कीमत कमल नौकरी के लिए साक्षात्कार देते-देते थक चुका था। बेबसी की जिंदगी से लड़ते-लड़ते उसे कई बार लगा कि आत्महत्या कर ले परंतु शिक्षित ह...
कीमत
कमल नौकरी के लिए साक्षात्कार देते-देते थक चुका था। बेबसी की जिंदगी से लड़ते-लड़ते उसे कई बार लगा कि आत्महत्या कर ले परंतु शिक्षित होने के कारण वह आत्महत्या भी नहीं कर सकता था। आखिर उसके बीबी-बच्चों का क्या होगा उसके मरने के बाद, उसने सोचा। उसके मां-बाप आखिर कब तक उसके बीबी-बच्चों की देखभाल करेंगे। आजतक तो वे देखभाल कर ही रहे है।
कमल अपने पत्नी के कुछ गहनों को गिरवी रखकर नौकरी के लिए जी-तोड़ कोशिश करता रहा था। पिता के पेंशन के रूपए को छूने की उसे हिम्मत नहीं पड़ती थी और हिम्मत भी कैसी पड़ती, उसी पेंशन से तो किसी तरह वर्षों से घर चल रहा था। अंततः कमल ने एक फैसला बहुत सोचने के बाद किया और बैंक में पीयून की नौकरी के लिए साक्षात्कार देने पहुंचा। कमल नौकरी हासिल करने के लिए इतने साक्षात्कार दे चुका था कि उसे अब जानकारी हो गयी थी कि योग्यता की कोई पूछ नहीं है, हर नौकरी की कीमत है आज बाजार में इसलिए कीमत देने की योग्यता के अनुसार कमल ने पीयून के नौकरी का चयन किया।
आपका नाम, बोर्ड के एक सदस्य ने पूछा ?
कमल, कमल ने कहा ।
आपकी शैक्षणिक योग्यता, बोर्ड के एक अन्य सदस्य ने पूछा ?
एमए, फर्स्ट क्लास, कमल ने जवाब दिया ।
योग्यता तो आपकी अच्छी है फिर आप पीयून की नौकरी क्यों करना चाहते है !
इसलिए कि दूसरे पचास से ज्यादा नौकरियों के साक्षात्कारों में मैं असफल होता रहा हॅूं और नौकरी मेरी जरूरत है, कमल ने कहा।
परंतु मात्र जरूरत से तो नौकरी नहीं मिलती, बोर्ड के एक कुछ ज्यादा ही गंभीर दिख रहे सदस्य ने कहा।
इतना सुनना था कि कमल ने रूपये का एक बंडल टेबल पर जा कर रख दिया, जिसे उसने अपनी पत्नी के आखिरी बचे गहने को बेच कर लाया था।
कितने हैं ? बोर्ड के वहीं गंभीर दिख रहे सदस्य ने कुछ दार्शनिक अंदाज में पूछा ?
जी, पांच हजार, कमल ने उत्तर दिया ।
बोर्ड के सभी सदस्य सवालिया निगाह से कभी एक-दूसरे को और कभी कमल को देख ही रहे थे कि इतने में कमल ने कहा, सर, इससे ज्यादा मेरे पास नहीं है, हाँ ये मैं वादा करता हॅूं कि अपने पहले वर्ष की तनख्वाह का नब्बे प्रतिशत आप लोगों को दे दूंगा।
भगवान ने कमल की सुन ली, कुछ दिनों बाद कमल पीयून बन गया था।
वैचारिक दिवालियापन
चौबीस बंसत पार कर रोहित एक क्षेत्रिय दल का सदस्य इस ख्याल से बना था कि पुस्तकों में पढ़े हुए बिरसा, तिलका, नीलाम्बर-पिताम्बर के विचारों को आदिवासी बहुल क्षेत्रों में ले जा सकेगा। दल के विकास कार्यों के एजेंडा में आदिवासी समाज को जागरूक करना, उनके लुप्त होती संस्कृति व भाषा पर विचार गोष्ठी करना, जल, जंगल, जमीन छीने जाने के विरूद्ध आदिवासियों को संगठित करना आदि था जो रोहित को दल का सदस्य बनने की प्रेरणा दिया था।
दल के कुछ सदस्यों को एक बुजुर्ग कार्यकर्ता हरीश के नेतृत्व में एक आदिवासी बहुल गांव में कैंप करने के लिए भेजा गया। रोहित बहुत खुश था कि उसे अब बिरसा, तिलका, नीलाम्बर, पीताम्बर के विचारों को लोगों के बीच रखने का मौका मिलेगा। एक-एक कर नेतागण मंच पर आते और अपने-अपने विचार रखते। रोहित को समझ में नहीं आ रहा था कि बिरसा, तिलका के संबंध में ये कैसा विचार दल के लोग सभा में उपस्थित आदिवासी लोगों के सामने रख रहे है। रोहित से रहा नहीं जा रहा था वह अधीर था कि कब उसकी पारी आए विचार व्यक्त करने की, देखते-देखते उसकी पारी भी आ गयी। रोहित मंच पर आया और कहना शुरू किया, भाईयों एवं बहनों, हमलोग यहां एकत्रित हुए है अपने पूर्वजों बिरसा, तिलका, नीलाम्बर, पीताम्बर जैसे महापुरूषों के विचार जानने के लिए, सभा में तालियों की गड़गड़ाहट गूंजने लगी। रोहित आगे कहना शुरू किया कि बिरसा, तिलका ने एक समाज जो समानता पर आधारित हो की कल्पना किया और अपने जीवनकाल में इसके लिए संघर्ष करते रहे परंतु हमलोग उनके विचारों को आगे नहीं बढ़ा पा रहे है। आज बिरसा मुंडा की मूर्तियों चारों ओर देखी जा सकती है, उनके नाम पर वोट भी मांगा जाता है परंतु बिरसा द्वारा जाग्रत चेतना पर धूल-मिट्टी जम गयी है, हमलोगों को उसे हटाना होगा।
दल के अन्य कार्यकर्ता रोहित का भाषण सुन कर अवाक थे। ये कहने लगा रोहित, सभी दल के पूराने कार्यकर्ताओं ने बुजुर्ग नेतृत्व की तरफ सवालिया निगाह से देखा, जैसे कह रहे हों, ‘रोहित तो सच बोलने लगा, इससे तो आदिवासियों में सचमुच जागरूकता आ जायेगी।'
बृद्ध नेतृत्व उठा, बोलते हुए रोहित के कंधे पर हाथ रखा, रोहित नया-नया दल का कार्यकर्ता था, उसे कहां राजनीतिक इशारा समझ में आता, वो नजरअंदाज कर आगे बोलने लगा, आज हमारे देश के महानगरों में नौकर, नौकरानियां, ईंट भट्ठे पर कार्य करने क्यों जाते है हमलोग इसलिए नहीं कि हम गरीब है, भूमिहीन है, विस्थापित है अपने जंगल और जमीन से बल्कि इसलिए क्योंकि हमलोगों में वो एकजुटता नहीं है जो अंग्रेजों के शासन में तिलका मांझी के नेतृत्व में था, बिरसा मुंडा के नेतृत्व में था, नीलाम्बर, पीताम्बर के नेतृत्व में था।
अब दल के बुर्जग नेतृत्व के लिए असहनीय होता जा रहा था रोहित का भाषण और रोहित की नसें तन गयी थी, आंखें नम थी, बाहें फड़कने लगी थी, कहां सुनने वाला था रोहित दल के अन्य कार्यकर्ताओं की कानाफूसी, उसे तो पुस्तकों में पढ़ी बातों को मूर्त रूप देना था, किताबी बातें कह कर टालना नहीं था। रोहित कहना जारी रखा, आज के आदिवासी समाज के युवा बिरसा, तिलका, नीलाम्बर, पीताम्बर की विद्रोह गाथा को न तो सुनना चाहते है और न जानने की कोशिश कर रहे हैं बल्कि होहल्ला वाली संगीत सुनने लगे हैं, नगाड़े की थाप तो बस अब दल अपनी राजनीतिक उद्देश्य के लिए बजवाते हैं और दल के लोग फोटो खिंचवाते है।
अब असहनीय हो गया था रोहित का भाषण उसके ही पार्टी नेतृत्व और कार्यकर्ताओं के लिए। बुजुर्ग नेतृत्व ने अचानक उड़ते हुए लपकर रोहित से माइक छीन लिया और कहा कि कुछ अप्रत्याशित कारणों से यह विचार संगोष्ठी स्थगित की जाती है।
सभी श्रोतागण धीरे-धीरे वापस जाने लगे।
इधर मंच पर खड़ रोहित कुछ समझ नहीं पा रहा था कि कौन सी अप्रत्याशित कारण से यह संगोष्ठी अचानक स्थगित कर दी गयी। अभी वह पूछने ही वाला था कि इतने में दल के बुजुर्ग नेतृत्व ने उसे समझाना शुरू किया कि भाई रोहित अभी नये-नये आए हो, थोडी अभ्यास कर लो तब भाषण देना, ऐसा बेबाक भाषण कहीं दिया जाता है ? अरे भाई, बिरसा मुंडा, तिलका मांझी, नीलाम्बर, पीताम्बर ये सभी आदिवासी अस्मिता के प्रतीक हैं, रोहित गौर से सुन रहा था और समझने की कोशिश कर रहा था। आदिवासी अस्मिता का इस्तेमाल पार्टी हित में करना सीखो, अदिवासी अस्मिता को वोट लेने के लिए इस्तेमाल करना हमारा उदेश्य होना चाहिए, न कि आदिवासियों में सच्ची जागरूकता पैदा करना, अगर सच्ची जागरूकता इनमें पैदा कर दोगे तो फिर पार्टी कॉर्पोरेट जगत को क्या जवाब देगी। इन लोगों के भूमि को पार्टी कॉर्पोरेट हाउस को कैसे बेच सकेगी, जैसा भाषण तुम दे रहे थे, उस तरह के भाषण से तो पार्टी दिवालिया हो जाएगी।
रोहित को समझ में आ गया था कि उसके भाषण से पार्टी दिवालिया हो या न हो, उसकी पार्टी वैचारिक रूप से तो दिवालिया हो ही चुकी है। पार्टी ज्वाइन करने के कारण रोहित की अन्तरात्मा उसे धिक्कार रही थी।
राजीव आनंद
मो. 9471765417
ईमेल-rajiv71@gmail.com
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