पुस्तक समीक्षा : रास्ते आवाज़ देते हैं

SHARE:

रास्ते आवाज़ देते हैं .......... मेरी नज़र में ग़ज़ल संग्रह - रास्ते आवाज़ देते हैं ग़ज़लकार - दीपक गुप्ता समीक्षक - विजेंद्र शर्मा...

image

रास्ते आवाज़ देते हैं .......... मेरी नज़र में

ग़ज़ल संग्रह - रास्ते आवाज़ देते हैं

ग़ज़लकार - दीपक गुप्ता

समीक्षक - विजेंद्र शर्मा

ग़ज़ल का पैकर कितना ख़ूबसूरत और आकर्षक है इस बात का अंदाज़ा इस से लगाया जा सकता है कि विशुद्ध हास्य के कवि भी अब अपना रूख़ ग़ज़ल की ओर कर रहें हैं। जहां तक कवि सम्मेलनों ओर हिंदी मंच का प्रश्न है दीपक गुप्ता एक ऊंचा मुकाम रखते हैं। हिंदी मंच पे ये नाम शानदार संचालन और स्तरीय हास्य कविताओं के लिए जाना जाता है।

हाल ही मैं दीपक गुप्ता की ग़ज़लों का मज्मूआ रास्ते आवाज़ देते हैं मंज़रे –आम पर आया है ,इस ग़ज़ल संग्रह में तक़रीबन नब्बे ग़ज़लें हैं। किताब की पहली ही ग़ज़ल से दीपक गुप्ता की शाइरी के तेवर पता चल जाते हैं :--

अगर मैं झूठ बोलूँ तो मेरा किरदार मरता है

जो बोलूँ सच तो फिर मेरा परिवार मरता है

अना ज़िंदा है गर तुझमें तो फिर तू ये बता मुझको

भला वो कौन है तुझमें कि जो हर बार मरता है

अपने इर्द-गिर्द घटने वाली घटनाओं से हास्य निकालने वाले दीपक गुप्ता के ग़ज़ल से मरासिम हुए कोई ज़ियादा वक़्त नहीं हुआ है सिर्फ़ छ साल के अपने शाइरी के सफ़र में दीपक गुप्ता ने उतने मील के पत्थर तो तय कर ही लिए हैं जहां तक बहुत से नए शाइर आते –आते थक जाते हैं , हताश होकर लौट जाते हैं या ग़ज़ल ख़ुद उन्हें खारिज कर देती है।

दीपक भाई ने कुछ ऐसे शे’र कहे हैं जिन्हें पढ़कर ये नहीं लगता कि हिंदी मंचों पे उन्होंने अपनी उम्र का एक तवील हिस्सा लोगों को हंसाते हुए गुज़ारा है :--

दौलत से ही तय होगा शोहरत से ही तय होगा

तेरा किरदार बोलेगा कि तेरा क़द कहाँ तक है

उड़ानों के नशे में है जाने कब कहाँ पहुंचें

परिंदों को पता क्या आसमां की हद कहाँ तक है

छोटी बहर का ये शे’र इस बात की दस्तक देता है की आने वाले वक़्त में शाइरी के आसमां पे दीपक गुप्ता नाम का सितारा बुलंद होने के लिए मचल रहा है :--

तख्ते शाही क़ुबूल कैसे हो

मेरे भीतर फ़क़ीर है साहिब

रास्ते आवाज़ देते हैं ,पूरी किताब में शाइर खुद्दारी और सच्चाई के साथ अपने किरदार की हिफ़ाज़त करता नज़र आता है। सख्त हालात में भी ज़मीर बचाए रखने की एक मुसलसल कोशिश जब शाइरी का पैराहन पहनती है तो दीपक गुप्ता की ग़ज़लें मुख़ातिब हो जाती हैं :--

बुरे को भी भला बोलूँ , नहीं मुझसे नहीं होगा

किसी को भी ख़ुदा बोलूँ , नहीं मुझसे नहीं होगा

बहुत अहसान हैं उनके मेरे सर पर मगर फिर भी

मैं उनका ही कहा बोलूँ , नहीं मुझसे नहीं होगा

दीपक गुप्ता मंज़िल की तरफ बिना देखे ये सोचकर अपना सफ़र किये जा रहे हैं कि एक दिन तो वो मुकाम हासिल होगा जिसके वे हक़दार हैं।

सफ़र में कहाँ हैं,नहीं जानते हम

कहाँ पर है मंज़िल ,क़दम जानते हैं

और दुनिया का वो रिश्ता जो पूरे जग को ज़ाहिर तो बड़ा ख़ूबसूरत होता है मगर भीतर से कितना खोखला है इसे भी दीपक भाई दो मिसरों में बयान कर देते हैं :---

रहे साथ बरसों पर इक दूसरे को

वो जानते हैं हम जानते हैं

दीपक गुप्ता की क़लम काग़ज़ पर भी इंसान की ज़िन्दगी से राब्ता रखने वाले फ़लसफ़े तलाश करती रहती है हालांकि ये तलाश सदियों से चली आ रही है बहुत से शाइरों ने इन बातों को पहले कहा भी है मगर अंदाज़े दीपक गुप्ता कुछ और ही है :---

जो ख़ुद का हो नहीं पाया किसी का हो नहीं सकता

उसे पाने का क्या हक़ है जो कुछ भी खो नहीं सकता

हवस क़ाबिज़ रही हो ज़िंदगी भर सोच में जिसकी

कभी आराम से वो क़ब्र में भी सो नहीं सकता

किसी भी शख्स की जब अना मर जाती है तो वो शख्स सिर्फ़ हड्डियों और मांस से बना एक ढांचा-भर रह जाता है उसमे फिर किसी से नज़र मिलाने का हौसला भी नहीं रहता। आज के दौर में अना को बचाए रखना एक दुशवारतरीन काम है, दीपक गुप्ता साहब किसी भी सूरत में अना की गिरफ़्त से आज़ाद ही नहीं होना चाहते और ना ही अना उनकी शाइरी से जुदा होना चाहती है :--

वक़्त क़िस्मत अना मुफ़लिसी और वो

ज़िंदगी भर मुझे आज़माते रहे

उनकी एक दूसरी ग़ज़ल का ये शे’र :--

अना ज़िंदा है मेरी इसलिए ज़िंदा हूँ मैं अब तक

नहीं तो ख़ुद की नज़रों में कभी का मर गया होता

और दीपक जी की आज तक की कमाई है ये शे’र :--

चंद रिश्ते ,अना और इज्ज़त

यार। मैंने कमाया बहुत कुछ

छोटी बहर में शे’र कहना आसान लगता है पर होता नहीं है ,आप को बात भी कहनी होती है वो भी लफ़्ज़ों की कंजूसी के साथ पर दीपक गुप्ता कम लफ़्ज़ों से गहरी और पते की बात बड़े सलीक़े के साथ कहने के फ़न से पूरी तरह वाकिफ़ हो गए हैं। उनके ये अशआर तो यही कहते हैं :---

रखकर ज़मीर गिरवी

बनते अमीर हो तुम

कविता में सौदेबाज़ी

कैसे कबीर हो तुम

*****

ऐसे मन मत मारा कर

हंसकर वक़्त गुज़ारा कर

मन के मनकेमहकेंगे

उसका नाम पुकारा कर

***
सच तो ये है सच ने ही

झूठा ख़्वाब दिखाया था

मुझमें इक ख़ामोशी ने

कितना शोर मचाया था

दीपक गुप्ता मूलतः हास्य कवि है। ये तो ग़ज़ल से उन्हें न जाने कैसे इश्क़ हो गया जो वे ग़ज़लकार भी हो गए, जिस तरह फूल अपनी ख़ुशबू से जुदा नहीं हो सकता ठीक उसी तरह दीपक भाई भी अपनी तख्लीक़ से मज़ाहियापन को जुदा नहीं कर सकते भले वे लाख कोशिश कर लें। उनके इसी मिज़ाज के कुछ रंग देखें :--

ख़त मिला महबूब का,मजमून गायब

दाल सब्ज़ी में हो जैसे नून गायब

दोस्तों ने इस क़दर मुझको उधेड़ा

भेड़ के तन से हो जैसे ऊन गायब

****

मानता हूँ ज़िंदगी जीना हुआ मुश्किल यहाँ

इसका मतलब ये नहीं मैं जीते जी ही चल बसूं

मज़ाहिया मिज़ाज के दीपक गुप्ता हंसी –हंसी में कई बार ऐसी बातें भी कह जाते हैं कि जिन्हें सुनकर फिर संजीदगी भी शर्मिन्दा हो जाती है :--

फ़क़त चार दिन की है ये ज़िन्दगानी

सभी को मगर हाय तौबा मची है

विधाता भी ख़ुद सोचता होगा आख़िर

ये किसके लिए मैंने दुनिया रची है

***

जमूरा भूख से जब पेट पकड़े छटपटाता है

अजब हैं लोग ,उसको भी महज़ करतब समझते हैं

****

बनाकर अपनी दुनिया को उसे बर्दाश्त भी करना

ख़ुदा मेरे। मैं तेरे हौसले की दाद देता हूँ

रास्ते आवाज़ देते है को पढ़ने के बाद मैं सोचने लगा कि ग़ज़ल की ओढ़नी में इतने ख़ूबसूरत बेल-बूंटे टांकने वाले शाइर की शाइरी की उम्र इतनी कम नहीं हो सकती फिर मालूम हुआ कि दीपक भाई की क़लम में ये कमाल यूँ ही नहीं आया है। दीपक गुप्ता इस मुआमले में बड़े ख़ुशनसीब हैं कि उन्हें कलंदर सिफ़त उस्ताद शाइर मंगल नसीम साहब जैसे द्रोण मिले हैं। दीपक गुप्ता के सुख़न में मंगल नसीम साहब के तवील (लम्बे) तजुर्बे की झलक साफ़ –साफ़ नज़र आती है तभी तो मामूली से दिखने वाले लफ़्ज़ भी काग़ज़ पर उतरते ही मआनीख़ेज़ हो जाते हैं :--

जीवन की हर मुश्किल का

जीवन ही कुछ हल देगा

***

पगले इक दिन उड़ जायेंगे

प्यार के पंछी पाला मत कर

***

सांप भी ये लगे सोचने

आदमी को डसें किसलिए

शाइरी में मुहावरों का इस्तेमाल हुनर माना जाता है और दीपक गुप्ता ने इस हुनर को अपनी ग़ज़लों में ख़ूब बरता है। कई बार मुहावरे ग़ज़ल में ज़बरदस्ती भी ठूस दिए जाते है और फिर ग़ज़ल ख़ुद उनसे परेशान हो जाती है मगर दीपक गुप्ता मुहावरों के प्रयोग से ग़ज़ल के हुस्न में इज़ाफ़ा करते हैं। मिसाल के तौर पे उनके कुछ शे’र :--

सैंकड़ा उससे हुआ पूरा कहाँ

जो पड़ा निन्यानवें के फेर में

***

कुछ भी बात थी जिसको

दिए वो तूल बैठा है

ज़रा से सूद की ख़ातिर

गवांकर मूल बैठा है

***

इक दिन मिट्टी होना है

ज़्यादा मत इतराया कर

***

जब अपना मुंह खोलो तुम

बात पते की बोलो तुम

सपनो। मुझको जगना है

नौ दो ग्यारह हो लो तुम

दीपक गुप्ता अपनी ग़ज़लों में प्रयोग बहुत करते हैं , ग़ज़ल पे जब भी नए – नए तजुर्बात आज़माए गए हैं उनकी पज़ीराई भी हुई है और कई दफा इन प्रयोगों ने ग़ज़ल को आहत भी किया है। दीपक साहब के कुछ इस तरह के तजुर्बे वाकई क़ाबिले दाद हैं :---

मौत जिसका बैनरहै

ज़िंदगी वो रैलीहै

***

मैं मुसाफ़िर था लोकलसी इकट्रेनका

मेरे ख़्वाबों को ज्यों राजधानी मिली

***

लोग रिटायरहोंगे जिससे

ऐसा इक दफ़्तरहै दुनिया

दीपक गुप्ता की शाइरी का मरकज़ वो आम आदमी है जो दुनिया के तमाम नज़ारे तो देखना चाहता है मगर अपनी अना को गिरवी नहीं रखना चाहता। इनकी शाइरी में ज़िंदगी के फ़लसफ़ों का दीदार आप कर सकते हैं ,कुछ नसीहतें भी हैं , आम आदमी की हताशा भी है और शाइरी के दूसरे भी मुखतलिफ़ – मुखतलिफ़ रंग भी। ग़ज़ल का अपना एक मिज़ाज होता है रूमानियत और जदीदियत ( आधुनिकता ) ने ग़ज़ल को अगर नए लिबास से सजाया है तो ग़ज़ल से उसका वो मिज़ाज भी छीना है। दीपक गुप्ता साहब की शाइरी में रिवायत की महक कम आती है। ग़ज़ल को रूमान पसंद है और रूमानियत दीपक साहब के यहाँ न के बराबर है उनकी पूरी किताब में रूमान के एक-दो शे’र बा-मुश्किल मिलते हैं। आज ग़ज़ल को एक –बार फिर से हुस्न,शबाब, ज़ुल्फ़,शराब , साकी ,पैमाने ,घटा ,गुलाब, चमन की ज़रूरत महसूस होने लगी है। रास्ते आवाज़ देते हैं में एक शे’र मुझे ऐसा नज़र आया जो ग़ज़ल को आईने में अपने पुराने चेहरे जैसा नज़र आ सकता है :--

फिर तुम्हारी याद में डूबा हुआ हूँ

फिर नशा-सा मुझपे छाए जा रहा है

दीपक साहब से गुज़ारिश है कि वे इस तरह के शे’र भी कहे जिससे ग़ज़ल को थोड़ा अपने होने का अहसास हो। दीपक भाई की ग़ज़लात में एक जैसे ख़यालात का बार – बार आना थोड़ा अजीब लगता है मगर इसे उनकी हुनरमंदी भी कहा जा सकता है कि एक ही मफ़हूम से वे अलग – अलग शे’र निकाल लेते हैं। हालांकि इस किताब में ऐसे अशआर भी हैं जो बार – बार ये सोचने पे मजबूर करते हैं कि ये शाइर हास्य कवि कैसे हो सकता है :--

ख़ुश्क आँखों को फिर से हरा कर गया

क्या गज़ब काम इक मसखरा कर गया

आज बेटे की बातों में वो तंज़ था

बाप को जीते जी अधमरा कर गया

ग़ज़ल में मक्ता रखने की एक रिवायत है , कई बार शाइर को मक्ता सिर्फ़ इस लिए कहना पड़ता है कि बस कहना है मगर दीपक गुप्ता अपने नाम का इस्तेमाल उसके सही लफ़्ज़ी मआनी के साथ करते हैं।

हिम्मत तो देखो दीपककी

आंधी से टकराने निकला

***

ज़िंदगी ने अँधेरे दिए थे मुझे

पर मैं दीपकथा जलना था जलता रहा

रास्ते आवाज़ देते हैं “ ग़ज़ल के एक नए ज़ायके का नाम है। आवरण पृष्ठ से लेकर छपाई तक की तमाम चीज़ें खूबसूरत है। आजकल बहुत सी किताबे इतनी जल्दबाजी में छाप दी जाती है कि उनमें प्रूफ की बहुत सी ग़लतियाँ रह जाती है मगर अमृत प्रकाशन ,दिल्ली और उसके प्रकाशक इस शानदार किताब के लिए मुबारकबाद के मुश्तहक़ हैं। सुख़न -शनास अदब पसंदों के लिए ये किताब दिलचस्पी का सबब हो सकती है। तनक़ीद कारों के लिए ये किताब बहुत काम की है उन्हें अपने आप से उलझने का सामान मिल सकता है और बड़े – बड़े नक्काद इसी सोच में गोते लगा सकते है कि दीपक गुप्ता ऐसे शे’र कह कैसे गया।

मेरे अहबाब हैरां हैं

मैं शायर हो गया कब से

बशीर बद्र ने कहा था कि “ग़ज़लें शराब पीती थीं , उन्हें नीम का रस पिला रहे हैं हम” सौ फीसदी सच है ये बात। हमारे अहद के बहुत से शाइर आज ये ही कर रहे हैं मगर रास्ते आवाज़ देते हैं “ पढ़ने के बाद ये तो कहा जा सकता है कि दीपक गुप्ता ग़ज़ल को नीम का रस नहीं बल्कि इसे खट्टी –मीठी शिकंजी पिला रहे हैं। ये इनका पहला मज्मूआ ए क़लाम है ,अभी दीपक साहब को बहुत सफ़र करना है। वो दिन भी बहुत जल्द आयेगा जब दीपक साहब की ग़ज़ल भी शराब पीती नज़र आएगी। इस संग्रह में जो ग़ज़लें हैं वे अरूज़ की कसौटी पे बा-क़ायदा खरी उतरती हैं। दीपक गुप्ता जिस तरह की शाइरी कर रहे है ये अदब के लिए एक अच्छा संकेत है मैं परवरदिगार से यही दुआ करता हूँ कि दीपक भाई इसी मेयार के शे’र मुसलसल कहते रहें :---

कोई जब पूछता है हमसे कहाँ रहते हो ?

हम इशारों में तेरे दिल का पता देते हैं

आपके हँसने हँसाने के अजब ये तेवर

आने वाली किसी मुश्किल का पता देते हैं

अगर आपको लगे कि मैंने जो शे’र कोट किये है वो वाकई दादों-तहसीन के हक़दार हैं तो आप उन्हें सीधे दाद दे सकते हैं उनका नंबर है .. 09811153282 और उनका मेल पता है kavideepakgupta@gmail.comरास्ते आवाज़ देते हैं “ ग़ज़ल से मुहब्बत करने वालों को निराश नहीं करेगी इतना मैं दावे के साथ कह सकता हूँ।

आख़िर में दीपक गुप्ता के इसी मतले के साथ ...

नहीं मालूम ये मुझको कि मेरी ज़द कहाँ तक है

ये मेरे शे बोलेंगे मेरी आमद कहाँ तक है

0000000

समीक्षक - विजेंद्र शर्मा

संपर्क:

बी.एस.ऍफ़ ,मुख्यालय

बीकानेर ,vijendra.vijen@gmail.com

COMMENTS

BLOGGER: 2
  1. ram narayan haldhar ,kota,raj4:21 pm

    yaqeenan,Deepak Gupta ko main ,unaki Facebook posts ke aadhar par manch par sakriy kavi hi samajhta tha,lekin is samikshaa ke baad jaan paya ki mamla tagada hai,
    bahut badhiya samiksha aap dono ko badhaee

    जवाब देंहटाएं
  2. विजेंदर जी बहुत अच्छी समीक्षा की है |

    जवाब देंहटाएं
रचनाओं पर आपकी बेबाक समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद.

स्पैम टिप्पणियों (वायरस डाउनलोडर युक्त कड़ियों वाले) की रोकथाम हेतु टिप्पणियों का मॉडरेशन लागू है. अतः आपकी टिप्पणियों को यहाँ प्रकट होने में कुछ समय लग सकता है.

नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: पुस्तक समीक्षा : रास्ते आवाज़ देते हैं
पुस्तक समीक्षा : रास्ते आवाज़ देते हैं
http://lh4.ggpht.com/-__CJwYtiDOQ/UHVhoy4b9FI/AAAAAAAAPE4/gpSQFxKa7wo/image%25255B2%25255D.png?imgmax=800
http://lh4.ggpht.com/-__CJwYtiDOQ/UHVhoy4b9FI/AAAAAAAAPE4/gpSQFxKa7wo/s72-c/image%25255B2%25255D.png?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2012/10/blog-post_4086.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2012/10/blog-post_4086.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content