अर्जुन प्रसाद की कहानी - निराशा

SHARE:

निराशा वैशाख का महीना था और गर्मी का दिन। सेलहरा गाँव के शंभू कोरी के दुर्गा और शंकर नाम के दो पुत्र थे और एक छोटी पुत्री सुरभि। दुर्गा बिल्...

निराशा

वैशाख का महीना था और गर्मी का दिन। सेलहरा गाँव के शंभू कोरी के दुर्गा और शंकर नाम के दो पुत्र थे और एक छोटी पुत्री सुरभि। दुर्गा बिल्‍कुल भी पढ़ा-लिखा न था। यह भी समझ सकते हैं कि वह बहुत ही मोटी बुद्धि का आदमी था। वह अपने माँ-बाप के साथ खेतीबाड़ी का काम-धंधा करता था। शंकर बारहवीं कक्षा पास करने के बाद कालेज में बी․ए․ कर रहा था। दुर्गा का विवाह तो हुआ ही था शंकर की शादी भी हो चुकी थी परंतु उसका गौना न आया था। उसकी पत्‍नी अभी अपने मायके में ही थी। सुरभि अभी 6-7 साल की थी। वह अभी एक नादान बालिका थी। उसे सांसारिकता को कोई ज्ञान न था।

दुर्गा बहुत ही सीधा-सादा और माता-पिता का आज्ञाकारी पुत्र था। वह बिल्‍कुल सज्‍जन भी था। कोई उसे कुछ भी कहता रहे वह पलटकर जवाब तक न देता था। शंकर को अपने पढ़े-लिखे होने का बड़ा नाज था। वह खेतीबाड़ी का काम करके माँ-बाप का हाथ बँटाना कतई पसंद न था। वह बहुत चालाक, हठीला और घमंडी भी था। खेतों की जुताई-बुआई का काम दुर्गा ही करता था। वह सुबह से शाम तक नाना प्रकार के घरेलू कामों ही लगा रहता था। साथ ही उसकी पत्‍नी पारो भी दिन-रात उन्‍हीं कामों में व्‍यस्‍त रहती थी।

एक ओर जहाँ कुछ माता-पिता अपने योग्‍य और कुशल, बड़े पुत्र को बहुत चाहते हैं वहीं दूसरी ओर कुछ गिने-चुने माँ-बाप ऐसे भी होते हैं जो अपने बड़े पुत्र को यह सोचकर उसकी उपेक्षा करते हैं कि अब वह कमाने के योग्‍य हो गया है। उसके बारे में चिंतित रहना मूर्खता है। अब उसे उलटे हमारी खोज-खबर लेनी चाहिए। बुढ़ापे में हमारी मदद करनी चाहिए। जमकर हम सबकी देखभाल करनी चाहिए।

ऐसे माता-पिता अपने अयोग्‍य, मोटे दिमाग वाले बेटे को ही अधिक महत्‍व देते हैं। वे उसे ही अपनी एकमात्र संतान मानते हैं। उनकी नजर में अपने बड़े पुत्र का कोई महत्‍व नहीं होता है। सामाजिक और नैतिक दृष्‍टि से अपने ही बच्‍चों में इस तरह का भेदभाव करना गलत है। इससे बच्‍चों में हीन और वैरभावना उत्‍पन्‍न हो जाती है। लेकिन यहाँ बात कुछ उलटी ही थी। पढ़ाई-लिखाई के चलते शंभू और उनकी पत्‍नी सुभागी छोटे बेटे को बहुत चाहते थे। उनकी निगाह में दुर्गा बिल्‍कुल कायर, बेवकूफ और बेकार था। उनके लिए वह एकदम निकम्‍मा युवक था।

इतना ही नहीं वे खान-पान और वस्‍त्र आदि में भी अपने दोनों बेटों में फर्क रखते थे। दुर्गा को मोटा-महीन पहनने को मिलता तो शंकर को बढि़या-बढि़या वस्‍त्र पहनने को मिलते थे। यह बात दुर्गा को तो न अखरती थी मगर उसकी पत्‍नी पारो को यह हरगिज पसंद न था। दोनों भाइयों के बीच यह भेदभाव देखकर उसका जी ऊब गया। उसने अपने सासु-ससुर का बहुत विरोध किया।

उसने कई बार अपनी सासु को टोका भी किन्‍तु पति-पत्‍नी पर उसकी नाराजगी का कोई असर न पड़ा। यह अन्‍याय सहन करते-करते जब पानी सिर से गुजरने लगा तो अपना कोई वश न चलने पर पारो ने अपने पति दुर्गा को ही उकसाना शुरू कर दिया। वह दिन-रात उसका कान भरने लगी। वह आए दिन उससे कहने लगी-स्‍वामी! आप सासु-ससुर जी से क्‍यों कुछ कहते नहीं? चुपचाप कायरों की भाँति उनकी उँगलियों पर नाचते-फिरते हैं।

वह फिर कहती-इतना ही नहीं, कोई काम न करने पर भी हमारे देवर शंकर को सासुजी खूब देशी घी खिलाती हैं। ऊपर से गाय-भैंसों को सानी-पानी हम और आप देते हैं पर उनका दूध देवर को ही मिलता है। वे लोग हमारा और आपका तनिक भी ख्‍याल नहीं रखते हैं। वे सोचते हैं कि आपकी सेवा के लिए एक अकेले मैं ही काफी हूँ। यह बात ठीक नहीं है। इतना सीधापन भी किस काम का? बच्‍चों में भेदभाव करना इंसान को शोभा नहीं देती है। मॉ-बाप की नजर में सभी बच्‍चे समान होने चाहिए।

नित रोज-रोज एक ही बात सुनते-सुनते अंत में एक दिन दुर्गा की खोपड़ी घूम गई। वह भी एक मनुज ही था कोई देव नहीं। एक तो सीधा व्‍यक्‍ति किसी की बात को मानता नहीं है और अगर मान लेता है तो वह उस पर पूरे तन-मन से अमल करता है। वह अच्‍छे-बुरे का अंतर भूल जाता है। दुर्गा अनपढ़ और मोटी बुद्धि का था ही पारो की बातों ने उस पर जादू सा असर किया। धीरे-धीरे उसका मन बिल्‍कुल बदलने लगे उसके पास बुद्धि और विवेक की कमी थी ही दिल में उदासी छाते ही वह एकदम कुंठाग्रस्‍त हो गया। उसके मन-मस्‍तिष्‍क में सनक सवार हो गई। उसकी मति भ्रष्‍ट हो गई। उसका विवेक मिट गया। उसका अंतस्‍तल घृणा से भर गया। अपने भाई दुर्गा और माँ सुभागी के प्रति उसके जी में नफरत पैदा हो गई। अब वे दोनों उसकी नजर में शत्रु नजर आने लगे।

अपने जन्‍मदाता के दोहरे व्‍यवहार से दुर्गा ऊब गया तो एक दिन वह गाँव के ही अपने दो मित्रों मैं फरहान और कल्‍लू से बोला-अरे यार! मेरी अम्‍मा और बाबूजी ने तो अति ही कर दिया है। वे मेरे छोटे भाई शंकर को बहुत चाहते हैं और मुझे बिल्‍कुल काहिल समझते हैं। जैसे मैं उनका कुछ लगता ही नहीं हूँ। उनके लिए मैं एकदम पराया हूँ।

इसलिए मैं अब अपने भाई शंकर और अपनी माँ को रास्‍ते से हटा देना चाहता हूं। उसका विचार सुनकर वे दोनों भी उसकी हाँ में हाँ मिलाते हुए बोले-जब ऐसी बात है तो फिर देर किस बात की है। हम दोनों तुम्‍हारे साथ हैं। तुम्‍हें जो कुछ भी करना है उसे करके स्‍वतंत्र हो जाओ। हीला-हवाली करना ठीक न रहेगा। ऐसे बेरहम भाई और माँ का मर जाना ही बेहतर है। उनका जीना क्‍या और मरना क्‍या? मनुष्‍य के दिल में तब एक बार पाप समा जाता है तो वह अपना असर दिखाकर ही रहता है। तत्‍पश्‍चात दुर्गा ने अपने भाई और अपनी जन्‍मदायिनी वृद्धा माँ को असमय ही मौत की नींद सुलाने को ठान लिया। उसके सिर पर खून सवार हो गया। उसे सारे रिश्‍ते बेमानी नजर आने लगे।

दुर्गा के घर के पिछवाड़े एक छोटा किन्‍तु, गहरा तालाब था। सबसे पहले उसने उस तालाब में आयताकार एक गहरा गड्‌ढा खोदा। उसे ऐसा करते देखकर गाँव के स्‍त्री-पुरूषों ने सोचा-शायद मिट्टी वगैरह निकालने के लिए दुर्गा यह गड्‌ढा खोद रहा है यह सोचकर उन्‍होंने उस पर कोई खास ध्‍यान नहीं दिया। गर्मी व्‍यतीत होने के पश्‍चात बरसात का मौसम आने वाला था।

अतएव जीर्ण-शीर्ण, पुराने सड़े-गले छप्‍परों को उजाड़कर नया छप्‍पर छाना जरूरी था। कुछ ग्रामीणों ने अपने छप्‍परों को उजाड़कर उसी तालाब में फेंक दिया था। दुर्गा ने छप्‍परों के उसी खर-पतवार से उस गड्‌ढे को गुपचुप तरीके से ढक दिया और चुपचाप अपने घर चला गया। उसकी इस हरकत का पता उसकी अर्धांगिनी पारो को भी न चला। दुर्गा ने उसे कुछ भी न बताया। अब उसका मन माँ-बेटे की हत्‍या करने के अलावा किसी और काम में न लग रहा था। पछुआ पवन जोरों से चल रही थी। किसानों की रबी की फसल कटकर खलिहानों में पहुँच चुकी थी और उसकी मड़ाई का काम चल रहा था।

एक रात की बात है शंभू कोरी अपने खलिहान में सोए हुए थे। उनकी पत्‍नी सुभागी घर के आँगन में सोई हुई थी। उसी के साथ उसकी मासूम बेटी सुरभि भी सोई हुई थी। उनकी बगल में एक अन्‍य चारपाई पर उनका छोटा बेटा शंकर सोया हुआ था। इससे पहले अवसर पाकर दुर्गा ने बड़ी चालाकी से उनके कमरे के दरवाजे की कुंडी आहिस्‍ता से खोल दी थी। दरवाजे की कुडी खुली थी लेकिन वह बंद ही था। अतः उन्‍हें इस बात का अहसास भी न हुआ कि दरवाजे की कुंडी खुली रह गई है।

किसी ने इस ओर ध्‍यान ही न दिया। उन्‍होंने बस यही समझा कि दरवाजा बंद है। दुर्गा और उसकी पत्‍नी पारो मकान की छत पर थे। वे अभी जाग ही रही थी। तब तक पारो अपने पति दुर्गा से बोली-अजी! बुड्‌ढे-बढि़या के अत्‍याचार से बचने के लिए आप कुछ करते क्‍यों नहीं। कुछ कीजिए नहीं तो जिंदगी ऐसे ही गलामी करते गुजर जाएगी और भर पेट रोटी भी नसीब न होगी।

यह सुनकर दुर्गा उससे बोला-प्रिये! मैं तुम्‍हारी परेशानी भीलीभाँति समझता हूँ मगर, रात काफी हो गई है इसलिए अब तुम शांत होकर सो जाओ। समय आने पर मैं कुछ न कुछ अवश्‍य करूँगा। उसका आश्‍वासन पाकर पारो सो गई। पर दुर्गा की आँखों में नींद आने का नाम ही न था। निराशा और सोच में डूबते-उतरातेे दुर्गा के नेत्रों से निद्रा बहुत दूर जा चुकी थी। वह काफी देर तक करवटें ही बदलता रहा।

पारो को जब खूब गहरी निद्रा आ गई तो दुर्गा चुपचाप वहाँ से उठा और दबे पाँव छत से नीचे उतरकर घर से बाहर चला गया। वह गाँव में जाकर अपने दोनों साथियों फरहान और कल्‍लू को जगाने के बाद उन्‍हें अपने घर लेकर आ गया। वे दोनों शांत मन से उस दरवाजे के बाहर खड़े हो गए जिस कक्ष में शंभू की पत्‍नी सुभागी और उनका छोटा बेटा शंकर और उनकी बेटी सुरभि बेसुध होकर सो रहे थे।

रात्रि के डेढ़-दो बज रहे होंगे, कुछ ही पल में एक तेज धार वाला चारा काटने का गँड़ासा लेकर उनके कमरे में घुस गया। सर्वप्रथम उसने अपने अनुज शंकर की गर्दन पर जोरदार वार किया। गँड़ासे के प्रहार से शंकर की गर्दन से खून के फव्‍वारे छूट पड़े। उसके रक्‍त के कुछ छींटे सुभागी के बदन पर भी जा पहुँचे। इससे अचानक उसकी नींद उचट गई। वह ज्‍योंही उठने लगी त्‍योंही दुर्गा ने बड़ी निर्दयता से उसकी गर्दन पर भी गँड़द्वासा चला दिया। देखते ही देखते उसकी गर्दन भी धड़ से अलग हो गई। इतने में सुरभि की आँख भी खुल गई पर मारे भय के वह कुछ बोली नहीं और मृतवत खाट से ही चिपकी रही ताकि दुर्गा समझ जाए कि वह सो रही है और उसे कुछ पता नहीं है।

पल भर में ही माँ-बेटे दोनों के प्राण-पखेरू उड़ गए। अब चारपाई पर उनकी बेजान लाश रह गई। तदंतर बारी-बारी उनका पैर पकड़कर उनके निर्जीव शरीर को घसीटते हुए ले जाकर दुर्गा ने तालाब के उसी गड्‌ढे में डाल दिया और छप्‍परों के कूड़ा-करकट से पुनः ढक दिया। तदोपरांत दुर्गा के दोस्‍त अपने-अपने घर जाकर सो गए। तब दुर्गा अपनी पत्‍नी पारो के पास छत पर गया और उसे नींद से जगाकर बोला-देवी! अब तुम्‍हारा सारा खटका बिल्‍कुल दूर। अब तुम एकदम निश्‍चिंत रहो। आज मैंने तुम्‍हारी सारी चिंता दूर कर दी। अब तुम्‍हारी शिकायत खत्‍म हुई।

यह सुनते ही पारो विस्‍मित होकर बोली-क्‍यों ऐसा क्‍या किया आपने?

यह सुनकर दुर्गा बेधड़क बोला-अरे पगली! जरा धीमें स्‍वर में बोलो। आज मैंने अम्‍मा और शंकर को खत्‍म कर दिया। मैंने दोनों का काटकर मार डाला।

यह सुनना था कि पारो के होश गुम हो गए। वह एकदम सन्‍न रह गई। उसकी समझ में न आ रहा था कि अब क्‍या करूँ और क्‍या न करूँ? वह झट बोली-अजी! बिना सोचे-विचारे ही आपने यह क्‍या किया? आपको ऐसा पाप हरगिज न करना चाहिए था। वे दोनों जैसे भी थे आपकी सगी माँ और भाई थे। वे कोई गैर नहीं थे। आज आपने तो बहुत बड़ा गुनाह कर दिया।

पारो का कथन सुनते ही दुर्गा का पारा गर्म हो गया। वह आग-बबूला हो गया। आँखें लाल-पीली करके उसने उससे झट कहा-क्‍या बकवाश करती हो? तुमने क्‍या मुझे बेवकूफ समझ रखा है। अरे! तुमने ही तो बारंबार मुझे उकसाकर ऐसा जुर्म करने के लिए विवश किया। मैं तुम्‍हारे तानों से आजिज आ चुका था। यहाँ बैठकर बातें बनाना बंद करो और अब जाकर फर्श पर गिरे तथा दीवार पर लगे खून को फौरन साफ कर दो वरना सबेरा होते ही सारा मामला गड़बड़ हो जाएगा।

यह सुनते ही पारो तुरंत उठी और जाकर सारा खून साफ कर दिया। इसके बाद वह पुनः छत पर लाकर सो गई। रात बीत गई और सुबह हो गई। रविदेव की रोशनी मिलते ही लोग अपने-अपने काम में जुट गए। दुर्गा और पारो भी काम पर चले गए। पारो घर के काम में उलझ गई तो दुर्गा खेतों में।

रात से सुबह हुई और सुबह से दोपहर सुभागी नाश्‍ता-पानी लेकर जब खलिहान में नहीं पहुँची तक शभू को भूख सताने लगी। तब तक दुर्गा उनके पास जा पहुँचा। उसे देखकर शंभू बोले-क्‍या बात है बेटा! तुम्‍हारी अम्‍मा कहाँ हैं? आज वह मेरा खाना लेकर अभी तक क्‍यों नहीं आईं?

तब अपने मन के भावों को छिपाकर बड़ी चतुराई से उन्‍हें ढाढ़स बँधाकर बोला-अम्‍मा तो हमारे ननिहाल यानी अपने नैहर जाने को कह रही थीं। हो सकता है वह वहाँ चली गई हो। सुभागी को अपने मायके जाने की बात सुनकर शंभू मन मारकर रह गए। इसके बाद पारो ने ले जाकर उन्‍हें खाना खिलाया। बात आई-गई हो गई। सारा दिन व्‍यतीत हो गया। फिर रात हुई और उसके बाद सुबह। अगले दिन दोपहर को दुर्गा जब अपने बाबूजी का भोजन लेकर खलिहान में गया तो उन्‍होंने उससे पूछा-अरे दुर्गा! शंकर कहाँ है? वह दो दिन से दिखाई नहीं दे रहा है।

यह सुनते ही दुर्गा ने कहा-अपने स्‍कूल-कालेज के काम से कहीं गया होगा। आ जाएगा। इसी तरह दो दिन बीत गए। किसी को कुछ भी मालूम न हुआ। उधर गड्‌ढे में रखी लाशें सड़ने लगीं। उनमें बदबू उत्‍पन्‍न हो गई। फिर शाम हुई और सबेरा हो गया। तब तक उस तालाब के पास ही स्‍थित शिवाले के चबूतरे पर बैठी एक स्‍त्री ने देखा कि दो-तीन कुत्‍ते आपस में लड़ते-झगड़ते कुछ खींच रहे हैं।

इतने में उसे इंसान का एक पैर दिखाई पड़ गया। यह देखकर उसकी उत्‍सुकता बढ़ गई। वह उठकर गड्‌ढे के पास गई और बड़े गौर से आँखें फाड़-फाड़कर देखने लगी। तब उसने देखा कि उस गड्‌ढे में एक नहीं बल्‍कि, एक औरत और एक युवक की दो लाशें पड़ी हुई हैं। वह ताज्‍जुब में पड़ी हुई अपने घर पहुँची और अपने पति से बोली-तनिक तालाब में खुदे और खर-पतवार से ढके एक गड्‌ढे को तो जाकर देखिए। उसमें दो-दो लाशें पड़ी हुई हैं।

तदंतर वह आदमी वहाँ गया और उन लाशों को देखा। उन्‍हें देखते ही उसके भी होश-हवास गुम हो गए। उसकी रूह काँप उठी। वह बदहवाश घर जाकर अपनी पत्‍नी से बोला-देखो लगता है यह कत्‍ल का मामला है लेना एक न देना दो नाहक ही पुलिस का चक्‍कर पड़ जाएगा इसलिए जो कुछ भी देखा है उसे बिल्‍कुल भूल जाओ। किसी से कुछ मत कहना वरना बिना बुलाए ही मुसीबत गले पड़ जाएगी। । ने

कुत्‍तों में लाशों को खीचने की खातिर होड़ सी लगी हुई थी। मैं खीचूँ लूँ और मैं खीचूँ लूँ के नाम पर उनमें जंग छिड़ी हुई थी। यह देखकर कुछ और लोगों की नजर भी अनायास ही उस ओर चली गई। तब तक किसी व्‍यक्‍ति ने इसकी खबर पुलिस को दे दी। लाशों की भनक मिलते ही पुलिस तत्‍काल वहाँ पहुँच गई। पुलिस ने गड्‌ढे से दोनों लाशों को निकालकर गाँव वालों से पूछताछ करना आरंभ कर दिया। उन्‍हें देखते ही उन्‍होंने उनकी पहचान कर ली। उन्‍होंने पुलिस को बताया कि ये लाशें शंभू की पत्‍पी सुभागी और छोटे बेटे शंकर की हैं। उनके घर-परिवार में बिल्‍कुल शांति है इसलिए हो सकता है कि ये दोनों ही खून शंभू ने ही किया हो।

यह सुनना था कि पुलिस आनन-फानन में शंभू के पास उनके खलिहान में पहुँच गई। शंभू ने पहले अनभिज्ञता जाहिर की पर, कड़ाई से पूछताछ करने पर वह दरोगाजी से बोले-हुजूर! पहले लाश तो दिखाइए इसके बाद ही मैं कुछ बता सकता हूँ कि वे लाशें किसकी हैं। पुलिस ने उन्‍हें ले जाकर लाश दिखाई तो वह दंग रह गए। आँखों में अश्रुधारा लेकर वह बोले-साहब!यह मेरी पत्‍नी सुभागी और मेरा छोटा बेटा शंकर की ही लाश है।

इसके बाद उन्‍होंने अपने बड़े बेटे दुर्गा की सुनाई हुई सारी कहानी पुलिस को सुना दी। यह सुनते ही पुलिस ने झटपट दुर्गा को धर दबोचा। पुलिस की मार से बचने के लिए वह गिड़गिड़ाकर बोला-जनाब! मुझे मारिए मत। मैं सच-सच सब कुछ बता देता हूँ।

वह फिर बोला-मैं एकदम सच कहता हूँ यह दोनों कत्‍ल मैंने ही किया है। इसमें किसी और का कोई हाथ नहीं है। यह सोचकर कि पुलिस कहीं मेरे साथ जोर आजमाइश न करने लगे उसने बिना किसी कड़ाई के ही बड़ी आसानी से अपना जुर्म कबूल कर लिया। सब कुछ सच-सच उगल दिया। इसके बाद वजह पूछने पर उसने अपने माता-पिता और पत्‍नी के बर्ताव की सारी बातें बता दिया। यह सुनकर पुलिस ने दुर्गा की पत्‍नी पारो को भी गिरफ्‍तार कर लिया। अदालत में पेश करने के बाद पुलिस ने उन्‍हें बड़े घर भेज दिया। उनके माथे पर जीवन भर के लिए कलंक लग गया। उनकी बदनामी तो हुई ही जेल की हवा भी खानी पड़ी।

मुकदमा चलते हुए कई साल बीत गए। उनकी जमानत तक न हुई। न तो उन्‍हें कोई जमानतदार ही मिला और न कोर्ट से जमानत ही। कई साल के बाद जैसे-तैसे उनकी जमानत हुई। अदालत से जमानत पर छूटने के बाद पारो अपनी ससुराल नहीं गई। वह सीधे अपने माँ-बाप के पास मायके में जाकर रहने लगी।

इसके पश्‍चात जब दुर्गा को जमानत मिली तो वह भी अपने घर न जाकर अपनी पत्‍नी के पास ससुराल चला गया। वहाँ जाकर वह अपनी भार्या से बोला-चलो अब अपने घर चलें। जैसा भी हो अपना घर अपना ही होता है यहाँ ससुराल में रहना ठीक नहीं है।

यह सुनते ही पारो का पारा गर्म हो गया। मारे आवेश के वह तिलमिलाकर आँखें तरेरते हुए बोली-खबरदार! मुझसे आइंदा वहाँ जाने की बात भी मत करना वरना अच्‍छा न होगा। तुम मेरे पति नहीं बल्‍कि जानी दुश्‍मन हो। तुमने नाहक ही मुझे जेल भिजवा दिया। मर्द अपनी पत्‍नी की रक्षा करता है और एक तुम हो कि मुझे ले जाकर जेल में ठुँसवा दिए। एक बात और जब तुम जन्‍म देने वाली अपनी माँ और अपने छोटे भाई के ही नहीं हुए तो मेरा क्‍या होगे? तुम्‍हारे जैसे महामूर्ख के साथ अब मैं नहीं रह सकती। अपना बाकी जीवन यहीं रो-धोकर गुजार दूँगी।

यह सुनकर दुर्गा अंदर से टूटकर बिखर गया। उसे बहुत आत्‍मग्‍लानि हुई। अपनी करनी पर उसे अपार कष्‍ट हुआ। उसका दिल उसे धिक्‍कारने लगा। अपराध बोधग्रस्‍त होते ही अब वह जीते जी पश्‍चाताप की अग्‍नि में जलने लगा। उसने पारो के भाई की साइकिल लिया और मनोहर गंज रेलवे स्‍टेशन पर पहुँच गया। वहाँ जाकर साइकिल को उसने एक खंभे से बाँध दिया और स्‍वयं तीव्रगति से आती हुई एक मालगाड़ी के नीचे कूदकर कट गया। अपने कुकृत्‍य के चलते उसे आत्‍महत्‍या करने पर विवश होना पड़ा।

अब शंभू के दोनों लड़के मर ही चुके थे। अब उनके पास कुल ले-देकर एक बेटी और दामाद ही थे। इसलिए बड़ी होने पर एक अच्‍छा सा घर-वर देखकर उसका विवाह कर दिए। पूरे परिवार को असमय ही काल के गाल में समा जाने से उन्‍हें नैराश्‍य ने घेर लिया। उन्‍होंने बेटी-दामाद को अपने पास बुला लिया और अपना सब कुछ उनके नाम कर दिया

--

prasadarjun873@gmail.com

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: अर्जुन प्रसाद की कहानी - निराशा
अर्जुन प्रसाद की कहानी - निराशा
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2012/11/blog-post_3878.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2012/11/blog-post_3878.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content