहा हूँ. इसलिए मुझे आप के साथ पांच-दस मिनट बात करनी होगी. चलिए हम ऊपर बैठते हैं.’

तीनचार सोपान चढ़कर दोनों अंदर गए. वहां तीन चार कुर्सियां पड़ी थीं. न्यालचंद एक कुर्सी पर बैठे और डॉक्टर को दूसरी कुर्सी पर बैठने के लिए कहा: ‘डॉक्टर, अब मुझे कहिये कि आप इस मेडम को कैसे पहचानते हैं?’

‘मैंने कहा न, न्यालचन्दजी, मैंने मोहिनी पंडित का नाम भी आज सवेरे सुना.’ डॉक्टर जैन ने कहा.

‘और नाम सुनते ही यहाँ दौड़़े भागे चले आये?’

‘ट्राय टू अंडरस्टेन्ड, इन्स्पेक्टर. सवेरे मैं अस्पताल जाने के लिए तैयार हो रहा था और अभी नाश्ता भी नहीं किया था कि बैंगलोर से मेरे मित्र डॉ. उमेश मिश्र का फोन आया. वे वहां के सुविख्यात सर्जन डॉ. दिवाकर पंडित के सहायक के रूप में कार्य कर रहे हैं. डॉ. पंडित कल रात नींद में ही चल बसे और उनकी पत्नी यहीं थी. इसलिए मुझे श्रीमती पंडित को ढूंढकर बैंगलोर पहुंचाने का काम सौंपा गया है. वह जयपुर में पेलेस होटल में ठहरी थी. सवेरे होटल के मैनेजर ने खुद मुझ से कहा कि मिसेज पंडित सरसपुर डाक बंगले में रातभर रहकर सवेरे आगे जानेवाली थी.’ डॉ. जैन ने एक सांस में सारी बात बताकर अपनी जेब से अपना कार्ड निकला एवं इन्स्पेक्टर को दिया.

इन्स्पेक्टर ने कार्ड देखा. ‘आप सिविल अस्पताल से जुड़े हुए हैं?’

‘हाँ.’

‘अभी वहाँ से एम्ब्युलंस आएगी. मिसेज पंडित को वहां ले जाना पड़ेगा.’

‘ओह गोड!’ डॉक्टर के मुंह से शब्द निकल पड़े, ‘कितना विचित्र योग! पति और पत्नी दोनों सैकड़ों मिल दूर, बिलकुल अलग अलग स्थान पर एक ही रात में चल बसे! और वो भी कैसे विचित्र संजोग में!’

‘डॉक्टर, आपने सवेरे चाय भी ठीक से नहीं ली होगी. खानसामा से कहता हूँ कि आप के लिए चाय-टोस्ट भेजें,’ इन्स्पेक्टर ने कहा.

‘इन्स्पेक्टर, वैसे डॉक्टर होने से मैं मृतदेहों के बीच भी रहा हूँ, ट्रेन से बस की टक्कर पर, हवाईजहांज की दुर्घटना के कारण, रास्ते पर ठोकर लगने से इस प्रकार कई बार मौत को आते हुए देखा है. लेकिन इस मौत ने मेरे शरीर को ठंडा कर दिया है. चाय लेने को भी मन नहीं करता है.’

‘आप मिसेज पंडित को देखना चाहते हैं?’

‘क्या करूं मैं देखकर, न्याल्चंदजी? हम जिसको जानते ही न हो उसे अशुभ खबर कैसे सुनाएं इसी के बारे में पिछले दो घंटे तक सोचते रहे हो वही एकदम चल बसे तब कुछ पल तो सबकुछ व्यर्थ सा प्रतीत होता है. बाय द वे, इन्स्पेक्टर हत्या क्यों हुई है?

‘इट्स अ मिस्टरी.’ इन्स्पेक्टर ने अपनी डायरी हाथ में घुमाते हुए कहा: ‘उस के पास का नकद सही सलामत है. उसके वस्त्र आदि भी ज्यों के त्यों है. उसका कैमरा यथावत है. केवल रोल डालने का शटर खुला है. उसने ही खुला छोड़ दिया है या किसी ओर ने खुला छोड़ दिया है इस के बारे में फिंगर प्रिंट की जाँच के बाद ही पता चलेगा. उसका टेपरिकार्डर भी सलामत है. किन्तु एक भी कैसेट नहीं है. उसका कोई अफेयर...’ फिर इन्स्पेक्टर ने मन ही मन सोचा: ‘किसी युवती के बारे में उलटा सीधा क्या सोचना!’

इतने में एम्ब्युलंस आ पहुंची. उसका ड्राइवर जीतसिंह तो डॉक्टर को देखते ही उछल पड़ा : ‘जैन साहब, आप यहाँ?’

‘हाँ’, डॉक्टर ने निस्तेज हंसी के साथ कहा. ‘आज सवेरे तेरे, मेरे, इन्स्पेक्टर न्यालचन्दजी के एवं इन सब पुलिसवालों का यहाँ पर एकत्रित होने का संयोग होगा.’

इन्स्पेक्टर ने एक कागज डॉक्टर के हाथ में दिया: ‘यहाँ से आधे किलोमीटर की दूरी पर सरसपुर गांव के एक डॉक्टर को बुलाया था, उसका रिपोर्ट है.’

डॉक्टर जैन ने देखा: ‘सवेरे आठ पन्द्रह पर मुझे डाक बंगले के खानसामा अब्दुल का बुलावा आया. मैं यहाँ आया. मैंने डाक बंगले की पहली मंजिल के दाहिनी ओर के स्यूट में श्रीमती मोहिनी पंडित को उसके बिस्तर में मृत अवस्था में देखा. उस के गले पर एवं सिर पर चोट के चिन्ह थे. रक्त का रंग देखकर कहा जा सकता है कि मौत आधी रात के बाद कभी भी हुई होगी.’

‘न्यालचन्दजी, आप जयपुर आ रहे हैं?’

‘हाँ, इसके आलावा और कोई चारा भी तो नहीं.’ इन्स्पेक्टर ने कहा.

‘चलिए हमारे साथ. आप के आदमी पीछे जीप में एम्ब्युलंस के साथ आएँगे.’

रस्ते में डॉक्टर जैन एवं इन्स्पेक्टर न्यालचन्दजी मिसेज पंडित के बारे में एवं उसकी हत्या की परिस्थितिओं के बारे में बातें कर रहे थे.

‘कल डाक बंगले में बाइं ओर के स्यूट में एक यूरोपियन कपल ठहरा था.’

‘मुझे पेट्रोल पम्पवाले ने बताया था.’

‘पेट्रोल पम्पवाले ने?’ इन्स्पेक्टर ने विस्मित होते हुए कहा.

‘हाँ, कल दोपहर एक कपल ने सरसपुर डाक बंगले के बारे में पूछताछ की थी. फिर रात को मिसेज पंडित ने और सवेरे मैंने भी डाक बंगले के बारे में पूछा था इसलिए वह भी चकित हुआ था.’

‘वह कपल वैसे तो जब से मिसेज पंडित आई तबसे ही जाने की तैयारियां कर रहा था ऐसा खानसामा ने कहा. उन लोगों ने बिल भी चुकता कर दिया था, इसलिए कब निकल गए इस के बारे में उसे कुछ मालूम नहीं.’ इन्स्पेक्टर ने कहा.

‘तो फिर उन का इस घटना से क्या कोई सम्बन्ध हो सकता है?’

‘हो भी सकता है और नहीं भी.’ फिर भी सेफ्टी के लिए मेरे सब-इन्स्पेक्टर सिंग को मैंने इस यूरोपियन कपल की जाँच के लिए भेज दिया है. जयपुर की पुलिस को मिसेज पंडित की गाड़ी टो करके लाने की सूचना दी है.’

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बैरिस्टर मोहंती ने फोन नीचे रखा और कहा: ‘यह गजब की बात है, अमीन, क्या करना चाहिए?’

‘मोहंती, बात बिलकुल साफ़ है. दोनों मर चुके हैं. दिवाकर का विल तेरे पास है, मोहिनी का विल मेरे पास. दिवाकर ने विल पढ़े जाने के समय मोहिनी और शेफाली उपस्थित रहे ऐसी इच्छा व्यक्त की है. मोहिनी ने ऐसी कोई भी इच्छा व्यक्त नहीं की. उस का दूसरा बेनिफिशियरी (वारिस) पंजाब में लुधियाना में रहता है. उसके आने तक डॉक्टर की बोडी को रखने का कोई मतलब नहीं है.’

‘तो क्या करना चाहिए?’

‘शेफाली और उसके पिता को डॉक्टर की ओर से रखते हैं. मोहिनी के स्थान पर हम शहर के शेरिफ को उपस्थित रखेंगे. और दोनों विल पढ़ने के बाद ही डॉक्टर की देह की अंत्येष्टि क्रिया करेंगे.’ सोलिसिटर अमिन ने कहा.

‘अभी चार बजे है, सात बजे अंतिम यात्रा निकलेगी ऐसा सब को कह दो और शेफाली, उसके पिता, शेरिफ एवं बैंगलोर अस्पताल के डीन को तुरंत बुला लो.’ बेरिस्टर मोहंती ने डॉ. मिश्र से कहा.

‘बेरिस्टर साहब, यह विल पढ़ने की विधि बाद में नहीं हो सकती क्या?’ शेफाली ने पूछा. ‘डॉक्टर अंकल तो चल बसे हैं: अगर वे लौटकर आने वाले होते तो मुझे उनकी संपत्ति में दिलचस्पी होती. वे तो चले गए, अब मुझे कुछ नहीं चाहिए.’

‘शेफाली’, डॉ मिश्र ने कहा, ‘यह बात तेरी समज से परे है. यह कोई ऐरेगैरे आदमी का विल नहीं है. डॉक्टर दिवाकर पंडित जन्म से ही दौलतमंद परिवार के कुलदीपक हैं. वे भी बेशुमार दौलत कमाते थे. उन के विल में दर्शाई गई कोई शर्त का पालन न हुआ तो बरसों तक अदालत

के चक्कर काटना पड़ सकता है.’

शेफाली की समज में कुछ भी नहीं आया.

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डॉ. दिवाकर पंडित का मृत शरीर अभी शयनकक्ष में ही था. बैरिस्टर मोहंती एवं सोलिसिटर अमिन शेरिफ के साथ ही भीतर गए. शेरिफ ने सबसे पहले डॉ. पंडित को पुष्पमाला चढाई, फिर बाद में कहा, ‘यह काफी दुखपूर्ण कर्तव्य है. डॉ. पंडित इस प्रकार एकदम चले जाएँगे ऐसा तो सोचा ही न था.’

कृष्णराव शेफाली को अंदर आने के लिए कह रहे थे. न जाने क्यों शेफाली का भीतर जाने का मन ही नहीं करता था. मृत्यु के समीप संपत्ति के बंटवारे की बातें उसे बहुत ही अनुचित लगतीं थीं. पप्पा ने कहा : ‘यह तो तेरे डॉक्टर अंकल की अंतिम इच्छा को पूर्ण करने की बात है. यहाँ किसी को भी यह वसीयतनामा इस समय पढ़ा जाये यह पसंद नहीं है.’

आखिरकार शेफाली अंदर आई. वह ऐसा माहौल देखकर बिलकुल सन्न हो गई हो ऐसा लग रहा था.

एकदम साफ़ आवाज में बैरिस्टर मोहंती ने पढ़ना शुरू किया:

‘यह वसीयतनामा मैं अपनी शुद्ध बुद्धि से एवं सम्पूर्ण होशोहवास के साथ कर रहा हूँ.’ फिर कुछ कानूनी परिभाषायुक्त वाक्यरचनाएँ थीं. फिर संपत्ति का हिसाब था:

‘श्री नगर में मेरा बँगला है.

गुलमर्ग में पचीस एकड़ का फ़ार्म है.

नई दिल्ली में गुल महोर पार्क से आगे सुन्दरपुरी में मेरा बँगला है. फिलहाल करीब बंद है.

बैंगलोर में मेरा बँगला है, एवं मेरी ही मालिकी का नर्सिंग होम है.

मेरे पिता की ओर से मुझे विरासत में जो मिला हैं: निम्नानुसार दर्शाए गए शेयर, एवं निम्नानुसार स्थावर तथा जंगम संपत्ति.’

और फिर एक काफी लंबी चौड़ी सूची थी.

मेरे पास तीन गाड़ियां और नर्सिंग होम की दो एम्ब्युलंस एवं एक मेटाडोर वेन है.

फिर कुछ और सूची थी. अंत में लिखा गया था:

‘यह एवं आज के बाद जोड़ी गई या घटाई गई संपत्ति का वेल्यूएशन करने के बाद उसमें से दस प्रतिशत मैं जिस अस्पताल से जुड़ा हुआ हूँ वहां प्रदान कर देना. शेष राशि मेंसे बीस प्रतिशत मेरी अपनाई गई पुत्री शेफाली को मिले एवं सत्तर प्रतिशत मेरी पत्नी मोहिनी को मिले. यदि इस वसीयतनामे के पालन करते समय दो में से कोई भी एक जीवित न हो तो शेष नब्बे के नब्बे प्रतिशत उत्तरजीवी को मिले. यदि दोनों जीवित न हों तो ये सम्पूर्ण राशि में से दस प्रतिशत श्री कृष्णराव के परिवार को देकर शेष राशि अधोलिखित संस्थाओं को प्रदान कर दी जाए.’

वसीयतनामा पढ़ लिया गया. पलभर के लिए नि:शब्दता छा गई. शेरिफ ने मौन भंग करते हुए कहा: ‘बड़ा दरियादिल आदमी. इतनी संपत्ति: वे खरचते जाते थे और संपत्ति बढती ही जा रही थी.’

शेफाली वैसे भी सन्न तो थी ही, किन्तु यह सुनने के बाद वह एकदम स्तब्ध हो गई. उसे डॉक्टर अंकल के प्रेम कि ही याद आती थी. वह सिसकियाँ भरती घर के अंगने में बैठी थी और अंकल वापस आ कर उसे ले गए थे. उसने बिस्तर पर सोये हुए अंकल की ओर देखा. आज भी वे उसे लेने के लिए लौटकर आये तो? परन्तु आज उन्हें ले जानेवाली गाड़ी अलग थी: ड्राइवर कोई ओर था. क्या वह नचिकेता की तरह यम के द्वार खटखटा सकती है इस बात पर वह पलभर सोचती रही: दूसरे ही पल उससे रहा नहीं गया. बांध टूट गया. वह जोर से रो पड़ी. जीवन में शायद वह पहली ही बार हृदय विदारक क्रंदन कर रही होगी. उसकी सिसकियाँ कुछ शांत हुई तब सोलिसिटर अमिन ने अपने हाथ में रहे कागजात निकाले और कहा: ‘शेरिफसाहब मृत्यु ने सारी बात उलझा दी है. मोहिनी का वसीयतनामा भी इसी वक्त पढ़ना आवश्यक है.’

‘परन्तु मोहिनी तो...’ शेरिफ आगे नहीं बोले.

‘मोहिनी नहीं है; डॉ. पंडित नहीं है. केवल उनके वसीयतनामे हैं और वे ऐसे हैं जिनसे सारा मामला उलझ गया है.’ अमीन ने कहा.

‘इस समय मैं हाजिर हूँ, शहर के शेरिफ हाजिर है, एवं डॉ. पंडित के वकील हाजिर है इसी समय यह वसीयतनामा पढ़ा जाना चाहिए.’

शेफाली इस समय किसी भी प्रकार से अपने होशोहवास में सुन सके ऐसी स्थिति में नहीं थी. किन्तु औपचारिक विधि का पालन तो करना ही पड़ रहा था, और कोई चारा भी तो नहीं था. सब के चेहरे पर उदासी थी. सब के हृदय में कुछ अजीब सी घबडाहट थी. एक डॉ. पंडित ही ऐसे थे जो ये सारी परिस्थितियों के बीच भी निश्चिन्त रूप से चिरनिद्रा में सोये हुए थे.

अमिन ने पढ़ना शुरू किया:

‘मेरे पिताजी की ओर से निम्नानुसार स्थावर एवं जंगम संपत्ति मुझे विरासत में मिली है.’

और इस की सूची काफी प्रभावित कर देनेवाली थी.

‘मेरी माताजी के अलंकार जालंधर के बैंक ऑफ इण्डिया के सेफ डिपाजिट में हैं जो कि निम्नानुसार हैं:

अलंकारों की सूची चकित कर देनेवाली थी.

‘मेरी ये और भविष्य में संशोधन के जरिये या अन्य प्रकार से होनेवाली आय की सम्पूर्ण संपत्ति का वेल्यूएशन करने के बाद मैं उस के पन्द्रह प्रतिशत मेरे प्रिय शौक पुरातत्त्व के संशोधन हेतु व्यय किया जाए ऐसा चाहती हूँ. पचीस प्रतिशत राशि लुधियाना में यह लिखा जा रहा है इसी समय वकालत के अंतिम साल में अभ्यास कर रहे इक्कीस वर्ष की उम्र के सरदार पृथ्वीसिंह को दे रही हूँ. पृथ्वीसिंह मुझे पहचानता भी नहीं इसलिए उसे इससे ताज्जुब तो होगा. किन्तु कुछ समय के बाद उसे इस बात का जवाब मिल जाएगा. शेष साठ प्रतिशत संपत्ति मेरे पति डॉ. दिवाकर पंडित को मिले ऐसी मेरी अंतिम इच्छा है. यदि किसी कारणवश मेरे पति इस वसीयतनामे का पालन करने के समय जीवित न रहे तो पूरी ८५ प्रतिशत राशि सरदार पृथ्वीसिंह को मिले. संयोगवश यदि पृथ्वीसिंह भी जीवित न हो तो यह राशि के बीस प्रतिशत डॉ. पंडित के वसीयतनामे के बेनिफिशियरी (वारिस) को मिले. शेष राशि निम्नलिखित संस्थाओं को प्रदान कर दी जाए.’ और फिर अलग अलग संस्थाओं की लंबी सी सूची थी.

सोलिसिटर अमिन ने वसीयतनामे का पठन पूरा किया.

कुछ देर तक सब मौन रहे. फिर कृष्णराव ने पूछा: ‘बैरिस्टरसाहब, आप दोनों ने जो कुछ भी पढ़ा उसमें मेरी समज में कुछ भी नहीं आया.’

‘पप्पा, आप भी...’ शेफाली क्रोध से आग बबूला हो उठी; ‘यह क्या ऐसा सवाल करने का समय है?’

‘शेफाली, कृष्णराव का सवाल सही है. यह सवाल को अभी इसी पल समज लेना आवश्यक है.’ बैरिस्टर मोहंती ने कहा.

‘हाँ, शेफाली, मोहंतीसाहब की बात सही है.’ अमिन ने कहा, ‘मोहंती, आप कृष्णराव समज सके इस प्रकार से इन दोनों वसीयतनामे का अर्थ समझाइए.’

बैरिस्टर मोहंती ने एक दृष्टि डॉ.पंडित की चद्दर से आच्छादित देह पर डाली. फिर उनकी दृष्टि उस दीवार पर तंगी मोहिनी की छवि की ओर गई. फिर उन्होंने स्वस्थ हो कर कहा: ‘देखिये कृष्णराव, और शेरिफसाहब, आप भी समज लीजिए, दोनों वसीयतनामे में दर्शाई गई संपत्ति के वेल्यूएशन होने के बाद ही निश्चित राशि के बारे में जाना जा सकता है. किन्तु मान लीजिए कि दोनों की संपत्ति का वेल्यूएशन तक़रीबन एक एक करोड़ रुपये है.’

‘अब डॉ. पंडित के वसीयत नामे के मुताबिक उसमें से दस लाख रुपये अस्पताल को प्राप्त होंगे, बीस लाख रुपये शेफाली को मिलते हैं, सत्तर लाख रुपये मोहिनी को मिलते हैं.’

‘इसी प्रकार से श्रीमती मोहिनी पंडित के वसीयतनामे के मुताबिक रुपये पन्द्रह लाख पुरातत्त्व के लिए उस के कार्य के लिए ट्रस्ट बनाने में खरचने हैं. रुपये पचीस लाख सरदार पृथ्वीसिंह को मिलते हैं. रुपये साठ लाख डॉक्टर दिवाकर पंडित को मिलते हैं.’

‘परन्तु अब गड़बड़ यहाँ पर होती है. मान लीजिए कि श्रीमती मोहिनी पंडित की ह्त्या रात ग्यारह बजे हुई है और डॉ. दिवाकर पंडित का हार्टफेल सवेरे दो बजे हुआ है, तो पन्द्रह लाख पुरातत्व के लिए ट्रस्ट के लिए खरचने होंगे, रुपये पचीस लाख पृथ्वीसिंह को मिले एवं साठ लाख रुपये डॉ. दिवाकर पंडित को मिलते हैं. इसलिए मरते समय डॉक्टर दिवाकर पंडित की संपत्ति एक करोड़ साठ लाख की होती है. उस में से दस प्रतिशत याने कि रुपये सोलह लाख अस्पताल को दान में मिलेंगे एवं रुपये एक करोड़ चौवालीस लाख शेफाली को मिलते हैं.’

पलभर के लिए बैरिस्टर रुके. शेफाली अब भी सन्न थी. इनमें से एक भी शब्द उसके कानों तक पहुंचा नहीं होगा ऐसा लगा. परन्तु कृष्ण राव यह सुनते ही स्तब्ध हो गए.

‘बस?’ उन्होंने कहा.

‘नहीं, ऐसा भी हो सकता है कि डॉक्टर पंडित का हृदय रात के बारह बजे बंद पड़ गया हो, यदि ऐसा साबित होता है और श्रीमती मोहिनी पंडित की हत्या दो बजे के बाद हुई है ऐसा सबूत मिले तो डॉक्टर के विल के अनुसार दस लाख अस्पताल को और बीस लाख शेफाली को मिलते है: शेष सत्तर लाख मोहिनी पंडित को मिलते हैं. इन परिस्थितियों में श्रीमती पंडित की कुल संपत्ति एक करोड़ सत्तर लाख की होती है. इसमें से पन्द्रह प्रतिशत अर्थात साढ़े पचीस लाख पुरातत्व के ट्रस्ट के लिए खरचने हैं. और शेष एक करोड साढ़े चौवन लाख की संपत्ति का मालिक सरदार पृथ्वीसिंह बनता है...’

‘ओह गोड!’ शेरिफ के मुंह से शब्द निकल पड़े, ‘दिस इज कन्फ्यूजिंग.’(यह तो उलजादेनेवाला है).

‘हाँ, शेरिफसाहब, इसीलिए तो आपके जैसे गवाह की जरुरत थी.’ सोलिसिटर अमिन ने कहा.

बैरिस्टर मोहंती ने इस बात का समर्थन करते हुए कहा, ‘पति-पत्नी के वसीयतनामे की भाषा काफी मिलती है, एक सी है. दोनों ने साथ मिलकर विचार किया हो ऐसा लगता है.’

‘हाँ, दोनों देने ही बैठे थे, फिर उनको छिपाने जैसा भी तो कुछ नहीं था न?’

‘यह सरदार पृथ्वीसिंह कौन है?’

‘मालूम नहीं. वसीयतनामे में उसका पता लुधियाना का है. वहां संपर्क किया जा सकता है.’

‘तो मैं अब चलूँ?’ शेरिफ ने पूछा.

‘शेरिफ साहब, ये दोनों वसीयतनामे के पठन के बाद बात कुछ ज्यादा उलझ गई है. जाने से पहले हमें कुछ नतीजे पर पहुंचना होगा. अन्यथा, हम सबको अदालत के दर्शन करने पड़ेंगे!’

‘क्यों?’

‘पहले तो डॉ.. पंडित की अंतिम यात्रा स्थगित करनी होगी. उनकी देह का पोस्टमोर्टम करना पड़ेगा.’

‘लेकिन क्यों? सभी डॉक्टर कहते हैं कि उनकी मौत मैसिव हार्ट अटेक से हुई है. इस में कहीं पर किसी को कपटपूर्ण इरादे से कुछ भी हुआ हो ऐसा संदेह तक नहीं है. शेफाली, तूं उनकी बेटी हो, तुझे ऐसी कोई आशंका है?’

शेफाली की समझ में कुछ भी नहीं आया. उसने रिक्त दृष्टि से शेरिफ की ओर देखा. क्या कहा जा रहा था, कौन कह रहा था, और किस से कहा जा रहा था इस के बारे में शेफाली के पल्ले कुछ भी नहीं पड़ता था.

‘शेफाली,’ अमिन ने स्पष्ट रूप से कहा, ‘शेरिफसाहब यह जानना चाहते हैं कि तुझे डॉक्टर साहब की मौत पर किसी पर कोई शक या संदेह है? क्या तुझे ऐसा लगता है कि इस में किसी ने साजिश की हो?’

‘डॉक्टरसाहब का कोई दुश्मन नहीं था. कोई भी कभी भी डॉक्टर साहब के बारे में बुरा सोच ही नहीं सकता.’ शेफाली ने कहा.

‘केवल शेफाली के कहने से क्या, हम दूसरे एक बेनिफिशियरी (वारिस) को भूले जा रहे हैं.’ बैरिस्टर मोहंती ने कहा.

‘कौन?’ शेरिफ ने पूछा.

‘सरदार पृथ्वीसिंह.’

‘क्यों ? उसे डॉ. पंडित की मौत से क्या सम्बन्ध हो सकता है?’ शेरिफ ने विस्मय से कहा.

‘पूरा का पूरा सम्बन्ध हो सकता है. अभी यह सवाल उतना सरल नहीं जितना नजर आता है. क्या अमिन भी यही सोच रहा है जो मैं सोच रहा हूँ? मैं परिस्थिति को कुछ और स्पष्ट करता हूँ. डॉ. दिवाकर पंडित सोमवार की रात को ग्यारह बजे तक मेरे साथ थे. हमारे अलग होने के बाद वे सवेरे मृत अवस्था में पाए गए. डॉ. जैन के साथ मैंने जयपुर से सम्बंधित काफी बातें की है. सोमवार की रात को ग्यारह बजे सरसपुर डाक बंगले के पास के पेट्रोल पम्प के आदमियों ने श्रीमती मोहिनी पंडित को जीवित देखा था. सवेरे वे मर चुकी थी. मौत मध्यरात्रि के बाद किसी भी वक्त हुई है.’

‘ठीक है, किन्तु उसमें डॉ.पंडित की देह का पोस्टमोर्टम करवाना क्यों जरुरी है?’

‘यदि डॉ. पंडित की मौत पहले हुई हो तो उनकी संपत्ति के सत्तर प्रतिशत श्रीमती मोहिनी पंडित को मिलते हैं. और श्रीमती मोहिनी पंडित के वसीयतनामे के अनुसार वह सारी राशि सरदार पृथ्वीसिंह को मिलती है. यदि श्रीमती मोहिनी पंडित की मौत पहले हुई है तो उनके वसीयतनामे की साठ प्रतिशत राशि डॉ. पंडित को मिलती है और डॉ. पंडित के वसीयतनामे के अनुसार उतनी अधिक राशि शेफाली को प्राप्त होती है.’

‘यह तो स्पष्ट है.’

‘इसीलिए तो यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि डॉ.पंडित रात को कितने बजे चल बसे. पोस्टमोर्टम की रिपोर्ट के बगैर दाह संस्कार करने पर किसी को भी संदेह करने का कारण मिल सकता है. दो मौतें हुईं हैं, उनमें से किसकी मौत पहले हुई है इसी बात पर ही करोड़ों रुपये की संपत्ति के बंटवारे का फैसला निर्भर करता है.’ बैरिस्टर मोहंती ने समापन किया.

‘करोड़ों रुपये की जायदाद,’ कृष्णरावने अनजाने में ही ये शब्द दोहराए.

शेफाली अपने पिता से मुंह मोड़कर कभी डॉ.पंडित की चद्दर के नीचे रही उनकी देह की ओर तो कभी मोहिनी की तस्वीर की ओर देखती रही.

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(क्रमशः अगले प्रकरणों में जारी)

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रचनाकार: हरीन्द्र दवे का धारावाहिक उपन्यास : वसीयत - 2
हरीन्द्र दवे का धारावाहिक उपन्यास : वसीयत - 2
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