अ नेक विद्वानों का मानना है कि लोकतंत्र की परम्परा अपने देश में बहुत पुरानी है . सांस्कृतिक जागरण काल के एक प्रमुख नेता महर्षि दयानंद सरस्वत...
अनेक विद्वानों का मानना है कि लोकतंत्र की परम्परा अपने देश में बहुत पुरानी है . सांस्कृतिक जागरण काल के एक प्रमुख नेता महर्षि दयानंद सरस्वती ने इसे वैदिक कालीन बताया है . अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ " सत्यार्थ प्रकाश " में उन्होंने लगभग चालीस पृष्ठों का एक पूरा अध्याय “ राजधर्म “ पर लिखा जिसमें वेदों, ब्राहमण ग्रंथों, स्मृतियों आदि से उद्धरण देकर यह बताया है कि जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों को किस प्रकार शासन व्यवस्था चलानी चाहिए . अन्य विद्वानों ने भी इस विषय पर प्रकाश डाला है . जिन लोगों को विदेशी विद्वानों की ही बातें प्रामाणिक लगती हैं, उन्हें तो यह जानने के बाद ही संतोष होगा कि ग्रीक इतिहासकार डायोडोरस ( ईसा पूर्व प्रथम शताब्दी ) ने भी अपने ग्रन्थ " हिस्टोरिकल लायब्रेरी " ( 2 / 39 ) में स्वीकार किया है कि प्राचीन भारत में लोकतांत्रिक व्यवस्था थी . एरियन, कर्टियस आदि ने तो यहाँ तक लिखा है कि भारत के गणतंत्र ग्रीक गणतंत्र (Polis ) से भी बड़े थे . निपिसिंग यूनिवर्सिटी ( ओंटेरियो , कनाडा ) में इतिहास के प्रोफ़ेसर स्टीव मुल्बर्गर ने तो " डेमोक्रेसी इन एंशीएंट इंडिया " पुस्तक ही लिखी है . इसके बावजूद यह सत्य है कि जिन लोगों ने वर्तमान संविधान बनाया और देश में लोकतांत्रिक व्यवस्था अपनाने का निश्चय किया , उन्होंने लोकतंत्र की अपनी पुरानी परम्पराओं को पुनर्जीवित करना न उचित समझा न आवश्यक. उन्होंने तो यूरोपीय देशों की, विशेष रूप से इंग्लैण्ड की " डेमोक्रेसी " की नक़ल की . इसीलिए संविधान भी मूलरूप से अंग्रेजी में बनाया. पर नक़ल तो नक़ल ही होती है . जिस डेमोक्रेसी की नक़ल करने का हमने दावा किया , उसका स्वरूप यूरोप में क्या है, इसकी ओर इंगित करने वाली फ़्रांस और इंग्लैण्ड में हाल ही में घटीं कुछ घटनाएँ प्रस्तुत हैं .
हम जानते ही हैं कि इस समय पूरे विश्व की अर्थ व्यवस्था संकटग्रस्त है. फ़्रांस के नव निर्वाचित राष्ट्रपति " फ्रांस्वा औलांद " (Francois Hollande ) ने पद संभालते ही ( अप्रैल 2012 ) इसका सामना करने का एक ऐसा अनूठा उपाय सोचा जिससे शासक और शासित के बीच का अंतर बहुत कम हो सकता है . उन्होंने निर्णय किया कि अब उनके देश में राष्ट्रपति, प्रधान मंत्री और अन्य मंत्रियों के वर्तमान वेतन में 30 % की कटौती होगी. उनके नए प्रधान मंत्री ज्यां - मार्क एराल्त (Jean - Marc Ayrault ) ने नए मंत्रियों के लिए तीन शर्तों की घोषणा की : ( 1 ) मंत्रियों को अपनी कमाई के दूसरे धंधे बंद करने होंगे. ( 2 ) उन्हें अपने को ऐसे मामलों से दूर रखना होगा जिनमें निजी और सार्वजनिक हित में कोई टकराव हो ( 3 ) उन्हें अतिशीघ्र संसदीय निर्वाचन का सामना करके संसद में आना होगा. उन्होंने आधे पद महिलाओं को दिए हैं .
इंग्लैण्ड में डा. लायम फ़ॉक्स ( Dr . Liam Fox ) कंज़र्वेटिव पार्टी के एक नेता हैं और नार्थ सॉमरसेट से संसद सदस्य हैं. उनके एक घनिष्ठ मित्र एडम वेरिटी (Adam Werritty ) स्काटिश व्यवसायी हैं. व्यवसाय में ये दोनों लोग साथी रहे हैं . दोनों पहले हेल्थ केयर कन्सल्टेन्सी फर्म में भागीदार थे . ब्रिटेन , आस्ट्रेलिया, अमरीका आदि अनेक देशों में परम्परा है कि संसद में विपक्षी दल भी अपनी " शैडो कैबिनेट “ बनाता है . डा . फ़ॉक्स की पार्टी जब विपक्ष में थी तो डा, फ़ॉक्स " शैडो डिफेंस सेक्रेटरी " थे . तब वेरिटी भी उनके साथ विदेश यात्राओं में जाया करते थे. अब जब डा. फ़ॉक्स की पार्टी सत्ता में आ गई तो वर्ष 2010 में डा. फ़ॉक्स को “ सेक्रेटरी ऑफ़ स्टेट फॉर डिफेंस “ बनाया गया. कुछ ही समय बाद एडम वेरिटी पर यह आरोप लगा कि उन्होंने अपने मित्र डा. फ़ॉक्स के पद का दुरुपयोग किया , अपने को उनका ' सलाहकार ' बता कर उद्योगपतियों के साथ अनेक अनौपचारिक बैठकें कीं और सलाहकार बताकर ही रक्षा मंत्रालय तक पहुँच गए . इतना ही नहीं , डा. फ़ॉक्स की विदेश यात्राओं में वे भी साथ गए .
पाठक जानते ही होंगे कि ब्रिटेन में भी इस समय द्वितीय विश्व युद्ध के बाद की पहली गठबंधन सरकार है जिसमें कंज़र्वेटिव के साथ लिबरल डिमोक्रेट्स भी शामिल हैं. डा. फ़ॉक्स की छवि एक योग्य और ईमानदार व्यक्ति की रही है. वे प्रधान मंत्री डेविड केमेरून के अत्यंत विश्वासपात्र भी हैं . अतः जब आरोपों की आंच आई तो फ़ॉक्स ने पहले तो स्पष्टीकरण देने का प्रयास किया , पर बाद में ‘ न्यायालय में आरोप सिद्ध होने की प्रतीक्षा ‘ करने के बजाय दो-टूक शब्दों में अपनी लापरवाही के लिए स्वयं को जिम्मेदार माना और त्यागपत्र दे दिया. यद्यपि जांच अभी चल ही रही थी, रिपोर्ट अभी आई नहीं थी , और अभी तक ऐसा कुछ भी सिद्ध नहीं हुआ था कि वेरिटी के ज़रिए डा. फ़ॉक्स ने कोई लाभ उठाया हो, इसके बावजूद त्यागपत्र के लिए उन्होंने संदेह को ही पर्याप्त माना. उन्होंने अपने सम्मान को अपने पद से बड़ा माना .
इंग्लैण्ड का एक दूसरा उदाहरण भी देखिए . कुछ ही समय पहले की बात है . मेट्रो रेल में एक भारतीय दंपत्ति सीट पर बैठे हुए सफ़र कर रहे थे. स्त्री की गोद में एक शिशु था. कुछ ही देर में मेट्रो में भीड़ हो गई . अतः अब आने वाले नए यात्रियों को खड़े - खड़े ही सफ़र करना पड़ा . इस दंपत्ति के पास ही हैंडिल पकड़े खड़े एक अँगरेज़ ने उस शिशु की ओर स्नेह से देखा और कुछ कहा . अब बात उस स्त्री और खड़े हुए अँगरेज़ के बीच होने लगी . थोड़ी देर में अवसर पाते ही उसका पति बोला ," तुम जिससे बात कर रही हो, जानती भी हो वह कौन है ? यह प्राइम मिनिस्टर डेविड कैमेरोन हैं ! " स्त्री को सहसा विश्वास नहीं हुआ . उसने उसी व्यक्ति से पूछा ' क्या आप डेविड कैमेरोन हैं ? ' उत्तर हाँ में मिला. स्त्री को हैरानी हुई कि देश का प्राइम मिनिस्टर मेट्रो ट्रेन में , और वह भी खड़े - खड़े सफ़र कर रहा है ! उसने पूछ ही लिया कि आप मेट्रो में क्यों सफ़र कर रहे हैं ? कैमेरोन ने उत्तर दिया कि मुझे गंतव्य पर जल्दी पहुँचना है इसलिए मेट्रो से जा रहा हूँ. अगर कार से जाता तो भीड़ भरे रास्ते में देर लग जाती .
ऐसा है यूरोप का लोकतंत्र ! नक़ल करने वाले क्या इसकी नक़ल करेंगे ?
********************************
-डा. रवीन्द्र अग्निहोत्री
सदस्य, हिंदी सलाहकार समिति ( राजस्व ), वित्त मंत्रालय, भारत सरकार ,
पी / 138 , एम आई जी, पल्लवपुरम - 2 , मेरठ 250 110
e-mail : agnihotriravindra@yahoo.com
.
COMMENTS